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Saturday, 17 March 2012

कड़वी दवा पिलाने के लिए वित्त मंत्री ने लिया शेक्सपियर का सहारा


कड़वी दवा पिलाने के लिए वित्त मंत्री ने लिया शेक्सपियर का सहारा 

Saturday, 17 March 2012 11:36
अनिल बंसल 
नई दिल्ली, 17 मार्च। प्रणब मुखर्जी जब आम बजट पेश करने लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार की इजाजत से खड़े हुए तो विपक्ष ने हंगामे से उनका स्वागत किया। शुरू में लगा कि हंगामा देर तक चल सकता है पर बुजुर्ग दादा का नरम स्वभाव देख विपक्षी सदस्यों के तेवर नरम पड़ गए। फिर तो 110 मिनट तक दादा ने लगातार धाराप्रवाह भाषण पढ़ा और कई बार सत्ता पक्ष के सदस्यों की वाहवाही भी लूट ले गए। जबकि विपक्षी सदस्यों को विरोध का कोई मौका नहीं दिया। कुछ घोषणाएं तो उन्होंने बड़े रोचक अंदाज में की और अंग्रेजी के नामचीन साहित्यकार शेक्सपियर की कुछ पंक्तियों को भी उदधृत किया। 
दरअसल शुरू में विपक्षी सदस्यों का एतराज कर्मचारी भविष्यनिधि पर ब्याज दर में कटौती को लेकर था। गोपीनाथ मुंडे और मुरली मनोहर जोशी ने भाजपा की तरफ से इसकी शुरुआत की तो माकपा की तरफ से बासुदेव आचार्य ने भी कड़ा विरोध जताया। शोर इस कदर था कि एक बार तो कुछ सुनाई ही नहीं दिया पर अध्यक्ष मीरा कुमार के हस्तक्षेप के बाद माहौल कुछ पल में ही शांत हो गया। नतीजतन मुखर्जी को वे पंक्तियां फिर दोहरानी पड़ी जो शोरगुल के कारण सदन में मौजूद सदस्य सुन नहीं पाए थे। 
दादा ने अपना लंबा बजट भाषण पढ़ने में खासी तेजी दिखाई, तो भी उसे निपटाने में करीब पौने दो घंटे लग गए। सदन में उनके एक तरफ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे तो दूसरी तरफ यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी। सत्ता पक्ष की अगली कतार में गृहमंत्री पी चिदंबरम और रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने भी गौर से बजट भाषण को सुना। त्रिवेदी के चेहरे पर झलक रही मुस्कान बेशक बनावटी रही होगी क्योंकि कुर्सी जाने के तनाव से कोई अप्रभावित कैसे रह सकता है। बजट अब आकर्षण खो रहा है, इसका सबूत सदन की खाली पड़ी कुर्सियां दे रही थीं। सांसद तो दूर कई मंत्री तक नदारद थे। 
गैरहाजिर मंत्रियों में कृषि मंत्री शरद पवार की वजह तो फिर भी समझ आ सकती है। पर नागरिक उड्Þडयन मंत्री अजित सिंह दस बजे हुई कैबिनेट की बैठक में भाग लेने के बाद संसद से चले गए। उत्तराखंड के मामले की वजह से नाराज चल रहे संसदीय कार्य राज्यमंत्री हरीश रावत को भी पत्रकारों की निगाहें हर कोने में खोजती रहीं। और तो और मुखर्जी के दो जूनियरों में से भी एक नदारद थे। वित्त राज्यमंत्री नमोनारायण मीणा तो मुखर्जी के ठीक पीछे विराजमान थे पर द्रमुक के पलाणीमन्निकम  नजर नहीं आए। बताया गया कि वे राज्य के किसी उपचुनाव में व्यस्त हैं। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव भी इस बार सदन में मौजूद नहीं थे। वित्तमंत्री रह चुके विपक्ष के कद्दावर नेता जसवंत सिंह भी गैरहाजिर थे, हालांकि दूसरे पूर्व वित्तमंत्री मुरली मनोहर जोशी और यशवंत सिन्हा ने वित्तमंत्री का भाषण गौर से सुना और नोट भी लिए। पाटलिपुत्र के सांसद और फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा सफर में फंस गए होंगे अन्यथा बजट जैसे मौके पर वे एक घंटा देरी से कतई न आते। 
