बेटी घर आएगी तो आंख कैसे मिलायेंगे!
- SUNDAY, 08 APRIL 2012 13:29
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- ये क्या भयानक हालात है .मैं खुद हैरान हूं कि आज मैं इस देश के संविधान को ना मानने वालों की जीत की कामना कर रहा हूं ? आश्चर्य है कि मैं सरकार के हार जाने पर खुश हूं .इसके लिये कौन ज़िम्मेदार है .वो जंगल में रहने वाले बागी...हिमांशु कुमारअपहृत विधायक और एक विदेशी सैलानी को छोडने के बदले माओवादियों ने जिन लोगों की सरकार से रिहाई की मांग की है उनमें आरती मांझी भी शामिल् हैं. आरती मांझी पिछले तीन वर्षों फरवरी 2010 से ओड़िसा बेरहामपुर जेल में बंद हैं. आरती को माओवादी होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और स्पेशल ओपरेशन ग्रुप के जवानों ने उनका सामूहिक बलात्कार किया था. आरती मांझी की गिरफ़्तारी के बाद और जेल में बंद रहने के दौरान कई दफा पुलिसकर्मी उनका बलात्कार कर चुके हैं. बावजूद इसके उन्हें अदालत में नहीं पेश किया जा रहा है.सरकार और माओवादियों के बीच चल रही मौजूदा वार्ता की मध्यस्थता करने वालों में शामिल मानवाधिकार कार्यकर्ता दण्डपाणी मोहंती ने आरती मांझी के परिवार के लिये सबसे पहले न्याय की गुहार 3 जुलाई 2011 को लगायी थी. प्रेस विज्ञप्ति जारी कर उन्होंने सरकार से मांग की थी कि आरती मांझी और जुलाई 2011 में गजपति जिले से गिरफ्तार किये गए उसके पिता दकासा मांझी, भाई लालू मांझी, रीता पत्रों और विक्रम पत्रों की तत्काल रिहाई की जाये. मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की ओर से इस मामले में हुई फैक्ट फाइंडिंग का हवाला देते हुए दण्डपाणी ने बलात्कार और बंदियों पर किये अत्याचार के लिए जिम्मेदार पुलिसकर्मियों पर कारवाई की भी मांग की थी.प्रेस विज्ञप्ति में दंपनी ने लिखा था कि पुलिस ने सामूहिक बलात्कार कर आरती का मुंह बंद करने के लिये उसे जेल में डाल दिया गया. अब पुलिस अधिकारी आरती मांझी के पिता दशरथ मांझी और भाइयों को मार पीट रहे हैं और उनसे थाने में कोरे कागजों पर दस्तखत कराये गये हैं.दंडपानी मोहन्ती की इस करुण पुकार पर इस देश के क़ानून की इज्जत करने वाले हम जैसे लोग कुछ भी नहीं कर पाए थे. बस फेसबुक पर लिख दिया गया. एक दो लोगों ने ई मेल को आगे बढ़ा दिया, लेकिन उससे थाने के पुलिस वालों पर या आदेश देने वाले तंत्र के शीर्ष पर बैठे मुख्यमंत्री पर न कोई फर्क पड़ना था और न पड़ा. निर्दोष होने के बावजूद आरती मांझी सरकार की सारी बदमाशियों को चुपचाप सहते हुए जेल में पड़ी रही. हम सभी लोग भी हार कर चुपचाप बैठ गये और दण्डपाणी मोहन्ती का नाम गुम हो गया.