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Saturday, 7 April 2012

जो गुम हुए वो कहां गये


जो गुम हुए वो कहां गये



राजस्थान में लड़कियों को बेचे जाने का मसला कोई बड़ा सवाल नहीं है और इस तरह के गंभीर आपराधिक मामलों में मां-बाप न्याय पाने की कोशिश में पुलिस के दर पर दस्तक देते हैं तो उसे आम घटना मानकर फुसलाने की कोशिश की जाती है... 
अजय प्रकाश 
राजस्थान के दक्षिणी जिला हनुमानगढ़ के पुलिस अधीक्षक कार्यालय के सामने 19 मार्च को एक महिला धरने पर बैठी. धरने पर बैठी गंगा नाम की विधवा महिला ने अपने मांगों के समर्थन में एक बैनर लगाया और लिखा, 'मेरी नाबालिग 17 वर्षीय बेटी की तलाश के लिए पुलिस को पैसा देना है, कृपया सहयोग करें.' महिला का आरोप है कि उसकी नाबालिग बेटी उत्तर प्रदेश के जेपीनगर में दलालों के हाथों बेच दियी गयी है. नाबालिग को बेचे जाने के इस ताजे वाकये में पुलिसिया रवैये को देख यह समझा जा सकता है कि राज्य में पिछले 8 वर्षों में 10 हजार लोगों की गुमशुदगी कैसे हुई होगी और पुलिस ने इन मामलों में कितना कर्तव्य निभाया होगा.
 rajsthan-missing-women-gangaहनुमानगढ़ रेलवे स्टेशन के नजदीक सुदेशिया क्षेत्र में रह रही गंगा नाम की इस विधवा महिला ने पिछले महीने बेटी के अपहरण मामले में राजे सिंह, बाला देवी, मदन सिंह, हरीश कुमार, पप्पु सूखा के खिलाफ नामजद रिपोर्ट थाने में दर्ज करायी. साथ में महिला ने अपहरकणर्ताओं का निश्चित ठिकाना भी बताया, जिसे पुलिस ने थोड़ी छानबीन के बाद सही पाया. बावजूद, आरोपियों को पकड़ने और गंगा की 17 वर्षीय बेटी को सुकशल वापस लाने में पुलिस ने असमर्थथा जाहिर की. बकौल गंगा उनकी असमर्थता के पीछे उत्तर प्रदेश के जेपी नगर जिले में छिपे अपहरणकर्ताओं को पकड़ने जाने के लिए पुलिस के पास गाड़ी का नहीं होना था. 
महीने दिन से भी अधिक समय से बेटी के अपहरण मामले में पुलिस अधिकारयों द्वारा बरती जा रही निष्क्रियता से खफा गंगा ने बरामदगी के लिए पुलिस पर दबाव बनाना शुरू किया. पुलिस अधिकारियों ने उससे दो टूक कहा कि हमारे थाने में एक ही गाड़ी है जो तुम्हारी बेटी को खोजने उत्तर प्रदेश नहीं जा सकती. अगर बेटी की बरामदगी चाहती हो तो चार हजार रूपये लाओ या फिर एक चार पहिया गाड़ी का इंतजाम करके दो. गंगा के मुताबिक, 'मैं पुलिसवालों के लिए चार हजार रूपये जुटा रही हूं, जिससे पुलिस वाले मेरी बेटी को दलालों के चंगुल से छुड़ा लायें. जबतक मेरी बेटी के वापसी नहीं होती, मैं धरने पर ही रहुंगी.' 
संभव है अगले कुछ दिनों में पुलिस अधिकारी कोई बीच का रास्ता निकाल लें और उस महिला को को कुछ आश्वासन का झुनझुना पकड़ाकर घर बैठा दें, लेकिन नाबालिग लड़की के बेचे जाने के इस मामले में दो बातें स्पष्ट हो गयीं हैं. पहली यह कि राजस्थान में लड़कियों को बेचे जाने का मसला कोई बड़ा सवाल नहीं है और दूसरा यह कि इस तरह के गंभीर आपराधिक मामलों में अगर कोई अभिभावक या मां-बाप न्याय पाने की कोशिश में पुलिस के दर पर दस्तक देता है तो उसे आम घटना मानकर फुसलाने या चुप कराने की कोशिश की जाती है. ऐसा तब है जबकि जयपुर उच्च न्यायालय ने इसी महीने के अंत तक राज्य के पुलिस महानिदेशक और गृहसचिव से पिछले आठ वर्षों में गुमशदा और अचिन्हित 10 हजार लोगों के मामले में जवाब मांगा है. 
