टाटा घराने के गृहराज्य में अभी साइरस मिस्त्री की बाजीगरी की अग्निपरीक्षा बाकी
झारखंड के मुख्य उद्योग कोयता सेक्टर की खबरें भी निजीकरण के दबाव, खनन अधिनियम और मंत्रालयों में घमासान के बीच नई मुश्कलों के संकेत दे रही हैं!
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
टाटा संस के अध्यक्ष रतन टाटा ने आज टाटा स्टील के संस्थापक जमशेदजी टाटा की 173 जयंती पर अपने उत्तराधिकारी साइरस मिस्त्री का जमशेदपुर में स्वागत किया. युगदृष्टा और आधुनिक भारत की नींव रखनेवाले की जयंती पर साइरस को साथ लेकर रतन टाटा ने इस्पात उद्योग के लिए नई उम्मीद की किरणें जरुर दिखायी है पर इस्पात उद्योग की बेहतरी का रास्ता अब भी अंधेरे में है। इसके साथ ही जिस झारखंड से रतनबाबू उद्योग को नई दिशा देने की पहल कर रहे हैं , उसके मुख्य उद्योग कोयता सेक्टर की खबरें भी निजीकरण के दबाव, खनन अधिनियम और मंत्रालयों में घमासान के बीच नई मुश्कलों के संकेत दे रही हैं। रतन टाटा संस्थापक के चरण चिन्हों पर चलकर ऐसी मुश्किलों को आसान बनाने के बाजीगर माने जाते हैं। पर टाटा घराने के गृहराज्य में अभी साइरस मिस्त्री की बाजीगरी की अग्निपरीक्षा बाकी है। आश्वस्त करने की बात है कि उन्हें रतन टाटा जैसी हस्ती से दिग्दर्शन मिलता रहेगा।
बिस्तुपुर में नवनिर्मित पोस्टल पार्क मे जनता को संबोधित करते हुए रतन टाटा ने कहा, ''साइरस मिस्त्री का स्वागत करके मैं बहुत खुश हूं, वह पहली बार इस्पात शहर में आए हैं और दिसंबर के बाद टाटा समूह की बागडोर अपने हाथ में लेंगे.''
रतन टाटा ने कहा कि उन्हें मिस्त्री को टाटा से जुड़कर गर्व महसूस होगा. उन्होंने कहा, ''आज सुबह यहां मौजूद रहकर मैं बहुत खुश हूं. जमशेदपुर शहर सामुदायिक सद्भाव, सफ़ाई का प्रतीक और अवसरों से भरा हुआ है.''
दूसरी ओर कोयले और आयरन ओर की कमी की वजह से वित्त वर्ष 2012 की तीसरी तिमाही में कारोबार पर दबाव देखने को मिला है।इस बीच जानकारी मिली है कि कोयला मंत्रालय ने कोयला रेगुलेटर बनाने के लिए कैबिनेट नोट जारी किया है। फिलहाल कोयले से संबंधित सभी मामलों पर कोयला मंत्रालय फैसले लेता है।पावर कंपनियों को कोयला सप्लाई करने पर प्रधानमंत्री कार्यालय के सख्त रूख के बाद अब कोयला मंत्रालय ने भी अपना रूख कड़ा कर लिया है। 1 मार्च को पर्यावरण मामलों पर गठित जीओएम की बैठक हो सकती है।सूत्रों के मुताबिक बैठक में कोयले के खनन और अटके हुए प्रोजेक्ट्स पर चर्चा होगी। पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी का इंतजार कर रहे 8 प्रोजेक्ट्स पर विचार किया जाएगा।
अमेरिका के एक और सांसद ने ट्रांसकनाडा से अपील की है कि वह अरबों डालर की विवादास्पद कीस्टोन पाइपलाइन परियोजना के निर्माण में भारत समेत अन्य देशों में बने इस्पात का प्रयोग नहीं करे। सांसद टाम केसी ने कहा ''पिछले दिनों ट्रांसकनाडा ने भारत से इस्पात खरीदने का फैसला किया था।
