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Friday 8 April 2016

बंगाल हारे तो दांव पर देश, सो भूतों का नाच दिनदहाड़े, चुनाव आयोग की निगरानी में लोकतंत्र का गला

बंगाल हारे तो दांव पर देश, सो भूतों का नाच दिनदहाड़े, चुनाव आयोग की निगरानी में लोकतंत्र का गला

जंगल महल में सौ फीसद मतदान का रिकार्ड

चुनावों में आरोप लगते रहे हैं लेकिन केंद्र में जब तक संघ बिरादरी है, तब तक दीदी सुरक्षित हैं

और बंगाल के लिहाज से भाजपा काहौवा खड़ा करना भी मुसलमान वोटों की असुरक्षा को जनादेश में तब्दील करने का कायदा कानून है।

इसलिए दीदी संघ परिवार को खुल्ला मैदान छोड़कर वाम लोकतांत्रिक गठबंधन के खिलाफ खुद को लामबंद करके संघपरिवार के एजंडे को ही आगे बढ़ाने का काम कर रही है।

एक्सेकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

कोलकाता (हस्तक्षेप)। चुनाव आयोग ने 81 फीसद से मतदान का जो 84 फीसद संशोधित आंकड़ा जारी किया है, उसने बंगाल में दिनदहाड़े भूतों के नाच समां बांध दिया है।

बिनपुर विधानसभा क्षेत्र के 18 नंबर लालजला विद्यालय में सौ फीसद वोट पड़े तो शालबनी के 82नंबर कियामाछा बूथ पर निनानब्वे फीसद वोट दर्ज किये गये। शालबनी के ही 14 नंबर हातिमशानु बूथ में 97 फीसद मतादान हुआ।

पहले चरण के मतदान के दौरान वोटरों, मीडिया कर्मियों से और यहां तक कि वहां के माकपा प्रत्याशी से इसी शालबनी में मारपीट सबसे ज्यादा हुई और केंद्रीय वाहिनी तमाशबीन बनी रही। वहीं मतदान शत प्रतिशत है तो चुनाव आयोग और केंद्रीय वाहिनी की भूमिका आप खुद समझ लें।

वैसे भी मुख्य चुनाव आयुक्त ने बंगाल में मतदान के अगले चरणों में वोटरों से शत प्रतिशत मतदान करने की अपील जंगल महल में कथित शांतिपूर्ण मतदान के बाद मतदान 81 फीसद होने की घोषणा के साथ कर दी है।

इस लिहाज से चुनाव आयोग को बाकी बंगाल में इसी तरह शत प्रतिशत मतदान होने पर गड़बड़ी कुछ नजर नहीं आने वाली है।

बहरहाल, मेदिनीपुर के 108 नंबर बूथपर 98.48 प्रतिशत, तालडांगरा विधानसभा क्षेत्र के 84 नंबर बूथ पर 96 प्रतिशत और बांदोवान के पाटापहाड़ी प्राथमिक विद्यालय बूथ पर 94-78 प्रतिशत मतदान का आंकड़ा बना है।

यही सिलसिला अगले चरणों में जारी रहा तो दीदी की सत्ता बहाल रहने में कोई ज्यादा दिक्कत होनी नहीं चाहिए। ऐेसे में सारा का सारा चुनाव किसी प्रहसन से कम नहीं होगा।

इसी बीच राज्य निर्वाचन आयोग ने ईवीएम मशीन में खराबी की शिकायत के आधार पर मेदिनीपुर व रानीबाग विधानसभा क्षेत्रों के दो बूथों पर पुनर्मतदान कराने की घोषणा की है। मेदिनीपुर 237 विधान सभा क्षेत्र संख्या के विवेकानंद शिक्षा निकेतन 240 नंबर बूथ व 249 रानीबाग विधानसभा केंद्र के रानीबाग उच्च बालिका विद्यालय के230 नंबर बूथ पर 11 अप्रैल को फिर से मतदान कराया जायेगा।

शालबनी में पुनर्मतदान शिकायतों के बावजूद नहीं कराया जा रहा है।

 बहरहाल संवाददाताओं को मतदान के प्रतिशत में गड़बड़ी की शिकायत के बारे में स्पष्टीकरण देते हुए उप मुख्य निर्वाचन अधिकारी अमित ज्योति भट्टाचार्य ने बताया कि वह आकड़े मतदान केंद्र से मिली जानकारी के आधार पर ही अपलोड किये जाते हैं।

