सेबी ने की मदद और अब ओएनजीसी की हिस्सेदारी की नीलामी पर काफी कुछ दांव पर
बाजार को ममता बनर्जी के यूपीए से बाहर आने का इंतजार है क्योंकि सुधारों के रास्ते उनका पोपुलिस्ट अडंगाबाज रवैये से नीति निर्धारण लंबित हो रहा है। बाजार को उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश में अबकी दफा मायावती सत्ता से बाहर हो जायेगी। चुनाव परिणाम आने पर नयी सरकार बनाने के लिए मायावती और ममता दोनों को किनारे लगाने की गरज से कांग्रेस को मजबूरन मुलायम सिंह का ङाथ थामना पड़ेगा। तभी जाकर कहीं सुधारों में गति आएगा और बाजार की हालत बम बम होगी।भले ही राहुल गांधी कुछ भी कहते हों, बाजार ने मुलायम की सत्ता में वापसी पर दांव लगाया हुआ है ।
सरकार ने प्रमुख तेल कंपनी ओएनजीसी में पांच प्रतिशत हिस्सेदारी का विनिवेश एक मार्च को करने का फैसला किया। प्रस्तावित ब्रिकी के लिए न्यूनतम मूल्य 290 रुपये प्रति शेयर रखा जा सकता है जिससे सरकार को लगभग 12000-13000 करोड़ रुपये मिलेंगे। सरकार के पास ओएनजीसी की 74.14% हिस्सेदारी है। अभी 5% हिस्सेदारी बेचने से कंपनी पर इसके नियंत्रण में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। यह हिस्सेदारी बेच कर सरकार अपने खर्चों का बोझ कम करना चाहती है। देश की आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में घटकर 6.1 प्रतिशत पर आ गई जो दो साल की न्यूनतम तिमाही वृद्धि है। यह विनिर्माण, खनन व कृषि क्षेत्र के खराब निष्पादन का परिणाम है। पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 8.3 प्रतिशत थी।
अगले वर्ष विनिवेश लक्ष्य ५० हजार करोड़ रुपए करने की योजना है, तो जाहिर है कि ओएनजीसी की हिस्सेदारी की नीलामी पर काफी कुछ दांव पर है।राजकोषीय घाटे के दबाव के चलते दूसरी पीड़ी के सुधार अधर में लटके हुए हैं। अंदर बाहर दोनों ओर से सरकार सुधार प्रक्रिया तेज करने के दबाव में वैसे ही लुंजपुंज लग रही है। ऊपर से आर्थिक विकास दर के आंकड़े उसके नियंत्रण से बाहर हैं।बहरहाल ओएनजीसी विनिवेश में बाजार को अचानक से नयी उम्मीदें दिखने लगी हैं। ये उम्मीदें खास कर सरकारी खजाने से जुड़ी हैं।गौरतलब है कि सरकार को विनिवेश में सहूलियत हो, इसलिए सेबी ने पहले ही प्रमोटरों को नीलामी के जरिये शेयर बेचने की अनुमति के नये नियम बनाये और ओएनजीसी के शेयरों को बेचने का नया रास्ता निकला।इससे ओएनजीसी का विनिवेश हिस्सेदारी की नीलामी के जरिए होना संभव हो पा रहा है।नये बजट से ठीक पहले सरकार को मिली बड़ी राहत है। पर ओएनजीसी के विनिवेश से लाल निशान के आतंक के साये में जी रही तेल कंपनियों की हालत सुधरने के आसार नहीं है, भले ही वित्तमंत्री को विनिवेश लक्ष्य हासिल करने के आंकड़े बजट पेश करते हुए दिखाते वक्त थोडी राहत जरूर मिल जाएगी।
बाजार को ममता बनर्जी के यूपीए से बाहर आने का इंतजार है क्योंकि सुधारों के रास्ते उनका पोपुलिस्ट अडंगाबाज रवैये से नीति निर्धारण लंबित हो रहा है। बाजार को उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश में अबकी दफा मायावती सत्ता से बाहर हो जायेगी। चुनाव परिणाम आने पर नयी सरकार बनाने के लिए मायावती और ममता दोनों को किनारे लगाने की गरज से कांग्रेस को मजबूरन मुलायम सिंह का ङाथ थामना पड़ेगा। तभी जाकर कहीं सुधारों में गति आएगा और बाजार की हालत बम बम होगी।भले ही राहुल गांधी कुछ भी कहते हों, बाजार ने मुलायम की सत्ता में वापसी पर दांव लगाया हुआ है ।
मजे की बात तो यह है कि ओएनजीसी की हिस्सेदारी की नीलामी से सरकारी संस्थागत निवेशकों के सामने पैसा जुगाड़ने का दबाव आ गया है क्योंकि अभी ओएनजीसी में भी सरकार के शेयरों की नीलामी होनी है। सरकार अपने नियंत्रण वाली संस्थाओं को इन सबमें खरीदारी के लिए कहेगी। ऐसे में जब तक वे बेचेंगे नहीं, तो इस खरीदारी के लिए पैसे कहाँ से जुटायेंगे?