लेकिन बात जब कीस्टोन पाइपलाइन की हो तो अमेरिका में बने इस्पात का उपयोग होना चाहिए।'' उन्होंने कहा ''कीस्टोन पाइपलाइन का एक हिस्सा बनने से देश को काफी आर्थिक लाभ की संभावनाएं हैं लेकिन यदि इस पाइपलाइन के निर्माण में अमेरिका से बाहर निर्मित इस्पात का उपयोग किया जाता है तो हम उससे अर्थव्यवस्था पर पडऩे वाले सकल प्रभाव का अंदाजा नहीं लगा सकते।'' एक दिन पहले ट्रांसकनाडा ने घोषणा की कि वह ओक्लाहोमा से टेक्सास तक की पाइपलाइन परियोजना के 2.3 अरब डालर खंड का निर्माण शुरू करेगी।
पिछले महीने अमेरिकी सांसदों ने कंपनी से कहा कि वह तुरंत यह खुलासा करे कि वह कीस्टोन पाइपलाइन में भारत में बने इस्पात का उपयोग नहीं कर रही है। उक्त पाइपलाइन के जरिए तेल ओक्लाहोमा के कशिंग से अमेरिका के गल्फ कोस्ट तक ले जाया जाएगा। यह प्रक्रिया 2013 से शुरू हो सकती है।
सूत्रों के मुताबिक कोयले और लिग्नाइट की सही कीमतें तय करने के लिए सरकार रेगुलेटर बनाना चाहती है। रेगुलेटर कैप्टिव माइंस के लिए दाम तय करने सरकार को में मदद करेगा।
रेगुलेटर सरकार को कोयले से जुड़ी नीतिओं और आवंटन पर सलाह देगी। इसके अलावा कोल रेगुलेटर सेक्टर में निवेश बढ़ाने और कोयले के संरक्षण पर भी जोर देगा।
कोयला रेगुलेटर बनाने के लिए कैबिनेट से मंजूरी मिलना जरूरी है। उम्मीद है कि बजट सत्र में कोयला रेगुलेटर बिल पेश किया जाएगा।
आर्थक सुधारों के लिए जोर दे रही कारपोरेट लाबी की दलील है कि कोयला सेक्टर को निजी कंपनियों के लिए न खोलने की वजह से सारा बोझ कोल इंडिया लिमिटेड पर है। इसे अंतरराष्ट्रीय कीमतों से कम पर बिजली कंपनियों को कोयला बेचना पड़ता है। निजी कंपनियां लगातार यह कहती आ रही हैं कि उन्हें निर्धारित दर पर बिजली बेचने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।कोयला सेक्टर को राष्ट्रीयकरण के दायरे से बाहर निकालने की कवायद कब तेज की जाएगी। इसके लिए संतुलित जमीन अधिग्रहण नीति और पर्यावरण क्लीयरेंस नीति की जरूरत पड़ेगी और हालात ये हैं कि दोनों ही मोर्चों की जटिलताओं को सरकार सुलझा नहीं सकी है।
अब हालत तो यह है कि कोयला मंत्रालय ने प्रधानमंत्री कार्यालय और पर्यावरण मंत्रालय को एक चिट्ठी लिखी है। चिट्ठी में 100 कोल ब्लॉक की लिस्ट सौंपते हुए जल्द से जल्द इनके लिए पर्यावरण मंत्रालय से हरी झंडी की मांग की है।कोयला मंत्रालय ने प्रधानमंत्री कार्यालय से गुहार लगाई है कि कोयला चाहिए तो पर्यावरण की दिक्कतों को दूर किया जाए। दरअसल कोल इंडिया के करीब 85 ब्लॉक पर्यावरण की मंजूरी नहीं मिलने से अटके पड़े हैं। वहीं अगर मंजूरी मिली तो माइनिंग शुरू करने में 2-3 साल लगेंगे।लिहाजा कोयला मंत्रालय ने पर्यावरण मंत्रालय से माइनिंग की मंजूरी देने में तेजी लाए जाने की मांग की है। कोयला मंत्रालय ने पर्यावरण मंत्रालय को अपने रूख में नरमी लाने की हिदायत दी है। कोयला मंत्रालय की दलील है कि नई माइनिंग के बिना कोयले की सप्लाई बढ़ाना मुश्किल है। ऐसे में कोल इंडिया द्वारा पावर कंपनियों के साथ सप्लाई का करार पूरा करना मुश्किल होगा।