 निर्वाचन अधिकारी ने बताया कि कांग्रेस प्रत्याशी मानस भुंइया ने खड़गपुर के एएसपी अभिषेक गुप्ता पर नारायण गढ़ व सबंग के थाना प्रभारी को शासक दल के पक्ष में मतदान करवाने के लिए दबाव देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि एसपी भारती घोष के इशारे पर इस कार्य को उन्होंने अंजाम दिया है।

कोलकाता के आस-पास के राजनीतिक कार्यकर्ता हस्तक्षेप से लगातार संपर्क साधने की कोशिश कर रहे हैं।

हमने उन्हें साफ कर दिया है कि हम सच ही लिखेंगे।

उनका सच भी हम साझा करेंगे।

यह जनसुनवाई का मंच है और हम किसी के पक्ष में नहीं हैं सच के सिवाय।

बहरहाल बंगाल में संघ परिवार का दांव बहुत बड़ा हो गया है। गुपचुप गठजोड़ का किस्सा खुला होते न होते दीदी और ममता की ओर से लुकाछिपी की होड़ मची है।

मोदी ने दीदी को बंगाल के चुनाव प्रचार अभियान में सीधे कटघरे में खड़ा कर दिया है, जबकि केंद्र सरकार नारद स्टिंग के वीडियो का सच जानने की कोई पहल भी नहीं कर रही है।

मोदी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर मौत की राजनीति करने का आरोप लगाते हुए गुरुवार को कहा कि कोलकाता में हुआ फ्लाईओवर हादसा ‘दैविक संदेश’ है कि लोग बंगाल को तृणमूल कांग्रेस से बचाएं। यह एक्ट ऑफ गॉड नहीं एक्ट ऑफ फ्रॉड है। प्रधानमंत्री ने कहा कि फ्लाईओवर गिर गया, यदि गणमान्य लोग वहां जाते तो क्या करते। वे कुछ लोगों को बचाने का प्रयास करते और बचाव अभियान में सहायता करते। लेकिन दीदी (ममता बनर्जी) ने क्या किया?

मोदी ने दीदी पर हमले के लिए इसी नारद स्टिंग के आरोपों को ही दोहराया है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह सरासर गलत है क्योंकि वे प्रधानमंत्री हैं और किसी मुख्यमंत्री के खिलाफ आरोपों को दोहराने से पहले सच को जांच लेना उनकी जिम्मेदारी बनती है।

प. बंगाल में दूसरे चरण के मतदान के लिए प्रचार करने अलीपुर पहुंचे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को ममता सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि ममता जब दिल्ली आती हैं, तो सोनिया गांधी से जरूर मिलती हैं, लेकिन उनकी मीटिंग में आने से कतराती हैं। मोदी ने तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और वामदलों के बीच मिलीभगत का आरोप लगाया। उन्होंने दीदी पर सोनिया गांधी से मिले होने का आरोप लगाया। मेरी मीटिंग में नहीं आती हैं दीदी… -मोदी ने कहा, ”मेरी मीटिंग में दीदी नहीं आती हैं, लेकिन जब भी दिल्ली आती हैं सोनिया जी से आशीर्वाद जरूर लेती हैं”। – ”अगर आपको केंद्र सरकार से कोई शिकायत है तो हमें भी बताइए। लेकिन नहीं कुछ भी हो मीटिंग में नहीं जाएंगी। ”

अपने भाषण के दौरान मोदी राज्य सरकार पर जमकर बरसे। ममता दीदी पर करारा हमला करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें राज्य की जनता की चिंता नहीं हैं। कहा कि यह सरकार मां, माटी और मानुष को लेकर बनी थी लेकिन अब ये मनी मतलब पैसे पर केंद्रीत हो गए हैं। नरेंद्र मोदी ने इस दौरान लेफ्ट पर भी हमला बोला। उन्होंने कहा की 2011 में लोगों ने ममता बनर्जी को बड़ी उम्मीदों के साथ राज्य की कमान सौंपी थी मगर ममता दीदी ने लेफ्ट के ही काम को आगे बढ़ाने का काम किया।

