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Wednesday, 12 June 2013

अंतःस्थल से एकबार फिर



अंतःस्थल से एकबार फिर

पलाश विश्वास


देखते देखते बीत गये पूरे बारह साल, बीता एक युग
मैंने कभी पिता की पुण्यतिथि नहीं मनायी
न मैं इस योग्य हूं की उनकी संघर्ष की विरासत का बोझ
ढो सकूं, इतनी प्रतिबद्धता कहां से लाऊं

वे कोई पत्रकार या जनप्रतिनिधि तो  नहीं,
पर जीते जी सारे के सारे प्रधानमंत्रियों, राष्ट्रपतियों और
मुख्यमंत्रियों, विपक्ष के नेताओं से सीधे संवाद
की स्थितियां बना लेते थे, पीसी अलेक्सांद्र की दीवार फांद
पहुंच जाते थे इंदिराजी के  प्रधानमंत्री कार्यालय में

बिना पैसे वे कहीं से कहीं पहुंच सकते थे और
मौसम या जलवायु से उनका कार्यक्रम बदलता नहीं था
जिस दिशा से आये पुकार, जहां भी देस के जिस कोने में या
सीमापार कहीं भी संकट में फंसे हो अपने लोग, बिना पासपोर्ट
बिना विसा दौड़ पड़ते थे वे कभी भी
अपना घर फूंककर दूसरों को उष्मा देने की
अनंत ऊर्जी थी उनमें और वे जिस जमीन पर खड़े होते थे,
वहां से भूमिगत आग गंगाजल बनकर सतह
पर आ जाती थी, ऐसा था उनका करतब

वे अपढ़ थे, पर संवाद की उनकी वह कला हमारी पकड़ से
बाहर है लाख कोशिशों के बावजूद
भाषा उनके लिए कोई बाधा खडी नहीं
कर सकती थी, न धर्म की कोई प्राचीर थी
उनके आगे पीछे और जाति कहीं भी रोकती न थी उन्हें

वे गांधी नहीं थे यकीनन, लेकिन गांधी सा जीवन जिया उन्होंने
पहाड़ों की कड़कती सर्दी में भी वे नंगे बदन बेपवाह हो सकते थे
उनकी रीढ़ में कैंसर था, पर वे हिमालय से कन्याकुमारी तक की
समूची जमीन नापते रहे पैदल ही पैदल
और उनकी आखिरी सांस भी थी उनके संघर्ष के साथियों के लिए

हमें कोई अफसोस नहीं कि वे अपने पीछे
कुछ भी नहीं छोड़ गये हमारे लिए
सिर्फ एक चुनौती के, जो हर वक्त हमें
उस अधूरी लड़ाई से जोड़े रखती है
जो हम कायदे से लड़ भी नहीं सकते और

न मैदान छोड़ सकते हैं  जीते जी

विभाजन की त्रासदी झेलने के बावजूद
वे अखंड भारत के नागरिक थे
दंगों की तपिश सहने के बावजूद वे
नख से सिर तक धर्मनिरपेक्ष थे

लोकतांत्रिक थे इतने कि हर फैसले से पहले करते थे
हर संभव संवाद, शत्रु मित्र अपने पराये
ये शब्द उनके लिए न थे
और जनहित में जो भी हो जरुरी
उसके लिए योग्यता हो या नहीं, कुछ भी कर गुजरने
की कुव्वत थी उनमें , जिम्मेवारी टालकर
पलायन सिखा न था

वे पुलिस का डंडा झेल सकते थे
हाथ पांव तुड़वा सकते थे
जेल से उन्हें डर लगता नहीं था और खाली पेट
रहना तो उनकी आदत थी

वे खेत जोतते थे और सिंचते थे पसल
सपना बोते थे और अपना हक हकूक के लिए
लड़ना सिखाते थे
वे पुनर्वास की मांग लेकर चारबाग पर
तीन तीन दिन ट्रेनें रोक सकते थे
तो ढिमरी ब्लाक के किसानों के भी अगुवा थे वे

आखिर तक उन्होंने अपने गांव को
बनाये रखा साझा परिवार
जो अब भी , उनकी मौत के
बारह साल भी है साझा परिवार
जो खून के रिश्ते से नहीं, संघर्ष की विरासत
के जरिये आज भी है साझा परिवार

मेरे पिता की पुण्यतिथि वे ही
मना सकते हैं, मना रहे हैं , मैं नहीं

मैं आज उनमें से कोई नहीं
बंद गली की कैद में सुस्ती
मेरी यह जिंदगी मधुमेह में बेबस
हजारों जरुरतों की चारदीवारी में कैद
हमारी प्रतिबद्धता

मैं वह जुनून, वह दीवानगी
कभी हासिल ही नहीं कर सका
जो कुछ भी कर गुजरने को मजबूर करे इंसान को
सिर्फ इंसानियत के लिए
इंसानियत के हक हकूक के लिए
लाखों करोड़ों को परिजन
बनाने की वह कला विरासत में नहीं मिला हमें

मैं पिता की पुण्यतिथि नहीं मनाता
कर्म कांड तो वे भी नहीं मानते थे
और व्याकरण के विरुद्ध थे वे
अवधारणाओं के भी, उनके लिए
विचारधारा से ऊपर था सामाजिक यथार्थ
जिसे हम कभी नहीं मान सकें

वे गाधीवादी थे तो अंबेडकर के अनुयायी भी
वे मार्क्सवादी थे, लेकिन कट्टर थे नहीं
वे नीति रणनीति के हिसाब से जनसरोकार
का पैमाना तय नहीं करते थे और न कर सकते थे
आखिर वे  थे ठेठ शरणार्थी, ठेठ देहाती किसान
जो किताबों से नहीं, अनुभवों और चौपाल से तय करते हैं चीजें

वे सीधे संघर्ष के मैदान में होते थे
क्योंकि विद्वता न थी, इसीलिए
संगोष्ठी की शोभा नहीं बने वे कभी
और न उनका संघर्ष रिकार्ड हुआ कहीं
वे सबकुछ दर्ज करवाकर मरने का इंतजाम नहीं कर पाये
औऱ फकीर की तरह या घर फूंक कबीर की तरह
यूं ही जिंदगी गवां दी अपने लोगों के नाम

