दोबारा संसाधन जुटाने के लिए मुनाफा बनाना स्टील कंपनियों के लिए एक कड़ी चुनौती बनने जा रहा है।
सेल या दूसरी भारतीय कंपनियों के पास अपनी कंपनियों को इस्पात की गिरती कीमतों से बचाने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है।
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
Published in CHAMAKTA AAINA
लौह अयस्क कीसमस्या के कारण इस्पात उद्योग को आने वाले दिनों में बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।पिछले कई दशकों के दरम्यान सरकारी नीतियों की वजह से चीन और कोरिया ने इस्पात उत्पादन में भारत को पीछे छोड़ दिया है।कच्चे माल की बढ़ती कीमत, सरकारी नीतियों और मुद्रास्फीति की वजह से इस्पात उद्योग भारी संकट में है। मसलन टाटा स्टील का ग्लोबल कारोबार में भारी वृद्धि हुई है, पर घरेलू कारोबार ढीला है।
अब से कोई 6 साल पहले इस्पात की मांग तेजी से बढ़नी शुरू हुई थी, पर जुलाई 2008 के खत्म होते-होते इसके बाजार में जबरदस्त गिरावट हुई। उल्लेखनीय है कि उत्पादन मात्रा के लिहाज से इस्पात दुनिया की सबसे बड़ी कमोडिटी (जिंस) है। मूडी से जुड़े एक विशेषज्ञ ने बताया कि मंदी के असर को दूर करने के लिए हमें कम से कम 2013 तक इंतजार करना होगा। लंदन स्थित आयरन एंड स्टील स्टैस्टिक्स ब्यूरो के आंकड़ों का हवाला देते हुए फाइनैंशियल टाइम्स के पीटर मार्श ने बताया कि युद्धकालीन समय को छोड़ दें तो 1991 के बाद केवल 4 ऐसे मौके आए जब दुनिया के इस्पात उद्योग को गिरावट से उबरने में 4 साल या उससे ज्यादा समय लगे।
लौह और इस्पात उद्योग को 'बेहद गंभीर' आंतरिक और बाहरी समस्याओं का सामना करना पड़ा।झारखंड में इस्पात उद्योग में निवेश की रफ्तार काफी धीमी है। अलग राज्य बनने के बाद इस्पात उद्योग में निवेश की आशा जगी थी परन्तु जमीन अधिग्रहण की समस्या के कारण कई कंपनियों ने निवेश करने से हाथ खिंच लिए। टाटा एवं आर्सेलर मित्तल के बारह-बारह मिलियन टन के इस्पात संयंत्र लगाने का प्रस्ताव अधर में ही लटका हुआ है। टाटा स्टील का पुराना संयंत्र आधुनिकीकरण एवं विस्तारीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहा है। 2012 तक इसकी क्षमता 10 मिलियन टन की हो जाएगी। लेकिन कंपनी के सरायकेला में प्रस्तावित बारह मिलियन टन की परियोजना जमीन अधिग्रहण के साथ-साथ अन्य कई समस्याओं को लेकर अधर में लटकी हुई है। आर्सेलर मित्तल समूह अब तक बारह मिलियन टन क्षमता के संयंत्र की स्थापना के लिए पूरी जमीन का अधिग्रहण करने में विफल रहा है। इस परियोजना पर 40 हजार करोड़ रुपए खर्च होने थे। इसी तरह टाटा की 12 मिलियन टन क्षमता के स्टील प्लांट पर भी 40 हजार करोड़ रुपए खर्च होने थे। इस तरह इन दोनों कंपनियों की ओर से 80 हजार करोड़ रुपए के निवेश से राज्य वंचित हो गया।
जेएसडब्ल्यू एवं जेएसपीएल ने भी इस्पात संयंत्र लगाने का प्रस्ताव किया था परन्तु जमीन अधिग्रहण एवं अन्य समस्याएं अड़चन पैदा कर रही है।
