सरकार अब कारपोरेट इंडिया की आस्था जीतने के लिए हर संभव जुगत लगाने में जुटी,पूंजी बाजार को बचाने के फेर में उपभोक्ताओं पर लदेगा बोझ!
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
घटक दलों की मर्जी पर पूरीतरह निर्भर य़ूपीए सरकार अब कारपोरेट इंडिया की आस्था जीतने के लिए हर संभव जुगत लगाने में गयी है।बड़े आर्थिक सुधार लंबित हैं। रिटेल से लेकर बैंकिंग और विनिवेश में सुधार ठप पड़े हैं। अर्थव्यवस्था अपेक्षा के विपरीत सुस्त हो चली है। अब जब सरकार के मुख्य सलाहकार ने राजनीतिक विकलांगता के बहाने बजट की पूर्व संध्या पर आर्थिक सर्वे पर बतियाते हुए आर्थिक सुधार के मामले में हाथ खड़े कर दिये हैं तो उद्योग जगत की प्रतिक्रिया क्या होगी, समझने वाली बात है। मुख्य आर्थिक सलाहकार, कौशिक बसु का कहना है कि राजनीति की वजह से सरकार के लिए आर्थिक सुधार के कदम उठाना मुश्किल है।मुख्य आर्थिक सलाहकार ने आखिर कह ही दिया कि राजनीति की वजह से सरकार के लिए आर्थिक सुधार के कदम उठाना मुश्किल है।देश के शेयर बाजारों में गुरुवार को गिरावट का रुख रहा। प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 243.45 अंकों की गिरावट के साथ 17,675.85 पर और निफ्टी 83.40 अंकों की गिरावट के साथ 5,380.50 पर बंद हुआ। इस पर तुर्रा यह कि आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक वर्ष 2011-12 में कृषि तथा संबद्ध क्षेत्रों में 2.5 प्रतिशत की विकास दर रहने का अनुमान लगाया गया।हालांकि सर्वेक्षण में रिकार्ड खाद्य उत्पादन के बावजूद योजनान्वित लक्ष्यों से कम विकास दर के मामले पर चिंता भी व्यक्त की गई। वर्तमान पंचवर्षीय योजना के दौरान इसके चार प्रतिशत की तुलना में 3.28 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया।खाद्यानों की खेती के क्षेत्र में कमी आने पर चिंता जताते हुए सर्वेक्षण में अनुसंधान और विकास में पर्याप्त निवेश के माध्यम से इस क्षेत्र में तेजी से सुधार लाने की जरूरत बताई गई। आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया कि कृषि क्षेत्र में भंडारण, संचार, सड़क और बाजार जैसी बुनियादी संरचनाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
कौशिक बसु का कहना है कि देश के विकास की रफ्तार बढ़ने की पूरी उम्मीद है। जीडीपी दर के अनुमान में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और वैश्किल हालातों का ध्यान रखा गया है।कौशिक बसु के मुताबिक देश में निवेश तेजी से बढ़ रहा है। साथ ही, निर्यात में भी अच्छी बढ़ोतरी नजर आ रही है।कौशिक बसु लहूलुहान बाजार के जख्मों पर मलहम लगाने की कोशिश में यह भी कहते नहीं चुकते कि मौद्रिक नीतियों में भी सुधार और बदलाव करने की की जरूरत है।पर वे वित्तीय नीतियों की अनुपस्थित पर खामोश हैं।भारतीय रिजर्व बैंक की मध्यावधि तिमाही मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं होने पर देश के प्रमुख उद्योग संगठनों ने निराशा जताई है। आरबीआई ने गुरूवार को मौद्रिक नीति की तिमाही मध्यावधि समीक्षा में रेपो और रिवर्स रेपो तथा सीआरआर में कोई बदलाव नहीं करते हुए इन्हें यथावत बनाए रखा।
पूंजी बाजार को मजबूती देने के लिए अब प्रणव बाबू के सामने सरकारी खर्च कम करने के अलावा उपभोक्ताओं पर टैक्स का बोझ लादने के सिवाय शायद ही दूसरा कोई उपाय बचा हो। पर बाजार में इसके चलते नकदी की किल्लत और मांग में आशंकित गिरावट से तो आखिरकार गाज कारपेट जगत के कारोबार पर ही गिरनी है।निवेशकों की नजर पूंजी की कमी का सामना कर रहे क्षेत्रों जैसे बीमा, विमानन, पेंशन और बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्रों में विदेशी निवेश को आंमत्रित करने के सरकार के रवैये पर भी रहेगी। सरकार शुक्रवार को स्वतंत्र भारत का 81वां आम बजट पेश करेगी। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी संसद में कराधान और अन्य आर्थिक नीतियों की घोषणा करेंगे।उम्मीद की जा रही है कि वह आयकर छूट की सीमा बढा़कर कम से कम इसे दो लाख रुपये तक कर सकते हैं। मुखर्जी प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) के बारे में बजट भाषण के दौरान औपचारिक ऐलान कर सकते हैं, जो 2013-14 से अस्तित्व में आएगा। भारत में उदारीकरण के बाद उत्पादन नहीं बल्कि उपभोक्ता बाजार के इर्द गिर्द बाजार की गतिविधियां चलती है।अर्थ व्यवस्था पर सबसे ज्यादा बुरा असर खेती चौपट होने का पड़ा है। चूंकि बाजार का विस्तार देहात में ही संभव है, इसलिए कृषि क्षेत्र की बदहाली का असर निवेश पर होना है। उपभोक्ता बाजार अब देहात पर काफी हद तक निर्भर है क्योंकि बड़े शहरों और कस्बों में कारोबार अब और बढ़ाना संभव नही है। कृषि और उपभोक्ता बाजार पर दोपही मार से कारपोरेट इंडिया के पास कमर सहलाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचेगा। पर खबर है कि प्रणब बजट में लग्जरी सेवाओं के लिए ज्यादा जेब ढ़ीली करवाने के मूड में है। सर्विस टैक्स के दायरे को बढ़ाते हुए वित्त मंत्री शराब, होटल, मोबाइल बिल, महंगी कारों में सफर जैसी लग्जरी सेवाओं पर कीमत बढ़ने की मार डाल सकते हैं। वहीं कई उत्पादों पर सर्विस टैक्स की दर में भी इजाफा किया जाने की उम्मीद है। ऐसे में लॉन्ड्री, मोबाइल बिल, शराब, होटल सभी सेवाओं के लिए लोगों को ज्यादा पैसा चुकाना होगा।