प्रियंका अमेठी-रायबरेली में कई वजहों से हैं सीमित
Saturday, 11 February 2012 10:16 | |||
प्रदीप श्रीवास्तव नई दिल्ली, 10 फरवरी। प्रियंका वाड्रा के एक हफ्ते के चुनाव प्रचार ने मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचा। इसका असर यह हुआ कि आज सभी पार्टियों के निशाने पर कांग्रेस, खासकर गांधी परिवार है। पहले चरण के चुनाव से ठीक पहले प्रियंका को प्रचार में उतारने की कई वजहें बताई जा रही हैं। कहा जा रहा है कि 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस जिस तरह घिर रही थी। उसमें यह फैसला किया गया। कांग्रेस के हतोत्साहित कार्यकर्ताओं में उत्साह भरना भी प्रियंका को प्रचार में उतारने का एक कारण माना जा रहा है। लेकिन यहां यक्ष प्रश्न यह है कि प्रियंका वढरा को कांग्रेस इन वजहों से इतना उपयोगी मानती थी और उन्हें उत्तर प्रदेश के चुनाव में अपना स्टार प्रचारक बनाना चाहती थी तो, उन्हें अमेठी और रायबरेली तक ही सीमित क्यों रखा गया है? कांग्रेस उनकी इस कथित लोकप्रियता का लाभ पूरे प्रदेश में क्यों नहीं उठाना चाहती? इसमें भी संदेह नहीं कि न केवल मीडिया में मिली प्रमुखता बल्कि दूसरे मुकामों पर भी प्रियंका के आने से कांग्रेस को लाभ मिला है। रायबरेली और अमेठी में टिकट बंटवारे और स्थानीय गुटबाजी से कार्यकर्ताओं में जो मतभेद थे उन्हें सुलझाने में प्रियंका ने अहम भूमिका निभाई। वे राजनीतिक रूप से पूरी तरह परिपक्व दिखाई दे रही हैं। वे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी या बसपा प्रमुख मयावती की तरह चुनावी भाषण पढ़ कर नहीं देती और न ही उन्होंने ख्रुद को बड़ी जनसभाओं तक सीमित रखा है। वे नुक्कड़ सभा और पैदल जनसंपर्क का भी इस्तमोल कर रही हैं। उनके चेहरे पर थकान भी नहीं दिखती है। प्रियंका अपने भाषणों में जिस तरह 22 सालों से प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस की अनुपस्थिति को दर्ज करा रही हैं। उसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव युवाओं पर पड़ रहा है। इसका अर्थ यह है कि पिछले 22 साल में प्रदेश की जो दुर्दशा हुई है, उससे कांग्रेस का कोई लेना-देना नहीं है। आज से 22 साल पहले कांग्रेस की सत्ता में क्या अच्छा हुआ था और क्या बुरा, यह आज के 21 से 30 साल के युवाओं को कहां पता है। बहरहाल कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता की माने तो एक रणनीति के तहत प्रियंका की भूमिका केवल राहुल और सोनिया गांधी के चुनावी क्षेत्र तक ही सीमित है। कांग्रेस उत्तर प्रदेश का चुनाव राहुल गांधी के नाम पर लड़ रही है। अपने मिशन 2012 के लिए राहुल गांधी पिछले दो साल से लगे हैं। उनका जलवा कितना काम करेगा, कांग्रेस यह देखना चाहती है। केवल कांग्रेस ही नहीं बल्कि दूसरी पार्टियों के साथ-साथ
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