मोदी ने ममता और वाममोर्चा पर आरोप लगाया कि ममता और वाममोर्चा की दिलचस्पी बंगाल के कल्याण या भविष्य में नहीं है। उन्होंने लोगों से तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए वोट देने और राज्य में विकास के लिए भाजपा को मौका देने की अपील की। पश्चिम बंगाल के गौरवमयी इतिहास को याद करते हुए मोदी ने कहा, स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस, वाम मोर्चा और अब दीदी (ममता) सभी ने बंगाल की बर्बादी की तस्वीर पेश की। चाहे वाम हो या दीदी हो, ये दोनों आपके भविष्य को सुरक्षित नहीं कर सकते हैं।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर तीखा प्रहार करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आरोप लगाया कि वह रिश्वत के साथ तालमेल कर रहीं हैं और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस ‘आतंक, मौत तथा भ्रष्टाचार’ का पर्याय बन गई है। उन्होंने कांग्रेस पर भी राजनीतिक फायदे के लिए राज्य में ‘वामपंथियों के पैरों में गिरने’ का आरोप लगाया। मोदी ने आसनसोल में एक चुनावी सभा में कहा कि तृणमूल कांग्रेस के नेताओं के खिलाफ टीवी पर नारद का स्टिंग ऑपरेशन दिखाया गया। यह बड़ा स्कैंडल था लेकिन क्या दीदी ने उनके खिलाफ कोई कदम उठाया या उन्हें पार्टी से निकाला?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर राज्य में भ्रष्टाचार और हिंसा फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा है कि अगर बंगाल में भाजपा की सरकार बनी तो बांग्लादेश से लगातार आ रहे घुसपैठियों को बंगाल छोड़ना ही होगा क्योंकि रोजगार के हकदार यहां के युवा हैं।

मोदी ने कहा बंगाल में मां, माटी, मानुष की जगह मौत ने ली।

जो आरोप मोदी दीदी के खिलाफ लगाये हैं, उन्हें बहरहाल वैधता मिल गयी है उनके राजकाज का मुखिया होने की वजह से।

अब केंद्रीय सरकार और केंद्रीय एजंसियों की जवाबदेही बनती है कि इन आरोपों का सच जनता के सामने जल्द से जल्द उजागर करें। दीदी को ऐसा कहना चाहिए था। लेकिन वे जबाव में भाजपा को तो दंगाबाज सरकार कह रही है लेकिन केंद्र सरकार या प्रधानमंत्री के खिलाफ एक भी शब्द नहीं कह रही है जौसा उनने पिछले लोकसभा चुनावों में कहा था।

दूसरी ओर मोदी के इस बार के चुनाव अभियान में धर्मोन्माद और कट्टर हिंदुत्व के बजाय दीदी और उनकी सरकार के भ्रष्टाचार के मुद्दे खास अहम है।

जाहिर है कि पिछले लोकसभा चुनावों के अनुभवों के मद्देनजर और मनुस्मृति की ओर से दुर्गा के आवाहन के फेल हो जाने के मद्देनजर संघ परिवार को मालूम हो गया है कि बंगाल में कमसकम फौरन धर्मोन्मादी ध्रुवीकरण असंभव है।

इसके उलट दीदी मुसलिम बहुल क्षेत्रों में भाजपा को दंगाबाज कह जरूर रही हैं लेकिन उनके हमले के निशाने पर वाम और कांग्रेस हैं।

जाहिर है कि निशाना कहीं है और वार कहीं कर रहे हैं मोदी। दीदी के खिलाफ न बोलने पर संघपरिवार मैदान से बाहर है और बंगाल के सभी सीचों पर जमानत जब्त हो जाने की हालत में केरल तमिलनाडु और पुडुच्चेरी में सिफर के साथ असम में भी शिकस्त की पूंजी लेकर हिंदुत्व का एजंडा बाकी राज्यों के चुनाव में संघ परिवार को कहीं का नहीं छोड़ेगा।

इसलिए मजबूरी का नाम बाबासाहेब अंबेडकर है।

जाति उन्मूलन के बाबासाहेब के मिशन के खिलाफ रंगभेदी वर्चस्व बनाये रखने और आरक्षण को खत्म करने के हर इंतजाम के बावजूद जैसे बाबासाहेब को ईश्वर बनाने पर तुला है संघ परिवार, ठीक वैसे ही बंगाल से खाली हाथ लौटना ना पड़े इसके लिए दीदी को जिताने की गरज और एजंडे के बावजूद संघ परिवार के सिपाहसालारों को झख मारकर दीदी के खिलाफ हमलावर रवैया अपनाना पड़ रहा है।