खबर है कि आम बजट 2012-13 में इलेक्ट्रानिक उत्पाद की कीमतों में इजाफा हो सकता है। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी बजट में इस बार एक्साइज ड्यूटी की छूट को कम कर 2 फीसदी तक का इजाफा कर सकते हैं। ऐसे में टीवी, मोबाइल, एसी, म्यूजिक सिस्टम, फ्रिज और अन्य इलेक्ट्रानिक उत्पाद खरीदने के लिए लिए आपको ज्यादा पैसे चुकाने पड़ेंगे। इस वक्त इन उत्पादों पर अलग-अलग दर से एक्साइज ड्यूटी पर रियायत दी जा रही है। जहां एसी के लिए ये दर 25 फीसदी हैं, वहीं एलसीडी और प्लाजमा टीवी पर ये आंकड़ा 30 फीसदी है। इसके अलावा जीएसएम मोबाइल फोन और फ्रिज पर 35 फीसदी की एक्साइज ड्यूटी रियायत है। दिलचस्प है कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के बजट में एक्साइज छूट को 2 फीसदी तक कम करने से इन उत्पादों के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ सकता है।
सरकार में शामिल दलों के साथ ही चौतरफ विरोध के बावजूद उसने मल्टी ब्रांड खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(एफडीआई) की पुरजोर वकालत की है।वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी द्वारा आज पेश आर्थिक सर्वेक्षण में यह वकालत करते हुए कहा गया है कि कृषि उत्पादों की फसल कटाई अवसंचरना में महत्वपूर्ण निवेश अंतरों को ध्यान में रखते हुये संगठित व्यापार और कृषि को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके लिए मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई को प्रभावी रूप से प्रोत्साहित किए जाने की बात कही गई है। इसमें कहा गया है कि सरकार को खाद्यान्नों के लिए आधुनिक भंडारण सुविधाओं का निर्माण करने के लिए कदम उठाने चाहिए।उल्लेखनीय है कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी के बावजूद सरकार में शामिल दलों, विपक्षी दलों और खुदरा कारोबारियों के संगठनों के भारी विरोध के कारण उसे मल्टी ब्रांड खुदरा कारोबार में एफडीआई के निर्णय को वापस लेना पडा़ था।दूसरी तरफ खाद्य मंत्री के वी थामस ने संसद के चालू सत्र में खाद्य सुरक्षा विधेयक के पारित होने की संभावना इनकार किया है और कहा है कि राज्यों द्वारा उठाई समस्याओं को सुलझाने के लिए अभी भी परामर्श हो रहा है। खाद्य विधेयक पर बहस मानसून सत्र में ही हो सकती है।नई दिल्ली में खाद्य एवं उपभोक्ता मामले के मंत्रालय के एक समारोह के मौके पर थामस ने कहा , 'यह विधेयक बजट सत्र में पेश हो पाना मुश्किल है। संसद की स्थाई समिति को अभी अपनी रिपोर्ट सौंपनी है।'आर्थिक विशेषज्ञों की मानें तो यह रिपोर्ट डीजल के दामों में भारी वृद्धि का समर्थन करती है। यानी कल के बजट में प्रणब दा डीजल के दाम बढ़ाये जाने की घोषणा कर सकते हैं और अगर डीजल के दाम बढ़े तो खाद्य पदार्थों व अन्य वस्तुओं के दाम जरूर बढ़ेंगे।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक 2011 को शीतकालीन सत्र के आखिर में पेश किया गया था और उम्मीद थी कि बजट सत्र में इस पर चर्चा होगी और इसे पारित किया जाएगा। इस विधेयक के तहत देश की करीब 63 फीसद आबादी को खाद्य सुरक्षा के लिए सब्सिडी का वायदा किया गया है।
बम्बई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों वाला संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 2.45 अंकों की गिरावट के साथ 17,916.85 पर खुला। सेंसेक्स ने 17,918.25 के ऊपरी और 17,622.13 के निचले स्तर को छुआ।
सेंसेक्स के 30 में से नौ शेयरों में तेजी रही। हिंदुस्तान युनीलीवर (1.80 फीसदी), विप्रो (1.43 फीसदी), एनटीपीसी (1.13 फीसदी), टीसीएस (0.72 फीसदी), सन फार्मा (0.38 फीसदी) में सर्वाधिक तेजी रही।
सेंसेक्स में गिरावट में रहने वाले शेयरों में प्रमुख रहे डीएलएफ (4.76 फीसदी), भेल (3.37 फीसदी), एचडीएफसी बैंक (3.05 फीसदी), आईसीआईसीआई बैंक (2.47 फीसदी) और ओएनजीसी (2.45 फीसदी)।
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का 50 शेयरों वाला संवेदी सूचकांक निफ्टी 1.40 अंकों की गिरावट के साथ 5,462.50 पर खुला। निफ्टी ने 5,462.50 के ऊपरी और 5,362.30 के निचले स्तर को छुआ।
बीएसई के मिडकैप और स्मॉलकैप सूचकांकों में भी गिरावट रही। मिडकैप 89.98 अंकों की गिरावट के साथ 6,405.36 पर और स्मॉलकैप 66.19 अंकों की गिरावट के साथ 6,780.45 पर बंद हुआ।
बीएसई के 13 में से सिर्फ एक सेक्टर सूचना प्रौद्योगिकी (0.09 फीसदी) में तेजी रही। गिरावट वाले सेक्टरों में प्रमुख रहे उपभोक्ता टिकाऊ वस्तु (3.66 फीसदी), रियल्टी (2.66 फीसदी), बैंकिंग (2.60 फीसदी), पूंजीगत वस्तु (2.04 फीसदी) और सार्वजनिक कम्पनियां (1.97 फीसदी)।