देश में कुल कोयला उत्पादन का 80 फीसदी पैदा करने वाला सीआईएल अब तक लेटर ऑफ एश्योरेंस जारी करती रही है, जो उत्पादन शुरू कर चुकी बिजली कंपनियों को कोयला सप्लाई के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं है। नए निर्देश के मुताबिक कोल इंडिया लिमिटेड को कोयले के आयात और दूसरी सरकारी कंपनियों से कोयला खरीद कर सप्लाई सुनिश्चित करनी होगी। सीआईएल ने अगर यह शर्त पूरी नहीं की तो उस पर जुर्माना लगाया जा सकता है। कोयला सचिव का कहना है कि कोयले की मांग को पूरा करने के लिए घरेलू उत्पादन बढ़ाने पर जोर देना चाहिए। आयात के जरिए कोयले की आपूर्ति बढ़ना सही कदम नहीं है।कोयला सचिव के मुताबिक घरेलू उत्पादन कम होने पर ही कोल इंडिया कोयला का आयात करेगा। कोल इंडिया को पहले कोयले की कुल मांग का पता होना जरूरी है।
सीआईएल सार्वजनिक कंपनी है और महारत्न भी। लेकिन यह लिस्टेड भी है। यानि इसमें लोगों की भागीदारी है। इसलिए सीआईएल पर इतने कड़े निर्देश लागू करने के बजाय सरकार को कोयला सेक्टर में निजी सेक्टर की भागीदारी बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। अब तक सीआईएल का कोयला उत्पादन और वितरण में एकाधिकार रहा है। कारपोरेट लाबी की दलील है कि निजी सेक्टर की कंपनियों के आने से प्रतिस्पद्र्धा बढ़ेगी और कोयला सप्लाई की स्थिति सुधरेगी। गौरतलब है कि फिलहाल सरकार ने कोयला सेक्टर को खोलने के लिए ज्यादा कोशिश नहीं की है।
इस बीच भारतीय उद्योग परिसंघ (सी.आई.आई.) ने सरकार से नॉन-कोकिंग कोयले पर लगने वाला सीमा शुल्क खत्म करने का अनुरोध किया है। सी.आई.आई. ने इस संबंध में वित्त मंत्रालय को बजट पूर्व भेजे ज्ञापन में कहा है कि कोयले पर मौजूदा 5 प्रतिशत का सीमा शुल्क खत्म किया जाए क्योंकि इसकी वजह से प्रति यूनिट बिजली का उत्पादन महंगा हो रहा है। तो दूसरी ओर कोयला मंत्रालय ने बिजली परियोजनाओं को कोयला आपूर्ति की एक निश्चित सीमा बताने को कहा है ताकि उतनी ही मात्रा में कोयले की आपूर्ति बिजली क्षेत्र को की जाए। हालांकि बिजली मंत्रालय इस बात से अपनी सहमति जताने के मूड में नहीं है।प्रधानमंत्री की तरफ से गठित सचिव स्तरीय समिति के निर्देश के बाद 31 मार्च 2015 तक स्थापित होने वाली निजी बिजली परियोजनाओं को कोयला आपूर्ति के मामले में राहत मिल गई है, लेकिन नई परियोजनाओं को कोयले की आपूर्ति में रुकावटें आ सकती हैं। कोयला मंत्रालय अगले दो-तीन साल के लिए नई परियोजनाओं को कोयला आपूर्ति पर रोक (फ्रीज) लगा सकता है।गत 15 फरवरी को प्रधानमंत्री द्वारा गठित सचिव स्तरीय समिति ने 31 दिसंबर, 2011 तक स्थापित हो चुकी बिजली परियोजनाओं के साथ आगामी 31 मार्च तक कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) को फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट (एफएसए) करने का निर्देश दिया था।निर्देश के मुताबिक सीआईएल उन परियोजनाओं के साथ भी कोयला आपूर्ति के लिए एफएसए करेगी जिन्होंने बिजली वितरण कंपनियों के साथ लंबे समय के लिए पावर परचेज एग्रीमेंट (पीपीए) कर लिया है और जो 31 मार्च, 2015 तक स्थापित हो जाएंगी।