पिछले साल बजट में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने 40,000 करोड़ रुपये के विनिवेश का लक्ष्य रखा था। कारोबारी साल पूरा होने में केवल 1 महीना बाकी है और अब तक कुल जमा 1,145 करोड़ रुपये ही आये हैं, पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन के इकलौते एफपीओ की बदौलत। बाजार ने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी कि इस कारोबारी साल में विनिवेश के जरिये सरकारी खजाने में कुछ खास पैसा आ पायेगा, लक्ष्य पूरा कर पाना तो दूर की बात रही।
ओएनजीसी का फ्लोर प्राइस इसके शेयर के मासिक औसत मूल्य के आधार पर तय होगा। फ्लोर प्राइस सीलबंद लिफाफे में स्टॉक एक्सचेंज को सौंपा जाएगा। साथ ही बोली लगाने वालों को इसकी पहले जानकारी नहीं दी जाएगी। ओएनजीसी का शेयर बंबई शेयर बाजार (बीएसई) में 1.02 प्रतिशत ऊपर 283.55 रुपये पर बंद हुआ है। सरकार का इरादा चालू वित्त वर्ष में ओएनजीसी में दस प्रतिशत विनिवेश का था। इसके अलावा दस प्रतिशत इक्विटी कंपनी को अतिरिक्त जारी करनी थी, लेकिन शेयर बाजार की हालत के चलते इस वित्त वर्ष में अभी तक ओएनजीसी के विनिवेश को अंजाम नहीं दिया जा सका था। सरकार ने वित्त वर्ष में विनिवेश के जरिए 40,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा था। अभी तक पावर फाइनेंस कॅारपोरेशन के इश्यू से केवल 1,145 करोड़ ही जुटाए जा सके हैं।
वृद्धि दर को प्रोत्साहन देने के लिए ऋण सस्ता करने की मांग के बीच योजना आयोग ने शुक्रवार को कहा कि रिजर्व बैंक की ब्याज दर को कम करने की कोई भी पहल मुख्य तौर पर सरकार की राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण रखने की क्षमता पर निर्भर करेगी।
बुधवार को जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीने (अप्रैल- दिसंबर) 2011-12 के दौरान जीडीपी वृद्धि दर 6.9 प्रतिशत रही, जबकि बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि में यह 8.1 प्रतिशत थी। 31 दिसंबर, 2011 को समाप्त तिमाही के दौरान विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर घटकर महज 0.4 प्रतिशत रह गयी जो बीते वित्त वर्ष की इसी तिमाही में 7.8 प्रतिशत थी। इसी तरह, समीक्षाधीन तिमाही में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर महज 2.7 प्रतिशत रही जो बीते वित्त वर्ष की समान तिमाही में 11 प्रतिशत थी।
चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के दौरान खनन उत्पादन की वृद्धि दर घटकर 3.1 प्रतिशत पर आ गई जो बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि में 6.1 प्रतिशत थी। वहीं निर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर समीक्षाधीन तिमाही में घटकर 7.2 प्रतिशत पर आ गई जो बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि में 8.7 प्रतिशत थी। इसके अलावा, व्यापार, होटल, परिवहन और संचार खंड में वृद्धि दर महज 9.2 प्रतिशत रही जो बीते वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में 9.8 प्रतिशत थी।