बीएसई में कारोबार का रुझान नकारात्मक रहा। कुल 1006 शेयरों में तेजी और 1848 में गिरावट रही, जबकि 129 शेयरों के भाव में बदलाव नहीं हुआ।
आर्थिक सर्वेक्षण 2012 में कहा गया कि बाजार निजी हित से संचालित होता है, लेकिन इसके साथ ही कहा गया कि नैतिकता के अभाव और रिश्वतखोरी के कारण देश गरीबी के दलदल में फंसा रहेगा। इसमें कहा गया कि ईमानदारी और भरोसे से ही समाज बनता है। यदि किसी देश में ईमानदारी का अभाव है, तो पूरी सम्भावना है कि देश गरीबी के दलदल में फंसा रह जाएगा।
सर्वेक्षण में विभिन्न अनुमानों के मुताबिक गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों का अलग-अलग अनुपात बताया गया। लाकड़ावाला समिति और तेंदुलकर समिति के मुताबिक 2004-05 के लिए गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों का अनुपात क्रमश: 27.5 फीसदी और 37.2 फीसदी बताया गया।
तेंदुलकर समिति के मुताबिक 2004-05 में ओडिशा में सर्वाधिक 57.2 फीसदी गरीबी, उसके बाद बिहार में 54.4 फीसदी और छत्तीसगढ़ में 49.4 फीसदी गरीबी थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 37.2 फीसदी था।
सरकार ने कहा है कि तमाम अंतरराष्ट्रीय प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था मजूबत स्थिति में है। उम्मीद है कि अगले वित्त वर्ष से यह फिर से अपने पुराने रंग में आने लगेगी। सरकार की तरफ से गुरुवार को संसद में पेश वर्ष 2011-12 के आर्थिक सर्वेक्षण में अगले वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद [जीडीपी] 7.6 प्रतिशत और इसके बाद इसके 8.6 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।इकोनॉमिक सर्वे में इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में तेजी लाने के लिए मल्टीब्रैंड रिटेल में एफडीआई को मंजूरी दिए जाने की बात कही गई है।आर्थिक सर्वे में सरकार ने सोने जैसे गैर आयातित उत्पाद के आयात में कमी करने की बात कही है। सरकार का मानना है कि आम आदमी का सोने के प्रति मोह से अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हो रही है। ऐसे में इसके इस्तेमाल को कम करने के लिए सरकार इस आम बजट में सोने पर आयात शुल्क की मार डाल सकती है।अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर के बीच सरकार के समक्ष वित्तीय घाटे को लक्ष्य के दायरे में रखने की कोशिश है और वित्त वर्ष 2011-12 के बजट में इसके जीडीपी के 4.6 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। सरकार ने कृषि एवं सेवा क्षेत्रों के बेहतर प्रदर्शन करने का हवाला देते हुए कहा है कि कृषि क्षेत्र में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है। सेवा क्षेत्र में 9.4 प्रतिशत की दर से बढो़तरी होगी और जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी 59 प्रतिशत तक बढी़ है।
हांलाकि आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष में निवेश में कमी आएगी। चालू वित्त वर्ष में ब्याज दरों में बढो़तरी हुई है जिससे ऋण महंगा हुआ है। इसके साथ लागत बढ़ने से मुनाफे पर दबाव बढा है और इसका असर आंतरिक संसाधन पर पडा़ है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि बचत खाता पर ब्याज को नियंत्रण मुक्त करने से वित्तीय बचत में बढो़तरी होगी और इससे मौद्रिक स्थिति सुदृढ़ होगी। सर्वेक्षण में कहा गया है कि देश का विदेश व्यापार अभी भी विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है और चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में निर्यात वृद्धि दर 40.5 प्रतिशत रही थी लेकिन इसके बाद से इसमें गिरावट आने लगी है। हालांकि चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से दिसंबर तक आयात में 30.4 प्रतिशत की दर से बढोतरी हुई है।
सर्वेक्षण में सरकार ने कृषि क्षेत्र में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि होने का हवाला देते हुए कहा है कि कृषि उत्पादों की फसल कटाई अवसंचरना में महत्वपूर्ण निवेश अंतरों को ध्यान में रखते हुए संगठित व्यापार और कृषि को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके लिए मल्टी ब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआई] को प्रभावी रूप से प्रोत्साहित किए जाने की बात कही गई है। इसमें कहा गया है कि सरकार को खाद्यान्नों के लिए आधुनिक भंडारण सुविधाओं का निर्माण करने के लिए कदम उठाने चाहिए।
खराब होने वाली खाद्य पदार्थों को कृषि उत्पाद विपणन समिति अधिनियम के दायरे से बाहर रखने की वकालत करते हुए कहा गया है कि नियामक मंडियां कभी कभी खुदरा व्यापारियों को किसानों के साथ जोड़ने से रोकती है। खराब होने वाली वस्तुओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें इस अधिनियम से मुक्त रखना होगा। इसमें कहा गया है कि अंतर राज्य व्यापार को बढा़वा देने के लिए किसी जिंस पर एक बार बाजार शुल्क लगने के बाद अन्य राज्यों में उसके व्यापार सहित किसी अन्य बाजार में दोबारा शुल्क नहीं लगाया जाना चाहिए। केवल सेवाओं से संबंधित उपभोक्ता प्रभार ही उसके बाद के लेनदेन पर लगाए जाएं।
