खेल नहीं तमाशा
Sunday, 29 April 2012 11:44 |
आईपीएल में क्रिकेट के बजाय दूसरी चीजों पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। खेल को बाजार संचालित कर रहा है और खिलाड़ी कंपनियों के बनाए नियम-कायदों के तहत खेल रहे हैं। आईपीएल में चल रहे इस खेल की जानकारी दे रहे हैं सूर्यप्रकाश चतुर्वेदी। आईपीएल में कीमत खिलाड़ी की बाजार में मोल भाव पर निर्भर रहती है। किस खिलाड़ी को आम जनता ज्यादा देखना पसंद करती है। वे उसे कितने अधिक विज्ञापन मिलते हैं यह उसकी क्रिकेट प्रतिभा से कहीं ज्यादा मायने रखता है। किसके तेवर कितने तीखे और तेज हैं, वह कितना अधिक विवादास्पद बना रह कर कितनी अधिक सुर्खियों में बनकर रहता है यह उसकी क्रिकेट गुणवत्ता और क्रिकेट स्तर से अधिक महत्त्वपूर्ण माना जाता है। सर्वाधिक रन या विकेट की उतनी फिक्र नहीं की जाती जितने कि जरूरत पड़ने पर कुछ स्टीक गेंद फेंकने, लप्पेबाजी करके कुछ रन कूट लेने और क्षेत्र रक्षण में तेज तर्रार बने रहने और मैदान पर हमेशा सक्रिय नजर आते रहने को अहमियत दी जाती है। जो खिलाड़ी जोश से भरपूर नजर आए और ऐसा लगे कि वह हमेशा कुछ भी करने के लिए तत्पर है, बीसम बीसा के मनोरंजक अभियान के उपयुक्त है। क्रिकेट का यह कितना दिलचस्प क्रिकेट संस्करण या प्रारूप है कि यहां खिलाड़ी खेलते हुए क्रिकेट के मैदान से माइक पर बातचीत करता है और अंपायर भी अंपायरिंग करते करते माइक पर बतियाते हैं और यह सब इस क्रिकेट के शौकीनों को और ज्यादा सुहाता है। चीयर गर्ल्स और चीयर ब्वाय तो हैं ही। दर्शक मौजमस्ती करते रहते हैं, खाते पीते रहते हैं और इस बीच समय मिलने पर कभी-कभार क्रिकेट भी फरमाते रहते हैं। मैदान पर भले ही कम दर्शक आए, लेकिन घर बैठ कर टीवी पर मैच देखने वाले और विज्ञापनदाता इसकी टीआरपी बढ़ा रहे हैं, यह इसके प्रायोजक का दावा है। यहां तात्कालिक चमक की कीमत है। जिन्हें इसे खेलने और देखने का चस्का लग गया है, वे इस पर फिदा है। पैसे की मार ने खिलाड़ियों को भी प्रभावित किया है और क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को भी तेंदुलकर जैसे क्रिकेट आइकान देश के लिए बीसम-बीस नहीं खेलते पर आईपीएल में मुंबई इंडियन के लिए खेलते हैं। और मीडिया तो लट्टू है ही। विज्ञापन जो मिलते हैं अंग्रेजी के महान निबंधकार फ्रांसिस बेकन ने कहा है कि जीवन एक नदी है जिसमें सभी मूल्यवान और भारी चीजें तो पानी में नीचे बैठ गई हैं और हल्की व छिछली चीजें पानी की सतह पर तैर रही हैं। आईपीएल भी ऐसा क्रिकेट है जिसमें सभी बड़े और महान खिलाड़ी तो दौड़ से बाहर हैं और खेल के बजाय चमकदमक से आकर्षित करने वाले खिलाड़ियोें की पौबारह है। इस क्रिकेट में खिलाड़ी के खेल-कौशल और क्षमता के लिए कोई जगह नहीं है। पैसे चमक दमक और प्रचार-प्रसार की दम पर इस शैली के क्रिकेट ने कुछ लोगों को गिरफ्त में ले ही लिया है। लगता है भविष्य में क्रिकेट के दर्शक और शौकीन टैस्ट, एकदिवसीय और बीसम-बीस में बंट जाएंगे। टैस्ट क्रिकेट के चाहने वाले टैस्ट क्रिकेट देखेंगे और एकदिवसीय क्रिकेट पसंद करने वाले एकदिवसीय क्रिकेट जबकि बीसम-बीस प्रेमी बीसम बीसा देखेंगे। खुला और उन्मुक्त बाजार होगा क्रिकेट के लिए। जो जिस शैली का क्रिकेट देखना चाहे देखे और खिलाड़ी भी हर शैली के लिए अलग-अलग ही होंगे। और तड़क-भड़क में तो बीसमबीसा भारी है ही। खिलाड़ी भी भले ही टैस्ट क्रिकेट को असल क्रिकेट मानें पर पैसे के लालच में बीसम बीस खेलने के लिए मजबूर हैं ही बेशक इस खेल के भी अपने सितारे होंगे लेकिन उनकी खेल अवधि छोटी होगी। मं डी अपनी