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Saturday, 21 July 2012

BSF is not protecting border, a saga of a victim


20th July 2012
 
To
The Hon'ble Chairman
National Human Rights Commission
Faridkot House
Copernicus Marg
New Delhi - 1
 
 
Respected Sir,
 
We lodge this present complaint in the matter of the victim Mr. Bagbul Islam, son of Late Khorshed Ali Sarkar residing at village-Katlamari, Post Office-Katlamari, Police Station-Raninagar, District-Murshidabad. He is a farmer by profession and his residence is located close to Indo-Bangladesh border. The victim's agrarian lands are located near Indo-Bangladesh border.
 
The facts emerged from the victim's statement that the area is frequented by smugglers from Indian and Bangladesh Territory and the smugglers mainly use the agricultural lands near the Indo-Bangladesh border for their movements and transportation smuggling items which varies from cattle to drugs, human beings and many other things. A section of BSF in connivance of the smugglers carries out such illegal activities I the area and surrounding victinity. It is a regular affair in the area that the farmers suffer loss of their crops and damage of agricultural fields due to illegal movements of smugglers through the farming lands. It is also a matter of fact that the respective BSF Out-Posts in the area is located about 3 kilometers inside the Indian Territory from the actual Indo-Bangladesh Border line. Therefore a vast area of farming lands of the farmers in the area which falls between respective BSF Out-Posts and the actual border line remain unguarded and unprotected and it is a regular affair in the area that louts from Bangladesh enter into those agricultural lands and forcibly take away the growing crops and cause severe damage to the agricultural fields.          
 
The farmers of Katlamari area including the victim himself who have agricultural lands near the Indo-Bangladesh border line have established about 30/35 small temporary houses called "Bathanbari" with the permission of local administration in their agricultural lands where they can temporary reside there and take care of the agricultural lands and protect the crops. The farmers keep crops, farming tools and other necessary items in those "Bathanbari" for the purpose. But even such "Bathanbari" are not safe as the smugglers and louts from Bangladesh see them as a trouble in smooth running of their illegal activities and they are always in search of suitable opportunity to cause damage to such "Bathanbari".  
 
The victim's "Bathanbari" is located in Char Sarandajpur under Raninagar Police Station. On 28.5.2012 at about 4 am few louts from Bangladesh taking advantage of the absence of BSF entered into the victim's "Bathanbari" and put fire on it. As a result of the fire the said "Bathanbari" completely ruined and some articles such two Bi-cycles (Cost Rs.5000/- each), two water pump machines (Cost Rs.20000/-), Jute seeds of 40 Kgs (cost of Rs.2000/-), etc. were completely damaged in the fire. Several people who were present in the spot witnessed the incident and they shouted to call the nearby BSF personnel, but nobody from BSF personnel came forward. The victim lodged written complaint in the matter of the incident before the Officer-in-Charge of Raninagar Police Station and also before the Block-Development Officer, Raninagar-II, Raninagar, but in spite receiving the complaints from the victim, the victim did not get any justice till date. It is relevant here to mention that earlier the victim's son namely Babar Ali was arbitrarily killed by the accused BSF personnel on 8.4.2007.
 
The victim including many farmers from Katlamari and surrounding vicinity earn their livelihood from their agricultural lands located near Indo-Bangladesh Border, but their only source of livelihood is under severe threats from smugglers and louts from Bangladesh unless and until those farming lands are properly guarded and protected by Border Security Force. It is the duty of Border Security Force to guard the lands of Indian Territory, but the actual situation as mentioned above depicts that the concerned BSF authority completely failed to discharge their duty.
 
Hence we seek your urgent intervention in this matter demanding that the whole matter must be enquired into by one neutral enquiring authority. The complaints lodged by the victim before the authorities as mentioned above must be properly acknowledged and the concerned authorities must be directed to take appropriate action in the matter. The concerned BSF personnel must be condemned for not taking any timely action on the spot on 28.5.2012 so to save the victim's property from being ruined and they must be punished accordingly for such inaction. The victim must be provided with adequate compensation and keeping relevancy of the matter we also demand that BSF authority must be directed to locate their position in the actual Indo-Bangladesh border line instead of keeping their posting several kilometers inside the Indian Territory.
 
Your kind action in this matter would be highly solicited.
 
Thanking you,
 
Yours truly,

--
Kirity Roy
Secretary
Banglar Manabadhikar Suraksha Mancha
(MASUM)
&
National Convenor (PACTI)
Programme Against Custodial Torture & Impunity
40A, Barabagan Lane (4th Floor)
Balaji Place
Shibtala
Srirampur
Hooghly
PIN- 712203
Tele-Fax - +91-33-26220843
Phone- +91-33-26220844 / 0845
e. mail : kirityroy@gmail.com
Web: www.masum.org.in


स्कूल में घुसकर दलित छात्र को पीटा, बहन को उठाने की कोशिश


स्कूल में घुसकर दलित छात्र को पीटा, बहन को उठाने की कोशिश


अध्यापकों को भी नहीं बख्शा
भाई को बेरहमी से पिटते देख जब उसकी बहन पूजा अपने भाई को बचाने आयी तो इन लड़कों ने न केवल उसके साथ मारपीट की, बल्कि उसे उठाकर अगवा करने का प्रयास भी किया.........

सलीम मलिक

उत्तराखण्ड में दलित उत्पीड़न की घटनाओं में कड़ी में ताजा प्रकरण रामनगर जिले के स्कूल का है.बीते रोज घटी इस घटना में दबंगों के एक गुट ने सरेआम स्कूल में घुसकर एक दलित युवक को जमकर पीटा, इतना ही नही उसे बचाने आई युवक की बहन को भी दबंगो ने उठाने का प्रयास किया.अध्यापकों के साथ भी मारपीट की गयी.
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घायल भारत : दबंगों की सीनाज़ोरी
घटना की बाबत दलित संगठनों में खासा रोष है, अलबत्ता पुलिस इस गम्भीर मामले को अपने जातिगत स्वार्थो के तहत हल्के में लेते हुये मामले को रफा-दफा करने के प्रयास में है.फिलहाल इस विवाद को क्रिकेट के खेल में हुये विवाद से जोड़कर देखा जा रहा है.

घटनाक्रम के अनुसार चोरपानी क्षेत्र के युवक दीपक का अपराधिक तत्वों के साथ उठना-बैठना बताया जाता है.बीते रोज यह युवक ही अपने करीब दर्जन भर साथियों के साथ लाठी, डन्डे व सरियांे से लैस होकर गौजानी के राजकीय उच्चतर माध्यमिक स्कूल में घुस गया.जहां इन्होंने स्कूल में पढ़ रहे एक दलित किशोर भारत को उसकी क्लास से निकालकर बेहरमी से पीटना आरम्भ कर दिया.

इसी के साथ ही इन लोगांे ने अध्यापकों के साथ ही मारपीट की.भाई को बेरहमी से पिटते देख जब उसकी बहन पूजा अपने भाई को बचाने आयी तो इन लड़कों ने न केवल उसके साथ मारपीट की बल्कि उसे उठाकर अगवा करने का प्रयास भी किया.मौके पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि हमलावरों ने भारत को पिटते समय हमलावरों ने उसे जातिगत सम्बोधनों के साथ ही अपने औकात में रहने की हिदायत देते हुये औकात से बाहर निकलने पर इसी प्रकार के सबक सिखाने की धमकी भी दी.