सत्ता के गलियारों को बहुत नजदीक से देखा उन्होंने
पर सत्ता की राजनीति में कहीं नहीं थे वे
उनकी एक ही राजनीति थी, वंचितों, बेदखल लोगो की
आवाज बुलंद करने की राजनीति
और वही विरासत हमारे लिए छोड़ गये वे

वे हमारे वजूद में इसतरह समाये हैं कि
हम अबभी उन्हींकी मर्जी के मुताबिक
उन्हींकी लड़ाई जारी रखने की नाकाम कोशिश में मशगुल
उनकी पुण्यतिथियों पर भी बेपरवाह रहे आजतक

और बारह साल पूरे हुए इस तरह
मुझे तो यह तिथि भी याद न थी
फेसबुक से सीधे गांव से
बसंतीपुर से जारी हुई तस्वीर तो
याद आये पिताजी फिर हमें

फिर ये बेतरतीब पंक्तियां निकल पड़ी
अंतःस्थल से एकबार फिर


Tomorrow 12th june, Pulin Babu's birth date so we would gather near his statue to remember his Work n contribution for society.u r invited.....
সাধারণ জন-্গণের জীবন যুদ্ধের নায়ক - 
"পুলিন বাবু "
সাধারণ ব্যক্তি -অসাধারণ ব্যক্তিত্ব !
১২ই জুন ২০১৩ পূণ্যতিথি ঃ জানাই অশেষ . . শ্রদ্ধা ও প্রণাম !
পুলিন বাবু সেবা সমিতি - বাসন্তী পুর
-নিত্যানন্দ মণ্ডল

Photo: সাধারণ জন-্গণের জীবন যুদ্ধের নায়ক -  "পুলিন বাবু " সাধারণ ব্যক্তি -অসাধারণ ব্যক্তিত্ব ! ১২ই জুন ২০১৩ পূণ্যতিথি ঃ জানাই অশেষ . . শ্রদ্ধা ও প্রণাম ! পুলিন বাবু সেবা সমিতি - বাসন্তী পুর -নিত্যানন্দ মণ্ডল
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निर्विरोध जीत गये अराबुल इस्लाम!माकपा ने मैदान छोड़ा।



निर्विरोध जीत गये अराबुल इस्लाम!माकपा ने मैदान छोड़ा।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​

पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के नाम पर जो चल रहा है, उससे सत्तादल के रिकार्ड करीब तीन हजार उम्मीदवारों के निर्विरोध निर्वाचित होने के अलावा विपक्षी दलों की सांगठनिक विकलांगता का भी भंडापोड़ हुआ है। वाम मोरचा के प्रबल पराक्रमी नेता रेज्जाक अली मोल्ला के गृहक्षेत्र कैनिंग दो पंचायत समिति को तृणमूल कांग्रेस ने लगभग बिना प्रतिद्वंद्विता जीत ली तो भांगड़ दो नंबर पंचायत समिति पर भी तृणमूल का दखल हो गया। जहां विवादास्पद तृणमूल नेता,भांगड के पूर्व विधायक अराबुल इस्लाम न सिर्फ निर्विरोध जीते बल्कि वहां उनके मुकाबले माकपाई उम्मीदवार मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए।अराबुल के मुकाबले माकाप समेत दो उम्मीदवार थे। लेकिन आखिरी मौके पर दोनों प्रत्याशियों ने अपना पर्चा वापस ले लिया।.यही नहीं, इस पंचायत समिति की तीस में से इक्कीस सीटोंपर बिना प्रतिद्वंद्विता के तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार निर्विरोध जीत गये।जाहिर है कि भांगड़ में अराबुल का करिश्मा अभी कायम है।

सत्तारुढ तृणमूल कांग्रेस के बाहुबली नेता अराबुल इस्लाम को भांगड इलाके के बामुनघाटा में आगजनी के एक मामले में 43 दिन की हिरासत के बाद जमानत पर छोड दिया गया। भांगड के पूर्व विधायक पर माकपा समर्थकों के वाहन जलाने में शामिल रहने का आरोप है।  अराबुल पर विपक्षी माकपा के विधायक रज्जाक मुल्ला पर भी हमले का आरोप है।  इस मामले में उन्हें पहले ही जमानत दी जा चुकी है।

अलीपुर केंद्रीय जेल में बंद रहे अराबुल को  अलीपुर अदालत के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने जमानत प्रदान की।  मामले में अराबुल को पांचवीं बार प्रयास के बाद जमानत मिली है।  इससे पहले उन्हें चार बार जमानत से इनकार किया जा चुका था।  हालांकि उन्हें लैदर कांप्लैक्स थाना क्षेत्र में नहीं आने की हिदायत दी गयी है, जहां आगजनी की घटना घटी थी।

गौरतलब है कि छह जनवरी को दक्षिण 24 परगना जिले के भांगड़ क्षेत्र के कांटातल्ला इलाके में माकपा विधायक मोल्ला पर हमला हुआ था, जिसमें वह जख्मी हो गए थे। इसके दो दिन बाद आठ जनवरी को घटना के खिलाफ जब वाममोर्चा के जुलूस में शामिल होने के लिए माकपा समर्थक बसों, मेटाडोर में सवार होकर कोलकाता आ रहे थे, बामनघाटा में उन पर फिर हमला हुआ। इस हमले में गोली से तीन लोग जख्मी हुए। एक दर्जन से अधिक वाहनों में आग लगा दी गई। करीब 30 गाड़ियों में तोड़फोड़ की गई। अराबुल की गाड़ी में भी तोड़फोड़ हुई। माकपा ने अराबुल पर आरोप लगाया कि उसी के नेतृत्व में बम व गोली से तृणमूल समर्थकों ने उनपर हमला किया है। उधर अराबुल भी अपने को जख्मी बताते हुए अस्पताल में भर्ती हो गया। माकपा समर्थकों ने अराबुल समेत 17 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई। अराबुल ने भी सत्तार मोल्ला समेत चार सौ माकपा समर्थकों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई। पुलिस ने दोनों दलों के करीब 90 समर्थकों को गिरफ्तार किया, परंतु अराबुल की गिरफ्तारी नहीं हुई। इसे लेकर तृणमूल सरकार की काफी किरकिरी हो रही थी और अस्पताल से छुंट्टी मिलने के बाद आखिरकार पुलिस ने गुरुवार को अराबुल को गिरफ्तार कर लिया।





प्रेसीडेंसी से इतिहासविद बेंजामिन जकारिया की विदाई!


