भारतीय
सत्तावर्ग के राजनीतिक पाखंड का कोई जवाब नहीं है।अमेरिका के साथ असैनिक
परमाणु करार के तहत एक हजार मेगावाट के पहले परमाणु संयंत्र की स्थापना के
शुरुआती कार्य के लिए बुधवार को पहल हो गई। बाजार की जय जयकार के बीच जहां
बाजार के राष्ट्रपति बतौर प्रणव मुखर्जी के रायसीना हिल्स में पहुंचना तय
हो गया और ममता बनर्जी विद्रोह करके भी इसे रोक पाने की स्थिति में नही
हैं, वहीं इस राजनीतिक धींगामुश्ती के बीच अमेरिका-भारत ने असैन्य
परमाणु करार के क्रियान्वयन की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। वेस्टिंगहाउस
इलेक्ट्रिक कार्पोरेशन और न्यूक्लियर पावर कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेड
[एनपीसीआइएल] ने सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत गुजरत में परमाणु
संयंत्र निर्माण के लिए प्रारंभिक स्तर पर कार्य किया जाएगा।ईरान से तेल
आयात करने की वजह से लगने वाले प्रतिबंधों की आशंका समाप्त होने के बाद
भारत और अमेरिका ने अवरुद्ध असैन्य परमाणु समझौते की दिशा में प्रगति के
साथ-साथ तीसरे द्विपक्षीय महत्वपूर्ण संवाद में उल्लेखनीय प्रगति की है।मजे
की बात है कि भारत अमेरिकी परमाणु संधि के विरोध में ही यूपीए की सरकार
से समर्थन वापस लिया था वामपंथियों ने , लेकिन परमाणु करार क्रियान्वन
पर निःशब्द हो जाने के दिन ही वाम समर्थन से प्रणव का राष्ट्रपति बनना तय
हो गया। आर्थिक सुधारों पर गाहे बगाहे विरोध दर्ज करने वाले वामपंथियों को
दरअसल शंघाई एजंडे पर कोई एतराज कभी रहा नहीं। अब तो देश में सर्वहारा के
उत्थान या क्रांति के लक्ष्य के बजाय बंगाल और केरल में सत्ता में वापसी
और त्रिपुरा में अपनी सरकार बचाना वाम नेतृत्व के लिए सबसे कड़ी चुनौती
है। बिना मांगे बरसात की तरह बाजार के खिलाफ विशवपुत्र प्रणव से एलर्जी के
चलते विद्रोह करने की गलती करके यूपीए से संबंध विच्छेद की कगार पर पहुंच
गयी ममता और वामपंथी साम्राज्यवाद विरोधी नेता कारपोरेट सेनसेक्स अर्थ
व्यवस्था के कारीगरों के हक में लामबंद दीख रहे हैं।भारत ने अमेरिका के साथ
विस्तारित होते रक्षा संबंधों में उसके साथ रक्षा प्रौद्योगिकी के
हस्तांतरण, सह विकास और सह उत्पादन पर जोर दिया है। विदेश मंत्री एसएम
कृष्णा ने अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के साथ संयुक्त संवाददाता
सम्मेलन में कहा, हिलेरी और मैं रक्षा प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण और सह
-विकास तथा सह-उत्पादन के बढ़ रहे महत्व का समर्थन करते हैं।सुरक्षा, सहयोग
और व्यापार सहित पांच प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए
अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने कहा कि भारत और अमेरिका संबंधों का
एक नया व अधिक परिपक्व अध्याय लिखने की दिशा में बढ़ रहे हैं।परमाणु
अप्रसार से लेकर आतंक निरोध के मुद्दे तक अमेरिका भारत से अपना सैन्य सहयोग
बढ़ाना चाहता है। पेंटागन के एक रिपोर्ट में मंगलवार को कहा गया कि
अमेरिका एशिया में बहुपक्षीय अभ्यासों में भागीदारी में विस्तार चाहता है।
नई दिल्ली में जब राष्ट्रपति चुनाव पर
पूरे देश की निगाहें जमी हैं तभी वाशिंगटन में अमेरिका-भारत रणनीतिक वार्ता
की शुरुआत के मौके पर विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने कहा कि इस समझौते से
2008 में हुए अमेरिका-भारत परमाणु करार के क्रियान्वयन को लेकर लगाई जा रही
अटकलों पर विराम लग गया है। कृष्णा ने कहा, ‘मुझे खुशी है कि दोनों देशों