सी.आई.आई. का कहना है कि देश में कच्चे कोयले का उत्पादन जरूरत के हिसाब से नहीं हो रहा है, ऐसे में बिजली कम्पनियों के पास ऊंचे दामों में इसका आयात करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है। सी.आई.आई. के मुताबिक इस्पात उद्योग में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले कोकिंग कोल का आयात तो सरकार ने शुल्क मुक्त कर दिया है लेकिन नॉन-कोकिंग कोयले पर 5 प्रतिशत का सीमा शुल्क लगा रखा है।
उद्योग संगठन ने अपनी अपील में कहा है कि नॉन-कोकिंग कोयले का सबसे ज्यादा इस्तेमाल बिजली कम्पनियां करती हैं, ऐसे में देश में कुल बिजली उत्पादन का दो तिहाई हिस्सा कोयला आधारित संयंत्रों के जरिए होता है, चूंकि बिजली उत्पादन पर उत्पाद शुल्क नहीं है इसलिए ऐसी स्थिति में बिजली कम्पनियां सेनवाट के तहत मिलने वाली रियायत हासिल करने से भी वंचित रह जाती हैं।
बिजली मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक बिजली क्षेत्र के लिए कोयले की आपूर्ति को फ्रीज करने के संबंध में अभी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है। अगर ऐसा होता है कि वह कोयला मंत्रालय के इस फैसले पर आपत्ति करेगा। क्योंकि बिजली उत्पादन क्षमता में विस्तार के लिए जब लक्ष्य तय किया जा रहा था तब कोयला मंत्रालय की तरफ से ऐसी बात नहीं की गई थी।अब ऐसा करने से नई परियोजनाओं के लिए वित्तीय व्यवस्था नहीं हो पाएंगी क्योंकि कोल लिंकेज के बिना कोई भी बैंक परियोजना के लिए कर्ज नहीं देगा। सूत्रों के मुताबिक सब कुछ कोयले के उत्पादन पर निर्भर करता है। वैसे भी आपूर्ति को फ्रीज करना और कोयला आपूर्ति की मांग को खारिज करने में अंतर है।
-- झारखंड के मुख्य उद्योग कोयता सेक्टर की खबरें भी निजीकरण के दबाव, खनन अधिनियम और मंत्रालयों में घमासान के बीच नई मुश्कलों के संकेत दे रही हैं!
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
टाटा संस के अध्यक्ष रतन टाटा ने आज टाटा स्टील के संस्थापक जमशेदजी टाटा की 173 जयंती पर अपने उत्तराधिकारी साइरस मिस्त्री का जमशेदपुर में स्वागत किया. युगदृष्टा और आधुनिक भारत की नींव रखनेवाले की जयंती पर साइरस को साथ लेकर रतन टाटा ने इस्पात उद्योग के लिए नई उम्मीद की किरणें जरुर दिखायी है पर इस्पात उद्योग की बेहतरी का रास्ता अब भी अंधेरे में है। इसके साथ ही जिस झारखंड से रतनबाबू उद्योग को नई दिशा देने की पहल कर रहे हैं , उसके मुख्य उद्योग कोयता सेक्टर की खबरें भी निजीकरण के दबाव, खनन अधिनियम और मंत्रालयों में घमासान के बीच नई मुश्कलों के संकेत दे रही हैं। रतन टाटा संस्थापक के चरण चिन्हों पर चलकर ऐसी मुश्किलों को आसान बनाने के बाजीगर माने जाते हैं। पर टाटा घराने के गृहराज्य में अभी साइरस मिस्त्री की बाजीगरी की अग्निपरीक्षा बाकी है। आश्वस्त करने की बात है कि उन्हें रतन टाटा जैसी हस्ती से दिग्दर्शन मिलता रहेगा।
बिस्तुपुर में नवनिर्मित पोस्टल पार्क मे जनता को संबोधित करते हुए रतन टाटा ने कहा, ''साइरस मिस्त्री का स्वागत करके मैं बहुत खुश हूं, वह पहली बार इस्पात शहर में आए हैं और दिसंबर के बाद टाटा समूह की बागडोर अपने हाथ में लेंगे.''
