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Monday 13 February 2012

विदेशी पूंजी पर निर्भर बैंकों की हालत खस्ता



विदेशी पूंजी पर निर्भर बैंकों की हालत खस्ता

आवास ऋण पर दिए गए ब्याज पर आयकर छूट की सीमा को 3 लाख रुपये होने की उम्मीद

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


विदेशी पूंजी पर निर्भर बैंकों की हालत खस्ता होचली है। हाल यह है कि विदेशी निवेशकों को भारतीय बैंकों के शेयरों में रुचि कम होती नजर आ रही है क्योंकि उन्होंने पिछले कुछ महीनों में देश के 28 सरकारी और निजी बैंकों की हिस्सेदारी बेची है।दूसरी ओर उम्मीद है कि आवास क्षेत्र में ऋण के उठाव को बढ़ावा देने के लिए सरकार आगामी बजट में गृह ऋण पर कर कटौती की सीमा बढ़ा सकती है। समझा जाता है कि सरकार आवास ऋण पर दिए गए ब्याज पर आयकर छूट की सीमा को 3 लाख रुपये कर सकती है, जो फिलहाल 1.5 लाख रुपये है।इससे ऱियल्टी और बैंकिंग दोनों क्षेत्रों को संकट से उबारने में मदद कर सकते हैं वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी।

घटते पूंजी पर्याप्तता अनुपात को देखते हुए कई मझोले और छोटे आकार के बैंक पूंजी जुटाने के लिए संस्थागत निवेशकों और प्राइवेट इक्विटी फंडों की ओर रुख कर रहे हैं। इसके साथ ही इनमें से कुछ बैंकों में प्रवर्तकों की हिस्सेदारी में कमी करने की आवश्यकता और अपना कारोबार विकास बढ़ाने के लिए भी रकम की जरूरत महसूस की जा रही है।

कुछ बैंक हिस्सेदारी बेच कर पहले ही रकम जुटा चुका है और विश्लेषकों और बैंकरों के अनुसार इस समय कम से कम आधा से एक दर्जन इक्विटी इश्यू आने बाकी हैं।

कॉरपोरेट जगत की तरफ से कर्ज की मांग में आई कमी और मौजूदा कर्जों के भुगतान में आ रही दिक्कत को देखते हुए देश के कई सार्वजनिक बैंक फिलहाल रिटेल लोन का पोर्टफोलियो बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। बैंकों के अनुसार मौजूदा परिस्थितियों में कॉरपोरेट लोन की तुलना में रिटेल लोन पर जोखिम कम है। ऐसी स्थिति में वे रिटेल लोन पर ही ज्यादा से ज्यादा फोकस कर रहे हैं।

गौरतलब है कि सरकार पब्लिक सेक्टर बैंकों में अपनी हिस्सेदारी को लगातार कम करके प्राइवेट सेक्टर की हिस्सेदारी को बढ़ा रही है। कुछ बैंकों में तो सरकारी हिस्सेदारी कम करके 51 प्रतिशत तक कर दी गई है। बैंकों का विस्तारीकरण करने की बजाय सरकार इनका विलय कर रही है। बैंकिंग कानूनों में संशोधन बिल अगर पारित हुआ तो इससे बैंकों में विदेशी निवेश बढ़ेगा।यूपीए सरकार संसद के बजट सत्र में कथित वित्तीय सुधार के बड़े विधेयक लाने पर आमादा है। वह हमारे देश के बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा को बढ़ाना चाहती है। इसके साथ ही वह कथित बैंकिंग सुधार के नाम पर, विदेशी बैंकों द्वारा भारतीय बैंकों के अधिग्रहण का रास्ता खोलना चाहती है और पेंशन फंडों के निजीकरण को भी आगे बढ़ाना चाहती है। लेकिन कथित वित्तीय सुधार के इन कदमों के ऊपर से यह सरकार खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए दरवाजे खोलने के लिए भी कसम खाए बैठी है।  विश्व बैंक की भविष्यवाणी के अनुसार, विदेशी पूंजी के खिंचकर आने की कोई खास संभावना नहीं है और सरकार जिस हद तक आने की उम्मीद कर रही है, वह उम्मीद तो निश्चित रूप से पूरी नहीं होने वाली है।

