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Saturday, 16 June 2012

मुलायम-ममता जुगलबंदी ने गड़बड़ा दिये कांग्रेस के सारे समीकरण !


साइक्लोन ममता ने दिल्ली का तापमान बढ़ाया!असल में यह खेल ममता मुलायम जोड़ी का कम, ममता, आहलूवालिया और पित्रोदा तिकड़ी की ज्यादा​है!पिक्‍चर अभी बाकी है!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

 

कोलकाता में यह खबर पहले से थी कि मनमोहन को राष्ट्रपति बनाकर सोनिया गांधी प्रणव मुखर्जी को तदर्थ प्रधानमंत्री बनाकर राहुल​गांधी का रास्ता साफ करना चाहती हैं, इसे महज अटकलबाजी मानकर खारिज कर दिया गया था। पर आज दिल्ली में क्षत्रपों की सबसे तगड़ी जोड़ी मुलायम ममता ने मनमोहन का नाम राष्ट्रपति पद के लिए प्रस्तावित करके न सिर्फ राजधानी का तापमान बढ़ा दिया, बल्कि मनमोहनी तुरूप की इस चाल से बाजार के होश भी फाख्ता कर दिये। अब चाहे जो हो, बाजार के प्रत्याशी बतौर प्रणव के राष्ट्रपति बनने की संभावना लगभग खत्म है बशर्ते कि वामपंथियों को पटाकर मुलायम ममता को हाशिये पर डालने की जोखिम उठाये सोनिया गांधी।लेकिन राजनीतिक खेल अभी खत्म नहीं हुआ है क्योंकि अंतिम फैसला सोनिया गाधी को ही करना है।ऐसा नहीं हो सकता कि ममता और​मुलायम के बीच पक रही खिचड़ी की जानकारी उन्हें न हो। कोलकाता में अगर पहले से मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति बनाने की अटकलें जोर पर थीं और कोलकाता की नेता ने ही औपचारिक तौर पर यह प्रस्ताव कर दिया तो इसे महज संयोग नहीं माना जा सकता। फिर अर्थ व्यवस्था की बदहाली के बहाने बाजार के नुमांदों से बी प्रणव दादा अलग बात कर रहे हैं। आहलूवालिया और पित्रोदा क्या कर रहे हैं, इसकी बल्कि मीडिया की खबर नहीं है। जबकि हकीकत यह है कि असल में यह खेल ममता मुलायम जोड़ी का कम, ममता, आहलूवालिया और पित्रोदा तिकड़ी की ज्यादा​है!
मालूम हो कि दिल्लीवासियों ने बुधवार का दिन भी लू के थपेड़ों में गुजारा और पारा सामान्य से चार डिग्री उपर 43 डिग्री सेल्सियस जा चढा। दिल्ली में आज का अधिकतम तापमान सामान्य से चार डिग्री ज्यादा और कल के 42.3 डिग्री के मुकाबले अधिक रहा जबकि न्यूनतम तापमान भी कल के 28.6 डिग्री से ज्यादा और सामान्य से तीन डिग्री अधिक था। राष्ट्रीय राजधानी का न्यूनतम तापमान 20 से 47 प्रतिशत के बीच रहा।जाहिर है कि यूपीए सरकार राष्ट्रपति चुनाव के मुद्दे पर गंभीर संकट से घिर गई है। कल तक नए राष्ट्रपति पद के लिए प्रणब मुखर्जी के नाम पर सहमति के आसार बन रहे थे, लेकिन आज सोनिया के बुलावे पर दिल्ली आई तृणमुल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी ने सारा खेल बिगाड़ दिया। उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की पसंद प्रणब मुखर्जी का नाम खारिज करते हुए अपनी ओर से एपीजे अब्दुल कलाम, मौजूदा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी के नाम पेश कर दिए। ममता के इस खेल में समाजवादी पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव भी शामिल थे। जाहिर है कांग्रेस का राष्ट्रपति पद का अंकगणित बुरी तरह गड़बड़ा गया, उसपर सोनिया गांधी को भी ममता के इस खेल से अपमान का घूंट पीना पड़ा है।
ममता बनर्जी और मुलायम सिंह यादव ने भले ही मनमोहन सिंह, एपीजे अब्‍दुल कलाम और सोमनाथ चटर्जी का नाम राष्‍ट्रपति पद के लिए प्रस्‍तावित कर बड़ा ट्रेलर दिखा दिया हो, लेकिन पिक्‍चर अभी बाकी है। अंतिम फैसला लेंगी पर्दे के पीछे बैठीं सोनिया गांधी और वो इनमें से किसी को भी राष्‍ट्रपति नहीं बनाना चाहेंगी। उनकी पहली पसंद प्रणब मुखर्जी ही हैं। ऐसा इसलिए क्‍योंकि प्रणब के राष्‍ट्रपति बनने से राहुल गांधी का रास्‍ता साफ हो सकता है। वो रास्‍ता जो पीएम की कुर्सी तक जाता है। कांग्रेस अध्‍यक्ष सोनिया गांधी यह अच्‍छी तरह जानती हैं कि 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपीए की वापसी बहुत मुश्किल है। दूसरी ओर टीम अन्‍ना, भाजपा समेत तमाम समाजसेवी व नेता मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधानमंत्री करार देते आ रहे हैं। ऐसे में 2014 में लोकसभा चुनाव से पहले ही कांग्रेस को अपना पीएम कैंडिडेट घोषित करना होगा।यूपीए में प्रणब मुखर्जी पीएम पद के सबसे बड़े दावेदार हैं और सोनिया गांधी हमेशा चाहेंगी कि राहुल गांधी पीएम की कुर्सी पर बैठें। यही कारण है कि सोनिया गांधी प्रणब दा को राष्‍ट्रपति बनाना चाहती हैं, ताकि राहुल का रास्‍ता क्लियर हो जाये।
मुलायम-ममता जुगलबंदी ने आगामी राष्ट्रपति चुनाव के लिए कांग्रेस के सारे समीकरण गड़बड़ा दिये हैं।

खुशवंत सिंह के पिता ने दिलवाई थी भगत सिंह को फांसी: दिल्ली सरकार देगी ‘सम्मान’

खुशवंत सिंह के पिता ने दिलवाई थी भगत सिंह को फांसी: दिल्ली सरकार देगी ‘सम्मान’

