Pages

Free counters!
FollowLike Share It

Tuesday, 6 March 2012

​एक और हिमालयी ब्लंडर


​एक और हिमालयी ब्लंडर

तेल उत्खनन के क्षेत्र में भारत चीन सहयोग अब सीरिया में गृहयुद्ध के हालात और भारत चीन छायायुद्ध के दरम्यान अधर में लटक ​​गया

​​मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

​तेल उत्खनन के क्षेत्र में भारत चीन सहयोग अब सीरिया में गृहयुद्ध के हालात और भारत चीन छायायुद्ध के दरम्यान अधर में लटक ​​गया है। गौरतलब है कि करीब छह साल पहले ओएनजीसी से सम्बद्ध ओएनजीसी विदेश लिमिटेड और चाइना नेशनल पेट्रोलियम ​​इंटरनेशनल की सहयोगी कम्पनी सर्ल ने सीरिया के अमस्टर्डम में तेल उत्खनन के लिए हिमालयन एनर्जी सीरिया के नाम से साझा​ ​ उद्यम शुरू किया था। इसके जिम्मे सीरिया के ३६ तेल ब्लाकों से तेल निकालने का काम था। समझा जाता है कि इन ब्लाकों में उपलब्ध ​​तेल की मात्रा तीन सौ मिलियन बैरल से कम न होगी। गौरतलब है कि हिमालयन एनर्जी सीरिया में भारत और चीन के पचास पचास​ ​ फीसद वाले  बराबर के शेयर हैं।यह उद्यम एशिया के दो शक्तिशाली पड़ोसियों के दरम्यान तेल की गलोबल खोज की दिशा में नया दरवाजा खोल रहा था। मालूम हो कि बराक ओबामा तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के लिए न तेल उत्पादक देशों में सत्ता के खिलाफ जन विद्रोह अरबियन स्प्रिंग​ ​ और न ही अमेरिका के आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध और न ही ईरान के विरुद्ध अमेरिका इजराइल के अघोषित युद्ध को जिम्मेवार मानते हैं बल्कि वे इसके लिए सीधे भारत और चीन को जिम्मेवार मानते हैं।यूरोजोन में मंदी और दुनियाभर में खनिज ते ल के संकट के मद्देनजर जाहिर है कि हिमालयन एनर्जी की महती भूमिका हो सकती थी। पर अमेरिकी चुनौती से निपटने के बजाय भारतीय राजनय और राजनीति ने दोनों देशों के बीच ​​छायायुद्ध की स्थिति पैदा कर दी है। इसपर तुर्रा यह कि ओएऩजीसी को मारने में भी कोई कोताही नहीं की जा रही।ओएनजीसी भी तेजी से​ ​ एअर घटिया की नियति के पथ पर है। निति निर्धारक और अर्थ विशेषज्ञ ओेनजीसी के निजीकरण के लिए हिस्सेदारी की नीलामी का नायाब तरीका चुना है। विनिवेश के इस कायदे की ईजाद करते हुए सेबी से भी नियम तुड़वाये गये। ऐसे में सीरिया हो या अन्यत्र कहीं भारत चीन सहयोग की बात बेमानी लगती है।

भारत चीन सहयोग से सबसे ज्यादा दिक्कत अमेरिका की है। अमेरिकी शह पर ही भारत छीन छायायुद्ध की स्थिति बनी है। भारत चीन सहयोग से न सिर्फ दक्षिण एशिया में अमेरिका की रणनीतिक बढ़त खत्म होती है बल्कि ग्लोबल बाजार में भी अमेरिकी कंपनियों के वर्चस्व को चोट ​​लगती है। छायायुद्ध के हालात में अंधाधुंध रक्षा तैयारियों और दक्षिण एशियाई देशों में रक्षा बजट में बृद्धि से बी अंततः अमेरिकी ङथियार उद्योग को फायदा होता है, जो अमेरिकी अर्थ व्यवस्था की रीढ़ है। पर अंध राष्ट्रवाद के सामने ये तर्क बेकार है और तनाव लगातार बढ़ता ही जा रहा है।