के बीच परमाणु व्यापार की शुरुआत हो रही है। हमें उम्मीद है कि अमेरिका और
भारत की कंपनियां मिलकर जल्द ही परमाणु संयंत्र का निर्माण कार्य शुरू कर
देंगी।भारत के साथ अपने संबंधों को अमेरिका शीर्ष प्राथमिकता दे रहा है।
हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन अपनी भारत यात्रा से लौटी
हैं और जून में दोनों देशों के मंत्रियों के काफी ज्यादा दौरे हैं। इस
दौरान अमेरिकी यात्रा पर कृष्णा, सिब्बल, देशमुख और आजाद के अलावा योजना
आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलुवालिया, इनोवेशन और पब्लिक इन्फॉर्मेशन
इंफ्रास्ट्रक्चर पर प्रधानमंत्री के सलाहकार सैम पित्रोदा भी हैं। घोटालों
के खुलासों ने मनमोहन सिंह सरकार की छवि को बदरंग कर दिया है तो दूसरे
कार्यकाल में वह आर्थिक सुधारों समेत अनेक मामलों में निर्णय का साहस
जुटाती नजर नहीं आती। मनमोहन सिंह और कांग्रेस ने वाम मोर्चा के विरोध के
मद्देनजर एक तरह से सरकार को ही जोखिम में डालकर अमेरिका से परमाणु करार
किया था, लेकिन दूसरे कार्यकाल में सरकार फैसले करना तो दूर किये हुए
फैसलों को भी ठंडे बस्ते में डालकर किसी तरह समय काटने की मानसिकता की
शिकार ज्यादा नजर आती है। राष्ट्रपति चुनाव समेत तमाम राजनीतिक गतिविधियों
में यूपीए राजनीतिक बाध्यताओं और नीति निर्धारण में यथा स्थिति की चुनौतियं
से पार पाने की कोशिस में हैं। ममता बनर्जी उसके लिए सबसे बड़ी पहेली
साबित होने में लगी है। अब वाम समर्थन का दायरा बढ़ा तो य़ूपीए की
मुश्किलें आसान हो सकती है क्योंकि वर्ष 2004 में कांग्रेस आठ साल के लंबे
अंतराल के बाद सत्ता में लौटी थी। बेशक उसे केंद्र की सत्ता वापस पाने के
लिए एकला चलो का राग छोड़कर अनेक दलों के साथ मिलकर संयुक्त प्रगतिशील
गठबंधन बनाना पड़ा था। इसके बावजूद मनमोहन सिंह सरकार का पहला कार्यकाल
संतोषजनक से भी बेहतर नजर आया था। हालांकि उस कार्यकाल की समाप्ति से कुछ
अरसा पहले ही अमेरिका से परमाणु करार के मुद्दे पर वाम मोर्चा ने सरकार से
समर्थन वापस ले लिया था और तब विश्वास मत साबित करने की प्रक्रिया में
सरकार पर सांसदों की खरीद-फरोख्त के आरोप भी लगे थे। इसके बावजूद जनता की
अदालत में सरकार उसकी आकांक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरी और भाजपा के वरिष्ठ
राजनेता लालकृष्ण आडवाणी को प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री ही रहने देते हुए
मतदाताओं ने मनमोहन को लगातार दूसरा कार्यकाल दे दिया।यूपीए से वामदलों के
गठबंधन टूटने से दोनों पक्ष को भारी नुकसान उठाना पड़ा है, जिसकी भरपायी के
लिए लगता है दोनों पक्ष ने बीती बिसार देने का मन बना लिया है। अब देखना
है कि इस नये हानीमून के लिए वामपंधी कौन कौन से नये सिद्धान्त बघारते हैं।
परमाणु करार का मुद्दा तो पीछे छूट ही गया।अगले दो साल में होने जा रहे आम
चुनावों को लेकर लटक रही तलवार के बीच कई प्रमुख आर्थिक विधेयकों तथा
खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जैसे मुद्दों पर महत्वपूर्ण
फैसले अभी अधर में हैं।अब देखना है कि वामपंथी आर्थिक सुधारों के मामलों
में क्या रुख अख्तियार करते हैं।पिछले करीब डेढ़ साल से एक के बाद एक संकट
में फंसती जा रही संप्रग दो सरकार की तस्वीर संप्रग एक से एकदम अलग कही जा
सकती है। पिछली संप्रग सरकार के रास्ते में कई महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर
वाम दलों ने काफी रोड़े अटकाए थे लेकिन इसके बावजूद नीतिगत मसलों पर वह आगे
