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Monday 18 February 2013

पहली बार रक्षा घोटाले में भारत के राष्ट्रपति का नाम, इस राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग क्यों नहीं?


पहली बार रक्षा घोटाले में भारत के राष्ट्रपति का नाम, इस राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग क्यों नहीं?

पलाश विश्वास

भारत में राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग ससद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है।महाभियोग लाने के लिए संबंधित सदन के मात्र​ ​ एक चौथाई सदस्यों का समर्थन चाहिए और इसके लिए चौदह दिनों का नोटिस देना पड़ता है। अल्पमत सरकार की स्थिति में विपक्ष के लिए यह कोई मुश्किल बात नहीं है। पर बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन जबकि मुखय विपक्षी दल राष्ट्रपति का नाम तक नहीं ले रहा है, तब भी जबकि​​ घोटाले की सरकारी फैक्ट शीट में राष्ट्रपति का नाम है!



पहली बार रक्षा घोटाले में भारत के राष्ट्रपति का नाम, इस राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग क्यों नहीं?हेलीकॉप्टर खरीद घोटाले पर यूपीए सरकार की फैक्टशीट में कहा गया है कि टेंडर पर 2005 में मुहर लगी, उस समय प्रणब मुखर्जी रक्षा मंत्री और एस पी त्यागी वायुसेना प्रमुख (अब सेवानिवृत्त) थे।कोलकाता में राष्ट्रपति बनने पर राष्ट्रपति भवन तक अपना पुजा मंदिर ले जाने, दिनचर्या की शुरुआत चंडीपाठ से करने और दुर्गापुजा की पुरोहिती स्वयं करने जैसी खबरें मीडिया बारीक सी बारीक जानकारी के साथ देता है। पर जिस तरह कोलकाता में आशीष नंदी के जयपुर वक्तव्य के विरुद्ध बंगाल के तीस संगठनों की धिक्कार सभा की खबर कहीं नहीं आयी, उसी तरह हेलीकाप्टर घोटले की खबरों में बंगाल में कहीं पर्णव मुखर्जी का नाम नहीं आया। इसी बंगाल से इराक में युद्ध अपराध के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति बुश के खिलाफ महाभियोग लगाने की मांग गूंजती रही है, तो अपने ही देश के राष्ट्रपति के रक्षा घोटाले में शामिल होने पर उनके खिलाफ महाभियोग लाने की मांग उठाना लोग कैसे भूल रहे हैं?

आशीष नंदी ने दावा किाया था कि बंगाल में सत्ता में चुंकि ओबीसी, अनुसूचित जातियों और जनजातियों को सौ सालों में सत्ता में हिस्सेदारी नहीं​ ​ मिली, इसीलिए उन्होंने बंगाल को भ्रष्टाचार मुक्त बताया और इसी उदाहरण के साथ देश भर में पिछड़ों और अनुसूचितों के बहुजन समाज को सबसे ज्यादा भ्रष्ट बताया। एकतरफा इस वाक् स्वाधीनता के पक्ष में पूरा मीडिया और सिविल सोसाइटी की गोलबंदी हो गयी। लेकिन बंगाल में बहुजनों को सत्ता से बाहर रखने की परंपरा पर किसी ने बहस में दिलचस्पी नहीं दिखायी। बंगाल में तो नंदी को तेली शंखकार बताकर सत्तावर्ग से ही खारिज कर दिया गया। सच बोलने के अपराध में। अब जनता से सूचनाएं कैसे छुपाकर ब्राह्मणवादी वर्चस्व बनाये रखा जाता है, हेलीकाप्टर घोटाले के सिलसिले में प्रणव मुखर्जी का नामोल्लेख तक बंगाल के मीडिया में न होने देना इसका ज्वलंत प्रमाण है।इसी वर्चस्ववाद की वजह से ही इतने बड़े घोटाले में पहलीबार किसी राष्ट्रपति का नाम होने के बावजूद उनकी इम्युनिटी का बहाना बनाया जा रहा है। भारतीय संविधान में महाभियोग का प्रावधान है। यह देश अब हर मामेले में अमेरिका का अनुकरण करता है तो अमेरिकी राष्ट्रपतियों के खिलाफ अक्सर चलनेवाले महाभियोग से सीख लेते हुए गणतंत्र के प्रति राजनीति और सत्ता की जवाबदारी क्यों नहीं साबित की जाती।