दलित मंच के शीशपाल सिंह आर्य ने घटना की तीखी निन्दा करते हुये हमलावरों की गिरफतारी की मांग की है.बकौल श्री आर्य घटना की गम्भीरता को प्रशासन हलके में ले रहा है.अगर जल्द ही न्यायसंगत कार्यवाही नही की गयी तो दलितों को एकजुट कर पुलिस के खिलाफ आंदोलन चलाया जायेगा.

घटना की बाबत पुलिस को खबर की गयी तो पुलिस ने जख्मी भाई बहन को उठाकर चिकित्सालय पहुंचाया जहां इलाज की आधी-अधूरी कवायद की.बाद में इलाके ग्राम प्रधान जगत सिंह व नीरज सती आदि ने भारत के पिता हरीशराम की आर्थिक मदद कर सुबह से भूखे-प्यासे इन बच्चों के लिये खाने के इंतजाम के साथ ही उपचार आदि के लिये आर्थिक सहयोग भी किया.

अपने बेटे और बेटी की सरेआम पिटाई से आहत हरीशराम ने कोतवाली में तहरीर भी दी, लेकिन देर रात तक पुलिस ने इस मामले में तहरीर देने के बाद भी मुकदमा कायम नहीं किया था.जिसके कारण आज सुबह इलाके के सैंकड़ों ग्रामीण इकटठा होकर स्कूल पहुंच गये जहां उन्होंने विद्यालय में अपने बच्चों की असुरक्षा का आरोप लगाते हुये अपने बच्चों को घर के लिये रवाना कर दिया.

पुलिस मुकदमा करने का तैयार नहीं दिख रही है, जिसका कारण दबंगों को बचाने की कवायद मानी जा रही है.ऐसे में पीडि़त परिवार और ग्रामीण जिले के एसएसपी से इस मामले में दखल की गुहार करने जा रहे हैं. 

काबिल-ए-गौर है कि वर्तमान में रामनगर इलाके में प्रशासन के जिम्मेदार पद पर किसी भी दलित अधिकारी की तैनाती नहीं है, जिस कारण दलितों का एक समूह पुलिस की इस कार्यप्रणाली को अपने खिलाफ जातिगत कारणों से भी देख रहा है.घटना के 24 घन्टे बीत जाने के बाद भी पुलिस ने मामले की एफआईआर दर्ज नहीं की है जिससे इलाके के दलित संगठनों में गुस्सा पनप रहा है जो कि किसी भी समय फूट सकता है.

दलित चिंतक रविन्द्र साधू ने घटना के जिम्मेदार युवकों पर एससीएसटी एक्ट के तहत कार्यवाही करने की मांग करते हुये कहा कि यदि पुलिस ने इस मामले को हल्के में लेकर पक्षपात पूर्ण कार्यवाही की पूरे उत्तराखण्ड में आंदोलन छेड़ा जायेगा.

saleem-malikसलीम मलिक उत्तराखंड में पत्रकार हैं.


प्रणव की हैसियत को लेकर यूपीए में मारामारी,राहुल की ताजपोशी की तैयारी के बीच निवेशकों में घबड़ाहट!


प्रणव की हैसियत को लेकर यूपीए में मारामारी,राहुल की ताजपोशी की तैयारी के बीच निवेशकों में घबड़ाहट!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

आउटलुक की कवरस्टोरी में ओबामा को अंडरएचीवर करारा देकर मनमोहन की छवि सुधारने की कवायद शुरू हो गयी है। कारपोरेट इंडिया  भी उनके हक में खुलकर बोलने लगा है।टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा ने देश में विपरीत आर्थिक हालात के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को दोषी ठहराए जाने को गलत बताया है। उन्होंने ट्वीट किया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को साहस के साथ सही फैसले करने की जरूरत है जिससे सरकार के प्रति लोगों का भरोसा बहाल हो सके। संसद के मानसून सत्र में आर्थिक सुधारों के लिए जरूरी तमाम कानून पास करने की तैयारी हो गयी है। अब ​​सत्ता वर्ग अन्य माध्यमों के अलावा मोबाइल क्रांति के जरिए भी खुला बाजार के हक में जनमत बनाने लगा है। आर्थिक सुधारों से ही आर्थिक विकास, इस आशय का एसएमएस अभियान थोक भाव से शुरू हो गया है। पर गार और जीएसटी मामलों में सरकार को बुरी तरह फंसा गये प्रणव दादा की हैसियत को लेकर मारामारी से युवराज राहुल गांधी की ताजपोशी का मजा किरकिरा गया है।राष्ट्रपति चुनाव के बहाने कांग्रेस के पक्ष में बना फीलगुड राकांपा ने खत्म कर दिया है।गठबंधन सरकार चलाने के कांग्रेसी तौर-तरीकों पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के 'गंभीर एतराज' जताने के कारण संप्रग सरकार के मतभेद सतह पर आ गए. राकांपा अध्यक्ष एवं कृषि मंत्री शरद पवार तथा भारी उद्योग मंत्री प्रफुल्ल पटेल के अपने मंत्रालय नहीं जाने से उनके इस्तीफे की अटकलों को और बल मिला। जिसका सीधा असर निवेशकों की आस्था पर होने लगा है। राष्ट्रपति चुनाव में जो ध्रूवीकरण हुआ, क्षत्रपों की मारामारी से वह तेजी से बिखरने लगा है और कोई लीपापोती काम नहीं आ रही।एनसीपी सूत्रों के अनुसार, पार्टी का मानना है कि अगर उसे सरकार के भीतर पूरा सम्मान नहीं मिला तो भी वह यूपीए से नहीं हटेगी, लेकिन सरकार छोड़ सकती है। कहा यह भी जा रहा है कि पवार अपनी बेटी सुप्रिया सुले को राहुल के साथ कैबिनेट में जगह दिलाना चाहते हैं। एनसीपी अगाथा संगमा को मंत्रिमंडल से हटा सकती है।राष्ट्रपति चुनाव के बहाने अपने लिए सबसे ज्यादा संकट पैदा करने वाली सहयोगी ममता बनर्जी को अलग-थलग करने में कामयाब रही कांग्रेस को राकांपा ने एक झटके में ही जमीन पर ला दिया। पवार के तेवरों से हैरान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जहां पवार के साथ बैठक की, वहीं, प्रधानमंत्री समेत पूरी पार्टी उन्हें मनाने में जुट गई। साथ ही पूरे मसले पर विचार के लिए कोर कमेटी में भी मंत्रणा हुई।