लेकिन अचानक दण्डपाणी मोहन्ती का नाम मीडिया में चमकने लगा. वो अचानक महत्वपूर्ण हो गये. फिर आरती मांझी का नाम भी में आने लगा. फिर खबर आयी कि सरकार आरती मांझी को रिहा कर रही है. पता चला कि जंगलों में रहने वाले और इस देश के पवित्र संविधान को न मानने वाले कुछ देशद्रोहियों को इस आदिवासी लड़की की परवाह है. उन लोगों ने सरकार चला रही पार्टी के एक एम्एलए को और नहाती हुई आदिवासी औरतों के फोटो खींच रहे दो विदेशियों को पकड लिया है.फिर पता चला कि जिस दण्डपाणी मोहन्ती की चीख कोई नहीं सुन रहा था, उन्हें सरकार ने सादर घर से बुलाया है और उन्हें इस एमएलए और विदेशियों को छुड़ाने के लिये सरकार और नक्सलियों के बीच मध्यस्थता करने के लिये कहा गया है. आज खबर आ रही है कि सरकार आरती मांझी को छोड़ देगी. हम सब खुश हैं बच्ची अपने घर पहुँच जायेगी.हम दुखी भी हैं कि अब देश में क़ानून खत्म हुआ. पुलिस हमारी बेटियों से बलात्कार करती है. हम कुछ नहीं कर पाते. हम दुखी हैं अदालतों का इकबाल खत्म हुआ. मामला अदालत में था फिर भी पुलिस आरती के पिता और भाई को घर से उठा कर ले गयी और थाने में ले जाकर पीटा और अदालत कुछ नहीं कर पायी. हम उदास हैं की हम अपनी बेटी को बचाने लायक नहीं रहे. हमें डर है कि अब अपनी बेटी के घर आ जाने के बाद उससे नज़र कैसे मिला पायेंगे? वो हमसे पूछेगी कि हमारी राष्ट्रभक्ति, कानून को पवित्र मानने की हमारी आस्था किस काम की, अगर वो उसे उस नरक से और गैरकानूनी हिरासत से मुक्त नहीं करा सकती?हम शर्मिंदा हैं, लेकिन हम मन ही में अपने नालायक बेटों को आशीर्वाद दे रहे हैं. हम मन ही मन में अपनी पुलिस और सरकार के हार जाने की खुशी मना रहे हैं. हम क्या कर सकते हैं इस हालत में इसके अलावा? आजादी के बाद ये हालत इतनी जल्दी आ जायेगी, हमने कभी सोचा भी नहीं था. अभी कल तक ही तो मैं इस तिरंगे को और अपनी संसद को प्राणों से भी अधिक प्यारा मानता था. अपने पिता से आज़ादी की लड़ाई के किस्से सुनते ही बचपन बीता. गांधी की जीवनी पढते हुए गाँव को पूर्ण स्वराज्य की इकाई बनाने की पुलक के साथ जवानी में भारत को आदर्श राष्ट्र बनाने का सपना लेकर अपना घर छोड़ कर गावों में चला गया था.ये क्या भयानक हालत है. मैं खुद हैरान हूं कि आज मैं इस देश के संविधान को न मानने वालों की जीत की कामना कर रहा हूं? आश्चर्य है कि मैं सरकार के हार जाने पर खुश हूं. इसके लिये कौन ज़िम्मेदार है. वो जंगल में रहने वाले बागी इस हालत के ज़िम्मेदार हैं या सरकार में बैठे लोग ज़िम्मेदार हैं. या हमारा समाज हार गया है अपने लालच के सामने. हमने कुछ सामान्य से सुखों के लिये धनपतियों को सब कुछ बेच दिया.अपनी आज़ादी, अपना संविधान, अपनी संसद, अपनी सरकार, अपनी पुलिस - सब रख दिया धन के चरणों में. अब जिसके पास धन उसके चाकर सब कुछ. अब क्या राष्ट्र, क्या राष्ट्र का गर्व? सब नष्ट हुआ. सारे हसीं सपने चूर चूर हुए. अब आँख के आंसू सूखेंगे तो आगे देखूँगा किधर जाना है. अभी तो नजर डबडबाई हुई है.गाँधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार वनवासी चेतना आश्रम के प्रमुख है और उनका संघर्ष एक उदाहरण है.
