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Sunday, 17 February 2013

विक्टोरिया मेमोरियल खतरे में,राजभवन का रंगरोगन!


विक्टोरिया मेमोरियल खतरे में,राजभवन का रंगरोगन!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​

लंबे अरसे से कोलकाता में पर्यावरण संकट की अनदेखी हो रही है।विक्टोरिया मेमोरियल खतरे में लंबे अरसे से । पर अदलती आदेशों को ताक पर रखा जा रहा है। कोलकाता महानगर के प्राणकेंद्र मैदान पर्यावरण की दृष्टि से अतिशय महत्वपूर्ण है जो हमेशा राजनीतिक शक्तिपरीक्षण का अखाड़ा बनता आ रहा है। पर्यावरण संकट और अदालती आदेशों की वजह से मैदान से विक्टचोरिया मेमोरियल की नाक पर हर साल आयोजित होनेवाला पुस्तकमेला तो मिलनमेला में महानगर के बाहरी इलाके में स्थानांतरित हो गया है। पर महानगर जिस आत्रामघाती राजनीति के हाथों खिलौना बनकर अपने वजूद के लिए छटफटा रहा है, उसे कोई अदालती आदेश स्थानांतरित तो नहीं कर सकता!हालत यह है कि सरकार और प्रशासन को बंगाल और भारत की ऐतिहासिक विरासत विक्टोरिया मेमोरियल की तो कोई परवाह नहीं है, पर राजभवन के रंगरोगन के लिए पूरे आठ करोड़ खर्च हो रहे हैं। जबकि राजकोष करीब करीब शून्य भंडार का पर्याय बन चला है।

पूरे दस साल हो चुके जबकि कोलकाता हाईकोर्ट में खतरे में पड़े विक्टोरिया मेमोरियल के संरक्षण के लिए पर्यावरणविद सुभाष दत्त ने जनहित याचिका दायर की थी। पर्यावरण प्रदूषण से विक्टोरिया को बचाने लिए माननीय हाईकोर्ट ने एक दो बार नहीं, बल्कि इस बीच आठ आठ बार निर्देश जारी किये। पर ढाक के वही तीन पात।पूर्ववर्ती वाम सरकार हो या मौजूदा मां माटी की सरकार, किसी ने इन आदेशों के मुताबिक कार्रवाई करने की सदिच्छा नहीं दिखायी।​मसलन, कोलकाता हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद धर्मतल्ला स्थित बस अड्डा को हटाने के लिए अभी सरकार ने कुछ नहीं किया।कई साल हो गये इस आदेश को जारी किये।इसके विपरीत, लाट साहब के राजभवन की विरासत को सहेजने के लिए खास इंतजाम किये गये हैं।बरहाल इसके लिए हाईकोर्ट सुप्रीमकोर्ट के आदेशों की जरुरत नहीं पड़ी।राजभवन 200 वर्ष पुराना है। ब्रिटिश शासनकाल के प्रारंभिक वर्षों में जब कोलकाता ब्रिटिश-भारत की राजधानी हुआ करता था तब राजभवन वायसराय का आधिकारिक निवास था। अब यह भवन पश्चिम बंगाल के राज्‍यपाल का निवास स्‍थल है।विक्टोरिया मेमोरियल (विक्टोरिया स्मारक) कोलकाता में स्थित एक स्मारक है। १९०६-१९२१ के बीच निर्मित यह स्मारक रानी विक्टोरिया को समर्पित है। इस स्मारक में शिल्पकला का सुंदर मिश्रण है।गौरतलब है कि अपनी दो दिन की यात्रा पर कोलकाता पहुंचीं अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन विक्टोरिया मेमोरियल का दौरा किया था। विक्टोरिया मेमोरियल क्वीन विक्टोरिया के शाही जीवन का झरोखा है, जो यहाँ आने वालों को बीते समय में लेकर जाता है।कोलकाता हाईकोर्ट ने  सितंबर, 2007 में विक्टोरिया मेमोरियल के निकट मेलों और सार्वजनिक सभाओं के आयोजन पर पाबंदी लगा दी और लाल बत्तियों तथा कार पार्किंग की जगहों को भी हटाने का आदेश दिया।तभी
शहर के धर्मतल्ला स्थित  मुख्य बस टर्मिनल को किसी अन्य स्थान पर ले जाने के लिए छह महीने का समय दिया गया था।

तब अपने आदेश में जस्टिस भास्कर भट्टाचार्य और जस्टिस आरएस बंदोपाध्याय ने कहा कि किसी भी होटल या रेस्तरां को ऐसे किसी इंधन से खाना पकाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए जिससे धुआँ या भाप निकलती हो।न्यायालय ने कहा कि खाना बनाने के लिए कुकिंग गैस जैसे स्वच्छ ईंधन का प्रयोग करना होगा।