प्रेसीडेंसी से इतिहासविद बेंजामिन जकारिया की विदाई!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​

जिन हालात में फेसबुक मंतव्य के लिए विख्यात इतिहासविद बेंजामिन जकारिया की प्रेसीडेंसी कालेज से विदाई हो गयी, उससे यादवपुर विश्वविद्यालट के शिक्षक अंबिकेश महापात्र की याद ताजा हो गयी। लेकिन इस मामले को लेकर सिविल सोसाइटी की खोमोशी हैरत में डालने वाली है। इंग्शेलैंड के शेफील्ड विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई इतिहास के शिक्षक पद से इस्तीफा देकर स्वायत्त विश्वविद्यालय प्रेसीडेंसी के बुलावे पर वहां की पक्की नौकरी छोड़कर चले आये बेंजामिन जकारिया के साथ जो सलूक परिवर्तन राज में हुआ , वह न केवल शर्मनाक है, बल्कि प्रेसीडेंसी कालेज की उपकुलपति मालविका सरकार जैसी विदुषी प्रशासक की साख को बट्टा लगाने वाला है। प्रेसीडेंसी के स्नातक और स्नातकोत्तर छात्रों में बेंजामिन की भारी लोकप्रियता उनकी आधुनिक दृष्टि और शिक्षा की विशिष्ट शैली की वजह से है। वे सारे छात्र उनके पक्ष में हैं। बेंजामिन पाठ्यक्रम का आधुनिकीकरण करना चाहते थे, जिसके खिलाफ में हैं इतिहास विभाग के बाकी शिक्षक। इसको लेकर लंबे अरसे से खींचातानी चल रही थी।प्रेसीडेंसी के 158 साल के इतिहास में किसी अध्यापक को इस तरह हटाये जाने की कोई नजीर नहीं है।

बेंजमिन ने केम्ब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद वहीं से पीएचडी की और लगातार ग्यारह साल तक शेफील्ड विश्वविद्यालय में पढ़ाने से इतनी प्रतिष्ठा अर्जित की प्रेसीडेंसी से उन्हें शिक्षकता का आमंत्रण भेजा गया। अब बेंजामिन के साथ जो सलूक हुआ और राज्य के विश्वविद्यालयों में राजनीति जिस कदर हावी है, जैसे वर्चस्ववादी गिरोहबंदी है, इस वारदात के बाद राज्य के किसी विश्वविद्यालय से विदेश की क्या कहें, देश के दूसरे विश्वविद्यालयों को कोई आने को तैयार होगा या नहीं, यह शंका पैदा हो गयी है।

वैसे प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय ने बैंजामिन को इतिहास विभाग का अध्यक्ष बनाने का वायदा करके बुलाया था।लेकिन शायद बेंजामिन को बंगाल के वर्चस्ववादी अकादमिक जगत के बारे में मालूम हीं नहीं था। उन्हें अध्यक्ष पद तो दिया ही नहीं गया बल्कि शुरु से उनके खिलाफ मोर्चाबंदी होती रही। जिसपर दुःखी बेंजामिन ने फेसबुक वाल पर मंतव्य कर दिया। जिसके आधार पर पर मालविकादेवी ने उन्हें हटाने का फैसला किया और बेंजामिन इस्तीफा देकर चले गये। बंगाल में इतिहास चर्चा की यह अपूरणीय क्षति है।

प्रेसीडेंसी के अध्यापकों की लेकिन बेंजामिन जकारिया के खिलाफ ढेरों शिकायतें हैं। आरोप है कि बेंजामिन ने  वरिष्ठ प्रेफेसर रजत राय केसाथ अभव्य आचरण किया है। इसे लेकर उपकुलपते से शिक्षकों ने शिकायत की। इसपर उपकुलपति ने ईमेल के जरिये बर्खास्तगी का संदेश देते हुए बेंजामिन को लिखा कि उनका और प्रेसीडेंसी कालेज का एक साथ कोई भविष्य नहीं है। इसपर बेंजामिन ने इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपना इस्तीफा फेसबुक पर भी पोस्ट कर दिया। इसतरह छह महीने के भीतर बेंजामिन कथा का पटाक्षेप हो गया।

अपने इस्तीफे में बेंजामिन ने प्रेसीडेंसी में अव्यवस्था का आरोप लगाया है और तरह तरह की अनियमितताओं का आरोप भी।परीक्षाओं मे गड़बड़ी के भी उन्होंने आरोप लगाये हैं।उपकुलपति मालविका सरकार ने इन आरोपों का खंडन किया है।बेंजामिन के मुताबिक रजनीकांत सर उनके अध्यापक रहे हैं और उनसे दुर्व्यवहार का सवाल ही नहीं उटता। रजत बाबू ने भी इस सिलसिले में कोई शिकायत नहीं की है।उन्होंने अखबारों के जरिए उनके खिलाफ मुहिम चलाने का आरोप भी लगाया।

कुल मिलाकर प्रेसीडेंसी में कोई भारी गड़बड़ी चल रही है, जिसके चलते पिछले चार महीने में चार चार विद्वान शिक्षक प्रेसीडेंसी छोड़कर चले गये।इसके अलावा अनेक शिक्षक लंबे समय से अनुपस्थित हैं और उनके भी विश्वविद्यालय छोड़ देने की आशंका है। छात्रों में अपने अनिश्चित भविष्य को लेकर इस सिलसिले में भारी आशंका है और विश्वविद्यालय प्रशासन उनकी कोई सुनवाई नहीं कर रहा है।




आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट बिजली दर वृद्धि में हुआ है घोटाला बिजली संकट भ्रष्टाचार की देन आइपीएफ संयोजक अखिलेन्द्र के उपवास का दूसरा दिन


  • आल इंडिया पीपुल्स फ्रंट 
    बिजली दर वृद्धि में हुआ है घोटाला
    बिजली संकट भ्रष्टाचार की देन
    आइपीएफ संयोजक अखिलेन्द्र के उपवास का दूसरा दिन 
    लखनऊ 11 जून 2013, जन अधिकार अभियान के तहत उत्तर प्रदेश में कानून के राज (त्नसम व िस्ंू) की स्थापना के लिए आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) के राष्ट्रीय संयोजक का0 अखिलेन्द्र प्रताप सिंह के 10 दिवसीय उपवास का आज दूसरा दिन रहा। आज उपवासस्थल पर हुई सभा में प्रदेश में व्याप्त बिजली संकट और सरकार द्वारा बिजली दरों में की गयी वृद्धि पर वक्ताओं ने अपनी बात रखी। वक्ताओं ने प्रदेश में व्याप्त बिजली संकट को भ्रष्टाचार की देन बताया और कहा कि बिजली दरों में हुई वृद्धि में बड़ा धोटाला हुआ है। आज उपवास का समर्थन करने भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी), राष्ट्रीय ओलेमा कौंसिल, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया), राष्ट्रवादी कम्युनिस्ट पार्टी समेत तमाम जनांदोलन की ताकतें उपवासस्थल पर पहुंची।
    उपवास पर बैठे आइपीएफ के राष्ट्रीय संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि आज प्रदेश में लगातार बिजली कटौती और बिजली दरों में वृद्धि का जो बिजली संकट पैदा हुआ है उसकी मूल वजह भ्रष्टाचार और बिजली विभाग में मची लूट है। उन्होनें अनपरा और ओबरा का उदाहरण देते हुए बताया कि प्रदेश की सार्वजनिक क्षेत्र की विद्युत उत्पादन करने वाली इकाइया कमीशनखोरी और ठेकेदारी प्रथा के कारण अपनी पूरी क्षमता के अनुरूप उत्पादन नहीं कर पा रही है। बिजली विभाग में बीस-बीस साल से एक ही जगह काम करने वाले मजदूरों को संविदा श्रमिक के बतौर रखा गया है। इनके ठेकेदार बदल जाते है पर मजदूर नहीं, मात्र कमीशनखोरी के लिए बिचैलिए के बतौर ठेकेदार रखे गए है। इन मजदूरों के नियमितिकरण के लिए हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी न तो पूर्ववर्ती मायावती सरकार ने और न ही वर्तमान सरकार ने इन मजदूरों को नियमित किया।
    अखिलेन्द्र के उपवास का समर्थन करने आए राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद् के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने प्रदेश में बिजली दरों की बढ़ोत्तरी में हुए घोटाले पर बात रखते हुए बताया कि बिजली दरों के निर्धारण में राज्य विद्युत नियामक आयोग और पावर कारपोरेशन ने एक ही सलाहकार की नियुक्ति कर बिजली दरों को बढ़ाकर जनता पर बोझ लाद दिया गया साथ ही दरों की वृद्धि के साथ ही टैक्स भी थोप दिया गया। उन्होनें कहा कि पावर कारपोरेशन के घाटे की बात भी बेईमानी है क्योकि 25 हजार करोड़ का घाटा दिखाया जा रहा है जबकि 27 हजार करोड़ से भी ज्यादा बकाया है जिसमें से 9 हजार करोड़ सरकार के विभागों पर बकाया है यदि इसकी ही वसूली हो जाएं तो घाटा खत्म हो जायेगा। इतना ही नहीं आज की गयी बिजली दरों में वृद्धि से सरकार को 4 हजार करोड़ रूपए प्राप्त होगें और यदि सरकार अपने बकाए का आधा भी दे दें तो जनता पर लादे दर वृद्धि इस बोझ की कोई जरूरत नहीं रह जायेगी।
    उपवास में सैकड़ों की संख्या में मलिहाबाद से उन ग्रामीणों ने हिस्सेदारी की जिन पर फर्जी बिजली चोरी के मुकदमें कायम कर रिकवरी की कार्रवाही की जा रही है। इन ग्रामीणों को सम्बोधित करते हुए पूर्व मंत्री और राष्ट्रवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव का0 कौशल किशोर ने कहा कि जिन ग्रामीणों के घरों में बिजली का कनेक्शन ही नहीं है उनको बिजली चोरी का गुनाहगार बना दिया गया और सही मायने में बिजली चोरी करने वाले खुले आम धूम रहे है। 
    उपवासस्थल पर हुई सभा को सम्बोधित करते हुए पूर्व सांसद इलियास आजमी ने कहा कि कारपोरेट जगत के मुनाफे के लिए बिजली क्षेत्र के निजीकरण को करने में सरकार लगी है। जबकि खुद सीएजी ने प्रदेश में आगरा के निजीकरण के पूर्ववर्ती सरकार की कार्रवाही पर कहा था कि इससे प्रदेश को हजारों करोड़ का धाटा होगा। उपवासस्थल पर आज सीपीएम राज्य सचिव का0 एसपी कश्यप के साथ जनसंगठनों के नेता सीआईटीयू के प्रदेश अध्यक्ष का0 आरएन बाजपेई, राज्य महामंत्री का0 प्रेमनाथ राय, खेत मजदूर यूनियन के प्रदेश महामंत्री बीएल भारती, डीवाईएफआई के प्रदेश सचिव राधेश्याम वर्मा, एसएफआई के प्रदेश सचिव अखिल विकल ने आकर समर्थन दिया। 
    उपवास पर हुई सभा को राष्ट्रीय ओलेमा कौंसिल के सचिव लाल देवेन्द्र सिंह चैहान, लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक नेता अनिल सिंह, मुस्लिम महिला पर्सनल ला बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अम्बर, सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) के महामंत्री ओकांर सिंह, आइपीएफ के राष्ट्रीय प्रवक्ता एस. आर. दारापुरी, ठेका मजदूर युनियन के महामंत्री हरीमोहन शर्मा ने भी सम्बोधित किया। सभा का संचालन आइपीएफ प्रदेश प्रवक्ता अजीत सिंह यादव ने किया।
    भवदीय 
    (दिनकर कपूर)
    संगठन प्रभारी आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट(आइपीएफ)उ0 प्र0।
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बेलगाम स्पीड के बलि होते हाईवे क्रास करते लोग!शाम के बाद तो ये स्वर्णिम राजमार्ग मृत्युपथ में तब्दील हो जाते हैं!