रतन टाटा ने कहा कि उन्हें मिस्त्री को टाटा से जुड़कर गर्व महसूस होगा. उन्होंने कहा, ''आज सुबह यहां मौजूद रहकर मैं बहुत खुश हूं. जमशेदपुर शहर सामुदायिक सद्भाव, सफ़ाई का प्रतीक और अवसरों से भरा हुआ है.''
दूसरी ओर कोयले और आयरन ओर की कमी की वजह से वित्त वर्ष 2012 की तीसरी तिमाही में कारोबार पर दबाव देखने को मिला है।इस बीच जानकारी मिली है कि कोयला मंत्रालय ने कोयला रेगुलेटर बनाने के लिए कैबिनेट नोट जारी किया है। फिलहाल कोयले से संबंधित सभी मामलों पर कोयला मंत्रालय फैसले लेता है।पावर कंपनियों को कोयला सप्लाई करने पर प्रधानमंत्री कार्यालय के सख्त रूख के बाद अब कोयला मंत्रालय ने भी अपना रूख कड़ा कर लिया है। 1 मार्च को पर्यावरण मामलों पर गठित जीओएम की बैठक हो सकती है।सूत्रों के मुताबिक बैठक में कोयले के खनन और अटके हुए प्रोजेक्ट्स पर चर्चा होगी। पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी का इंतजार कर रहे 8 प्रोजेक्ट्स पर विचार किया जाएगा।
अमेरिका के एक और सांसद ने ट्रांसकनाडा से अपील की है कि वह अरबों डालर की विवादास्पद कीस्टोन पाइपलाइन परियोजना के निर्माण में भारत समेत अन्य देशों में बने इस्पात का प्रयोग नहीं करे। सांसद टाम केसी ने कहा ''पिछले दिनों ट्रांसकनाडा ने भारत से इस्पात खरीदने का फैसला किया था।
लेकिन बात जब कीस्टोन पाइपलाइन की हो तो अमेरिका में बने इस्पात का उपयोग होना चाहिए।'' उन्होंने कहा ''कीस्टोन पाइपलाइन का एक हिस्सा बनने से देश को काफी आर्थिक लाभ की संभावनाएं हैं लेकिन यदि इस पाइपलाइन के निर्माण में अमेरिका से बाहर निर्मित इस्पात का उपयोग किया जाता है तो हम उससे अर्थव्यवस्था पर पडऩे वाले सकल प्रभाव का अंदाजा नहीं लगा सकते।'' एक दिन पहले ट्रांसकनाडा ने घोषणा की कि वह ओक्लाहोमा से टेक्सास तक की पाइपलाइन परियोजना के 2.3 अरब डालर खंड का निर्माण शुरू करेगी।
पिछले महीने अमेरिकी सांसदों ने कंपनी से कहा कि वह तुरंत यह खुलासा करे कि वह कीस्टोन पाइपलाइन में भारत में बने इस्पात का उपयोग नहीं कर रही है। उक्त पाइपलाइन के जरिए तेल ओक्लाहोमा के कशिंग से अमेरिका के गल्फ कोस्ट तक ले जाया जाएगा। यह प्रक्रिया 2013 से शुरू हो सकती है।
सूत्रों के मुताबिक कोयले और लिग्नाइट की सही कीमतें तय करने के लिए सरकार रेगुलेटर बनाना चाहती है। रेगुलेटर कैप्टिव माइंस के लिए दाम तय करने सरकार को में मदद करेगा।
रेगुलेटर सरकार को कोयले से जुड़ी नीतिओं और आवंटन पर सलाह देगी। इसके अलावा कोल रेगुलेटर सेक्टर में निवेश बढ़ाने और कोयले के संरक्षण पर भी जोर देगा।
कोयला रेगुलेटर बनाने के लिए कैबिनेट से मंजूरी मिलना जरूरी है। उम्मीद है कि बजट सत्र में कोयला रेगुलेटर बिल पेश किया जाएगा।
आर्थक सुधारों के लिए जोर दे रही कारपोरेट लाबी की दलील है कि कोयला सेक्टर को निजी कंपनियों के लिए न खोलने की वजह से सारा बोझ कोल इंडिया लिमिटेड पर है। इसे अंतरराष्ट्रीय कीमतों से कम पर बिजली कंपनियों को कोयला बेचना पड़ता है। निजी कंपनियां लगातार यह कहती आ रही हैं कि उन्हें निर्धारित दर पर बिजली बेचने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।कोयला सेक्टर को राष्ट्रीयकरण के दायरे से बाहर निकालने की कवायद कब तेज की जाएगी। इसके लिए संतुलित जमीन अधिग्रहण नीति और पर्यावरण क्लीयरेंस नीति की जरूरत पड़ेगी और हालात ये हैं कि दोनों ही मोर्चों की जटिलताओं को सरकार सुलझा नहीं सकी है।
