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Sunday 17 February 2013

सर्वाधिक भ्रष्ट कौन


 एच  एल  दुसाध :मित्रों २६ जनवरी को भारत के महान समाज मनोविज्ञानी आशीष नंदी ने कहा था ,'दलित ओबीसी सर्वाधिक भ्रष्टाचारी हैं.'उनके बयान से आपका गुस्सा फट पड़ा था,किन्तु मैंने उन्हें धन्यवाद दिया था कि उन्होंने भ्रष्टाचार के जाति-शास्त्र पर बहस को चर्चा का विषय बना दिया है.यदि आप भारत को भ्रष्टाचारमुक्त करना चाहते हैं तो सबसे पहले इसके लिए जिम्मेवार तबकों को चिन्हित करना होगा.नंदी में जितनी समझ थी ,उसके आधार पर उन्होंने जिम्मेवार तबकों की पहचान करने की कोशिश की है.यदि आपको लगता है कि  उनका यह आकलन गलत था तो उनके ज्ञान पर आपको करुणा करते हुए,युक्तिसंगत तरीके से सबसे बड़े भ्रष्टाचारी समुदाय को चिन्हित करने प्रयास करना चाहिए .इस दिशा मैंने अपने स्तर पर एक और प्रयास किया है.लेकिन इसे अंतिम न मानते हुए जब आप  भी सबसे बड़ा  भ्रष्टाचारी कौन को जानने का प्रयास करेंगे, तभी बात बनेगी.अतः नंदी को माफ करते हुए इस बहस को जारी रखें.आपने इस मुद्दे पर ११ फरवरी को कोलकाता,पटना,बनारस इत्यादि जगहों छपनेवाले 'सन्मार्ग' में मेरा लेख पढ़ा है.आज इस पर लखनऊ,बनारस,गोरखपुर,इलाहाबाद इत्यादि जगहों से छपने वाले 'जनसंदेश टाइम्स ' का यह लेख पढ़ें.मेरा आपसे विशेष आग्रह  है कि इस  बहस को यही थमने न दें .इसी खोज में छिपा है इस समस्या का निदान.   
                     सर्वाधिक भ्रष्ट कौन
                                     एच  एल  दुसाध
भ्रष्टाचार एक वैश्विक समस्या है ,जिसमें भारत प्रायः विश्व चैम्पियन है.2011 में विविध कारणों,जिनमे भ्रष्टाचार भी एक बड़ा मुद्दा था,से स्वतःस्फूर्त भाव से संगठित अरब जनविद्रोह से प्रेरित होकर,परवर्तीकाल में भारत में भी भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐतिहासिक आन्दोलन संगठित हुआ ,जिसने राजसत्ता को काफी हद  झुकने के लिए विवश कर दिया.उसी का परिणाम है कि केन्द्र सरकार आज लोकपाल के लिए प्रभावी कदम उठाने जा रही है.बहरहाल भ्रष्टाचार विरोधी अभियान चलानेवाले भारत के समाजसेवी,मीडिया और बुद्धिजीवियों से मेरी शिकायत यह रही है कि उन्होंने भ्रष्टाचार के पीछे राजनेता और नौकरशाहों की  धन-तृष्णा को तो प्रमुख कारण बताया.पर,धन-तृष्णा के पीछे क्रियाशील आकांक्षा-स्तर और उपलब्धि-अभिप्रेरणा जैसा मनोवैज्ञानिक कारकों के साथ सर्वाधिक भ्रष्ट कौन समुदाय है, इसकी पूरी तरह अनदेखी कर गए,शायद इच्छाकृत रूप से .किन्तु 2011 में जो नहीं हुआ, 2013 के गणतंत्र दिवस पर नंदी के इस बयान-यह तथ्य है कि ओबीसी,दलित सर्वाधिक भ्रष्ट हैं,जिनमें अब आदिवासी भी शामिल हो गए हैं- ने इस पर नए सिरे से बहस चलाने का आधार सुलभ करा दिया था.पर,देश के बुद्धिजीवी वर्ग ने यह कहकर कि सभी जातियों में भ्रष्ट लोग हैं, इस पर रोशनी डालने से एक बार फिर कन्नी काट काट ली.किन्तु इस पर बहस जरूरी थी क्योंकि इससे भ्रष्टाचार के लिए विशेषरूप से जिम्मेवार सामाजिक समूह की जानकारी होती और तदनुरूप कार्ययोजना बनाकर इसके शमन का कुछ उपाय किया जाता.पर,अफ़सोस देश के बुद्दिजीवी वर्ग ने ऐसा होने नहीं दिया और राष्ट्र एक निर्णायक योजना बनाने से वंचित रह गया.बहरहाल जो लोग भष्टाचार के खात्मे के लिए सर्वाधिक भ्रष्ट समुदाय का चिन्हित होना आवश्यक समझते हैं,वे यदि निम्न घोटालों से जुड़े प्रमुख लोगों की जाति पहचानने का कष्ट करें तो वह समुदाय चिन्हित हो जायेगा.
 भ्रष्टाचार की जिन बड़ी घटनाओं ने राष्ट्र को हिलाकर रख दिया,उनमें प्रमुख हैं-बोफर्स घोटाला,64करोड़(1987),स्टाम्प घोटाला,43,000 करोड़ (1991),इंडियन बैंक घोटाला,1,300 करोड़ (1992),प्रतिभूति घोटाला,4,000 करोड़ (1992),चीनी आयात घोटाला,650 करोड़(1994 ),भंसाली घोटाला,1,200 करोड़(1995),चारा घोटाला,950 करोड़ (1996),दूरसंचार घोटाला,1,600 करोड़(1996),यूरिया घोटाला,133 करोड़(1996),हवाला घोटाला,810 करोड़(1996),यूटीआई घोटाला ,32करोड़ (2000),म्युचुवल घोटाला ,1350 करोड़(2001),आईपीओ घोटाला,61 करोड़ (2006),सत्यम घोटाला,24,000 करोड़(2009),2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला,1.76,000 करोड़ (2010),आईपीएल घोटाला,443 करोड़(2010),राष्ट्रमंडल खेल घोटाला,665करोड़(2010),सिटी बैंक घोटाला,400 करोड़(2010).इनके अतिरिक्त इसरो-देवास मल्टीमिडिया करार,नीरा राडिया टेप,सेना की कैंटीनों में घटिया सामग्री सप्लाई,गाजियाबाद कचहरी पीएफ इत्यादि सहित धार्मिक क्षेत्र के इच्छाधारियों-नित्यानन्दों के असंख्य सेक्स घोटालों से जुड़े प्रमुख लोगों और उनके सहयोगियों के नामों पर यदि ठीक से गौर किया जाय तो इनमे 80-90 प्रतिशत संलिप्तता सवर्णों की नज़र आयेगी.आखिर सवर्णों और गैर-सवर्णों के मध्य भ्रष्टाचार के मामले यह विराट मात्रात्मक फर्क क्यों है?इसकी तफ्तीश उभय समाजों के आकांक्षा-स्तर और उपलब्धि-अभिप्रेरणा के तुलनात्मक अध्ययन से ही की जा सकती है.                  
