बाबा एक सौ बीस का पान
चंडीगढ़ में इंडियन एक्सप्रेस ऐसी जगह…..जहां करने को बहुत सारे काम…….मसलन अगर खबरों से जी उचट रहा हो तो लोहा पीट सकते हैं…..बनियाइन सिल सकते हैं…..टीन की चादरों पे टांका लगा सकते हैं……सीधे भट्ठी में मुंह डाल कर बीड़ी सुलगा सकते हैं…..गाली-गलौज कर सकते हैं……डंडे चला सकते हैं…..माल ढोने वाला रिक्शा खींच सकते हैं….रेहड़ी ठेल सकते हैं….ऐसे न जाने कितने काम……पूरा इलाका किसी मिल के बहुत बड़े अहाते जैसा….जो अलग-अलग सेक्टर में बांट दिया गया हो….गंध भी वैसी ही….चलते-फिरते इन्सान भी वैसे ही…..सड़कें टूटी-फूटी…..शानदार कारों वाले शहर के इस इलाके में साइकिलों की भरमार…..
वो पुरानी इमारत……अब तक…सिगरेट का सुट्टा लगाने वालों की…..वो भी मात्र दो-चार…..थोड़े से स्कूटर वालों की…..धीमे-धीमे बात करने वालों की……किसी बात पर मुस्कुरा देने या दांत चमका भर देने वालों की…..चूं-चूं-चीं-चीं करने वाली युवतियों का आफिस हुआ करती थी…….जनसत्ता वालों के घुसते ही बचाओ बचाओ की गुहार मचाने लगी…..सीढ़ियों की दीवारें पान की पीक से रंगने गयीं…..एडिटोरियल हॉल चीख-चिल्लाहट से गूंजने लगा……एक ही हॉल में…….कभी जिसके क्लब जैसे माहौल में खबरें ऐसे बनती थीं जैसे ब्रिज की बाजी लगी हो……उसी में अब हॉकी…फुटबॉल….क्रिकेट…..सब खेला जाने लगा….कुल मिला कर उस भूतिया महल को हम प्रेतों ने गुलजार कर दिया…..नीचे की सुनसान सड़क अंधेरा होने तक भरी भरी रहने लगी…..चार-पांच पान के खोखे कतार में…….दो चाय वाले……एक जगह जलेबियां और समोसों की खुश्बू भी…..
प्रबंधन ने अपनी तरफ से तो पान की पीकों का अगले ही दिन इलाज कर दिया……20 जगह मिट्टी भरे डिब्बे….लेकिन धुआंधार पीकों ने पानी फेर दिया..बेकार की खबरों के तारों का कनस्तर अपना पीकदान….मजबूरन प्रबंधन ने भी मुंह फेर लिया…हां, सीढ़ियां बच गयीं…….एक कैंटीन भी खुल गयी…..
लेकिन उन खोखों के पान अपने लिये लाचारी के सिवा कुछ न थे….जैसे रंगी घास कचरी जा रही हो….कटारी मार्का चूने ने मुंह में कई जगह जख्म बना दिये……बिहारियों और पूर्वी उत्तरप्रदेशियों का तो काम हथेली मसलने से चल जाता था…दो बार फटका मारा और खैनी मुंह में…..दो घंटे की छुट्टी…..लेकिन यह लखनवी क्या करे…..अभियान चला कर मकान और पान की तलाश शुरू……
सेक्टर-30 की होटलनुमा अग्रसेन धर्मशाला में दो महीने मस्ती भरे ….शादियों के समय हम पांच-सात लोगों को भोजन की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं…मैनेजर पूरब का….इसिलये पकवानों की कई प्लेटें हमारे कमरों में……गृहस्थी जमाने के चक्कर में एक दिन हम चार जन दफ्तर से जीप मंगा कर एक पुराने चंडीगढ़िया के पड़ौस में उसी के बताये मकान में घुसे तो मकानमालिक ने इतने लोगों को देख एडवांस में लिया किराया वापस कर दिया……उतारा गया सामान फिर जीप पर….. वापस अग्रसेन में…….लेकिन पान का क्या हो….वही खोखों पर गुजारा…
एक सुबह पत्नी मय बच्चों और अपनी सास के चंडीगढ़ में हाजिर…..अग्रसेन जिंदाबाद……दोपहर को सेक्टर-21 में एक बंगले के पिछवाड़े रह रहा गंगानगरी भूपेंद्र नागपाल सीधे गंगानगर से आ धमका और मेरी गैरमौजदूगी में सबको अपने यहां उठा ले गया……..शाम को आफिस में अपना कारनामा बता कर बोला….आप भी वहीं चलोगे मेरे साथ….उसकी रिहायश की जगह कमाल की …..चारों तरफ शानदार छोटे -छोटे बंगले…..प्यारी सी कमनीय सड़क…..कुछ सोच में डूबी हुई सी……पेड़ों के कई कई झुरमुट……हरियाली का अम्बार….गेट के अंदर घुसते ही लॉन….बीच में बंगला….पीछे दो कमरे का आउट हाउस……सब उसमें समा गये…किचन भी…..तो सुबह वो भी महक उठी……कहीं पेड़ आम टपका रहे…..तो कहीं शहतूत…..दो पेड़ लोकाट के भी……हंसता-खेलता खिलखिलाता नजर आने लगा परिवार……
मकानमालिक रिटयर्ड कर्नल फलाने सिंह जब एक दिन दिल्ली से पधारे तो सिर पकड़ के बैठ गये…क्योंकि सारे पेड़ों के फल चूमने-चूमने लायक रह गये थे….भला आदमी खामोशी साध गया अपने किरायेदार के मेहमानों की हरकत पर….
