जारवा का दूसरा विडियो, अब पुलिस ने नचाया
ब्रिटिश अखबार 'ऑब्ज़र्वर' ने भारत के अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में जारवा जनजाति की
महिलाओं के अर्धनग्न रूप में नाचने का नया विडियो जारी किया है। इस विडियो में साफ दिखता है कि जारवा महिलाओं को सुरक्षाकर्मियों की मौजूदगी में डांस करने के लिए कहा जा रहा है।
जारवा लोगों को पर्यटकों के सामने खाने के बदले में नाचते दिखाए जाने को लेकर 'ऑब्ज़र्वर' की ओर से जारी किए गए पहले विडियो के बाद भारत सरकार ने मामले की जांच के आदेश दिए थे। विडियो फुटेज की जांच में खुलासा हुआ है कि पहले के फुटेज करीब साढ़े तीन साल पुराने हैं।
अंडमान-निकाबोर द्वीप समूह प्रशासन ने विडियो फुटेज को लेकर तैयार जांच रिपोर्ट में इस बात को खारिज किया कि यह विडियो हाल ही में बनाया गया है। आयोग के अध्यक्ष रामेश्वर उरांव ने बताया, 'अंडमान में आदिवासी कल्याण विभाग के सहायक निदेशक ने हमें बताया है कि जांच पूरी हो चुकी है। इसमें यह बात सामने आई है कि यह विडियो साढ़े तीन साल पुराना है और इस तरह का कोई भी नया विडियो नहीं बनाया गया है।'
अंडमान निकोबार के डीजीपी एस. बी. देओल ने एक बयान जारी करके कहा था कि दिखाई गई फुटेज में जिस वर्दीधारी शख्स को पुलिसकर्मी बताया गया है वह कोई प्राइवेट सिक्युरिटी गार्ड है। उसने जो वर्दी पहन रखी है वैसी वर्दी अंडमान पुलिसकर्मी नहीं पहनते।
पिछले महीने इस विडियो फुटेज के सामने आने के बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने अंडमान प्रशासन को इस मामले की जांच करने और जल्द से जल्द रिपोर्ट भेजने का आदेश दिया था। अंडमान प्रशासन ने पूरी जांच के बाद यह रिपोर्ट तैयार कर ली है और अब यह रिपोर्ट जल्द ही आयोग के पास आने वाली है।
उरांव ने कहा, 'सहायक निदेशक (आदिवासी कल्याण विभाग) ने फिलहाल हमें मौखिक जानकारी दी है और अब वे जल्द ही यह रिपोर्ट आयोग को भेजेंगे। आयोग रिपोर्ट मिलने के बाद इस पर चर्चा करेगा और आगे कदम उठाएगा।'
उरांव ने कहा कि अंडमान के अधिकारियों ने उन्हें बताया है कि अब पर्यटकों के अंडमान ट्रंक रोड पर बीच में उतरने और वहां विडियो बनाने या फोटो लेने पर रोक का कड़ाई से पालन किया जा रहा है। पर्यटक पहले इसी रास्ते के जरिए जारवा समुदाय के सदस्यों तक पहुंचते थे। उन्होंने कहा कि इस रास्ते पर जाने के लिए देशी और विदेशी पर्यटकों के लिए स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों को ले जाना अनिवार्य कर दिया गया है।
जारवा लोगों को पर्यटकों के सामने खाने के बदले में नाचते दिखाए जाने को लेकर 'ऑब्ज़र्वर' की ओर से जारी किए गए पहले विडियो के बाद भारत सरकार ने मामले की जांच के आदेश दिए थे। विडियो फुटेज की जांच में खुलासा हुआ है कि पहले के फुटेज करीब साढ़े तीन साल पुराने हैं।
अंडमान-निकाबोर द्वीप समूह प्रशासन ने विडियो फुटेज को लेकर तैयार जांच रिपोर्ट में इस बात को खारिज किया कि यह विडियो हाल ही में बनाया गया है। आयोग के अध्यक्ष रामेश्वर उरांव ने बताया, 'अंडमान में आदिवासी कल्याण विभाग के सहायक निदेशक ने हमें बताया है कि जांच पूरी हो चुकी है। इसमें यह बात सामने आई है कि यह विडियो साढ़े तीन साल पुराना है और इस तरह का कोई भी नया विडियो नहीं बनाया गया है।'