सर्वेक्षण में उन्नत मंडी व्यवस्था का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि व्यापारियों को अधिक संख्या में मंडियों का एजेंट बनने की अनुमति दी जानी चाहिए। कृषि उत्पाद विपणन समिति और इसके बाहर से जो कोई भी बेहतर मूल्य और शर्त प्राप्त कर सके उसे ऐसा करने की अनुमति दी जानी चाहिए। उपभोक्ताओं के लिए बेहतर सामग्री की आपूर्ति के उद्देश्य से विशेष फसल उत्पादन करने वाले राज्यों, क्षेत्रों में विशेष बाजार स्थापित किए जाने की बात भी कही गई है।
सरकार ने कहा है कि देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य निवेश में महत्वपूर्ण बढो़तरी हुई है और वर्ष 2010-11 में इस पर व्यय बढ़कर 96672.79 करोड़ रुपए हो गया। स्वास्थ्य क्षेत्र में संसाधन आवंटन में बढो़तरी के अतिरिक्त सरकार गरीबों और हाशिए पर रह रहे श्रमिकों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के माध्यम से सार्वजनिक तथा निजी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का विस्तार करके इसमें मनरेगा लाभार्थियों और बीडी श्रमिकों को शामिल किया जा रहा है।
शिक्षा पर बजटीय आवंटन में बढो़तरी का हवाला देते हुए सरकार ने कहा है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम और शैक्षणिक सहायताओं में बढो़तरी की वजह से स्कूली शिक्षा अधूरी छोड़ने वाले बच्चों की संख्या वर्ष 2005 में 134.6 लाख थी, जो वर्ष 2009 में घटकर 81.5 लाख रह गई। सर्वेक्षण में कहा गया है कि सितंबर 2009 से रोजगार में वृद्धि हुई जो अभी जारी है। चुंनीदा क्षेत्रों तथा परिधान सहित चमडा़, धातु, आटोमोबाइल, रत्न और आभूषण, परिहवन सूचना प्रौद्योगिकी, बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग तथा हथकरधा पारवमूल क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढे़ हैं।
इसमें कहा गया है कि सितंबर 2011 में समग्र रोजगार सितंबर 2010 की तुलना में नौ लाख 11 हजार बढे़। इस अवधि में आईटी, बीपीओ क्षेत्र में सबसे अधिक सात लाख 96 हजार रोजगार वृद्धि हुई। इसके बाद धातु में एक लाख सात हजार, आटोमोबाइल में 71 हजार, रत्न एवं आभूषण में आठ हजार और चमडा़ उद्योग में सात हजार रोजगार की बढो़तरी दर्ज की गई है। सर्वेक्षण के अनुसार सरकारी और निजी क्षेत्रों सहित संगठित क्षेत्र में वर्ष 2010 के दौरान रोजगार में 1.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो इससे पिछले वर्ष से कम है। निजी क्षेत्र की वार्षिक वृद्धि दर सरकारी क्षेत्र की तुलना में बहुत अधिक रही। संगठित क्षेत्र में रोजगार में महिलाओं की हिस्सेदारी मार्च 2010 के अंत में 20.4 प्रतिशत थी और हाल के वर्षों में यह लगभग स्थिर रही है।
सर्वेक्षण में राजकोषीय घाटे का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि 2008 में यह जीडीपी का 2.0 प्रतिशत पर था, लेकिन वैश्विक आर्थिक मंदी की वजह से विभिन्न प्रोत्साहन पैकजों की वजह से 2009 में यह बढ़कर 6.7 प्रतिशत पर पहुंच गया। हालांकि इसके बाद से इसमें गिरावट का रुख बना हुआ है और 2010 में यह जीडीपी का 5.5 प्रतिशत. वर्ष 2011 में 4.6 प्रतिशत और 2012 में इसके 4.1 प्रतिशत पर आने का अनुमान है। इसमें कहा गया है कि विकसित देशों में 2010 में यह 7.6 प्रतिशत और 2011 में 6.6 प्रतिशत रहने की संभावना है।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि कमजोर वैश्विक आर्थिक संभावनाओं और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में अनिश्चितताओं के कारण बैंकों और कॉपरेरेट के लिए विदेशी धन की उपलब्धता और लागत पर रिणात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। भारतीय बैंकिंग प्रणाली की सराहना करते हुए कहा गया है कि वैश्विक मंदी के कारण आई गिरावट से उबरने के रुझान के साथ ही सार्वजनिक और निजी दोनों ही बैंकिंग क्षेत्रों ने वर्ष 2010-11 के दौरान प्राथमिक क्षेत्र ऋण अदायगी में प्रभावी वृद्धि दिखलाई है।
कृषि ऋण की मांग उत्तरी क्षेत्र में अधिक रही है और 125 लाख नए किसान बैंकिंग प्रणाली से जोडे़ गए हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की 98 प्रतिशत शाखाएं पूर्ण कंप्यूटरीकृत हो चुकी हैं और वर्ष 2010-11 में एटीएम मशीनों की संख्या में भी बढो़तरी हुई है। इसमें कहा गया है कि अप्रैल 2012 से शुरू हो रही 12वीं पंचवर्षीय योजना में काबर्न उत्सर्जन में कमी लाने पर विशेष रूप से जोर दिया जाना चाहिए। हालांकि भारत की प्रति व्यक्ति व्यक्ति काबर्न डाईआक्साइड उत्सर्जन विकसित देशों की तुलना में काफी कम 1.52 कार्बन डाईआक्साइड टन है। इसे वर्ष 2020 तक वर्ष 2005 के स्तर से 20 से 25 प्रतिशत तक कमी लाने की पहले की घोषणा की जा चुकी है।