  जो धन-तृष्णा भ्रष्टाचार की जड़ है उसका संपर्क आकाक्षा-स्तर(लेवल ऑफ ऐस्पिरेशन) से है और आकांक्षा –स्तर का नाभि-नाल का सम्बन्ध सामाजिक- विपन्नता(सोशल- डिसएडवांटेजेज) से है.विपन्नता और आकांक्षा-स्तर के परस्पर संबंधों का अध्ययन करते हुए दुनिया के तमाम समाज मनोविज्ञानियों ने यह  साबित कर दिया है कि विपन्न लोगों में आकांक्षा –स्तर निम्न हुआ करता है.ऐसे लोग थोड़े में संतुष्ट हो जाते हैं.इनमें उपलब्धि –अभिप्रेरणा(एचीवमेंट-मोटिवेशन)भी निम्न हुआ करती है.विपरीत स्थिति सामाजिक -सम्पन्नता वाले समूहों की रहती है.ऐसे समूहों में आकांक्षा-स्तर और उपलब्धि –अभिप्रेरणा उच्च हुआ करती है.इनमें भी उच्च वर्गीय की तुलना में मध्यम वर्गीय लोगों की उपलब्धि प्रेरणा उच्चत्तम हुआ करती है.
  उपरोक्त सामाजिक मनोविज्ञान के आईने में भारत के विभिन्न सामाजिक समूहों का अध्ययन करने के बाद पाते हैं कि वर्ण-व्यवस्था के वितरणवादी सिद्धांत के परिणतिस्वरूप शुद्रातिशूद्र बहुजन समाज सामाजिक रूप से विपन्न श्रेणी में है.इस कारण इसकी आकांक्षा-स्तर और उपलब्धि-अभिप्रेरणा निम्न स्तर की है.यह थोड़े में संतुष्ट रहनेवाला समूह है.यही कारण है इसकी धन-तृष्णा कम है जिससे बड़े पैमाने के घोटालों में इसकी संलिप्तता अपवाद रूप से ही दिखती है.वर्ण-व्यवस्थागत कारणों से सवर्ण वर्ग की प्रस्थिति सामाजिक-संपन्न समूह के रूप में है.इसलिए इसमें आकांक्षा-स्तर और उपलब्धि –प्रेरणा का स्तर उच्च है.इस कारण ही बड़े-बड़े घोटालों में सामान्यतया सवर्णों की संलिप्तता नज़र आती है.चूँकि सारी दुनिया में ही मध्यम वर्ग की उपलब्धि अभिप्रेरणा उच्चतम रहती है इसलिए भारत के उच्च नहीं ,मध्यम वर्ग के लोग ही बहुधा बड़े घोटालों में शामिल दिखते हैं.
 वर्ण-व्यवस्था के कारण भ्रष्टाचार में संपन्न समूहों की अत्यधिक संलिप्तता के पीछे कुछ और कारण क्रियाशील रहते हैं.यहाँ का संपन्न समूह चिरकाल से ही अनुत्पादक वर्ग के रूप में तब्दील रहा है.किन्तु उत्पादन से पूरी तरह दूर रहकर भी यह उत्पादन के सम्पूर्ण सुफल का भोग करता रहा है.इससे इसमें  परजीवीपन का भाव प्रवाहित होता रहा.चूँकि यह बिना कुछ किये उत्पादन का सुफल भोग करने का अभ्यस्त रहा है इसलिए यह अधिकतम भौतिक सुख भोगने की लालसा में धनार्जन का शार्टकट रास्ता अपनाने की जुगत भिड़ाते रहता है .पर,भ्रष्टाचारी संपन्न हो या विपन्न समूह का,उसके अवचेतन में पकडे जाने का भय जरुर क्रियाशील रहता है.किन्तु भारत के संपन्न तबके के भ्रष्टाचारी कुछ हद तक भयमुक्त रहते हैं .वे कहीं न कहीं से इस बात के प्रति आश्वस्त रहतें हैं कि न्यायपालिका,पुलिस-प्रशासन इत्यादि में छाये उनके सजाति उन्हें बचा लेंगे.यह मनोवैज्ञनिक सुरक्षाबोध भी उन्हें कुछ हद तक घोटाले के लिए साहस प्रदान करता है.उसके विपरीत शासन-प्रशासन में सवर्णों की जबरदस्त उपस्थिति बहुजनों के सिराओं में निरंतर भय का संचार करती रहती है.यह भय भी उन्हें काफी हद तक बड़े-बड़े घोटालों से दूर रखता है.
 बहरहाल अगर समाज मनोविज्ञानियों का यह निष्कर्ष सही है कि उच्च आकांक्षा-स्तर और उपलब्धि –अभिप्रेरणा के चलते ही देश को हिला देनेवाले  80-90 प्रतिशत घोटालों में सवर्णों की संलिप्तता रहती है तो भ्रष्टाचार को न्यूनतम  स्तर पर ले जाने का एक ही उपाय है,शक्ति के स्रोतों(आर्थिक-राजनीतिक-धार्मिक)में सामाजिक और लैंगिक विविधता का प्रतिबिम्बन.विविधता अर्थात डाइवर्सिटी सिद्धांत लागू  होने पर तमाम अवसरों को बंटवारा सवर्ण,ओबीसी,एससी/एसटी और धार्मिक अल्पसंख्यकों के स्त्री-पुरुषों के संख्यानुपात में होगा.इससे जिन  सवर्णों का उद्योग-व्यापर,मीडिया,मिलिट्री के उच्च पदों,न्यायपालिका,मंत्रालयों के सचिव इत्यादि पदों पर 80-90 प्रतिशत कब्ज़ा है और जहाँ का भ्रष्टाचार ही राष्ट्र के समक्ष विराट समस्या है,वहां वे 7-8 प्रतिशत पर सिमटने के लिए बाध्य होंगे.कारण, इन सभी क्षेत्रों में लैंगिक विविधता लागू होने पर उनके कुल 15 प्रतिशत का आधा हिस्सा उनकी महिलाओं के हिस्से में चला जायेगा.सवर्ण महिलाओं में भी ऐतिहासिक कारणों से दलित-पिछडों की भांति ही आकांक्षा-स्तर और उपलब्धि अभिप्रेरणा निम्न स्तर की है.इसका आधिक्य सवर्ण पुरुषों में ही है.ऐसे में जब वे डाइवर्सिटी के रास्ते महज 7-8 प्रतिशत अवसरों पर सिमटने लिए बाध्य होंगे ,तब निश्चय ही भ्रष्टाचार में मात्रात्मक कमी आएगी.
दिनांक:5.2.2013  (लेखक बहुजन डाइवर्सिटी मिशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं.मो-9313186503)          