सेक्टर 20 बगल में लगा था…तो वहां दिख गयी वो दुकान…जिसकी तलाश में मारा मारा फिर रहा था ..जितनी हैंडसम दुकान उससे ज्यादा स्मार्ट वो नौजवान दुकानदार…कि अगर टाई बांध कर ब्रीफकेस थाम ले तो आज का एमबीए लगे…यह चकाचक देख घबराहट भी हुई… धड़कते दिल से बतियाया तो भला लगा वो……पान और भी लाजवाब…जी खुश हो गया….पांच पान एक साथ बंधवाए….सुपारी और बाबा एक सौ बीस अलग से भी पुड़िया में….सब माल शानदार पैक में….अब तो उसके यहां दो-तीन चक्कर रोज के…….किसी की भी दुकान पर होता तो देख कर लपकता….
एक महीना 22 सेक्टर में गुजारा….कुछ महीने बाद परिवार समेत 20 में ही बस गया….. अब तो घर से न जाने कितने चक्कर उस दुकान के……कई घरेलू काम उसके जिम्मे…..बिजली वाले से लेकर गैस का सिलेंडर तक…..घर में कोई फंक्शन हो तो सारा इंतजाम भी उसी के सिर……बच्चों से भी उतना ही लगाव …..उससे मिलने के बाद ही आफिस के लिये बस पकड़ता……कोई वाहन मिल जाता तो रात को आठ बजे आफिस से निकल उसके यहां……इस दोस्ती के दो साल बड़े आराम के रहे…….
एक मई को प्रभाष जी चंडीगढ़ जरूर आते और किसी होटल में जनसत्ता वालों को बढ़िया भोजन कराते…लेकिन उस बार दो महीने बाद आए…….दोपहर का प्रोग्राम…….उसके यहां से पान खा और बंधवा कर उस जलसे में शामिल….शाम को सीधे आफिस….रात दो बजे वापसी…..
अगले दिन पंडिताइन का बृहस्पतिवार का व्रत……दही लाने को बोला…..साथ में कुछ और भी….पान को मन मचल ही रहा था….निकल लिया…….देखा तो वो छोटा सा मार्केट बंद…..कुछ समझ में नहीं आया…..बगल के मार्केट से दही ली….और सामान लिया …..फिर उसकी बंद दुकान के सामने….कोई जाना-पहचाना दिख गया….बाजार बंद क्यों है…..आपको नहीं पता….क्या नहीं पता…..कल शाम दर्शन गुजर गया…..नई मारुति में पत्नी-बच्चे को बैठा कर होशियारपुर जा रहा था—रास्ते में पंजाब रोडवेज की बस ने टक्कर मार दी…. वहीं खत्म हो गया…..बेहोश पत्नी को अस्पताल लाए…..उसको पता चला तो वो भी…..बच्चा बच गया है…….
सब सुनाई पड़ रहा…..साथ ही जैसे कोई फिल्म चल रही हो…..दर्शन पान लगा रहा…हंसते हुए कह रहा…आपका पान बहुत मंहगा पड़ता है मुझे…..लेकिन आपको खिलाने में जो मजा आता है ….तो सब भूल जाता हूं……
एक हाथ में दही…दूसरा भी घिरा हुआ….घर लौटते वक्त उस तीन फर्लांग के रास्ते में बहते आंसू पोंछने का कोई साधन नहीं……कोई शर्म भी नहीं आ रही थी पता नहीं क्यों…..कम आवाजाही….फिर भी कोई न कोई रुक कर देखता जरूर…..घर की सीढ़ियां खत्म होते ही कोई नियंत्रण नहीं रह गया था……आंसू भी फूट-फूट कर निकल रहे……पूर्णिमा परेशान…..क्या बताता कि कौन चला गया…..
कई दिन तक जब तब आंखें भर आतीं…….उसकी दुकान के सामने सड़क पार बस स्टेंड….रैंलिंग पर बैठ जाता और उस बंद दुकान के अंदर तक नजरें चली जातीं…..उसकी गोद में मेरा छोटा बेटा और वो उसके मुंह में टॉफी डाल रहा है…..रोज ऐसा ही सबकुछ….बंद दुकान तकलीफ बढ़ाती जा रही….लेकिन उस जगह बैठना बंद नहीं किया…..डेढ़ महीने बाद देखा कि दुकान खुली हुई है….अंदर कोई और…पूछा…..मैं मामा लगता हूं जी दर्शन का….उस दिन दो जोड़ा आंखें गीली हुईं……लेकिन दुकान के खुल गये पटों ने राहत तो पहुंचायी ही ……..
No comments:
Post a Comment