बड़ी भूमिका के लिए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के तैयार होने के साथ ही केंद्रीय मंत्रिमंडल और संगठन में बदलाव की राह तय हो गई है। इस बदलाव में राहुल गांधी की राय बेहद अहम होगी। पार्टी के ज्यादातर नेताओं में कांग्रेस महासचिव के करीब दिखने की होड़ इसी आस में है कि वे अब टीम राहुल में भी पहले की तरह ताकतवर बने रहें।बड़ी भूमिका में आने को लेकर अपनी पार्टी और देश भर में उठ रहे सवालों पर कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने विराम लगा दिया है। राहुल गांधी ने गुरुवार को साफ कर दिया वह इसके लिए तैयार हैं। उन्होंने यह भी संकेत दिए कि उनके सामने पार्टी और संगठन दोनों में ही बड़ी भूमिका निभाने के विकल्प मौजूद हैं। सरकार की साख पर उठते सवाल और आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए माना जा रहा है कि राहुल संगठन की जगह सरकार में कोई पद संभाल सकते हैं। इस पर पार्टी में अभी विचार किया जा रहा है।अगर राहुल गांधी संगठन की जगह सरकार में शामिल होते हैं तो एक संभावना है कि उन्हें डेप्युटी पीएम बना दिया जाए। इसके पीछे तर्क यह है कि इससे जहां राहुल को सरकार चलाने का सीधा अनुभव मिलेगा, वहीं पीएमओ में रहकर वह सरकार व सहयोगी दलों के साथ संपर्क रख सकते हैं। अगर राहुल को डेप्युटी पीएम बनाया जाता है तो पार्टी के सामने लोकसभा में नेता सदन का संकट भी निपट जाएगा।कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष भी बनाया जा सकता है। कांग्रेस सूत्रों से जानकारी मिल रही है कि राहुल गांधी को सरकार के बजाय संगठन में बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी। राहुल गांधी को ये जिम्मेदारी सितंबर में सौंपी जा सकती है।सूत्रों का कहना है कि सितंबर में मॉनसून सत्र के समाप्त होने के बाद कांग्रेस और सरकार में बडे़ बदलाव होंगे। हालांकि राहुल गांधी सरकार में शामिल नहीं होंगे। लेकिन वो संभावना के मुताबिक कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर काम करेंगे। साथ ही लोकसभा में सदन का नेता सुशील कुमार शिंदे को बनाया जा सकता है। प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए नेता, लोकसभा के पद से इस्तीफा दे दिया था।

सत्ताधारी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन में राजनीतिक अनिश्चितता का नया दौर शुरू होने से निवेशकों की घबराहटपूर्ण बिकवाली से बंबई शेयर बाजार का सेंसेक्स 120 अंक नीचे आ गया। इसके अलावा भारतीय रिजर्व बैंक ऋण पुनर्गठन नियमों को भी कड़ा बनाने की तैयारी कर रहा है, जिससे बाजार की धारणा प्रभावित हुई।सार्वजनिक क्षेत्र की महारत्न कंपनी स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया [सेल] में अपनी हिस्सेदारी कम करने का फैसला सरकारी विनिवेश की गाड़ी को फिलहाल आगे नहीं बढ़ा पाएगा। आर्थिक सुधारों की दिशा में आगे बढ़ने की सरकार की इस मुहिम को शेयर बाजार के हालात ब्रेक लगा सकते हैं। बाजार के जानकारों का मानना है कि शेयर बाजार के जरिए सेल की करीब 11 प्रतिशत इक्विटी बेचने के फैसले पर अमल में अभी वक्त लगेगा। बाजार की मौजूदा चाल ने सबको असमंजस में डाल दिया है। इस उतार-चढ़ाव वाले बाजार में निवेशकों और ट्रेडर्स के लिए सही फैसले ले पाना मुश्किल हो रहा है। हालांकि आर्थिक सुधारों की आस में बाजार बहुत ज्यादा नीचे का रुख तो नहीं कर रहे हैं। लेकिन ऊपर की ओर भी भरोसेमंद नहीं लग रहे हैं। मौजूदा समय में भारतीय बाजार निवेश के लिए लिहाज से बेहतर दिखाई दे रहे हैं। वहीं विदेशी संस्थागत निवेशक(एफआईआई) भारतीय बाजारों में अच्छा पैसा लगा रहे हैं। क्योंकि इस समय एफआईआई के पास भारतीय बाजारों के अलावा दूसरे देशों के बाजारों में निवेश के ज्यादा मौके नहीं है। ऐसे में लंबी अवधि के नजरिए से भारतीय बाजार सकारात्मक दिखाई दे रहे हैं। हालांकि राष्ट्रपति चुनाव के बाद सरकार को आर्थिक सुधारों के लेकर अहम कदम उठाने हैं। लेकिन मौजूदा राजनीतिक हालात सरकार के लिए काफी चुनौतीपूर्ण हैं। बाजारों को आर्थिक सुधारों का सहारा मिल जाता है तो बाजार हर साल 18-22 फीसदी की रफ्तार से बढ़ते नजर आएंगे। साथ ही अगले 3 साल में भारतीय बाजार दोगुना होने का अनुमान है, यानी निफ्टी करीब 10,000 और सेंसेक्स 35,000 तक के स्तर अगले 3 साल में छू सकते हैं। सप्ताह का अंतिम कारोबारी दिन शुक्रवार देश के शेयर बाजारों के लिए शुभ नहीं रहा। सुबह कारोबार के शुरुआत से ही शेयर बाजारों में गिरावट का रुख देखने को मिला और शाम को कारोबार बंद होने तक गिरावट का यह रुख बना रहा। प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 120.41 अंकों की गिरावट के साथ 17158.44 पर बंद हुआ। जबकि निफ्टी 37.60 अंकों की गिरावट के साथ 5205.10 पर बंद हुआ। सेंसेक्स ने दिन के कारोबार के दौरान 17275.20 के ऊपरी और 17129.69 के निचले स्तर को छुआ।बाजार में गिरावट बढ़ती दिख रही है। निवेशकों द्वारा की जा रही बिकवाली के चलते बाजार में करीब 0.7 फीसदी की गिरावट देखने को मिल रही है।

यूपीए सरकार जहां एक तरफ कड़े आर्थिक फैसले लेने के संकेत दे रही है, वहीं दूसरी तरफ वह कुछ राहत देने वाले फैसले भी ले रही है। शुक्रवार को पेट्रोलियम मंत्रालय ने पेट्रोल पंपों के आवंटन में अति पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27 प्रतिशत रिजर्वेशन देने की घोषणा की। यह फैसला तत्काल प्रभाव से लागू होगा।इसका मतलब है कि अब जब भी पेट्रोल पंपों का आवंटन किया जाएगा, उसमें 27 प्रतिशत ओबीसी को दिए जाएंगे। अब तक पेट्रोल पंपों के आवंटन में एससी/एसटी को 21 प्रतिशत, पूर्व सैनिकों को 5 प्रतिशत, महिलाओं को 5 का रिजर्वेशन देने का प्रावधान था। इसमें सैनिकों की विधवाएं प्रमुख रूप से शामिल हैं। अब इसमें ओबीसी भी जुड़ गया है। पेट्रोलियम मंत्रालय के एक उच्चाधिकारी ने कहा, ओबीसी को पेट्रोल पंप का आवंटन भी लॉटरी के जरिये ही किया जाएगा। इसमें पारदर्शिता बरती जाएगी। अधिकारी के अनुसार, ऐसा देश के संविधान के प्रावधानों के तहत किया गया है। एक सवाल के जवाब में अधिकारी ने कहा, ओबीसी को पेट्रोल पंपों को रिजर्वेशन देने पर लंबे वक्त से विचार चल रहा था। यह मामला काफी समय से पेट्रोलियम मंत्रालय में विचाराधीन था।