 दीदी भली भांति जानती है कि उनका रक्षा कवच संघ परिवार है और दोनों का साझा दुश्मन वाम लोकतांत्रिक गठबंधन है, जिसके बंगाल के नतीजे के बाद वायरल हो जाने का अंदेशा है।

चुनावों में आरोप लगते रहे हैं लेकिन केंद्र में जब तक संग बिरादरी है, तब तक दीदी सुरक्षित हैं और बंगाल के लिहाज से भाजपा का हौवा खड़ा करना भी मुसलमान वोटों की असुरक्षा को जनादेश में तब्दील करने का कायदा कानून है।

इसलिए दीदी संघ परिवार को खुल्ला मैदान छोड़कर वाम लोकतांत्रिक गठबंधन के खिलाफ खुद को लामबंद करके संघ परिवार के एजंडे को ही आगे बढ़ाने का काम कर रही हैं।

जाहिर है कि दीदी ना हारे, इसके लिए केंद्रीय वाहिनी को तृणूल के भूतों की फौज का छाता बना दिया गया है। जिस जंगल महल के पहले चरण के मतदान में माकपा प्रत्याशी की पिटाई हो गयी और मीडिया कर्मी से लेकर भाजपा और माकपा के वोटर तक धुन डाले गये वहां शत प्रतिशत वोट का रिकार्ड कायम हुआ है।

इसी बीच मुख्यमंत्री व भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र से तृणमूल कांग्रेस की उम्मीदवार ममता बनर्जी ने शुक्रवार को अलीपुर स्थित ट्रेजरी कार्यालय में नामांकन पत्र दाखिल किया। इस अवसर पर उनके साथ प्रदेश तृणमूल कांग्रेस के अध्यक्ष सुब्रत बक्शी, तृणमूल कांग्रेस के उपाध्यक्ष व सांसद मुकुल राय व अन्य उपस्थित थे। उल्लेखनीय है कि सुश्री बनर्जी दूसरी बार भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र से प्रतिद्वंद्विता कर रही हैं।

गौरतलब है कि भवानीपुर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस की दीपा दासमुंशी व सुभाष चंद्र बोस के परपौत्र चंद्र बोस प्रतिद्वंद्विता कर रहे हैं। इस अवसर पर तृणमूल समर्थकों की भारी भीड़ थी तथा वे मां, माटी, मानुष व ममता बनर्जी जिंदावाद के नारे लगा रहे थे। शुक्रवार को ही कोलकाता पोर्ट विधानसभा क्षेत्र से शहरी विकास मामलों के मंत्री फिरहाद हकीम, बेहला पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार व राज्य के उद्योग मंत्री पार्थ चटर्जी, रासबिहारी विधानसभा क्षेत्र से तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवार व विधानसभा में सत्तारूढ़ दल के मुख्य सचेतक शोभनदेव चट्टोपाध्याय ने भी नामांकन पत्र जमा दिया

http://www.hastakshep.com/hindi-news/2016/04/08/63422#.VwfI1NDhXqB

Monday 4 April 2016

कोलकाता और बाकी बंगाल दहशत में है, मुख्यमंत्री भी

कोलकाता और बाकी बंगाल दहशत में है, मुख्यमंत्री भी

जान माल की हिफाजत की फिक्र में महाबली बड़ाबाजार की तरह बाकी कोलकाता और बाकी बंगाल दहशत में है। मुख्यमंत्री भी।  

क्योंकि विकास की आंधी प्रोमोटर बिल्डर राज की मुनाफावसूली के सिवाय कुछ नहीं है, इस हकीकत से पहली बार बंगाल के लोगों का वास्ता बना है।

बाकी देश भी स्मार्टशहरों के ख्वाब बुनते हुए असलियत समझने से पहले इसी तरह के हादसों का इंतजार कर रहा होगा। गजब अच्छे दिन हैं। कोई शक की गुंजाइश राष्ट्रद्रोह है। मेकिंग इन जारी है।