नये इस्पात सचिव प्रदीप कुमार मिश्रा ने गुरूवार को कहा कि सरकार इस उद्योग के समक्ष आने वाली समस्याओं को सुलझाने की हरसंभव कोशिश करेगी।मिश्रा का यह बयान ऐसे समय में आया है जबकि भूमि अधिग्रहण तथा अन्य समस्याओं के चलते इस्पात क्षेत्र में अरबों रुपए का निवेश अटका पड़ा है। मिश्रा ने कहा कि विदेशी निवेशकों का स्वागत है। हम विदेशी निवेशकों की समस्याओं के समाधान के लिए काम करेंगे। समाधान पाने के लिए आदिवासियों सहित सभी सम्बद्ध पक्षों को शामिल किया जाएगा।
टाटा स्टील (Tata Steel): भारतीय कारोबार में टाटा स्टील की घरेलू बिक्री 2011-12 की तीसरी तिमाही में 1.1% घट कर 16 लाख टन रह गयी है।कंपनी के कुल वैश्विक उत्पादन में भारतीय कारोबार की हिस्सेदारी लगभग एक चौथाई है।फिरभी एंजेल ब्रोकिंग के डेरिवेटीव एनालिस्ट सिद्धार्थ भामरे के मुताबिक निवेशक मेटल शेयरों में टाटा स्टील, सेल में निवेश कर सकते हैं। टाटा स्टील में 395 रुपये का अच्छा रेसिस्टेंस है। अगर शेयर रेसिस्टेंस लेवल पार करता है तो टाटा स्टील में अच्छी बढ़त आ सकती है। वहीं सेल में 7-8 फीसदी तक की बढ़त देखी जा सकती है। हिंडाल्को में काफी बढ़त आ चुकी है, अब शेयर में ज्यादा बढ़त आने की उम्मीद नहीं है। शेयर 140 रुपये के स्तर से ज्यादा ऊपर जाने की संभावना नहीं है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने पिछले दिनों केन्द्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा से राज्य के स्पंज आयरन उद्योग के लिए कम पड़ रहे कुल 2.5 मिलियन टन लौह अयस्क की आपूर्ति तत्काल राज्य को किये जाने का आग्रह किया है।
मुख्यमंत्री ने नई दिल्ली के उद्योग भवन में राज्य के लौह उद्योगों की समस्याओं को लेकर केन्द्रीय इस्पात मंत्री श्री वर्मा से मुलाकात के दौरान कल यह आग्रह किया।मुख्यमंत्री डॉ0 सिंह ने केन्द्रीय इस्पात मंत्री को बताया कि, राज्य में स्थित निजी स्पंज आयरन प्लान्ट को वर्तमान में कुल 5 मिलियन टन लौह अयस्क की आवश्यकता है।परन्तु इन उद्योगों को वर्तमान में 2.5 मिलियन टन ही लौह अयस्क प्राप्त हो पा रहा है।लौह अयस्क की आवश्यक आपूर्ति न हो पाने से राज्य में लौह अयस्क उद्योगों के बन्द होने का खतरा उत्पन्न हो गया है।इससे लाखों लोगो के रोजगार पर विपरीत असर पड़ रहा है।
इस्पात मंत्री ने मुख्यमंत्री की बातों को गभीरता से सुनते हुए छत्तीसगढ़ के स्पंज आयरन प्लान्ट को कम पड़ रहे अतिरिक्त 2.5 मिलियन लौह अयस्क की आपूर्ति किये जाने के सम्बंध में भरोसा दिलाया।मुलाकात के दौरान मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय मंत्री को बताया कि, छत्तीसगढ़ के स्पंज आयरन उद्योगों को पूर्व में लौह अयस्क की आपूर्ति उड़ीसा से होती थी,परन्तु उड़ीसा से लौह अयस्क की आपूर्ति बन्द हो जाने के कारण राज्य के लौह अयस्क उद्योगों को पर्यात लौह अयस्क नहीं मिल पा रहा है।अब ये उद्योग एनएमडीसी (राष्ट्रीय खनिज विकास निगम) द्वारा लौह अयस्क की आपूर्ति पर ही निर्भर है। एनएमडीसी राज्य के लौह अयस्क उद्योगों को 2.5 मिलियन टन ही लौह अयस्क की आपूर्ति ही कर रहा है।
बैठक में इस्पात सचिव पी.के.मिश्रा, सेल के अध्यक्ष सी.एस.वर्मा,मुख्यमंत्री के सचिव अमन कुमार सिंह और विशेष कर्त्तव्यस्थ अधिकारी विक्रम सिसोदिया भी उपस्थित थे।