इस बीच दक्षिण चीन सागर में तेल की खोज के लिए भारत वियतनाम समझौते से चीन की नाराजगी की वजह से भी ऊर्जा क्षेत्र में भारत चीन सहयोग खटाई में पड़ गया है।भारत ने दक्षिणी चीन सागर में वियतनाम के दो खंडों में तेल खोज की अपनी परियोजनाओं पर चीन की आपत्तियों को खारिज कर दिया। एक ओर जहां ईरान के साथ बीजिंग का तालमेल बढ़ रहा है वहीं भारत की ईरान में उपस्थिति सिकुड़ रही है। कुछ भारतीय कंपनियों ने संभवत: पश्चिमी दबाव में ईरान से अपना कारोबार समेटना शुरू कर दिया है और कुछ अन्य ने निवेश की अपनी योजनाएं छोड़ दी हैं।भारत ईरानी ऊर्जा क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को बढ़ाना चाहेगा, क्योंकि न केवल उसकी ऊर्जा जरूरतें तेजी से बढ़ रही हैं, बल्कि तेहरान उसके लिए अन्य कारणों से भी महत्वपूर्ण है। न केवल पाकिस्तान ने ईरान के साथ पाइपलाइन समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, बल्कि चीन भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश कर रहा है। चीन अब ईरान का सबसे बड़ा व्यापार सहयोगी है और वह वहां बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है।

हिमालयन एनर्जी सीरिया ने बहरहाल सीरिया में हालात बिगड़ने से पहले तक बेहतरीन उपलब्धयां हासिल की। सालान ८५ हजार बैरल तेल का उत्पादन और लागत निकालकर हर महीने भारत के लिए तीन मिलियन डालर की रकम बतौर हिस्सा!अब यह अतीत की बात है।भारत चीन विवाद के परदे के पीछे ईंधन की खोज में दोनों देशों के बीच ग्लोबल सहयोग का जो वातावरण बना था, उसके जारी रहने की स्थिति अब कतई नहीं दीखती। ओएनजीसी विदेशी ((ओवीएल) का तेल उत्पादन भी सीरियाई और सूडान क्षेत्रों में राजनीतिक उथल-पुथल की वजह से प्रभावित हुआ। ओवीएल के उत्पादन में इन क्षेत्रों का योगदान लगभग 25 फीसदी है। इस बीच ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ओवीएल) ने वियतनाम की राष्ट्रीय तेल कंपनी पेट्रोवियतनाम के साथ वहां और अन्य देशों में तेल एवं गैस की संयुक्त खोज के लिए समझौता किया। कच्चे तेल का खनन करने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी ऑयल एंड नेचुरल गैस कार्पोरेशन (ओएनजीसी) की विदेशों में काम करने वाली अनुषंगी इकाई ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ओवीएल) ने कजाकिस्तान के सतपयेव ऑफशोर एक्सप्लोरेशन ब्लॉक में 25 फीसदी की हिस्सेदारी हासिल करने के लिए कजाकिस्तान के कजमुनइ गैस एक्सप्लोरेशन प्रॉडक्शन कंपनी के साथ समझौता किया है। यह ब्लाक कजाकिस्तान के नार्थ कैस्पियन सी में स्थित है जो कि कच्चे तेल के लिए विख्यात है। इसी के साथ कंपनी की पहुंच 14 देशों की 33 परियोजनाओं में हो गई। ओवीएल इससे पहले 16 अप्रैल को इस ब्लॉक में 25 फीसदी हिस्सेदारी हासिल करने के लिए ज्वाइंट ऑपरेटिंग एग्रीमेंट एंड पार्टिसिपेशन शेयर एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर कर चुका है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के बढ़ते दाम और आयात पर बढ़ती निर्भरता के बीच उद्योग जगत का कहना है कि सरकार को तेल एवं गैस उत्खनन क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के साथ-साथ इस क्षेत्र द्वारा ली जाने वाली सेवाओं को भी सेवाकर के दायरे से बाहर रखना चाहिए।

