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Tuesday, 13 March 2012

मैंने एक आतंकवादी के बेटे को देखा, वह सच बोल रहा था!


http://mohallalive.com/2012/03/12/my-father-is-a-national-hero/ 

 मोहल्ला दिल्लीसंघर्ष

मैंने एक आतंकवादी के बेटे को देखा, वह सच बोल रहा था!

12 MARCH 2012 
♦ विश्‍वदीपक
आप आतंक के खिलाफ कैसे युद्ध छेड़ सकते हैं, जबकि युद्ध खुद एक तरह का आतंकवाद है!
हार्वर्ड जिन………………………

ज सुबह फेसबुक पर तफरीह मार रहा था कि सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार की इस पोस्ट पर नजर अटक गयी। कल शाम और आज के बीच ज्यादा फर्क नहीं है। कुछ घंटों के सिवा। लेकिन आतंकवाद और युद्ध जैसे मामूली लगने वाले शब्द जिनका हम आप रोजाना इस्तेमाल करते हैं, कितने भयानक हो सकते हैं, ये अब समझ आ रहा है। दिल्ली का प्रेस क्लब जहां कि मैं अक्सर बेहोश होने जाता हूं, कल गवाह बना एक और त्रासदी का, एक और दर्द का। दर्द जो हिंसक है। और आहिस्ता आहिस्ता हमारी जिंदगी पर कुंडली मार कर बैठता जा रहा है। शौकत काजमी की आंखें भुलाये नहीं भूलती। क्या था उन आंखों में – बदला, गुस्सा, नफरत, शर्म, विभीषिका, याचना ??? अगर आपने भी देखा होता तो यकीन मानिए आप भी तय नहीं कर पाते। जैसे कि मैं नहीं कर पा रहा हूं। उन आंखों में सब कुछ था। और कुछ भी नहीं था…
दिल्ली के एक मध्यवर्गीय परिवार का एक युवक मीडिया के सामने याचना कर रहा था। मेरे पापा गुनहगार/आतंकवादी नहीं हैं… वो निर्दोष हैं… इस देश की न्यायव्यवस्था पर मेरा भरोसा है।
(जब उसने ज्यूडीशियरी बोला तो उसके चेहरे पर साफ नजर आ रहा था कि वो जो बोल रहा है, उस पर उसे भरोसा नहीं…)
यकीनन, आप जानना चाहेंगे कि शौकत काजमी हैं कौन? और कौन हैं उसके पापा? ख्याल है कि ज्यादातर लोग मुहम्मद अहमद काजमी का नाम अब तक जान चुके होंगे। फिर भी एक संक्षिप्त परिचय… दिल्ली में इजराइली दूतावास की गाड़ी पर 13 फरवरी को हुए बम धमाके का आरोपी। आतंकवाद के किसी 'अंतर्राष्ट्रीय गिरोह' का सदस्य। इजराइल और इसीलिए अमेरिका को समाप्त करने पर आमादा कुछ ओसामा टाइप जैसे लोगों का खतरनाक साथी। लेकिन एक परिचय और है उन मुहम्मद अहमद काजमी का जो कई लोगों के दिल में लिखा है…
वो नेक इंसान थे। सभ्य और सुंस्कृत थे। पिछले दो दशक से भी ज्यादा समय से दूरदर्शन के लिए काम करते रहे हैं। इराक युद्ध की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। पीआईबी कार्ड होल्डर हैं। और उर्दू के जाने माने पत्रकार हैं। देश विदेश के कई अखबारों में वो लेख लिखते रहे हैं… शौकत ने बताया कि उसके पापा (अहमद काजमी) अटल बिहारी से लेकर मनमोहन सिंह तक के साथ विदेश दौरा कर चुके हैं। पर नहीं। अहमद काजमी आतंकवादी हैं क्योंकि वो मुहम्मद अहमद काजमी हैं। वो आतंकवादी हैं क्योंकि ऐसा इजराइल की गुप्तचर एजेंसी मोसाद का दावा है। काजमी बेगुनाहों का खून बहाना चाहते थे क्योंकि अमेरिका की विदेश नीति के लिए ये जरूरी है। बीस दिन से ज्यादा हो गये, जब अहमद पुलिस रिमांड पर हैं। उनके साथ क्या सुलूक किया गया होगा ये सोचकर ही सिरहन पैदा हो जाती है। लोकतांत्रिक गुंडों के इशारे पर नाचने वाली पुलिस धमकी दे रही है कि गुनाह कबूल कर वो वरना मोसाद को सौंप देंगे। और मोसाद गुनाह कबूल करवाना अच्छी तरह जानती है।
इत्तफाक देखिए कि जब ये सब हो रहा है, तब धर्मनिरपेक्षता के धंधेबाज चुप हैं। कुछ कुर्सी की जुगत में लगे हैं, तो कुछ युवराज की पगड़ी संभाल रहे हैं। कुछ हवा का रुख भांप रहे हैं। हिंदुस्तान कैसे जख्म जख्म हो रहा है। पूरी एक कौम कैसे खौफ में जीती है। ये मैंने शौकत की आंखों में देखा है। सोचता हूं उसे नींद कैसे आती होगी…? वो सोता भी होगा या नहीं। जिन्‍होंने हमें ताजमहल दिया, जिन्‍होंने हमारे लिए लाल किला बनवाया, जिन्‍होंने अंग्रेजी सम्राज्यवाद से लोहा लिया उनकी आंखों में ऐसी दीनता अच्छी नहीं लगती। डबडबायी आंखें और मुट्ठियों में भिंचा गुस्सा कब तक ये मुल्क जज्ब कर पाएगा… कब तक ???
[ तस्‍वीर (Shauzab Kazmi) सौजन्‍य : द हिंदू ]
Vishwadeepak copy(विश्‍वदीपक। तीक्ष्‍ण युवा पत्रकार। आजतक से जुड़े हैं। रीवा के रहने वाले विश्‍वदीपक ने पत्रकारिता की औपचारिक पढ़ाई आईआईएमसी से की। विश्‍व हिंदू परिषद के डॉन गिरिराज किशोर से लिया गया उनकाइंटरव्‍यू बेहद चर्चा में रहा। उनसे vishwa_dpk@yahoo.com पर संपर्क किया जा सकता है।


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