बढ़ती गयी थी।लेकिन संप्रग दो सरकार की परेशानियां खत्म होने का नाम नहीं
ले रही हैं। सरकार सबसे अधिक महंगाई से परेशान है जो अप्रैल में दहाई के
आंकड़े में पहुंच गयी। इतना ही नहीं विनिर्माण और कर संग्रहण के क्षेत्र
में भी गिरावट ने सरकार की रातों की नींद उड़ा रखी है।तृणमूल कांग्रेस जैसे
संप्रग के प्रमुख घटक दल ने भी खुदरा क्षेत्र में एफडीआई हो या फिर
आतंकवाद विरोधी तंत्र ‘‘नेशनल काउंटर टेरेरिज्म सेंटर (एनसीटीसी) की
स्थापना, उसने सरकार को नाकों चने चबवा दिए हैं। परेशानियों से घिरी सरकार
के लिए जुलाई में राष्ट्रपति पद के चुनाव ने एक नयी चुनौती पैदा कर दी है।
राष्ट्रपति चुनाव के मुद्दे पर गुरुवार को
कांग्रेस का उसके सहयोगी दल तृणमूल कांग्रेस व सपा से टकराव साफ नजर आया
और दोनों पक्षों के उम्मीदवारों के मुकाबले की संभावना बढ़ गई। सत्तारूढ़
गठबंधन ने राष्ट्रपति पद के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नाम की
संभावना से इनकार कर दिया वहीं ममता-मुलायम ने संकेत दिए कि वे झुकने वाले
नहीं हैं। राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी को लेकर कांग्रेस ने ममता बनर्जी पर
विश्वासघात का आरोप लगाया है और लेफ्ट से समर्थन जुटाने की कोशिश में
बिमान बोस और बुद्धदेब भट्टाचार्य से संपर्क साधा है। सूत्रों के मुताबिक
वित्तमंत्री और राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल प्रणब मुखर्जी ने दोनों
नेताओं से फोन पर बातचीत की है। कांग्रेस की नसीहतों को साफ दरकिनार करते
हुए ममता बनर्जी ने कहा है कि वे धमकियों का जवाब देना बेहतर जानती हैं।
ममता बनर्जी ने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा कि जो धमकी देगा, उसे हम
देख लेंगे।
अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के
साथ संयुक्त वार्ता में कृष्णा ने बताया कि रणनीतिक वार्ता से पहले दोनों
देशों की कंपनियों ने सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए। इस प्रारंभिक समझौते के
तहत गुजरात के भावनगर जिले में मिथिविर्दी में परमाणु संयंत्र के लिए
प्रारंभिक स्तर पर लाइसेंस देने और साइट के निर्माण का कार्य किया जाना है।
इसकी क्षमता एक हजार मेगावाट होगी।
दूसरी ओर हिलेरी क्लिंटन ने कहा, ‘हमें
पूरी उम्मीद है कि गुजरात में बनने वाला यह संयंत्र भारत की ऊर्जा जरूरतों
को पूरा करने में मददगार साबित होगा। मुझे आशा है कि भविष्य में और समझौते
होंगे, जिनके जरिए अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक भी कार्य शुरू कर सकेगी।’
हिलेरी ने कहा कि दोनों देशों को परमाणु करार के पूर्ण क्रियान्वयन के लिए
अब भी बहुत कार्य करना है। ध्यान रहे कि भारत में प्रस्तावित क्षतिपूर्ति
विधेयक पर अमेरिकी कंपनियों को सख्त ऐतराज है। यह विधेयक परमाणु दुर्घटना
की स्थिति में कंपनियों की जिम्मेदारी तय करता है। इस विधेयक की वजह से न
केवल अमेरिकी बल्कि रूस और फ्रांस समेत कई देशों की कंपनियां भारत से कतरा
रही हैं।देश मंत्री एसएम कृष्णा के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में
हिलेरिया ने कहा, ‘दिल के मामलों में एक-दूसरे के प्रति सम्मान के साथ
आमतौर पर उतार-चढ़ाव होते रहते है।’ जब उनसे पूछा गया कि क्या इन
उतार-चढ़ावों से दोनों देशों के संबंध प्रभावित होंगे तो क्लिंटन ने कहा,
‘इससे दोनों के संबंध कम हार्दिक नहीं हो जाते और न ही उनकी प्रतिबद्धता कम