दूसरी ओर, वर्करों की हिंसा में जीएम (एचआर) की मौत और 100 से ज्यादा कर्मचारियों के घायल होने के बाद मारुति सुजुकी यहां अपने प्लांट को कुछ समय के लिए बंद करने पर भी विचार कर रही है। हालांकि, कंपनी ने प्लांट को गुजरात शिफ्ट करने की संभावना से इनकार किया है। कंपनी के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर (ऐडमिनिस्ट्रेशन) एस.वाई. सिद्दीकी ने कहा कि कंपनी मानेसर में लंबे समय तक काम करना चाहती है, लेकिन कुछ समय के लिए हम कुछ विकल्पों पर विचार कर रहे हैं, जिनमें लॉकआउट भी शामिल है।मारुति सुजुकी इंडिया के एमडी शिंजो नाकानीशी ने कहा कि हरियाणा में निवेश के लिए हम कमिटेड हैं। मानेसर में यूनिट-सी के विस्तार, रोहतक में रिसर्च फैसिलिटी और गुड़गांव में डीजल इंजन प्लांट पर काम चलता रहेगा। हरियाणा के इंडस्ट्री सेक्रेटरी वाई.एस. मलिक ने कहा कि यह तालाबंदी नहीं है। पहले उन्हें अपने हालात नॉर्मल करना जरूरी है। उन्होंने मारुति में हिंसा का प्रदेश में निवेश पर बुरा असर पर पड़ने की संभावना से इनकार किया और कहा कि यह छिटपुट घटनाएं हैं। मानेसर प्लांट में कामकाज शुक्रवार को भी ठप रहा। हालांकि तैयार कारों को डिस्पैच किया गया।

उधर, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी संडे से 5 दिन की जापान यात्रा पर जा रहे हैं। वह वहां मारुति सुजुकी के टॉप अफसरों से भी बात करेंगे। चर्चा है कि मोदी गुजरात में मारुति की प्रॉडक्शन कैपेसिटी बढ़ाने पर भी बात करेंगे।

इसी बीच दूरसंचार पर गृह मंत्री पी चिदंबरम की अध्यक्षता वाले अधिकार प्राप्त मंत्रिसमूह (ईजीओएम) ने आज 2जी स्पेक्ट्रम नीलामी की कीमत दूरसंचार नियामक ट्राई की ओर से सुझाए गए आरक्षित मूल्य से कम करने की सिफारिश की है। माना जा रहा है कि देश भर के लिए 5 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम के लिए आरक्षित कीमत 14,000 से 16,000 करोड़ रुपये करने की बात कही गई है।ट्राई ने 18,110 करोड़ रुपये आधार मूल्य का सुझाव दिया था लेकिन ईजीओएम ने इसमें तकरीबन 20 फीसदी की कमी की सिफारिश की है। इसका मतलब है कि 1 मेगाहट्र्ज स्पेक्ट्रम का आधार मूल्य 2,800 से 3,200 करोड़ रुपये होगा, जबकि ट्राई ने 3622 करोड़ रुपये का सुझाव दिया था। हालांकि इस बारे में अंतिम निर्णय कैबिनेट को करना है। कैबिनेट की बैठक अगले हफ्ते संभव है।

स्पेक्ट्रम पर बनी ईजीओएम की बैठक खत्म हो गई है। बैठक में स्पेक्ट्रम के बेस प्राइस, यूसेज चार्जेस और भुगतान की शर्तों पर चर्चा हुई।टेलिकॉम मंत्री कपिल सिब्बल का कहना है कि तीनों पर मुद्दों पर ईजीओएम अपनी सिफारिशें कैबिनेट को भेजेगा। कपिल सिब्बल के मुताबिक कैबिनेट ही अंतिम फैसला लेगा।सूत्रों के मुताबिक ईजीओएम स्पेक्ट्रम की बेस प्राइस 14000-15000 करोड़ रुपये तय करने के पक्ष में है। जबकि ट्राई ने रिजर्व प्राइस 18000 करोड़ रुपये रखने की सिफारिश दी थी।वहीं, माना जा रहा है कि यूसेज चार्ज में बढ़ोतरी नहीं की जाएगी। यूसेज चार्ज मौजूदा स्तर पर बने रहेंगे।सूत्रों के मुताबिक ईजीओएम ने स्पेक्ट्रम के लिए किश्तों में भुगतान करने को मंजूरी दी है। कंपनियों को स्पेक्ट्रम की कुल कीमत का 33 फीसदी पहले साल में चुकाना होगा।इसके बाद कंपनियों को 2 साल की रियायत दी जाएगी। बाकी रकम चौथे साल से 10 सालाना किश्तों में देनी होगी।

ईजीओएम के इस कदम से उन जीएसएम ऑपरेटरों को थोड़ी राहत मिल सकती है, जो ट्राई की सिफारिशों का विरोध कर रहे थे और कॉल दरों में औसतन 44 से 60 पैसे प्रति मिनट बढ़ोतरी की बात कर रहे थे। बैठक के बाद संचार मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा, 'ईजीओएम में तीन मसलों पर विचार किया गया और इस बारे में हम अंतिम निर्णय के लिए कैबिनेट के पास सिफारिश भेजने जा रहे हैं।' हालांकि उन्होंने इस बारे में ब्योरा देने से मना कर दिया। ईजीओएम ने ट्राई की सिफारिश के आधार पर स्पेक्ट्रम के लिए किस्तों में भुगतान के विकल्प पर भी सहमति जताई है। हालांकि इस बारे में भी अंतिम निर्णय कैबिनेट को ही करना है। वित्तीय मामले में नरमी से यूनिनॉर जैसे ऑपरेटरों को कुछ राहत मिल सकती है। स्पेक्ट्रम इस्तेमाल शुल्क पर ईजीओएम ने ट्राई की सिफारिश को दरकिनार करते हुए मौजूदा स्पेक्ट्रम इस्तेमाल शुल्क 3 से 6 फीसदी रखने पर सहमति जताई है।उच्चतम न्यायालय के आदेश के तहत 31 अगस्त तक 2जी स्पेक्ट्रम नीलामी की प्रक्रिया पूरी करने के लिए सरकार को आधार मूल्य पर जल्द निर्णय लेना होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो सरकार को दूसरी बार समय सीमा में बढ़ोतरी के लिए उच्चतम न्यायालय से अनुमति लेनी होगी। इस साल फरवरी में उच्चतम न्यायालय ने 122 स्पेक्ट्रम लाइसेंस रद्द करने का फैसला सुनाया था और दूरसंचार विभाग से जून तक नए सिरे से नीलामी करने को कहा था। लेकिन बाद में नीलामी की समयसीमा 31 अगस्त तक के लिए बढ़ा दी गई थी।