संघ परिवार के मनुस्मृति शासन की दृष्टि से राष्ट्रपति न सिर्फ देश का प्रथम नागरिक है, बल्कि वह धर्मरक्षक और प्रधान धर्माधिकारी हैं। रक्षा घोटाले के सिलसिले में फर्स्ट फेमिली को घेरने की कवायद में लगे संघ परिवार ने एक बार भी राष्ट्रपति का नाम नहीं लिया। कानून के मुताबिक कोई सरकारी एजंसी राष्ट्रपति केकखिलाफ जांच नहीं कर सकती, उन्हें इम्युनिटी मिली हुई है। राष्ट्र की प्रतिष्ठा का सवाल है तो बोफोर्स प्रकरण को याद करें जिसमें लगातार एक प्रधानमंत्री पर आरोप लगते रहे हैं। अगर संसदीय गणतंत्र के तहत सरकार के प्रधान प्रधानमंत्री के खिलाफ जांच की मांग हो सकती है ​​तो राष्ट्राध्यक्ष के खिलाफ कानूनी सीमाओं को देखते हुए महाभियोग क्यों नहीं चलाया जा सकता?​भारत में राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग ससद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है।महाभियोग लाने के लिए संबंधित सदन के मात्र​ ​ एक चौथाई सदस्यों का समर्थन चाहिए और इसके लिए चौदह दिनों का नोटिस देना पड़ता है। अल्पमत सरकार की स्थिति में विपक्ष के लिे यह कोई मुश्किल बात नहीं है। पर बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन जबकि मुखय विपक्षी दल राष्ट्रपति का नाम तक नहीं ले रहा है, तब भी जबकि​​ घोटाले की सरकारी फैक्ट शीट में राष्ट्रपति का नाम है!

The President of India can be removed from the office for violation of the constitution by impeachment. Such a motion of impeachment can be initiated by any House of Parliament In such a case one fourth of the members, of the house, intending to move such a motion have to serve a fourteen days notice in writing. After the completion of the stipulated period the motion is discussed and put to vote.

If two-thirds of the members support the motion that it is passed for consideration of the other House. The other House on receiving the motion investigates the changes. The President is allowed the opportunity to present his defence either in person or through his nominee. If the House despite the defence supports the motion by two-thirds majority the President stands impeached.

The President of India is entitled to certain legal immunity during his tenure. He is not answerable to any court of law while discharging his responsibilities. He cannot be arrested or imprisoned in connection with any civil or criminal case. However civil suits may be instituted against him by serving at least two months notice.

