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Sunday, 26 February 2012

किंग फिशर को भेल आउट के लिए एअर इंडिया के लिए छींका टूटने की उम्मीद, पर विमानन समस्याएं जस की तस!


किंग फिशर को भेल आउट के लिए एअर इंडिया के लिए छींका टूटने की उम्मीद, पर  विमानन     समस्याएं जस की तस!

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

किंग फिशर को बेल आउट के लिए एअर इंडिया के लिए छींका टूटने की उम्मीद, पर विमानन समस्याएं जस की तस ! किंगफिशर एयरलाइंस के लिए वित्तीय संकट काफी गहरा चुका है, लेकिन कैबिनेट भारतीय विमानन कंपनियों में विदेशी विमानन कंपनियों को 49 फीसदी खरीदने के प्रस्ताव को संभवत: बजट के बाद ही हरी झंडी देगा।एयर इंडिया और किंगफिशर एयरलाइंस जैसी संकटग्रस्त विमानन कंपनियों को राहत प्रदान करने के लिए सरकार ऐसे नीतिगत पैकेज पर काम कर रही है, जिससे इस उद्योग को वित्तीय संकट से उबारा जा सके।इस तरह के पैकेज को तैयार करने के लिए नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने मुनाफे में चल रही इंडिगो सहित सभी एयरलाइंस से अपनी वित्तीय स्थिति का डाटा देने को कहा है। सूत्रों ने बताया कि एयर इंडिया सहित सभी सातों एयरलाइंस ने इस जरूरी सूचना उपलब्ध करा दी है।कर्मचारियों के लिए बहुत बड़ी समस्या है क्योंकि उनके सामने अचानक से ही चलती हुई कोई विमान कम्पनी बंद होने के कगार पर पहुँच जाती है!  आख़िर वे समय पर वेतन न मिल पाने की स्थिति में किस तरह से अपने खर्चों को पूरा करें ? यात्रियों के आये दिन बिना नोटिस उड़ानें बंद होने से होने वाल नुकसान अलग है। और अब तो तेल युद्ध शुरू हो जाने से ईंधन के लिए समस्या मुंह बांए खड़ी है। ङालांकि सरकार ने विमानन कंपनियों को सीधे ईंधन का आयात करने के लिए इजाजत देकर देसी तेल कंपनियों को चूना लगाने से परहेज नहीं किया, पर खस्ताहाल विमानन कंपनियों की औकात नहीं है कि बिना बेल आुट ईंधन ायात करने की जहमत उठावें।नकदी का संकट झेल रही एअर इंडिया पर निजीकरण का दबाव तो है ही, उसकी संपत्ति पर भी नजर है।पहले ही नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने निजी क्षेत्र की विमानन कंपनियों पर विदेशी बाजार में विस्तार पर लगी रोक हटा ली है।

इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया के बीच बेमेल विवाह की स्क्रिप्ट पूर्व नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने साल 2007 में लिखी, जिसकी वजह से सरकारी विमानन कंपनी मरणासन्न स्थिति में पहुंच गई!


महीनों से भुखमरी के कगार पर खड़े एअर इंडिया के कर्मचारियों के लिए आखिरकार उम्मीद की किरण फूट निकली है। निजी कंपनियों को संकट से उबारने के लिए एअर इंडिया की अनदेखी करने का राजनीतिक दुस्साहस नहीं कर सकते वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी शायद इसलिए एअर इंडिया के लिए छींका​ ​ टूटने के आसार बन पड़े हैं।बहरहाल  एयर इंडिया को आगामी बजट में कोई खुशखबरी मिल सकती है। सरकार इस विमानन कंपनी के लिए करीब 10000 करोड़ रुपये के सहायता पैकेज पर विचार कर रही है, जिसमें 6600 करोड़ रुपये की इक्विटी पूंजी भी शामिल है। समझा जाता है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल जल्द ही इस पैकेज पर विचार करेगा, ताकि इसे बजट प्रावधानों में शामिल किया जा सके। सूत्रों ने कहा कि विभिन्न मंत्रालयों से टिप्पणी लेने के लिए मंत्रिमंडल नोट पहले ही जारी किया जा चुका है। मालूम हो कि एयर इंडिया के पास विश्व के अन्य देशों के साथ द्विपक्षीय हवाई यातायात अधिकारों पर अब एकाधिकार नहीं होगा। सरकार ने सभी घरेलू विमानन कंपनियों को इस अधिकार के उपयोग की अनुमति देने का निर्णय किया है। एयर इंडिया के पास शुरू से विदेशी मार्गों पर विशिष्ट अधिकार (पहले इनकार का अधिकार) है। ऐसे में निजी कंपनियां मार्ग पर तभी परिचालन करती हैं जब सार्वजनिक क्षेत्र की विमानन कंपनी इस पर परिचालन से इनकार करती है। परिणामस्वरूप कई उड़ान मार्गों का उपयोग नहीं हो पाता।

