तूल पकड़ने लगा एनसीआरटी के पाठ्य पुस्तक में अंबेडकर के अपमान का मामला
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
सत्तावर्ग भारतीय संविधान के निर्माता बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर के अपमान का कोई मौका नहीं चूकती। हालांकि अछूतों के वोटबैंक की खातिर सभी दलों की मजबूरी है कि बाबा साहेब का गुणगान किया जाये। अन्ना ब्रिगेड बाकायदा संविधान बदलने की मांग करता है तो खुद नेहरु ने संविधान की समीक्षा के लिए कमिटी बनायी। इंदिरा गांधी ने भी स्वर्म सिंह कमिटी बनायी। अब संविधान समीक्षा की बात नहीं होती। आर्थिक सुधार के बहाने सारे कानून बदले जा रहे हैं। बाबा साहेब का रचा मूल संविधान तो वजूद में ही नहीं है। नागरिकता संविधान संशोधन विधेयक तो संविधान में शरणार्थियों को पुनर्वास और नागरिकता दिये जाने के प्रावधान को बदले बगैर पास हो गया। अंबेडकरवादी दलों ने कभी इसका विरोध नहीं किया। कोटा और आरक्षण के जरिए एमएलए, एमपी, मंत्री और मुख्यमंत्री बनने वालों का न बाबा साहेब से कोई सरोकार रहा और न उनके बनाये संविधान से। लेकिन अछूतों की भावनाओं की एटीएस मशीन से वोट निकालने खातिर जब तब बाबा साहेब के अपमान का मुद्दा जरूर उठता है।ताजा विवाद एनसीआरटी की गायरहवीं कक्षा में पाठ्य राजनीति विज्ञान की पुसत्क में प्रकाशित संकर के कार्टून को लेकर है, जिसमें बाबासाहेब को शंख पर सवार और उन्हें हांकते हुए जवाहरलाल नेहरु दिखाये गये हैं। 1947 में देश को आजादी मिली. एक स्वतंत्र नये देश को चलाने के लिए एक नये संविधान की आवश्यकता महसूस की गई। नया संविधान बनाने के लिए प्रतिभावान कानूनविद, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, दार्शनिक के तौर पर गांधी जी और पंडित नेहरू को देश में डॉ अम्बेडकर के समतुल्य कोई योग्य व्यक्ति नजर नही आ रहा था। मजबूरन उन्होने डॉ अम्बेडकर को भारत का प्रथम कानून मंत्री बनाया तथा संविधान बनाने कि जिम्मेदारी दी।
महाराष्ट्र में भीम शक्ति शिव शक्ति महायुति के नेता रामदास अठावले जो बाबा साहेब की बनायी पार्टी रिपब्लिकन के एक धड़े के नेता हैं, इसपर सख्त एतराज जताया है। इससे यह मामला तूल पकड़ने लगा है। लेकिन लगता है कि उत्तर भारत में यह खबर अभी फैली नहीं, इसलिए फिलहाल वहां से प्रितक्रिया, जैसी कि ऐसे मामलों में अमूमन दीखती है, की खबर नहीं है। आरपीआई (ए) के अध्यक्ष रामदास अठावले ने भगवा ब्रिगेड का दामन थाम लिया है।
महाराष्ट्र में अछूतों के अलावा दूसरे समुदायों में भी भारी संख्या में दूसरे समुदायों के लोग हैं, जिनमें इसे लेकर तीव्र प्रतिक्रिया हो रही है। इसके मद्देनजर नालेज इकानामी वाले मानव संसाधन मंत्रालय अब हरकत में आया है और लीपापोती में लग गया है।
मंत्रालय अब एनसीआरटी से इस प्रकरण की समीक्षा के लिए कहेगी। कहा नहीं है। इस पर तुर्रा यह कि सफाई यह दी जा रही है कि अंबेडकर कच्छप चाल से संविधान लिख रहे थे। उनके लेखन में गति लाने के लिए पंडित नेहरु हांका लगा रहे थे।यानी सरकार इस कार्टून में कोई बुराई नहीं देखती। वैसे भी यह कार्टून कोई नया नहीं है। यह सरकारी संस्था नेशनल बुकट्रस्ट की संपत्ति है, जिसका एनसीआरटी ने इस्तेमाल किया है।प्रकाशित कार्टून को सरकारी सफाई के नजरिये से देखें तो संविधान रचने के लिए पूरे तीन साल लगाने के दोषी थे बाबा साहेब।
बहरहाल एनसीआरटी को इसका पछतावा नहीं है और इससे जुड़े अफसरान इसे निहायत अकादमिक मामला बताते हुए अपनी गरदन बचा रहे हैं। लेकिन महाराष्ट्र में हो रहे हंगामे से लगता नहीं कि मामला इतनी जल्दी शांत होनेवाला है।