भारत-चीन के बीच सीमा विवाद पर हुआ समझौता अमेरिका की आंखों में खटक रहा है। अमेरिकी मीडिया के एक तबके का मानना है कि इससे सीमा विवाद के समाधान में मदद नहीं मिलेगी। 'वॉल स्‍ट्रीट जर्नल' में कहा गया है कि भारत और चीन के बीच सीमा को लेकर 1962 में जंग हो चुकी है। चीन इस जंग में विजेता रहा और अब तक किसी पक्ष ने चार हजार किलोमीटर लंबी सीमा को मान्‍यता नहीं दी जिसे एलएसी कहा जाता है। अखबार आगे कहता है कि दोनों देशों के बीच सीमा वार्ता 1981 में शुरू हुई थी लेकिन अब तक इसमें बहुत कम प्रगति हुई है।भारत और चीन ने दोनों देशों के बीच विवादित सीमा पर शांति कायम करने के लिए सीमा तंत्र की एक रूपरेखा पर हस्ताक्षर किए। दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच 15वें दौर की सीमा वार्ता की समाप्ति पर इस रूपरेखा पर हस्ताक्षर हुए। इस रूपरेखा के तहत भारत-चीन सीमा पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) से लगे क्षेत्र में घुसपैठ की शिकायत मिलने पर दोनों देशों के विदेश कार्यालय एक-दूसरे से संपर्क करेंगे।

चीन ने भारत और दूसरे देशों से कहा है कि वे दक्षिणी चीन सागर में वियतनाम की ओर से प्रस्तावित समुद्री इलाकों में तेल की खोज से दूर रहें। मनमोहन सिंह ने चीन से कहा है कि दक्षिण चीनी सागर में भारत की गतिविधियां सिर्फ कारोबार तक सीमित है। भारत यहां तेल की खोज करना चाहता है, इसके पीछे और कोई मंशा नहीं है। दबंग पड़ोसी देश चीन की धमकियों को दरकिनार करते हुए भारत ने कहा है कि वह दक्षिणी चीन सागर से तेल की खोज का अभियान नहीं रोकेगा। वियतनाम की सरकारी तेल कंपनी पेट्रो वियतनाम ने भारतीय कंपनी ओएनजीसी विदेश लिमिटेड के साथ एक क़रार किया है, जिसके तहत दक्षिण चीन सागर में स्थित तेल ब्लॉकों की खोज और तेल निकालने में ओवीएल उसकी मदद करेगा। यह क़रार तीन साल के लिए किया गया है. चीन ने इसका विरोध किया है। उसका कहना है कि दक्षिण चीन सागर का इस क्षेत्र पर उसका दावा है और वियतनाम किसी दूसरे देश के साथ इस तरह का समझौता नहीं कर सकता। चीन के इस विरोध का प्रभाव न तो भारत पर और न वियतनाम पर पड़ा है। दोनों देशों ने इस परियोजना को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया है। वियतनाम का कहना है कि वह इस समुद्री क्षेत्र में आर्थिक हितों से संबंधित 1982 की संयुक्त राष्ट्र संधि के अनुरूप ही अपना दावा जताता है। भारत ने चीन के इस रवैये पर कठोर प्रतिक्रिया व्यक्त की और वियतनाम के साथ अपने संबंध मज़बूत बनाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया. वियतनाम के राष्ट्रपति ट्रोओंग तान सांग की भारत यात्रा के समय दोनों देशों ने कई अहम समझौतों पर हस्ताक्षर किए, जिनमें ऊर्जा, वाणिज्य, दूरसंचार और विज्ञान के क्षेत्र में सहयोग करने का समझौता प्रमुख है. दोनों देशों ने प्रत्यर्पण संधि पर भी हस्ताक्षर किए हैं। दोनों देशों ने आपसी व्यापार को वर्ष 2015 तक सात अरब डॉलर तक करने का लक्ष्य रखा है। ग़ौरतलब है कि पिछले साल तक दोनों देशों के बीच आपसी व्यापार ढाई अरब डॉलर रहा है। भारतीय प्रधानमंत्री ने वियतनाम के राष्ट्रपति को भरोसा दिलाया है कि भारत उनके देश में और अधिक निवेश करने का भरपूर प्रयास करेगा।

ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ओवीएल) चीन की 1.95 अरब अमेरिकी डॉलर की गैस पाइपलाइन परियोजना से जुड़ सकती है। इसके तहत म्यांमार तट से प्राकृतिक गैस को चीन लाया जाना है।चीन नेशनल पेट्रोलियम कारपोरेशन (सीएनपीसी) म्यांमार स्थित ब्लाक ए-1 और ए-3 में पाई गई गैस को देश में लाने के लिये 870 किलोमीटर पाइपलाइन बिछा रहा है। सूत्रों ने बताया कि सीएनपीसी ने ब्लाक ए-1 और ए-3 में गैस फील्ड का विकास कर रही कंपनियों के समूह को 49.9 फीसदी हिस्सेदारी देने की पेशकश की है।
दक्षिण कोरिया की देवू कॉरपोरेशन की प्रत्येक ब्लॉक में 60 फीसदी हिस्सेदारी है। जबकि ओवीएल की हिस्सेदारी 20 फीसदी तथा गेल एवं कोरिया गैस कॉरपोरेशन की 10-10 फीसदी की हिस्सेदारी है।म्यांमार की सरकारी कंपनी म्यांमार ऑयल एंड गैस इंटरप्राइज (एमओजीई) को इसमें 15 फीसदी हिस्सेदारी लेने का अधिकार है। इसके बाद देवू की हिस्सेदारी घटकर 51 फीसदी, ओवीएल की 17 फीसदी और गेल तथा कोरिया गैस कॉरपोरेशन की हिस्सेदारी क्रमश: 8.5-8.5 फीसदी हिस्सेदारी हो जाएगी।

ओएनजीसी के शेयरों की नीलामी के जरिए 5 फीसदी हिस्सेदारी बेचने के फैसले में रणनीति का अभाव दिखा है। जिसके चलते ओएनजीसी के इश्यू को लेकर सरकार की जमकर फजीहत हो रही है। सब्सिडी साझेदारी पर जारी अनिश्चितता बडी चिंता बनी हुई है। ओएनजीसी ने सोमवार को कहा कि जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने पिछले सप्ताह उसके 37.71 करोड़ शेयर खरीदे। इससे कंपनी में एलआईसी की हिस्सेदारी बढ़कर 9.48 प्रतिशत हो गई है।भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने पिछले सप्ताह एक नीलामी में तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) के 37.71 करोड़ शेयर हासिल किए। सोमवार को जारी एक बयान के मुताबिक इसके बाद ओएनजीसी में एलआईसी की हिस्सेदारी बढ़कर 9.47 फीसदी हो गई। ओएनजीसी से बंबई स्टॉक एक्सचेंज को दी गई एक नियमित सूचना में कहा गया कि एक मार्च को हुई नीलामी में एलआईसी ने ओएनजीसी के 4.40 फीसदी या 37,71,07,488 शेयर खरीदे।जानकार इस नीलामी को असफल बता रहे हैं, क्योंकि प्राप्त जानकारी के मुताबिक इसमें निजी क्षेत्र की कम्पनियों ने अधिक रुचि नहीं ली और अंतिम समय में एलआईसी को बोली लगाने के लिए बाध्य किया गया।शुरुआती हिचक तथा बाद में सरकारी हस्तक्षेप के चलते ओएनजीसी में पांच प्रतिशत सरकारी हिस्सेदारी की बिक्री आज अंतत: सफलतापूर्वक संपन्न हो गई। इस प्रक्रिया से सरकारी खजाने को करीब 12,666 करोड़ रुपए मिलेंगे और सरकार मौजूदा वित्त वर्ष के विनिवेश लक्ष्य को कुछ हद तक हासिल कर पाएगी।वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने इसे काफी सफल बताया और उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि ताजा आंकड़ों के अनुसार ओएनजीसी शेयरों की बिक्री से 12,666 करोड़ रुपए मिलेंगे।सबसे बड़ी सरकारी कंपनी तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) के लिए सब्सिडी साझेदारी पर जारी अनिश्चितता बड़ी चिंता बनी हुई है। वर्ष 2002-03 के बाद से अब तक ओएनजीसी सब्सिडी के रूप में 1,51,900 करोड़ रुपये का बोझ उठा चुकी है।पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, वित्त वर्ष 2002-03 से 2011-12 की तीन तिमाहियों तक उनका कुल बकाया 5,26,205 करोड़ रुपये है। इसमें से ओएनजीसी को लगभग 1,51,900 करोड़ रुपये का बोझ उठाना पड़ा है।ओएनजीसी के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक सुधीर वासुदेव ने कहा, '2002-03 के बाद से अब तक हमने लगभग 1,22,000 करोड़ रुपये का बोझ उठाया है। इससे हमारे शुद्ध मुनाफे पर 80,000 करोड़ रुपये का असर पड़ा है। अगर यह बोझ हम पर नहीं पड़ा होता तो इस रकम का इस्तेमाल विकास कार्यों और विदेश में आक्रामक तरीक से अधिग्रहण की दिशा में किया जा सकता था।'