शहीद-ए-आज़म भगत सिंह की एक दुर्लभ तस्वीर
।। – धीरज भारद्वाज ।।
शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के बलिदान को शायद ही कोई भुला सकता है। आज भी देश का बच्चा-बच्चा उनका नाम इज्जत और फख्र के साथ लेता है, लेकिन दिल्ली सरकार उन के खिलाफ गवाही देने वाले एक भारतीय को मरणोपरांत ऐसा सम्मान देने की तैयारी में है जिससे उसे सदियों नहीं भुलाया जा सकेगा। यह शख्स कोई और नहीं, बल्कि औरतों के विषय में भौंडा लेखन कर शोहरत हासिल करने वाले लेखक खुशवंत सिंह का पिता ‘सर’ शोभा सिंह है और दिल्ली सरकार विंडसर प्लेस का नाम उसके नाम पर करने का प्रस्ताव ला रही है।
भारत की आजादी के इतिहास को जिन अमर शहीदों के रक्त से लिखा गया है, जिन शूरवीरों के बलिदान ने भारतीय जन-मानस को सर्वाधिक उद्वेलित किया है, जिन्होंने अपनी रणनीति से साम्राज्यवादियों को लोहे के चने चबवाए हैं, जिन्होंने परतन्त्रता की बेड़ियों को छिन्न-भिन्न कर स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया है तथा जिन पर जन्मभूमि को गर्व है, उनमें से एक थे — भगत सिंह।
यहां तक कि जवाहरलाल नेहरू ने भी अपनी आत्मकथा में यह वर्णन किया है– “भगत सिंह एक प्रतीक बन गया। सैण्डर्स के कत्ल का कार्य तो भुला दिया गया लेकिन चिह्न शेष बना रहा और कुछ ही माह में पंजाब का प्रत्येक गांव और नगर तथा बहुत कुछ उत्तरी भारत उसके नाम से गूंज उठा। उसके बारे में बहुत से गीतों की रचना हुई और इस प्रकार उसे जो लोकप्रियता प्राप्त हुई वह आश्चर्यचकित कर देने वाली थी।”
लेकिन कम ही लोगों को याद होगा कि  भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी के तख्ते तक पहुंचाने वालों में अंग्रेजों का साथ दिया था उनका तन-मन-धन से साथ देने वाले कौम के गद्दारों ने। अंग्रेजों ने तो उन्हें वफ़ादारी का इनाम दिया ही, आजाद भारत की कांग्रेसी सरकार भी उन गद्दारों को महमामंडित करने से नहीं चूक रही। कुछ गद्दारों को तो समाज के बहिष्कार का दंश भी सहना पड़ा, लेकिन कुछ ने अपनी पहचान बदल कर सम्मान और पद भी हासिल किया। आइए डालें एक नज़र ऐसे ही कुछ गद्दारों पर।
जब दिल्ली में भगत सिंह पर अंग्रेजों की अदालत में असेंबली में बम फेंकने का मुकद्दमा चला तो भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त के खिलाफ गवाही देने को कोई तैयार नहीं हो रहा था। बड़ी मुश्किल से अंग्रेजों ने कुछ लोगों को गवाह बनने पर राजी कर लिया। इनमें से एक था शोभा सिंह। मुकद्दमे में भगत सिंह को पहले देश निकाला मिला फिर लाहौर में चले मुकद्दमें में उन्हें उनके दो साथियों समेत फांसी की सजा मिली जिसमें अहम गवाह था शादी लाल।
'सर' शादी लाल
दोनों को वतन से की गई इस गद्दारी का इनाम भी मिला। दोनों को न सिर्फ सर की उपाधि दी गई बल्कि और भी कई दूसरे फायदे मिले। शोभा सिंह को दिल्ली में बेशुमार दौलत और करोड़ों के सरकारी निर्माण कार्यों के ठेके मिले जबकि शादी लाल को बागपत के नजदीक अपार संपत्ति मिली। आज भी श्यामली में शादी लाल के वंशजों के पास चीनी मिल और शराब कारखाना है।
लेकिन शादी लाल  को गांव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा कि उसके मरने पर किसी भी दुकानदार ने अपनी दुकान से कफन का कपड़ा तक नहीं दिया। शादी लाल के लड़के उसका कफ़न दिल्ली से खरीद कर लाए तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया था।
इस नाते शोभा सिंह खुशनसीब रहा। उसे और उसके पिता सुजान सिंह (जिसके नाम पर पंजाब में कोट सुजान सिंह गांव और दिल्ली में सुजान सिंह पार्क है) को राजधानी दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में हजारों एकड़ जमीन मिली  और खूब पैसा भी। उसके बेटे खुशवंत सिंह ने शौकिया तौर पर पत्रकारिता शुरु कर दी और बड़ी-बड़ी हस्तियों से संबंध बनाना शुरु कर दिया। सर सोभा सिंह के नाम से एक चैरिटबल ट्रस्ट भी बन गया जो अस्पतालों और दूसरी जगहों पर धर्मशालाएं आदि बनवाता तथा मैनेज करता है। आज  दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास बाराखंबा रोड पर जिस स्कूल को मॉडर्न स्कूल कहते हैं वह शोभा सिंह की जमीन पर ही है और उसे सर शोभा सिंह स्कूल के नाम से जाना जाता था।  खुशवंत सिंह ने अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर अपने पिता को एक देश भक्त और दूरद्रष्टा निर्माता साबित करने का भरसक कोशिश की।
खुशवंत सिंह की हवेली
'सर' सोभा सिंह
मॉडर्न स्कूल, बाराखंबा रोड
खुशवंत सिंह ने खुद को इतिहासकार भी साबित करने की भी कोशिश की और कई घटनाओं की अपने ढंग से व्याख्या भी की। खुशवंत सिंह ने भी माना है कि उसका पिता शोभा सिंह 8 अप्रैल 1929 को उस वक्त सेंट्रल असेंबली मे मौजूद था जहां भगत सिंह और उनके साथियों ने धुएं वाला बम फेका था। बकौल खुशवंत सिह, बाद में शोभा सिंह ने यह गवाही तो दी, लेकिन इसके कारण भगत सिंह को फांसी नहीं हुई। शोभा सिंह 1978 तक जिंदा रहा और दिल्ली की हर छोटे बड़े आयोजन में बाकायदा आमंत्रित अतिथि की हैसियत से जाता था। हालांकि उसे कई जगह अपमानित भी होना पड़ा लेकिन उसने या उसके परिवार ने कभी इसकी फिक्र नहीं की। खुशवंत सिंह का ट्रस्ट हर साल सर शोभा सिंह मेमोरियल लेक्चर भी आयोजित करवाता है जिसमे बड़े-बड़े नेता और लेखक अपने विचार रखने आते हैं, बिना शोभा सिंह की असलियत जाने (य़ा फिर जानबूझ कर अनजान बने) उसकी तस्वीर पर फूल माला चढ़ा आते हैं।
मेल टुडे में छपा कार्टून
अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और खुशवंत सिंह की नज़दीकियों का ही असर कहा जाए कि दोनों एक दूसरे की तारीफ में जुटे हैं। प्रधानमंत्री ने बाकायदा पत्र लिख कर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से अनुरोध किया है कि कनॉट प्लेस के पास जनपथ पर बने विंडसर प्लेस नाम के चौराहे (जहां ली मेरीडियन, जनपथ और कनिष्क से शांग्रीला बने तीन पांच सितारा होटल हैं) का नाम सर शोभा सिंह के नाम पर कर दिया जाए। अब देखना है कि एक गद्दार का यह महिमामंडन कब और कैसे होता है।

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भारत अमेरिकी परमाणु संधि पर इस पाखंड का क्या कहना !


भारत अमेरिकी परमाणु संधि पर इस पाखंड का क्या कहना !

भारतीय सत्तावर्ग के राजनीतिक पाखंड का कोई जवाब नहीं है।अमेरिका के साथ असैनिक परमाणु करार के तहत एक हजार मेगावाट के पहले परमाणु संयंत्र की स्थापना के शुरुआती कार्य के लिए बुधवार को पहल हो गई। बाजार की जय जयकार के बीच जहां बाजार के राष्ट्रपति बतौर प्रणव मुखर्जी के रायसीना हिल्स में पहुंचना तय हो गया और ममता बनर्जी विद्रोह करके भी इसे रोक पाने की स्थिति में नही हैं, वहीं इस राजनीतिक धींगामुश्ती के​ ​ बीच अमेरिका-भारत ने असैन्य परमाणु करार के क्रियान्वयन की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। वेस्टिंगहाउस इलेक्ट्रिक कार्पोरेशन और न्यूक्लियर पावर कंपनी ऑफ इंडिया लिमिटेड [एनपीसीआइएल] ने सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए। इसके तहत गुजरत में परमाणु संयंत्र निर्माण के लिए प्रारंभिक स्तर पर कार्य किया जाएगा।ईरान से तेल आयात करने की वजह से लगने वाले प्रतिबंधों की आशंका समाप्त होने के बाद भारत और अमेरिका ने अवरुद्ध असैन्य परमाणु समझौते की दिशा में प्रगति के साथ-साथ तीसरे द्विपक्षीय महत्वपूर्ण संवाद में उल्लेखनीय प्रगति की है।मजे की बात है कि भारत अमेरिकी परमाणु संधि के विरोध​ ​ में ही यूपीए की सरकार से समर्थन वापस लिया था वामपंथियों ने , लेकिन परमाणु करार क्रियान्वन पर निःशब्द हो जाने के दिन ही वाम समर्थन से प्रणव का राष्ट्रपति बनना तय हो गया। आर्थिक सुधारों पर गाहे बगाहे विरोध दर्ज करने वाले वामपंथियों को दरअसल शंघाई एजंडे पर कोई एतराज कभी रहा​ ​नहीं। अब तो देश में सर्वहारा के उत्थान या क्रांति के लक्ष्य के बजाय बंगाल और केरल में सत्ता में वापसी और त्रिपुरा में अपनी सरकार ​​बचाना वाम नेतृत्व के लिए सबसे कड़ी चुनौती है। बिना मांगे बरसात की तरह बाजार के खिलाफ विशवपुत्र प्रणव से एलर्जी के चलते विद्रोह करने की गलती करके यूपीए से संबंध विच्छेद की कगार पर पहुंच गयी ममता और वामपंथी साम्राज्यवाद विरोधी नेता कारपोरेट सेनसेक्स अर्थ व्यवस्था के कारीगरों के हक में लामबंद दीख रहे हैं।भारत ने अमेरिका के साथ विस्तारित होते रक्षा संबंधों में उसके साथ रक्षा प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण, सह विकास और सह उत्पादन पर जोर दिया है। विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा, हिलेरी और मैं रक्षा प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण और सह -विकास तथा सह-उत्पादन के बढ़ रहे महत्व का समर्थन करते हैं।सुरक्षा, सहयोग और व्यापार सहित पांच प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करते हुए अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने कहा कि भारत और अमेरिका संबंधों का एक नया व अधिक परिपक्व अध्याय लिखने की दिशा में बढ़ रहे हैं।परमाणु अप्रसार से लेकर आतंक निरोध के मुद्दे तक अमेरिका भारत से अपना सैन्य सहयोग बढ़ाना चाहता है। पेंटागन के एक रिपोर्ट में मंगलवार को कहा गया कि अमेरिका एशिया में बहुपक्षीय अभ्यासों में भागीदारी में विस्तार चाहता है।