हालांकि, बिजली, गैस और जलापूर्ति खंड की वृद्धि दर समीक्षाधीन तिमाही में बढ़कर 9 प्रतिशत रही जो बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि में 3.8 प्रतिशत थी। बीमा और रीयल एस्टेट सहित सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर तीसरी तिमाही में घटकर 9.9 प्रतिशत पर आ गई जो बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि में 11.2 प्रतिशत थी।
इस बीच सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख इंजीनियरिंग कंपनी भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड :भेल: को प्रमुख तेल उत्खनन कंपनी ओएनजीसी से तटवर्ती क्षेत्र में उत्खनन कार्यों में काम आने वाली 'ड्रिलिंग रिग की आपूर्ति के लिए 774 करोड़ रुपये का ऑर्डर मिला है।
भेल के बयान में कहा गया कि इस आर्डर के तहत कंपनी को छह ड्रिलिंग रिग का निर्माण और इनकी आपूर्ति शामिल है। भेल देश की आनशोर ड्रिलिंग रिग बनाने वाली इकलौती कंपनी है और इसने अब तक 84 रिग की आपूर्ति की है।इनमें 71 रिग ओएनजीसी को और 13 रिग आयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) को बेचे गए हैं। वैश्विक स्तर की इंजीनियरिंग एवं विनिर्माण कंपन भेल का मुख्य कार्यक्षेत्र बिजली उत्पादन, पारेक्षण व वितरण, परिवहन, रक्षा संबंधी उत्पादन एवं प्रणालियों की आपूर्ति से जुड़ा है। इसके अलावा कंपनी तेल उत्खनन, कागज, सीमेंट, मेटालर्जिकल, पेट्रोरसायन, रिफाईनरी आदि से जुड़े उत्पादों की भी आपूर्ति करती है।
ओएनजीसी ने कहा है कि 6,000 करोड़ रुपये लागत वाली मुंबई हाई परियोजना का दूसरा चरण इस साल सितंबर तक पूरा हो जाएगा। कंपनी के पूर्वी तट संपदा विभाग के कार्यकारी अधिकारी एवं संपदा प्रबंधक के अंजनेयुलू ने बताया कि इस परियोजना के पूरा हो जाने के बाद मुंबई हाई कच्चा तेल उत्पादन क्षमता एक करोड़ 73 लाख 50 हजार टन तक बढ़ जाएगी। इसी तरह, प्राकृतिक गैस के उत्पादन में 2.9 अरब घन मीटर का इजाफा होगा। उन्होंने कहा कि मुंबई हाई के विकास की योजना के तीसरे चरण पर विचार किया जा रहा है। मुंबई हाई देश का सबसे बड़ा तेल क्षेत्र है, जहां 200 कुएं सक्रिय हैं।
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Palash Biswas
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बाजार को ममता बनर्जी के यूपीए से बाहर आने का इंतजार है क्योंकि सुधारों के रास्ते उनका पोपुलिस्ट अडंगाबाज रवैये से नीति निर्धारण लंबित हो रहा है। बाजार को उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश में अबकी दफा मायावती सत्ता से बाहर हो जायेगी। चुनाव परिणाम आने पर नयी सरकार बनाने के लिए मायावती और ममता दोनों को किनारे लगाने की गरज से कांग्रेस को मजबूरन मुलायम सिंह का ङाथ थामना पड़ेगा। तभी जाकर कहीं सुधारों में गति आएगा और बाजार की हालत बम बम होगी।भले ही राहुल गांधी कुछ भी कहते हों, बाजार ने मुलायम की सत्ता में वापसी पर दांव लगाया हुआ है ।
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