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

कोलकाता (हस्तक्षेप)। स्मार्ट डिजिटल देश में बजट से लेकर शेयर बाजार तक विकास से लेकर राजनीति तक, सड़क से लेकर संसद तक प्रोमोटर बिल्डर सिंडिकेट माफिया राज के तहत किस भारत माता की जै जै Bharat Mata Ki Jai कहकर कैसे अच्छे दिन आ गये हैं, तनिक कोलकाता के उन लोगों से आज ही पूछ लीजिये,  जो बन चुके या अधबने फ्लाई ओवर,  पुल,  बहुमंजिली इंफ्रास्ट्रक्चर के अंदर बाहर कहीं रहते हैं।

यह अभूत पूर्व है गुरुवार को 2.2 किमी लंबे अधबने फ्लाईओवर के मलबे से अभी सरकारी तौर पर 24 लाशें निकली हैं और जख्मी भी सिर्फ 89 बताये जा रहे हैं। मारवाड़ी अस्पताल में कराहती मनुष्यता की कराहों से बड़ाबाजार की कारोबारी दुनिया दहल गयी है तो मलबे में दफन लावारिश लाशों की सड़ांध से बड़ाबाजार तो क्या पूरे कोलकाता की हवाएं और पानियां जहरीली हैं। रातदिन सारा हादसा लाइव चलते रहने और बाकी खतरों के खुलासे से यह दहशत अभी वायरल है।

खुद मुख्यमंत्री दहशतजदा है, जिनका बयान यह है – दो दो फ्लाईओवर गिर गये हैं। ऐसे टेंडर पास हो गये कि धढ़ाधड़ ढह रहे हैं। लोग बेमौत मारे जा रहे हैं और मुझे बहुत डर लगाता है जब मैं राजारहाट की तरफ जाती हूं कि कहीं फ्लाईओवर ढह न जाये। मेदिनीपुर के दांतन में दीदी का यह उद्गार है।

जाहिर है कि इन हादसों के लिए दीदी पिछली वाम सरकार को जिम्मेदार ठहरा रही हैं।

जबकि तथ्य बता रहे हैं कि हर निर्माणाधीन परियोजना में नई सरकार आने के बाद राजनीतिक वजह से फेरबदल हुआ है और हादसों की मुख्य वजहों में से यह भी एक वजह है। फिर जिन्हें टेंडर मिला, वे भी काम नहीं कर रहे हैं।  

पुराने टेंडर की आड़ में सबकंट्राक्टर ही काम कर रहे हैं और वे कायदा कानून ताक पर रखकर काम कर रहे हैं और उन्हें किसी बात का कोई डर भी नहीं है, क्योंकि वे सीधे तौर पर सत्तादल के बाहुबली हैं। बाकी मामला रफा दफा तो होना ही है।

मसलन पहले तो निर्माण संस्था दैवी कृत्य बता रही थी और अब अफसरों की गिरफ्तारी के बाद तोड़ फोड़ और धमाके की कथा बुनी और लाइव प्रसारित है। जाहिर है कि काली सूची में होने के बावजूद, अपने ही शहर और राज्य में प्रतिबंधित होने के बावजूद ऐसी निर्माण संस्थाएं बाकी देश में तबाही मचाने के लिए आजाद हैं।

सत्ता या सियासत को इस पर तब तक कोई ऐतराज नहीं होता जब तक सफाई देने की नौबत बनाने लायक लाशें किसी हादसे से न निकलें। फिर जिन्हें मुनाफावसूली के हजार तौर तरीके मालूम होते हैं, ले देकर मामला रफा-दफा करने के हजार रास्ते भी उन्हें मालूम हैं। जब तक परदे पर खबर रहेगी, तब तक आफत होगी। फिर कोई बड़ा हादसा हुआ तो पुराना किस्सा खत्म।

इस निर्माण की देखरेख तृणमूल संचालित कोलकाता नगर निगम के प्रोजेक्ट इंजीनियर कर रहे थे, बलि का बकरा खोजने के क्रम में उनमें से दो निलंबित भी कर दिये गये है। कहा यह जा रहा कि हादसे से पहले हुई ढलाई के वक्त कोई इंजीनियर मौके पर नहीं था। जबकि हकीकत यह है कि अबाध प्रोमोटर बिल्डर माफिया राज में सरकारी या प्रशानिक निगरानी या देखरेख का कोई रिवाज नहीं है। मेकिंग इन की यह खुली खिड़की है।