बेलगाम स्पीड के बलि होते हाईवे क्रास करते लोग!शाम के बाद तो ये स्वर्णिम राजमार्ग मृत्युपथ में तब्दील हो जाते हैं!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​

सोमवार की रात आठ बजे के करीब राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर छह पर अंकुरहाटि चेकपोस्ट क्रासिंग से रास्ता पार करते मोटरबाइक पर सवार दो लोगों की मौके पर मौत हो गयी।ऩाराज स्थानीय वासिंदों ने ट्राफिक जाम कर दिया। रैफ उतारकर लाशे कब्जे में लेकर यातायात चालू किया गया। हफ्ते में दो चार दिन अंकुरहाटि चेकपोस्ट पर यह नजारा दिखने को मिल जाता है। आजकल रानीहाटी, अंकुरहाटी, कोना, शलप से लेकर जयपुर तक राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर छह और  राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर दो को चौड़ा किये जाने का काम तेजी पर है। भूमि अधिग्रहण की समस्या की वजह से यह काम काफी धीमी गति से चल रहा है। ऊपर से इन राजमार्गों के किनारे बसे लोगों के लिए रास्ता पार करने की व्यवस्था न होने के कारण रोजाना कहीं न कहीं दुर्घटना होते रहने के कारण कानून और व्यवस्था की भी भारी समस्या खड़ी हो जाती है।

इसीतरह निमता से लेकर कल्याणीतक कल्याणी हाईवे को बी चौड़ा किया जा रहा है। पर्यावरण को ताक पर रखते हुए हजारों की तादाद में बेरहमी से पेड़ काटे जा रहे हैं। इन राजमार्गों के किनारे गैरकानूनी तौर पर पार्किंग कहीं भी देखी जा सकती है , जिससे फुटपाथ गायब हो गया है। लोगदों को तेज गति से आ रहे वाहनों के बीच रास्ता बनाते हुए राजमार्ग पर चलना पड़ता है, जबकि राजमार्ग पर होने वाली दुर्घटना के बाबत कोई मुकदमा भी दर्ज नहीं किया जा सकता। राजमार्ग पर पैदल चलने की मनाही है। राजमार्ग को निर्दिष्ट स्थानों के अलावा पार भी नहीं किया जा सकता।राजमार्ग पर पड़ने वाले हजारों गांवों के लोग रोजाना जान हथेली पर लेकर घर और काम की जगह जाने की मजबूरी से रास्ता पार करते हैं और दुर्घटनाएं होती रहती है।

हाईवे से लेकर बालि ब्रिज तक करीब एक किलोमीटर रास्ते पर दर्जनों जगह पर स्पीड ब्रेकर अनावश्यक ढंग से बेतरतीब लगा दिये गये हैं। लेकिन राष्ट्रीय राजमार्गों पर पड़ने वाले गांवों और कस्बों में न स्पीड ब्रेकर हैं और न ट्राफिक सिगनल। कहीं कहीं क्रासिंग पर कभी कभी पुलिस नजर आती है, लेकिन इतने महत्वपूर्म राजमार्गों की कोई निगरानी आमतौर पर नहीं होती। वाहनों में क्या क्या ढोया जाता है किसी को कोई अंदाजा नहीं है। पचासों मील चलने के बावजूद कहीं भी गश्ती पुलिस नजर नहीं आती।

शाम के बाद तो ये स्वर्णिम राजमार्ग मृत्युपथ में तब्दील हो जाते हैं। शलप में प्रेतनगरी कोलकाता वेस्ट की तरह कहीं भी राजमार्ग पर रोशनी न होने से बेलगाम स्पीड से आये दिन दुर्घटनाओं में मारे जाने को अभिशप्त लोग बस अपनी बारी के इंतजार में जी रहे होते हैं।

ये राजमार्ग दरअसल भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (भाराराप्रा)  के मातहत है और राज्य सरकार उसके कामकाज में हस्तक्षेप नहीं करता।भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (भाराराप्रा) भारत का सरकारिक का उपक्रम है। इसका कार्य इसे सौंपे गए राष्ट्रीय राजमार्गों का विकास, रखरखाव और प्रबन्धन करना और इससे जुड़े हुए अथवा आनुषंगिक मामलों को देखना है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का गठन संसद के एक अधिनियम, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण अधिनियम, 1988 के द्वारा किया गया था। प्राधिकरण ने फरवरी, 1995 में पूर्णकालिक अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति के साथ कार्य करना शुरू किया।

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (भाराराप्रा) को आम जनता की तकलीफों से कुछ लेना देना नहीं है।अपने इलाकों में तो राष्ट्रीय राजमार्गों का घनत्व बहुत कम है और यदि कुछ मार्ग हैं भी तो उनका रख-रखाव सही ढंग से नहीं होता। उनमें से अधिकांश में जहां-तहां गङ्ढे दिखाई देते हैं, जिनमें बरसात में पानी भर जाता है और फिर तो उन पर बाहन चला रहे लोगों के लिये भयंकर परेशानी का सबब बन जाता है।सड़कों की पामीर जैसी गांठे जो नक्शे में कोलकाता और हैदराबाद के पास भी देखी जा सकती है, लेकिन वे गांठ राष्ट्रीय राजमार्गों की नहीं, बल्कि राज्य के राजमार्गों की हैं। उन राज्यों का निर्माण और रख-रखाव केंद्र सरकार के पैसे से नहीं होता, बल्कि राज्य सरकारों के पैसे से होता है।दिल्ली में रह रहे अधिकांश भारतीय देश की सड़कों के मानचित्र से अवगत नहीं है। इस मानचित्र में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली को बहुत महत्व मिला है। देश के अनेक राष्ट्रीय राजमार्गों की गांठ यहां देखी जा सकती है। दिल्ली में राष्ट्रीय राजमार्गों का घनत्व बहुत ही ज्यादा है। जब हम इस इलाके की जनसंख्या और आर्थिक योगदान को देखें, तो उनके मुकाबले इस क्षेत्र में मिले राष्ट्रीय राजमार्ग बहुत ज्यादा है।