सरकार ने प्रमुख तेल कंपनी ओएनजीसी में पांच प्रतिशत हिस्सेदारी का विनिवेश एक मार्च को करने का फैसला किया। प्रस्तावित ब्रिकी के लिए न्यूनतम मूल्य 290 रुपये प्रति शेयर रखा जा सकता है जिससे सरकार को लगभग 12000-13000 करोड़ रुपये मिलेंगे। सरकार के पास ओएनजीसी की 74.14% हिस्सेदारी है। अभी 5% हिस्सेदारी बेचने से कंपनी पर इसके नियंत्रण में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। यह हिस्सेदारी बेच कर सरकार अपने खर्चों का बोझ कम करना चाहती है। देश की आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में घटकर 6.1 प्रतिशत पर आ गई जो दो साल की न्यूनतम तिमाही वृद्धि है। यह विनिर्माण, खनन व कृषि क्षेत्र के खराब निष्पादन का परिणाम है। पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 8.3 प्रतिशत थी।
अगले वर्ष विनिवेश लक्ष्य ५० हजार करोड़ रुपए करने की योजना है, तो जाहिर है कि ओएनजीसी की हिस्सेदारी की नीलामी पर काफी कुछ दांव पर है।राजकोषीय घाटे के दबाव के चलते दूसरी पीड़ी के सुधार अधर में लटके हुए हैं। अंदर बाहर दोनों ओर से सरकार सुधार प्रक्रिया तेज करने के दबाव में वैसे ही लुंजपुंज लग रही है। ऊपर से आर्थिक विकास दर के आंकड़े उसके नियंत्रण से बाहर हैं।बहरहाल ओएनजीसी विनिवेश में बाजार को अचानक से नयी उम्मीदें दिखने लगी हैं। ये उम्मीदें खास कर सरकारी खजाने से जुड़ी हैं।गौरतलब है कि सरकार को विनिवेश में सहूलियत हो, इसलिए सेबी ने पहले ही प्रमोटरों को नीलामी के जरिये शेयर बेचने की अनुमति के नये नियम बनाये और ओएनजीसी के शेयरों को बेचने का नया रास्ता निकला।इससे ओएनजीसी का विनिवेश हिस्सेदारी की नीलामी के जरिए होना संभव हो पा रहा है।नये बजट से ठीक पहले सरकार को मिली बड़ी राहत है। पर ओएनजीसी के विनिवेश से लाल निशान के आतंक के साये में जी रही तेल कंपनियों की हालत सुधरने के आसार नहीं है, भले ही वित्तमंत्री को विनिवेश लक्ष्य हासिल करने के आंकड़े बजट पेश करते हुए दिखाते वक्त थोडी राहत जरूर मिल जाएगी।
बाजार को ममता बनर्जी के यूपीए से बाहर आने का इंतजार है क्योंकि सुधारों के रास्ते उनका पोपुलिस्ट अडंगाबाज रवैये से नीति निर्धारण लंबित हो रहा है। बाजार को उम्मीद है कि उत्तर प्रदेश में अबकी दफा मायावती सत्ता से बाहर हो जायेगी। चुनाव परिणाम आने पर नयी सरकार बनाने के लिए मायावती और ममता दोनों को किनारे लगाने की गरज से कांग्रेस को मजबूरन मुलायम सिंह का ङाथ थामना पड़ेगा। तभी जाकर कहीं सुधारों में गति आएगा और बाजार की हालत बम बम होगी।भले ही राहुल गांधी कुछ भी कहते हों, बाजार ने मुलायम की सत्ता में वापसी पर दांव लगाया हुआ है ।
मजे की बात तो यह है कि ओएनजीसी की हिस्सेदारी की नीलामी से सरकारी संस्थागत निवेशकों के सामने पैसा जुगाड़ने का दबाव आ गया है क्योंकि अभी ओएनजीसी में भी सरकार के शेयरों की नीलामी होनी है। सरकार अपने नियंत्रण वाली संस्थाओं को इन सबमें खरीदारी के लिए कहेगी। ऐसे में जब तक वे बेचेंगे नहीं, तो इस खरीदारी के लिए पैसे कहाँ से जुटायेंगे?
