Pages

Free counters!
FollowLike Share It

Wednesday 14 March 2012

विनिवेश लक्ष्य घटने की खबर से सुधार तेज करने की मुहिम को झटका!


विनिवेश लक्ष्य घटने की खबर से सुधार तेज करने की मुहिम को झटका!

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

चालू वित्त वर्ष में अब तक सरकार विनिवेश का लक्ष्य हासिल करने में नाकाम रही है। मगर अगले साल वह विनिवेश की रफ्तार तेज करेगी,बाजार को ऐसा ही लग रहा था।लेकिन वित्त वर्ष 2012-13 के लिए केंद्रीय बजट पेश होने से महज दो दिन पहले मंगलवार को संसद में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने अगले वित्त वर्ष के लिए विनिवेश लक्ष्य घटाने के संकेत दिए। आगामी वित्त वर्ष के लिए संभवत: 30,000 करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य रखा जा सकता है, जबकि वित्त वर्ष 2010-11 और 2011-12 में विनिवेश के जरिये 40,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा गया था।  बजट से महज तीन दिन पहले और रेल बजट से ेक दिन पहले वित्तमंत्री प्रणव मुख्खर्जी के विनिवेश लक्ष्य घटाने के संकेत दिये जाने से हर हाल में सुधार के एजंडे को झटका लगा है। लगता है कि यूपी के झटके से सरकार अभी उबर नहीं पायी है। मायावती और ममता के किनारे कर लेने के बाद वामपंथी मुलायम के साथ खड़े हो गये हैं। शरद पवार पर भी कांग्रेस को अब ज्यादा भरोसा नहीं है जो बादल के शपथ ग्रहण समारोह में जा रहे हैं। ऊपर से हरीश रावत की भगावत और मंत्रीपद से इस्तीफे से उत्तराखंड में सत्ता की राजनीति कांग्रेस के लिए जी का जंजाल ही नहीं बनी, बल्कि उत्तर भारत में उसके लिए पांव तक रखने की जमीन बाकी नहीं है। ऐसे में आर्थिक सुधारों के लिए रेल बजट या आम बजट में सरकार , सुधारों को जारी रखने की हिम्मत जुटा पायेगी, बाजार​ ​ को इसका ज्यादा आसरा नहीं है।मालूम हो कि पहले उम्मीद की जारही थी कि प्रणव दादा विनिवेश लक्ष्य बढ़ाकर ४०,००० करोड़ से ५०,००० करोड़ कर देंगे। अव सीधे बीस हजार की कटौती से बाजार का क्या होगा, विशेषज्ञ भी नहीं अंदाजा लगा सकते। कुछ एक्सर्पट्स का मानना है कि बजट में टैक्स की कुछ कड़वी डोज भी मिल सकती है क्योंकि सरकार घाटा कम करने की पूरी कोशिश करेगी। मार्केट से जुड़े लोगों का मानना है कि बजट एक महत्वपूर्ण मौके पर आ रहा है। एक ओर सरकार नई पंचवर्षीय योजना (वित्त वर्ष 2013-17) में प्रवेश कर रही है। दूसरी ओर, 2014 में लोकसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में वित्त मंत्री पर पॉपुलिस्ट योजनाओं के ऐलान का भी दबाव रहेगा।

सरकार ने अगले 2 सालों के लिए विनिवेश का लक्ष्य तय कर दिया है। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने बताया कि वित्त वर्ष 2013 के लिए विनिवेश का लक्ष्य 30,000 करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2014 के लिए 25,000 करोड़ रुपये रखा गया है।

मौजूदा वित्त वर्ष के लिए सरकार का विनिवेश का लक्ष्य 40,000 करोड़ रुपये का था, लेकिन ये पूरा नहीं हो पाया।

वित्त मंत्री ने ये भी बताया कि उन्हें 3 लाख रुपये तक की आय को टैक्स से छूट देने का प्रस्ताव मिल गया है, जिस पर विचार किया जा रहा है। उन्होंने ये भी कहा कि किंगफिशर एयरलाइंस को अतिरिक्त लोन देने की स्टेट बैंक की कोई योजना नहीं है।