नई दिल्ली में जब राष्ट्रपति चुनाव पर पूरे देश की निगाहें जमी हैं तभी वाशिंगटन में अमेरिका-भारत रणनीतिक वार्ता की शुरुआत के मौके पर विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने कहा कि इस समझौते से 2008 में हुए अमेरिका-भारत परमाणु करार के क्रियान्वयन को लेकर लगाई जा रही अटकलों पर विराम लग गया है। कृष्णा ने कहा, ‘मुझे खुशी है कि दोनों देशों के बीच परमाणु व्यापार की शुरुआत हो रही है। हमें उम्मीद है कि अमेरिका और भारत की कंपनियां मिलकर जल्द ही परमाणु संयंत्र का निर्माण कार्य शुरू कर देंगी।भारत के साथ अपने संबंधों को अमेरिका शीर्ष प्राथमिकता दे रहा है। हाल ही में अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन अपनी भारत यात्रा से लौटी हैं और जून में दोनों देशों के मंत्रियों के काफी ज्यादा दौरे हैं। इस दौरान अमेरिकी यात्रा पर कृष्णा, सिब्बल, देशमुख और आजाद के अलावा योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलुवालिया, इनोवेशन और पब्लिक इन्फॉर्मेशन इंफ्रास्ट्रक्चर पर प्रधानमंत्री के सलाहकार सैम पित्रोदा भी हैं। घोटालों के खुलासों ने मनमोहन सिंह सरकार की छवि को बदरंग कर दिया है तो दूसरे कार्यकाल में वह आर्थिक सुधारों समेत अनेक मामलों में निर्णय का साहस जुटाती नजर नहीं आती। मनमोहन सिंह और कांग्रेस ने वाम मोर्चा के विरोध के मद्देनजर एक तरह से सरकार को ही जोखिम में डालकर अमेरिका से परमाणु करार किया था, लेकिन दूसरे कार्यकाल में सरकार फैसले करना तो दूर किये हुए फैसलों को भी ठंडे बस्ते में डालकर किसी तरह समय काटने की मानसिकता की शिकार ज्यादा नजर आती है। राष्ट्रपति चुनाव समेत तमाम राजनीतिक गतिविधियों में यूपीए राजनीतिक बाध्यताओं और नीति निर्धारण में यथा स्थिति की चुनौतियं से पार पाने की कोशिस में हैं। ममता बनर्जी उसके लिए सबसे बड़ी पहेली साबित होने में लगी है। अब वाम समर्थन का दायरा बढ़ा तो य़ूपीए की मुश्किलें आसान हो सकती है क्योंकि वर्ष 2004 में कांग्रेस आठ साल के लंबे अंतराल के बाद सत्ता में लौटी थी। बेशक उसे केंद्र की सत्ता वापस पाने के लिए एकला चलो का राग छोड़कर अनेक दलों के साथ मिलकर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन बनाना पड़ा था। इसके बावजूद मनमोहन सिंह सरकार का पहला कार्यकाल संतोषजनक से भी बेहतर नजर आया था। हालांकि उस कार्यकाल की समाप्ति से कुछ अरसा पहले ही अमेरिका से परमाणु करार के मुद्दे पर वाम मोर्चा ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था और तब विश्वास मत साबित करने की प्रक्रिया में सरकार पर सांसदों की खरीद-फरोख्त के आरोप भी लगे थे। इसके बावजूद जनता की अदालत में सरकार उसकी आकांक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरी और भाजपा के वरिष्ठ राजनेता लालकृष्ण आडवाणी को प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री ही रहने देते हुए मतदाताओं ने मनमोहन को लगातार दूसरा कार्यकाल दे दिया।यूपीए से वामदलों के गठबंधन टूटने से दोनों पक्ष को भारी नुकसान उठाना पड़ा है, जिसकी भरपायी के लिए लगता है दोनों पक्ष ने बीती बिसार देने का मन बना लिया है। अब देखना है कि इस नये हानीमून के लिए वामपंधी कौन कौन से नये सिद्धान्त बघारते हैं। परमाणु करार का मुद्दा तो पीछे छूट ही गया।अगले दो साल में होने जा रहे आम चुनावों को लेकर लटक रही तलवार के बीच कई प्रमुख आर्थिक विधेयकों तथा खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जैसे मुद्दों पर महत्वपूर्ण फैसले अभी अधर में हैं।अब देखना है कि वामपंथी आर्थिक सुधारों के मामलों में क्या रुख अख्तियार करते हैं।पिछले करीब डेढ़ साल से एक के बाद एक संकट में फंसती जा रही संप्रग दो सरकार की तस्वीर संप्रग एक से एकदम अलग कही जा सकती है। पिछली संप्रग सरकार के रास्ते में कई महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर वाम दलों ने काफी रोड़े अटकाए थे लेकिन इसके बावजूद नीतिगत मसलों पर वह आगे बढ़ती गयी थी।लेकिन संप्रग दो सरकार की परेशानियां खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं। सरकार सबसे अधिक महंगाई से परेशान है जो अप्रैल में दहाई के आंकड़े में पहुंच गयी। इतना ही नहीं विनिर्माण और कर संग्रहण के क्षेत्र में भी गिरावट ने सरकार की रातों की नींद उड़ा रखी है।तृणमूल कांग्रेस जैसे संप्रग के प्रमुख घटक दल ने भी खुदरा क्षेत्र में एफडीआई हो या फिर आतंकवाद विरोधी तंत्र ‘‘नेशनल काउंटर टेरेरिज्म सेंटर (एनसीटीसी) की स्थापना, उसने सरकार को नाकों चने चबवा दिए हैं। परेशानियों से घिरी सरकार के लिए जुलाई में राष्ट्रपति पद के चुनाव ने एक नयी चुनौती पैदा कर दी है।


राष्ट्रपति चुनाव के मुद्दे पर गुरुवार को कांग्रेस का उसके सहयोगी दल तृणमूल कांग्रेस व सपा से टकराव साफ नजर आया और दोनों पक्षों के उम्मीदवारों के मुकाबले की संभावना बढ़ गई। सत्तारूढ़ गठबंधन ने राष्ट्रपति पद के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नाम की संभावना से इनकार कर दिया वहीं ममता-मुलायम ने संकेत दिए कि वे झुकने वाले नहीं हैं। राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी को लेकर कांग्रेस ने ममता बनर्जी पर विश्वासघात का आरोप लगाया है और लेफ्ट से समर्थन जुटाने की कोशिश में बिमान बोस और बुद्धदेब भट्टाचार्य से संपर्क साधा है। सूत्रों के मुताबिक वित्तमंत्री और राष्ट्रपति पद की दौड़ में शामिल प्रणब मुखर्जी ने दोनों नेताओं से फोन पर बातचीत की है। कांग्रेस की नसीहतों को साफ दरकिनार करते हुए ममता बनर्जी ने कहा है कि वे धमकियों का जवाब देना बेहतर जानती हैं। ममता बनर्जी ने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा कि जो धमकी देगा, उसे हम देख लेंगे।

अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन के साथ संयुक्त वार्ता में कृष्णा ने बताया कि रणनीतिक वार्ता से पहले दोनों देशों की कंपनियों ने सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए। इस प्रारंभिक समझौते के तहत गुजरात के भावनगर जिले में मिथिविर्दी में परमाणु संयंत्र के लिए प्रारंभिक स्तर पर लाइसेंस देने और साइट के निर्माण का कार्य किया जाना है। इसकी क्षमता एक हजार मेगावाट होगी।

दूसरी ओर हिलेरी क्लिंटन ने कहा, ‘हमें पूरी उम्मीद है कि गुजरात में बनने वाला यह संयंत्र भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में मददगार साबित होगा। मुझे आशा है कि भविष्य में और समझौते होंगे, जिनके जरिए अमेरिकी कंपनी जनरल इलेक्ट्रिक भी कार्य शुरू कर सकेगी।’ हिलेरी ने कहा कि दोनों देशों को परमाणु करार के पूर्ण क्रियान्वयन के लिए अब भी बहुत कार्य करना है। ध्यान रहे कि भारत में प्रस्तावित क्षतिपूर्ति विधेयक पर अमेरिकी कंपनियों को सख्त ऐतराज है। यह विधेयक परमाणु दुर्घटना की स्थिति में कंपनियों की जिम्मेदारी तय करता है। इस विधेयक की वजह से न केवल अमेरिकी बल्कि रूस और फ्रांस समेत कई देशों की कंपनियां भारत से कतरा रही हैं।देश मंत्री एसएम कृष्णा के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में हिलेरिया ने कहा, ‘दिल के मामलों में एक-दूसरे के प्रति सम्मान के साथ आमतौर पर उतार-चढ़ाव होते रहते है।’ जब उनसे पूछा गया कि क्या इन उतार-चढ़ावों से दोनों देशों के संबंध प्रभावित होंगे तो क्लिंटन ने कहा, ‘इससे दोनों के संबंध कम हार्दिक नहीं हो जाते और न ही उनकी प्रतिबद्धता कम होती है।’ उन्होंने कहा, ‘मैं आज भी दोनों देशों के संबंधों में उतनी ही मजबूती महसूस करती हूं, जितनी दो साल पहले करती थी।’ क्लिंटन ने कहा, ‘मैं हमारे रिश्ते के प्रति बहुत सकारात्मक हूं और हम मतभेदों के बावजूद साथ काम करना जारी रखेंगे।’

कृष्णा ने कहा भारत की तेल जरूरतों के लिए ईरान पर निर्भर है। अमेरिका इस बात को अच्छी तरह जानता है और वह इसे समझता भी है। कृष्णा का यह बयान अमेरिका की ओर से भारत को ईरान के साथ तेल व्यापार की छूट के बाद आया है। उन्होंने कहा कि ईरान से तेल आयात में कुछ कमी आई है, इसकी पूर्ति के लिए हम सऊदी अरब व अन्य देशों से बात कर रहे हैं। इस पर हिलेरी ने कहा कि हम भारत की जरूरतों को समझते हैं। भारत की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए अन्य अमेरिका अन्य स्रोतों पर भी काम कर रहा है।

बहरहाल दावा किया जा रहा है कि रणनीतिक वार्ता में विदेश मंत्री ने मुंबई हमलों के मास्टरमाइंड हाफिज सईद का मामला भी जोरदार ढंग से उठाया। उन्होंने हिलेरी से कहा, ‘दोनों देशों के बीच शांति प्रयास जारी हैं, लेकिन पाकिस्तान को आतंकियों पर नकेल कसनी होगी।’ कृष्णा ने कहा कि सईद अब भी पाकिस्तान में आजाद घूम रहा है और खुलकर भारत विरोधी गतिविधियां चला रहा है। कृष्णा अगले महीने पाकिस्तान की यात्रा पर जाने वाले हैं। बैठक के दौरान हिलेरी क्लिंटन ने शांति प्रयासों के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और युसूफ रजा गिलानी की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि अमेरिका इस बात से खुश है कि भारत-पाक निवेश और व्यापार बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं।

संप्रग के संभावित उम्मीदवार प्रणव मुखर्जी और दो क्षेत्रीय दलों – तृणमूल कांग्रेस एवं सपा के समर्थन वाले पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के बीच मुकाबले की तस्वीर नजर आने लगी है। हालांकि भाजपा, वाम दलों और अन्य कुछ दलों ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। कांग्रेस की ओर से प्रणव मुखर्जी की दावेदारी की खबरों के बीच आज रात राजनीतिक गलियारों में लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार का नाम भी सामने आया।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, मुखर्जी, पी चिदंबरम, एके एंटनी और अहमद पटेल ने आज रात इस मुद्दे पर रणनीति बनाने के लिहाज से चर्चा की। इस बाबत राकांपा और द्रमुक से बातचीत हो चुकी है जिन्होंने कांग्रेस के उम्मीदवार को समर्थन जताया है।

हालांकि बाद में कांग्रेस के आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि केवल एक उम्मीदवार की ओर पार्टी का ध्यान है और वह मुखर्जी हैं। कांग्रेस ने तृणमूल-सपा से मुकाबले के संकेत दिए। इन दोनों दलों ने आज स्पष्ट किया कि वे कलाम के नाम का समर्थन कर रहे हैं।