सरकार ने ओएनजीसी का फ्लोर प्राइस 290 रुपये तय किया है। फ्लोर प्राइस ओएनजीसी के मौजूदा भाव से करीब 2.25 फीसदी ज्यादा रखा गया है। ओएनजीसी के शेयरों का ऑक्शन 1 मार्च को होगा और नोमुरा, मॉर्गन स्टैनली, जे एम फाइनेंशियल, सिटी और एचएसबीसी इसके मर्चेंट बैंकर होंगे। वहीं ओएनजीसी के शेयरों की बीएसई पर नीलामी होगी। इसके लिए केवल संस्थागत निवेशकों के बीच नीलामी की प्रक्रिया अपनायी जायेगी, जिसमें न्यूनतम कीमत 290 रुपये प्रति शेयर रखी गयी है।
सरकार द्वारा ऑक्शन की तारीख और फ्लोर प्राइस तय करने की खबर से ओएनजीसी, रिलायंस इंडस्ट्रीज, बजाज ऑटो, टाटा स्टील, टाटा पावर, एसबीआई, बीएचईएल, स्टरलाइट इंडस्ट्रीज, विप्रो, सन फार्मा 5-2 फीसदी चढ़े हैं।अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से मिले मजबूती के संकेतों की वजह से घरेलू बाजारों ने तेजी के साथ शुरुआत की है। सेंसेक्स 187 अंक चढ़कर 17920 और निफ्टी 49 अंक चढ़कर 5425 पर खुले हैं।बीएचईएल, डीएलएफ, एसबीआई, स्टरलाइट इंडस्ट्रीज, टाटा स्टील, एलएंडटी, हिंडाल्को, बजाज ऑटो, टाटा पावर, हीरो मोटोकॉर्प, मारुति सुजुकी 3.5-1.5 फीसदी तेज हैं।
एसपीतुल्स्यान डॉट कॉम के एस पी तुल्स्यान के मुताबिक ओएनजीसी का फ्लोर प्राइस काफी ज्यादा प्रीमियम पर तय किया गया है। ज्यादा प्रीमियम होने की वजह से इस इश्यू को कम रिस्पॉन्स मिलने की संभावना है। वहीं यदि इश्यू कम सब्सक्राइब हुआ को सरकार को इश्यू वापस लेना पड़ सकता है। ओएनजीसी के पूर्व एमडी आर एस शर्मा के मुताबिक ऑक्शन के जरिए शेयरों की नीलामी से रिटेल निवेशकों को निराशा हो सकती है।
वे टू वेल्थ ब्रोकिंग के सीनियर डेरिवेटिव एनालिस्ट आदित्य अग्रवाल के मुताबिक ओएनजीसी में ऊपरी तरफ 295-300 रुपये के आसपास मजबूत रेसिस्टेंस है। जब तक शेयर 300 रुपये के ऊपर नहीं जाता तब तक तेज शॉर्ट कवरिंग आने की संभावना नहीं है।
लेकिन अगर शेयर 300 रुपये का स्तर पार करने में सफल होता है तो शॉर्ट कवरिंग रैली देखने को मिल सकती है और शॉर्ट कवरिंग के चलते शेयर 320-325 रुपये तक जा सकता है। निवेशकों को शेयर में 300 रुपये के ऊपरी स्तर पर नई खरीदारी करनी चाहिए।
सरकार ओएनजीसी के 42 करोड़ 77 लाख शेयर बेचेगी और इसके जरिए 12,400 करोड़ रुपये जुटाए जाएंगे। इस इश्यू में खास बात यह है कि सरकार के पास यह अधिकार होगा कि इश्यू अगर पूरा नहीं भी भरता है तो भी सरकार उसे पूरा भरा हुआ मान लेगी। जिसका मतलब यह हुआ यदि इश्यू 70 या 80 फीसदी ही भरता है तो इश्यू निरस्त नहीं होगा।
पिछले साल बजट में वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने 40,000 करोड़ रुपये के विनिवेश का लक्ष्य रखा था। कारोबारी साल पूरा होने में केवल 1 महीना बाकी है और अब तक कुल जमा 1,145 करोड़ रुपये ही आये हैं, पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन के इकलौते एफपीओ की बदौलत। बाजार ने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी कि इस कारोबारी साल में विनिवेश के जरिये सरकारी खजाने में कुछ खास पैसा आ पायेगा, लक्ष्य पूरा कर पाना तो दूर की बात रही।