प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति भवन पहुंचने का रास्ता भले ही साफ हो गया है लेकिन सरकार में उनकी जैसी हैसियत हासिल करने के मुद्दे पर कांग्रेस राकांपा प्रमुख शरद पवार के जाल में फंस गई है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार ने सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को लिखे खत में कहा है कि उनकी पार्टी सरकार से बाहर होना चाहती है। उन्होंने पार्टी कार्यों पर ध्यान देने के लिए यह इच्छा जताई है। हालांकि पवार ने सोनिया व प्रधानमंत्री को आश्वासन दिया है कि वह संप्रग का हिस्सा बने रहेंगे। उधर कांग्रेस कोर ग्रुप ने राकांपा की शिकायतों पर चर्चा की। साथ ही पार्टी सूत्रों ने दावा किया कि मामला शांत हो गया है।  पवार ने सरकार एवं संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के कामकाज पर अपनी पार्टी की चिंता तथा सहयोगियों को साथ लेकर चलने की आवश्यकता से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एवं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को अवगत करा दिया है। राकांपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि कल रात प्रधानमंत्री के साथ पवार का संवाद प्रशासनिक और राजनीतिक मुद्दों पर कांग्रेस द्वारा सहयोगी दलों की उपेक्षा पर केंद्रित रहा।सरकार में शामिल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता व केंद्रीय भारी उद्योग मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने शुक्रवार को कहा कि जिस तरह सरकार चलाई जा रही है, उससे उनकी पार्टी नाराज थी लेकिन केंद्रीय मंत्रिमंडल से अलग होने का सवाल ही पैदा नहीं होता।सूत्रों के मुताबिक, पवार के सामने नंबर दो विवाद पर तीन मंत्रियों की समिति बनाने का प्रस्ताव रखा गया है, जो प्रधानमंत्री की गैरमौजूदगी में फैसले लेगी। इसमें एंटनी, प्रणब की जगह बनने वाले लोकसभा में सदन के नेता और शरद पवार को शामिल करने का प्रस्ताव है। काग्रेस किसी भी हाल में नंबर दो की हैसियत सहयोगी दल को नहीं देना चाहती है। बताया जा रहा है कि पवार की असली बेचैनी महाराष्ट्र के ही सुशील कुमार शिदे को लोकसभा में नेता सदन बनाए जाने की योजना से है।

मनमोहन सिंह कैबिनेट में प्रणव को अघोषित तौर पर मिली नंबर-2 की जगह न मिलने से कृषि मंत्री शरद पवार नाराज हैं। सूत्रों के मुताबिक, पवार और एनसीपी के कोटे से दूसरे केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने प्रधानमंत्री को अपना इस्तीफा भेज दिया है। संकट बढ़ता देख कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सीधे इसकी बागडोर संभाल ली और पवार को शुक्रवार सुबह मिलने के लिए बुलाया। पवार, सोनिया से मिलने 10 जनपथ अपनी सरकारी गाड़ी में नहीं बल्कि अपनी बेटी की निजी कार में गए। हालांकि, इस मुलाकात में भी कोई बात नहीं बनी। बताया जा रहा है कि एनसीपी ने अपने तेवर कड़े करते हुए फैसला किया है कि जब तक विवाद सुलझ नहीं जाता है पार्टी के मंत्री दफ्तर नहीं जाएंगे।करीब आधे घंटे तक सोनिया से बातचीत के बाद पवार अपने घर चले गए। दोनों की बातचीत को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। सूत्रों के मुताबिक, सोनिया गांधी ने पवार के सामने सुलह का फॉर्म्युला रखा है। इसके तहत तीन मंत्रियों की कमिटी बनाने के प्रस्ताव रखा गया है, जो पीएम की गैरमौजूदगी में फैसले लेगी। इस कमिटी में रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी, प्रणव की जगह बनने वाले लोकसभा में सदन के नेता और शरद पवार को शामिल करने का प्रस्ताव रखा गया है। कांग्रेस किसी भी हाल में नंबर दो की हैसियत सहयोगी दल को नहीं देना चाहती है। बताया जा रहा है कि पवार, सुशील कुमार शिंदे को लोकसभा में नेता सदन बनाए जाने की योजना से भी नाराज हैं। पवार को लगता है कि शिंदे उनसे जूनियर हैं और महाराष्ट्र की राजनीति में दोनों एक-दूसरे के विरोधी हैं।

सोनिया से मुलाकात के बाद पवार ने एनसीपी नेताओं से विचार-विमर्श किया। बताया जा रहा है कि एनसीपी को कांग्रेस का फॉर्म्युला मंजूर नहीं है। मीटिंग के बाद प्रफुल्ल पटेल ने मीडिया को बताया कि हमने यूपीए सरकार के कामकाज के तरीके और गठबंधन में रिश्ते को लेकर सवाल उठाए थे। उन्होंने कहा कि जिस तरह से मीडिया में नंबर-2 की हैसियत को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। उनके मुताबिक, कांग्रेस के कुछ नेता बेवजह इस तरह के विवाद को तूल दे रहे हैं। पटेल ने कहा कि पवार देश के कद्दावर नेता हैं और वह लोकसभा में सोनिया के बाद बैठते हैं। इसी से उनकी हैसियत का अंदाजा लगाया जा सकता है। जब उनसे पूछा गया कि क्या वह और पवार अभी भी सरकार का हिस्सा हैं, तो उन्होंने केवल इतना कहा कि एनसीपी यूपीए में है। एनसीपी की अगली बैठक अब सोमवार को होगी, जिसमें आगे की रणनीति बनाई जाएगी।

राकांपा प्रमुख शरद पवार की नाराजगी की वजहों में वरिष्ठता क्रम भले ही सबसे ऊपर हो, लेकिन यह आग बहुत दिनों से सुलग रही थी, जिसमें कई प्रमुख मामले शामिल थे। सरकार के भीतर कृषि व खाद्य संबंधी उनके उठाए मुद्दों को तरजीह न मिलने से भी पवार बेहद खफा थे।

खाद्य सुरक्षा विधेयक के कुछ प्रावधानों पर कृषि मंत्री शरद पवार की आपत्तियां हैं, जिसे सरकारी फोरम पर वह उठाते रहे हैं। लेकिन सरकार में उनकी बातों को तवज्जो नहीं मिली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी को समय-समय पर उन्होंने खत भी लिखा। किसानों की समस्याओं को नजरअंदाज करने को लेकर उन्होंने वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा और खाद्य मंत्री केवी थामस की खुलेआम कड़ी आलोचना की।

कृषि उत्पादों के निर्यात से प्रतिबंध उठाने को लेकर सरकार की हीलाहवाली से पवार इतने नाखुश थे कि उन्होंने सरकार को घेरना शुरू कर दिया। सोनिया गांधी के हस्तक्षेप के बाद प्रधानमंत्री ने पवार के साथ अपने वरिष्ठ मंत्रियों को लेकर बैठक की। पवार के दबाव में सरकार ने कपास, दूध पावडर, प्याज, गेहूं और चीनी निर्यात का रास्ता खोल दिया। पवार ने इस फैसले में देरी से होने वाले नुकसान का विस्तार से जिक्र किया था।