यह पहल वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रिसमूह की बैठक के दो हफ्ते बाद हुई जिसमें कंपनी की वित्तीय पुनर्गठन योजना को मंजूरी दी गई। इस योजना के तहत सरकारी गारंटी वाले बांड या अन्य जरियों से 7,400 करोड़ रुपये तक जुटाने की मंजूरी मिली।
   
सूत्रों ने बताया कि बांड की कूपन दर 8.5 से 9 फीसदी रहने की संभावना है। मंत्रिसमूह ने एयर इडिया की पुनर्गठन और सामान्य बहाली योजना के अंग के तौर पर इस पूरे पैकेज का सुझाव दिया है। सरकार ने इस साल 1,200 करोड़ रुपये का निवेश किया है जिससे एयर इंडिया का इक्विटी आधार बढ़कर 3,345 करोड़ रुपये हो गया है।
   
एयर इंडिया को यह धन ऐसे समय में मिल रहा है जब वह बोइंग 787 ड्रीमलाईनर विमान प्राप्त करने के करीब है। कंपनी के बेड़े में पहला विमान अप्रैल में शामिल होगा।

गौरतलब है कि सरकार से आगामी बजट में बहुत अधिक रियायतों की उम्मीद लगाने वालों को निराशा हाथ लग सकती है। सरकार के खजाने की मौजूदा हालत ने वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी के हाथ बांध रखे हैं। शुल्क व कर की दरों में रियायत की बजाय वित्तमंत्री खजाने में राजस्व वृद्धि के उपाय तलाश रहे हैं। किंगफिशर को बेलआउट से लगातार इंकार और बैंकों  काफी हिचकिचाहट के मध्य  अब जाकर कहीं यह कहा जा रहा है कि नकदी की कमी से जूझ रही किंगफिशर एयरलाइंस को कुछ बैंक नया कर्ज देने पर विचार कर रहे हैं। हालांकि इसमें एयरलाइंस का सबसे बड़ा लेनदार स्टेट बैंक ऑफ इंडिया शामिल नहीं है। किंगफिशर को कर्ज देने वाले बैंकों के कंशोर्शियम की बैठक में एसबीआई के चेयरमैन प्रतीप चौधरी ने बताया कि किंगफिशर को वह बैंक कर्ज देने पर विचार कर रहे हैं जिन्होने अब तक अपने कर्ज को डूबा हुआ नहीं घोषित किया है ..डीजीसीए ने किंगफिशर अधिकारियों को तलब कर उन्हें सख्त दिशा-निर्देश जारी किए हैं। डीजीसीए ने कंपनी को सेवा बहाल न कर पाने की सूरत में सभी यात्रियों को तुरंत रिफंड करने का निर्देश दिया है। डीजीसीए ने साफ किया है कि रिफंड के तौर पर कंपनी को काउंटर से ही तुरंत कैश देकर यात्रियों को रिफंड देना होगा।डीजीसीए ने किंगफिशर कर्मियों को तनख्वाह की बकाया राशि भी तुरंत अदा करने का निर्देश दिया है। गौरतलब है कि किंगफिशर कर्मियों को दिसंबर से तनख्वाह नहीं मिली है। डीजीसीए ने कहा कि किंगफिशर के जमीन पर मौजूद सभी विमानों की जांच की जाएगी।बड़े पैमाने पर उड़ानें रद करने से चौतरफा आलोचनाओं से घिरी किंगफिशर एयरलाइंस अपने जब्त [सीज] खाते छुड़ाने के लिए आयकर विभाग को मनाने में जुटी है। उसकी ओर से बैंकों और वित्ताीय संस्थानों से कर्ज जुटाने के प्रयास अभी जारी ही थे कि एयरलाइन को नई मुश्किल ने आ घेरा है। विजय माल्या की इस एविएशन कंपनी के 34 पायलटों ने इस्तीफा दे दिया है। कंपनी ने भी कर्मियों को नौकरी छोड़ने के लिए बड़े पैमाने पर नोटिस जारी किए हैं।

