महज 25 सालों में बदल गयी अखबारों की दुनिया!
18 FEBRUARY 2012 NO COMMENT
♦ बिपेंद्र कुमार
लखनऊ ब्वॉय पर मेरी एक पोस्ट को मोहल्ला लाइव पर डालते हुए अविनाश जी ने शीर्षक दिया है, वे सच्चे थे! आज के संपादकों की तरह कच्चे, बच्चे नहीं थे। शीर्षक देखकर मुझे हिंदुस्तान (पटना) के अपने पहले स्थानीय संपादक (1986-89) हरिनारायण निगम की याद आ गयी। निगम साहब पटना के बाद हिंदुस्तान (दिल्ली) के प्रधान संपादक भी बने थे। लेकिन याद नहीं कि पटना में अपने पूरे कार्यकाल के दौरान उन्होंने कभी किसी मंत्री, विधायक या अधिकारी को कोई तव्वजो दिया। बस यह कह कर पल्ला झाड़ लेते थे, ‘भई प्रिंटलाइन में मेरा नाम जरूर छपता है, लेकिन अखबार निकालने से वास्तविक तौर पर मेरा कोई नाता नहीं होता। अखबार तो संबंधित पेज के प्रभारी लोग निकालते हैं। खबर संवाददाता देता है। मैं तो सिर्फ उनके किये कामों को देखता हूं।’
उनके समय में संपादकीय विभाग की जो स्वतंत्रता और गरिमा देखी, वह अब इतिहास की वस्तु बन चुकी है। जबकि उनके संपादकत्व में ही हिंदुस्तान पटना में नवभारत टाइम्स को पछाड़ कर नंबर एक बन गया था। लेकिन अखबार के बाहर की दुनिया से उनका बस इतना भर रिश्ता था कि वे कनिष्ठ सहयोगियों के साथ दफ्तर के बाहर फुटपाथ पर लगे किसी भूंजे की दुकान पर भूंजा खाने या मौर्यालोक में मैगजीन की दुकान पर पत्र-पत्रिका देखने चले जाते थे। जब पटना से दिल्ली प्रधान संपादक बनकर जाने लगे, तो दो-तीन ब्रीफकेस में उनका सारा सामान अंट गया।
इसके पहले 1982 में मेरी मुलाकात जयकांत मिश्र से हुई थी। बिहार के सबसे बड़े अखबार आर्यावर्त के संपादक पद से रिटायर होने के बाद उन्होंने एक छोटा सा प्रिंटिंग प्रेस खोला था। उसी प्रेस में मेरा अखबार हरपक्ष छपता था। जबकि वे जिस वक्त आर्यावर्त के संपादक रहे थे, उस वक्त बिहार में अखबार का मतलब आर्यावर्त होता था। ठीक उसी तरह, जिस तरह आम बोलचाल की भाषा में हर डिटरजेंट पाउडर को सर्फ या वनस्पति को डालडा कहते हैं। जयकांत जी ने प्रूफ रीडर से काम शुरू किया था। ऑल इंडिया न्यूजपेपर्स एडीटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रह चुके थे। इतने बड़े संपादक को रिटायर करने के बाद छोटा सा प्रेस खोलने की बात या पुरानी घटनाओं के साथ-साथ कभी-कभी एक-एक शब्द के बारे में घंटों तक उनके द्वारा बताये जाने की बात याद करता हूं तो लगता है जमाना कहां से कहां पहुंच गया।
मात्र 25 वर्ष के अंदर पत्रकारिता की दुनिया कितनी बदल गयी!
(बिपेंद्र कुमार। वरिष्ठ पत्रकार। 16 साल की उम्र में मासिक पत्रिका ‘युवा चिंतन’ निकाला। फिर साप्ताहिक ‘हरपक्ष’ का प्रकाशन शुरू किया, जो पहले पाक्षिक और
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