Pages

Free counters!
FollowLike Share It

Wednesday, 15 February 2012

इस पलायन को तो रोको ! लेखक : नैनीताल समाचार :: अंक: 12 || 01 फरवरी से 14 फरवरी 2011:: वर्ष :: 34 :February 8, 2011 पर प्रकाशित शिवेन्द्र सिंह बोरा


इस पलायन को तो रोको !

लेखक : नैनीताल समाचार :: अंक: 12 || 01 फरवरी से 14 फरवरी 2011:: वर्ष :: 34 : February 8, 2011  पर प्रकाशित
शिवेन्द्र सिंह बोरा


इस बार जब गाँव गया तो देखा कि हरदा के घर पर ताला लटका है। घर आकर पत्नी से पूछा तो मालूम पड़ा कि हरदा के बड़े लड़के ने भी दिल्ली में ही मकान बना लिया है और माँ को साथ ले गया है। अब क्यों आयेगा पहाड़ ? छोटे दोनों लड़कों ने पहले ही अपने परिवार वहीं रखे हैं। बड़ा लड़का ही गाँव आता-जाता था और अपनी माँ का ख्याल रखता था। अब हरदा की पत्नी भी बड़े लड़के के साथ दिल्ली चली गयी है। गाँव में एक और घर पर ताला लग गया। दो-चार साल बाद बूढ़ी माँ के गुजर जाने के बाद हरदा के बच्चे भी पहाड़ की जमीन-जायदाद बेच कर हमेशा के लिये इस देवभूमि को अलविदा कह देंगे।
उत्तराखण्ड में हर गाँव की यही स्थिति है। क्या यह पलायन रुक नहीं सकता ? आज की युवा पीढ़ी अपने सोच को बदल नहीं सकती ? आखिर बाहर से लोग आकर देवभूमि में रोजगार कर ही रहे हैं। धीरे-धीरे इनकी संख्या भी बढ़ ही रही है। ऐसा रहा तो उत्तराखंड का मूल निवासी ही यहाँ अल्पसंख्यक बन जायेगा।
बाहर से लोग आकर सरकारी व प्राइवेट कम्पनियों में, व्यापार में, यहाँ तक कि शादियों के साज-बाज, मकानों में कारीगरी या सामान्य मजदूरी…..हर क्षेत्र में काम कर रहे हैं। यहाँ के लोग बाहर जा रहे हैं। उनके बच्चों की क्या संस्कृति होगी ? वे देवभूमि के रीति- रिवाज, बोलचाल, खानपान को क्या जान पायेंगे ? दूसरी ओर, बाहर से आने वाले लोग यहाँ जमीनें खरीद रहे हैं। राशन कार्ड, फोटो पहचान पत्र बना रहे हैं। स्थानीय नेता उनका वोट बैंक बना रहे हैं। इनके रहन-सहन, खान-पान का असर उत्तराखंड के गाँवों में नजर आने लगा है।
क्या यही है शहीदों के सपनों का उत्तराखण्ड ?
Share

संबंधित लेख....



No comments:

Post a Comment