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
घटक दलों की मर्जी पर पूरीतरह निर्भर य़ूपीए सरकार अब कारपोरेट इंडिया की आस्था जीतने के लिए हर संभव जुगत लगाने में गयी है।बड़े आर्थिक सुधार लंबित हैं। रिटेल से लेकर बैंकिंग और विनिवेश में सुधार ठप पड़े हैं। अर्थव्यवस्था अपेक्षा के विपरीत सुस्त हो चली है। अब जब सरकार के मुख्य सलाहकार ने राजनीतिक विकलांगता के बहाने बजट की पूर्व संध्या पर आर्थिक सर्वे पर बतियाते हुए आर्थिक सुधार के मामले में हाथ खड़े कर दिये हैं तो उद्योग जगत की प्रतिक्रिया क्या होगी, समझने वाली बात है। मुख्य आर्थिक सलाहकार, कौशिक बसु का कहना है कि राजनीति की वजह से सरकार के लिए आर्थिक सुधार के कदम उठाना मुश्किल है।मुख्य आर्थिक सलाहकार ने आखिर कह ही दिया कि राजनीति की वजह से सरकार के लिए आर्थिक सुधार के कदम उठाना मुश्किल है।देश के शेयर बाजारों में गुरुवार को गिरावट का रुख रहा। प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 243.45 अंकों की गिरावट के साथ 17,675.85 पर और निफ्टी 83.40 अंकों की गिरावट के साथ 5,380.50 पर बंद हुआ। इस पर तुर्रा यह कि आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक वर्ष 2011-12 में कृषि तथा संबद्ध क्षेत्रों में 2.5 प्रतिशत की विकास दर रहने का अनुमान लगाया गया।हालांकि सर्वेक्षण में रिकार्ड खाद्य उत्पादन के बावजूद योजनान्वित लक्ष्यों से कम विकास दर के मामले पर चिंता भी व्यक्त की गई। वर्तमान पंचवर्षीय योजना के दौरान इसके चार प्रतिशत की तुलना में 3.28 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया।खाद्यानों की खेती के क्षेत्र में कमी आने पर चिंता जताते हुए सर्वेक्षण में अनुसंधान और विकास में पर्याप्त निवेश के माध्यम से इस क्षेत्र में तेजी से सुधार लाने की जरूरत बताई गई। आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया कि कृषि क्षेत्र में भंडारण, संचार, सड़क और बाजार जैसी बुनियादी संरचनाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
कौशिक बसु का कहना है कि देश के विकास की रफ्तार बढ़ने की पूरी उम्मीद है। जीडीपी दर के अनुमान में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों और वैश्किल हालातों का ध्यान रखा गया है।कौशिक बसु के मुताबिक देश में निवेश तेजी से बढ़ रहा है। साथ ही, निर्यात में भी अच्छी बढ़ोतरी नजर आ रही है।कौशिक बसु लहूलुहान बाजार के जख्मों पर मलहम लगाने की कोशिश में यह भी कहते नहीं चुकते कि मौद्रिक नीतियों में भी सुधार और बदलाव करने की की जरूरत है।पर वे वित्तीय नीतियों की अनुपस्थित पर खामोश हैं।भारतीय रिजर्व बैंक की मध्यावधि तिमाही मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं होने पर देश के प्रमुख उद्योग संगठनों ने निराशा जताई है। आरबीआई ने गुरूवार को मौद्रिक नीति की तिमाही मध्यावधि समीक्षा में रेपो और रिवर्स रेपो तथा सीआरआर में कोई बदलाव नहीं करते हुए इन्हें यथावत बनाए रखा।
पूंजी बाजार को मजबूती देने के लिए अब प्रणव बाबू के सामने सरकारी खर्च कम करने के अलावा उपभोक्ताओं पर टैक्स का बोझ लादने के सिवाय शायद ही दूसरा कोई उपाय बचा हो। पर बाजार में इसके चलते नकदी की किल्लत और मांग में आशंकित गिरावट से तो आखिरकार गाज कारपेट जगत के कारोबार पर ही गिरनी है।निवेशकों की नजर पूंजी की कमी का सामना कर रहे क्षेत्रों जैसे बीमा, विमानन, पेंशन और बहु-ब्रांड खुदरा क्षेत्रों में विदेशी निवेश को आंमत्रित करने के सरकार के रवैये पर भी रहेगी। सरकार शुक्रवार को स्वतंत्र भारत का 81वां आम बजट पेश करेगी। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी संसद में कराधान और अन्य आर्थिक नीतियों की घोषणा करेंगे।उम्मीद की जा रही है कि वह आयकर छूट की सीमा बढा़कर कम से कम इसे दो लाख रुपये तक कर सकते हैं। मुखर्जी प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) के बारे में बजट भाषण के दौरान औपचारिक ऐलान कर सकते हैं, जो 2013-14 से अस्तित्व में आएगा। भारत में उदारीकरण के बाद उत्पादन नहीं बल्कि उपभोक्ता बाजार के इर्द गिर्द बाजार की गतिविधियां चलती है।अर्थ व्यवस्था पर सबसे ज्यादा बुरा असर खेती चौपट होने का पड़ा है। चूंकि बाजार का विस्तार देहात में ही संभव है, इसलिए कृषि क्षेत्र की बदहाली का असर निवेश पर होना है। उपभोक्ता बाजार अब देहात पर काफी हद तक निर्भर है क्योंकि बड़े शहरों और कस्बों में कारोबार अब और बढ़ाना संभव नही है। कृषि और उपभोक्ता बाजार पर दोपही मार से कारपोरेट इंडिया के पास कमर सहलाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं बचेगा। पर खबर है कि प्रणब बजट में लग्जरी सेवाओं के लिए ज्यादा जेब ढ़ीली करवाने के मूड में है। सर्विस टैक्स के दायरे को बढ़ाते हुए वित्त मंत्री शराब, होटल, मोबाइल बिल, महंगी कारों में सफर जैसी लग्जरी सेवाओं पर कीमत बढ़ने की मार डाल सकते हैं। वहीं कई उत्पादों पर सर्विस टैक्स की दर में भी इजाफा किया जाने की उम्मीद है। ऐसे में लॉन्ड्री, मोबाइल बिल, शराब, होटल सभी सेवाओं के लिए लोगों को ज्यादा पैसा चुकाना होगा।