আজ মহাবোধি সোসাইটি হলে কলেজ স্কায়ার কোলকাতায় সন্ধ্যা ছ টায় ওবিসি , আদিবাসিদের ও দলিতদের বিরুদ্ধে আশিস নন্দীর বক্তব্যের বিরুদ্ধে ধিক্কার সভা হয়ে গেল!আমরা বেশ ভালো করে জানি বাংলার অচলায়তন ভাঙ্গতে মনুস্মৃতি কর্তৃত্বকে আঘাত করতে নিজেদের অধিকারের দাবিতে বাংলায় বহুজন সমাজ গঠনের কাজ শুরু হতে অনেক কাঠ খড় পোড়াতে হবে!

পলাশ বিশ্বাস

আজ মহাবোধি সোসাইটি হলে কলেজ স্কায়ার কোলকাতায় সন্ধ্যা ছ টায় ওবিসি , আদিবাসিদের ও দলিতদের বিরুদ্ধে আশিস নন্দীর বক্তব্যের বিরুদ্ধে ধিক্কার সভা হয়ে গেল
!আমরা বেশ ভালো করে জানি বাংলার অচলায়তন ভাঙ্গতে মনুস্মৃতি কর্তৃত্বকে আঘাত করতে নিজেদের অধিকারের দাবিতে বাংলায় বহুজন সমাজ গঠনের কাজ শুরু হতে অনেক কাঠ খড় পোড়াতে হবে!
ওপার বাংলা আবার জাগ্রত ইসলামী বাংলাদেশী জাতিয়তার বিরুদ্ধে বাঙ্গালি জাতিসত্তার লড়াইয়ে রাস্তায়  নেমেছে সারা বাংলা দেশ!অথচ এপার বাংলায় বাঙ্গালিত্ব বলতেই বোঝায় ব্রাহ্মণ্যতান্ত্রিক আধিপাত্য!এই আধিপাত্যর দরুণ আশিসনন্দীর বক্তব্য নিয়ে, ওবিসি, উপজাতি ও তফসিলীদের ক্ষমতায়ন নিয়ে এখনই কোন বিতর্ক এই বাংলায় হবে না, যেখানে আড়াআড়ি পক্ষ বিপক্ষে বিভক্ত জনমানসে তৃতীয় পক্ষের কোনও সুযোগ নেই!যেমন সুযোগ নেই সমতা, সামাজিক ন্যায়, আইনের  শাসন ও গণতন্ত্রের ধর্মনিরপেক্ষতার!বাংলাদেশে চরম আক্রমনের মুখেও জাগ্রত বাঙ্গালি জাতি সত্তা, তাই বাংলাদেশী ইসলামী জাতীয়তার জিগির সত্ত্বেও সেখানে গণতন্ত্র ও ধর্মনিরপেক্ষতার পরিবেশ কখনো নষ্ট হয়নি!পৃথীবীর আর কোনো দেশে সংখ্যালঘুদের নাগরিক মানবাধিকার রক্ষার লড়াইয়ে ঝাঁকে ঝাঁকে সাংবাদিক, লেখক, বুদ্ধিজীবিদের আত্মবলিদানের নজির নেই!অথচ বাংলায় অন্য পক্ষ, বহুজনসমাজের কোনও কথা কোথাও বলার লেখার সুযোগ নেই!মাতৃভাষার অধিকারের দাবিতে লক্ষ লক্ষ প্রামের বিনিময়ে ভূমিষ্ঠ হয় বাংলাদেশ!আসামের  কাছাড়েও বাংলা ভাষার জন্য প্রাণ দিয়েছে উদ্বাস্তু বাঙ্গালিরা!পশ্চিম বাংলার সেই ইতিহাস নেই!ভারতের রাষ্ট্রপতি বাঙ্গালি ব্রাহ্মণ সন্তান, হিন্দুত্বের সর্বোচ্চ ধর্মাধিকারি, চন্ডী পাঠ দিয়ে যার দিন শুরু হয় আর রাষ্ট্রপতি ভবনকে যিনি চন্ডীমন্ডপে পরিণত করেছেন!ভারতের রাজনীতিতে পশ্চিম বাংলার কর্তৃত্ব প্রবল!কিন্তু তাঁদের কেউই বাঙ্গালি উদ্বাস্তুদের নাগরিকত্বের দাবি তোলেন নি!উদ্বাস্তুদের নাগরিকত্ব কেড়ে নিতেই তাঁরা বরং  সর্বদলীয় সম্মতিতে নাগরিকত্ব সংশোধন আইন পাশ করেছেন, চালূ করেছেন আধার যোজনা!