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Saturday 5 May 2012

अब क्यों नहीं कहते सोनी सोढ़ी नक्सली नहीं है?

अब क्यों नहीं कहते सोनी सोढ़ी नक्सली नहीं है?

Written by संजय स्‍वदेश C Published on 04 May 2012
छत्तीसगढ़ में नक्सलियों द्वारा अपहृत कलेक्टर की रिहाई हो चुकी है। राज्य की राजधानी में सरकारी दरवाजे पर मीडिया की भीड़ पिपली लाइव की तरह थी। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बड़े-बड़े रिपोर्टर मामले को कवर करने आए। पल-पल की जानकारी मीडिया को दी गई। पूरा घटनाक्रम देशभर में सुर्खियों में रहा। लेकिन इस रिपोर्टिंग में कहीं सोनी सोढ़ी का नाम ठीक नहीं उछला। कलेक्टर को छोड़ने के बदले नक्सलियों ने जिन कैदियों के नाम की सूची सौंपी थी, उसमें सोनी सोढ़ी का भी नाम था। सोनी सोढ़ी को कौन नहीं जानता होगा। पुलिस ने सोनी को नक्सली होने के आरोप में गिरफ्तार किया। मीडिया के एक वर्ग ने सोनी के पक्ष में एक विशेष अभियान चलाया। इस घटनाक्रम में उन मीडिया संस्थान और कर्मियों का कर्कश कांव-कांव नहीं सुनाई दिया, जो सोनी सोढ़ी को महज एक निर्दोष शिक्षक होने के पक्ष में अभियान चलाकर कर उसकी रिहाई के लिए सरकार की नैतिकता को कमजोर कर रहे थे।

कई अखबारों में सोनी सोढ़ी के पक्ष में विशेष आलेख आए, पत्रिकाओं में कवर स्टोरी प्रकाशित हुई। सोनी सोढ़ी पर अत्याचार की मार्मिक रिपोर्टों ने दिल को झकझोर दिया। सोनी के हमदर्द बढ़ गए। सोनी जेल से भी मार्मिक पत्र लिख कर अपने समर्थकों का अपने पक्ष में हौसला मजबूत करती रही। अपने ऊपर अत्याचार की कहानी दुनिया को बताया। कहा कि वह नक्सली नहीं है। कोर्ट के सामने सरकार को हल्की-फुल्की शिकस्त मिली। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने सोनी की मेडिकल जांच एम्स में कराने की अनुमति दे दी है। मीडिया की पूरी रिपोर्ट कलेक्टर की रिहाई को लेकर सरकार की पहल और वार्ताकारों की गतिविधियां व उनकी बातचीत पर केंद्रित रही। लेकिन इसमें एक महत्वपूर्ण बात गौण हो गई। कलेक्टर की रिहाई के बदले नक्सलियों ने जिन कैदियों को छोड़ने की सूची दी थी, उसमें सोनी सोढ़ी का नाम था।

जब सोनी सोढ़ी नक्सली नहीं महज एक शिक्षिका व सामाजिक कार्यकर्ता थी, उसके घर पर नक्सलियों ने गोलीबारी की थी, तब फिर वे भला एकाएक सोनी के हमदर्द कैसे बन गए? जानकार कहते हैं कि सोनी सोढ़ी हार्ड कोर नक्सली है। इसलिए पुलिस उसके पीछे हाथ धो कर पीछे पड़ी है। यह मुद्दा उठाने के पीछे हमारा मकसद यह कतई नहीं हैं कि सोनी सोढ़ी के साथ पुलिसिया अत्याचार का समर्थन किया जा रहा है। पुलिस ने जो वीभत्स ज्यादती सोनी के साथ की, वह निंदनीय नहीं दंडनीय है। सरकारी तंत्र द्वारा किसी महिला की योनी में कंकड़ डाल कर प्रताड़ित करना सभ्य समाज का उदाहरण नहीं है। पर सोनी के पक्ष में मीडिया के एक वर्ग की एक पक्षीय रिपोर्टिंग उस उसी मीडिया के साख पर बट्टा लगाता है, जिससे हम भी शामिल हैं। कलेक्टर की रिहाई के के बदले जिन नक्सलियों को रिहा करने की सूची जारी हुई, उसमें सोनी का नाम स्थानीय मीडिया में तो रहा। लेकिन नेशलन मीडिया में कहीं दिखा नहीं। सोशल मीडिया में भी कुछ नहीं मिला। नक्सलियों पर सरकारी अत्याचार की घटना से मानवाधिकार के पक्षधरों का दिल तो रोता है, लेकिन जब वहीं नक्सली जनता और जवानों की नृशंसा से हत्या करते हैं, तब वे खामोश हो जाते हैं, क्या उन्हें मालूम नहीं है कि उन्हीं नक्सलियों में सोनी सोढ़ी भी है।
लेखक संजय स्‍वदेश पत्रकार हैं. कई राज्‍यों में पत्रकारिता करने के बाद आजकल नागपुर में सक्रिय हैं. 

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