कोलकाता पश्चिम अंतरराष्ट्रीय सिटी राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर छह दिल्ली रोड पर वर्षों से टूटे हुए सलप पुल से हर शाम अंधेरे में डूबी प्रेतनगरी नजर आता ​​है। इस पुल का एक हिस्सा टूटा हुआ है, तो दूसरे हिस्से के वनवे से गाड़ियां आती-जाती हैं। इस वजह से रोजाना ट्राफिक जाम इस अतिव्यस्त राजमार्ग और आगे चलकर इससे जुड़ने वाले मुंबई रोड की रोजमर्रा की जिंदगी है।इस महत्वपूर्ण वाणिज्यपथ के पुल पर किसी गाड़ी के अटक जाने से घंटों तक आवागमन रुक जाता है। विकास का ढोल पीटने वाली सरकार एक पुल की वर्षों से मरम्मत नहीं कर पा रही। अंधेरे में डूबे पुल के नीचे पूरब में दूर-दूर तक फैली कोलकाता पश्चिम अंतरराष्ट्रीय सिटी को देखते हुए बंगाल के हालात का सही जायजा लिया जा सकता है।

राष्ट्र की राजधानी दिल्ली को पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से जोड़ने वाली राष्ट्रीय राजमार्ग 2 (National Highway 2) 1,465 कि.मी. सड़कमार्ग है। दिल्ली से पश्चिम बंगाल स्थित कोलकाता पहुँचने तक यह हरयाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखण्ड राज्यों से होकर गुजरती है। राष्ट्रीय राजमार्ग 2 (National Highway 2) के अन्तर्गत आने वाले मुख्य नगर हैं – फरीदाबाद, मथुरा, आगरा, इटावा कानपुर, फतेहपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, सासाराम, औरंगाबाद, धनबाद आदि।

राष्ट्रीय राजमार्ग 2 (National Highway 2) प्राचीन ग्राण्ड ट्रंक रोड, जो कि अब राष्ट्रीय राजमार्ग 1 (National Highway 1) और राष्ट्रीय राजमार्ग 2 (National Highway 2) में विभाजित हो चुका है, का हिस्सा है।

राष्ट्रीय राजमार्ग ६ का सामान्यतः NH_6 के रूप में उल्लेख किया गया है । यह एक व्यस्त राष्ट्रीय राजमार्ग है जो कि  दक्षिण गुजरात , महाराष्ट्र , छत्तीसगढ़ , उड़ीसा , झारखंड और पश्चिम बंगाल जोड़ता है ।यह आधिकारिक तौर पर 1949 किलोमीटर से अधिक लंबा है।

सड़कें जितनी विकसित होंगी, विकास दर भी उतनी ही ज्यादा मजबूत होगी। इसलिये विकास के ग्लोबल स्टैंडर्ड को प्राप्त करने के लिये सड़कों के भी ग्लोबल स्टैंडर्ड का होना चाहिये। लेकिन पिछले कुछ दिनों में जो घटनाएं घट रही हैं, उनसे पता चलता है कि यह प्राधिकरण किस तरह पूर्वाग्रह से ग्रस्त है और दिल्ली व आसपास के इलाकों के अलावा देश के अन्य हिस्सों की उपेक्षा कर रहा है। पश्चिम बंगाल में एक राष्ट्रीय राजमार्ग की खस्ता हाल देखकर पर उस पर यात्रा कर रहे कोलकाता हाईकोर्ट के एक जज ने तो एक जनहित याचिका ही दायर कर दी। उसके बारे में पता चला कि प्राधिकरण उस सड़क के रखरखाव के लिये धन नहीं उपलब्ध नहीं करवा रहा है।



