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Saturday 18 February 2012

पौड़ी जिले पर दोहरी मार


पौड़ी जिले पर दोहरी मार

लेखक : अरविंद मुद्गल :: अंक: 11 || 15 जनवरी से 31 जनवरी 2012:: वर्ष :: 35 : February 1, 2012  पर प्रकाशित
Uttarakhand-Assembly-poll-2012नये परिसीमन से पौड़ी जिले को दोहरी मार पडी। दो सीटों के नुकसान के साथ विधानसभा में प्रतिनिधित्व कम हुआ तो बरसों से इस पहाड़ क्षेत्र के बलबूते राजनीति कर रहे कुछ दिग्गजों का मैदानी इलाकों को पलायन भी हुआ। परिसीमन से बदले समीकरण इन्हें रास नहीं आये और अपने घर-द्वार को छोड़ कहीं बाहर अपना राजनीतिक धरातल तलाशना उन्होंने बेहतर समझा।
धूमाकोट विधानसभा का अस्तित्व समाप्त होने से सीएम भुवन चंद्र खंडूडी को कोटद्वार का रुख करना पड़ा। शुरूआत में सिटिंग एमएलए शैलेंद्र रावत और उनके सर्मथकों ने इसका विरोध भी किया। दो मर्तबा लगातार बीरोंखाल से जीत दर्ज कर चुकी कांग्रेस की अमृता रावत ने अपना क्षेत्र समाप्त होते ही रामनगर को अपनी जीत की हैट्रिक के लिये महफूज समझा और चौबट्टाखाल, जिसमें उनकी विधानसभा का अधिकांश हिस्सा जुड़ा है, को राहुल ब्रिगेड के युवा राजपाल बिष्ट के लिये छोड़ दिया। निशंक की थलीसैंण विधानसभा भी नहीं रही और वे डोईवाला चल दिये। इधर हरक सिंह अपनी लैंसडाउन सीट छोड कर अपने ही साढ़ू मातबर सिंह कंडारी के खिलाफ भाजपा के गढ़ कहे जाने वाले रुद्रप्रयाग में आज अपनी ही पार्टी के प्रभुत्वशाली बागियो से घिरे नजर आ रहे है। पौड़ी सीट रिजर्व होते ही भाजपा के तीरथ सिंह रावत और पौड़ी के निर्दलीय विधायक यशपाल बेनाम ने चौबट्टाखाल को अपने राजनीतिक विस्थापन के लिये चुना।
विधानसभाओं के साथ-साथ प्रत्याशियों के चेहरे भी बदले, लेकिन जिले में विकास की तस्वीर नहीं बदली। कुली बेगार आन्दोलन से लेकर उत्तराखण्ड राज्य आंदोलन तक मुख्य भूमिका निभाने वाले पौड़ी नगर को भरोसा था कि उत्तराखण्ड के वजूद में आने के बाद इसकी तस्वीर जरूर बदलेगी। अपने ही शहर के दो-दो सपूतों के प्रदेश की बागडोर संभालने के बावजूद जिले के अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं की आज भी कमी है। पीने के पानी के लिये मीलों चलने पर मजबूर ग्रामीण पिछले 12 सालों से प्रस्तावित कई पेयजल योजनाओं का आज भी इंतजार कर रहे हैं। अधिकांश ने पलायन कर, इस इंतजार को खुद ही समाप्त कर दिया। सरकारी स्कूलों में शिक्षा का निम्न स्तर, पानी की कमी और जंगली जीवों के कारण घाटे का सौदा बनी खेती का छूटना और डाक्टरों की कमी से जूझती स्वास्थ्य सेवाएँ भी पलायन का कारण बनीं। राजनीतिक दलों का विकास के मुददे पर कुछ और ही तर्क है। उनका मानना है कि पौड़ी की उपेक्षा नहीं की गई, बल्कि पौड़ीवासियों को अपेक्षायें ही बहुत ज्यादा थीं। बहरहाल, अभी तो वोट की तलाश में प्रत्याशी गाँव-गाँव की धूल छान रहे हैं।

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