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
सत्तावर्ग भारतीय संविधान के निर्माता बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर के अपमान का कोई मौका नहीं चूकती। हालांकि अछूतों के वोटबैंक की खातिर सभी दलों की मजबूरी है कि बाबा साहेब का गुणगान किया जाये। अन्ना ब्रिगेड बाकायदा संविधान बदलने की मांग करता है तो खुद नेहरु ने संविधान की समीक्षा के लिए कमिटी बनायी। इंदिरा गांधी ने भी स्वर्म सिंह कमिटी बनायी। अब संविधान समीक्षा की बात नहीं होती। आर्थिक सुधार के बहाने सारे कानून बदले जा रहे हैं। बाबा साहेब का रचा मूल संविधान तो वजूद में ही नहीं है। नागरिकता संविधान संशोधन विधेयक तो संविधान में शरणार्थियों को पुनर्वास और नागरिकता दिये जाने के प्रावधान को बदले बगैर पास हो गया। अंबेडकरवादी दलों ने कभी इसका विरोध नहीं किया। कोटा और आरक्षण के जरिए एमएलए, एमपी, मंत्री और मुख्यमंत्री बनने वालों का न बाबा साहेब से कोई सरोकार रहा और न उनके बनाये संविधान से। लेकिन अछूतों की भावनाओं की एटीएस मशीन से वोट निकालने खातिर जब तब बाबा साहेब के अपमान का मुद्दा जरूर उठता है।ताजा विवाद एनसीआरटी की गायरहवीं कक्षा में पाठ्य राजनीति विज्ञान की पुसत्क में प्रकाशित संकर के कार्टून को लेकर है, जिसमें बाबासाहेब को शंख पर सवार और उन्हें हांकते हुए जवाहरलाल नेहरु दिखाये गये हैं। 1947 में देश को आजादी मिली. एक स्वतंत्र नये देश को चलाने के लिए एक नये संविधान की आवश्यकता महसूस की गई। नया संविधान बनाने के लिए प्रतिभावान कानूनविद, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, दार्शनिक के तौर पर गांधी जी और पंडित नेहरू को देश में डॉ अम्बेडकर के समतुल्य कोई योग्य व्यक्ति नजर नही आ रहा था। मजबूरन उन्होने डॉ अम्बेडकर को भारत का प्रथम कानून मंत्री बनाया तथा संविधान बनाने कि जिम्मेदारी दी।
महाराष्ट्र में भीम शक्ति शिव शक्ति महायुति के नेता रामदास अठावले जो बाबा साहेब की बनायी पार्टी रिपब्लिकन के एक धड़े के नेता हैं, इसपर सख्त एतराज जताया है। इससे यह मामला तूल पकड़ने लगा है। लेकिन लगता है कि उत्तर भारत में यह खबर अभी फैली नहीं, इसलिए फिलहाल वहां से प्रितक्रिया, जैसी कि ऐसे मामलों में अमूमन दीखती है, की खबर नहीं है। आरपीआई (ए) के अध्यक्ष रामदास अठावले ने भगवा ब्रिगेड का दामन थाम लिया है।
महाराष्ट्र में अछूतों के अलावा दूसरे समुदायों में भी भारी संख्या में दूसरे समुदायों के लोग हैं, जिनमें इसे लेकर तीव्र प्रतिक्रिया हो रही है। इसके मद्देनजर नालेज इकानामी वाले मानव संसाधन मंत्रालय अब हरकत में आया है और लीपापोती में लग गया है।
मंत्रालय अब एनसीआरटी से इस प्रकरण की समीक्षा के लिए कहेगी। कहा नहीं है। इस पर तुर्रा यह कि सफाई यह दी जा रही है कि अंबेडकर कच्छप चाल से संविधान लिख रहे थे। उनके लेखन में गति लाने के लिए पंडित नेहरु हांका लगा रहे थे।यानी सरकार इस कार्टून में कोई बुराई नहीं देखती। वैसे भी यह कार्टून कोई नया नहीं है। यह सरकारी संस्था नेशनल बुकट्रस्ट की संपत्ति है, जिसका एनसीआरटी ने इस्तेमाल किया है।प्रकाशित कार्टून को सरकारी सफाई के नजरिये से देखें तो संविधान रचने के लिए पूरे तीन साल लगाने के दोषी थे बाबा साहेब।
बहरहाल एनसीआरटी को इसका पछतावा नहीं है और इससे जुड़े अफसरान इसे निहायत अकादमिक मामला बताते हुए अपनी गरदन बचा रहे हैं। लेकिन महाराष्ट्र में हो रहे हंगामे से लगता नहीं कि मामला इतनी जल्दी शांत होनेवाला है।
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