आडवाणी:हिंदुत्व की राजनीति का विवेकान्द एच एल दुसाध


Status Update
By Dusadh Hari Lal
आडवाणी:हिंदुत्व की राजनीति का विवेकान्द 
एच एल दुसाध 
आज भले ही लोग को भाजपा के आडवाणी को भीष्म पितामह कह रहे हों, किन्तु मैं राजग के ज़माने से ही(जब वाजपेयी और आडवाणी का अहम एकाधिकबार टकराया) उन्हें हिंदुत्व की राजनीति का विवेकानंद कहता रहा हूँ.आज जबकि आडवाणी ने भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी,संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति से हटने का चरम निर्णय ले लिया है ,उन्हें पुनः हिंदुत्व की राजनीति का विवेकानंद कहने का मन कर रहा है.जानत हैं क्यों?
एडविन आर्नाल्ड की 'लाइट ऑफ़ एशिया' पढ़कर हिन्दुस्तान पहुंचे सिंघली बौध भिक्षु धर्मपाल ने जब बौद्ध धर्म की दुर्दशा देखकर भारत को बौद्ध धर्म-धारा में बहा देने की सिंह घोषणा किया,जन्मजात धर्माधिकारी ब्राह्मण भय से कांपने लगे .वैसे समय में धर्मपाल के सामान ही असाधारण प्रतिभाशाली विवेकानंद त्रानकर्ता बनकर सामने आये और उनकी चुनौती का साफलता के साथ सामना किया .यही नहीं परवर्तीकाल में शिकागो के विश्व धर्म सम्मलेन में धर्मपाल और ऐनिविसेंट इत्यादि के सहयोग से चरम अमानवीय हिन्दू-धर्म को विश्व चैम्पियन बनवा दिया .इस असाधारण कृतित्व के न्यूनतम पुरस्कार स्वरूप विवेकानंद को किसी धाम का शंकराचार्य बनना चाहिए था.किन्तु शूद्र होने के कारण वे न्यूनतम पुरस्कार से वंचित हुए ही,विश्वधर्म सम्मलेन से वापसी पर उन्हें कई जगह उन ब्राह्मणों के रोष का शिकार का शिकार बनाना पड़ा जिनका मानना था कि शूद्र होने के नाते विवेकानंद को अध्यात्मानुशीलन का अधिकार नहीं.प्रायः 100 साल बाद एल के आडवाणी ने विवेकानंद के इतिहास की पुनरावृति किया.
धर्मपाल के भारतभूमि पर आगमन सौ साल बाद जब अगस्त 1990 में मंडल रिपोर्ट की प्रकाशित हुई,उससे न सर्फ शक्ति के कुछ स्रोतों में पिछडो की भगीदारी का मार्ग प्रशस्त हुआ बल्कि उससे भी आगे बढ़कर बहुजनों की जाति चेतना का जो राजनीतीकरण हुआ उससे ,सामाजिक न्याय के सैलाब में हिन्दुस्तानी साम्राज्यवादियों के ध्वस्त हो जाने के आसार पैदा हो गए.ऐसे समय में आडवाणी उनके त्राता बनकर सामने आये.उन्होंने 25 सितम्बर 1990 को राम जन्म भूमि मुक्ति आन्दोलन के नाम पर रथ यात्रा निकाल कर सामाजिक न्याय की धारा को ही अन्य दिशा में मोड़ दिया.उनके रामजन्म भूमिम आन्दोलन से जाति चेतना के ऊपर धार्मिक चेतना का राजनीतिकरण हावी हो गया और परवर्ती चरण में भाजपा सत्ता में आ गई.जिस तरह उन्होंने अपने एकल प्रयास से भाजपा को शून्य से शिखर पर पहुँचाया ,उससे अन्य कोई संगठन होता तो सिर्फ और सिर्फ अडवाणी प्रधानमंत्री बनाते . किन्तु वैसा नहीं हुआ तो इसलिए संघ का लक्ष्य ब्राह्मणों के हाथ में सत्ता की लगाम थमाकर अल्पजान सवर्णों के हितों की रक्षा करना रहा है .संघ के इस फार्मूले के कारण अब्राह्मण अडवाणी की जगह,उस ब्राह्मण अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला जो दूर बैठे आडवाणी के मंदिर आन्दोलन को निहार रहे थे.जिनका मंदिर आन्दोलन में मात्र इतना अवदान रहा कि उन्होंने इसे स्वधीनोत्तर भारत का सबसे बड़ा आन्दोलन करार देने का साहस जुटाया ..तो क्या ऐसा नहीं लगता कि आडवाणी हिंदुत्व की राजनीति के विवेकानंद हैं?
बहरहाल हम बहुजनवादी नज़रिए से चाहें तो विवेकानन्द को 'ब्राह्मणवाद का दास' और आडवाणी को 'साम्प्रदायिक और बहुजन-शत्रु' कह सकते हैं.पर,इसमे कोई शक नहीं कि आध्यात्म के क्षेत्र में विवेकानंद और राजनीति के क्षेत्र में आडवाणी ने हिन्दू साम्राज्यवादियों के हित में सर्वोच्च स्तर की योग्यता प्रदर्शन का जो दृष्टान्त स्थापित किया है ,उसका हम कायल हुए बिना नहीं रह सकते.आज बहुत से लोग अडवाणी की तुलना उनके ही चेले मोदी से कर रहे हैं.यह आडवाणी का अपमान है.मोदी क्या अटल बिहारी वाजपेयी का अवदान आडवाणी के समक्ष नहीं के बराबर है.हिंदुत्व की राजनीति में हेडगेवार को अपवाद मान लिया जाय तो एक से दस तक नंबर सिर्फ आडवाणी को मिल सकता है.मुझे ख़ुशी है कि 2099 में मैंने 1500 पृष्ठीय डाइवर्सिटी इयर बुक हिंदुत्व की राजनीति के विवेकानंद को समर्पित की थी.क्योंकि मेरा मानना रहा है कि तमाम कमियों के बावजूद स्वधीनोत्तर भारत की राजनीति को इंदिरा गाँधी और कांशीराम के बाद जिस तरह आडवाणी ने प्रभावित किया उसकी मिसाल मुश्किल है.हमारी कामना है कि कुदरत अडवाणी को कृतघ्न संघ परिवार को योग्य जवाब देने की शक्ति दे. 
11,6.2013


पूरे बंगाल में अपराधों की बाढ़, असहाय पुलिस!



पूरे बंगाल में अपराधों की बाढ़, असहाय पुलिस!

अकेले बारासात थाना इलाके में वर्ष 2012 के दौरान महिला उत्पीड़ने के दो हजार आठ सौ छह मामले पंजीकृत किये गये। वर्ष 2011 में बारासात में महिला उत्यपीड़ने के दो हजार चार सौ दस मामले दर्ज किये गये। दुनियाभर में शायद किसी थाना इलाके में महिलाओं उत्पीड़न के  इतने ज्यादा मामले दर्ज नहीं होते।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​