भारत के समान अफगानिस्तान में भी प्रचुर मात्रा में खनिज पदार्थ (रॉ मेटेरियल्स) उपलब्ध हैं लेकिन इसका दोहन नहीं हुआ है। अब स्टील आथरिटी आफ इंडिया व टाटा स्टील अफगनिस्तान से लौह-इस्पात निर्माण के लिए आवश्यक खनिज पदार्थ लाने की पहल कर रही हैं। ये बातें इंटरनेशनल मेटल वर्कर्स फेडरेशन के निदेशक (दक्षिण एशिया क्षेत्र) सुदर्शन राव शारडे ने कहीं। टाटा स्टील के निमंत्रण पर शहर पहुंचे राव ने गुरुवार को दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि अफगानिस्तान में लोकतंत्र बहाल होने के बाद इसकी पहल शुरू हो गई है। हाल ही में अरब देशों के व्यवसायियों की इस संबंध में अफगनिस्तान में बैठक भी हुई जिसमें रॉ मैटेरियल और पेट्रोलियम पदार्थो के लिए भारत की कंपनियों को आमंत्रित किया गया है। यूरोप-अमेरिका की आर्थिक मंदी को देखते हुए सऊदी अरब-दुबई के व्यापारी भारत में निवेश करने को ज्यादा इच्छुक हैं। टाटा स्टील ने अफगनिस्तान से लौह अयस्क लाने का प्रस्ताव दिया था। राव ने कहा कि योजना के मुताबिक, कराची के रास्ते मुंबई तक माल आएगा।
इस्पात उद्योग को हर देश के आर्थिक विकास के मूल स्तंभों में से एक समझा जाता है और उद्योग की श्रेणी में किसी देश के स्थान को उस देश में इस्पात के प्रयोग के स्तर को देखकर निर्धारित किया जाता है क्योंकि उद्योग में इस्पात के प्रयोग का मापदंड दर्शाता है कि अमुक देश के उत्पादन और उद्योग किस सीमा तक सक्रिय हैं। इस प्रकार बहुत से बड़े औद्योगिक देशों ने औद्योगिकीकरण के प्रथम चरण में इस्पात उद्योग में पूंजी निवेश को अपने उद्योग विकास कार्यक्रम में मुख्य स्थान दिया है और इस माध्यम से उन्होंने अन्य सभी उद्योगों के विकास की ओर क़दम बढ़ाया है।
विशेषज्ञों के अनुसार इस्पात उद्योग की उत्पादन श्रंखला में विस्तार, देश की अर्थव्यवस्था में आर्थिक मूल्य संवर्धन और प्रतिस्पर्धा का कारण बना है।
इस्पात राष्ट्र की वृद्धि और विकास त्वरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका उपयोग धातु उत्पाद, वैद्युत मशीनरी, परिवहन उपकरण, कपड़ा आदि के विनिर्माण में मूल सामग्री के रूप में किया जाता है और इस प्रकार से यह मानव सभ्यता का आधार माना जाता है। यह बड़े और प्रौद्योगिकीय रूप से विकसित उद्योग का उत्पाद है, जिसका सामग्री प्रवाह और आय सृजन की दृष्टि से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष संबंध मजबूत है। दूसरे शब्दों में इस्पात का उत्पादन और प्रति व्यक्ति खपत देश के सकल घरेलू उत्पादन में मुख्य योगदानकर्ता है और इसके आर्थिक और औद्योगिक विकास का संकेतक है। लौह अयस्क, मैंग्नीज अयस्क और क्रोम अयस्क इस्पात उद्योग के लिए महत्वपूर्ण कच्ची सामग्री हैं। उनकी पर्याप्त मात्रा और गुणवत्ता में समय पर उपलब्धता, दीर्घावधिक आधार पर क्षेत्रक के त्वरित और सुव्यवस्थित विकास के लिए पूर्वापेक्षित है।