भारतीय रिजर्व बैंक सार्वजनिक बैंकों और वित्तीय संस्थानों के बोर्ड में अपने अधिकारियों को नॉमिनी के तौर पर नियुक्त नहीं करने का विकल्प तलाश रहा है।आरबीआई इस पर विचार कर रहा है कि वह सरकारी बैंकों वित्तीय संस्थाओं में अपने सेवारत अधिकारियों को नियुक्त नहीं करेगा लेकिन सेवानिवृत्त या अन्य पेशेवरों को बैंकों के बोर्ड में नियुक्त करने की सिफारिश कर सकता है।सूत्रों के अनुसार, रिजर्व बैंक ऐसा दो वजहों से कर रहा है-हितों में टकराव से बचना और बैंकिंग नियामक की कार्यप्रणाली में पारदर्शिता लाना। हालांकि इसके पीछे एक और वजह बताई जा रही है। दरअसल, मिंट रोड में इस बात की चर्चा है कि अगर कोई बैंक अनियमितता में संलिप्त पाया जाता है तो उक्त बैंक के सभी बोर्ड सदस्यों पर इसकी समान रूप से जिम्मेदारी होगी। ऐसी स्थिति में रिजर्व बैंक के लिए परेशानी खड़ी कर सकती है, क्योंकि बैंकों के बोर्ड में उसके भी अधिकारी शामिल होते हैं।भारतीय स्टेट बैंक, पंजाब नैशनल बैंक समेत सभी सरकारी बैंकों और वित्तीय संस्थाओं (नाबार्ड, नैशनल हाउसिंग बैंक आदि) में आरबीआई की ओर से नॉमित स्वतंत्र निदेशक होते हैं। बड़े बैंक और वित्तीय संस्थाओं (एसबीआई, नाबार्ड) में आरबीआई अपने डिप्टी गवर्नर को प्रतिनिधि के तौर पर नियुक्त करता है। अन्य बैंकों में मुख्य महाप्रबंधक की नियुक्ति की जाती है।


सरकार ने चालू वित्त वर्ष के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 6,000 करोड़ रुपये का बजट प्रावधान किया है। वर्ष 2010-11 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 20,157 करोड़ रुपए की पूंजी सहायता प्रदान की गई थी। सूत्रों ने बताया कि सरकारी बैंकों को पूंजी सहायता के प्रस्तावों को अंतिम स्वरूप दिए जाने संबंधी फैसला होना अभी बाकी  है। इक्विटी के तरजीह नियोजन के जरिए पूंजी सहायता देना इक्विटी बढ़ाने का सबसे तेज तरीका है।सरकार ने पहले ही कहा था कि वह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पर्याप्त पूंजी मुहैया कराने के लिए प्रतिबद्ध है ताकि उनकी टायर-एक पूंजी आठ फीसदी पर बरकरार रखी जा सके।भारतीय स्टेट बैंक, बैंक आफ बड़ौदा, यूनियन बैंक आफ इंडिया, आईडीबीआई बैंक और सिंडिकेट बैंक ऐसे कुछ बैंकों में शामिल हैं जिन्हें सरकार की पूंजी सहायता की पहल से फायदा होगा।

9 लाख करोड़ रुपये के करीब के कर्ज जोखिम वाले क्षेत्रों में फंसे हुए हैं भारतीय बैंकों के रिजर्व बैंक के मुताबिक, इन क्षेत्रों में दूरसंचार, बिजली, रियल एस्टेट, एविएशन व मेटल उद्योग शामिल

20 फीसदी के ऊंचे स्तर पर पहुंच चुकी बैंकों द्वारा दिए गए कुल कर्ज में जोखिम वाले कर्जों की हिस्सेदारी और यही उनकी असली परेशानी की बात भी है

42.35 लाख करोड़ रुपये का कुल कर्ज वितरण रहा है आंकड़ों के हिसाब से भारत के सभी बैंकों का 2 दिसंबर, 2011 तक की स्थिति के मुताबिक