इस बीच एक और चौंकाने वाले खुलासे से ओएनजीसी की हिस्सेदारी की नीलामी का मामला पेचीदा हो गया है। सरकार ने पहले ही घोषणा कर रखी थी कि अगला विनिवेश इस मामले की पड़ताल के बाद होगा।अब जाकर कहीं  पता लगा है कि  विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) फै्रंकलिन टेम्पलटन इनवेस्टमेंट फंड्स (एफटीआईएफ) दो सप्ताह पहले केंद्र सरकार द्वारा ऑयल ऐंड नैचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) के शेयरों की नीलामी में दूसरे प्रमुख निवेशक के तौर पर सामने आ सकती है।  12,766 करोड़ रुपये की राशि जुटाने के लिए सरकार ने 1 मार्च को ओएनजीसी के 4.203 करोड़ शेयरों की नीलामी की थी। सरकार ने इन शेयरों की नीलामी 303.67 रुपये के मूल्य पर की थी। ओएनजीसी की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक 9 मार्च तक कंपनी में भारतीय जीवन बीमा निगम की 7.7 फीसदी हिस्सेदारी है। एलआईसी के पास ओएनजीसी के 6.64 करोड़ शेयर हैं। नए आंकड़ों के मुताबिक 31 दिसंबर से 9 मार्च के बीच एलआईसी की हिस्सेदारी में 3.58 करोड़ शेयरों का इजाफा हुआ है।सोमवार को दी गई जानकारी के मुताबिक एफटीआईएफ की हिस्सेदारी 1 फीसदी को पार कर चुकी है, जिसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि इसने नीलामी के दौरान भारी संख्या में शेयरों की खरीदारी की है। 12 मार्च को दी गई जानकारी के मुताबिक एफटीआईए के पास ओएनजीसी में 1.06 फीसदी हिस्सेदारी है। ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक 31 दिसंबर तक टेम्पलटन एशिया ग्रोथ फंड और टेम्पलटन इमर्जिंग मार्केट फंड जैसी दो विदेशी संस्थागत इकाइयों के पास संयुक्त तौर पर 7.718 करोड़ शेयर थे। इसमें 31 दिसंबर से 9 मार्च के बीच खरीदे गए अतिरिक्त 1.375  करोड़ शेयर भी शामिल हैं

वित्त मंत्री ने राज्य सभा में कहा, 'सार्वजनिक उपक्रमों में वित्त वर्ष 2012-13 और 2013-14 के दौरान विनिवेश का सांकेतिक लक्ष्य क्रमश: 30,000 करोड़ रुपये और 25,000 करोड़ रुपये है, जो वित्त वर्ष 2011-12 के केंद्रीय बजट के मध्यावधि राजकोषीय नीति वक्तव्य के अनुमानित आंकड़ों पर आधारित है।' मुखर्जी ने कहा कि चालू वित्त वर्ष में विनिवेश के जरिये 40,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा गया था। उन्होंने कहा, 'मुख्य रूप से यूरोपीय संकट के कारण पैदा हुए वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता के माहौल से वित्तीय बाजार बुरी तरह प्रभावित हुए हैं जिससे सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेश की गति धीमी पड़ गई है।'

हाल में संपन्न ओएनजीसी में हिस्सेदारी की नीलामी के साथ ही सरकार ने वित्त वर्ष 2011-12 मेंं विनिवेश के जरिये अब तक 13,911.10 करोड़ रुपये जुटाई है। एनबीसीसी में हिस्सेदारी की संभावित बिक्री के साथ ही इस साल विनिवेश के जरिये कुल लगभग 14,000 करोड़ रुपये जुटाने की उम्मीद है। विनिवेश नीति के तहत वित्त वर्ष 2012-13 के लिए विनिवेश लक्ष्य घटाने से अगले वित्त वर्ष में सरकार पर सार्वजनिक उपक्रमों में हिस्सेदारी बेचकर रकम जुटाने का दबाव  कम होगा।

वित्त मंत्री ने कहा कि यूरो क्षेत्र के ऋण संकट पर सरकार लगातार नजर रख रही थी ताकि समय पर नितिगत हस्तक्षेप किया जा सके। उन्होंने कहा, 'विशेषकर रिजर्व बैंक के गवर्नर की अध्यक्षता में वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (एफएसडीसी) की उप समिति स्थिति पर नजर रख रही थी।'

मुखर्जी ने जोर देकर कहा कि आम सरकारी कर्ज मुख्य रूप से घरेलू है जो मार्च, 2011 के अंत तक जीडीपी का 66.4 फीसदी था। उन्होंने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के आंकड़ों के अनुसार प्रमुख देशों के जीडीपी का 99.7 फीसदी और यूरो क्षेत्र में जीडीपी का 85.3 फीसदी के स्तर से काफी नीचे है।