न्यायाधीशों ने कहा कि शहर के मुख्य बस टर्मिनल को विक्टोरिया मेमोरियल से कम से कम तीन किलोमीटर दूर स्थानांतरित करना होगा।

इसके अलावा कोलकाता हाईकोर्ट ने एसएसकेएम अस्पताल के भीतर कोयले को चूल्हे बंद करने का आदेश जारी किया था, जिसे पालन नहीं किया गया तो इससे क्षुब्‍ध होकर अदालत ने एसएसकेएम अस्पताल के सुपर को अदालत की अवमानना का नोटिस दे दिया। हाईकोर्ट ने विक्‍टोरिया मेमोरियल के तीन किलोमीटर के दायरे में प्रदूषण मुक्त रखने के लिए एसएसकेएस अस्पताल को भी 28 सितंबर 2007 को आदेश दिया था कि वह अस्पताल प्रांगण में चल रहे केन्‍टीनों में कोयले के चूल्हे को बंद कर गैस के चूल्हे लगाने की व्यवस्था करे। आदेश में एक महीने के भीतर इस पर कार्रवाई करने को कहा गया था।
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​अब हाईकोर्ट ने इस मामले में फरियादी पर्यावरणविद को निर्देश जारी किया है कि अदालत ने अब तक जो आदेश जारी किये हैं, उनका ब्यौरा एक रपट के रुप में अदाल में पेश करे।न्यायाधीश असीम कुमार बंदोपाध्याय और न्यायधीश शुक्ला कबीर सिन्हा की खंडपीठ ने यह निर्देश दिया।इस सिलेसिले में फरियादी को कोर्ट अफसर की मदद भी मिलेगी।इसी परिप्रेक्ष्य में हाईकोर्ट ने विक्टोरिया मेमोरियल परिसर में मेमोरियल के अधिकारियों और विदेसी अतिथियों की ​​गाड़ियों के प्रवेश पर रोक लगाने के लिए भी प्रशासन को निर्देश जारी किया है।

विडंबना है  कि अदालती आदेश अब गरीबों की आजीविका छीनने के काम रहा है।इस धरोहर और महानगर की एक और पहचान भी है। वह हैं इस इमारत के सामने सजे धजे तांगे.इन तांगों को विक्टोरिया या फिटन भी कहा जाता है। तांगे वालों का यह कारोबार भी उतना ही पुराना है जितनी विक्टोरिया मेमोरियल की इमारत। लेकिन बाकी अदालती आदेशो पर अमल करने से परहेज करने वाली ममता बनर्जी की अगुवाई वाली सरकार के ताजा फरमान से इस धरोहर पर खतरा मंडराने लगा है। पुलिस ने इन तांगा मालिकों को दोपहर दो से रात आठ बजे तक विक्टोरिया मेमोरियल के आसपास तांगा नहीं चलाने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही कई पीढ़ियों से इस पेशे में रहे सैकड़ों लोगों की रोजी-रोटी भी खतरे में पड़ गई है।दरअसल, पुलिस के इस फरमान की वजह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नाराजगी है। वह इन तांगों को खींचने वाले घोड़ों की ओर से फैलाई जाने वाली गंदगी और बदबू से नाराज हैं। उनके कहने पर ही पुलिस ने इन तांगों या विक्टोरिया पर तमाम पाबंदियां लगा दी हैं। उनके मालिकों से विक्टोरिया मेमोरियल से सटे मैदान इलाके से दूर तांगा रखने को कहा गया है।

पर्यावरण प्रदूषण का आलम यह है कि मेमोरियल के सिरे पर स्थापित एक परी की मूर्ति "एंजल आफ़ विक्टरी" के घूमने में रुकावट आयी थी, वह भी इमारत का रख-रखाव करते हुए धूल-मिट्टी के कारण इसके बेयरिंग के जाम होने से। काले कांसे से बनी 16 फिट की इस मूर्ति का वजन तीन टन है। 23 बाल-बेयरिंगों की सहायता से इसे ऐसे स्थापित किया गया है कि 15 की.मी. की गति से हवा के चलते ही यह उसकी दिशा में घूम जाती है। यानि यह हवा की दिशा बतलाने वाला यंत्र है।पहली बार 1985 में इसके घूमने में रुकावट आयी थी,तुरंत ठीक भी कर लिया गया था।पर 1999 में आकाशीय बिजली के गिरने से इसका घूमना बिल्कुल बंद हो गया था। पर 6 सालों की अथक मेहनत से इसे फिर अपनी पूर्वावस्था में लाने में कामयाबी हासिल कर ली गयी। गौरतलब है कि 1921 में बनाया गया यह अजूबा वर्षों-वर्ष बिना किसी खराबी के अपनी कसौटी पर खरा उतरता रहा।


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