तसलीमा का दावा : फिल्म निदेशकों ने पैर पीछे खींचे |
Thursday, 02 February 2012 17:29 |
कोलकाता, दो फरवरी (एजेंसी) कोलकाता पुस्तक मेले में विरोध के चलते अपनी किताब का आधिकारिक विमोचन रद्द होने के एक दिन बाद विवादास्पद बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन ने आज दावा किया कि उनके जीवन तथा उपन्यासों पर फिल्म की योजना बनाने वाले तीन बंगाली फिल्म निदेशकों ने अब अपने पैर पीछे खींच लिए हैं। उनके जीवन तथा दो उपन्यासों ‘‘शोध’’ और ‘‘निमोंत्रण’’पर फिल्म निर्माण के प्रस्ताव के बारे में तसलीमा ने नयी दिल्ली से पे्रट्र को बताया , ‘‘ करार पर हस्ताक्षर किए गए थे । लेकिन निदेशकों ने अचानक चुप्पी साध ली।’’ उन्होंने कहा , ‘‘ मुझे नहीं पता कि उनके साथ क्या हुआ । किसने उन्हें फिल्म बनाने से रोका ।’’ उन्होंने संकेत दिया कि निदेशकों ने संभवत: कट्टरपंथियों की ओर से पड़े दबाव के चलते पीछे कदम हटाए होंगे । अपनी आत्मकथा ‘‘निर्वासन’’ के सातवें भाग के कल कोलकाता पुस्तक मेले से बाहर हुए विमोचन के संबंध में तसलीमा ने कहा , ‘‘ किताब कहीं कोई मुद्दा नहंी है । तसलीमा मुद्दा है ।’’कट्टरपंथी संगठनों के विरोध के मद्देनजर उनके प्रकाशक पीपुल्स बुक सोसायटी ने आधिकारिक रूप से पुस्तक के विमोचन को रद्द कर दिया था। 49 वर्षीय लेखिका पर अपने उपन्यास ‘‘लज्जा’’ के जरिए धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का आरोप लगाया गया था। इसके बाद उन्हें 1994 में बांग्लादेश छोड़कर भागना पड़ा था। अपनी कोलकाता वापसी की इच्छा के बारे में डाक्टर से लेखिका बनी तसलीमा ने दावा किया कि तृणमूल कांग्रेस के कुछ करीबी लोगों ने पहले उन्हें आश्वासन दिया था कि नयी सरकार के सत्ता में आने के बाद वह लौटने में सक्षम होंगी। कोलकाता को वह अपना दूसरा घर कहती हैं । उन्होंने कहा, ‘‘ बंगाल में राजनीतिक बदलाव हुआ है लेकिन मुझे अभी भी इंतजार है । सोच रही हूं कि कब मैें कोलकाता लौट सकूंगी।’’ तसलीमा ने कहा, ‘‘ माकपा ने मुझे खदेड़ा था लेकिन तृणमूल कांग्रेस ने मुझे बताया था कि वह मुझे वापस लाएगी। मुझे बहुत अधिक उम्मीदें थीं । इस प्रकार रहना काफी दर्दनाक है ।’’ उन्होंने इस बात को भी रेखांकित किया कि बंगाली समाचारपत्रों में उनके कॉलम भी अब प्रकाशित नहीं हो रहे हैं । साहित्यिक और बौद्धिक समुदाय द्वारा उनके समर्थन में नहीं खड़ा होने पर भी उन्होंने अफसोस जाहिर करते हुए कहा , ‘‘ कोलकाता में कई समाचारपत्रों में मेरे लेख प्रकाशित होते थे । अब उस पर भी प्रतिबंध लग गया है ।’’ तसलीमा ने कहा , ‘‘ अब केवल कुछ लोग ही मुझे समर्थन दे रहे हैं।’’ कल उनकी पुस्तक का विमोचन लेखिका और मानवाधिकार कार्यकर्ता महाश्वेता देवी के पुत्र और बंगाली लेखक नबारून भट्टाचार्य ने लेखक रंजन बंदोपाध्याय की मौजूदगी में किया था । लेकिन विमोचन को लेकर पैदा हुए विवाद के बावजूद तसलीमा के हौंसले कमजोर नहंी पड़े हैं । तसलीमा ने कहा, ‘‘ मेरे लिए यह नयी बात नहीं है । मेरी किताबें 80 के दशक से ही बेस्टसेलर रही हैं , जब मैंने लिखना शुरू किया था। अब मैं अपने मकसद के प्रति अधिक प्रतिबद्ध हूं । ये सब चीजें मुझे अधिक दृढ़ बनाती हैं ।’’ यूरोप में एक दशक तक शरण लिए रहने के बाद तसलीमा वर्ष 2004 से पर्यटक वीजा पर कोलकाता में रह रही थीं लेकिन विरोध प्रदर्शनों के कारण प्रशासन को उन्हें नयी दिल्ली में किसी गोपनीय स्थान पर ले जाना पड़ा । |
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