বাংলার বাইরে বাঙ্গালিরা সংরক্ষণ থেকে বন্চিত!তাঁদের নাগরিকত্ব এবং একমাত্র তাঁদেরই নাগরিকত্ব সন্দিগ্দ্ধ!এই পশ্চিম বাংলায় সন্দিগ্দ্ধ নাগরিকত্বের অজুহাতে লাখো লাখো উদ্বাস্তুর নাম ভোটার লিস্ট থেকে কাটা হল , প্রতিবাদ হয়নি!তিন দশক ব্যাতীত দন্ডকারণ্য থেকে নির্বাচনী অঙ্কের খাতিরে ডেকে এনে বাঙ্গালি উদ্বাস্তুদের মরিচঝাঁপিতে কোতল করা হল!মায়েরা ধর্ষিতা হলেন!শিশুরা অনাথ হল!রক্তে ভিজে গেল মাটি!প্রবল ভাবে স্থানীয় রাজনীতিতে ক্ষমতার লঢ়াইয়ে আমরা ওরাঁয় দ্বিধা বিভক্ত নাগরিক সুশীল সমাজ তিন দশকেও মুখ খোলেনি!মুখ খোলেন নি আমাদের অতি প্রিয় গণ আন্মদোলনের মমতা ঘোষিত জননী, মহাশ্বেতাদিও!তিনি নাকি জানতেন না!বিশ্বাস করতে হবে! বাইরে বাঙালিদের মাতৃভাষার অধিকারের দাবিতে সরব হয়নি!তাঁরা মাত্র বাংলার বাইরে পাঁচ লক্ষ উদ্বাস্তু আছে, এই কথা বলে কোটি কোটি বাঙ্গালির অস্তিত্ব অস্বীকার করতেই অভ্যস্ত!একশো বছর যাদের ক্ষমতায়ন হয়নি, দুর্নীতি প্রসঙ্গে তাংদের কথা বলে বড় মুশকিলে ফেলে দিয়েছেন শাসক শ্রেনীকে সমাজবিজ্ঞানী আশিসনন্দী, তাই ঘটা করে জানিয়ে দিতে হল তিনি জাতে তেলী, নবশাঁখ! অর্থাত তাঁর কথাকে, তাঁর দেওয়া তথ্যকে গুরুত্ব দেওয়া হবে না!আজও রক্তে ভেসে যাচ্ছে জমিন!আজও লজ্জিত মানুষ!আজও ধর্ষিতা মায়েরা!কিন্তু এই বাংলায় কোনো লজ্জা লেখা হবে না! রোজ টিভি দেখতে ভয় হয়, আবার কোথায় রক্তপাত হল !আবার আমাদেরই কে মারা পড়ল! কোন মেয়েটি আবার ধর্ষিতা হল!
                          सच्चर आयोग की तरह एक और आयोग का गठन करके क्यों नहीं बताते कि आखिर बंगाल में विकास किसका हुआ और किसका नहीं​!
​​
​पलाश विश्वास

आप जरा सुप्रीम​​ कोर्ट के न्यायाधीश की अध्यक्षता में सच्चर आयोग की तरह एक और आयोग गढ़ दें जो पता करें कि बंगाल में किसकिसका कितना विकास हुआ और किस किस का नहीं हुआ।ऐसे सर्वे से बंगाल में जंगल महल और पहाड़ की असली समस्या के बारे में खुलासा हो जायेगा और हम जैसे ​​लोग मिथ्या भ्रम नहीं फैला पायेंगे। आयोग यह जांच करे कि बंगाल में ओबीसी जातियां कौन कौन सी हैं और उनका कितना विकास हुआ। अनुसूचितों और अल्पसंख्यकों का कितना विकास हुआ और बंगाल में बड़ी संख्या में रह रहे गैर बंगालियों का कितना विकास हुआ। सांच को आंच नहीं। हम सच उजागर होने पर अपना तमाम लिखा वापस ले लेंगे।​