ओवीएल, आईओसी तथा ओआईएल फारसी ब्लाक में तेल व गैस की खोज में जुटी हैं। साथ ही इन कंपनियों का सऊदी अरब की सीमा के पास स्थित 21 हजार 680 अरब घनमीटर के एक ब्लाक में तेल व गैस की खोज में 5.5 अरब डालर का निवेश करने का भी प्रस्ताव है। इनके अलावा पेट्रोनेट एलएनजी और हिंदुजा समूह ने पिछले साल ईरान के साथ विशाल साउथ पार्स गैस क्षेत्र में 28 चरणों के विकास का करार किया था। इसमें 10 अरब डालर के निवेश से ईंधन को निर्यात के लिए एलएनजी में तब्दील किया जाना था। अमेरिकी प्रशासन ने ईरान के साथ कारोबार करने वाली ओएनजीसी समेत पांच भारतीय कंपनियों पर प्रतिबंध की तलवार लटका दी है। इनमें ओएनजीसी की विदेशी यूनिट ओएनजीसी विदेश लिमिटेड [ओवीएल] भी है। इसके अलावा इंडियन आयल [आईओसी], आयल इंडिया लिमिटेड [ओआईएल] और पेट्रोनेट एलएनजी लिमिटेड [पीएलएल] का भी इस सूची में नाम है।

चीन के भूमि एवं संसाधन मंत्रालय ने कहा है कि 2011 में 1.37 अरब टन के नए तेल क्षेत्रों की खोज के साथ देश के कुल तेल भंडार में 20 फीसदी की वृद्धि हुई।

न्यूज एजेंसी सिन्हुआ ने मंत्रालय के खनिज संसाधन विभाग के उप प्रमुख जू दाचुन के हवाले से बताया कि लगातार नौवें साल तेल भंडारों में वृद्धि दर्ज की गई। दाचुन ने गुरुवार को एक सम्मेलन में यह जानकारी दी।

2011 में खोजे गए कुल भंडारों में 85 फीसदी 5 प्रमुख तेल क्षेत्रों मंगोलिया स्वायत्तशासी क्षेत्र, झिंजियांग-उइग्यूर स्वायत्तशासी क्षेत्र के तारिम बेसिन एवं जंग्गार बेसिन और पूर्वी चीन के बोहाई खाड़ी में स्थित है। जू ने बताया कि प्रत्येक क्षेत्र में 10 करोड़ टन से अधिक के भंडार हैं।


