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Wednesday 14 March 2012

विदेशी इशारे पर देश चलाना बंद करो! बंद करो!! बंद करो!!



http://mohallalive.com/2012/03/13/thousands-gathered-at-india-gate-demand-release-of-kazmi/ 

आमुखमोहल्ला दिल्लीसंघर्ष

विदेशी इशारे पर देश चलाना बंद करो! बंद करो!! बंद करो!!

13 MARCH 2012
♦ दिलीप खान

मैंने उम्मीद की थी कि यही कोई सौ-दो सौ लोग जुटेंगे, लेकिन इंडिया गेट पर शाम के सात बजते-बजते सात-आठ सौ लोग इकट्ठा हो चुके थे और आधे घंटे के भीतर लखनऊ और बाकी जगहों से आने वाले लोग भी इसमें शामिल हो गये। जुलूस जब घूमकर गेट के ठीक सामने पहुंचा, तो मैंने अनुमान लगाया कि दो हजार से ज्यादा लोग सैयद मोहम्मद अहमद काजमी की गिरफ्तारी के खिलाफ नारे लगा रहे थे। छोटे वाले लाउडस्पीकर, जिसने बीच में काम करना बंद कर दिया, के सहारे बारी-बारी से लोगों को संबोधित करने वाले नेता, बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार जब लोगों से मुखातिब हो रहे थे तो इसके समानांतर अलग-अलग कोनों में अमरीका मुर्दाबाद और इजरायल मुर्दाबाद के नारे भी साथ-साथ अपनी उपस्थिति दिखा रहे थे। कह लीजिए कि लोगों के भीतर आक्रोश को साफ पढ़ा जा सकता था। एकदम बीच में बैठकर या किनारे खड़े होकर। असर बराबर का पड़ रहा था।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया में पढ़ाई कर रहे खुर्शीद अंसारी के चेहरे पर आक्रोश और पीड़ा का मिला-जुला भाव था, 'देश में किसी भी घटना के बाद मुसलमानों को उठाकर ये साबित क्या करना चाहते हैं? कई ऐसे वारदात हैं, जिसमें आतंक [वादी] के नाम पर पकड़े गये लोग बाद में बेकसूर साबित हुए। मालेगांव से लेकर अभी हाल में रिहा हुए मो आमिर तक का नाम इस कड़ी में गिनाया जा सकता है। लेकिन जो नया ट्रेंड देखने को मिल रहा है, वो ये कि अब हाई-प्रोफाइल लोगों को गिरफ्तार कर पूरी कौम के भीतर खौफ को और गहरा किया जा रहा है।'
हाल के महीनों में आतंकवादी के नाम पर गिरफ्तार हुए लोगों के छूटने से लोगों के भीतर संघर्ष और लड़ाई का भाव ज्यादा मजबूत हुआ है। ऐसी गिरफ्तारियों से भारतीय राज्य का सांप्रदायिक चेहरा तो उभर कर सामने आया ही है, साथ ही इसने सांप्रदायिकता को दो स्तर पर मजबूत करने का भी काम किया है। पहला, हर दाढ़ी-टोपी वाले लोगों को गैर-मुस्लिम धार्मिक लोगों के बीच शक की निगाह से देखा जा रहा है और प्रगतिशील बनते-बनते चूक जाने वाले लोग ये सवाल उठाते फिरते हैं कि अगर मुस्लिम कौम ठीक-ठाक है तो आखिरकार क्यों तकरीबन हर केस में मुसलमान ही गिरफ्तार होते हैं। दूसरा, ऐसी हर गिरफ्तारी के बाद पूरे मुस्लिम समुदाय में धर्म के नाम पर एकजुट होने की संभावना लगातार बढ़ती जाती है। इंडिया गेट पर काजमी की रिहाई की मांग करने वाले लोगों को भी दो अलग-अलग खांचों में बांटकर साफ देखा जा सकता है। एक तो वे थे जो धर्मनिरपेक्ष, तरक्कीपसंद, फासीवाद-विरोधी और राजकीय दमन के खिलाफ बोलने में यकीन करते हैं। दूसरे वो थे, जो काजमी की गिरफ्तारी को धर्म की जमीन पर खड़े होकर देख रहे थे और इस तरह धार्मिक गोलबंदी के जरिये सरकार पर दबाव बनाने की तैयारी में हैं।
इमाम बुखारी के बेटे ने इंडिया गेट से आवाज लगायी कि यदि काजमी को जल्द ही नहीं छोड़ा जाता है, तो देश भर के मुसलमान इस सवाल पर प्रदर्शन करेंगे और जामा मस्जिद से इसकी नयी शुरुआत होगी। दूरदर्शन और ईरानी रेडियो सहित कई जगहों पर काम कर चुके एमए काजमी की गिरफ्तारी को लेकर पुलिस ने जो वजहें बतायी हैं, वो बेहद कमजोर है। पुलिस के मुताबिक काजमी के घर से 'लावारिस' स्कूटी बरामद हुई है। परिवार वालों का कहना है कि वो स्कूटी काजमी के भाई की है और उनके यहां साल भर से पड़ी हुई थी। पुलिस ने जो दूसरी वजह बतायी है, वो ये कि काजमी के नंबर से ईरान फोन किया गया। काजमी इराक युद्ध कवर करने के अलावा ईरानी रेडियो के लिए काम कर चुके हैं, तो जाहिर है कि उस इलाके में वो लगातार बात करते रहते हैं। तीसरा तर्क पुलिस का ये है कि काजमी ने बम फोड़ने वाले को अपने घर में शरण दी है। पुलिस का सबसे हास्यास्पद तर्क यही है क्योंकि अब तक बम फोड़ने वाले शख्स की न तो शिनाख्त हुई है और न ही उसके बारे में कुछ भी स्पष्ट विवरण ही पुलिस दे पायी है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि जब बम फोड़ने वाले का ही पता नहीं है, तो उसको शरण देने वाले को किस बिनाह पर गिरफ्तार किया गया। ये कुछ उस तरह की कवायद है गोया टायर हाथ लगने की वजह से कोई साइकिल खरीदने की सोचे!