उधर, पूर्व राष्ट्रपति कलाम ने इस मुद्दे पर देखो और इंतजार करो का रुख अख्तियार करने का निर्णय किया है। सपा सूत्रों ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी और सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने उनका नाम लेने से पहले उन्हें विश्वास में लिया था। लेकिन कलाम के करीबी सूत्र के अनुसार उनका मानना है कि वह तभी मैदान में आएंगे जब उनके नाम पर आम सहमति हो।

इस बीच ये भी संकेत हैं कि संप्रग के सहयोगी दल कल गठबंधन के एक उम्मीदवार का नाम तय करने के लिए एक साथ बैठेंगे। तृणमूल अध्यक्ष ममता बनर्जी ने इसमें भाग नहीं लेने का फैसला किया है। राष्ट्रपति चुनाव की कवायद में कांग्रेस और ममता बनर्जी के बीच गतिरोध खुलकर सामने आ गया है। कांग्रेस ने जहां ममता पर कल सोनिया से बातचीत के बाद प्रणव और उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के नामों का खुलासा करके मर्यादा तोड़ने का आरोप लगाया। वहीं, तृणमूल ने कहा कि उन्होंने कोई विश्वासघात नहीं किया।

बढ़ते गतिरोध के बीच ममता ने कहा कि वह अपनी ओर से संप्रग सरकार को अस्थिर नहीं करना चाहतीं लेकिन दबाव में नहीं आएंगी। उन्होंने कहा कि वह संप्रग का साथ नहीं छोड़ेंगी लेकिन गेंद कांग्रेस के पाले में है।

राजनीतिक गहमागहमी वाले आज के दिन की शुरुआत कांग्रेस पार्टी की ओर से आये कठोर बयान से हुई जिसमें ममता बनर्जी पर निशाना साधा गया। कांग्रेस ने तृणमूल-सपा के सुझाये तीनों नामों को खारिज कर दिया। इनमें प्रधानमंत्री के साथ पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी हैं।

अमेरिकी रक्षा मुख्यालय पेंटागन की एक रिपोर्ट में अमेरिका के भारत के दीर्घकालिक महत्व को रेखांकित करते हुए दोनों देशों के बीच पारस्परिक लाभदायक रक्षा संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया गया है।भारत के बारे में, अमेरिकी कांग्रेस को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि पेंटागन हथियारों के संयुक्त विकास, अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण, भारत और अमेरिका के बीच सेना के स्तर पर सहयोग को मजबूत बनाने समेत अनेक पहलों पर काम कर रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अगले पांच साल में, एशिया-प्रशांत और वि भर में हम भारत के साथ सशक्त और पारस्परिक लाभ वाले रक्षा संबंधों को परिपक्व बनाने के लिए सतत रूप से जरूरी संरचनाओं का निर्माण करेंगे।’

पेंटागन ने कहा है, ‘हम सतत सैन्य वार्ताओं, सहमति आधारित सहयोग के कार्यान्वयन, समुद्री सुरक्षा और आतंकवाद के विरूद्ध लड़ाई जैसी गतिविधियों पर विशेष बल के साथ सहयोग को लागू कर तथा रक्षा व्यापार और युद्ध सामग्री के क्षेत्र में सहयोग पुख्ता कर रक्षा संबंधों को बढ़ाएंगे।’

इस साल पेश बजट निर्देश के मुताबिक इस नौ पेज के रिपोर्ट को कांग्रेस (संसद) में पेश किया गया है।

पेंटागन के प्रवक्ता जार्ज लिटल ने कहा, ‘रक्षा मंत्रालय ने वित्तीय वर्ष 2012 के लिए राष्ट्रीय रक्षा प्राधिकरण अधिनियम में किए गए आग्रह के मुताबिक भारत-अमेरिका सुरक्षा सहयोग पर रिपोर्ट जमा कर दी है।
जार्ज लिटिल ने एक बयान में कहा कि इस रिपोर्ट में भारत-अमेरिकी संबंधों की मौजूदा स्थिति और भविष्य में द्विपक्षीय सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने से जुड़े सुझाव दिए गए हैं।

अमेरिकी संसद ने सैन्य सहयोग, हथियारों की बिक्री और सैन्य अभ्यास के जरिए भारत के विकास को अमेरिकी हित में बताते हुए वित्त वर्ष 2012 के लिए पेश बजट में पेंटागन को द्विपक्षीय रक्षा संबंधों को बढ़ाने के लिए पांचवर्षीय कार्ययोजना पर एक नवंबर तक रिपोर्ट जमा करने के लिए कहा था।

शक्तिशाली सीनेट सशस्त्र सेवा समिति ने कहा था कि उसका मानना है कि भारत और अमेरिका के बीच वैश्विक रणनीतिक भागीदारी में बढ़ोतरी कानून पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को कायम रखने और विस्तार के लिए जरूरी है।

यह व्यवस्था स्वतंत्रता, लोकतंत्र, सुरक्षा, समृद्धि और 21वीं सदी में कानून के शासन को प्रोत्साहित करने वाली होगी।

स्टेवेंस बिस्वास
http://www.janokti.com/sansad-political-news-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%82%E0%A4%B8%E0%A4%A6-%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97/national-news-%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%9F%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A5%80%E0%A4%AF/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4-%E0%A4%85%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%81-%E0%A4%B8%E0%A4%82%E0%A4%A7%E0%A4%BF/