बंगाल में पंचायतचुनावों को लेकर राजनीतिक संघर्ष तेज है तो कानून और व्यवस्था की हालत भी तेजी से बिगड़ने लगी है। एकतरफा पंचायत चुनाव में अबतक सत्तादल के सात हजार से ज्यादा उम्मीदवार निर्विरोध जीत चुके है और पहली दफा का यह नतीजा है, दूसरी और अंतिम दफा मिलाकर यह सर्वकालीन रिकार्ड कहां तक पहुंचेगा, इसके कयास लगाये जा रहे हैं। पुलिस और प्रशासन कानून व्यवस्था के बदले अदालती निर्देश के मुताबिक चुनाव इंतजाम में व्यस्त हैं तो बंगाल के हर कोने में अपराधिक वारदातों की बाढ़ गयी है। रोजाना हत्या और बलात्कार के मामले दर्ज हो रहे हैं। अभी बारासात में छात्रा की बलात्कार के बाद हत्या के खिलाफ लगातार प्रदर्शन का सिलसिला खत्म नहीं हुआ कि नदिया के गेदे इलाके के कृष्णगंज थानाइलाके में फिर एक छात्रा की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गयी है। वहां भी तुमुल जनरोष है। कोयलांचल में तो आपराधिक वारदातों की बाढ़ आ गयी है। मां माटी मानुष की सरकार ने कोलकाता की तर्ज पर जो विधाननगर, बैरकपुर और आसनसोल जैसे पुलिस कमिश्नरेट बना दिये हैं, उससे हालात सुधरने के आसार नहीं दीख रहे हैं।

कोलकाता पुलिस के संगठनात्मक ढांचे के मुकाबले जिलों में पुलिसिया बंदोबस्त वर्षों से एक ही तरह है। न साधन हैं, न पर्याप्त अफसर और न पर्याप्त संख्या में पुलिसकर्मी। जिससे पुलिस के लिए लंबे चौड़े इलाके में राजनीतिक हिंसा के माहौल में कानून और व्यवस्था की निगरानी करना असंभव है। आपराधिक तत्वों को रोजनीतिक संरक्षण भी मिला हुआ है और वे मौका का फायदा उठाकर पूरे राज्य को अपराध प्रभावित बना देने में आमादा हैं। जहां पुलिस की पहुंच है, वहां राजनीतिक हस्तक्षेप इतना प्रबल है कि पुलिस लाख कोशिस करके अभियुक्तों के खिलाप कुछ कर ही नहीं सकती। बारासात हो या कोयलांचल, सर्वत्र अपराध ौर सत्ता का चोली दामन का साथ है।

अकेले बारासात थाना इलाके में वर्ष 2012 के दौरान महिला उत्पीड़ने के दो हजार आठ सौ छह मामले पंजीकृत किये गये। वर्ष 2011 में बारासात में महिला उत्यपीड़ने के दो हजार चार सौ दस मामले दर्ज किये गये। दुनियाभर में शायद किसी थाना इलाके में महिलाओं उत्पीड़न के   इतने ज्यादा मामले दर्ज नहीं होते। सच तो गिनीज विश्वरिकार्ड से ही मालूम किया जा सकता है।  इतने सारे मामलों की पड़ताल के लिए अधिकारी ही नहीं है। जाहिर है कि अधिकांश मामले में कार्रवाई नहीं हो पाती। अपराधी पकड़े जाते हैं तो चार्जशीट तैयार करनेवाले नहीं होते। इस हालत में अपराधियों के हौसले तो बुलंद होंगे ही। पिर वही अपराधी अगर राजनेता भी हों, तो पुलिस क्या कर सकती है। किसी वारदात के खिलाफ प्रदर्शन और आंदोलन से यह हालत नहीं सुधर सकती, अगर प्रशासनिक तौर पर कोई कारगर उपाय नहीं किये गये। जो फिलहाल असंभव है।

राज्य की माली हालत इतनी संगीन है कि राजधानी कोलकाता की पासंग बराबर पुलिसिया इंतजाम जिलों में करने के लिए जो बजट चाहिए, वह राज्य सरकार के कुल राजस्व आय से ज्यादा ही होगा।

दीदी ने तो कई पुलिस कमिश्नरेट बना दिये लेकिन दस साल से लंबित बारासात थाना इलाके को तोढ़कर तीन थाने बनाने के लंबित प्रस्ताव पर अमल करने के लिए उन्होंने अभीतक कोई पहल नहीं की।

इसीतरह कोयलांचल और जंगल महल और सीमावर्ती इलाकों में जमीनी हकीकत के मुताबिक पुलिस  इंतजाम को दुरुस्त करने के लिए सरकार के किसी भी स्तर पर सोचा ही नहीं जा रहा है।

महज पुलिस को कटघरे में खड़ा करने से राज्य में कानून और व्यवस्था की हालत कतई नहीं सुधरने वाली है। मसलन कोलकाता पुलिस इलाके के 244 वर्ग किमी क्षेत्र में 65 थाने हैं।पुलिसकर्मी करीब 27 हजार। इसके विपरीत अकेले बारासात थाने के जिम्मे286 वर्ग किमी इलाके में कानून व्यवस्था सुधरने की जिम्मेवारी है।बारासात थाना के अंतर्गत 25 सब इंस्पेक्टर,10 असिस्टेंट इंस्पेक्टर और कुल तील सौ जवानों को देहात और दूरदराज के इलाकों में कानून और व्यवस्था बहाल रखने की जिम्मेवारी है। कमिश्नरेट विधाननगर , बैरकपुर और आसनसोल की हालत भी कमोबेश यही है।

कमिश्नरेट बना दिये जाने से पुलिस को सुर्खाब के पर नहीं लगे हैं। जबकि बैरकपुर, विधाननगर और आसनसोल तीनों कमिश्नरेट औद्योगिक गतिविधियों का केंद्र है। वहीं बारासात सीमावर्ती इलाका है। नदिया के गेदे में जहां एक और छात्रा से बलात्कार के बाद उसकी हत्या कर दी गयी है, वह भी बांग्लादेश से सटा हुआ इलाका है।

मुर्शिदाबाद, मालदह, उत्तर व दक्षिण 24 परगना, नदिया और पूरे उत्तरी बंगाल में समस्या यही है कि पुलिस के पास न साधन हैं और न मैन पावर, अपराधकर्मी अपराध करके सीधे बांग्लादेश में चले जाते हैं।दूसरी ओर, कोयलांचल पड़ोसी राज्य झारखंड से जुड़ा है तो पूरा जंगल महल उड़ीसा और झारखंड से जुड़ा हुआ। यहां जंगल जंगल के रास्ते अपराधी और माओवादी दूसरे राज्यों के सुरश्क्षित ठिकानों में पहुंच जाते हैं और पुलिस हाथ मलती रह जाती है!