शंख पर बैठे अंबेडकर और हांकते नेहरू
नेहरू द्वारा अंबेडकर को शंख पर बैठाकर हांकने वाले कार्टून को लेकर बढ़ते रोष के मद्देनजर सफाई यह दी जा रही है कि अंबेडकर कच्छप चाल से संविधान लिख रहे थे और उनके लेखन में गति लाने के लिए पंडित नेहरु हांका लगा रहे थे...
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
नेशनल काउन्सिल ऑफ़ एजुकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीआरटी) की ग्यारहवीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तक में प्रकाशित एक कार्टून में शंख पर सवार बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर को पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु द्वारा अंबेडकर को हांकते हुए दिखाया गया है. शंकर नाम के कार्टूनिस्ट द्वारा किताब के 18वें पेज पर बनाये इस कार्टून को लेकर विवाद शुरू हो गया है और इस कार्टून के तमाम मायने निकाले जा रहे हैं और इसे अंबेडकर के लिए अपमानजनक कहा जा रहा है.
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
नेशनल काउन्सिल ऑफ़ एजुकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीआरटी) की ग्यारहवीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की पुस्तक में प्रकाशित एक कार्टून में शंख पर सवार बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर को पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु द्वारा अंबेडकर को हांकते हुए दिखाया गया है. शंकर नाम के कार्टूनिस्ट द्वारा किताब के 18वें पेज पर बनाये इस कार्टून को लेकर विवाद शुरू हो गया है और इस कार्टून के तमाम मायने निकाले जा रहे हैं और इसे अंबेडकर के लिए अपमानजनक कहा जा रहा है.
महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना गठबंधन के हिस्सा बन चुके आरपीआई (ए) के नेता रामदास अठावले ने इस मामले में सख्त एतराज जताया है और पुस्तक पर प्रतिबन्ध की मांग की है. जाने-माने दलित नेता अठावले ने मुबई में 3 अप्रैल को प्रेस वार्ता आयोजित कर पुस्तक के उस पेज की प्रतियाँ भी जलाईं और कहा कि यह अम्बेडकर को बेईज्ज़त करना है. अठावले ने मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल के इस्तीफे की भी मांग की है.
विश्लेषकों के मुताबिक शंख ब्राम्हणवाद का प्रतिक है. उसपर एक दलित नेता अंबेडकर को एक ब्रह्मण नेता नेहरू द्वारा हांका जाना जाहिर करता है कि अंबेडकर ने जो किया वह ब्राम्हणवाद के इशारे पर किया या ब्राम्हणवाद के लिए किया. भारतीय राजनीति में अंबेडकर का बड़ा योगदान दलितों के संघर्ष को मुखर और आंदोलित करने और भारतीय संविधान को बनाने में माना जाता है. हालाँकि कुछ विद्वानों का यह भी मत है कि जैसा संविधान अंबेडकर बनाना चाहते थे, मौजूदा संविधान उसका प्रहसन मात्र है.
अठावले के विरोध के बाद यह मामला तूल पकड़ने लगा है.महाराष्ट्र में दलित जातियों के अलावा दूसरे समुदायों के लोगों में भी इस कार्टून को लेकर प्रतिक्रिया हो रही है.इसके मद्देनजर मानव संसाधन विकास मंत्रालय अब हरकत में आया है और लीपापोती में लग गया है.
नेहरू द्वारा अंबेडकर को शंख पर बैठाकर हांकने वाले कार्टून को लेकर बढ़ते रोष के मद्देनजर मानव संसाधन मंत्रालय अब एनसीआरटी से इस प्रकरण की समीक्षा करने की बात कह रहा है. सफाई यह दी जा रही है कि अंबेडकर कच्छप चाल से संविधान लिख रहे थे और उनके लेखन में गति लाने के लिए पंडित नेहरु हांका लगा रहे थे.यानी सरकार इस कार्टून में कोई बुराई नहीं देखती.
वैसे भी यह कार्टून कोई नया नहीं है.यह सरकारी संस्था नेशनल बुक ट्रस्ट की संपत्ति है, जिसका एनसीआरटी ने इस्तेमाल किया है.प्रकाशित कार्टून को सरकारी सफाई के नजरिये से देखें तो संविधान रचने के लिए पूरे तीन साल लगाने के दोषी थे बाबा साहेब.
बहरहाल एनसीआरटी को इसका पछतावा नहीं है और इससे जुड़े अफसरान इसे निहायत अकादमिक मामला बताते हुए अपनी गरदन बचा रहे हैं, लेकिन महाराष्ट्र में हो रहे हंगामे से लगता नहीं कि मामला इतनी जल्दी शांत होनेवाला है.
विश्लेषकों के मुताबिक शंख ब्राम्हणवाद का प्रतिक है. उसपर एक दलित नेता अंबेडकर को एक ब्रह्मण नेता नेहरू द्वारा हांका जाना जाहिर करता है कि अंबेडकर ने जो किया वह ब्राम्हणवाद के इशारे पर किया या ब्राम्हणवाद के लिए किया. भारतीय राजनीति में अंबेडकर का बड़ा योगदान दलितों के संघर्ष को मुखर और आंदोलित करने और भारतीय संविधान को बनाने में माना जाता है. हालाँकि कुछ विद्वानों का यह भी मत है कि जैसा संविधान अंबेडकर बनाना चाहते थे, मौजूदा संविधान उसका प्रहसन मात्र है.
अठावले के विरोध के बाद यह मामला तूल पकड़ने लगा है.महाराष्ट्र में दलित जातियों के अलावा दूसरे समुदायों के लोगों में भी इस कार्टून को लेकर प्रतिक्रिया हो रही है.इसके मद्देनजर मानव संसाधन विकास मंत्रालय अब हरकत में आया है और लीपापोती में लग गया है.
नेहरू द्वारा अंबेडकर को शंख पर बैठाकर हांकने वाले कार्टून को लेकर बढ़ते रोष के मद्देनजर मानव संसाधन मंत्रालय अब एनसीआरटी से इस प्रकरण की समीक्षा करने की बात कह रहा है. सफाई यह दी जा रही है कि अंबेडकर कच्छप चाल से संविधान लिख रहे थे और उनके लेखन में गति लाने के लिए पंडित नेहरु हांका लगा रहे थे.यानी सरकार इस कार्टून में कोई बुराई नहीं देखती.
वैसे भी यह कार्टून कोई नया नहीं है.यह सरकारी संस्था नेशनल बुक ट्रस्ट की संपत्ति है, जिसका एनसीआरटी ने इस्तेमाल किया है.प्रकाशित कार्टून को सरकारी सफाई के नजरिये से देखें तो संविधान रचने के लिए पूरे तीन साल लगाने के दोषी थे बाबा साहेब.
बहरहाल एनसीआरटी को इसका पछतावा नहीं है और इससे जुड़े अफसरान इसे निहायत अकादमिक मामला बताते हुए अपनी गरदन बचा रहे हैं, लेकिन महाराष्ट्र में हो रहे हंगामे से लगता नहीं कि मामला इतनी जल्दी शांत होनेवाला है.
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