खाद्य सुरक्षा विधेयक पर कृषि मंत्री ने चार चुनौतियों पर सरकार का ध्यान दिलाया था, लेकिन उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया। उनके उठाए सवाल कुछ यूं हैं। विधेयक के लिए इतनी भारी सब्सिडी कहां से आएगी? इतने खाद्यान्न की उपलब्धता साल दर साल कैसे और कहां से होगी? घरेलू जिंस बाजार का क्या होगा? 70 फीसदी अनाज सरकार खरीद लेगी तो स्वतंत्र जिंस बाजार का ढांचा चरमरा जाएगा। पवार ने 1972-73 के उस सरकारी फैसले की याद दिलाई थी, जिसमें खाद्यान्न बाजार का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया था। लेकिन सरकार को अपना यह फैसला जल्द ही वापस लेना पड़ा। इस आशय का पत्र उन्होंने जुलाई 2011 में लिखा था। इसके अलावा पवार का कहना था कि कृषि में निवेश को लेकर सरकार की चुप्पी उचित नहीं है। किसानों को वैधानिक तौर पर किसी प्रोत्साहन का प्रावधान नहीं किया जा रहा है।

पिछले रबी सीजन से ही पवार ने सरकार को गेहूं निर्यात खोल देने की सलाह दी थी। कई मर्तबा खत भी लिखा। निर्यात का फैसला इस साल मई में हुआ, जो उचित नहीं है। अब निर्यात के लिए सब्सिडी देनी पड़ रही है। यही मौका है जब पवार सारे मुद्दे निपटा लेना चाहते हैं।

पवार की प्रमुख मांगें

1. राकांपा नेता तारिक अनवर को राज्यसभा में उपसभापति बनाया जाए

2. उन्हीं की पार्टी के जनार्दन वाघमारे को राज्यपाल बनाया जाए।

3. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चह्वाण को अपनी कार्यशैली बदलने को कहा जाए। आरोप है कि वह राकांपा नेताओं को भरोसे में लिए बगैर फैसले कर रहे हैं।

4. शरद पवार ने केंद्र में खाद्य मंत्रालय छोड़ दिया था, लेकिन उसके एवज में कोई भरपाई नहीं की गई।

5. प्रफुल्ल पटेल भी खुद को भारी उद्योग मंत्रालय दिए जाने से असंतुष्ट हैं।

6. सुरक्षा संबंधी मंत्रिमंडलीय समिति व नियुक्ति संबंधी मंत्रिमंडलीय समिति में शरद पवार को रखा जाए।


"You can chain me, you can torture me, you can even destroy this body, but you will never imprison my mind"





http://www.pvchr.net/2012/07/national-consultation-on-testimonial.html 

National Consultation
on
"Testimonial campaign contribute to eliminate impunity for perpetrators of torture in India"
 
"You can chain me, you can torture me, you can even destroy this body, but you will never imprison my mind"
Mahatma Gandhi
 
Peoples' Vigilance Committee on Human Rights (PVCHR) and National Alliance on Testimonial Therapy (NATT) in collaboration of Rehabilitation and Research Centre for Torture Victims (RCT)[i] and European Union[ii] project is holding a two days national consultation i.e. 12th – 13th July, 2012 in New Delhi on "Testimonial campaign contribute to eliminate impunity for perpetrators of torture in India".  12th July, 2012 at Magnolia hall, India Habitat Centre, Lodhi Road, New Delhi and on 13th July, 2012 at Indian Social Institute, 10, Institutional Area, Lodi Road, New Delhi.
 
12th July, 2012
PVCHR welcomed and honoured the Chief Guest Hon'ble Justice K. G. Balakrishnan, Chairperson National Human Rights Commission, Guest of Honour: Mr. Pavel Svitil, Chargé d'affaires, Delegation of the European Union to India and chair of inauguration session, Mr. Gautam Navlakha, Consultant Editor-Economic and Political Weekly (EPW). Mr. Sankar Sen, Ex- Director General, National Human Rights Commission, Dr D Roy Laifungbam, Chairperson, Human to Humane Transcultural Centre for Torture Victims (H2H) and Mr. Mathews Philip, Executive Director SICHREM with the traditional silk shawl.
Program started with the welcome speech and key note address by Lenin Raghuvanshi, Secretary General PVCHR.[iii] He welcomed the chief guest, guest of honor, key speaker and all delegates from Manipur, Assam, Karnataka, Chhattisgarh, Odisha, Jammu & Kashmir, Bihar, Uttar Pradesh, Jharkhand, West Bengal, Madhya Pradesh and New Delhi etc.
He said, "We are organising National Consultation "Testimonial Campaign contributes to eliminates impunity for perpetrator of Torture in India"  Challenging the impunity through breaking the silence is based on eliminating the fear, phobia, hopelessness and fragmentation of the survivors in empathetic safe and secure environment. Survivor's psycho – social and legally supported through Testimonial Therapy converted into human rights defender/barefoot worker based on concept of justice, democracy, non – violence and human dignity. We are aware that the fear and phobia due to torture and organized violence (TOV) is imparting culture of silence and testimonial therapy as a psycho -legal support to the survivor is breaking silence against impunity."
Nageshwar Patnaik, Vice –President PVCHR honoured Mohammad Aamir Khan with the Jan Mitra Award with 60000/- Rs (Sixty thousand Rupees only) as a financial support for his commitment and conviction based on rule of law, democracy and non-violence for protection of human life with dignity of individual.[iv] Mohammad Aamir Khan, who was released in January 2012 after 14 years of incarceration and was named as falsely implicated in 20 low-intensity bomb blasts which took place between December 1996 and October 1997 in Delhi, Rohtak, Sonepat and Ghaziabad.[v]
 
Hon'ble Justice K.G Balakrishnan, Chairperson NHRC as a chief guest addressed the conference "Parliament needs to pass the Bill urgently so that the culture of extracting information through torture is made illegal and the guilty are punished by law."
 
"Torture is a serious problem for India. Basic human rights are violated when torture is inflicted. It is not just physical pain, but mental which traumatises the individual and is an assault on his right to life," he said. India has also not ratified the UN convention against torture which asks states to declare torturing a criminal offence under its jurisdiction, he noted.
A multi-pronged approach from the training and education of security forces to a fair and impartial judicial system is required," said Balakrishnan. He also added 'Silence' is the biggest promoter of impunity. A well – informed, well guided public can make a big change in the existing scenario.
Dr. Lenin's organization is doing a tremendous task by holding testimonial ceremonies where-in testimonials are read out and survivors are facilitated. It boosts up the moral and confidence among them. This creates and atmosphere of understanding among the survivors of different kind of violence and between different communities. They keep them following up as per UN standards, until everything becomes normal. We need several such organizations to testimonial campaign to its logical end. Use of the all the possible means to raise the voice for justice, especially Information Technology has to be utilized to amplify the unheard voice of people.[vi]
Mr. Sankar Sen, former Director General of NHRC, said, "Stringent punishment for perpetrators of torture and adequate compensation for the victim must be done to check this growing culture of impunity,"
The need to give proper training to the police and sensitizing them about the rights of persons lodged in jail is urgent, he said adding investigating the case needs to be paramount which sadly is not the case. "Police devotes very less time in investigating the cases," he added.
Compensation and rehabilitation are also a neglected part in our justice system which must be high on the priority list of the government and security forces, Sen said.
Dr D Roy Laifungbam,[vii] Chairperson, Human to Humane Transcultural Centre for Torture Victims (H2H) said, "Torture survivors are recluses socially, and also tend to get neglectful, medically as a manifestation of the syndrome of post-traumatic stress disorder (PTSD). Convincing them to give their 'testimonies' demand that practitioners bring to light both the therapeutic significance as well as the legal necessities. They have to be convinced on how an effective mechanism to promptly investigate any allegation of torture demands them to speak up about the incident.
 