विमानन कंपनियां लंबे समय से सीधे तौर पर एटीएफ आयात करने की इजाजत डीजीएफटी से मांग रही थीं। कुछ दिन पहले किंगफिशर एयरलाइंस के प्रमोटर विजय माल्या ने भी विदेश व्यापार महानिदेशक अनुप पुजारी से इस संबंध में मुलाकात की थी। डीजीएफटी ने कहा था कि इजाजत के लिए राज्य सरकार की सहमति जरूरी नहीं है। ये कंपनियां अब सीधे तौर पर एवियेशन टरबाइन फ्यूल (एटीएफ) का आयात कर सकेंगी। उन्हें अब एटीएफ के आयात के लिए स्टेट ट्रेडिंग एंटरप्राइजेज (एसटीई) का सहारा नहीं लेना पड़ेगा। बुधवार को विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी।

अधिसूचना के मुताबिक एटीएफ के आयात की इच्छुक कंपनियां सीधे तौर पर डीजीएफटी में आवेदन कर लाइसेंस हासिल कर सकती हैं। सरकार के इस फैसले से विमानन कंपनियों की लागत में कमी आएगी। एटीएफ आयात के नाम पर विमानन कंपनियों को राज्य सरकार को काफी अधिक बिक्री कर देना पड़ता है। कई राज्यों में यह कर 40 फीसदी तक है। गत 7 फरवरी को वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में मंत्रियों के समूह की बैठक में भी विमानन कंपनियों की इस मांग पर विचार किया गया था।

इससे पहले कर्ज में डूबी एयर इंडिया के सामने तेल कंपनियों द्वारा ईंधन की आपूर्ति बंद करने के कारण ईंधन की समस्या सामने आई थी। तेल कंपनियों ने एयर इंडिया को ईंधन देने से इंकार कर दिया, जिसके कारण एयर इंडिया को मुश्किलों का सामना करना पड़ा। ईंधन की कमी के कारण एयर इंडिया की अबतक पांच उड़ानें केरल से रद्द हो चुकी हैं। एयर इंडिया के पास तेल कंपनियों का भी काफी बकाया है।

आईओसीएल, बीपीसीएल, एचपीसीएल ने बकाया चुकाने के लिए एयर इंडिया को नोटिस भेजा । बैठक से पहले तेल कंपनियों का कहना था कि जबतक एयर इंडिया अपना सारा बकाया चुका नहीं देती, तबतक वे उन्हें ईंधन नहीं देंगे। तेल कंपनियों ने कहा कि एयर इंडिया को जनवरी से ही उधार तेल मिलना बंद है। एयर इंडिया इससे पहले का बकाया चुकता नहीं कर रही है। इसलिए जबतक वे पहले का बकाया अदा नहीं कर देते, तब तक उन्हें ईंधन की आपूर्ति नहीं की जाएगी, लेकिन एयर इंडिया द्वारा भरोसा दिए जाने के बाद तेल कंपनियों फिलहाल ईंधन आपूर्ति को राजी हो गई हैं।

अर्थव्यवस्था की धीमी रफ्तार के बावजूद उत्पाद शुल्क की दरों में वृद्धि संभव है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2008 की मंदी के दौरान दी गई रियायतों को वापस लेने का सिलसिला आगे बढ़ सकता है। सेवा कर के दायरे में कुछ नई सेवाओं को भी जोड़े जाने पर वित्त मंत्रालय में गंभीरता से विचार हो रहा है। निजी बैंकों को इजाजत, बैंकों व विमानन क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमाओं का उदारीकरण कर वित्त मंत्री इसे सुधार का बजट बना सकते हैं। रिटेल में विदेशी निवेश की फाइल फिर खोलने का संकेत भी वित्त मंत्री को हिम्मती सिद्ध करेगा। कर सुधारों का अगला एजेंडा संयोग से राजस्व में बढ़ोतरी की रणनीति से मेल खाता है। उत्पाद शुल्क की दर में बढ़ोतरी (10 से 12 फीसदी) राजस्व भी लाएगी और जीएसटी (12 फीसदी की बेंचमार्क दर) की तैयारी से भी मेल खाएगी। ठीक इसी तरह कर के दायरे में नई सेवाएं लाने पर किसी को गुरेज नहीं होगा। नई प्रत्यक्ष कर संहिता को पारित कराने में देरी न केवल कर कानूनों में उलझन बढ़ा रही है, बल्कि राजस्व का नुकसान भी कर रही है। इस संहिता के कई प्रावधान काले धन और विदेश में जमा पैसे पर सख्त हैं और मनी लांड्रिंग पर नए नियमों के माकूल हैं यानी कि आर्थिक अपराधों के खिलाफ सख्त दिखने का मौका भी मिल रहा है।