भारत तीन वर्ष पहले आठवें स्थान से उठ कर वर्ष 2006 में विश्व के पांचवें सबसे बड़े कच्चे इस्पात के उत्पादक देश के रूप में उभरा है। यहां प्रचुर मात्रा में लौह और कोयले के अयस्क की खानें हैं। इस्पात उत्पादन की लागत अन्य देशों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है। इसने प्रत्यक्ष अपचयित लौह या स्पंज लौह के विश्व भर में सबसे बड़े उत्पादक का स्थान बनाए रखा है। स्पंज लौह का उत्पादन वर्ष 2002-03 में 7.86 मिलियन टन की तुलना में वर्ष 2006-07 में 18.35 मिलियन टन के स्तर तक पहुंचने के लिए 22 प्रतिशत के सीएजीआर पर बढ़ा है। जबकि, भारत के विषय में अनुमान है कि यह वर्ष 2015 तक विश्व में इस्पात का सबसे बड़ा उत्पादक बन जाएगा। यह भी संभावना है कि वर्ष 2011-12 तक इस्पात उत्पदन क्षमता 124 मिलियन पहुंच जाए।
इंटरनैशनल आयरन एंड स्टील इंस्टीट्च्यूट के नए अवतार 'वर्ल्ड स्टील' की पहली बैठक में दुनिया के दिग्गज इस्पात निर्माता और आर्सेलरमित्तल प्रमुख लक्ष्मी निवास मित्तल ने भाग लिया। उन्होंने इस बैठक में उत्पादकों से भरोसा रखने को कहा और बताया कि लुढ़कती कीमतों के बीच इस्पात की मांग बढ़ेगी। वैसे इस क्षेत्र में चल रहा मंदी का दौर कोई सामान्य और चक्रीय मंदी नहीं है।
बहरहाल दुनिया भर में पसरी आर्थिक मंदी और तरलता संकट ने सभी आधारभूत धातुओं और खनिजों के बाजार को अपनी चपेट में ले लिया। इससे संकेत मिलता है कि इस्पात निर्माताओं के लिए अगले कुछ महीने बुरे रहने वाले हैं। हालांकि, विचारणीय तथ्य यह कि आर्थिक मंदी का असर कब तक रहेगा और इस साल इस्पात उत्पादन में कितनी कमी होगी। वैसे 2008 में इस्पात उत्पादन के वैश्विक आंकड़े अभी एकत्रित किए जा रहे हैं।
महत्वपूर्ण बात यह कि 2008 में इस्पात का उत्पादन 2007 की तुलना में थोड़ा घटने की उम्मीद है।बता दें कि 2007 में इस्पात का वैश्विक उत्पादन 1.324 अरब टन रहा था। पिछले साल तो मंदी के चलते आर्सेलरमित्तल, कोरस और सेवरस्टाल जैसी कंपनियो को अपने उत्पादन में कटौती करनी पड़ी।
दुनिया में इस्पात के सबसे बड़े उत्पादक और उपभोक्ता चीन में पहली बार उत्पादन को नियंत्रित रखने के प्रयास किए जा रहे हैं।
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद की बात करें तो इस्पात के वैश्विक सालाना उत्पादन में सबसे अधिक 8.7 फीसदी की कमी 1982 में हुई थी।
शुक्र है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद की सालाना विकास दर अभी भी 6 फीसदी है। सेल उन इस्पात उत्पादों के उत्पादन पर जोर दे रही है, जिनकी अभी भी खूब मांग है। लेकिन सेल या दूसरी भारतीय कंपनियों के पास अपनी कंपनियों को इस्पात की गिरती कीमतों से बचाने का कोई दूसरा रास्ता नहीं है।
इस्पात निर्माता मांग में लंबे समय तक कमी रहने से आशंकित हैं। उन्हें लगता है कि इस्पात का वैश्विक उत्पादन वहां तक जाएगा, जहां पर 2007 में था। यही नहीं, विशेषज्ञ इस मुद्दे पर बंटे हुए कि कब इस्पात उत्पादन फिर से 1.324 अरब टन (2007 का उत्पादन) तक पहुंच जाएगा।
मालूम हो कि मौजूदा आर्थिक मंदी के चलते इस्पात की मांग और कीमत में हुई कमी 1930 की आर्थिक मंदी के बाद सबसे ज्यादा है।
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