जगतविख्यात समाजशास्त्री आशीष नंदी ने जो कहा कि भारत में ओबीसी, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सशक्तीकरण​​ से ही भ्रष्टाचार बढ़ा, उसे लेकर विवाद अभी थमा नहीं। राजनीतिक आरक्षण से सत्ता की मलाई चाट रहे लोग सबसे ज्यादा विरोध कर रहे हैं तो कारपोरेट भ्रष्टाचार और अबाध पूंजी प्रवाह, बायोमेट्रिक नागरिकता और गैरकानूनी डिजिटल आधार ककार्ड योजना के जरिये जल जंगल जमीन से इन लोगों की बोदखली के खिलाफ राजनीतिक संरक्षण के मसीहा खामोश हैं तो सिविल सोसाइटी का आंदोलन सिर्फ इसलिए है कि अश्वमेध की नरसंहार​ संस्कृति के लिए सर्वदलीय सहमति से संविधान, कानून और लोकतंत्र की हत्या के दरम्यान मुद्दों को भटकाने का काम हो। सिविल ​​सोसाइटी का आंदोलन आरक्षण विरोधी है तो कारपोरेट जयपुर साहित्य उत्सव को ही आरक्षण विरोधी मंच में तब्दील कर दिया आशीष​​ बाबू ने और इसे वाक् स्वतंत्रता बताकर सिविल सोसाइटी उनके मलाईदार विरोधियों की तरह ही मैदान में जम गये हैं। राजनीति को सत्ता समीकरण ही नजर आता है और अपने अपने समीकरण के मुताबिक लोग बोल रहे हैं। वाक् स्वतंत्रता तो समर्थ शासक वर्ग को ही है, बाकी लोगों की ​​स्वतंत्रता का नजारा या तो कश्मीर है या फिर मणिपुर और समूचा उत्तर पूर्व भारत , या फिर सलवा जुड़ुम की तरह रंग बिरंगे अभियानों के ​​तहत राष्ट्र के घोषित युद्ध में मारे जा रहे लोगों का युद्धस्थल दंडकारण्य या देश का कोई भी आदिवासी इलाका। वाक् स्वाधीनता का मतलब तो बारह साल से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून के विरोध में आमरण अनशन पर बैठी इरोम शर्मिला या पुलिसियाजुल्म के खिलाफ एकदम अकेली लड़ रही सोनी सोरी से पूछा जाना चाहिए।​


​​
​बहरहाल, इस विवाद से परे आशीष बाबू ने हमारा बड़ा उपकार किया है , जैसा कि आनंदबाजार के विस्तृत रपट के मुताबिक उन्होंने​ ​ जयपुर के उस उत्सव  में अपने विवादित वक्तव्य के समर्थन में कह दिया कह दिया कि बंगाल में भ्रष्टाचार नाममात्र है क्योंकि बंगाल में पिछले सौ साल से ओबीसी, अनुसूचित जनजतियों और अनुसूचित जातियों को सत्ता में हिस्सेदारी मिली ही नहीं। आजकल मुझे बांग्ला में नियमित लिखना होता है। उनके इस मंतव्य पर जब हमने लिखा कि यह तो हम बार बार कहते हैं। इसपर हमें तो जातिवादी कह दिया जाता है , पर बंगाल​​ के ब्राह्मणतंत्र को जारी रखने के इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र और राजनीति के बारे में क्या कहेंगे इसजातिवादी आधिपात्यवाद और वर्चस्व का विरोध करना ही क्या जातिवाद है?

सत्तावर्ग के किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति ने अपनी अवधारणा के सबूत बतौर यह सच पहली बार कबूल किया वरना बंगाल में तो जाति उन्मूलन ​​का दावा करने से लोग अघाते ही नहीं है। गायपट्टी अभी मध्ययुग के सामंती व्यवस्था में जी रहा है और वहीं जात पाँत की राजनीति होती है, यही कहा जाता है। राजनीति में सत्ता में हिस्से दारी में जो मुखर हैं, उनके अलावा ओबीसी और अनुसूचित जातियों की बहुसंख्य जनता इस मुद्दे पर ​​खामोश हैं क्योंकि हजारों साल से अस्पृश्यता का दंश झेलने के बाद इस तरह के लांछन से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता और न ही वे किसीतरह के भ्रष्टाचार में लिप्त हैं ज उन्हें अपनी ओर से मलाईदार लोगों की तरह सफाई देने की जरुरत है। वे तो मारे जाने के लिए चुने हुए लोग हैं और उत्तर आधुनिक तकनीकें उनका बखूब सफाया कर रहे हैं। इन समुदायों में देश की ज्यादातर किसान जातियां हैं , जिनकी नैसर्गिक आजीविका खेती का सत्यानाश कर दिया गया, ऊपर से जल जंगल जमीन , नागरिकता और मानवाधिकार से उन्हें वंचित, बेदखल कर दिया जा रहा है। उनके सामने तीन ही​ विकल्प हैं: या तो निहत्था इस महाभारत में मारे जायें, अश्वमेध यज्ञ में परम भक्ति भाव से अपनी बलि चढ़ा दें, या आत्महत्या कर लें​  या अंततः प्रतिरोध करें। ऐसा ही हो रहा है। बंगाल में हमारे लिखे की कड़ी प्रतिक्रिया है रही है। कहा जा रहा है कि बंगाल में ओबीसी और अनुसूचित बाकी देश से आर्थिक रुप से ज्यादा संपन्न हैं तो उन्हें जात पाँत की राजनीति करके सत्ता में हिस्सेदारी क्यों चाहिए। कहा जा रहा है कि​ ​ भारत भर में बंगाली शरणार्थी महज पांच लाख हैं और उनमें से भी साठ फीसद सवर्ण। माध्यमों और आंकड़ों पर उन्हीका वर्चस्व है और कुछ भी कह सकते हैं। पर दबे हुए लोग भी बगावत करते हैं। परिवर्तन के बाद पहाड़ और जंगलमहल में अमन चैन लौटने के बड़े बड़े दावा किये जाते ​​रहे हैं। कल दार्जिलिंग में यह गुब्बारा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सामने ही फूट गया और लोग गोरखालैंड के नारे लगाने लगे। खतरा तो यह है कि जंगल महल में भी कभी भी ऐसा ही विस्फोट हो सकता है। राजनीतिक शतरंज बिछाकर अपने चहेते चेहरे नेतृत्व में लाकर समस्याओं का निदान नहीं होता।समस्याओं से नजर भले हट जाये, समस्याएं जस की तस बनी रहती हैं।गौरतलब है कि जिन समुदायों के आर्थिक सशक्तीकरण का दावा किया जाता है, समस्याग्रस्त इलाकों में उन्हीकी आबादी ज्यादा है। यह ​​सर्वविदित है कि देशभर में आदिवासियों के पांचवीं अनुसूची और छठीं अनुसूची के तहत दिये जाने वाले अधिकारों से कैसे वंचित किया जाता​ ​ है।