अब हालत तो यह है कि कोयला मंत्रालय ने प्रधानमंत्री कार्यालय और पर्यावरण मंत्रालय को एक चिट्ठी लिखी है। चिट्ठी में 100 कोल ब्लॉक की लिस्ट सौंपते हुए जल्द से जल्द इनके लिए पर्यावरण मंत्रालय से हरी झंडी की मांग की है।कोयला मंत्रालय ने प्रधानमंत्री कार्यालय से गुहार लगाई है कि कोयला चाहिए तो पर्यावरण की दिक्कतों को दूर किया जाए। दरअसल कोल इंडिया के करीब 85 ब्लॉक पर्यावरण की मंजूरी नहीं मिलने से अटके पड़े हैं। वहीं अगर मंजूरी मिली तो माइनिंग शुरू करने में 2-3 साल लगेंगे।लिहाजा कोयला मंत्रालय ने पर्यावरण मंत्रालय से माइनिंग की मंजूरी देने में तेजी लाए जाने की मांग की है। कोयला मंत्रालय ने पर्यावरण मंत्रालय को अपने रूख में नरमी लाने की हिदायत दी है। कोयला मंत्रालय की दलील है कि नई माइनिंग के बिना कोयले की सप्लाई बढ़ाना मुश्किल है। ऐसे में कोल इंडिया द्वारा पावर कंपनियों के साथ सप्लाई का करार पूरा करना मुश्किल होगा।
देश में कुल कोयला उत्पादन का 80 फीसदी पैदा करने वाला सीआईएल अब तक लेटर ऑफ एश्योरेंस जारी करती रही है, जो उत्पादन शुरू कर चुकी बिजली कंपनियों को कोयला सप्लाई के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं है। नए निर्देश के मुताबिक कोल इंडिया लिमिटेड को कोयले के आयात और दूसरी सरकारी कंपनियों से कोयला खरीद कर सप्लाई सुनिश्चित करनी होगी। सीआईएल ने अगर यह शर्त पूरी नहीं की तो उस पर जुर्माना लगाया जा सकता है। कोयला सचिव का कहना है कि कोयले की मांग को पूरा करने के लिए घरेलू उत्पादन बढ़ाने पर जोर देना चाहिए। आयात के जरिए कोयले की आपूर्ति बढ़ना सही कदम नहीं है।कोयला सचिव के मुताबिक घरेलू उत्पादन कम होने पर ही कोल इंडिया कोयला का आयात करेगा। कोल इंडिया को पहले कोयले की कुल मांग का पता होना जरूरी है।
सीआईएल सार्वजनिक कंपनी है और महारत्न भी। लेकिन यह लिस्टेड भी है। यानि इसमें लोगों की भागीदारी है। इसलिए सीआईएल पर इतने कड़े निर्देश लागू करने के बजाय सरकार को कोयला सेक्टर में निजी सेक्टर की भागीदारी बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। अब तक सीआईएल का कोयला उत्पादन और वितरण में एकाधिकार रहा है। कारपोरेट लाबी की दलील है कि निजी सेक्टर की कंपनियों के आने से प्रतिस्पद्र्धा बढ़ेगी और कोयला सप्लाई की स्थिति सुधरेगी। गौरतलब है कि फिलहाल सरकार ने कोयला सेक्टर को खोलने के लिए ज्यादा कोशिश नहीं की है।
