http://mohallalive.com/2011/10/26/hindu-festivals-are-celebration-of-the-killing-of-bahujan-heroes/
लाल रत्नाकर द्वारा बनाया गया महिषासुर का चित्र
हिंदुओं के त्योहार बहुजन नायकों की हत्याओं के जश्न हैं
26 OCTOBER 2011 30 COMMENTS
लाल रत्नाकर द्वारा बनाया गया महिषासुर का चित्र
♦ प्रेस विज्ञप्ति, एआईबीएसएफ
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सोमवार को देर रात आयोजित एक कार्यक्रम में महिषासुर की शहादत को याद किया गया। यह वही, महिषासुर है, हिुदु मिथकों में जिसकी हत्या देवी दुर्गा द्वारा की जाती है। लार्ड मैकाले की जयंती की पूर्व संध्या पर आयोजित इस कार्यक्रम में वक्ताओं ने उत्तर भारत में प्रचलित हिंदू मिथकों की बहुजन दृष्टिकोण से पुनर्व्यख्या की जरूरत पर बल दिया। कार्यक्रम का आयोजन आल इंडिया बैकवर्ड स्टूडेंस फोरम (एआइबीएसएफ) और यूनाईटेड दलित स्टूडेंटस फोरम (यूडीएसएफ) ने किया। पिछले कई दिनों से जेएनयू प्रशासन इस कार्यक्रम में विभिन्न गुटों के बीच मारपीट की घटना को लेकर आशंकित था। कार्यक्रम सफलता पूर्वक संपन्न होने पर जेएनयू प्रशासन ने राहत की सांस ली है।
‘लार्ड मैकाले और महिषासुर : एक पुनर्पाठ’ नाम से आयोजित इस कार्यक्रम को संबांधित करते हुए प्रसिद्ध दलित चिंतक कंवल भारती ने कहा कि पराजितों का भी अपना इतिहास होता है, उसकी नये तरीके से व्याख्या की जरूररत है। महिषासुर न्यायप्रिय और प्रतापी राजा थे, जिनका वध आर्यों ने छल से करवाया था। उन्होंने कहा कि ‘असुर’ शब्द का अर्थ प्राणवान होता है लेकिन ब्राह्मणवाद के पैरोकारों ने परंपराओं, पात्रों समेत शब्दों का भी विकृतिकरण किया है। उन्होंने कहा कि दलितों के एक तबके ने दशहरा नहीं मनाने का फैसला बहुत पहले ही कर लिया था। दशहरा हो या होली, हिंदुओं के अधिकांश त्योहार बहुजन तबकों के नायकों की हत्याओं के जश्न हैं। कहीं हिरण्यकश्यप मारा जाता है तो कहीं महिषासुर। उन्होंने कहा कि अब ओबीसी तबके को हिंदुवादी पुछल्लों से मुक्त हो जाना चाहिए।
फारवर्ड प्रेस के मुख्य संपादक आयवन कोस्का ने पोस्टमार्डनिज्म के सबसे बडे उपकरण विखंडनवाद के हवाले से कहा कि हमारे नायक इतिहास के गर्त में दब गये हैं, उन्हें बाहर लाने की जरूररत है। हमें मिथकों के जाल में नहीं फंसना है, अगर हम ऐसा करते हैं तो हम उसी ब्राह्मणवाद का पोषण करेंगे। लार्ड मैकाले के योगादानों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें अंग्रेजी समर्थक रूप में गलत तरीके से प्रचारित किया जाता है। मैकाले का असली योगदान भारतीय दंड संहिता को निर्माण है, जिससे मनु का कानून ध्वस्त हुआ।
युद्धरत आम आदमी की संपादिका व सामाजिक कार्यकर्ता रमणिका गुप्ता ने कहा कि झारखंड में अभी भी ‘असुर’ नाम की जनजाति है, जिनकी संख्या 10 हजार के आसपास है। ये मूलत: लोहे संबंधित काम करने वाले लोग हैं, जिन्हें करमाली और लोहारा आदि नामों से भी जाना जाता है। ये असुर जातियां दुर्गा की पूजा नहीं करतीं। उन्होंने कहा कि हम एक विरोधाभासी समय में जी रहे हैं, एक ओर हम आधुनिक होने का स्वांग कर रहे हैं तो दूसरी तरफ अपनी मानसिकता में हम 16 वीं सदी से बाहर नहीं निकल रहे। उन्होंने मैकाले की भाषायी नीतियों का विरोध करते हुए कहा कि भारतीय दंड संहिता संबंधी योगदान के लिए लार्ड मैकाले को याद किया जाना चाहिए।
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