इंजीनियर, अफसरान या प्रोमोटर बिल्डर भी नहीं, विकास के नाम ऐसी तमाम परियोजनाएं सीधे राजनीतिक नेताओं के मातहत होती हैं। फिर वे ही नेता अगर अपनी ही कंपनियों के मातहत ऐसी परियोजनाओं को अंजाम देते हों तो किसी के दस सर नहीं होते कि कटवाने को तैयार हो जाये।

बड़ा बाजार में यही हुआ। उन नेताओं के नाम भी सत्ता के गलियारे से ही सार्वजनिक है कि दूसरे प्रतिद्वंद्वी बिलडर प्रोमोटर राजनेता इस मौके का फायदा उठायेंगे ही। यह स्वयंसिद्ध मामला है, लेकिन किसी एफआईआर या चार्जशीट में असल गुनाहगारों के नाम कभी नहीं होते।

जैसे बड़ाबाजार के तृणमूल के पूर्व विधायक व कद्दावर नेता के भाई इस परियोजना की निर्माण सामग्री की सप्लाई कर रहे थे।

हादसे से पहले तक बड़ा बाजार में ही उनके सिंडिकेट दफ्तर में कोलकाता जीत लेने की रणनीति बनाने में मशगूल थे सत्ता दल के नेता कार्यकर्ता। हादसे के बाद वह दफ्तर बंद है और भाईसाहेब भूमिगत हैं।

वे सतह पर भी होंगे तो कम से कम बंगाल पुलिस उन्हें हिरासत में लेने की हिम्मत नहीं कर सकती।

बलि के बकरे मिल गये तो आगे ऐसा विकास जारी रहना लाजिमी है। असली गुनाहगार तक तो अंधे कानून के लंबे हाथ कभी पहुंचते ही नहीं हैं।

बकरों की तलाश है।

जिसके गले की नाप का फंदा है, जाहिर है, फांसी पर वही चढ़ेगा।

ऐसे निर्माण विनिर्माण का तकाजा जनहित भी नहीं है। सीधे ज्यादा से ज्यादा मुनाफावसूली है और काम पूरा होने की टाइमिंग वौटबैंक साधने के समीकरण से जुड़ी है।

जैसे कि बड़ा बाजार के इस फ्लाई ओवर के साथ हुआ।

मुख्यमंत्री का फतवा था कि मतदान से पहले फ्लाईओवर उद्घाटन के लिए तैयार हो जाना चाहिए।

खंभे माफिक नहीं थे।

सुरक्षा के लिए कोई एहतियात बरती नहीं गयी।

ढांचे के तमाम नट बोल्ट खुले थे और महज रेत से भारी भरकम लोहे के ढांचे पर हड़बड़ में ढलाई कर दी गयी।

अभी डर यह है कि मलबा हटाने से बाकी हिस्से फ्लाईओवर के कहीं गिर न जाये या जैसे यह हिस्सा गिरा, वैसे ही दूसरा कोई हिस्सा कहीं गिर न जाये। इससे पहले आधीरात के बाद उल्टाडांगा में भी एक नया बना फ्लाई ओवर हाल में ढहा है, लेकिन सुनसान सड़क होने के कारण तब इतनी मौते नहीं हुई।

इस हादसे से उस हादसे की याद भी हो ताजा हो गयी है।

फ्लाई ओवर पर आने जाने वालों पर शायद कोई फ्रक पड़ता न हो, लेकिन इऩ फ्लाईओवरों के आसपास कोलकाता की घनी आबादी में कहां-कहां घात लगाये मौत शिकार का इंतजार कर रही है, जान माल की हिफाजत की फिक्र में महाबली बड़ाबाजार की तरह बाकी कोलकाता और बाकी बंगाल दहशत में है।

क्योंकि विकास की आंधी प्रोमोटर बिल्डर राज की मुनाफावसूली के सिवाय़ कुछ नहीं है, इस हकीकत से पहली बार बंगाल के लोगों का वास्ता बना है।

बाकी देश भी स्मार्टशहरों के ख्वाब बुनते हुए असलियत समझने से पहले इसी तरह के हादसों का इंतजार कर रहा होगा।

गजब अच्छे दिन हैं, कोई शक की गुंजाइश राष्ट्रद्रोह है।

मेकिंग इन जारी है।

दीदी भले ही कोलकाता के इस हादसे की जिम्मेदारी से बचने के लिए ठेके देने का वक्त वाम शासन का 2009 बता रही हैं, वामदलों को इस बारे में खास कैफियत देने की जरूरत नहीं है क्योंकि गिरोहबंद तृणमूल के अपने प्रोमोटर नेता एक दूसरे को घेरने के फिराक में हैं।