Giving testimonies also reveals why a survivor of torture deserves full rehabilitation to rebuild their life. 'Rehabilitation' has been this year's focus on the International Day in Support of Victims of Torture. It is every torture survivor's right and the Government should be accountable to make compensation an enforceable right.
 
Nowadays, many torture survivors have come to terms with their trauma through this method of intervention as they listen to and realize that they are not alone to have gone through this man made tragedy. An optimistic ground can also be created to make provisions for the survivors to speak up and in the long run raise a voice in unison against the perpetrators who revels in impunity. The message has to be loud and clear so as to break the silence against impunity. Every citizen of democratic and free India, as a fundamental right, seeks the immediate ratification of the Convention against Torture without any reservations and the ratification of the Optional Protocol to the Convention. India signed the treaty in 1997 without any reservation or declaration. It is a matter of national disgrace that 15 years since, the government has failed to adopt an appropriate Torture Prevention Bill that is fully compliant with the provisions of the UN treaty and international human rights law. Until accountable legislative and policy measures are adopted and enforced, victims of serious human rights violations have no full recourse towards redress for their sufferings in the continuing climate of impunity that prevails in India.
 
Testimonies contribute substantially towards a positive change but for the victims, accountability and justice, is a human right. But impunity also draws a much larger canvas, one that stretches the horizons of human rights issues. Impunity is a severe rot in the very roots of democracy, governance and the rule of law.
 
Impunity cannot exist without legal sanction and political patronage. The concept and development of the 'security sector' in India needs a very careful and holistic appraisal if we are to uproot impunity. The term is associated with different and often competing definitions, which include either a narrow or a broad set of actors. In the first instance, 'security sector' refers to only state organisation authorised to use force. In the broader definition, the United Nations Development Programme (UNDP) suggested in 2002 a definition which also includes justice and law enforcement institutions, civil management oversight bodies, non-statutory security forces and civil society groups.
 
Mr. Mathews Philip, Executive Director SICHREM[viii] said, "Probably the most important and effective step to combat this evil would be to increase transparency within the system where records, police stations and detention centres are open to scrutiny by members of the media, non-governmental organizations and other watch organizations. There must be a clear chain of command in the ranks of the police and each official must know that they would be held personally responsible for the treatment of the detainees under their supervision. Preventing any forms of incommunicado detention and improving detaining conditions must also be carried out. Female officers must be present when women are detained. Awareness programmes must be carried out to make known to officials that any form of torture or ill-treatment would not be tolerated and that matters relating to these would be strictly investigated. Legislation must be strengthened allowing for effective adjudicating and investigating bodies to look into matters of alleged torture and the punishments reserved for convicted individuals should be made stricter."
 
Addressing the meeting, Guest of Honour Mr. Pavel Svitil, Chargé d'affaires, European Union Delegation to India emphasized that the prevention and eradication of all forms of torture and ill-treatment worldwide represents one of the main objectives of the EU human rights policy. The EU Guidelines give the EU a wide range of instruments to raise the issue of torture and to reach EU objectives, most notably: through political dialogue, diplomatic representations and financial assistance under the European Instrument for Democracy and Human Rights. "We are hence raising the issue of torture systematically with our partner countries, and no individual country or group of countries is left out" he added Over the last 5 years, according to Mr. Svitil, an average of € 12 million (Rs. 85 crore) per year had been allocated, globally, by the European Instrument for Democracy and Human Rights to funding anti-torture projects. Between 2007-10, the EIDHR funded, indicatively, 80 projects around the world in the field of torture prevention and victim rehabilitation. For 2011-2013, the EIDHR allocated almost € 38 million (Rs. 270 crore) to support civil society organisations around the world to implement anti- torture actions (i. e. € 12.5 million, Rs. 88 crores per year).
 
In India, Mr Svitil informed the meeting, the EU provides support to NGOs for actions related to prevention of torture and rehabilitation of torture victims. Since 2006, it has committed more than € 2.6 million. (Rs.19 crore) to support a number of projects that have focused on prevention of torture through awareness-raising and advocacy; improving health and dignity of torture victims; and reducing the incidence of torture by police among certain communities.[ix]
Mr. Gautam Navlakha, Consultant Editor-Economic and Political Weekly while concluding the session pointed towards the three difficulties that face:
First problem, level of passage of prevention of torture bill itself which is actually stucked and not moving anywhere. It is before now the cabinet and cabinet has to take decision, whether modified and strengthen act which is what we asking for whether it will passed or won't be because there is lot of pressure coming from security apparatus, Home Ministry and Ministry of defence and other who believe any strengthening of act will impinge on India ability to handle conflict situation, insurgency and terrorism etc.
The other problem we faces in the light of supreme court in Pathribal judgment redefined "good faith" to mean that every security personnel would be presumed to be working in good faith and this can only be dislodged if there is cogent and cognisable evidence. This is catch 22 situation because even if there is prima facie evidence against security personnel without sanction from the government no prosecution can be effected. Reality is that government is chary of giving sanction.
Third Problem Societal level which Dr. Sanker Sen pointed out which is very important there is sanction and there is support from within the society for torture to take place. I will take 3 are challenges are force before us:
Rehabilitation and Justice for survivor of torture is not only compensation. In my view it is more important things in term of justice and the together with justice rehabilitation of victim what Dr. Roy & Mathews Philip pointed towards testimonial, said Dr Roy, would be unfair unless we can ensure their rehabilitation. In absence of it testimonials could reinforce trauma. It is very important in term of rehabilitation there are problem. It draw attention towards the fact that testimonial from the victim unless we are able to guarantee & help mere testimonial will now survive. I think it is a very – very important point that you must take rehabilitation of survivor is very important. All of us work in the civil and democratic rights organizations. We come across innumerable of cases and we still and get confronted by people and group who suffered or whose life have being destroyed.
I would like to thanks the organizers of this conference with focus attention on something which is actually being neglected in this country for very – very long time and torture seem to have come spurt only become part of our consciousness.   It is a high time we ended torture. Impunity where forces or officers feel that they are free.
Mr. John Dayal member of the National Integration Council (NIC) of India inaugurated Musahar documentary[x].
 