चीजों के दाम खुद तय करती है। बाजार में आने के बाद बाजार सबकी कीमत तय करता है। कौन कितने अधिक काम पाएगा या कि फिर कौन कितना बड़ा और कितनी अधिक उपलब्धि वाला है यह ज्यादा मायने रखता है। यह हमेशा से होता रहा है और आगे भी होता रहेगा। जीवन के हर क्षेत्र में यही सिद्धांत लागू होता है। उस्ताद बड़े गुलाम अली खान ने फिल्म मुगले आजम व उसके पहले बैजू बावरा में उस्ताद रजब अली खान और कृष्ण राव चोलकर जैसे मशहूर व महान गायकों ने गाया लेकिन उन्हें कभी मोहम्मद रफी, मन्नाडे, नूरजहां, मुकेश, लता मंगेशकर, आशा भोंसले से अधिक पैसे नहीं मिले। यहां तक कि जगजीत सिंह, गुलाम अली और अनूप जलोटा को भी भीमसेन जोशी, बिमिस्ला खान और पंडित जसराज से अधिक पैसे मिलते रहे। राजकपूर और दिलीप कुमार को बलराज साहनी से अधिक कुछ पैसे मिले और अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, आमिर खान और सलमान खान को अभिनय के लिए नसीरुद्दीन शाह, श्रीराम लागू और ओमपुरी से कहीं ज्यादा पैसे मिलते हैं। अच्छा कलाकार होना ही अधिक धन के लिए पात्र हो जाना नहीं है। जिसकी फिल्म अधिक चले, जिसकी मांग अधिक हो उसे उन कलाकारों से अधिक राशि मिलती है। जिनकी मांग अपेक्षाकृत कम होती है फिर भले ही वे कितने भी अच्छे कलाकार या अदाकार क्यों न हों। संगीतकार एआर रहमान ने तो सभी संगीतकारों को धन के मामले में पीछे छोड़ दिया है। विज्ञापनों में भी इसे देखा जा सकता है। विज्ञापन एजंसियां उन्हीं से विज्ञापन करवाती हैं जिनकी मांग होती है और लोग उन्हें देखना पसंद करते हैं। फिल्मी कलाकारों में अमिताभ बच्चन, सैफ अली खान, शाहरुख खान, ऐश्वर्य राय, विद्या बालन और दीपिका पादुकोण, खिलाड़ियों में धोनी, सचिन तेंदुलकर, युवराज सिंह और विराट कोहली को ही अधिक विज्ञापन से धन मिलता है। राहुल द्रविड़ को कभी-कभार ही विज्ञापन करते नजर आते हैं और वीवीएस लक्ष्मण को तो किसी भी विज्ञापन में नहीं देखा गया। यहां भी मांग और आपूर्ति का ही सिद्धांत लागू होता है। आईपीएल-पांच की बोली भी इस सिद्धांत से अछूती नहीं रही। कभी आस्ट्रेलियाई आलराउंडर एंड्रयू साइमंड्स, वेस्टइंडीज के क्रिस गेल और पोलार्ड आईपीएल में सबसे महंगे खिलाड़ी रहे थे। लेकिन हर बार नए ही खिलाड़ी की सबसे अधिक बोली लगती रही। आईपीएल-पांच में सौराष्ट्र के रविंद्र जाडेजा सबसे महंगे खिलाड़ी रहे। उन्हें नौ करोड़ बहत्तर लाख में चेन्नई ने डेक्कन चारजर्स के साथ टाई हो जाने के बाद खरीदा। उन्हें नौ लाख पचास हजार का ही भुगतान होगा। पिछले आईपीएल में कोच्चि के साथ जाडेजा का इतनी ही रकम का अनुबंध था। विकेटकीपर बल्लेबाज पार्थिव पटेल को डेक्कन चारजर्स ने छह लाख पचास हजार डालर में खरीदा जो कि आश्चर्यजनक था। लेकिन सबसे अधिक चौंकाने वाला फैसला वेस्टइंडीज के स्पिनर सुनील नरेन को लेकर रहा जिन्हें कोलकाता नाइट राइडर्स ने सात लाख डालर में खरीदा। टी-20 का क्रिकेट बेहद आतिशी और आनंद-प्रमोद वाला क्रिकेट है और आईपीएल की जरूरतें ऐसे खिलाड़ी पर केंद्रित रहती हैं जो जोश से भरपूर हो और सब कुछ कर गुजरने के लिए हमेशा तैयार रहे। यहां तकनीक, योजना, धैर्य और एकाग्रता के लिए कोई स्थान नहीं है। तभी ब्रायन लारा और रिकी पोंटिंग की यहां पूछ-परख नहीं है और मार्क बाउचर और लक्ष्मण को कोई खरीददार नहीं मिला। उनके अलावा ऐंडरसन, इयान बेल, रामनरेश सरवन व डेरेन ब्राव्हो को भी किसी ने नहीं खरीदा। लेकिन हर्शल गिब्स पचास हजार डालर, रुद्रप्रताप सिंह छह लाख डालर और श्रीसंत चार लाख डालर में बिके। |
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