प्रणव मुख्रर्जी ही देश के समाजवादी माडल के मुक्त बाजार व्यवस्था में संक्रमण के वास्तविक सेतु हैं। राष्ट्रपति बनने से पहले आर्थिक सुधार की नीतियों को लागू करने और अल्पमत सरकार के लिए संसद में जरूरी कानून पास कराने में उनकी महती भूमिका रही है। इसके बावजूद आर्थिक सुधारों का विरोध करने वाली तमाम पार्टियों ने कारपोरेट घराने की लाबिइंग के बीच उनका समर्थन किया। बंगाल में एक दूसरे को खत्म करने में लगे और जनता को इस गृहयुद्ध में भुनने वाली पक्ष विपक्ष की राजनीति बंगाल की ब्राह्मण संतान को राष्ट्रपति बनाने के लिए एकाकार हो गयी। गार के लिए प्रणव को खूब गरियाया जाता है पर वे तमाम नीतियों और सुधारों के बुनियादी रुपकार हैं। जिस डिजिटल बायोमेट्रिक नागरिकता को सुधार अभियान में देश के बहुजनों को जल जंगल जमीन और नागरिकता से बेदखल करने के लिए सबसे कारगर हथियार बनाया गया है, वह लालकृष्ण आडवानी और प्रमव मुखर्जी का साझा ईजाद है। खुदरा कारोबार में विनिवेश, विनिंत्रण, अबाध विदेशी पूंजी,  नय़ी मनुसंहिता यानि प्रत्यक्ष कर संहिता, नकद सब्सिडी और जीएसटी ​जैसे उपाय उन्होंने ही ईजाद किये। काला धन के लिए आम माफी का प्रस्ताव भी उन्हींका है। चिदंबरम तो उन्हींकी नीतियों का कार्यान्वयन कर रहे हैं। तमाम वित्तीय विधायकों को अंतिम रुप देने में उनका अशेष योगदान है। कारपोरेट और हिंदुत्व की इस बेमिसाल युगलबंदी के खिलाफ कौन बोलेगा आखिर?

संयुक्त राष्ट्र अमरीका के संविधान के अनुसार उस देश के राष्ट्रपति, सहकारी राष्ट्रपति तथा अन्य सब राज्य पदाधिकारी अपने पद से तभी हटाए जा सकेंगे जब उनपर राजद्रोह, घूस तथा अन्य किसी प्रकार के विशेष दुराचारण का आरोप महाभियोग द्वारा सिद्ध हो जाए (धारा 2, अधिनियम 4)।। अमरीका के विभिन्न राज्यों में महाभियोग का स्वरूप और आधार भिन्न भिन्न रूप में हैं। प्रत्येक राज्य ने अपने कर्मचारियों के लिये महाभियोग संबंधी भिन्न भिन्न नियम बनाए हैं, किंतु नौ राज्यों में महाभियोग चलाने के लिये कोई कारण विशेष नहीं प्रतिपादित किए गए हैं अर्थात् किसी भी आधार पर महाभियोग चल सकता है। न्यूयार्क राज्य में 1613 ई में वहाँ के गवर्नर विलियम सुल्जर पर महाभियोग चलाकर उन्हें पदच्युत किया गया था और आश्चर्य की बात यह है कि अभियोग के कारण श्री सुल्जर के गवर्नर पद ग्रहण करने के पूर्व काल से संबंधित थे।

इंग्लैंड एवं अमरीका में महाभियोग क्रिया में एक अन्य मान्य अंतर है। इंग्लैंड में महाभियोग की पूर्ति के पश्चात् क्या दंड दिया जायेगा, इसकी कोई निश्चित सीमा नहीं, किंतु अमरीका में संविधानानुसार निश्चित है कि महाभियोग पूर्ण हो चुकने पर व्यक्ति को पदभ्रष्ट किया जा सकता है तथा यह भी निश्चित किया जा सकता है कि भविष्य में वह किसी गौरवयुक्त पद ग्रहण करने का अधिकारी न रहेगा। इसके अतिरिक्त और कोई दंड नहीं दिया जा सकता। यह अवश्य है कि महाभियोग के बाद भी व्यक्ति को देश की साधारण विधि के अनुसार न्यायालय से अपराध का दंड स्वीकार कर भोगना होता है।
Removal

The President may be removed before the expiry of the term through impeachment. A President can be removed for violation of the Constitution of India.[70]
The process may start in either of the two houses of the Parliament. The house initiates the process by levelling the charges against the President. The charges are contained in a notice that has to be signed by at least one quarter of the total members of that house. The notice is sent up to the President and 14 days later, it is taken up for consideration.