होती है।’ उन्होंने कहा, ‘मैं आज भी दोनों देशों के संबंधों में उतनी ही
मजबूती महसूस करती हूं, जितनी दो साल पहले करती थी।’ क्लिंटन ने कहा, ‘मैं
हमारे रिश्ते के प्रति बहुत सकारात्मक हूं और हम मतभेदों के बावजूद साथ काम
करना जारी रखेंगे।’
कृष्णा ने कहा भारत की तेल जरूरतों के लिए
ईरान पर निर्भर है। अमेरिका इस बात को अच्छी तरह जानता है और वह इसे समझता
भी है। कृष्णा का यह बयान अमेरिका की ओर से भारत को ईरान के साथ तेल
व्यापार की छूट के बाद आया है। उन्होंने कहा कि ईरान से तेल आयात में कुछ
कमी आई है, इसकी पूर्ति के लिए हम सऊदी अरब व अन्य देशों से बात कर रहे
हैं। इस पर हिलेरी ने कहा कि हम भारत की जरूरतों को समझते हैं। भारत की
ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए अन्य अमेरिका अन्य स्रोतों पर भी काम कर
रहा है।
बहरहाल दावा किया जा रहा है कि रणनीतिक
वार्ता में विदेश मंत्री ने मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड हाफिज सईद का मामला
भी जोरदार ढंग से उठाया। उन्होंने हिलेरी से कहा, ‘दोनों देशों के बीच
शांति प्रयास जारी हैं, लेकिन पाकिस्तान को आतंकियों पर नकेल कसनी होगी।’
कृष्णा ने कहा कि सईद अब भी पाकिस्तान में आजाद घूम रहा है और खुलकर भारत
विरोधी गतिविधियां चला रहा है। कृष्णा अगले महीने पाकिस्तान की यात्रा पर
जाने वाले हैं। बैठक के दौरान हिलेरी क्लिंटन ने शांति प्रयासों के लिए
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और युसूफ रजा गिलानी की प्रशंसा की। उन्होंने कहा
कि अमेरिका इस बात से खुश है कि भारत-पाक निवेश और व्यापार बढ़ाने की दिशा
में काम कर रहे हैं।
संप्रग के संभावित उम्मीदवार प्रणव
मुखर्जी और दो क्षेत्रीय दलों – तृणमूल कांग्रेस एवं सपा के समर्थन वाले
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के बीच मुकाबले की तस्वीर नजर आने लगी
है। हालांकि भाजपा, वाम दलों और अन्य कुछ दलों ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले
हैं। कांग्रेस की ओर से प्रणव मुखर्जी की दावेदारी की खबरों के बीच आज रात
राजनीतिक गलियारों में लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार का नाम भी सामने आया।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी,
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, मुखर्जी, पी चिदंबरम, एके एंटनी और अहमद पटेल ने
आज रात इस मुद्दे पर रणनीति बनाने के लिहाज से चर्चा की। इस बाबत राकांपा
और द्रमुक से बातचीत हो चुकी है जिन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार को समर्थन
जताया है।
हालांकि बाद में कांग्रेस के आधिकारिक
सूत्रों ने कहा कि केवल एक उम्मीदवार की ओर पार्टी का ध्यान है और वह
मुखर्जी हैं। कांग्रेस ने तृणमूल-सपा से मुकाबले के संकेत दिए। इन दोनों
दलों ने आज स्पष्ट किया कि वे कलाम के नाम का समर्थन कर रहे हैं।
उधर, पूर्व राष्ट्रपति कलाम ने इस मुद्दे
पर देखो और इंतजार करो का रुख अख्तियार करने का निर्णय किया है। सपा
सूत्रों ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी और सपा सुप्रीमो
मुलायम सिंह यादव ने उनका नाम लेने से पहले उन्हें विश्वास में लिया था।
लेकिन कलाम के करीबी सूत्र के अनुसार उनका मानना है कि वह तभी मैदान में
आएंगे जब उनके नाम पर आम सहमति हो।
इस बीच ये भी संकेत हैं कि संप्रग के
सहयोगी दल कल गठबंधन के एक उम्मीदवार का नाम तय करने के लिए एक साथ
बैठेंगे। तृणमूल अध्यक्ष ममता बनर्जी ने इसमें भाग नहीं लेने का फैसला किया