जोखिम वाले सेक्टरों को दिए गए भारी-भरकम कर्ज को लेकर इन दिनों भारत के तमाम बैंकों की पेशानी पर बल पड़े हुए हैं। परेशानी की बात यह है कि बैंकों द्वारा दिए गए कुल कर्ज में इस तरह के जोखिम वाले कर्ज की हिस्सेदारी 20 फीसदी के बेहद ऊंचे स्तर पर है। रिकवरी की सुस्त रफ्तार को देखते हुए बैंकों की चिंता यह है कि इन कर्ज के गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) में तब्दील होने की हालत में उनकी आर्थिक स्थिति का क्या होगा? यहां तक की भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) भी अब इस बात से चिंतित नजर आने लगा है।

खस्ताहाल सरकारी एविएशन कंपनी एयर इंडिया की वित्तीय स्थिति सुधारने के पैकेज को सरकारी बैंक अधूरा मान रहे हैं। इन बैंकों का कहना है कि कंपनी पर उनके बकाए की वापसी के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किया गया है। यदि एयर इंडिया पर लगभग 11,000 करोड़ रुपये के अल्पकालिक कर्ज को लंबी अवधि के लोन में तब्दील नहीं किया गया तो बैंकों का एनपीए [फंसा कर्ज] बढ़ जाएगा। इससे उन्हें दो अरब रुपये का चूना लग सकता है। बैंक अपनी इन चिंताओं से शीघ्र ही वित्त मंत्रालय को अवगत कराएंगे।बैंकों के लिए बढि़या बात यह है कि इस पैकेज में उन्हें अपने कर्ज की राशि को माफ करने के लिए नहीं कहा गया है। वैसे, उन्हें ज्यादा प्रावधान [प्रॉविजनिंग] करने होंगे। साथ ही उनकी संभावित आय में भी कमी होगी। इस वजह से एयर इंडिया को कर्ज मुहैया कराने वाले 14 बैंकों के कंसोर्टियम को संयुक्त तौर पर दो हजार करोड़ रुपये का झटका लग सकता है। वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बैंकों ने जब एयर इंडिया को कर्ज दिया था, उसकी तुलना में अब कम ब्याज मिलेगा। साथ ही कर्ज अदायगी की अवधि बढ़ने से उन्हें ज्यादा राशि का समायोजन करना पड़ेगा।वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में गठित मंत्रियों के समूह ने एयर इंडिया के वित्तीय पुनर्गठन पैकेज को मंजूरी दी थी। इसके तहत कंपनी को सरकारी गारंटीशुदा 7400 करोड़ रुपये के बांड जारी कर बाजार से पैसा जुटाने को कहा गया है। इन पर 8.5 से 9 फीसदी की दर से ब्याज की अदायगी होगी। इन बांडों को वित्तीय संस्थानों के बीच बेचा जाएगा। बहरहाल, सरकारी बैंकों को यह पैकेज बहुत नहीं सुहा रहा है।

चालू वित्त वर्ष की आर्थिक वृद्धि को लेकर आर्थिक विश्लेषकों, शोध संस्थानों तथा रिजर्व बैंक के अनुमान इस बार वास्तविकता से काफी दूर छूटते नजर आ रहे हैं। सभी ने शुरू में इस बारे में उंचा अनुमान जताया था लेकिन आधिकारिक अग्रिम अनुमान में इस बार जीडीपी वृद्धि 6.9 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है।

आर्थिक वृद्धि को लेकर सबसे आशावादी अनुमान फरवरी 2011 में संसद में पेश आर्थिक समीक्षा में रखा गया था। समीक्षा में 2011-12 में आर्थिक वृद्धि 9 प्रतिशत :0.25 प्रतिशत कम या अधिक: रहने का अनुमान लगाया गया था।

योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया तथा रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने भी अलग-अलग अनुमान जताये थे।

आहलूवालिया ने शुरू में चालू वित्त वर्ष के दौरान आर्थिक वृद्धि दर 8 से 8.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था लेकिन बाद में इसे घटाकर 7 प्रतिशत कर दिया।

