पूरे बंगाल में अपराधों की बाढ़, असहाय पुलिस!
अकेले बारासात थाना इलाके में वर्ष 2012 के दौरान महिला उत्पीड़ने के दो हजार आठ सौ छह मामले पंजीकृत किये गये। वर्ष 2011 में बारासात में महिला उत्यपीड़ने के दो हजार चार सौ दस मामले दर्ज किये गये। दुनियाभर में शायद किसी थाना इलाके में महिलाओं उत्पीड़न के इतने ज्यादा मामले दर्ज नहीं होते।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
बंगाल में पंचायतचुनावों को लेकर राजनीतिक संघर्ष तेज है तो कानून और व्यवस्था की हालत भी तेजी से बिगड़ने लगी है। एकतरफा पंचायत चुनाव में अबतक सत्तादल के सात हजार से ज्यादा उम्मीदवार निर्विरोध जीत चुके है और पहली दफा का यह नतीजा है, दूसरी और अंतिम दफा मिलाकर यह सर्वकालीन रिकार्ड कहां तक पहुंचेगा, इसके कयास लगाये जा रहे हैं। पुलिस और प्रशासन कानून व्यवस्था के बदले अदालती निर्देश के मुताबिक चुनाव इंतजाम में व्यस्त हैं तो बंगाल के हर कोने में अपराधिक वारदातों की बाढ़ गयी है। रोजाना हत्या और बलात्कार के मामले दर्ज हो रहे हैं। अभी बारासात में छात्रा की बलात्कार के बाद हत्या के खिलाफ लगातार प्रदर्शन का सिलसिला खत्म नहीं हुआ कि नदिया के गेदे इलाके के कृष्णगंज थानाइलाके में फिर एक छात्रा की बलात्कार के बाद हत्या कर दी गयी है। वहां भी तुमुल जनरोष है। कोयलांचल में तो आपराधिक वारदातों की बाढ़ आ गयी है। मां माटी मानुष की सरकार ने कोलकाता की तर्ज पर जो विधाननगर, बैरकपुर और आसनसोल जैसे पुलिस कमिश्नरेट बना दिये हैं, उससे हालात सुधरने के आसार नहीं दीख रहे हैं।
कोलकाता पुलिस के संगठनात्मक ढांचे के मुकाबले जिलों में पुलिसिया बंदोबस्त वर्षों से एक ही तरह है। न साधन हैं, न पर्याप्त अफसर और न पर्याप्त संख्या में पुलिसकर्मी। जिससे पुलिस के लिए लंबे चौड़े इलाके में राजनीतिक हिंसा के माहौल में कानून और व्यवस्था की निगरानी करना असंभव है। आपराधिक तत्वों को रोजनीतिक संरक्षण भी मिला हुआ है और वे मौका का फायदा उठाकर पूरे राज्य को अपराध प्रभावित बना देने में आमादा हैं। जहां पुलिस की पहुंच है, वहां राजनीतिक हस्तक्षेप इतना प्रबल है कि पुलिस लाख कोशिस करके अभियुक्तों के खिलाप कुछ कर ही नहीं सकती। बारासात हो या कोयलांचल, सर्वत्र अपराध ौर सत्ता का चोली दामन का साथ है।
अकेले बारासात थाना इलाके में वर्ष 2012 के दौरान महिला उत्पीड़ने के दो हजार आठ सौ छह मामले पंजीकृत किये गये। वर्ष 2011 में बारासात में महिला उत्यपीड़ने के दो हजार चार सौ दस मामले दर्ज किये गये। दुनियाभर में शायद किसी थाना इलाके में महिलाओं उत्पीड़न के इतने ज्यादा मामले दर्ज नहीं होते। सच तो गिनीज विश्वरिकार्ड से ही मालूम किया जा सकता है। इतने सारे मामलों की पड़ताल के लिए अधिकारी ही नहीं है। जाहिर है कि अधिकांश मामले में कार्रवाई नहीं हो पाती। अपराधी पकड़े जाते हैं तो चार्जशीट तैयार करनेवाले नहीं होते। इस हालत में अपराधियों के हौसले तो बुलंद होंगे ही। पिर वही अपराधी अगर राजनेता भी हों, तो पुलिस क्या कर सकती है। किसी वारदात के खिलाफ प्रदर्शन और आंदोलन से यह हालत नहीं सुधर सकती, अगर प्रशासनिक तौर पर कोई कारगर उपाय नहीं किये गये। जो फिलहाल असंभव है।
राज्य की माली हालत इतनी संगीन है कि राजधानी कोलकाता की पासंग बराबर पुलिसिया इंतजाम जिलों में करने के लिए जो बजट चाहिए, वह राज्य सरकार के कुल राजस्व आय से ज्यादा ही होगा।
दीदी ने तो कई पुलिस कमिश्नरेट बना दिये लेकिन दस साल से लंबित बारासात थाना इलाके को तोढ़कर तीन थाने बनाने के लंबित प्रस्ताव पर अमल करने के लिए उन्होंने अभीतक कोई पहल नहीं की।
इसीतरह कोयलांचल और जंगल महल और सीमावर्ती इलाकों में जमीनी हकीकत के मुताबिक पुलिस इंतजाम को दुरुस्त करने के लिए सरकार के किसी भी स्तर पर सोचा ही नहीं जा रहा है।
महज पुलिस को कटघरे में खड़ा करने से राज्य में कानून और व्यवस्था की हालत कतई नहीं सुधरने वाली है। मसलन कोलकाता पुलिस इलाके के 244 वर्ग किमी क्षेत्र में 65 थाने हैं।पुलिसकर्मी करीब 27 हजार। इसके विपरीत अकेले बारासात थाने के जिम्मे286 वर्ग किमी इलाके में कानून व्यवस्था सुधरने की जिम्मेवारी है।बारासात थाना के अंतर्गत 25 सब इंस्पेक्टर,10 असिस्टेंट इंस्पेक्टर और कुल तील सौ जवानों को देहात और दूरदराज के इलाकों में कानून और व्यवस्था बहाल रखने की जिम्मेवारी है। कमिश्नरेट विधाननगर , बैरकपुर और आसनसोल की हालत भी कमोबेश यही है।
कमिश्नरेट बना दिये जाने से पुलिस को सुर्खाब के पर नहीं लगे हैं। जबकि बैरकपुर, विधाननगर और आसनसोल तीनों कमिश्नरेट औद्योगिक गतिविधियों का केंद्र है। वहीं बारासात सीमावर्ती इलाका है। नदिया के गेदे में जहां एक और छात्रा से बलात्कार के बाद उसकी हत्या कर दी गयी है, वह भी बांग्लादेश से सटा हुआ इलाका है।
मुर्शिदाबाद, मालदह, उत्तर व दक्षिण 24 परगना, नदिया और पूरे उत्तरी बंगाल में समस्या यही है कि पुलिस के पास न साधन हैं और न मैन पावर, अपराधकर्मी अपराध करके सीधे बांग्लादेश में चले जाते हैं।दूसरी ओर, कोयलांचल पड़ोसी राज्य झारखंड से जुड़ा है तो पूरा जंगल महल उड़ीसा और झारखंड से जुड़ा हुआ। यहां जंगल जंगल के रास्ते अपराधी और माओवादी दूसरे राज्यों के सुरश्क्षित ठिकानों में पहुंच जाते हैं और पुलिस हाथ मलती रह जाती है!
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