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Wednesday 20 February 2013

एक नया इतिहास लिखेगी यह हड़ताल !


एक नया इतिहास लिखेगी यह हड़ताल !


सरकार ने हड़ताल के तीन दिन पहले केन्द्रीय संगठनों से हड़ताल न करने की अपील की और एक दिखावे की वार्ता भी कर डाली. न तो सरकार की मंशा इस हड़ताल को टालने की थी और न ही वह इस स्थिति में है कि वह मजदूर संगठनों की मांगों पर कोई ठीक ठीक संतोषजनक आश्वासन दे सके...


दिनेशराय द्विवेदी

आज और कल देश के 11 केन्द्रीय मजदूर संगठन हड़ताल कर रहे हैं. उन के साथ आटो, टैक्सी बस वाले और कुछ राज्यों में सरकारी कर्मचारी भी हड़ताल पर जा रहे हैं. केन्द्रीय संगठनों ने इस दो दिनों की हड़ताल की घोषणा कई सप्ताह पहले कर दी थी. सरकार चाहती तो इस हड़ताल को टालने के लिए बहुत पहले ही केन्द्रीय संगठनों से वार्ता आरंभ कर सकती थी. लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया. वह अंतिम दिनों तक हड़ताल की तैयारियों का जायजा लेती रही.
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जब उसे लगने लगा कि यह हड़ताल ऐतिहासिक होने जा रही है तो हड़ताल के तीन दिन पहले केन्द्रीय संगठनों से हड़ताल न करने की अपील की और एक दिखावे की वार्ता भी कर डाली. न तो सरकार की मंशा इस हड़ताल को टालने की थी और न ही वह इस स्थिति में है कि वह मजदूर संगठनों की मांगों पर कोई ठीक ठीक संतोषजनक आश्वासन दे सके. इस का कारण यह है कि यह हड़ताल वास्तव में वर्तमान केन्द्र सरकार की श्रमजीवी जनता की विरोधी नीतियों के विरुद्ध है.

श्रम संगठन तमाम श्रमजीवी जनता के लिए राहत चाहते हैं. जब कि सरकार केवल पूंजीपतियों के भरोसे विकास के रास्ते पर चल पड़ी है चाहे जनता को कितने ही कष्ट क्यों न हों. वह इस मार्ग से वापस लौट नहीं सकती. सरकार की प्रतिबद्धताएँ देश की जनता के प्रति होने के स्थान पर दुनिया के पूंजीपतियों और साम्राज्यवादी देशों के साथ किए गए वायदों के साथ है. 
चलिए देखते हैं कि इन केन्द्रीय मजदूर संगठनों की इस हड़ताल से जुड़ी मांगें क्या हैं?

  • महंगाई के लिए जिम्मेदार सरकारी नीतियां बदली जाएं
  • महंगाई के मद्देनजर मिनिमम वेज (न्यूनतम भत्ता) बढ़ाया जाए
  • सरकारी संगठनों में अनुकंपा के आधार पर नौकरियां दी जाएं
  • आउटसोर्सिंग के बजाए रेग्युलर कर्मचारियों की भर्तियां हों
  • सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी प्राइवेट कंपनियों को न बेची जाए
  • बैंकों के विलय (मर्जर) की पॉलिसी लागू न की जाए
  • केंद्रीय कर्मचारियों के लिए भी हर 5 साल में वेतन में संशोधन हो
  • न्यू पेंशन स्कीम बंद की जाए, पुरानी स्कीम ही लागू हो   
मांगो की इस फेहरिस्त से स्पष्ट है कि केन्द्रीय मजदूर संगठन इस बार जिन मांगों को ले कर मैदान में उतरे हैं वे आम श्रमजीवी जनता को राहत प्रदान करने के लिए है. 
इस बीच प्रचार माध्यमों, मीडिया और समाचार पत्रों के माध्यम से सरकार यह माहौल बनाना चाहती है कि इस हड़ताल से देश को बीस हजार करोड़ रुपयों की हानि होगी. जनता को कष्ट होगा. वास्तव में इस हड़ताल से जो हानि होगी वह देश की न हो कर पूंजीपतियों की होने वाली है. जहाँ तक जनता के कष्ट का प्रश्न है तो कोई दिन ऐसा है जिस दिन यह सरकार जनता को कोई न कोई भारी मानसिक, शारीरिक व आर्थिक संताप नहीं दे रही हो. यह सरकार पिछले दस वर्षों से लगातार एक गीत गा रही है कि वह महंगाई कम करने के लिए कदम उठा रही है. लेकिन हर बार जो भी कदम वह उठाती है उस से महंगाई और बढ़ जाती है. कम होने का तो कोई इशारा तक नहीं है. 

कहा जा रहा है कि मजदूरों और कर्मचारियों को देश के लिए काम करना चाहिए. वे तो हमेशा ही देश के लिए काम करते हैं. पर इस सरकार ने उन के लिए पिछले कुछ सालों में महंगाई बढ़ाने और उन को मिल रहे वेतनों का मूल्य कम करने के सिवा किया ही क्या है? ऐसे में वे भी यह कह सकते हैं कि जिस काम के प्रतिफल का लाभ उन्हें नहीं मिलता वैसा काम वे करें ही क्यों? 

यह हड़ताल देश की समस्त श्रमजीवी जनता के पक्ष की हड़ताल है और यह हड़ताल कैसी भी हो लेकिन इस हड़ताल का ऐतिहासिक महत्व होगा क्यों कि यह शोषक वर्गों के विरुद्ध श्रमजीवी वर्गों का शंखनाद है और इस बार सभी रंगों के झण्डे वाले मजदूर संगठन एक साथ हैं. यह हड़ताल एक नया इतिहास लिखेगी और भविष्य के लिए भारतीय समाज को एक नई दिशा देगी.
dineshrai-diwediसामाजिक गतिविधियों में सक्रिय दिनेशराय द्विवेदी पेशे से वकील हैं. लेख उनके ब्लॉग 'अनवरत' से साभार। 


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