इस सिलसिले में हमारा विनम्र निवेदन है कि जैसे सच्चर कमिटी की रपट से बंगाल में सत्ताइस फीसदी मुसलमानों की दुर्गति का खुलासा​ ​ हुआ और जनांदोलन में चाहे जिनका हाथ हो या चाहे जिनका नेतृत्व हो, इस वोट बैंक के बगावती तेवर के बिना बंगाल में परिवर्तन ​​असंभव था। पहाड़ और जंगल महल में आक्रोश के बिना भी बंगाल में न परिवर्तन होता और न मां माटी मानुष की सरकार बनतीष हम मान लेते हैं कि बंगाल में जाति उन्मूलन हो गया। यह भी मान लेते हैं कि मध्ययुग में जी रहे गायपट्टी की तरह बंगाल में किसी सामाजिक बदलाव की जरुरत ही नहीं रह गयी।सत्ता में भागेदारी के बिना सबका समान विकास हो गया और बाकी देश के मुकाबले बंगाल दूध का धुला है।

आप जरा सुप्रीम​​ कोर्ट के न्यायाधीश की अध्यक्षता में सच्चर आयोग की तरह एक और आयोग गढ़ दें जो पता करें कि बंगाल में किसकिसका कितना विकास हुआ और किस किस का नहीं हुआ।ऐसे सर्वे से बंगाल में जंगल महल और पहाड़ की असली समस्या के बारे में खुलासा हो जायेगा और हम जैसे ​​लोग मिथ्या भ्रम नहीं फैला पायेंगे। आयोग यह जांच करे कि बंगाल में ओबीसी जातियां कौन कौन सी हैं और उनका कितना विकास हुआ। अनुसूचितों और अल्पसंख्यकों का कितना विकास हुआ और बंगाल में बड़ी संख्या में रह रहे गैर बंगालियों का कितना विकास हुआ। सांच को आंच नहीं। हम सच उजागर होने पर अपना तमाम लिखा वापस ले लेंगे।​
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​कांग्रेस राज्य में १९७७ से सत्ता से बाहर है और उसके सत्ता से बाहर होने के बाद पहाड़ और जंगल महल में समस्याएं भड़क उठीं। बंगाल के सबसे बुजुर्ग कांग्रेस नेता देश के राष्ट्रपति हैं।कांग्रेस केंद्र में सत्ता में है। पहाड़ और जंगल महल की समस्याएं निपटाने में मुख्य दायित्व भी कांग्रेस का ही बनता है। तो बंगाल से कांग्रेस केंद्रीय मंत्री अधीर चौधरी और श्रीमती दीपा दासमुंशी, बंगाल कांग्रेस के नेता प्रदीप भट्टाचार्य और मानस भुइयां इसके लिए प्रयास तो कर ही सकते हैं। इससे कांग्रेस के भी हित सधेंगे।

जयपुर साहित्य महोत्सव के दौरान विवादित बयान देने वाले समाजशास्त्री आशीष नंदी से पूछताछ हो सकती है। जयपुर पुलिस की एक टीम पूछताछ के लिए दिल्ली पहुंच चुकी है। इस बीच राजस्थान हाईकोर्ट ने मंगलवार को साहित्य महोत्सव के आयोजक संजय रॉय की तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने रॉय को जयपुर से जाने की भी इजाजत दे दी है। लेकिन कोर्ट ने यह भी कहा है कि जब पुलिस बुलाए तब रॉय हाजिर हों।

जयपुर पुलिस ने सोमवार को आशीष नंदी और संजय रॉय को नोटिस भेजे थे। दोनों के खिलाफ जयपुर के अशोक नगर थाने में एससी/एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया है। अगर नंदी दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें 10 साल तक की सजा हो सकती है।

डीसीपी प्रहलाद कृष्नैया के नेतृत्व में जयपुर पुलिस की टीम नंदी और अन्य के बयान दर्ज करेगी। नंदी ने साहित्य महोत्सव में रिपब्लिक ऑफ आइडियाज सेशन के दौरान दलितों को लेकर विवादित बयान दिया था। कृष्नैया ने बताया कि हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि नंदी ने किस संदर्भ में बयान दिया है। पुलिस ने सोमवार को नंदी के दिल्ली स्थित आवास पर नोटिस भेजा था जिसमें उन्हें जांच में सहयोग करने के लिए कहा गया था। जबकि नंदी ने मंगलवार को कहा था कि उन्हें कोई नोटिस नहीं मिला है। वह अपने बयान पर कायम हैं और इसके लिए जेल जाने को भी तैयार हैं।