A resolution to impeach the President has to be passed by a special majority (two-third majority of the total members present and voting and simple majority of total membership of the originating house). It is then sent to the other house. The other house investigates the charges that have been made. During this process, the President has the right to defend oneself through an authorised counsel. If the second house also approves the charges made by special majority again, the President stands impeached and is deemed to have vacated his/her office from the date when such a resolution stands passed. Other than impeachment, no other penalty can be given to the President for the violation of the Constitution.[71]

No president has faced impeachment proceedings so the above provisions have never been used.[72]
http://en.wikipedia.org/wiki/President_of_India#Removal

Chopper deal: Three key decision makers enjoy Constitutional immunity

INDIA, Updated Feb 15, 2013 at 12:39pm IST
CNN-IBN

New Delhi: President Pranab Mukherjee, Goa Governor Bharat Vir Wanchoo and West Bengal Governor MK Narayanan - the three key decision makers who were involved in finalising the deal AgustaWestland 101 helicopter deal - enjoy Constitutional immunity.
The UPA government's factsheet on the AgustaWestland helicopter deal can bring embarrassment for the Congress as it categorically states that the tender was finalised in 2005 - a time when President Pranab was the defence minister, Air Chief Marshal SP Tyagi was India Air Force Chief, Wanchoo headed the SPG while Narayanan was the National Security Advisor.
But the CBI seeking to question President Pranab and the two governors seems highly unlikely as they enjoy Constitutional immunity. Apart from the President, two other key decision makers continue to enjoy high office. Wanchoo is now the Governor of Goa while Narayanan is the Governor of West Bengal. Both of them by virtue of being governors enjoy immunity under the Constitution.Video
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Constitutional expert and senior lawyer Prashant Bhushan, however, said that while the three have immunity, they can be questioned. "The President can't be prosecuted while he is in office but he can be questioned and the whole matter can be investigated," Bhushan said.
Meanwhile, Congress MP Sandeep Dikshit said the need for questioning will arise only after an investigation report is out. "The then Defence Minister Pranab Mukherjee holds a Constitutional position. The need for questioning arises only after the probe report is out," Dikshit said.
The Congress in its factsheet has also put the blame on NDA. The Congress has alleged that in 2003, the then National Security Advisor Brajesh Mishra wrote to the then defence secretary that the existing rules were unfair as it allowed only single bidding and that the qualifying height of the choppers should be reduced from 18,000 feet to at least 14,000 feet.
The factsheet says in the initial tender, only Eurocopter was found eligible. In 2003, Brajesh Mishra met the then Prime Minister Atal Bihari Vajpayee, urging him to change the norms to include more bidders. Altitude requirements were brought down from 6,000 to 4,500 metres after that meeting.
Later Brajesh Mishra wrote to the Air Chief Marshal suggesting consultations with the defence secretary. After the UPA came to power, the factsheet says IAF, SPG, NSA and Defence Ministry held consultations and changes in requirements were incorporated.
After the new tender, three companies responded, out of which AgustaWestland was selected. The Cabinet Committee on Security cleared the deal on January 18, 2010.
Surprisingly BJP leader Jaswant Singh, a member of the then Vajpayee cabinet, seemed to be endorse Brajesh Mishra's act. But an alarmed BJP, which wants to take on the Congress in the Budget Session was quick to distance itself from Jaswant Singh's comments.
Big questions:
- Who all were the key decision makers of the helicopter deal?
- How many key players received kickbacks from chopper company?
- Does the money trail stop with the middlemen and Tyagis?
- Was the decision to change tender norms purely a professional decision?
- Is there equal accountability of all those who ratified the chopper tender?
- Can the President and governors be questioned if not prosecuted?
- Will the CBI question President Pranab and governors Wanchoo and Narayanan?

http://ibnlive.in.com/news/chopper-deal-three-key-decision-makers-enjoy-constitutional-immunity/373031-3.html

