रसोई में आग! तेल की धार को अब सरकार ने तेल कंपनियों के हवाले!आंकड़ों के चमत्कार से चीन से भी आगे विकासगाथा से देश का कायाकल्प करने में लगी सरकार ने किश्तों पर हलाल करने का काम शुरु ही कर दिया!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
तेल की धार को अब सरकार ने तेल कंपनियों के हवाले!आंकड़ों के चमत्कार से चीन से भी आगे विकासगाथा से देश का कायाकल्प करने में लगी सरकार ने किश्तों पर हलाल करने का काम शुरु ही कर दिया! सरकार ने सुधार से जुड़े कदमों के क्रम में डीजल की कीमत को नियंत्रण मुक्त करते हुए इसकी कीमत में प्रति लीटर 51 पैसे तक बढ़ोतरी कर दी और इसी तरह की वृद्धि मासिक तौर पर आगे भी जारी रहेगी। सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों- बीपीसीएल, एचपीसीएल और इंडियन ऑयल को सरकार ने डीजल कीमतों में मामूली बढ़ोतरी करने की छूट दी है।डीजल कीमतें कितनी और कब बढ़ेंगी इसका फैसला भी कंपनियां ही लेंगी।सरकार के इस फैसले से अब डीजल के दाम में आने वाले समय में बढ़ोतरी होती रहेगी। इससे महंगाई दर पर भी असर पड़ सकता है। सरकार ने थोक में डीजल का इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ताओं को अब बाजार मूल्य पर डीजल देने का फैसला किया है। इससे उनके लिए एक ही झटके में डीजल का दाम करीब 11 रुपये बढ़ जाएगा। अन्य उपभोक्ताओं के लिए डीजल के दाम हर महीने 40 से 50 पैसे लीटर बढ़ाए जाएंगे। केंद्रीय कैबिनेट के गुरुवार सुबह सब्सिडी वाले घरेलू गैस सिलिंडर का सालाना कोटा 6 से बढ़ाकर 9 करने से आम आदमी को मिली थोड़ी राहत को रात होते-होते 'दोनों हाथों' से छीन लिया गया।तेल कंपनियों ने डीजल के दाम में 45 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी की, वहीं बिना सब्सिडी वाले सिलिंडर का दाम 46.50 रुपये बढ़ा दिया। बड़े ग्राहकों के लिए डीजल के दाम में 9.25 रुपये की बढ़ोतरी की गई है। उधर, पेट्रोल के दाम में 25 पैसे की कमी की गई है। बढ़ी हुई कीमतें गुरुवार आधी रात से लागू होंगी। अब सब्सिडी वाले सिलिंडर का कोटा बढ़ने से इस साल मार्च तक आम आदमी कुल 5 सब्सिडी वाले सिलिंडर ले सकेगा। अगले फाइनैंशल इयर 2013-2014 में 1 अप्रैल से 31 मार्च तक लोग 9 सब्सिडी वाले सिलिंडर ले सकेंगे। एलपीजी सिलिंडर का ओपन मार्केट में 895.50 रुपये दाम है। अब इसके लिए 46 रुपये ज्यादा देने होंगे।भारतीय जनता पार्टी सहित देश के कई विपक्षी दलों ने गुरुवार को तेल विपणन कंपनियों को डीजल के दाम बढ़ाने की अनुमति देने के सरकार के फैसले की आलोचना करते हुए कहा है कि इससे महंगाई बढ़ जाएगी।
सरकार के आक्रामक तेवर साफ हैं। कारपोरेट दबाव में विपक्ष भी झख मारकर सहयोग करने को मजबूर है।गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) पर राज्यों की सहमति न बनने से वित्त मंत्री पी. चिदंबरम परेशान हैं। वह चाहते थे कि बजट से पहले इस पर सहमति बन जाए और इसकी घोषणा बजट भाषण में कर दें मगर लग रहा है कि ऐसा होना मुश्किल है। बुधवार को चिदंबरम की राज्यों के वित्त मंत्रियों के साथ बैठक में जिस तरह से मांगों का ढेर लगा और जीएसटी लागू होने पर बार-बार घाटे की बात कही गई, उस पर चिदंबरम अपनी प्रतिक्रिया जाहिर न कर पाए। चिदंबरम ने साफ तौर पर राज्यों से कह दिया है कि अब समय आ गया है कि घाटे के मामले को खत्म कर दिया जाए। इसे ज्यादा लंबा न खींचा जाए। मतभेद को अगर समय सीमा के भीतर सुलझा लिया जाए तो बेहतर होता है।