इधर, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र राज्य का हिस्सा बना रहेगा। दूसरी ओर, गोरखा जनमुक्ति मोर्चा समर्थकों ने उत्तर बंगाल उत्सव के उद्घाटन के दौरान अलग राज्य की मांग के पक्ष में नारे लगाए, जिससे ममता बिफर पड़ीं।ममता ने कहा कि दार्जिलिंग बंगाल का एक हिस्सा है और हम एक साथ रहेंगे। अब और कोई अशांति नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह फिर विकास को बाधित करेगी। इस कार्यक्रम में जीजेएम अध्यक्ष और गोरखालैंड क्षेत्रीय प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी बिमल गुरूंग भी मौजूद थे। उनकी मौजूदगी में उनके समर्थकों के इस हरकत से ममता नाराज दिखीं। उन्होंने प्रदर्शनकारियों को चेताया कि इस तरह के राजनीतिक नारे नहीं लगाएं। उन्होंने कहा कि वे अपने पार्टी मंचों पर ये नारे लगाएं।ममता ने सुंदर मॉल में एक रंगारंग कार्यक्रम में कहा, 'आए हम मिल जुल कर रहें। दार्जिलिंग बंगाल का एक हिस्सा है और हम एक साथ रहेंगे।' इस कार्यक्रम में जीजेएम अध्यक्ष एवं गोरखालैंड क्षेत्रीय प्राधिकरण (जीटीए) मुख्य कार्यकारी विमल गुरुंग भी उपस्थित थे। ममता ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा, 'अब और कोई अशांति नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह फिर विकास को बाधित करेगी।'लेकिन मुख्यमंत्री के संक्षिप्त संबोधन के अंतिम चरण में जीजेएम समर्थकों के एक हिस्से ने नारे लगाए और गोरखालैंड के निर्माण की मांग करने वाले पोस्टर प्रदर्शित किए। इन से ममता नाराज दिखीं। वह उठ खड़ी हुईं और प्रदर्शनकारियों को चेताया कि वे इस कार्यक्रम में इस तरह के राजनीतिक नारे नहीं लगाएं। उन्होंने कहा कि वे अपने पार्टी मंचों पर ए नारे लगाएं। ममता ने कहा, 'कृपया याद रखें कि यह कोई पार्टी कार्यक्रम नहीं है। यह सरकारी कार्यक्रम है। मैं ऐसे मुद्दों पर बहुत सख्त हूं।' मुख्यमंत्री ने कहा, 'कृपया गलत संदेश नहीं दें ताकि लोग समझे कि दार्जिलिंग फिर परेशानी में जाने वाला है।' ममता जब ये बातें कह रही थी, गुरूंग मंच पर उनके बगल में बैठे थे। इसके बाद मुख्यमंत्री मंच से उतर गईं और दर्शकों के साथ बैठने गई जबकि जीजेएम समर्थक अपने हरे, सफेद और पीले रंग के पार्टी झंडा लहराते रहे।

इस बीच तेलंगाना राज्य के लिए केंद्र सरकार और आंध्र प्रदेश के क्षेत्रीय नेताओं के बीच चल रही रस्साकशी के बीच गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) ने पश्चिम बंगाल से अलग गोरखालैंड राज्य की मांग को लेकर सोमवार को दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया। सैकड़ों जीजेएम कार्यकर्ता तख्तियां और बैनर लिए हुए सुबह से ही प्रदर्शन कर रहे हैं।प्रदर्शन में पश्चिम बंगाल विधानसभा के तीन जीजेएम सदस्यों के अलावा संगठन की महिला, छात्र व युवा इकाइयों के सदस्य भी शामिल हैं। गोरखालैंड राज्य की मांग को दशकों पुरानी मांग बताते हुए जीजेएम के महासचिव रोशन गिरि ने कहा कि केंद्र सरकार को तेलंगाना के साथ गोरखालैंड के मुद्दे पर भी विचार करना चाहिए। गिरि ने कहा, "गोरखालैंड की मांग पहली बार आजादी से 40 साल पहले 1907 में उठाई गई थी। लेकिन केंद्र सरकार हमारी मांग पर विचार करने को तैयार नहीं है। वह केवल तेलंगाना पर विचार कर रही है। हमारी मांग है कि गोरखालैंड पर भी विचार किया जाए।" उन्होंने कहा, "हम निष्क्रिय होकर नहीं बैठेंगे। हम पर्वतीय अंचलों और दार्जिलिंग के तराई इलाकों में बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू करेंगे।" ज्ञात हो कि उत्तरी पश्चिम बंगाल के पर्वतीय क्षेत्र को अलग राज्य के लिए किए गए आंदोलनों में पिछले दो दशकों के दौरान कई लोग जान गंवा चुके हैं और क्षेत्र में आय के प्रमुख साधन चाय व लड़की उद्योग तथा पर्यटन पर इसका बुरा असर पड़ा है। पिछले वर्ष त्रिपक्षीय समझौते के बाद गठित गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन (जीटीए) पर जीजेएम का कब्जा है। पिछले वर्ष जुलाई में हुए जीटीए के चुनाव में इस संगठन को एकतरफा जीत मिली थी। गिरि ने कहा कि जीटीए समझौते पर हस्ताक्षर के समय भी जीजेएम ने गोरखालैंड राज्य की मांग नहीं छोड़ी थी।  उल्लेखनीय है कि जीजेएम के नेताओं ने इससे पहले 11 जनवरी को केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे से मुलाकात की थी और मांग पर जोर दिया था।

अखिल भारतीय गोरखालीग के सचिव प्रताप खाती ने मंगलवार को कहा कि हमें तेलंगाना से कोई मतलब नहीं है, गोरखाओं को गोरखालैंड चाहिए। हमें अलग राज्य का विकल्प मंजूर नहीं है। यह स्वाभिमान व संस्कृति से जुड़ा मुद्दा है। इसे छोड़ा नहीं जा सकता। उन्होंने आरोप लगाया कि गोरखालैंड के नाम पर चुनाव जीतने वाले ही इस मुद्दे को भूल बैठे। विधायक व सांसद ने गोरखालैंड के लिए कुछ नहीं किया। जीटीए को राज्य का समतुल्य मानकर लोगों को गुमराह किया जा रहा है। हालत यह है कि जीटीए के नाम पर अभी तक खाता तक नहीं खुला है। डीएम के खाते के सहारे हीं सारे कार्य हो रहे हैं। जीटीए ही गोरखालैंड के लिए वास्तविक बाधा है।