बेटी घर आएगी तो आंख कैसे मिलायेंगे!
ये क्या भयानक हालात है .मैं खुद हैरान हूं कि आज मैं इस देश के संविधान को ना मानने वालों की जीत की कामना कर रहा हूं ? आश्चर्य है कि मैं सरकार के हार जाने पर खुश हूं .इसके लिये कौन ज़िम्मेदार है .वो जंगल में रहने वाले बागी...
हिमांशु कुमार
अपहृत विधायक और एक विदेशी सैलानी को छोडने के बदले माओवादियों ने जिन लोगों की सरकार से रिहाई की मांग की है उनमें आरती मांझी भी शामिल् हैं. आरती मांझी पिछले तीन वर्षों फरवरी 2010 से ओड़िसा बेरहामपुर जेल में बंद हैं. आरती को माओवादी होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और स्पेशल ओपरेशन ग्रुप के जवानों ने उनका सामूहिक बलात्कार किया था. आरती मांझी की गिरफ़्तारी के बाद और जेल में बंद रहने के दौरान कई दफा पुलिसकर्मी उनका बलात्कार कर चुके हैं. बावजूद इसके उन्हें अदालत में नहीं पेश किया जा रहा है.
सरकार और माओवादियों के बीच चल रही मौजूदा वार्ता की मध्यस्थता करने वालों में शामिल मानवाधिकार कार्यकर्ता दण्डपाणी मोहंती ने आरती मांझी के परिवार के लिये सबसे पहले न्याय की गुहार 3 जुलाई 2011 को लगायी थी. प्रेस विज्ञप्ति जारी कर उन्होंने सरकार से मांग की थी कि आरती मांझी और जुलाई 2011 में गजपति जिले से गिरफ्तार किये गए उसके पिता दकासा मांझी, भाई लालू मांझी, रीता पत्रों और विक्रम पत्रों की तत्काल रिहाई की जाये. मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल की ओर से इस मामले में हुई फैक्ट फाइंडिंग का हवाला देते हुए दण्डपाणी ने बलात्कार और बंदियों पर किये अत्याचार के लिए जिम्मेदार पुलिसकर्मियों पर कारवाई की भी मांग की थी.
प्रेस विज्ञप्ति में दंपनी ने लिखा था कि पुलिस ने सामूहिक बलात्कार कर आरती का मुंह बंद करने के लिये उसे जेल में डाल दिया गया. अब पुलिस अधिकारी आरती मांझी के पिता दशरथ मांझी और भाइयों को मार पीट रहे हैं और उनसे थाने में कोरे कागजों पर दस्तखत कराये गये हैं.
दंडपानी मोहन्ती की इस करुण पुकार पर इस देश के क़ानून की इज्जत करने वाले हम जैसे लोग कुछ भी नहीं कर पाए थे. बस फेसबुक पर लिख दिया गया. एक दो लोगों ने ई मेल को आगे बढ़ा दिया, लेकिन उससे थाने के पुलिस वालों पर या आदेश देने वाले तंत्र के शीर्ष पर बैठे मुख्यमंत्री पर न कोई फर्क पड़ना था और न पड़ा. निर्दोष होने के बावजूद आरती मांझी सरकार की सारी बदमाशियों को चुपचाप सहते हुए जेल में पड़ी रही. हम सभी लोग भी हार कर चुपचाप बैठ गये और दण्डपाणी मोहन्ती का नाम गुम हो गया.
लेकिन अचानक दण्डपाणी मोहन्ती का नाम मीडिया में चमकने लगा. वो अचानक महत्वपूर्ण हो गये. फिर आरती मांझी का नाम भी में आने लगा. फिर खबर आयी कि सरकार आरती मांझी को रिहा कर रही है. पता चला कि जंगलों में रहने वाले और इस देश के पवित्र संविधान को न मानने वाले कुछ देशद्रोहियों को इस आदिवासी लड़की की परवाह है. उन लोगों ने सरकार चला रही पार्टी के एक एम्एलए को और नहाती हुई आदिवासी औरतों के फोटो खींच रहे दो विदेशियों को पकड लिया है.