खबर है कि आम बजट 2012-13 में इलेक्ट्रानिक उत्पाद की कीमतों में इजाफा हो सकता है। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी बजट में इस बार एक्साइज ड्यूटी की छूट को कम कर 2 फीसदी तक का इजाफा कर सकते हैं। ऐसे में टीवी, मोबाइल, एसी, म्यूजिक सिस्टम, फ्रिज और अन्य इलेक्ट्रानिक उत्पाद खरीदने के लिए लिए आपको ज्यादा पैसे चुकाने पड़ेंगे। इस वक्त इन उत्पादों पर अलग-अलग दर से एक्साइज ड्यूटी पर रियायत दी जा रही है। जहां एसी के लिए ये दर 25 फीसदी हैं, वहीं एलसीडी और प्लाजमा टीवी पर ये आंकड़ा 30 फीसदी है। इसके अलावा जीएसएम मोबाइल फोन और फ्रिज पर 35 फीसदी की एक्साइज ड्यूटी रियायत है। दिलचस्प है कि वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के बजट में एक्साइज छूट को 2 फीसदी तक कम करने से इन उत्पादों के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ सकता है।
सरकार में शामिल दलों के साथ ही चौतरफ विरोध के बावजूद उसने मल्टी ब्रांड खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश(एफडीआई) की पुरजोर वकालत की है।वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी द्वारा आज पेश आर्थिक सर्वेक्षण में यह वकालत करते हुए कहा गया है कि कृषि उत्पादों की फसल कटाई अवसंचरना में महत्वपूर्ण निवेश अंतरों को ध्यान में रखते हुये संगठित व्यापार और कृषि को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके लिए मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई को प्रभावी रूप से प्रोत्साहित किए जाने की बात कही गई है। इसमें कहा गया है कि सरकार को खाद्यान्नों के लिए आधुनिक भंडारण सुविधाओं का निर्माण करने के लिए कदम उठाने चाहिए।उल्लेखनीय है कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी के बावजूद सरकार में शामिल दलों, विपक्षी दलों और खुदरा कारोबारियों के संगठनों के भारी विरोध के कारण उसे मल्टी ब्रांड खुदरा कारोबार में एफडीआई के निर्णय को वापस लेना पडा़ था।दूसरी तरफ खाद्य मंत्री के वी थामस ने संसद के चालू सत्र में खाद्य सुरक्षा विधेयक के पारित होने की संभावना इनकार किया है और कहा है कि राज्यों द्वारा उठाई समस्याओं को सुलझाने के लिए अभी भी परामर्श हो रहा है। खाद्य विधेयक पर बहस मानसून सत्र में ही हो सकती है।नई दिल्ली में खाद्य एवं उपभोक्ता मामले के मंत्रालय के एक समारोह के मौके पर थामस ने कहा , 'यह विधेयक बजट सत्र में पेश हो पाना मुश्किल है। संसद की स्थाई समिति को अभी अपनी रिपोर्ट सौंपनी है।'आर्थिक विशेषज्ञों की मानें तो यह रिपोर्ट डीजल के दामों में भारी वृद्धि का समर्थन करती है। यानी कल के बजट में प्रणब दा डीजल के दाम बढ़ाये जाने की घोषणा कर सकते हैं और अगर डीजल के दाम बढ़े तो खाद्य पदार्थों व अन्य वस्तुओं के दाम जरूर बढ़ेंगे।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक 2011 को शीतकालीन सत्र के आखिर में पेश किया गया था और उम्मीद थी कि बजट सत्र में इस पर चर्चा होगी और इसे पारित किया जाएगा। इस विधेयक के तहत देश की करीब 63 फीसद आबादी को खाद्य सुरक्षा के लिए सब्सिडी का वायदा किया गया है।
बम्बई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों वाला संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 2.45 अंकों की गिरावट के साथ 17,916.85 पर खुला। सेंसेक्स ने 17,918.25 के ऊपरी और 17,622.13 के निचले स्तर को छुआ।
सेंसेक्स के 30 में से नौ शेयरों में तेजी रही। हिंदुस्तान युनीलीवर (1.80 फीसदी), विप्रो (1.43 फीसदी), एनटीपीसी (1.13 फीसदी), टीसीएस (0.72 फीसदी), सन फार्मा (0.38 फीसदी) में सर्वाधिक तेजी रही।
सेंसेक्स में गिरावट में रहने वाले शेयरों में प्रमुख रहे डीएलएफ (4.76 फीसदी), भेल (3.37 फीसदी), एचडीएफसी बैंक (3.05 फीसदी), आईसीआईसीआई बैंक (2.47 फीसदी) और ओएनजीसी (2.45 फीसदी)।
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का 50 शेयरों वाला संवेदी सूचकांक निफ्टी 1.40 अंकों की गिरावट के साथ 5,462.50 पर खुला। निफ्टी ने 5,462.50 के ऊपरी और 5,362.30 के निचले स्तर को छुआ।
बीएसई के मिडकैप और स्मॉलकैप सूचकांकों में भी गिरावट रही। मिडकैप 89.98 अंकों की गिरावट के साथ 6,405.36 पर और स्मॉलकैप 66.19 अंकों की गिरावट के साथ 6,780.45 पर बंद हुआ।
बीएसई के 13 में से सिर्फ एक सेक्टर सूचना प्रौद्योगिकी (0.09 फीसदी) में तेजी रही। गिरावट वाले सेक्टरों में प्रमुख रहे उपभोक्ता टिकाऊ वस्तु (3.66 फीसदी), रियल्टी (2.66 फीसदी), बैंकिंग (2.60 फीसदी), पूंजीगत वस्तु (2.04 फीसदी) और सार्वजनिक कम्पनियां (1.97 फीसदी)।