जब कुछ राज्यों ने केंद्र को इस बात के लिए कोसा कि वह राज्यों की वित्तीय स्थिति को नजरअंदाज कर रही है। इस पर चिदंबरम ने राज्यों को दो टूक कहा कि राज्यों को भी केंद्र की वित्तीय हालत को समझना चाहिए। केंद्र बार-बार कह चुका है कि जीएसटी के मामले में वह राज्यों की मांग पर विचार करने को तैयार है मगर मांगों को कितना पूरा कर पाएंगे, यह केंद्र की वित्तीय हालात पर निर्भर है।सूत्रों के अनुसार बैठक खत्म होने से एकदम पहले चिदंबरम ने राज्यों के वित्तीय मंत्रियों से कहा, अगर राज्यों में जीएसटी के मुद्दे पर आम सहमति बन जाती है तो वह इस संबंध में संविधान संशोधन की रूपरेखा का जिक्र अपने बजट भाषण में ही कर देंगे वरना बजट में इसे शामिल नहीं करेंगे। संविधान (संशोधन) विधेयक, 2011 को संसद में पेश किया जा चुका है और इस समय संसद की वित्त समिति के विचाराधीन है।गौरतलब है कि मुआवजे के लिए बनी समिति और जीएसटी प्रारूप समिति अपनी रिपोर्ट 31 जनवरी तक केंद्र को सौंप देंगी। सूत्रों के अनुसार बैठक में यह बात भी उठी कि जीएसटी को वैट की तरह लागू किया जाए। राज्यों को इसे लागू करने या न लागू करने या जब चाहे लागू करने की छूट दी जाए। इस पर भी कई राज्यों ने आपत्ति जताई। उनका कहना था कि ऐसा करना तर्कसंगत नहीं होगा। डीजल के दामों में वृद्धि को लेकर आलोचना का निशाना बन रही सरकार ने गुरुवार को सफाई दी कि राजस्व उगाहने और जनता के हितों की रक्षा के लिए संतुलन बनाने की यह कोशिश बहुत ही मुश्किल थी। इसके साथ ही सरकार ने डीजल के दामों में वृद्धि के राजनीतिक दलों द्वारा किए जा रहे विरोध पर सवाल उठाते हुए कहा कि उन्होंने (विपक्ष ने) भी अतीत में ऐसे फैसले किए थे।
सरकार ने क्रूड एडिबल ऑयल के आयात को महंगा कर दिया है। आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने खाने के कच्चे तेल के आयात पर 2.5 फीसदी की ड्यूटी लगाने का फैसला किया है। हालांकि रिफाइंड तेल के आयात पर लगने वाले 7.5 फीसदी की ड्यूटी में कोई बदलाव नहीं किया गया है।खाने के कच्चे तेल के आयात पर कोई ड्यूटी नहीं लगती थी। लेकिन, इंडस्ट्री और कृषि मंत्रालय की मांग पर सरकार को ये फैसला लेना पड़ा है। कृषि मंत्रालय की ओर से खाने के कच्चे तेल पर 7.5 फीसदी और रिफाइंड तेल पर 15 फीसदी ड्यूटी लगाने की मांग थी।कृषि मंत्रालय की दलील थी कि क्रूड एडिबल ऑयल का आयात बढ़ने से घरेलू इंडस्ट्री और तिलहन किसानों का नुकसान हो रहा है। वित्त मंत्रालय ने महंगाई बढ़ने का हवाला देते हुए रिफाइंड तेल के इंपोर्ट पर ड्यूटी बढ़ाने से इनकार कर दिया है। देश में पूरी खपत का करीब 50 फीसदी खाने का तेल इंपोर्ट करना पड़ता है।