पढ़ें: बोफोर्स से लेकर ताबूत घोटाले तक का इतिहास

नई दिल्ली। रक्षा सौदों में दलाली का मामला कोई नया नहीं है। समय-समय पर इसके खुलासे होते रहे हैं और राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मचता रहा है। आजादी के बाद से ही ऐसे रक्षा घोटालों के खुलासे की खबर से देशभऱ में कोहराम मचा। इसकी आंच में कई बार सरकार आई तो कई बार नेताओं की कुर्सी भी गई। 1987 का बोफोर्स कांड गवाह है कि किस तरह इस घोटाले ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी से सत्ता छीन ली और वीपी सिंह को सरकार बनाने का मौका मिला। नजर डालते हैं देश में हुए बड़े रक्षा घोटालों पर।
जीप घोटाला-1948
आजादी के बाद भारत सरकार ने लंदन की एक कंपनी से 2000 जीपों का सौदा किया। सौदा 80 लाख रुपए का था। लेकिन केवल 155 जीप ही मिल पाई। घोटाले में ब्रिटेन में मौजूद तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त वी के कृष्ण मेनन का नाम सामने आया। लेकिन 1955 में केस बंद कर दिया गया। जल्द ही मेनन नेहरु केबिनेट में शामिल हो गए।
बोफोर्स घोटाला -1987
1987 में खुलासा हुआ था कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारतीय सेना को तोपें सप्लाई करने का सौदा हथियाने के लिये 64 करोड़ रूपयों की दलाली चुकाई। उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और प्रधानमंत्री थे राजीव गांधी। स्वीडन की रेडियो ने सबसे पहले 1987 में इसका खुलासा किया। इसे ही बोफोर्स घोटाला या बोफोर्स कांड के नाम से जाना जाता हैं। आरोप था कि राजीव गांधी परिवार के नजदीकी बताए जाने वाले इतालवी व्यापारी ओत्तावियो क्वात्रोक्की ने इस मामले में बिचौलिये की भूमिका अदा की, जिसके बदले में उसे दलाली की रकम का बड़ा हिस्सा मिला। कुल चार सौ बोफोर्स तोपों की खरीद का सौदा 1.3 अरब डालर का था। आरोप है कि स्वीडन की हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारत के साथ सौदे के लिए 1.42 करोड़ डालर की रिश्वत बांटी थी।
बराक मिसाइल घोटाला- 1996-97
बराक मिसाइल इस्राइल से खरीदे जाने थे। इस सौदे पर तत्कालीन डीआरडीपी अध्यक्ष अब्दुल कलाम ने आपत्ति दर्ज कराई थी। इसके बाद मामले में समता पार्टी पूर्व कोषाध्यक्ष आरके जैन की गिरफ्तारी हुई। इस्राइल से 1150 करोड़ रुपए में सात बराक मिसाइलें खरीदी गई थीं। इनकी खरीद में घोटाले के आरोप लगने पर सीबीआई ने 2006 में एक एफआईआर दर्ज की थी। कई आरोपियों से सीबीआई पहले ही पूछताछ कर चुकी है। तब सीबीआई ने यह सवाल भी उठाया था कि डिफेंस रिसर्च एंड डिवेलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) के विरोध के बावजूद बराक मिसाइल क्यों खरीदी गई? सीबीआई का आरोप था कि 1996 में इस्राइल ने जो कीमत बताई थी, उससे अधिक कीमत पर यह खरीद हुई थी। यह भी आरोप है कि फर्नांडीज ने वैज्ञानिक सलाहकार की राय को नजरअंदाज किया। 1999 में वैज्ञानिक सलाहकार ने इस डील का विरोध किया था। सीबीआई ने डीआरडीओ और सीसीएस के विरोध संबंधी टिप्पणी को आधार बनाया और इस मामले की जांच की। सीबीआई इस मामले में पूर्व रक्षा सचिव से भी पूछताछ कर चुकी है।
ताबूत घोटाला-1999