बीएसई में कारोबार का रुझान नकारात्मक रहा। कुल 1006 शेयरों में तेजी और 1848 में गिरावट रही, जबकि 129 शेयरों के भाव में बदलाव नहीं हुआ।
आर्थिक सर्वेक्षण 2012 में कहा गया कि बाजार निजी हित से संचालित होता है, लेकिन इसके साथ ही कहा गया कि नैतिकता के अभाव और रिश्वतखोरी के कारण देश गरीबी के दलदल में फंसा रहेगा। इसमें कहा गया कि ईमानदारी और भरोसे से ही समाज बनता है। यदि किसी देश में ईमानदारी का अभाव है, तो पूरी सम्भावना है कि देश गरीबी के दलदल में फंसा रह जाएगा।
सर्वेक्षण में विभिन्न अनुमानों के मुताबिक गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों का अलग-अलग अनुपात बताया गया। लाकड़ावाला समिति और तेंदुलकर समिति के मुताबिक 2004-05 के लिए गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों का अनुपात क्रमश: 27.5 फीसदी और 37.2 फीसदी बताया गया।
तेंदुलकर समिति के मुताबिक 2004-05 में ओडिशा में सर्वाधिक 57.2 फीसदी गरीबी, उसके बाद बिहार में 54.4 फीसदी और छत्तीसगढ़ में 49.4 फीसदी गरीबी थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 37.2 फीसदी था।
सरकार ने कहा है कि तमाम अंतरराष्ट्रीय प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था मजूबत स्थिति में है। उम्मीद है कि अगले वित्त वर्ष से यह फिर से अपने पुराने रंग में आने लगेगी। सरकार की तरफ से गुरुवार को संसद में पेश वर्ष 2011-12 के आर्थिक सर्वेक्षण में अगले वित्त वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद [जीडीपी] 7.6 प्रतिशत और इसके बाद इसके 8.6 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।इकोनॉमिक सर्वे में इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में तेजी लाने के लिए मल्टीब्रैंड रिटेल में एफडीआई को मंजूरी दिए जाने की बात कही गई है।आर्थिक सर्वे में सरकार ने सोने जैसे गैर आयातित उत्पाद के आयात में कमी करने की बात कही है। सरकार का मानना है कि आम आदमी का सोने के प्रति मोह से अर्थव्यवस्था बुरी तरह से प्रभावित हो रही है। ऐसे में इसके इस्तेमाल को कम करने के लिए सरकार इस आम बजट में सोने पर आयात शुल्क की मार डाल सकती है।अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर के बीच सरकार के समक्ष वित्तीय घाटे को लक्ष्य के दायरे में रखने की कोशिश है और वित्त वर्ष 2011-12 के बजट में इसके जीडीपी के 4.6 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था। सरकार ने कृषि एवं सेवा क्षेत्रों के बेहतर प्रदर्शन करने का हवाला देते हुए कहा है कि कृषि क्षेत्र में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है। सेवा क्षेत्र में 9.4 प्रतिशत की दर से बढो़तरी होगी और जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी 59 प्रतिशत तक बढी़ है।
हांलाकि आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष में निवेश में कमी आएगी। चालू वित्त वर्ष में ब्याज दरों में बढो़तरी हुई है जिससे ऋण महंगा हुआ है। इसके साथ लागत बढ़ने से मुनाफे पर दबाव बढा है और इसका असर आंतरिक संसाधन पर पडा़ है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि बचत खाता पर ब्याज को नियंत्रण मुक्त करने से वित्तीय बचत में बढो़तरी होगी और इससे मौद्रिक स्थिति सुदृढ़ होगी। सर्वेक्षण में कहा गया है कि देश का विदेश व्यापार अभी भी विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है और चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में निर्यात वृद्धि दर 40.5 प्रतिशत रही थी लेकिन इसके बाद से इसमें गिरावट आने लगी है। हालांकि चालू वित्त वर्ष में अप्रैल से दिसंबर तक आयात में 30.4 प्रतिशत की दर से बढोतरी हुई है।
सर्वेक्षण में सरकार ने कृषि क्षेत्र में 2.5 प्रतिशत की वृद्धि होने का हवाला देते हुए कहा है कि कृषि उत्पादों की फसल कटाई अवसंचरना में महत्वपूर्ण निवेश अंतरों को ध्यान में रखते हुए संगठित व्यापार और कृषि को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इसके लिए मल्टी ब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश [एफडीआई] को प्रभावी रूप से प्रोत्साहित किए जाने की बात कही गई है। इसमें कहा गया है कि सरकार को खाद्यान्नों के लिए आधुनिक भंडारण सुविधाओं का निर्माण करने के लिए कदम उठाने चाहिए।
खराब होने वाली खाद्य पदार्थों को कृषि उत्पाद विपणन समिति अधिनियम के दायरे से बाहर रखने की वकालत करते हुए कहा गया है कि नियामक मंडियां कभी कभी खुदरा व्यापारियों को किसानों के साथ जोड़ने से रोकती है। खराब होने वाली वस्तुओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें इस अधिनियम से मुक्त रखना होगा। इसमें कहा गया है कि अंतर राज्य व्यापार को बढा़वा देने के लिए किसी जिंस पर एक बार बाजार शुल्क लगने के बाद अन्य राज्यों में उसके व्यापार सहित किसी अन्य बाजार में दोबारा शुल्क नहीं लगाया जाना चाहिए। केवल सेवाओं से संबंधित उपभोक्ता प्रभार ही उसके बाद के लेनदेन पर लगाए जाएं।