मासूमों पर निशाना

मासूमों पर निशाना




-राम पुनियानी-


कल्याण में पिछले (मई 2012) माह भिलाल शेख नामक एक मुस्लिम युवक पर गैर-जमानती धाराओं के तहत अपराध दर्ज कर लिया गया। सड़क पर लाल सिग्नल को पार करने के छोटे से अपराध के लिए उस पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 333 के अंतर्गत मुकदमा कायम किया गया। पुलिसकर्मियों से बहस करने पर उसकी जमकर पिटाई की गई। उसके दाहिने हाथ की हड्डी टूट गई और उसे आठ दिन जेल में बिताने पड़े। जिन पुलिसकर्मियों ने उसकी पिटाई की थी उन पर मामूली धाराएं लगाईं गईं और वे बहुत जल्द जेल से बाहर आ गए।
मोहम्मद आमिर खान जब 18 वर्ष का था और अपनी स्कूल की परीक्षा की तैयारी में व्यस्त था तब उसे पुलिस ने उसके घर से उठा लिया। उस पर आरोप था कि वह दिल्ली श्रृंखलाबद्ध बम धमाकों का मास्टरमाईंड था। उस पर दर्जनों धाराओं के तहत मुकदमें लाद दिए गए। वह 14 साल तक जेल में रहा, जिस दौरान उसे घोर शारीरिक यंत्रणा भोगनी पड़ी। अंततः, वह सन् 2012 में जेल से बाहर आ सका जब अदालत ने उसे निर्दोष घोषित कर बरी कर दिया।
मालेगांव और हैदाराबाद की मक्का मस्जिद में हुए बम धमाकों-जिनके लिए बाद में असीमानंद, प्रज्ञा सिंह ठाकुर एण्ड कंपनी को जिम्मेदार पाया गया-के बाद दर्जनों मुस्लिम युवकों को गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया गया। अजमेर और समझौता एक्सप्रेस धमाकों के बाद भी यही हुआ। इन सभी मामलों में मुस्लिम युवकों को पुलिस को बाद में छोड़ना पड़ा क्योंकि उनके खिलाफ कोई सुबूत नहीं थे। परंतु उनकी जेल यात्रा ने उनका जीवन बर्बाद कर दिया। कईयों की पढ़ाई बीच में ही छूट गई और उनका एक अच्छा कैरियर बनाने का स्वप्न ध्वस्त हो गया।
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साईसिंज, मुंबई द्वारा किए गए सर्वेक्षण की हालिया (जून 2012) जारी रपट में कहा गया है कि महाराष्ट्र की जेलों में बंद कैदियों में मुसलमानों का प्रतिशत 36 है जबकि महाराष्ट्र की कुल आबादी का वे मात्र 10.60 प्रतिशत हैं। यह सर्वेक्षण “महाराष्ट्र राज्य अल्पसंख्यक आयोग“ द्वारा प्रायोजित था। यह रपट, सच्चर समिति के निष्कर्षों की पुष्टि करती है और इससे साफ हो जाता है कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा इस बाबद समय-समय पर व्यक्त की जाती रहीं आशंकाएं निर्मूल नहीं हैं।
हर अपराध के सिलसिले में मुसलमानों की बड़ी संख्या में गिरफ्तारी के पीछे है यह मान्यता कि मुसलमान अपराधी और आतंकवादी हैं। मुसलमानों के संबंध में ये पूर्वाग्रह समाज में तो व्याप्त हैं ही, नौकरशाही, पुलिस और गुप्तचर सेवाओं के अधिकारी भी इन पूर्वाग्रहों से गहरे तक ग्रस्त हैं। अधिकांश पुलिसकर्मियों की सोच घोर साम्प्रदायिक है और इसलिए वे मुसलमानों को प्रताड़ित करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। समाज के साम्प्रदायिकीकरण और विशेषकर अल्कायदा ब्रांड आतंकवाद के उदय के बाद, मुसलमानों के संबंध में पूर्वाग्रह और गहरे हुए हैं। यहां यह महत्वपूर्ण है कि अल्कायदा आतंकवाद का जनक अमरीका था जिसने तेल के कुओं पर कब्जा करने के अपने राजनैतिक लक्ष्य की पूर्ति के लिए इन तत्वों को प्रोत्साहन और मदद दी। हमारे देश का तंत्र काफी हद तक अल्पसंख्यक-विरोधी है और इसके कारण उसकी कार्यप्रणाली में तार्किकता और वस्तुपरकता का अभाव है। कानून की बजाए पूर्वाग्रह हमारे अधिकारियों और पुलिसकर्मियों के पथप्रदर्शक बन गए हैं।
राज्यतंत्र द्वारा मुस्लिम युवकों को निशाना बनाए जाने के कई कारण हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि घोर निर्धनता के कारण कुछ मुस्लिम युवक अपराध की दुनिया में दाखिल हो जाते हैं और इसका फल वे भोगते भी हैं परंतु मुसलमानों को जिस बड़ी संख्या में पुलिस के हाथों प्रताड़ना झेलनी पड़ती है उसके पीछे हैं उनके बारे में फैलाए गए मिथक।
साम्प्रदायिक दंगों को भड़काने में हमेशा से बहुसंख्यकवादी साम्प्रदायिक ताकतों की प्रमुख भूमिका रही है। विभिन्न दंगा आयोगों की जांच रपटों के तीस्ता सीतलवाड द्वारा किए गए अध्ययन (कम्यूनलिज्म काम्बेट, मार्च 1998) बताता है कि अधिकतर दंगों को भड़काने के लिए आरएसएस से जुड़े संगठन उत्तरदायी थे। इनमें से कुछ ऐसे थे जो पूर्व से ही अस्तित्व में थे और कुछ का गठन विषेष रूप से दंगा भड़काने के लिए किया गया था। मुंबई में सन् 1992-93 के दंगों के लिए श्रीकृष्ण जांच आयोग ने मुख्यतः शिवसेना को दोषी ठहराया था। यद्यपि मुसलमानों का देश की आबादी में प्रतिशत 13.4 है (जनगणना 2001) तथापि दंगों में मारे जाने वालों में से नब्बे प्रतिषत मुसलमान होते हैं। पुलिस और कई बार राजनैतिक नेतृत्व के व्यवहार और दृष्टिकोण से मुसलमानों में असुरक्षा का भाव उपजता है।
इस संबंध में सबसे व्यथित करने वाली बात यह है कि आमतौर पर यह माना जाता है कि मुसलमान ही दंगे शुरू करते हैं। डाक्टर व्ही. एन. राय, जिन्होंने देश में साम्प्रदायिक हिंसा का विशद अध्ययन किया है, का मत है कि अधिकांशतः ऐसी परिस्थितियां बना दी जाती हैं जिनके चलते अल्पसंख्यक समुदाय के सदस्यों को पहला पत्थर फेंकने पर मजबूर होना पड़ता है। इसके बाद, वे हिंसा के शिकार तो होते ही हैं उन्हें हिंसा भड़काने के आरोप में गिरफ्तार भी कर लिया जाता है।
पिछले कुछ सालों में हुए आतंकी हमलों और उनके संबंध में पुलिस का दृष्टिकोण इस तथ्य की पुष्टि करता है। मालेगांव, अजमेर, जयपुर व समझौता एक्सप्रेस धमाकों के लिए मुस्लिम युवकों को दोषी ठहराकर उन्हें सलाखों के पीछे धकेल दिया गया था। पुलिस ने उनके विरूद्ध झूठे सुबूत गढ़ लिए थे और उनका संबंध पाकिस्तानी आतंकी गुटों से जोड़ दिया गया था। इस मामले में सिमी, पुलिस का पसंदीदा संगठन था। हर आतंकी हमले के लिए सिमी कार्यकर्ताओं को दोषी ठहरा दिया जाता था। उस समय भी कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और अन्यों ने यह आशंका व्यक्त की थी कि पुलिस की जांच प्रक्रिया और उसके निष्कर्ष ठीक नहीं हैं परंतु पुलिस हर बम धमाके के बाद मुसलमानों को गिरफ्तार करने से बाज नहीं आई। उन्हें लश्कर-ए-तैय्यबा, इंडियन मुजाहीदीन, सिमी या किसी अन्य संगठन का सदस्य बताकर आतंकी हमलों का दोष उनके सिर मढ़ दिया जाना आम था। उस समय कई सामाजिक संगठनों ने परोक्ष और प्रत्यक्ष रूप से यह कहा था कि इन हमलों के पीछे किन्हीं दूसरी ताकतों का हाथ होने के संकेत हैं। परंतु पूर्वाग्रहों का चश्मा पहने पुलिसकर्मियों को कुछ नजर नहीं आया।
यह सिलसिला तब बंद हुआ जब हेमन्त करकरे ने सूक्ष्म जांच के बाद, मालेगांव धमाकों के तार साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर से जुड़े होने के पक्के सुबूत खोज निकाले। इसके बाद स्वामी दयानंद पाण्डे, ले. कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित, पूर्व मेजर उपाध्याय, स्वामी असीमानंद व अन्य कई हिन्दुत्ववादी नेताओं का ऐसा गुट सामने आया जो आतंकी हमले करवाता रहा था। तब जाकर यह साफ हुआ कि पुलिस एकदम उल्टी दिशा में काम कर रही थी। इस पर्दाफाश के बाद मानवाधिकार संगठन “अनहद“ ने “बलि के बकरे और पवित्र गायें“ नामक जनसुनवाई का हैदराबाद में आयोजन किया। इस सुनवाई की रपट में जांच एजेन्सियों और राज्य की कुत्सित भूमिका सामने आई। भगवा आतंकी संगठनों के मुखियाओं की गिरफ्तारी के बाद देश में बम धमाकों का सिलसिला थम गया।
इसके बाद भी पुलिस के दृष्टिकोण में कोई विषेष बदलाव नहीं आया है और आज भी सड़कों और थानों में उनके व्यवहार में अल्पसंख्यकों के प्रति उनके पूर्वाग्रह साफ झलकते हैं। राज्यतंत्र, पुलिस और गुप्तचर एजेन्सियों के पूर्वाग्रहग्रस्त दृष्टिकोण के कारण कई मुसलमान युवकों के जीवन और कैरियर बर्बाद हो गए हैं। इससे अल्पसंख्यक समुदाय की प्रगति बाधित हुई है। कई मौकों पर मुसलमानों ने ही आतंकी हमलों के लिए दोषी ठहराए गए अपने समुदाय के सदस्यों का सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार किया। इससे उन मासूमों के दिलों पर क्या गुजरी होगी, यह समझना मुश्किल नहीं है। अब समय आ गया है कि मानवाधिकार संगठन, मासूम मुस्लिम युवकों को जबरन आपराधिक मामलों में फंसाए जाने के खिलाफ मज़बूत अभियान चलाएं। पुलिस की मनमानी पर रोक ज़रूरी है। यह जरूरी है कि पुलिस और गुप्तचर एजेन्सियां मुसलमानों के संबंध में अपनी गलत धारणाएं त्यागें और अपना काम निष्पक्षता से करें। जितनी जल्दी सरकार इस मामले में प्रभावी कदम उठाएगी, उतना ही बेहतर होगा।
मुसलमानों को कानून के हाथों प्रताड़ित होने से बचाने के अतिरिक्त उनके विरूद्ध समाज में फैले मिथकों से मुकाबला भी बहुत ज़रूरी है। ऐतिहासिक और समकालीन मुद्दों को लेकर मुसलमानों के खिलाफ जमकर दुष्प्रचार किया जाता रहा है। इस दुष्प्रचार का प्रभावी मुकाबला होना चाहिए और सच को समाज के सामने लाया जाना चाहिए। सरकार के साथ-साथ सामाजिक संगठनों का भी यह कर्तव्य है कि वे व्याख्यानों, कार्यशालाओं, छोटी-छोटी पुस्तिकाओं और मीडिया के जरिए इस मुद्दे पर जनजागृति अभियान चलाएं। (मूल अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद: अमरीश हरदेनिया)
(लेखक आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थे, और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)


http://journalistcommunity.com/index.php?option=com_content&view=article&id=1605%3A2012-06-16-05-40-19&catid=34%3Aarticles&Itemid=54

The Indian government on Friday approved a proposal for a German environmental agency to dispose of over 350 tonnes of TOXIC waste produced by the Bhopal factory where a gas leak killed thousands in 1984.The accident was blamed on the factory's opera



The Indian government on Friday approved a proposal for a German environmental agency to dispose of over 350 tonnes of TOXIC waste produced by the Bhopal factory where a gas leak killed thousands in 1984.The accident was blamed on the factory's operators, Union Carbide, a US chemical group later bought by Dow Chemical.Thus the government of India not only bailed out Union Carbide and Dow Chemicals, but it did set the trend for Future also.Nuclear Liability Bill provides enough Escape Routes for MNCs to avert liabilities. But who would Pay for the Disposal of the Poison stinking in Bhopal since 1984? The Gas Victims are not adequate compensation as yet.Nuclear and Industrial disasters in future have to be addressed in the best interest of the erring MNCs, it has been rather Ensured.As per the decision, the Centre will pay Rs 25 crore towards the cost of airlifting the waste which will be removed within a year.
Indian Holocaust My Father`s Life and Time - Eight HUNDRED THIRTY SIX


Palash Biswas

http://indianholocaustmyfatherslifeandtime.blogspot.com/



http://basantipurtimes.blogspot.com/

The Indian government on Friday approved a proposal for a German environmental agency to dispose of over 350 tonnes of TOXIC waste produced by the Bhopal factory where a gas leak killed thousands in 1984.The accident was blamed on the factory's operators, Union Carbide, a US chemical group later bought by Dow Chemical.Thus the government of India not only bailed out Union Carbide and Dow Chemicals, but it did set the trend for Future also.Nuclear Liability Bill provides enough Escape Routes for MNCs to avert liabilities. But who would Pay for the Disposal of the Poison stinking in Bhopal since 1984? The Gas Victims are not adequate compensation as yet.Nuclear and Industrial disasters in future have to be addressed in the best interest of the erring MNCs, it has been rather Ensured.As per the decision, the Centre will pay Rs 25 crore towards the cost of airlifting the waste which will be removed within a year.

Home Minister P. Chidamabaram and other senior ministers met in New Delhi to clear a deal in which the waste will be taken by air to Germany for incineration.

"The ministers have given a green signal," a senior home ministry official told AFP, declining to be named.

"The German Society for International Cooperation (GIZ) has been awarded the contract to transport the waste to Germany for disposal," he said.