सुब्बाराव ने 2011-12 की मौद्रिक नीति में आर्थिक वृद्धि दर 8 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था लेकिन बाद में इसे घटाकर 7.6 प्रतिशत तथा अब इसे 7 प्रतिशत कर दिया। इतना ही नहीं रिजर्व बैंक द्वारा प्रायोजित पेशेवर भविष्यवक्ताओं का अनुमान भी गलत साबित हुआ। पेशेवरों ने शुरू में आर्थिक वृद्धि 8.2 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया था।



बहरहाल देश के शेयर बाजारों में सप्ताह के अंतिम कारोबारी दिवस शुक्रवार को गिरावट का रुख देखा गया। प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 82.06 अंकों की गिरावट के साथ 17748.69 पर जबकि निफ्टी 30.75 अंकों की गिरावट के साथ 5381.60 पर बंद हुआ।शुक्रवार सुबह बम्बई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 13.16 अंकों की गिरावट के साथ 17817.59 पर जबकि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का निफ्टी 12.55 अंकों की गिरावट के साथ 5399.80 पर खुला। बीएसई के मिडकैप और स्मॉलकैप सूचकांकों में मिला जुला रुख देखा गया।


अनुमान है कि विदेशी निवेशकों ने अक्टूबर 2011 से लेकर करीब साढ़े चार महीने के दौरान बैंकों के 10,000 करोड़ रुपये (करीब दो अरब डालर) के शेयर बेचे। इस दौरान विदेशी निवेशकों ने 28 भारतीय बैंकों के शेयरों में शुद्ध बिकवाली की जबकि उन्होंने नौ बैंकों में अपने निवेश बढा़ए।

विदेशी निवेशकों ने जिन बैंकों में हिस्सेदारी कम की उनमें आईसीआईसीआई बैंक, ऐक्सिस बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, येस बैंक व डीसीबी और एसबीआई व पंजाब नेशनल बैंक जैसे प्रमुख सरकारी बैंक शामिल हैं। इसके विपरीत एचडीएफसी बैंक, साउथ इंडियन बैंक और आईडीबीआई बैंक में उनका निवेश बढा़।

दूसरी ओर बैंक क्षेत्र में सुधार का वित्तमंत्री का मंसूबा भी आसानी से पूरा होता नहीं दीखता।नए बैंकिंग लाइसेंस को लेकर अब नया पेच फंसता नजर आ रहा है। बैंकिंग लाइसेंस को लेकर पहले सख्त रुख रखने वाला भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अब नए लाइसेंस जारी करने में कुछ ज्यादा ही उदार रुख अपनाता दिख रहा है। केंद्रीय बैंक का मानना है कि जारी दिशानिर्देशों के तहत जरूरी मानदंड पूरा करने वाले सभी आवेदकों को बैंकिंग लाइसेंस मिलना चाहिए। लेकिन वित्त मंत्रालय, आरबीआई के उदार रुख से सहमत नहीं है।

आरबीआई सूत्रों के मुताबिक बैंकिंग नियामक ने वित्त मंत्रालय को लिखा है कि दिशानिर्देश के तहत तय मानदंड पूरा करने वाले सभी आवेदकों को बैंकिंग लाइसेंस दिया जाना चाहिए। हालांकि चर्चा इस बात की भी हो रही है कि लाइसेंस पाने वाले कुछ बैंक को बंद होने की अनुमति भी दी जा सकती है। लेकिन महत्त्वपूर्ण बात यह है कि 1993 से दिशानिर्देश आने के बाद देश में अब तक किसी भी बैंक को बंद होने नहीं दिया गया है।

वित्त मंत्रालय का कहना है कि बड़ी संख्या में बैंकों के आने से उनका नियमन और निगरानी करना काफी कठिन हो जाएगा। जानकारों का कहना है कि केंद्रीय बैंक और वित्त मंत्रालय के विचारों में मतभेद के चलते बैंकिंग लाइसेंस पाने को इच्छुक कंपनियों को थोड़ा लंबा इंतजार करना पड़ सकता है। सूत्रों का कहना है कि आरबीआई भी पहले कुछेक कंपनियों को ही लाइसेंस देना चाहता था। 

