मुम्बई 2003 विस्फोट कांड : उच्च न्यायालय ने लश्कर के तीन सदस्यों की मौत की सजा बरकरार रखी
मम्बई, 10 फरवरी (एजेंसी) मुम्बई में 2003 में हुए दोहरे बम विस्फोट मामले में बम्बई उच्च न्यायालय ने आज लश्कर ए तैयबा के तीन सदस्यों को सुनाई गई मौत की सजा को बरकरार रखा। इस मामले में पोटा अदालत ने एक महिला समेत तीन लोगों को मौत की सजा सुनाई थी।
उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति पी डी कोडे की खंडपीठ ने अशरत अंसारी :32 वर्ष:, हनीफ सैयद अनीस :46 वर्ष: और उसकी पत्नी फहमिदा सैयद :43 वर्ष: को सुनाई गई मौत की सजा की पुष्टि कर दी लेकिन निचली अदालत के उस आदेश को आंशिक रूप से खारिज कर दिया जिसमें पोटा समीक्षा समिति की रिपोर्ट के आधार पर दो अन्य आरोपियों को बरी कर दिया गया था।
उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति पी डी कोडे की खंडपीठ ने अशरत अंसारी :32 वर्ष:, हनीफ सैयद अनीस :46 वर्ष: और उसकी पत्नी फहमिदा सैयद :43 वर्ष: को सुनाई गई मौत की सजा की पुष्टि कर दी लेकिन निचली अदालत के उस आदेश को आंशिक रूप से खारिज कर दिया जिसमें पोटा समीक्षा समिति की रिपोर्ट के आधार पर दो अन्य आरोपियों को बरी कर दिया गया था।
उच्च न्यायालय ने आतंक फैलाने, आपराधिक साजिश रचने और हत्या के आरोपों के आधार पर तीनों को सुनाई गई मौत की सजा को बरकरार रखा।
मोहम्मद अंसारी लड्डूवाला और मोहम्मद हसन बैटरीवाला को अब सुनवाई का सामना करना पड़ेगा लेकिन उनके खिलाफ आईपीसी की धाराओं के तहत लगाये गए आरोपों में सुनवाई होगी, पोटा के तहत नहीं। अदालत ने इन्हें निचली अदालत के समक्ष चार सप्ताह में उपस्थित होने को कहा, ताकि सुनवाई शुरू की जा सके।
पीठ ने हालांकि सजा आठ माह तक स्थगित रखी है ताकि दोषी करार दिये गए लोग उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकें।
उच्च न्यायालय ने पिछले वर्ष 11 नवंबर को इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा था।
मोहम्मद अंसारी लड्डूवाला और मोहम्मद हसन बैटरीवाला को अब सुनवाई का सामना करना पड़ेगा लेकिन उनके खिलाफ आईपीसी की धाराओं के तहत लगाये गए आरोपों में सुनवाई होगी, पोटा के तहत नहीं। अदालत ने इन्हें निचली अदालत के समक्ष चार सप्ताह में उपस्थित होने को कहा, ताकि सुनवाई शुरू की जा सके।
पीठ ने हालांकि सजा आठ माह तक स्थगित रखी है ताकि दोषी करार दिये गए लोग उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकें।
उच्च न्यायालय ने पिछले वर्ष 11 नवंबर को इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा था।
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