गोजमुमो पर आरोप लगाया कि जीटीए में अभी तक अलग राज्य के लिए प्रस्ताव तक पारित नहीं हुआ है। इससे गोजमुमो की वास्तविकता का पता चलता है। यहां की जनता को गुमराह किया जा रहा है। गोजमुमो के आंदोलन को दिखावा बताया। इसे लालबत्ती कायम रखने के लिए राजनीतिक नौटंकी करार दिया। उन्होंने गोजमुमो को जीटीए खारिज करने की चुनौती दे डाली। सभी प्रतिनिधि अपने पद से शीघ्र इस्तीफा देकर सड़क पर आएं। कहा कि सुविधा और आंदोलन साथ-साथ नहीं हो सकते। अलग राज्य आसानी से मिलने वाला नहीं है। यहां के बुद्धिजीवियों से आगे आने का आह्वान किया। कहा कि वे हीं आंदोलन को सही दिशा दे सकते हैं। आरोप लगाया कि यहां का वास्तविक इतिहास व भूगोल से देश को अवगत नहीं कराया गया है। मुख्य राजनीतिक दल का कर्तव्य का निर्वाह करने में गोजमुमो असफल रहा है। यहां के दस्तावेज को सही तरीके से प्रस्तुत करना होगा। यहां के राजीनीतिक दलों के दो चेहरे हैं।


107 वर्षो से गोरखालैंड की मांग की जा रही है। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा तथ्यों व व्यवहारिक आधार पर गोरखालैंड की मांग कर रही है। यह समय व परिस्थिति की मांग है। कर्सियांग में उक्त बातें स्टडी फोरम के सदस्य पी अर्जुन ने कही। उन्होंने मोटर स्टैंड में महकमा समिति द्वारा आयोजित जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि विरोधी गोजमुमो पर आधारहीन व निराधार आरोप लगाते रहे हैं। गोजमुमो ने गोरखालैंड की मांग को बिना त्याग किए जीटीए स्वीकार किया था। यह एक क्षेत्रीय व्यवस्था है। इसके जरिए स्थानीय समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। गोरखालैंड एक राष्ट्रीय विषय है। यह गोरखाओं के अस्तित्व व पहचान जुड़ा मसला है। पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा गोरखालैंड के विरोध पर हम सतर्क हैं। जीटीए समझौता में रोशन गिरि ने हस्ताक्षर किया। जीटीए संविधान के तहत नहीं है। इसे किसी भी समय विमल गुरुंग के आदेश से खारिज किया जा सकता है। जीटीए सूबे के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सक्रियता से मिला है। जनता के अनुरोध पर जीटीए प्रमुख का दायित्व विमल गुरुंग ने संभाला है। गोजमुमो का लक्ष्य गोरखालैंड है। राजनीति में समय के अनुकूल परिवर्तन होना चाहिए। अभागोली व क्रामाकपा का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि 1943 में गठित अभागोली ने पर्वतीय क्षेत्र के लिए आज तक कुछ नहीं किया। यह सभी मोर्चे पर असफल रहा है। क्रामाकपा के अध्यक्ष आरबी राई के निर्णय उनके प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं होते। कहा कि गोरखालैंड का लक्ष्य हासिल करने का गुर विपक्ष हमें सिखाए। इसके लिए हम तैयार है। गोरखालैंड के लिए विपक्ष एकजुट होकर गोजमुमो का समर्थन करें। गोरखाओं के राष्ट्रीय पहचान के लिए सभी को एकजुट होना आवश्यक है। तेलंगाना से गोरखालैंड की तुलना नहीं की जा सकती। तराई व डुवार्स को गोजमुमो ने नहीं छोड़ा है। गोरखालैंड के गठन में गोरखा बहुल क्षेत्र को शामिल किया जाएगा। उन्होंने आरोप लगाया कि गोरामुमो सुप्रीमो सुभाष घीसिंग ने गोरखालैंड की मांग को छोड़ दिया था। यहां की समस्या निराकरण का एक ही उपाय गोरखालैंड का गठन है। बंगाल विभाजन विषय नहीं है। क्योंकि यह भूभाग बंगाल का है ही नहीं, तो बंगाल विजाभन का प्रश्न ही कहां उठता।

नारी मार्चा अध्यक्ष आशा गुरुंग ने कहा कि तेलंगना से पूर्व गोरखालैंड की मांग है। इसका गठन होना आवश्यक है। गोरखाओं के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। जान की बाजी लगाकर देश की रक्षा करते रहे हैं। लेकिन सरकार से समुदाय के साथ अन्याय किया है। विमल गुरुंग ने जीटीए समझौते में हस्ताक्षर नहीं किया है वे हस्ताक्षर सिर्फ गोरखालैंड के लिए ही करेंगे। जनता के हित के लिए प्राण न्यौछावर को भी तैयार हैं। जनता को डराकर आंदोलन नहीं करेंगे। गरीब जनता के लिए ही गोरखालैंड है।

कर्सियांग के विधायक डॉ रोहित शर्मा ने कहा कि पोस्टरबाजी से अलग राज्य हासिल नहीं किया जा सकता। हमारा अंतिम व पहला लक्ष्य गोरखालैंड है। गोजमुमो कई बार केंद्र को ऐतिहासिक दस्तावेज सौंप चुका है।

जीटीए चेरमैन प्रदीप प्रधान ने कहा कि हमारी संवैधानिक मांगों को मानना ही होगा। यह अस्तित्व से जुड़ा हैं। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। गोजमुमो ही राज्य का गठन कर सकता है। सभा को सांगठनिक सचिव रतन थापा, फूबी राई, पेमेंद्र गुरुंग, सावित्री क्षेत्री, प्रणाम रसाईली व नवराज गोपाल क्षेत्री ने भी संबोधित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता तिलक गुरुंग ने व संचालन युवा नेता व वार्ड आयुक्त सुभाष प्रधान ने किया।


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