अंडमान निकोबार के डीजीपी एस. बी. देओल ने एक बयान जारी करके कहा था कि दिखाई गई फुटेज में जिस वर्दीधारी शख्स को पुलिसकर्मी बताया गया है वह कोई प्राइवेट सिक्युरिटी गार्ड है। उसने जो वर्दी पहन रखी है वैसी वर्दी अंडमान पुलिसकर्मी नहीं पहनते।
पिछले महीने इस विडियो फुटेज के सामने आने के बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने अंडमान प्रशासन को इस मामले की जांच करने और जल्द से जल्द रिपोर्ट भेजने का आदेश दिया था। अंडमान प्रशासन ने पूरी जांच के बाद यह रिपोर्ट तैयार कर ली है और अब यह रिपोर्ट जल्द ही आयोग के पास आने वाली है।
उरांव ने कहा, 'सहायक निदेशक (आदिवासी कल्याण विभाग) ने फिलहाल हमें मौखिक जानकारी दी है और अब वे जल्द ही यह रिपोर्ट आयोग को भेजेंगे। आयोग रिपोर्ट मिलने के बाद इस पर चर्चा करेगा और आगे कदम उठाएगा।'
उरांव ने कहा कि अंडमान के अधिकारियों ने उन्हें बताया है कि अब पर्यटकों के अंडमान ट्रंक रोड पर बीच में उतरने और वहां विडियो बनाने या फोटो लेने पर रोक का कड़ाई से पालन किया जा रहा है। पर्यटक पहले इसी रास्ते के जरिए जारवा समुदाय के सदस्यों तक पहुंचते थे। उन्होंने कहा कि इस रास्ते पर जाने के लिए देशी और विदेशी पर्यटकों के लिए स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों को ले जाना अनिवार्य कर दिया गया है।
अंडमान द्वीप में बिस्किट और चंद सिक्कों के लिए जिन जारवा आदिवासियों को विदेशियों के सामने नचाने की खबरें आई हैं, उनकी तादाद 1 अरब से ज्यादा आबादी वाले इस देश में महज 250-350 के बीच है। जारवा अंडमान द्वीप पर बसी दुर्लभ आदिवासी जनजातियों में से एक है। ये लोग कई हजार साल से अंडमान इलाके में रह रहे हैं। इस आदिवासी जनजाति से जुड़े कुछ अहम तथ्यों पर एक नजर :
दुश्मन लोग : जारवा जनजाति और बाहरी लोगों के बीच आमतौर पर संपर्क नहीं रहा है। यही वजह है कि उनके समाज, संस्कृति और परंपराओं के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। ग्रेटर अंडमान में बोली जाने वाली भाषा अका बिया में उनके नाम का मतलब होता है - विदेशी या दुश्मन लोग। किसी भी तरह का संपर्क, खासकर पर्यटकों से, इनके लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है, क्योंकि जारवा जनजाति में बीमारी फैलने का खतरा होता है। इस जनजाति की प्रतिरोध क्षमता काफी कम है।
ग्रैंड ट्रंक रोड बनी खतरा : हाल के बरसों में जारवा जनजाति के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में सामने आई है ग्रेट अंडमान ट्रंक रोड। यह सड़क पश्चिमी वनक्षेत्र से होकर गुजरती है। यह वही जगह जहां जारवा लोग बसे हुए हैं। 1997 के अंत में पहली बार जारवा जनजाति के कुछ लोग जंगल से बाहर आकर आसपास मौजूद बस्तियों में जाने लगे। महीने भर के भीतर उनमें खसरा फैल गया। 2006 में भी वे खसरे का शिकार हुए। हालांकि, किसी मौत की खबर नहीं मिली। हाइवे बन जाने का असर यह हुआ कि जारवा जनजाति के रिहाइशी इलाके में अतिक्रमण बढ़ा, अवैध शिकार शुरू हो गए और उनकी जमीन कमर्शल जरूरतों के लिए इस्तेमाल की जाने लगी। मामला कलकत्ता हाई कोर्ट गया और फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है।