इस इलाके के पूर्व विधायक संजयबख्शी को घेरने की पूरी तैयारी है तो सांसद सुदीप बंदोपाध्याय ने तो दावा ही कर दिया कि फ्लाईओवर के नक्शे में भारी खामियां थी, जिसके बारे में उनने अपनी सरकार को आगाह कर दिया था।

मां माटी मानुष की सरकार ने आधा काम हो गया तो इसका श्रेय भी लूट लिया जाये, इस गरज से मौत का सर्कस जारी रखा।

अब कयास यह है कि मौत का सर्कस और कहां कहां चल रहा है।

इसी बीच इस अधबने अधगिरे फ्लाईओवर के आस पास पांच मकान भारी खतरे की वजह से खाली कराने का आदेश हुआ है जबकि निर्माणाधीन फ्लाईओवर के नीचे से सालों रात दिन ट्रेफिक बिना एहतियात चलती रही और कभी किसी खतरे से किसी को आगाह भी नहीं किया गया।

इस दमघोंटू माहौल में कोई अचरज नहीं कि दमदम एअर पोर्ट से सीधे मौके और अस्पताल में कुल मिलाकर आधे घंटे ही बिता सके राहुल गांधी और उनसे कहा कुछ भी नहीं गया।

उन्होंने पीड़ितों से मुलाकात की और प्रेस के सामने राजनीतिक बयान देने से साफ इंकार कर दिया है!

http://www.hastakshep.com/hindi-news/2016/04/03/कोलकाता-और-बाकी-बंगाल-दहश#.VwJVkNDhXqC

Statement from Dr M.Vijayanunni, ex-Chief Secretary, Government of Kerala & Registrar General of India & Census Commissioner on Biometric Aadhaar Number

Statement from Dr M.Vijayanunni, ex-Chief Secretary, Government of Kerala & Registrar General of India & Census Commissioner on Biometric Aadhaar Number 

 

British prime minister Cameron came to office at the last general elections on the back of his promise to undo the ID number system introduced by the then government and he promptly kept his election promise by dismantling the ID machinery already in place. He further ensured the deletion of all the stored data on citizens in the national data storage so that no future government will be able to use or misuse it to spy on the citizens for any purpose. He won universal praise and a place in history by this historic step.

 

China, which is the other country in the world comparable to India in terms of size and diversity of population, abandoned its universal ID system midway in the face of insurmountable problems encountered during its implementation, despite the supposed advantage of their totalitarian system in pushing through such a humongous but ill-advised project.

 

While the USA has the social security number for all residents, it does not intrude into the privacy of the individuals and is so liberally implemented that it does not block or stand in the way of getting any deserved benefits from the state or from availing of any services from other agencies.

 

As usual in other state matters, India's immediate neighbours, Pakistan, Bangladesh and Nepal might be sucked into the vortex of the precedent set by India and end up in the same inextricable difficulties in the implementation of the universal ID. This has been their experience in other ventures in copying India like in the never-ending constitution-framing experience in Nepal, the secular declaration in theocratic Bangladesh, the Hindu civil law in Pakistan etc.

 

The government's attraction to the project is the supposed reduction achieved in disbursal of subsidies through avoidance of duplicate and bogus claims. This has to be achieved through other administrative modalities in each individual scheme rather than by steamrolling it through an uncaring denial of thousands of claims based merely on faults in the biometric and data retrieval systems.

 

The real pressure for continuance of the scheme will be from the police and secret surveillance systems to pry into the privacy of everyone which gives them unlimited powers over the lives of helpless individuals and enjoy unchallenged supremacy in the days to come. That will sound the death-knell of freedom and democracy.

 

There have been umpteen complaints from the affected citizens in the actual collection and collation of the biometric and personal data in the field so far and the project is engulfed in the tears and curses of lakhs of people of all social strata up against the uncaring ways of the officials doing the aadhaar exercise. It is pulling wool over one's eyes if it were to be claimed that it has been perfectly implemented so far.

 

Ph: 04712340041, E-mail: mvijayanunni@gmail.com

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Gopal Krishna, Citizens Forum for Civil Liberties (CFCL), Mb: 09818089660, 08227816731, E-mail-1715krishna@gmail.com