ओएनजीसी का फ्लोर प्राइस इसके शेयर के मासिक औसत मूल्य के आधार पर तय होगा। फ्लोर प्राइस सीलबंद लिफाफे में स्टॉक एक्सचेंज को सौंपा जाएगा। साथ ही बोली लगाने वालों को इसकी पहले जानकारी नहीं दी जाएगी। ओएनजीसी का शेयर बंबई शेयर बाजार (बीएसई) में 1.02 प्रतिशत ऊपर 283.55 रुपये पर बंद हुआ है। सरकार का इरादा चालू वित्त वर्ष में ओएनजीसी में दस प्रतिशत विनिवेश का था। इसके अलावा दस प्रतिशत इक्विटी कंपनी को अतिरिक्त जारी करनी थी, लेकिन शेयर बाजार की हालत के चलते इस वित्त वर्ष में अभी तक ओएनजीसी के विनिवेश को अंजाम नहीं दिया जा सका था। सरकार ने वित्त वर्ष में विनिवेश के जरिए 40,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा था। अभी तक पावर फाइनेंस कॅारपोरेशन के इश्यू से केवल 1,145 करोड़ ही जुटाए जा सके हैं।
दूसरी तरफ कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों ने फिर भारतीय कॉरपोरेट जगत की पेशानी पर बल लाने शुरू कर दिए हैं। अग्रणी रेटिंग एजेंसी केयर ने कहा है कि अगर क्रूड के दामों में बढ़ोतरी जारी रहती है, तो यह भारतीय कॉरपोरेट जगत को वित्तीय मोर्चे पर जबरदस्त नुकसान पहुंचा सकता है। एजेंसी के मुताबिक इससे न सिर्फ महंगाई दर में बढ़ोतरी होगी, बल्कि कारोबार घाटा भी बढ़ेगा। सरकार के पास दो ही विकल्प बचते हैं।एक कि वह सब्सिडी का स्तर बढ़ाए, या नियंत्रित मूल्यों वाले पेट्रोलियम प्रॉडक्ट्स के दामों में बढ़ोतरी करे। मुश्किल यह है कि अगर सरकार सब्सिडी का स्तर बढ़ाने पर विचार करती है, तो उसका राजकोषीय घाटा बढऩा तय है।अगर वह पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ाने का विकल्प चुनती है, तो महंगाई दर में बढ़ोतरी को टालना मुश्किल हो जाएगा।महंगाई दर को काबू करने के लिए मार्च, 2010 से अक्टूबर, 2011 के दौरान आरबीआई 13 बार नीतिगत ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर चुका है।
अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन का कहना है कि ईरानी तेल पर निर्भरता कम करने के लिए भारत, चीन और तुर्की से अमेरिका की अत्यंत गंभीर और सीधी बात हो रही है। हिलेरी ने कल एक कांग्रेस समिति के समक्ष कहा कि अमेरिका इन देशों से विशेष कदम उठाने को कह रहा है, जिससे ईरानी तेल पर उनकी निर्भरता कम होगी। लेकिन किसी का नाम लिए बगैर उन्होंने कहा कि कुछ देशों के लिए यह थोड़ा कठिन होगा।
सीनेटर रॉबर्ट मेनेंडेज के सवालों के जवाब में हिलेरी ने कहा कि चीन, तुर्की और भारत के सदंर्भ में हमने इन देशों से अत्यंत गंभीर और सीधी चर्चा की है। मेरा मानना है कि हम उन्हें कई तरह के कदमों के बारे में बता रहे हैं जो वे कर सकते हैं या जो उन्हें करने चाहिए। हिलेरी ने कहा कि हम उन तक अपनी त्वरित पहुंच के तहत लगातार कदम बढ़ाए हुए हैं। और वे राजस्व के नुकसान तथा कच्चे तेल के नुकसान की भरपाई के लिए रास्ते तलाश रहे हैं।
वृद्धि दर को प्रोत्साहन देने के लिए ऋण सस्ता करने की मांग के बीच योजना आयोग ने शुक्रवार को कहा कि रिजर्व बैंक की ब्याज दर को कम करने की कोई भी पहल मुख्य तौर पर सरकार की राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण रखने की क्षमता पर निर्भर करेगी।
रेटिंग एजेंसी की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर क्रूड के दाम में बढ़ोतरी जारी रहती है, तो आरबीआई को अपनी मौद्रिक नीति में ढील देने के निर्णय पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है।रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार के सालाना बजट में सब्सिडी पहले ही बहुत बड़ा बोझ बन चुकी है और क्रूड के बढ़ते दाम इस बोझ को असहनीय स्तर तक पहुंचा सकते हैं। रिपोर्ट के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष की चौथी व आखिरी तिमाही के दौरान देश में प्रतिदिन 36 लाख बैरल तेल की खपत हुई थी, जो लगातार बढ़ रही है।