राज्यसभा की दीर्घा में मशहूर कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन की मौजूदगी से साबित हुआ कि चाह हो तो बुढ़ापा अवरोध पैदा नहीं कर सकता। 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में महीनों जेल में बिता कर आईं द्रमुक की कनिमोड़ि भी राज्यसभा की दीर्घा में जमी थीं। उनके सामने सत्तापक्ष की बेंच पर बैठे सुरेश कलमाड़ी नजरें उठा कर बार-बार उन्हें देख रहे थे। कलमाड़ी राष्ट्रमंडल खेल घोटाले के आरोपी हैं और वे भी लंबा अरसा तिहाड़ में बिताने के बाद बाहर आए हैं। इस दीर्घा में एचके दुआ और एनके सिंह भी दिखाई दिए। जबकि खास मेहमानों के लिए बनी दीर्घा में प्रणब मुखर्जी की बेटी और दूसरे परिवारजनों ने दादा के भाषण को पूरी शिद्दत से सुना। 
वित्तमंत्री के बजट भाषण के दौरान एक बार लोकसभा की हेडफोन व्यवस्था गड़बड़ा गई और भाषण सुना नहीं जा सका। सदस्यों ने इसकी        बाकी पेज 10 पर उङ्मल्ल३्र४ी ३ङ्म स्रँी १०
शिकायत की तो मीरा कुमार ने गड़बड़ी तुरंत दुरुस्त हो जाने का भरोसा जताया, जो हो भी गई। इस पर विपक्षी सदस्यों ने मुखर्जी को टोका कि वे कुछ पंक्तियां जो सुनाई नहीं पड़ी थी, फिर से पढ़ दें। शोर-शराबे में दादा को उनकी बात समझ तो आई पर कुछ देर से। उन्होंने पूछा- क्या 'रोल बैक' करना है? जवाब मिला- हां। यह सुनते ही दादा ने फरमाया- 'रोल बैक आॅफ स्पीच'? सुनते ही पूरा सदन ठहाकों से गूंज उठा और विपक्षी सदस्यों ने चुटकी लेने के अंदाज में कहा- रोल बैक आॅफ महंगाई। 
लोकलुभावन घोषणाओं के बाद जब कर प्रस्तावों की बारी आई तो प्रणब मुखर्जी ने उसकी भूमिका रोचक अंदाज में बनाई। नाटकीय अंदाज में सामने बैठे हरिन पाठक का नाम लेकर मुखर्जी ने कहा कि वित्त मंत्री की जिंदगी सहज नहीं होती क्योंकि उसे चौतरफा दबावों और मांगों से दो-चार होना पड़ता है। जब अर्थव्यवस्था के साथ सब कुछ ठीक-ठाक चलता है तो सब खुश रहते हैं। पर जब कोई गड़बड़ी होती है तो ठीकरा अकेले वित्तमंत्री के सिर फूटता है। इससे सदन का माहौल फिर हल्का-फुल्का नजर आया और इसी का फायदा उठाते हुए भाजपा के मुरली मनोहर जोशी भी मजाक करने से नहीं चूके । उन्होंने नहले पर दहला जड़ने के अंदाज में पलटवार किया कि कई बार वित्तमंत्री औरों की जिंदगी को असहज और दूभर बना देता है। सुनते ही फिर सदन ने ठहाका लगाया। 
सर्विस टैक्स   की दर में दो फीसद की बढ़ोतरी का उल्लेख करने की बारी आई तो मुखर्जी ने साहित्यकार शेक्सपियर को याद किया। उनके मशहूर नाटक- हैमलेट के इस जुमले को दोहराया- दयावान बनने के लिए मुझे क्रूर बनना ही होगा। इस जुमले पर विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ही नहीं सोनिया गांधी भी अपनी हंसी नहीं रोक पाईं। हंसे बिना तो खुद मुखर्जी भी नहीं रह पाए। पश्चिम बंगाल में गंगा के प्रदूषण संबंधी एक कदम का जब मुखर्जी ने एलान किया तो कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी अपनी खुशी को छिपा न पाए। उन्होंने खड़े होकर दो बार थैंक्यू सर कहा तो बाकी सदस्यों को भी जिज्ञासा हुई।   
सिनेमा उद्योग के लिए कर राहत घोषित करते वक्त भी मुखर्जी मजाकिया मूड में दिखे। उन्होंने कहा कि यह भारतीय सिनेमा का शताब्दी वर्ष है। दादा साहब फाल्के ने राजा हरिश्चंद्र पर फिल्म बनाकर इस उद्योग का श्रीगणेश किया था और सौ साल बाद शीर्षक हरिश्चंद्र से बदल कर रा-वन तक पहुंच गया है। इतना सुनते ही फिर सदन में ठहाका गूंज उठा। दादा ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि अनेक विविधताओं के बावजूद सिनेमा ने देश को एक सूत्र में पिरोने में अहम भूमिका निभाई है। अपने भाषण का समापन उन्होंने दार्शनिक अंदाज में किया और कहा- देश एक बड़े बदलाव की दहलीज पर खड़ा है। आज की गई घोषणाएं कल सुबह के अखबारों की सुर्खियां बनें या न बनें, पर एक दशक बाद के भारत को सुर्खियों में लाने में जरूर मददगार होंगी।


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