On the other hand,in a new Twist Government of India has expressed its unwillingness to seek extradition of Warren Anderson, the Prime accused of the greatest Industrial disaster.He was declared a fugitive from justice by the Chief Judicial Magistrate of Bhopal on February 1, 1992, for failing to appear at the court hearings in a culpable homicide case in which he was named the chief defendant.The chief judicial magistrate of Bhopal, Prakash Mohan Tiwari, issued an arrest warrant for Anderson on July 31, 2009.The United States has declined to extradite him citing a lack of evidence.In August 2009, a UCC spokesperson said "Union Carbide had no role in operating the plant at the time as the factory was owned, managed and operated by employees of Union Carbide India Limited." Eight former senior employees of the subsidiary were found guilty on June 7, 2010. After these convictions, a UCC spokesperson said, "All the appropriate people from UCIL – officers and those who actually ran the plant on a daily basis – have appeared to face charges."While top guns of Union Carbide India Limited (UCIL) and those involved in plant operations on the night of December 2-3, 1984, have been indicted by the court, Warren Anderson, who was chairman and chief executive officer of Union Carbide Corporation (which owned the majority stake in UCIL) when the Bhopal gas disaster took place, is not among the guilty.In fact, he was not even tried since he is absconding. On hearing about the gas leak, the US-based Anderson had flown down on December 4 and was arrested on landing in New Delhi. He was, however, soon granted bail and flew back on December 7, never to be seen in India again!His escape created uproar, with the opposition cornering the government for not opposing the bail.

Under attack over inadequate relief to the victims of the Under attack over inadequate relief to the victims of the tragedy, Chidambaram said, "It would be totally wrong to say that nothing had been done for the Bhopal gas tragedy victims since the GoM came into existence." "The GoM has been formed for some limited purposes and its brief is not to go beyond them. The brief includes adequate compensation for the victims and handling cases related to the disaster," he said. Answering questions about the extradition of then CEO of Union Carbide Corporation, Warren Anderson, the Minister said Anderson was now about 90 and was suffering from various problems including old age and debility. Under these circumstances, it remains to be seen what can actually be done for Anderson's extradition, he said. The three Union Ministers visited the Bhopal Memorial Hospital and Research Centre (BMHRC) to take stock of the situation there. Referring to BMHRC, Chidambaram said it was earlier being run by a trust but now it has been taken over by the Union Ministry of Public Health and Family Welfare. The Minister admitted BMHRC was facing many problems like shortage of doctors and equipment. The members of organisation representing gas victims showed black flags to the GoM to protest the delay in solving their problems.


Bhopal was the scene of the world's worst industrial accident in 1984 when the pesticide factory leaked toxic gas into nearby slums, killing thousands instantly and tens of thousands more over the following years.Tonnes of chemical waste previously produced by the plant was left in pits around the site, polluting local water supplies.Residents have been campaigning for years for the thorough clean-up of the factory and the surrounding area.GIZ, which will be paid by the Indian government, will negotiate details of the deal with the Madhya Pradesh state government, of which Bhopal is the capital.Many experts believe that the presence of toxic waste has resulted in a high prevalence of birth defects and illnesses among successive generations of people living near the plant.

About 346 metric tonnes of toxic waste is lying within the premises of the erstwhile M/s Union Carbide India Ltd (UCIL) at Bhopal. The worst-ever industrial disaster in India had taken place at the Union Carbide plant on the intervening night of December 2 and 3, 1984.According to government data, a total compensation of over Rs 3,000 crore has been given in 5,295 cases of death, 4,902 cases of permanent disability, 5,27,894 cases of minor injury and 35,455 cases related to temporary disability among others.

Bhopal gas tragedy victims are demanding adequate compensation, rehabilitation, medical care and punishment to the guilty. Bhopal Gas Pidit Sangharsh Sahyog Samiti (BGPSSS) and CITU, was addressed by CPI(M) Parliamentary Group leader Basudeb Acharia and CPI(M) Polit Bureau member Brinda Karat alleged Bhopal gas tragedy victims  were subjected to unethical drug trials and claimed fraudulent use of victims' identity cards to benefit non gas victims. India's home affairs minister, P Chidambaram, yesterday said it was unfair to say that the government had "not taken any steps for the disposal of toxic waste" from the 1984 Union Carbide disaster in Bhopal.On May 29, the Indian Supreme Court ordered the government to clean up the waste, saying the problem had been ignored for 28 years "because the victims of Bhopal gas tragedy are poor".

The constant pressure brought to bear upon Dow apparently spurred the company to hire a research firm to spy on Bhopal activists.

In February, WikiLeaks published internal emails from the global intelligence company Stratfor, which showed that Dow had been paying Stratfor to monitor Bhopal activists and to track media coverage of the gas disaster.

Dow Chemical Co should pay for the disposal of toxic waste from a chemical plant in the central Indian city of Bhopal and not the Indian government, Greenpeace India says.

"It is absolutely unacceptable that the Indian government should use public funds to pay for cleaning up the mess left by Union Carbide," spokesman Rampati Kumar said.

The gas leak in 1984 at the Union Carbide Corp plant in the capital of Madhya Pradesh state killed at least 15,000 people. Union Carbide was taken over by US-based Dow in 2001.

Kumar was reacting to the Indian government's negotiations with GIZ, the German government's international development agency, for the disposal of 350 tons of waste from the Bhopal plant, most likely in Germany.

The waste in question is not connected to the deadly methyl isocyanate gas that leaked from the plant but comes from the indiscriminate dumping of chemicals from 1969 to 1984, according to environmental activists.

"We have to follow the 'polluter pays' principle," Kumar said. "Why should the Indian people pay for this?"

Greenpeace Germany, however, disagreed with Kumar on his approval of transporting the waste outside India.

"We don't want highly toxic substances to be transported half way across the globe," activist Manfred Santen said.

Victims of India's 1984 Bhopal gas tragedy met with Home Minister P Chidambaram on Tuesday and called for toxic waste from the pesticide factory site to finally be cleared up.Hundreds of residents, including survivors of the world's worst industrial disaster, marched through the city of Bhopal during Chidambaram's visit, which coincided with World Environment Day.The plant leaked toxic gas into neighbouring slums, killing thousands instantly and tens of thousands more over the following years.The accident was blamed on operators Union Carbide, a US chemical group later bought by Dow Chemical.

Rashida Bi, 57, a member of the victims' organisation Bhopal Gas Peedit Mahila Stationery Karmchari Sangh, said she had a meeting yesterday with Salman Khurshid, the minister of law, and Mr Chidambaram during which she demanded that the government revise the official number of victims affected by the Bhopal crisis.

"The danger lies in tomorrow," said Mrs Bi. "There are children still being born with deformities. It is tough getting girls married off, and when they have deformed babies, everyone panics again."

The meeting coincided with World Environment Day and hundreds of residents of Bhopal marched through the city during Mr Chidambaram's visit.

"It is not just the toxic waste," said Mrs Bi. "We also demanded that the waste not be disposed off anywhere in India. There is also a matter of people still getting sick as tonnes of hazardous waste is still on the ground and seeping into the groundwater."

The Bhopal Group for Information and Action, the organisation that filed the case to have the waste removed, has been trying since 1990 to have the waste cleared and for clean drinking water to be provided.

The May court ruling is a major victory for the group's attempt to get Dow Chemicals, which purchased Union Carbide in 2001, to pay additional damages.

"Dow propaganda had said that there was no contamination of the drinking water in Bhopal — but now the Supreme Court has established that the water was polluted by the gas disaster. This helps set some sort of precedent," Rachna Dhingra, a member of the group said yesterday.

Other victim advocacy groups and the state government of Madhya Pradesh, where Bhopal is located, have also expressed outrage that Dow Chemicals is sponsoring the Olympic Games in London in July and August.

Indian athletes and the country's Olympic committee had threatened to boycott the games, but they have since backed down.

Ms Dhingra said that her group plans to hold an Olympics of its own to draw attention to the alleged damage Dow Chemicals has done to people across the globe.

"We're trying to get children who have been poisoned by Dow, from across the world, to come here and participate in a two-day special Olympics," said Ms Dhingra. "It's difficult. We're trying to get children from Vietnam, from the US, from Nicaragua. It's a small thing, but it will be a statement."
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Madhya Pradesh Bhopal Gas Tragedy, Relief and Rehabilitation Minister Babulal Gaur said that the GoM under the chairmanship of Union Home Minister P Chidambaram has asked the state government to prepare an agreement within two weeks' time.Friday's GoM was attended by Union Urban Development Minister Kamal Nath, Minister of Health and Family Welfare, Ghulam Nabi Azad and Minister of Human Resource Development Kapil Sibal besides some senior officials of the central and state government departments.


The GIZ, based in Bonn, is a government-run enterprise that works on international environmental issues and sustainable development.

"The proposal has been agreed to. The waste will be disposed off in Germany. The cost of Rs 25 crore for airlifting the toxic material will be borne by the central government. The whole procedure of removing the waste will be completed within a year," Mr Gaur told reporters in New Delhi after the meeting.He said the state government will submit the agreement to the Centre before the next meeting.According to Madhya Pradesh government officials, the disposal would be carried out by German agency GIZ IS.

Chidambaram, who was in Bhopal along with GoM members and union ministers Salman Khurshid and V Narayanasamy to take stock of the situation, told reporters that the Madhya Pradesh government was in talks with German company GIZ International which had shown interest in waste disposal.

"The Centre had spoken to the governments of Madhya Pradesh, Gujarat and Maharashtra but all of them refused to allow disposal of the toxic waste," the home minister said.

Chidambaram also disclosed that the state government will soon make a presentation before the Centre to seek its clearance on this issue. The ministers visited gas tragedy connected places including Bhopal memorial hospital which was built for treatment of gas tragedy victims.

Chidambaram defended the government facing flak over inadequate relief to the victims, by saying, "It would be totally wrong to say that nothing had been done for the Bhopal gas tragedy victims since the GoM came into existence." The union minister indicated that the Centre has given up Union Carbide Corporation CEO Warren Anderson' extradition. Anderson was now 90 and suffering from various ailments, like old age and debility.