टूरिजम का असर : एक अहम समस्या टूरिस्टों की बढ़ती तादाद है। वे जारवा लोगों को देखने, उनकी तस्वीरें लेने या फिर उनसे बातचीत की कोशिश करते हैं। जारवा अक्सर हाइवे पर भीख मांगते देखे जा सकते हैं। ये सब भारतीय कानून के तहत अवैध है। मार्च 2008 में अंडमान एवं निकोबार प्रशासन के टूरिजम डिपार्टमेंट ने चेतावनी जारी की थी, जिसके मुताबिक, जारवा लोगों से संपर्क करने, उनकी तस्वीरें लेने, उनके रिहाइशी इलाके से गुजरने के दौरान गाड़ी रोकने और उन्हें सवारी की पेशकश करने जैसी चीजों पर आदिवासी जनजाति संरक्षण अधिनियम, 1956 के तहत रोक लगी हुई है। इसका उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाएगी।
दुश्मन लोग : जारवा जनजाति और बाहरी लोगों के बीच आमतौर पर संपर्क नहीं रहा है। यही वजह है कि उनके समाज, संस्कृति और परंपराओं के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। ग्रेटर अंडमान में बोली जाने वाली भाषा अका बिया में उनके नाम का मतलब होता है - विदेशी या दुश्मन लोग। किसी भी तरह का संपर्क, खासकर पर्यटकों से, इनके लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है, क्योंकि जारवा जनजाति में बीमारी फैलने का खतरा होता है। इस जनजाति की प्रतिरोध क्षमता काफी कम है।
ग्रैंड ट्रंक रोड बनी खतरा : हाल के बरसों में जारवा जनजाति के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में सामने आई है ग्रेट अंडमान ट्रंक रोड। यह सड़क पश्चिमी वनक्षेत्र से होकर गुजरती है। यह वही जगह जहां जारवा लोग बसे हुए हैं। 1997 के अंत में पहली बार जारवा जनजाति के कुछ लोग जंगल से बाहर आकर आसपास मौजूद बस्तियों में जाने लगे। महीने भर के भीतर उनमें खसरा फैल गया। 2006 में भी वे खसरे का शिकार हुए। हालांकि, किसी मौत की खबर नहीं मिली। हाइवे बन जाने का असर यह हुआ कि जारवा जनजाति के रिहाइशी इलाके में अतिक्रमण बढ़ा, अवैध शिकार शुरू हो गए और उनकी जमीन कमर्शल जरूरतों के लिए इस्तेमाल की जाने लगी। मामला कलकत्ता हाई कोर्ट गया और फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में है।
टूरिजम का असर : एक अहम समस्या टूरिस्टों की बढ़ती तादाद है। वे जारवा लोगों को देखने, उनकी तस्वीरें लेने या फिर उनसे बातचीत की कोशिश करते हैं। जारवा अक्सर हाइवे पर भीख मांगते देखे जा सकते हैं। ये सब भारतीय कानून के तहत अवैध है। मार्च 2008 में अंडमान एवं निकोबार प्रशासन के टूरिजम डिपार्टमेंट ने चेतावनी जारी की थी, जिसके मुताबिक, जारवा लोगों से संपर्क करने, उनकी तस्वीरें लेने, उनके रिहाइशी इलाके से गुजरने के दौरान गाड़ी रोकने और उन्हें सवारी की पेशकश करने जैसी चीजों पर आदिवासी जनजाति संरक्षण अधिनियम, 1956 के तहत रोक लगी हुई है। इसका उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जाएगी।
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