इसके विपरीत एक तरफ जहां ओएनजीसी का कच्चे तेल का उत्पादन 4 फीसदी घट कर सालाना आधार पर 67.4 करोड़ टन (घरेलू परिचालन और संयुक्त उपक्रम दोनों) रह गया वहीं उसकी गैस बिक्री समीक्षाधीन तिमाही में महज 1 फीसदी बढ़ कर 6.4 अरब घन मीटर तक सीमित रही। इसकी वैश्विक सहायक कंपनी ओएनजीसी विदेशी ((ओवीएल) का तेल उत्पादन भी सीरियाई और सूडान क्षेत्रों में राजनीतिक उथल-पुथल की वजह से प्रभावित हुआ। ओवीएल के उत्पादन में इन क्षेत्रों का योगदान लगभग 25 फीसदी है। भविष्य के लिए कंपनी का कारोबारी परिदृश्य मजबूत है।वित्त वर्ष 2013 के लिए कच्चे तेल का कुल उत्पादन अनुमान 2.875 करोड़ टन और गैस उत्पादन 27 अरब क्यूबिक मीटर पर सकारात्मक है।  सितंबर 2012 से बॉम्बे हाई के जरिये कच्चे तेल उत्पादन में 30 लाख टन की तेजी आ सकती है। गोल्डमैन सैक्स के विश्लेषकों ने अपनी रिपोर्ट में अनुमान व्यक्त किया है कि अगले दो वर्षों में ओएनजीसी का उत्पादन तेजी से बढ़ेगा। सीमांत क्षेत्रों के विकास, आईओआर/ईओआर (उत्पादन विस्तार) परियोजनाओं और राजस्थान ब्लॉक में सुधार प्रक्रिया से कंपनी को उत्पादन बढ़ाने में मदद मिलेगी। तेल कीमतों में तेजी वित्त वर्ष 2013 के अनुमानों में तेजी लाएगी। ओवीएल की वेनेजुएला जैसी वैश्विक परिसंपत्तियों से भी उत्पादन दिसंबर 2012 से शुरू हो जाने की संभावना है और इनका शुरुआती दैनिक उत्पादन लगभग 20,000 बैरल होगा।

पिछले 6 सालों से लगातार ओएनजीसी का रिजर्व रिप्लेसमेंट अनुपात 1 से अधिक रहा है और वित्त वर्ष 2011 में तो यह 1.76 था। तेल एवं गैस क्षेत्र की इस दिग्गज कंपनी के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है। देश के कुल तेल उत्पादन में ओएनजीसी की 68 फीसदी हिस्सेदारी है। वहीं कंपनी की सब्सिडियरी इकाई ओएनजीसी विदेश (ओवीएल) अपनी विदेशी संपत्तियों के विस्तार में जुटी है। ओवीएल रूस के सखालिन-3 तेल एवं गैस फील्ड में 20 फीसदी हिस्सेदारी लेने की कोशिशों में जुटी हुई है और अगर वह इसमें सफल रहती है तो उसे अपना तरल प्राकृतिक गैस भंडार बढ़ाने में मदद मिलेगी।

मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति (सीसीईए) ने तेल और प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) की विदेशी शाखा को ब्राजील में अपने स्रोतों के लिए सात करोड़ डॉलर का अतिरिक्त निवेश करने की अनुमति दे दी है। ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ओवीएल) के सात करोड़ डॉलर के निवेश से ब्राजील के कंपोज बेसिन परियोजना में कुल निवेश बढ़कर 38.3 करोड़ डॉलर हो जाएगा। इसमें तेल क्षेत्र के अधिग्रहण के लिए खर्च की गई 16.5 करोड़ डॉलर की रकम शामिल है। परियोजना में ओवीएल की 15 प्रतिशत हिस्सेदारी है।सरकार ने एक बयान में कहा कि अतिरिक्त निवेश से ओवीएल को अधिक तेल स्रोतों तक पहुंचने और परियोजना से अधिक तेल उत्पादन की उम्मीद है। इससे देश की ऊर्जा सुरक्षा बढ़ेगी।

ओएनजीसी की तीसरी तिमाही के कमजोर नतीजों से कंपनी पर तेजी से बढ़ रहे सब्सिडी बोझ का स्पष्ट रूप से पता चलता है, हालांकि इसके राजस्व पर दबाव केयर्न से रॉयल्टी भुगतान की वजह से काफी हद तक घटा है। दिसंबर 2011 की तिमाही के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की तेल एवं गैस कंपनियों के सब्सिडी बोझ में ओएनजीसी की भागीदारी बढ़ कर 47 फीसदी की हो गई है जो पिछली दो तिमाहियों में 33 फीसदी थी। हालांकि कंपनी प्रबंधन ने इस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की है कि चौथी तिमाही में कंपनी का प्रदर्शन कैसा रहेगा। दूसरी तरफ वित्त वर्ष 2013 का उत्पादन अनुमान उत्साहजनक है जिसमें सितंबर 2012 के दौरान बॉम्बे हाई से बड़ा योगदान देखा जा सकता है।