इस बीच भारतीय उद्योग परिसंघ (सी.आई.आई.) ने सरकार से नॉन-कोकिंग कोयले पर लगने वाला सीमा शुल्क खत्म करने का अनुरोध किया है। सी.आई.आई. ने इस संबंध में वित्त मंत्रालय को बजट पूर्व भेजे ज्ञापन में कहा है कि कोयले पर मौजूदा 5 प्रतिशत का सीमा शुल्क खत्म किया जाए क्योंकि इसकी वजह से प्रति यूनिट बिजली का उत्पादन महंगा हो रहा है। तो दूसरी ओर कोयला मंत्रालय ने बिजली परियोजनाओं को कोयला आपूर्ति की एक निश्चित सीमा बताने को कहा है ताकि उतनी ही मात्रा में कोयले की आपूर्ति बिजली क्षेत्र को की जाए। हालांकि बिजली मंत्रालय इस बात से अपनी सहमति जताने के मूड में नहीं है।प्रधानमंत्री की तरफ से गठित सचिव स्तरीय समिति के निर्देश के बाद 31 मार्च 2015 तक स्थापित होने वाली निजी बिजली परियोजनाओं को कोयला आपूर्ति के मामले में राहत मिल गई है, लेकिन नई परियोजनाओं को कोयले की आपूर्ति में रुकावटें आ सकती हैं। कोयला मंत्रालय अगले दो-तीन साल के लिए नई परियोजनाओं को कोयला आपूर्ति पर रोक (फ्रीज) लगा सकता है।गत 15 फरवरी को प्रधानमंत्री द्वारा गठित सचिव स्तरीय समिति ने 31 दिसंबर, 2011 तक स्थापित हो चुकी बिजली परियोजनाओं के साथ आगामी 31 मार्च तक कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) को फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट (एफएसए) करने का निर्देश दिया था।निर्देश के मुताबिक सीआईएल उन परियोजनाओं के साथ भी कोयला आपूर्ति के लिए एफएसए करेगी जिन्होंने बिजली वितरण कंपनियों के साथ लंबे समय के लिए पावर परचेज एग्रीमेंट (पीपीए) कर लिया है और जो 31 मार्च, 2015 तक स्थापित हो जाएंगी।
सी.आई.आई. का कहना है कि देश में कच्चे कोयले का उत्पादन जरूरत के हिसाब से नहीं हो रहा है, ऐसे में बिजली कम्पनियों के पास ऊंचे दामों में इसका आयात करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है। सी.आई.आई. के मुताबिक इस्पात उद्योग में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले कोकिंग कोल का आयात तो सरकार ने शुल्क मुक्त कर दिया है लेकिन नॉन-कोकिंग कोयले पर 5 प्रतिशत का सीमा शुल्क लगा रखा है।
उद्योग संगठन ने अपनी अपील में कहा है कि नॉन-कोकिंग कोयले का सबसे ज्यादा इस्तेमाल बिजली कम्पनियां करती हैं, ऐसे में देश में कुल बिजली उत्पादन का दो तिहाई हिस्सा कोयला आधारित संयंत्रों के जरिए होता है, चूंकि बिजली उत्पादन पर उत्पाद शुल्क नहीं है इसलिए ऐसी स्थिति में बिजली कम्पनियां सेनवाट के तहत मिलने वाली रियायत हासिल करने से भी वंचित रह जाती हैं।
बिजली मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक बिजली क्षेत्र के लिए कोयले की आपूर्ति को फ्रीज करने के संबंध में अभी आधिकारिक घोषणा नहीं हुई है। अगर ऐसा होता है कि वह कोयला मंत्रालय के इस फैसले पर आपत्ति करेगा। क्योंकि बिजली उत्पादन क्षमता में विस्तार के लिए जब लक्ष्य तय किया जा रहा था तब कोयला मंत्रालय की तरफ से ऐसी बात नहीं की गई थी।अब ऐसा करने से नई परियोजनाओं के लिए वित्तीय व्यवस्था नहीं हो पाएंगी क्योंकि कोल लिंकेज के बिना कोई भी बैंक परियोजना के लिए कर्ज नहीं देगा। सूत्रों के मुताबिक सब कुछ कोयले के उत्पादन पर निर्भर करता है। वैसे भी आपूर्ति को फ्रीज करना और कोयला आपूर्ति की मांग को खारिज करने में अंतर है।
Palash Biswas
Pl Read:
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