है। राष्ट्रपति चुनाव की कवायद में कांग्रेस और ममता बनर्जी के बीच गतिरोध
खुलकर सामने आ गया है। कांग्रेस ने जहां ममता पर कल सोनिया से बातचीत के
बाद प्रणव और उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के नामों का खुलासा करके मर्यादा
तोड़ने का आरोप लगाया। वहीं, तृणमूल ने कहा कि उन्होंने कोई विश्वासघात
नहीं किया।
बढ़ते गतिरोध के बीच ममता ने कहा कि वह
अपनी ओर से संप्रग सरकार को अस्थिर नहीं करना चाहतीं लेकिन दबाव में नहीं
आएंगी। उन्होंने कहा कि वह संप्रग का साथ नहीं छोड़ेंगी लेकिन गेंद
कांग्रेस के पाले में है।
राजनीतिक गहमागहमी वाले आज के दिन की
शुरुआत कांग्रेस पार्टी की ओर से आये कठोर बयान से हुई जिसमें ममता बनर्जी
पर निशाना साधा गया। कांग्रेस ने तृणमूल-सपा के सुझाये तीनों नामों को
खारिज कर दिया। इनमें प्रधानमंत्री के साथ पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल
कलाम और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी हैं।
अमेरिकी रक्षा मुख्यालय पेंटागन की एक
रिपोर्ट में अमेरिका के भारत के दीर्घकालिक महत्व को रेखांकित करते हुए
दोनों देशों के बीच पारस्परिक लाभदायक रक्षा संबंधों को मजबूत करने पर जोर
दिया गया है।भारत के बारे में, अमेरिकी कांग्रेस को सौंपी गई रिपोर्ट में
कहा गया है कि पेंटागन हथियारों के संयुक्त विकास, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी
के हस्तांतरण, भारत और अमेरिका के बीच सेना के स्तर पर सहयोग को मजबूत
बनाने समेत अनेक पहलों पर काम कर रहा है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अगले पांच साल
में, एशिया-प्रशांत और वि भर में हम भारत के साथ सशक्त और पारस्परिक लाभ
वाले रक्षा संबंधों को परिपक्व बनाने के लिए सतत रूप से जरूरी संरचनाओं का
निर्माण करेंगे।’
पेंटागन ने कहा है, ‘हम सतत सैन्य
वार्ताओं, सहमति आधारित सहयोग के कार्यान्वयन, समुद्री सुरक्षा और आतंकवाद
के विरूद्ध लड़ाई जैसी गतिविधियों पर विशेष बल के साथ सहयोग को लागू कर तथा
रक्षा व्यापार और युद्ध सामग्री के क्षेत्र में सहयोग पुख्ता कर रक्षा
संबंधों को बढ़ाएंगे।’
इस साल पेश बजट निर्देश के मुताबिक इस नौ पेज के रिपोर्ट को कांग्रेस (संसद) में पेश किया गया है।
पेंटागन के प्रवक्ता जार्ज लिटल ने कहा,
‘रक्षा मंत्रालय ने वित्तीय वर्ष 2012 के लिए राष्ट्रीय रक्षा प्राधिकरण
अधिनियम में किए गए आग्रह के मुताबिक भारत-अमेरिका सुरक्षा सहयोग पर
रिपोर्ट जमा कर दी है।
’
जार्ज लिटिल ने एक बयान में कहा कि इस
रिपोर्ट में भारत-अमेरिकी संबंधों की मौजूदा स्थिति और भविष्य में
द्विपक्षीय सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने से जुड़े सुझाव दिए गए हैं।
अमेरिकी संसद ने सैन्य सहयोग, हथियारों की
बिक्री और सैन्य अभ्यास के जरिए भारत के विकास को अमेरिकी हित में बताते
हुए वित्त वर्ष 2012 के लिए पेश बजट में पेंटागन को द्विपक्षीय रक्षा
संबंधों को बढ़ाने के लिए पांचवर्षीय कार्ययोजना पर एक नवंबर तक रिपोर्ट
जमा करने के लिए कहा था।
शक्तिशाली सीनेट सशस्त्र सेवा समिति ने
कहा था कि उसका मानना है कि भारत और अमेरिका के बीच वैश्विक रणनीतिक
भागीदारी में बढ़ोतरी कानून पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को कायम रखने
और विस्तार के लिए जरूरी है।
यह व्यवस्था स्वतंत्रता, लोकतंत्र, सुरक्षा, समृद्धि और 21वीं सदी में कानून के शासन को प्रोत्साहित करने वाली होगी।