The government has to inform the Supreme Court, which is hearing a petition on the issue, on the steps it has taken to dispose off the waste from the plant.

"Union Carbide documents show that the problem of toxic contamination originated sometime in 1982. The first official study of contamination was done in 1991 by the State Research Laboratory of the Public Health Engineering department, Government of Madhya Pradesh. The first practical step, of collecting the scattered hazard waste in one warehouse, was done in 2005, more than a decade after the disaster," activists like Sarangi, Rashid Bi, Nawab Khan said in a signed letter to Chidambaram.

Going by this slow speed, it will take another 20 years to resolve ground water contamination as it would involve pumping out ground water for treatment, they said.
The MP government has also been asked by the MHA to update them on the naxal menace in the state.

Journalist Shakti Bhatt located former Union Carbide Chairman Warren Anderson's luxury home in New York, declared unknown by the American and Indian governments, in India Abroad, the newspaper owned by Rediff.com, back in September 2002.


As a Bhopal court convicted eight people on Monday, June 7, for the worst-ever industrial disaster, Rediff.com reproduced the global scoop:

Warren Anderson's home in Bridgehampton, New York, militates against the notion of a hiding place.

Located on a street that runs off the main road, the gates of the house are open. As you enter, the neatly trimmed garden flowers, alternatively red and white, vie for attention with the sparkling vintage Buick Roadmaster parked outside the door.

If you stroll around the house, you come upon a large freshly cut lawn with two full-size beach chairs. The curtains in the bedroom are drawn. A king size bed with cream sheets and satin blue pillows, flanked by an ornate headboard, has just been tidied.

Anderson and his wife Lillian live in this luxury home in the Hamptons, the weekend resort for the rich and famous. And, occasionally, the infamous.

Anderson has lived here since he was charged with 'culpable homicide' for the disaster at the Union Carbide factory in Bhopal in December 1984 that consumed the lives of over 20,000 people. If Anderson -- then Union Carbide CEO -- is ever extradited to India, he could face charges leading to 10 to 20 years in a dirty, overcrowded, rat-infested Indian prison.

Bridgehampton is an intensely private neighbourhood. An outsider driving around its roads is distinctly discernible and stared at. A five-minute walk from Anderson's home on Ocean Road takes you to the water. A man is perched in his red sports jeep, reading a golf magazine.

"Do you know Warren Anderson?" I ask him.

He looks up, a trifle annoyed at being disturbed. "Yeah. I mean we are not best friends but I know who he is," he says.

I begin to walk away. He stops me and says, "You know, yesterday there was this woman outside his home with a poster saying 'Go back to India'."

"Do you know why?" I ask.

"Nope. That is his business,' says the gray-haired man, and goes back to his magazine.

Anderson was declared an absconding fugitive by the Bhopal magistrate's court in February 1992, after he failed to turn up despite repeated summons. On July 31, 2009, magistrate Prakash Mohan Tiwari issued an arrest warrant for him. The US government, however, made no move to extradite Anderson, while India never appeared to press the matter.

New Delhi said it did not know his whereabouts and hence, could not comply with the arrest order. It, however, stood exposed when a TV channel showed Anderson living in a house at Bridgehampton outside New York with wife Lillian.

Last year, Lillian told a news agency that Anderson was deeply troubled by the tragedy. "He's been haunted for years" by the accident, she said. Lillian said Anderson, who is nearly 90 now, was in poor health and didn't remember much. "When you get to be 87 years old, you don't remember anything. You try to put bad things out of your mind," she said.

Lillian insisted her husband had been unfairly targeted. "Every time somebody wanted to sue Union Carbide, there would be some kind of a thing that happened and they would be chasing Warren, following him to the dump with our trash," she said. "This is 25 years of unfair treatment."

Even after the passage of 27 years, a consensus between the government and the NGOs on the number of victims of Bhopal gas disaster is elusive.
The leakage of methyl isocyanate gas from (since defunct) Union Carbide pesticides plant in Bhopal on the night of December 2 and 3 led to the worst industrial disaster in the world, in which thousands perished and many more suffered permanent ill-effects.

The two prominent NGOs which are fighting for the rights of the victims, namely, Bhopal Group for Information and Action (BGIA) and Bhopal Gas Peedit Mahila Udyog Sangthan, claim that actual figure of casualties is much higher than the official figure.

"Madhya Pradesh Government has put the death toll at 5,295 in an affidavit filed in the Supreme Court," said Rachna Dhingra of BGIA.

But in another criminal petition filed in the apex court, government put the death toll at 15,248, she said, adding that it was for the government to tell which figure was correct.

According to Indian Council of Medical Research (ICMR), which had conducted a study titled `Health Effects of the Toxic Gas Leak from the Union Carbide between 1985-1994', there were 2,500 deaths by 1985.

Around 3,500 `spontaneous abortions' took place during the period 1984-1989. "The report further shows that 9,667 people died between 1985-1993 due to the after-effects," Dhingra said.

According to her, even if it was assumed that death rate due to after-effects of the tragedy between 1994-2001 was down to half of what it was between 1985-1993, and to one-fourth between 2002-2009, another 7,250 deaths must be attributed to the tragedy.

Which meant, at least 22,917 persons had perished owing to the gas leak till 2009.

Similarly, the figure of those who suffered permanent/temporary injuries too was uncertain, she said.

Till 2004, over 3.5 lakh persons had approached Bhopal Memorial Hospital and other relief hospitals for treatment of gas-tragedy related ailments, Dhingra said.

Bhopal Gas Peedit Mahila Udyog Sangthan's convener, Abdul Jabbar, said that after the tragedy, 15,274 death claims and over 5.73 lakh claims for injuries were filed, and very few were rejected.

However, Madhya Pradesh minister for `Gas Tragedy and Relief', Babulal Gaur, said the government had arrived at the death figure only on the basis of medical certificates.

Jabbar said the actual figure must be higher. "God knows how long the survivors will have to wait for justice," he added.

Meanwhile, the anniversary of the disaster, an annual ritual which sees number of participants dwindling every year, would be observed tomorrow.

Every year, the day witnesses burning of effigies of the then Union Carbide Chairman Warren Anderson, processions and demonstrations at the defunct Union Carbide plant.

This year, some organisations have also decided to stage a rail-blockade for some time.

One of the organisations has decided to stage a dharna in front of official residence of Chief Minister.

The progress of the court cases related to the tragedy offer a telling comment on the slowness of the system. The Chief Judicial Magistrate's court here delivered judgement in the main criminal case only last June, sentencing the accused to two years' imprisonment.

Then the Centre filed a curative petition in the Supreme Court against `dilution' of charges, but the Supreme Court said it should be heard by the district court. The matter is now before the district court.

The Supreme Court expressed its concern over the indifferent attitude shown by the Centre  and others in disposing of the toxic wastes lying at Bhopal's defunct Union Carbide India Ltd (UCIL) plant since 1984.

A Bench of Justices G S Singhvi and S J Mukhopadhaya asked the Centre to take the final decision in the matter by the end of June.

Saying that it did not want to run the government, the Bench observed, "You are not sure even after 28 years, it is because people affected and living in Bhopal are poor. It is a failure on your part to deal with this." The apex court had on May 11 put on hold its order directing disposal of 350 tonnes of toxic waste lying in the UCIL plant at the Pithampur waste treatment storage and disposal facility (TSDF) in Madhya Pradesh's Dhar district.

The Madhya Pradesh government as well as some NGOs had approached the apex court raising different issues including the environmental impact of such an exercise and the apprehension prevailing among the people with regard to the disposal of waste.

During the proceedings, the Centre submitted that it will soon decide on the issue as the GoM will be meeting on June 8.

"In Pithampur, people are bound to protest and, they are entitled to protest. You have not taken any decision. Even this affidavit of yours is so vague and you always say that you are hopeful," the Bench said.

"The court never wants and should never want to run the government. It is not our job. If media had continuously followed this like an environmental issue then the picture would have been different," the Bench said, adding that the affected people can approach the court for compensation.

The talks with India on the nuclear liability bill has addressed some of the American concerns, but not all, a senior US official has said.

"We've had a very strong dialogue on the liability legislation. That dialogue has relieved some of our concerns but not all of our concerns, and I think our companies still feel that there are impediments to moving ahead with the current law so we'll continue to work through that," Assistant Secretary of State for South and Central Asia Robert Blake told lawmakers at a Congressional hearing.

"But in the meantime we're focusing on trying to support our companies' efforts to sign early commercial agreements, things that do not require -- or are not impeded in any way by the existing liability legislation -- things like early engineering and other contracts that would be kind of precursors to a wider reactor contract," he said.

He was briefing lawmakers during a Congressional hearing on South Asia convened by the House Committee on Foreign Affairs Sub Committee on the Middle East and South Asia.

"So there has been progress on that, and we hope that we can see some early conclusions to some of those contracts that would be quite important to our companies," he said responding to a question from Congressman Steve Chabot, Chairman of the Sub Committee.

"Secretary (of State, Hillary) Clinton discussed the issue on her visit last week with senior Indian leaders. She noted that we continue to have a very strong interest in supporting our companies' interests and moving ahead, particularly Westinghouse and General Electric.

"She was pleased to hear from India that they have restated their commitment to ensuring a level playing field for our companies," Blake said.



बाबा एक सौ बीस का पान


बाबा एक सौ बीस का पान

बाबा एक सौ बीस का पान
By hastakshep | May 14, 2012 at 5:00 pm | No comments | संस्मरण
राजीव मित्तल
 चंडीगढ़ में इंडियन एक्सप्रेस ऐसी जगह…..जहां करने को बहुत सारे काम…….मसलन अगर खबरों से जी उचट रहा हो तो लोहा पीट सकते हैं…..बनियाइन सिल सकते हैं…..टीन की चादरों पे टांका लगा सकते हैं……सीधे भट्ठी में मुंह डाल कर बीड़ी सुलगा सकते हैं…..गाली-गलौज कर सकते हैं……डंडे चला सकते हैं…..माल ढोने वाला रिक्शा खींच सकते हैं….रेहड़ी ठेल  सकते हैं….ऐसे न जाने कितने काम……पूरा इलाका किसी मिल के बहुत बड़े अहाते जैसा….जो अलग-अलग सेक्टर में बांट दिया गया हो….गंध भी वैसी ही….चलते-फिरते इन्सान भी वैसे ही…..सड़कें टूटी-फूटी…..शानदार कारों वाले शहर के इस इलाके में  साइकिलों की भरमार…..
 