ओएनजीसी जैसी अपस्ट्रीम कंपनियों का सब्सिडी बोझ दिसंबर 2011 को समाप्त हुई 9 महीनों की अवधि में 36,900 करोड़ रुपये रहा। ओएनजीसी कच्चे तेल की बाजार कीमत की तुलना में कम बिक्री कीमत के स्वरूप में सब्सिडी मुहैया कराती है। विश्लेषकों के अनुसार अपस्ट्रीम कंपनियों (ओएनजीसी और ऑयल इंडिया) की कुल कच्चे तेल की बिक्री 56 डॉलर प्रति बैरल के डिस्काउंट (सब्सिडी) से संबद्घ है जिसमें ऑयल इंडिया की भागीदारी पहले 9 महीनों की अवधि में 37.9 फीसदी की रही। जहां वित्त वर्ष 2012 की पहली छमाही के दौरान अपस्ट्रीम कंपनियों ने 33 फीसदी सब्सिडी की भागीदारी की वहीं दिसंबर तिमाही के दौरान यह भागीदारी बढ़ कर 47 फीसदी हो गई।

दिसंबर तिमाही में कच्चे तेल की सकल प्राप्ति 111.7 डॉलर प्रति बैरल रही। 66.8 डॉलर प्रति बैरल के उच्च सब्सिडी भुगतान के समायोजन के साथ शुद्घ प्राप्ति 45 डॉलर प्रति बैरल रही जो सालाना आधार पर 31 फीसदी और सितंबर 2011 की तिमाही की तुलना में 46 फीसदी कम है।

हालांकि ओएनजीसी को केयर्न इंडिया से अगस्त 2009-सितंबर 2011 की अवधि के लिए 3,142 करोड़ रुपये के रॉयल्टी भुगतान से काफी मदद मिली जिससे शुद्घ लाभ (6,741 करोड़ रुपये) में सालाना आधार पर गिरावट महज 4.8 फीसदी तक सीमित रह गई।

देश के आर्थिक विकास में तेल एवं गैस के महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए उद्योग जगत का कहना है कि 'खनिज तेल' की परिभाषा में कच्चे तेल के साथ-साथ प्राकृतिक गैस को भी शामिल किया जाना चाहिए। कर छूट का लाभ लेने के लिए इसमें खनिज तेल के साथ साथ प्राकृतिक गैस और कोल बेड मीथेन [सीबीएम] को भी शामिल कर लिया जाना चाहिए। वाणिज्य एवं उद्योग मंडल फिक्की ने सरकार को सौंपे बजट पूर्व ज्ञापन में यह माग रखी है। उद्योग मंडल ने कहा है कि तेल खोज गतिविधियों में पर होने वाले वास्तविक खर्च पर खनन कंपनियों को 150 प्रतिशत तक कटौती का लाभ दिया जाना चाहिए। इसमें कहा गया है कि तेल की खोज और उत्खनन काफी खर्चीला कार्य है इसमें जोखिम के साथ काफी व्यय भी होता है। इसमें कई तरह की सेवाएं खनन कंपनियों को लेनी होती है। इन सेवाओं के सेवाकर के दायरे में आने से उनकी लागत और बढ़ जाती है। ऐसे में इन सेवाओं पर कंपनियों को रिफंड मिलना चाहिए अथवा बेहतर होगा कि इन सेवाओं को सेवाकर की नकारात्मक सूची में शामिल कर लिया जाए।

ओएनजीसी के पूर्व अध्यक्ष आर.एस शर्मा ने उद्योग जगत की इस माग से सहमति जताते हुए कहा ''तेल एवं गैस की खोज और इसका उत्पादन घरेलू अर्थव्यवस्था के विकास के लिए कितना जरुरी है, इसे देखने की जरुरत है। ऐसे में तेल गैस खोज के दौरान ली जाने वाली सेवाओं पर सेवाकर से छूट मिलनी चाहिए।'' उन्होंने यह भी कहा कि कर छूट के मामले में 'खनिज तेल' की परिभाषा में केवल तेल ही नहीं बल्कि पूरे हाइड्रोकार्बन क्षेत्र को लाभ मिलना चाहिए।


No comments:

Post a Comment