फिर पता चला कि जिस दण्डपाणी मोहन्ती की चीख कोई नहीं सुन रहा था, उन्हें सरकार ने सादर घर से बुलाया है और उन्हें इस एमएलए और विदेशियों को छुड़ाने के लिये सरकार और नक्सलियों के बीच मध्यस्थता करने के लिये कहा गया है. आज खबर आ रही है कि सरकार आरती मांझी को छोड़ देगी. हम सब खुश हैं बच्ची अपने घर पहुँच जायेगी.
हम दुखी भी हैं कि अब देश में क़ानून खत्म हुआ. पुलिस हमारी बेटियों से बलात्कार करती है. हम कुछ नहीं कर पाते. हम दुखी हैं अदालतों का इकबाल खत्म हुआ. मामला अदालत में था फिर भी पुलिस आरती के पिता और भाई को घर से उठा कर ले गयी और थाने में ले जाकर पीटा और अदालत कुछ नहीं कर पायी. हम उदास हैं की हम अपनी बेटी को बचाने लायक नहीं रहे. हमें डर है कि अब अपनी बेटी के घर आ जाने के बाद उससे नज़र कैसे मिला पायेंगे? वो हमसे पूछेगी कि हमारी राष्ट्रभक्ति, कानून को पवित्र मानने की हमारी आस्था किस काम की, अगर वो उसे उस नरक से और गैरकानूनी हिरासत से मुक्त नहीं करा सकती?
हम शर्मिंदा हैं, लेकिन हम मन ही में अपने नालायक बेटों को आशीर्वाद दे रहे हैं. हम मन ही मन में अपनी पुलिस और सरकार के हार जाने की खुशी मना रहे हैं. हम क्या कर सकते हैं इस हालत में इसके अलावा? आजादी के बाद ये हालत इतनी जल्दी आ जायेगी, हमने कभी सोचा भी नहीं था. अभी कल तक ही तो मैं इस तिरंगे को और अपनी संसद को प्राणों से भी अधिक प्यारा मानता था. अपने पिता से आज़ादी की लड़ाई के किस्से सुनते ही बचपन बीता. गांधी की जीवनी पढते हुए गाँव को पूर्ण स्वराज्य की इकाई बनाने की पुलक के साथ जवानी में भारत को आदर्श राष्ट्र बनाने का सपना लेकर अपना घर छोड़ कर गावों में चला गया था.
ये क्या भयानक हालत है. मैं खुद हैरान हूं कि आज मैं इस देश के संविधान को न मानने वालों की जीत की कामना कर रहा हूं? आश्चर्य है कि मैं सरकार के हार जाने पर खुश हूं. इसके लिये कौन ज़िम्मेदार है. वो जंगल में रहने वाले बागी इस हालत के ज़िम्मेदार हैं या सरकार में बैठे लोग ज़िम्मेदार हैं. या हमारा समाज हार गया है अपने लालच के सामने. हमने कुछ सामान्य से सुखों के लिये धनपतियों को सब कुछ बेच दिया. अपनी आज़ादी, अपना संविधान, अपनी संसद, अपनी सरकार, अपनी पुलिस - सब रख दिया धन के चरणों में. अब जिसके पास धन उसके चाकर सब कुछ. अब क्या राष्ट्र, क्या राष्ट्र का गर्व? सब नष्ट हुआ. सारे हसीं सपने चूर चूर हुए. अब आँख के आंसू सूखेंगे तो आगे देखूँगा किधर जाना है. अभी तो नजर डबडबाई हुई है.
गाँधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार वनवासी चेतना आश्रम के प्रमुख है और उनका संघर्ष एक उदाहरण है.
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