वो पुरानी इमारत……अब तक…सिगरेट का सुट्टा लगाने वालों की…..वो भी मात्र दो-चार…..थोड़े से स्कूटर वालों की…..धीमे-धीमे बात करने वालों की……किसी बात पर मुस्कुरा देने या दांत चमका भर देने वालों  की…..चूं-चूं-चीं-चीं करने वाली युवतियों का आफिस हुआ करती थी…….जनसत्ता वालों के घुसते ही बचाओ बचाओ की गुहार मचाने लगी…..सीढ़ियों की दीवारें पान की पीक से रंगने गयीं…..एडिटोरियल हॉल चीख-चिल्लाहट से गूंजने लगा……एक ही हॉल में…….कभी जिसके क्लब जैसे माहौल में खबरें ऐसे बनती थीं जैसे ब्रिज की बाजी लगी हो……उसी में अब हॉकी…फुटबॉल….क्रिकेट…..सब खेला जाने लगा….कुल मिला कर उस भूतिया महल को हम प्रेतों ने गुलजार कर दिया…..नीचे की सुनसान सड़क अंधेरा होने तक भरी भरी रहने लगी…..चार-पांच पान के खोखे कतार में…….दो चाय वाले……एक जगह जलेबियां और समोसों की खुश्बू  भी…..
 
प्रबंधन ने अपनी तरफ से तो पान की पीकों का अगले ही दिन इलाज कर दिया……20 जगह मिट्टी भरे डिब्बे….लेकिन धुआंधार पीकों ने पानी  फेर दिया..बेकार की खबरों के तारों का कनस्तर अपना पीकदान….मजबूरन प्रबंधन ने भी मुंह फेर लिया…हां, सीढ़ियां बच गयीं…….एक कैंटीन भी खुल गयी…..
 
लेकिन उन खोखों के पान अपने लिये लाचारी के सिवा कुछ न थे….जैसे रंगी घास कचरी जा रही हो….कटारी मार्का चूने ने मुंह में कई जगह जख्म बना दिये……बिहारियों और पूर्वी उत्तरप्रदेशियों का तो काम हथेली मसलने से चल जाता था…दो बार फटका मारा और खैनी मुंह में…..दो घंटे की छुट्टी…..लेकिन यह लखनवी क्या करे…..अभियान चला कर मकान और पान की तलाश शुरू……
 
सेक्टर-30 की होटलनुमा अग्रसेन धर्मशाला में दो महीने मस्ती भरे ….शादियों के समय हम पांच-सात लोगों को भोजन की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं…मैनेजर पूरब का….इसिलये पकवानों की कई प्लेटें  हमारे कमरों में……गृहस्थी जमाने के चक्कर में  एक दिन हम चार जन दफ्तर से जीप मंगा कर एक पुराने चंडीगढ़िया के पड़ौस में उसी के बताये मकान में घुसे तो मकानमालिक ने इतने लोगों को देख एडवांस में लिया किराया वापस कर दिया……उतारा गया सामान फिर जीप पर….. वापस अग्रसेन में…….लेकिन पान का क्या हो….वही खोखों पर गुजारा…
 
एक सुबह पत्नी मय बच्चों और अपनी सास के चंडीगढ़ में हाजिर…..अग्रसेन जिंदाबाद……दोपहर को सेक्टर-21 में एक बंगले के पिछवाड़े रह रहा गंगानगरी भूपेंद्र नागपाल सीधे गंगानगर से आ धमका और मेरी गैरमौजदूगी में सबको अपने यहां उठा ले गया……..शाम को आफिस में अपना कारनामा बता कर बोला….आप भी वहीं चलोगे मेरे साथ….उसकी रिहायश की जगह कमाल की …..चारों तरफ शानदार छोटे -छोटे बंगले…..प्यारी सी कमनीय सड़क…..कुछ सोच में डूबी हुई सी……पेड़ों के कई कई झुरमुट……हरियाली का अम्बार….गेट के अंदर घुसते ही लॉन….बीच में बंगला….पीछे दो कमरे का आउट हाउस……सब उसमें समा गये…किचन भी…..तो सुबह वो भी महक उठी……कहीं पेड़ आम टपका रहे…..तो कहीं शहतूत…..दो पेड़ लोकाट के भी……हंसता-खेलता खिलखिलाता नजर आने लगा परिवार……
 
मकानमालिक रिटयर्ड कर्नल फलाने सिंह जब एक दिन दिल्ली से पधारे तो सिर पकड़ के बैठ गये…क्योंकि सारे पेड़ों के फल चूमने-चूमने लायक रह गये थे….भला आदमी खामोशी साध गया अपने किरायेदार के मेहमानों की हरकत पर….
 
सेक्टर 20 बगल में लगा था…तो वहां दिख गयी वो दुकान…जिसकी तलाश में मारा मारा फिर रहा था ..जितनी हैंडसम दुकान उससे ज्यादा स्मार्ट वो नौजवान दुकानदार…कि अगर टाई बांध कर ब्रीफकेस थाम ले तो आज का एमबीए लगे…यह चकाचक देख घबराहट  भी हुई… धड़कते दिल से बतियाया तो भला लगा वो……पान  और भी लाजवाब…जी खुश हो गया….पांच पान एक साथ बंधवाए….सुपारी और बाबा एक सौ बीस अलग से भी पुड़िया में….सब माल शानदार पैक में….अब तो उसके यहां दो-तीन चक्कर  रोज के…….किसी की भी दुकान पर होता तो देख कर लपकता….
 
एक महीना 22 सेक्टर  में गुजारा….कुछ महीने बाद परिवार समेत 20 में ही बस गया….. अब तो घर से न जाने कितने चक्कर उस दुकान के……कई घरेलू काम उसके जिम्मे…..बिजली वाले से लेकर गैस का सिलेंडर तक…..घर में कोई फंक्शन हो तो सारा इंतजाम भी उसी के सिर……बच्चों से भी उतना ही लगाव …..उससे मिलने के बाद ही आफिस के लिये बस पकड़ता……कोई वाहन मिल जाता तो रात को आठ बजे आफिस से  निकल उसके यहां……इस दोस्ती के दो साल बड़े आराम के रहे…….
 
एक मई को प्रभाष जी चंडीगढ़ जरूर आते और किसी होटल में जनसत्ता वालों को बढ़िया भोजन कराते…लेकिन उस बार दो महीने बाद आए…….दोपहर का प्रोग्राम…….उसके यहां से पान खा और बंधवा कर उस जलसे में शामिल….शाम को सीधे आफिस….रात दो बजे वापसी…..
 
अगले दिन पंडिताइन का बृहस्पतिवार का  व्रत……दही लाने को बोला…..साथ में कुछ और भी….पान को मन मचल ही रहा था….निकल लिया…….देखा तो वो छोटा सा मार्केट बंद…..कुछ समझ में नहीं आया…..बगल के मार्केट से दही ली….और सामान लिया …..फिर उसकी बंद दुकान के सामने….कोई जाना-पहचाना दिख गया….बाजार बंद क्यों है…..आपको नहीं पता….क्या नहीं पता…..कल शाम दर्शन गुजर गया…..नई मारुति में पत्नी-बच्चे को बैठा कर होशियारपुर जा रहा था—रास्ते में पंजाब रोडवेज की बस ने टक्कर मार दी…. वहीं खत्म हो गया…..बेहोश पत्नी को अस्पताल लाए…..उसको पता चला तो वो भी…..बच्चा बच गया है…….
सब सुनाई पड़ रहा…..साथ ही जैसे कोई फिल्म चल रही हो…..दर्शन पान लगा रहा…हंसते हुए कह रहा…आपका पान बहुत मंहगा पड़ता है मुझे…..लेकिन आपको खिलाने में जो मजा आता है ….तो सब भूल जाता हूं……
 
एक हाथ में दही…दूसरा भी घिरा हुआ….घर लौटते वक्त उस तीन फर्लांग के रास्ते में बहते आंसू पोंछने का कोई साधन नहीं……कोई शर्म भी नहीं आ रही थी पता नहीं क्यों…..कम आवाजाही….फिर भी कोई न कोई रुक कर देखता जरूर…..घर की सीढ़ियां खत्म होते ही कोई नियंत्रण नहीं रह गया था……आंसू भी फूट-फूट कर निकल रहे……पूर्णिमा परेशान…..क्या बताता कि कौन चला गया…..
 
कई दिन तक जब तब आंखें भर आतीं…….उसकी दुकान के सामने सड़क पार बस स्टेंड….रैंलिंग पर बैठ जाता  और उस बंद दुकान के अंदर तक नजरें चली जातीं…..उसकी गोद में मेरा छोटा बेटा और वो उसके मुंह में टॉफी डाल रहा है…..रोज ऐसा ही सबकुछ….बंद दुकान तकलीफ बढ़ाती जा रही….लेकिन उस जगह बैठना बंद नहीं किया…..डेढ़ महीने बाद देखा कि दुकान खुली हुई है….अंदर कोई और…पूछा…..मैं मामा लगता हूं जी दर्शन का….उस दिन दो जोड़ा आंखें गीली हुईं……लेकिन दुकान के खुल गये पटों ने राहत तो पहुंचायी ही ……..
नभाटा में रह कर 'जनसत्ता' (चंडीगढ़) में चीफ-सब रहे राजीव मित्तल 'अमर उजाला' और 'दैनिक हिंदुस्तान' होते हुए अब आगरा से छपने वाले 'पुष्प सवेरा' में सम्पादक हैं.