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Sunday 12 February 2012

जटिल हो गई अनधिकृत कालोनियों को नियमित करने की प्रक्रिया



जटिल हो गई अनधिकृत कालोनियों को नियमित करने की प्रक्रिया


Saturday, 11 February 2012 10:38
मनोज मिश्र नई दिल्ली, 11 फरवरी। फर्जी अनधिकृत कालोनी का मुद्दा उठने के बाद बाकी अनधिकृत कालोनियों को नियमित करने की प्रक्रिया जटिल होने लगी है। फर्जी कालोनी के मुद्दे पर दिल्ली सरकार को 21 फरवरी को लोकायुक्त के यहां जवाब देना है। पूर्व विधायक रामवीर सिंह विधूड़ी आदि की याचिका पर लोकायुक्त जस्टिस मनमोहन सरीन ने दिल्ली सरकार को जबाव तलब किया है। अगली सुनवाई एक मार्च को होनी है। दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने अपने जवाब में इन कालोनियों के वजूद को ही नकारा है जबकि दिल्ली सरकार के राजस्व सचिव और मंडल आयुक्त विजय देव ने अपनी रिपोर्ट में इन्हें भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा बताया है। बावजूद इसके भूमाफिया, नेता और अधिकारियों के गठबंधन ने दिल्ली में अनधिकृत कालोनियों का जंगल बसा दिया है। जितनी बार उन्हें नियमित करने की कोशिश हुई है उतने ही बार उनकी संख्या बढ़ती गई।
अनधिकृत कालोनी के कारोबार ने दिल्ली के अस्सी फीसद नेताओं को अरबपति बना दिया है बल्कि इस कारोबार में भू माफिया और नेता की भूमिका की दीवार ही खत्म कर दी है। ज्यादातर सांसद, विधायक या निगम पार्षद या तो खुद जमीन का कारोबार करते हैं या वे भूमाफिया के संरक्षण कर्ता बने हुए हैं। गिनती के नेता इससे अछूते हैं लेकिन उनकी आवाज दबा दी जाती है या वे पैसे की राजनीति में अलग थलग होकर घर बैठा दिए जाते हैं। अनधिकृत कालोनी के साथ अनधिकृत निर्माण अगर जुड़ जाए तब तो दिल्ली का गलती से कुछ इलाका इससे अछूता रह पाया है। बाहरी दिल्ली के कुछ इलाकों में अभी खेती हो रही है दूसरे शब्दों में कहें तो अब बाहरी दिल्ली में ही अनधिकृत कालोनी बसाने की संभावना है इसीलिए सबसे अधिक मारामारी वहीं दक्षिणी और उत्तरी क्षेत्रों में हो रही है। पूर्वी दिल्ली में अब ज्यादा संभावना नहीं है।
सरकारी गैर सरकारी जहां खाली जमीन दिखी उसी पर कालोनी बसा दी। यह भी अपने आप में कम गड़बड़ी है। बिना बसे कालोनी को अनधिकृत की सूची में शामिल करवा ली। असल में कालोनी में रहने वाले और उसे बसाने वाले की रूचि कालोनी को नियमित करवाने से अधिक उसे स्वीकृत होने वाली कालोनी की सूची में शामिल करवाने की है। नियमित होने में कालोनी वासियों को न्यूनतम शुल्क देना होगा। इतना ही नहीं अगर कालोनी सरकारी जमीन पर बनी है तो उसे जुर्माना भी देना होगा। भू माफिया जब नेताओं से गठजोड़ करके जनहित के नाम पर अनधिकृत कालोनी में विकास कार्य करवा लेता है तब उसे नियमित के फेरे में क्यों डाला जाए। इसलिए जिस तरह सूची बनती, बढ़ती और उस पर बयान होती है उससे तो यही लगता है कि यह नूरा कुश्ती है केवल दिखावा के लिए आंदोलन किया जाता है।
इतना तक फर्जीवाड़ा तो एक तरह से स्वीकृत ही हो चुका है असली फर्जीवाड़ा ने इस धंधे के जड़ में मट्ठा डालने का काम किया है। जिस जमीन का जिस माफिया ने मुआवजा ले लिया है जो जमीन आज भी डीडीए और दूसरी सरकारी एजंसियों के कब्जे में है उस पर बस्ती दिखाकर सितंबर 2008 में उसे प्रोविजनल सर्टीफिकेट दिलवा दिया गया। अरबों का घोटाला करने वाले इतने निश्चिंत थे कि उसके बाद भी उस पर आबादी नहीं बसाई अन्यथा जनहित के नाम पर उस विरोध को भी दबा दिया जाता। कहा जाता है कि वे तीनों फर्जी कालोनियां दक्षिणी दिल्ली के महंगे इलाके में थी इसलिए मोटी आमदनी की उम्मीद में निश्चिंत होकर भूमाफिया अपना कारोबार करता रहा। इतना ही नहीं इस काम को अंजाम देने के उत्साह में महारानी बाग और न्यू फ्रेंड्स कालोनी के बगल में टोल ब्रिज की जमीन पर एडवांस लेना शुरू कर दिया।
यह घोटाला इतना बड़ा है कि सरकार के भी हाथ पांव फूलने लगे। विरोध कम करने के लिए मुख्यमंत्री ने शहरी विकास विभाग राजकुमार चौहान से लेकर डा. अशोक कुमार वालिया को दिया। राजस्व सचिव विजय देव ने अपनी रिपोर्ट में इस घोटाले के लिए उन सभी शब्दों का इस्तेमाल किया है जो सभ्य भाषा में किसी भ्रष्टाचार के लिए की जा सकती है। शहरी विकास विभाग ने दूसरे विभाग के वरिष्ठ अधिकारी की रिपोर्ट को रद्द करने के बजाए प्रोविजनल सर्टीफिकेट का नया मायने उन्हें समझाया है। सरकार इसलिए खुलकर नहीं बोल रही है क्योंकि विजय देव ने मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल के कहने पर जांच की और उसी समय जो डीडीए ने लोकायुक्त को जवाब भेजा उसकी भाषा भी ऐसी थी। इससे लगता है कि लोकायुक्त को भी जवाब में भी सरकार लीपापोती ही करने वाली है।
शहरी विकास मंत्री डा. अशोक वालिया भले ही नियमानुसार अनधिकृत कालोनी नियमित करने की बात कह रहे हैं लेकिन इस विवाद के बाद इस कदर नियम कानून लागू किए जाएंगे कि यह प्रक्रिया फिर लटक जाएगी। वैसे कालोनी बसाने वाले भी वास्तव में यही चाहते हैं कि नई लिस्ट 1639 से बढ़कर दो हजार की हो जाए तब तक इतनी और कालोनी वे जुड़वा लें। जो पिछले 40 साल से होता रहा है।


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