सूत्रों ने कहा कि सरकार आगामी बजट में आवास ऋण पर कर कटौती की सीमा बढ़ाने पर विचार कर रही है। आम बजट 16 मार्च को पेश किया जाना है। फिलहाल घर खरीदने को लिए गए ऋण पर कर योग्य आमदनी में से ब्याज के रूप में 1.5 लाख रुपये तक की कटौती उपलब्ध होती है। इसके अलावा उपभोक्ता मूल राशि के भुगतान पर भी कर मुक्त हो सकते हैं। हालांकि यह एक लाख रुपये की सालाना बचत पर मिलने वाली छूट का हिस्सा है।

सूत्रों ने कहा कि हर बीतते साल के साथ मकानों के दाम बढ़ रहे हैं और साथ ही ब्याज दरें भी ऊंचे स्तर पर बनी हुई हैं, इसलिए इस सीमा को बढ़ाने की जरूरत है। आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट को थामने के लिए उद्योग जगत भी कुछ इसी तरह की मांग कर रहा है।

फिक्की के महासचिव राजीव कुमार ने कहा कि आवास ऋण के ब्याज पर कर कटौती की सीमा को ब्याज दरों के अनुकूल कर 2.5 लाख रुपये किया जाना चाहिए। सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा कि व्यक्तिगत कर कटौती की सीमा को मौजूदा 2.5 लाख रुपये से 5 लाख रुपये किया जाना चाहिए।

बनर्जी ने कहा कि इसमें से इसमें से 3 लाख रुपये की छूट ब्याज भुगतान पर मिलनी चाहिए। जबकि दो लाख रुपये की कटौती विशिष्ट रुप से मूल ऋण राशि के भुगतान पर होनी चाहिए। इसी तरह की राय जाहिर करते हुए एसोचैम और पीएचडी चैंबर ने कहार कि कटौती की सीमा ब्याज और मूल राशि दोनों पर बढ़नी चाहिए।

विश्व बैंक ने आगाह किया है कि विकाशसील देशों को, और खासतौर पर भारत को, एक ऐसे संकट का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए, जो 2008-09 के विश्व आर्थिक संकट जैसा या उससे भी बदतर होगा। यह वाकई चिंताजनक है। विश्व बैंक के मैक्रो इकॉनमिक्स के प्रमुख ने हाल ही में कहा है कि 'विश्व अर्थव्यवस्था की मोटर यानी विकासशील देश धीमे चल रहे हैं और इसके साथ ही साथ दुनिया का सबसे बड़ा आर्थिक क्षेत्र योरोपीय संघ मंदी का शिकार है; और ये दोनों एक-दूसरे से प्रभावित हो सकते हैं।'

ऐसा लग रहा है कि विश्व अर्थव्यवस्था के संबंध में 2011 में जो आशंकाएं प्रकट की गई थीं, पहले ही सचाई का रूप ले चुकी हैं। अब विश्व अर्थव्यवस्था के 2012 में 2.5 फीसदी तथा 2013 में 3.1 फीसदी की दर से ही वृद्धि करने की संभावना है, जबकि पहले इन दोनों ही वर्षों में 3.6 फीसदी की वृद्धि दर की भविष्यवाणी की गई थी। उधर यूरो क्षेत्र की अर्थव्यवस्था अब इस या उस देश में ही नहीं सिकुड़ रही होगी, बल्कि समग्रता में सिकुड़ रही होगी यानी 2012 में उसमें वास्तविक गिरावट होने जा रही है। अन्य विकसित देश भी हद से हद 2.1 फीसदी की वृद्धि दर ही दर्ज कराने की उम्मीद कर सकते हैं।

भारत की ये उम्मीदें भी दूर का ढोल ही साबित होती नजर आती हैं कि और ज्यादा वित्तीय उदारीकरण के जरिये विदेशी फंड के प्रवाह को आकर्षित किया जा सकता है और इसके सहारे देश की वृद्धि दर को नई गति दी जा सकती है। विश्व बैंक ने आगाह किया है कि विकसित देशों के पास कोई खास मौद्रिक या राजकोषीय मसाला ही नहीं बचा है कि उसके सहारे मंदी के दुष्चक्र को वे रोक सकें।
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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/


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