बुधवार को जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीने (अप्रैल- दिसंबर) 2011-12 के दौरान जीडीपी वृद्धि दर 6.9 प्रतिशत रही, जबकि बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि में यह 8.1 प्रतिशत थी। 31 दिसंबर, 2011 को समाप्त तिमाही के दौरान विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर घटकर महज 0.4 प्रतिशत रह गयी जो बीते वित्त वर्ष की इसी तिमाही में 7.8 प्रतिशत थी। इसी तरह, समीक्षाधीन तिमाही में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर महज 2.7 प्रतिशत रही जो बीते वित्त वर्ष की समान तिमाही में 11 प्रतिशत थी।
चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के दौरान खनन उत्पादन की वृद्धि दर घटकर 3.1 प्रतिशत पर आ गई जो बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि में 6.1 प्रतिशत थी। वहीं निर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर समीक्षाधीन तिमाही में घटकर 7.2 प्रतिशत पर आ गई जो बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि में 8.7 प्रतिशत थी। इसके अलावा, व्यापार, होटल, परिवहन और संचार खंड में वृद्धि दर महज 9.2 प्रतिशत रही जो बीते वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में 9.8 प्रतिशत थी।
हालांकि, बिजली, गैस और जलापूर्ति खंड की वृद्धि दर समीक्षाधीन तिमाही में बढ़कर 9 प्रतिशत रही जो बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि में 3.8 प्रतिशत थी। बीमा और रीयल एस्टेट सहित सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर तीसरी तिमाही में घटकर 9.9 प्रतिशत पर आ गई जो बीते वित्त वर्ष की इसी अवधि में 11.2 प्रतिशत थी।
इस बीच सार्वजनिक क्षेत्र की प्रमुख इंजीनियरिंग कंपनी भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड :भेल: को प्रमुख तेल उत्खनन कंपनी ओएनजीसी से तटवर्ती क्षेत्र में उत्खनन कार्यों में काम आने वाली 'ड्रिलिंग रिग की आपूर्ति के लिए 774 करोड़ रुपये का ऑर्डर मिला है।
भेल के बयान में कहा गया कि इस आर्डर के तहत कंपनी को छह ड्रिलिंग रिग का निर्माण और इनकी आपूर्ति शामिल है। भेल देश की आनशोर ड्रिलिंग रिग बनाने वाली इकलौती कंपनी है और इसने अब तक 84 रिग की आपूर्ति की है।इनमें 71 रिग ओएनजीसी को और 13 रिग आयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) को बेचे गए हैं। वैश्विक स्तर की इंजीनियरिंग एवं विनिर्माण कंपन भेल का मुख्य कार्यक्षेत्र बिजली उत्पादन, पारेक्षण व वितरण, परिवहन, रक्षा संबंधी उत्पादन एवं प्रणालियों की आपूर्ति से जुड़ा है। इसके अलावा कंपनी तेल उत्खनन, कागज, सीमेंट, मेटालर्जिकल, पेट्रोरसायन, रिफाईनरी आदि से जुड़े उत्पादों की भी आपूर्ति करती है।
ओएनजीसी ने कहा है कि 6,000 करोड़ रुपये लागत वाली मुंबई हाई परियोजना का दूसरा चरण इस साल सितंबर तक पूरा हो जाएगा। कंपनी के पूर्वी तट संपदा विभाग के कार्यकारी अधिकारी एवं संपदा प्रबंधक के अंजनेयुलू ने बताया कि इस परियोजना के पूरा हो जाने के बाद मुंबई हाई कच्चा तेल उत्पादन क्षमता एक करोड़ 73 लाख 50 हजार टन तक बढ़ जाएगी। इसी तरह, प्राकृतिक गैस के उत्पादन में 2.9 अरब घन मीटर का इजाफा होगा। उन्होंने कहा कि मुंबई हाई के विकास की योजना के तीसरे चरण पर विचार किया जा रहा है। मुंबई हाई देश का सबसे बड़ा तेल क्षेत्र है, जहां 200 कुएं सक्रिय हैं।
Palash Biswas
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