खबर तो यह है कि सरकार न तो उद्योग जगत को ज्यादा राहत देने की हालत में है और न ही लंबित वित्तीय और दूसरे कानून खटाई से निकालने की उसकी फिलहाल कोई कुव्वत है। राहुल और प्रियंका की हार के बावजूद, बाजार जो उम्मीदों का पिटारा लेकर बैठा था, उसमें से अब अनिश्चितता के सांप संपोले निकलने लगे हैं। श्रीलंका में मानवाधिकारों केखिलाफ अपराध जैसे मामले में राजनयिक निष्क्रियता से इस सरकार को धक्षिण भारत से कोई लाइफलाइन मिलने की उम्मीद भी जाती रही।सरकार अब जैसे तैसे लोक लुभावन बजट पेश करने की जुगत में है, वित्तीय अनुशासन और सख्ती की बातें अब फिजूल हैं।उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के तौर पर विजय बहुगुणा ने देहरादून के परेड ग्राउंड में मंगलवार शाम को शपथ ले ली। राज्यपाल मारग्रेट अल्वा ने उन्हें शपथ दिलाई। लेकिन इस दौरान कांग्रेस के बीच फूट साफ नज़र आई। शपथ ग्रहण समारोह में कई कुर्सियां खाली देखी गईं और कांग्रेस के सिर्फ 10 विधायक ही समारोह के दौरान मौजूद रहे। उत्तराखंड विधानसभा में कांग्रेस के 32 विधायक हैं। शपथ ग्रहण समारोह में कांग्रेस के 22 विधायक नदारद रहे।पिछली रात समस्या तब शुरू हुई, जब रावत के वफादार विधायक उनके आवास पर एकत्र हुए और उन्होंने केंद्रीय नेतृत्त्व के फैसले का विरोध किया। इस सबके बीच कांग्रेस नेतृत्व ने मुख्यमंत्री पद के लिए चयन पर फिर से विचार करने से इनकार कर दिया। कयास लगाए गए कि कुछ विधायकों को लेकर हरीश रावत कांग्रेस से अलग होकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मदद से सरकार बना सकते हैं, लेकिन उनकी कोशिशें काम न आईं। रावत इस समय कृषि और संसदीय मामलों के राज्यमंत्री हैं। यह भी खबर आई कि उन्होंने केंद्रीय कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है।देहरादून में जब विजय बहुगुणा मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे, तो ठीक उसी वक्त दिल्ली में बागी तेवर अपनाए हरीश रावत को कांग्रेस ' त्याग ' की सीख दे रही थी। टीवी रिपोर्ट्स के मुताबिक रावत ने कहा कि वह पार्टी में ही रहकर अपनी बात रखेंगे। उन्होंने कहा कि हाई कमान को सही जानकारी नहीं दी गई थी। मैं पार्टी को दिखाना चाहता था कि विधायक मेरे साथ हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि वह बुधवार से संसद जाएंगे।

गौर तलब है कि राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5.8 फीसदी पर है। सरकार ने इसके लिए 4.6 फीसदी का लक्ष्य रखा था। सरकार का विनिवेश कार्यक्रम असफल होने, तेल और उर्वरक सब्सिडी में बढ़ोतरी और डायरेक्ट टैक्स कलेक्शन कम होने से खजाने पर बोझ बढ़ा है। बजट में सीमा शुल्क वापस लेने की उम्मीद की जा रही है। कुछ सेक्टर ऐसे हैं, जिन्हें विशेष लाभ भी मिल सकता है। रीटेल सेक्टर को इंडस्ट्री का दर्जा दिया जा सकता है। यह रीटेल कंपनियों के लिए अच्छी खबर होगी। इससे उनके लिए फंडिंग के नए रास्ते खुलेंगे। इंडस्ट्री का दर्जा मिलने से रीटेल कंपनियों को विदेश से भी पैसा जुटाने की इजाजत मिल जाएगी।

तमिलनाडु के सांसदों ने वामपंथी दलों की मदद से श्रीलंका के मुद्दे पर राज्य सभा में इतना शोर मचाया कि सभापति हामिद अंसारी को दिन भर के लिए सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। द्रमुक के इस विरोध में उसके प्रतिद्वंदियों अन्ना द्रमुक और वामपंथी दलों के सदस्यों ने भी साथ दिया। जैसे ही सदन की कार्यवाही शुरू हुई, द्रमुक सदस्यों ने खड़े हो कर बैनर दिखाने शुरू कर दिए। वे माँग कर रहे थे कि सरकार, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में श्रीलंका के गृह युद्ध के दौरान तमिलों के खिलाफ कथित रूप से हुई ज्यादतियों के विरोध में अमरीका, फ़्राँस और नॉर्वे के प्रस्ताव का समर्थन करे। राज्यसभा में तमिलनाडु के सांसदों ने एकजुट होकर भारी शोरशराबा किया और पूरे दिन कोई काम नहीं होने दिया। कई बार के स्थगन के बाद आखिरकार सदन की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित करनी पड़ी।

दो महीने से अधिक समय के अंतराल के बाद अन्ना हजारे राजधानी दिल्ली लौट रहे हैं तथा वह इस दौरान आईपीएस अधिकारी नरेंद्र कुमार के लिए न्याय और भंडाफोड़ करने वालों की सुरक्षा के लिए मजबूत कानून की मांग को लेकर रविवार को अनशन पर बैठेंगे। मुम्बई में गत वर्ष दिसम्बर महीने में मजबूत लोकपाल विधेयक की मांग को लेकर अपना तीन दिवसीय अनशन स्वास्थ्य कारणों से वापस लिए जाने के बाद 74 वर्षीय हजारे की ओर से किया जाने वाला यह पहला अनशन होगा।


No comments:

Post a Comment