राज्यसभा सांसद मो अदीब ने ये आश्वासन दिया है कि वो संसद के भीतर इस सवाल को उठाएंगे और पूरी कोशिश करेंगे कि काजमी को पूरे सम्मान के साथ रिहा किया जाए। इससे दो दिन पहले 100 से ज्यादा पत्रकारों और समाजिक कार्यकर्ताओं ने काजमी की गिरफ्तारी की भर्त्सना की। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी सहित कई नेताओं को भी चिट्ठी लिखी गयी है। जर्नलिस्ट यूनियन फॉर सिविल सोसाइटी ने काजमी को तत्काल रिहा करने और मामले की जांच कराने की अपील की है। इंडिया गेट पर लोगों के भीतर जिस तरह की बातचीत चल रही थी और नारों का जो शक्ल था, उससे ये साफ लग रहा था कि मुस्लिमों को ज्यादा लंबे समय तक वोट का स्रोत मानने वाली पार्टियों से उनका मन बिल्कुल उखड़ा हुआ है कि मुस्लिम अब देश के भीतर आतंकवाद के नाम पर हो रही फर्जी गिरफ्तारियों के प्रति न सिर्फ सतर्क हो रहे हैं बल्कि एक सूत्र में ये आपस में बंध भी रहे हैं कि अमरीका के 'वार ऑन टेरर', नाटो के 'रेसपांसिबिलिटी टू प्रोटेक्ट' और इजरायल की इराक-ईरान विरोधी नीतियों को न सिर्फ यहां के मुसलमान समझ रहे हैं बल्कि वैश्विक मामलों में खुद को ग्लोबल आइडेंटिटी के बतौर भी देख रहे हैं।
काजमी की गिरफ्तारी कई मायनों में नयी किस्म की है और आतंकवाद को लेकर देश (दुनिया) के खुफिया विभाग के नये प्रचलन की तरफ भी इशारा कर रही है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में हेडक्वार्टर रखने वाले आतंकी संगठनों के साथ पहले ही कई भारतीयों के नाम नत्थी किये जा चुके हैं। आंतरिक आतंकवादी वाला फॉर्मूला भी बीते कई सालों से चल रहा है लेकिन ये पहला वाकया है जब सीधे-सीधे ईरान और अरब के साथ 'भारतीय आतंकवाद' का लिंक जोड़ा जा रहा है। इस मामले में काजमी की गिरफ्तारी का जितना असर भारत के लोगों पर पड़ेगा, उससे ज्यादा असर ईरान पर पड़ने वाला है।
मुझे ठीक-ठीक याद है कि इजरायली दूतावास के सामने हुए बम विस्फोट के बाद और गिरफ्तीर से पहले जब राज्यसभा टीवी के लिए हमने एमए काजमी को 'मीडिया और आतंकवाद' पर बात करने बुलाया था तो शो रिकॉर्ड होने के बाद मुझसे बातचीत करते हुए वो भी आतंकवाद के नाम पर होने वाली गिरफ्तारियों को ईरान की तरफ शिफ्ट करने को लेकर इशारा कर रहे थे। उस समय मैंने दूर-दूर तक ये कयास नहीं लगाया था कि जिस व्यक्ति से इजरायली दूतावास के सामने हुए बम विस्फोट पर मैं बात कर रहा हूं, उसी को हफ्ते भर बाद उसी मामले के साजिशकर्ता के तौर पर गिरफ्तार कर लिया जाएगा! मैं काजमी की समझदारी का कायल हूं और जिस मामले को लेकर उनकी गिरफ्तारी हुई है, उसके नाकाफी, अस्पष्ट और फर्जी सबूतों की वजह से इस बात की संभावना और ज्यादा देख रहा हूं कि इफ्तिखार गिलानी की तरह काजमी भी जल्द ही रिहा होंगे। सांसद मो अदीब ने जुलूस में लोगों के सामने भारतीय राज्य की बर्बरता पर टिप्पणी करते हुए कहा, 'जब काजमी जैसे लोग पकड़े जा सकते हैं तो समझ लीजिए कि हमें और आपको कभी भी पकड़ कर जेल में ठूंसा जा सकता है।'
आतंकवाद को लेकर दुनिया भर में वैश्विक राजनीति का चेहरा देश के लोगों और खासकर मुसलमानों के बीच अब उघड़ने लगा है और यही वजह है कि इंडिया गेट पर जो नारे सबसे तेज आवाज में सबसे ज्यादा बार लगाये जा रहे थे, वो थे – अमेरिका मुर्दाबाद, इजरायल मुर्दाबाद और विदेशी इशारों पर देश चलाना बंद करो।
(दिलीप खान। युवा पत्रकार। पटना विश्‍वविद्यालय और महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा से डिग्रियां। फिलहाल राज्‍यसभा टीवी में। उनसे dilipkmedia@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।


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