सरकार के खजाने पर चालू वित्त वर्ष में एक लाख करोड़ से भी अधिक की सब्सिडी का बोझ है। राजस्व संग्रह में हुई कमी ने खजाने की हालत को और खराब किया है। इसके चलते सरकार का राजकोषीय घाटा 4.6 प्रतिशत के बजट अनुमान से काफी ऊपर निकलने की आशंका हो गई है। ऊपर से वित्तमंत्री की चिंता को खाद्य सुरक्षा विधेयक का दबाव और बढ़ा रहा है। अगर अगले वित्त वर्ष में खाद्य सुरक्षा कानून को लागू करने की नौबत आती है तो खजाने पर सब्सिडी का बोझ और बढ़ जाएगा। अकेले खाद्य सुरक्षा के तहत डेढ़ लाख करोड़ रूपये की सब्सिडी सरकार को देनी होगी। यह साफ हो गया है कि अगले वित्त वर्ष में भी अर्थव्यवस्था की रफ्तार अच्छी रहने वाली नहीं है। लिहाजा, वित्त मंत्रालय राजस्व में भी बहुत अधिक वृद्धि की गुंजाइश नहीं देख रहा है। मोटे तौर पर हर साल बजट राशि में दस प्रतिशत की वृद्धि होती है।

पिछले साल महंगाई की दर बहुत अधिक रहने के चलते वित्तमंत्री पर बजट राशि में भी 12 से 14 प्रतिशत वृद्धि का दबाव है। इन स्थितियों में कंपनियों और व्यक्तिगत करों में बहुत अधिक रियायत देने की गुंजाइश वित्तमंत्री के सामने नहीं है। उनके सामने अपने खजाने को दुरूस्त रखने का दबाव है। घटते निर्यात, बढ़ते आयात और देश में उत्पादन घटने के बीच उनके सामने राजस्व बढ़ाने के रास्ते तलाशने का काम इस बजट में ज्यादा अहम हो गया है।


दूसरी ओर उद्योग संगठन सीआईआई ने सरकार को सलाह दी है कि आगामी बजट में उत्पाद शुल्क व सेवाकर की मौजूदा दरों को बरकरार रखा जा जाए ताकि निवेश को बढ़ावा मिल सके। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी 2012-13 का बजट अगले महीने पेश करने वाले हैं।
  
अर्थव्यवस्था में निवेश में कमी के बीच सीआईआई ने अपने बजट-पूर्व मांगपत्र में आवश्यक नीतिगत हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा,  उत्पाद शुल्क व सेवाकर की मौजूदा दरों को बनाए रखने की बहुत जरूरत है जिससे उद्योग द्वारा निवेश में तेजी लाई जा सके।
  
सीआईआई ने अपने एक बयान में कहा कि सरकार के बढ़ते राजकोषीय घाटे के मददेनजर उद्योग जगत में उत्पाद शुल्क बढ़ाए जाने की आशंका है। उद्योग संगठन ने कहा कि निवेश में बढ़ाेतरी मुख्य तौर पर निजी क्षेत्र से होनी चाहिए और बजट में इस बारे में बहुत कुछ किया जा सकता है।
  
उद्योग मंडल ने अगले वित्त वर्ष में उत्पाद शुल्क की 10 प्रतिशत मानक दर को जारी रखने की सिफारिश की है। उल्लेखनीय है कि अप्रैल-दिसंबर के दौरान औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर महज 3.9 प्रतिशत रही जो इससे पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में 9 प्रतिशत थी।
 

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Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/


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