सर्वेक्षण में उन्नत मंडी व्यवस्था का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि व्यापारियों को अधिक संख्या में मंडियों का एजेंट बनने की अनुमति दी जानी चाहिए। कृषि उत्पाद विपणन समिति और इसके बाहर से जो कोई भी बेहतर मूल्य और शर्त प्राप्त कर सके उसे ऐसा करने की अनुमति दी जानी चाहिए। उपभोक्ताओं के लिए बेहतर सामग्री की आपूर्ति के उद्देश्य से विशेष फसल उत्पादन करने वाले राज्यों, क्षेत्रों में विशेष बाजार स्थापित किए जाने की बात भी कही गई है।
सरकार ने कहा है कि देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य निवेश में महत्वपूर्ण बढो़तरी हुई है और वर्ष 2010-11 में इस पर व्यय बढ़कर 96672.79 करोड़ रुपए हो गया। स्वास्थ्य क्षेत्र में संसाधन आवंटन में बढो़तरी के अतिरिक्त सरकार गरीबों और हाशिए पर रह रहे श्रमिकों को राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के माध्यम से सार्वजनिक तथा निजी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना का विस्तार करके इसमें मनरेगा लाभार्थियों और बीडी श्रमिकों को शामिल किया जा रहा है।
शिक्षा पर बजटीय आवंटन में बढो़तरी का हवाला देते हुए सरकार ने कहा है कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम और शैक्षणिक सहायताओं में बढो़तरी की वजह से स्कूली शिक्षा अधूरी छोड़ने वाले बच्चों की संख्या वर्ष 2005 में 134.6 लाख थी, जो वर्ष 2009 में घटकर 81.5 लाख रह गई। सर्वेक्षण में कहा गया है कि सितंबर 2009 से रोजगार में वृद्धि हुई जो अभी जारी है। चुंनीदा क्षेत्रों तथा परिधान सहित चमडा़, धातु, आटोमोबाइल, रत्न और आभूषण, परिहवन सूचना प्रौद्योगिकी, बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग तथा हथकरधा पारवमूल क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढे़ हैं।
इसमें कहा गया है कि सितंबर 2011 में समग्र रोजगार सितंबर 2010 की तुलना में नौ लाख 11 हजार बढे़। इस अवधि में आईटी, बीपीओ क्षेत्र में सबसे अधिक सात लाख 96 हजार रोजगार वृद्धि हुई। इसके बाद धातु में एक लाख सात हजार, आटोमोबाइल में 71 हजार, रत्न एवं आभूषण में आठ हजार और चमडा़ उद्योग में सात हजार रोजगार की बढो़तरी दर्ज की गई है। सर्वेक्षण के अनुसार सरकारी और निजी क्षेत्रों सहित संगठित क्षेत्र में वर्ष 2010 के दौरान रोजगार में 1.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो इससे पिछले वर्ष से कम है। निजी क्षेत्र की वार्षिक वृद्धि दर सरकारी क्षेत्र की तुलना में बहुत अधिक रही। संगठित क्षेत्र में रोजगार में महिलाओं की हिस्सेदारी मार्च 2010 के अंत में 20.4 प्रतिशत थी और हाल के वर्षों में यह लगभग स्थिर रही है।
सर्वेक्षण में राजकोषीय घाटे का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि 2008 में यह जीडीपी का 2.0 प्रतिशत पर था, लेकिन वैश्विक आर्थिक मंदी की वजह से विभिन्न प्रोत्साहन पैकजों की वजह से 2009 में यह बढ़कर 6.7 प्रतिशत पर पहुंच गया। हालांकि इसके बाद से इसमें गिरावट का रुख बना हुआ है और 2010 में यह जीडीपी का 5.5 प्रतिशत. वर्ष 2011 में 4.6 प्रतिशत और 2012 में इसके 4.1 प्रतिशत पर आने का अनुमान है। इसमें कहा गया है कि विकसित देशों में 2010 में यह 7.6 प्रतिशत और 2011 में 6.6 प्रतिशत रहने की संभावना है।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि कमजोर वैश्विक आर्थिक संभावनाओं और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों में अनिश्चितताओं के कारण बैंकों और कॉपरेरेट के लिए विदेशी धन की उपलब्धता और लागत पर रिणात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। भारतीय बैंकिंग प्रणाली की सराहना करते हुए कहा गया है कि वैश्विक मंदी के कारण आई गिरावट से उबरने के रुझान के साथ ही सार्वजनिक और निजी दोनों ही बैंकिंग क्षेत्रों ने वर्ष 2010-11 के दौरान प्राथमिक क्षेत्र ऋण अदायगी में प्रभावी वृद्धि दिखलाई है।
कृषि ऋण की मांग उत्तरी क्षेत्र में अधिक रही है और 125 लाख नए किसान बैंकिंग प्रणाली से जोडे़ गए हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की 98 प्रतिशत शाखाएं पूर्ण कंप्यूटरीकृत हो चुकी हैं और वर्ष 2010-11 में एटीएम मशीनों की संख्या में भी बढो़तरी हुई है। इसमें कहा गया है कि अप्रैल 2012 से शुरू हो रही 12वीं पंचवर्षीय योजना में काबर्न उत्सर्जन में कमी लाने पर विशेष रूप से जोर दिया जाना चाहिए। हालांकि भारत की प्रति व्यक्ति व्यक्ति काबर्न डाईआक्साइड उत्सर्जन विकसित देशों की तुलना में काफी कम 1.52 कार्बन डाईआक्साइड टन है। इसे वर्ष 2020 तक वर्ष 2005 के स्तर से 20 से 25 प्रतिशत तक कमी लाने की पहले की घोषणा की जा चुकी है।
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