1999 में कारिल युद्ध में भारतीय शहीदों के शव को उनके परिजनों तक पहुंचाने के लिए ताबूत खरीदे गए। इसमें सीबीआई ने सेना के कुछ वरिष्ठ अफसर और अमेरिका के एक ठेकेदार के खिलाफ केस दर्ज किया था। मामले में तत्कालीन रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडीज पर भी आरोप लगे थे।
तहलका-2001
इस ऑनलाइन न्यूज पॉर्टल ने स्टिंग ऑपरेशन के जारिए ऑर्मी ऑफिसर और राजनेताओं को रिश्वत लेते हुए पकड़ा। यह बात सामने आई कि सरकार द्वारा की गई 15 डिफेंस डील में काफी घपलेबाजी हुई है और इस्राइल से की जाने वाली बराक मिसाइल डील भी इसमें से एक है। तहलका की इस खोजी मुहिम ऑपरेशन वेस्ट एंड में तहलका के दो पत्रकारों को हथियारों के सौदागर के रूप में कई बड़े राजनेताओं और सेना के कुछ आला अधिकारियों को घूस देते हुए और रक्षा मंत्रालय के कई खुफिया रहस्यों पर बातचीत करते दिखाया गया था। ऑपरेशन वेस्ट एंड के पहले शिकार बने बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण। स्टिंग आपरेशन में उन्हें एक लाख रुपये की घूस लेते दिखाया गया था। शाम होते-होते उन्हें पद से इस्तीफा दे दिया। स्टिंग आपरेशन की सीडी में राजग के प्रमुख घटक दल समता पार्टी की अध्यक्ष और रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज की करीबी जया जेटली को भी हथियारों के सौदागर बने पत्रकारों से बातचीत करते दिखाया गया। इसके लपेटे में समता पार्टी के पूर्व कोषाध्यक्ष आरके जैन भी आए। स्टिंग आपरेशन में सेना के कुछ बड़े अधिकारियों के नाम आने के बाद केंद्र ने एक मेजर जनरल समेत चार वष्ठि सैन्य अधिकारियों को निलंबित कर दिया। तहलका कांड की आंच से तत्कालीन रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीज भी नहीं बच पाए थे। विपक्ष के धारदार हमले झेल रही वाजपेयी सरकार ने इस्तीफा देने से तो इनकार कर दिया था, परंतु टालमटोल कर रहे जॉर्ज को इस्तीफा देने पर मजबूर होना पड़ा। उनसे पहले ही उनकी पार्टी समता पार्टी की अध्यक्ष जया जेटली को भी इस्तीफा देना पड़ा था।
सुदीप्तो घोष कांड-2009
2009 में सीबीआई ने आयुध फैक्टरी बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक सुदीप्तो घोष को गिरफ्तार किया था। आयुध फैक्टरी बोर्ड रक्षा मंत्रालय के तहत आने वाली 40 फैक्टरियों पर नियंत्रण रखने वाली शीर्ष इकाई है। घोष ने कथित तौर पर दो भारतीय और चार विदेशी कंपनियों से रिश्वत ली थी, जिन्हें 5 मार्च को एंटनी ने ब्लैकलिस्ट कर दिया था। सरकार भारतीय वायु सेना के लिए कई अरब डॉलर में 126 नई पीढ़ी के लड़ाकू जेट खरीदने का सौदा करने ही वाली थी कि उसके एक पखवाड़े पहले 31 जनवरी को एक फ्रांसीसी हथियार कंसल्टेंट बर्नाड बैएको दिल्ली पहुंचा। उसे रक्षा अधिकारियों के साथ बातचीत में हिस्सा लेना था। लंदन से छपने वाले अखबार संडे टाइम्स ने इस दौरान एक खबर छापी जिसका शीर्षक था 'इनसाइड ए 18 बिलियन डॉग फाइट।'
टाट्रा ट्रक घोटाला-2011
पूर्व सेनाध्यक्ष वीके सिंह ने 2011 में खुलासा किया कि टाट्रा ट्रक खरीद की स्वीकृति देने के लिए उन्हें 14 करोड़ रूपये की रिश्वत की पेशकश की गई थी। 1986 में खरीदे गए 700 ट्रकों की गुणवत्ता और कीमत को लेकर उस समय भी सवाल उठे थे।
http://khabar.ibnlive.in.com/news/91938/1


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