जयपुर उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अरूण मिश्र और एनके जैन की खंडपीठ द्वारा 2 मार्च को दिये गये इस फैसले में 18 फरवरी को याचिका दायर की गयी थी. एंटी सोशल एक्टिविटिज प्रिवेंशन सोसाइटी की ओर से कृष्णा कुक्कड़ द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि गायब होने वालों में 70 फीसदी बच्चे और महिलाएं हैं, जिनमें से लड़कियां की संख्या अधिक हैं. गायब होने वालों के यह आंकड़े सिर्फ 2004 से फरवरी 2012 तक के हैं.
 इससे पहले कितने लोग राज्य से गायब हैं, इसका कोई स्रोत पता नहीं चल सका है क्योंकि राज्य के थानों या पुलिस मुख्यालय में इसकी कोई सूचिबद्ध जानकारी नहीं है. यह हालत तब है जबकि केंद्र सरकार ने राज्य के मानव तस्करी के दस प्रभावित जिलों जिनमें डुंगरपुर, धौलपुर, भरतपुर आदि हैं, को रोकथाम के लिए अलग से बजट दिया है. राजस्थान के एक पुलिस उच्चाधिकारी ने स्वीकार किया कि 'पहले इन मामलों सिर्फ सूचना ही दर्ज की जाती थी, लेकिन अब 'मिसिंग पर्सन रिपोर्ट' तहत बकायदा एफआइआर दर्ज की जाती है. इसमें कोई संदेह नहीं कि हालांकि अभी भी थानाध्यक्ष मुकदमें दर्ज करने से मनाही करते हैं.'
अगर सरकार वाकई जनता के जीवन का कीमत समझती है तो उसे इन मामलों में सबसे पहले मुकदमा दर्ज करना चाहिए और जांच के लिए स्पेशल इंवेस्टीगेटिव टीम का गठन करना चाहिए. इसके लिए सरकार अलग से फास्ट ट्रैक अदालतों की व्यवस्था करे. साथ ही इस मामले जो अधिकारी दोषी हैं, चाहे वह सेवानिवृत हो गये हों या सेवा में हैं, उनपर कड़ी कार्यवाही हो.                                                                                                         
एंटी सोशल एक्टिविटिज प्रिवेंशन सोसाइटी के प्रमुख और वकील कृष्णा कुक्कर  
child-missing-graphइस मामले को अदालत में ले जाने वाले जयपुर उच्च न्यायालय के वकील एके जैन कहते हैं, 'इन मामलों एफआइआर दर्ज नहीं की जाती है. केवल गुमशुदगी की सूचना थानों में दर्ज होती है. सूचना दर्ज करने के बाद खोजने की जिम्मेदारी परिवार की मान ली जाती है. मजबूत पारिवारिक पृष्ठभूमि के लोग तो कुछ मामलों में सफलता पा भी लेते हैं, मगर सामान्य और गरीब घरों से गायब परिजन कभी घर वापस नहीं लौटते. क्या सरकार अगले निठारी के इंतजार में है.' गौरतलब है कि दिल्ली से सटे नोएडा में इसी तरह बच्चे गायब हो रहे थे और बाद में इसके पीछे एक किडनी गैंग का हाथ सामने आया था, जिसमें किडनी निकालने के बाद बच्चों को मार दिया जाता था. 
मौजुदा बजट सत्र के शून्यकाल में कोटा दक्षिणी के भाजपा विधायक ओम बिरला ने सदन में सवाल भी उठाया था, मगर उसका भी असर अबतक देखने को नहीं मिला है. ओम बिरला ने कहा कि 'इतनी बड़ी संख्या में गायब होने का मामला प्रकाश में आने के बाद भी राज्य सरकार ने कोई त्वरित कार्यवाही नहीं की है. पार्टी अब सड़क पर इस मामले में संघर्ष करेगी.'
मानव तस्करी पर काम करने वाले एनजीओ 'शक्तिवाहिनी' के संचालक रिषिकांत कहते हैं, 'राजस्थान के आंकड़े झारखंड, बंगाल, असम, दिल्ली आदि के आगे तो कुछ भी नहीं हैं, जहां हर साल हजारों लड़के-लड़कियां गायब हो रही हैं.' बंगाल पुलिस के मुताबिक हर साल बंगाल में करीब एक हजार लोगों की गुमशुगदगी की सूचना पुलिस में दर्ज की जाती है. इसके मद्देनजर बंगाल में मिसिंग पर्सन ब्यूरो 'सीआइडी' की स्थापना की गयी है, लेकिन राजस्थान में तो इसकी भी अबतक व्यवस्था नहीं है. 


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