 
 
Mr. Musab Iqbal Chief Editor, Newzfirst chaired the first session  Breaking of silence and amplifying the voice of survivors in the era of Information technology  and the key speakers were Mustaq – Ul – Haq Ahmad Sikander, Independent Activist and Freelance Writer[xi] and Mr. Philip Mathew, Executive Director, SICHREM, Mr. Goldy George, Dalit Rights Activist.
The second session Discussion on Conflict Prone Area was chaired by Mr. K. S Subramanian the key speaker Montu Ahanthem Secretary Wide Angle, Mr. Tarun Kanti Bose, Independent journalist[xii], Prasenjit Biswas, Member Barak Human Rights Protection Committee, Shipra Devi, Managing Trustee, Nivedita Foundation and Mr. Roop Sen,  Sanjog, Mr. Manoj Jena,  Chairperson, Human Rights Front.
 
After Lunch Ms. Uma Chatterjee chaired the session where two member of management Committee Mr. Anup Kumar Srivastava shared about PVCHR - EU "Reducing Police Torture against Muslims at the Grass – root level by engaging and strengthening Human Rights Institutions in India.
Ms. Shirin Shabana Khan shared about PVCHR RCT project "promoting psycho – legal framework to reduce Torture and Organized Violence in India.
 
In the last session to know about Impact of testimonial therapy in the life of suvivors five survivors Harinath, Bhonu, Ram Kripal, Phool Chand, Kamlesh shared the changes in the life after being psychologically supported through testimonial therapy.  Mohd. Aamir Khan also shared his self-suffering and said "Implementation of our laws needs to be strict and the trial must be expedited". The delegates after hearing the self-suffering hold tears in their eyes.
 
 
 
 
 
 
 
On 13th July, 2012
Mr. Nageshwar Patnaik, Vice President PVCHR chaired the session Future planning for making testimonial movement in India: Consolidation of National Alliance on Testimonial Therapy in India and key speaker were Mr. Philip Mathew, Executive Director, SICHREM, Ms. Uma Chatterjee, Director, Sanjog, Dr. Lenin Raghuvanshi, Executive Director, PVCHR, Prasenjit Biswas, Member Barak Human Rights Protection Committee, Mr. Santosh and Dr. Syed  Mahar  - Ul -  Hasan, Director/General Secretary, United Reformers Organization Bhopal[xiii]
 
The future planning as follows:
1)   A strong group of well trained human rights defenders from marginalized Communities  documenting cases of torture and other forms of human rights violations;   
2)   Civil society groups engage the elected representatives  in pre legislative  right based debate from the panchayat level on the 'State of marginalized community';
3)   Human rights institutions effectively intervene on the complaints of human rights violation by the state and non state actors and provide directions for delivery of justice, adequate compensation and rehabilitation ;
4)   Effective media engagement results in establishment of a strong civil society network that challenges the present development paradigm and social discrimination which are the main cause of massive human rights violation.
5)   Model anti Torture and organized violence Village creation and Survivors empowered to be Defenders
Mr. Goldy George highlighted to bring the politics of survivors for strengthening the local processes against torture and organized violence. He emphasized on breaking of silence and resilience of survivors through inculcating empowerment processes. After in depth deliberation we chalked out follows value for NATT:
·       To promote & strengthen "Politics of survivor" through psychosocial support to survivors & amplify the voice of voiceless.
·       To promote & strengthen the diverse independent processes against torture and organized violence based on rule of law, justice, democracy and non – violence.
·       NATT is platform for sharing and learining and solidarity for survivors movement against TOV, not for funding.
 
Core team of NATT formed:
 
SICHREM from Karnataka, PVCHR from Uttar Pradesh, BHRPC from Assam, DASHRA from Bihar, Mr. Goldy George from Chattisgarh, Mustaq Ahmad Sikander from Jammu & Kashmir, Ms. Afsana Sayed from Jammu & Kashmir and Wide Angle from Manipur.
 
The program ended with vote of thanks given by MS. Shruti Nagvanshi, Managing Trustee, PVCHR/JMN
News in Media:


[i] www.rct.dk PVCHR – RCT project "Promoting psycho-legal framework to reduce torture and organized violence.
[ii] http://eeas.europa.eu/india/index_en.htm PVCHR - EU project " Reducing police torture against Muslim at the grass- root level by engaging & strengthening human rights in India.
--
 
 
 
Hatred does not cease by hatred, but only by love; this is the eternal rule.
--The Buddha
 
"We are what we think. With our thoughts we make our world." - Buddha
 
 
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Urgent Action Alert: Rising Waters in Wang-Marathwadi




URGENT ACTION ALERT
Water above Waist – level in Wang  Marathwadi
Fax Now to CM, Dy. CM and Rehab Minister of Maharashtra 
Friends,
You all must have been following the updates from Satara on the struggle by the Wang Marathwadi dam-affected villagers. As in the case of numerous dam-projects, even here, most of the project oustees are yet to be rehabilitated suitably with alternative land and livelihood. Out of not less than 1700 affected families, barely 30% have received some form of rehabilitation and the rest are still having to struggle for their rights.  
Responding to the people's demands and dialogue at the Mantralaya with the Rehabilitation Minister, Mr. Patang Rao Kadam and the District Collector, Satara in May, 2012, it was committed that good agricultural lands would be shown to the oustees at Sangli. However, they were only shown uncultivable lands, that were unacceptable to the PAFs.
After constant agitation in the standing waters and negotiations, the district administration agreed not to close two gates this monsoon. However, with the constant rains and rising waters, people are compelled to continue with their Jal Satyagraha. If the State does not intervene immediately, it will prove to be a watery grave for hundreds of oustee families.  
Even as we write to you, hundreds of women, men and children, even elderly persons are standing in waist-deep water, facing the rising reservoir, continuing their Jal Satyagraha and challenging the cruel inaction of the state government in responding to the legitimate demands of the displaced families.
Please do respond to this crisis call of the affected villagers, striving to save their farms, families and village-communities.  
Immediately call and fax:
Shri Prithviraj Chavan, Chief Minister
Fax: +91-22-22029214
Shri R.R. Patil, Home Minister
Fax: 91 22 22027174 / 22 22029742
 
For details and update call: Suniti S.R. 09423571784 / Madhuresh 9818905316
 Urgent Action: Official Letters preventing reservoir-filling and directing prior rehabilitation
Sl. No.
Date of Letter
From
To
Content of Letter
1.       
29/11/2011
Rajesh Narvekar, Deputy Secretary, Revenue and Forest Dept.
Dr. N. Ramaswamy, Collector, Satara
Direction to expedite and complete the rehabilitation of the Wang – Marathwadi project affected families, prior to any further work on the dam and submit a compliance report to the state government
2.       
17/3/2011
Dy. District Officer (Rehabilitation), Satara
Executive Engineer (EE), Minor Irrigation projects, Satara
In pursuance with the policy decision of the Govt. Of Maharashtra dated 14-9-2004 of "Rehabilitation First, Dam Next",  filling of any dam reservoir requires prior sanction of the District Collector. The Rehabilitation Officer warned the EE that if the oustees face any problem due to reservoir filling, he would have to take entire responsibility for the same.
3.       
3/12/2011
Rajesh Narvekar, Deputy Secretary, Revenue and Forest Dept.
Dr. N. Ramaswamy, Collector, Satara
Direction to the Collector to submit an immediate Action Taken Report on the ministerial decision to withdraw the false cases slapped against the oustees and activists of the Wang Marathwadi Displaced persons affected organization.
--
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