जनता की आंखों में धूल झोंकने की कला भारतीय सत्तावर्ग से कोई सीखें। आम लोगों को गधा बनाकर पहले रसोई गैस के सिलिंडरों पर सब्सिडी की सीमा तय कर दी गयी। यह सीमा किस खुशी में लागू की गयी और इसका औचित्य क्या है, इसपर सवाल उठाये बगैर, सब्सिडी खत्म करके अबाध पूंजी प्रवाह के लिए एक के बाद एक कदम का विरोध के बजाय सुधारों के नाम जनविरोधी कारपोरेट नीति निर्धारण में सर्वदलीय सहमति के तहत सारे के सारे वित्तीय विधेयक और संविधान संशोधन तक अल्पमत सरकार के समर्थन में पारित करते हुए
राजनीति आम आदमी को राहत देने के नाम पर सब्सिडी सिलिंडरों की संख्या बढ़ाने की मांग करती रही। अब सब्सिडी सिलिंडरों की संख्या छह के बजाय नौ कर दी गयी। लेकिन इसके बदले एक झटके साथ पेट्रोल के साथ साथ डीजल की कीमतें भी खुले बाजार के हवाले कर दी गयीं। खुले बाजार की अर्थव्यवस्था को जारी रखने के व्याकरण के मुताबिक सरकार के इस कदम का विरोध किया नहीं जा सकता।खुले बाजार की समर्थक राजनीति क्यों विरोध कर रही है, क्या हम यह सवाल अपने राजनेताओं से पूछ सकते हैं, जिन्होंने विश्वबेंक के गुलाम कारपोरेटच एजंट अर्थशास्त्रियों के कुलीन एसंवैधालिक तबके को राजकाज और नीति निरधारण का जिम्मा सौंपा हुआ है?गौरतलब है कि इस वक्त पाकिस्तान के खिलाफ युद्धोन्माद का धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद से उद्बुद्ध है सारा देश।कारपोरेट मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक इस विभाजित लहूलुहान उपमहादेश को युद्धस्थल बनाने की कवायद में यह भूल गये हैं कि पिछले युद्धों का खामियाजा अब भी भुगत रहे हैं हम। पाकिस्तान में सेना का वर्चस्व कायम होता है तो फायदे में रहेंगे दुनियाभर में युदध और गृहयुद्ध के कारोबारी। हमें क्या मिलेगा?
जो कुछ मिलेगा , उसका अंदाजा विनियंत्रण की अर्थव्यवस्था के तहत लोक कल्याणकारी राज्य, लोकतंत्र और संविधान की हत्या से उपजा एक सर्वव्यापी बाजार, जिसका हित ही सर्वोपरि होगा , बाकी कुछ भी नहीं। वह दिन भी बहुत दूर नहीं , जब बाजार हमारे निजी जीवन के फैसले करेगा , हम नहीं। खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश के तहत बंधुआ खेती की शुरुआत करके भारतीय किसानों, जो देश की बहुसंख्य जनता है, बाजार ने पहले ही अपना गुलाम बना लिया है। सत्तावर्ग को मालूम है कि पढ़े लिखे लोग गुलामी के माहौल के बिना जी ही नहीं सकते और गिनती में सिर्फ यही वर्ग है।इसलिए जनता का सफाया करके सिविल सोसाइटी के कंधे पर रखी बंदूकें इतने खुलेआम चांदमारी करने लगी है। विदेशी पूंजी के जिहाद में लगी राजनीति सिरे से गायब है, जो बची हुई राजनीति है , वह कारपोरेट वर्चस्व के आगे दुम हिला रही है।डीजल के महंगे होने का मतलब साफ है कि अब खेती, माल ढुलाई, ट्रांसपोर्ट और बिजली उत्पादन महंगा हो जाएगा। अनाज, फल-सब्जियां, यात्री भाड़ा और बिजली के दाम सीधे-सीधे बढ़ जाएंगे।मालूम हो कि इससे पहले चिदंबरम ने कहा था कि सरकार डीजल को डीकंट्रोल यानी नियंत्रण मुक्त करने में जल्दबाजी नहीं करेगी। डीजल मूल्य को नियंत्रण मुक्त करने के बारे में फैसला लेने से पहले सरकार सभी पहलुओं को देखेगी, विशेष तौर पर महंगाई की दर को। वित्त मंत्री ने कहा कि डीजल से जुड़ा मुद्दा व्यापक दायरे वाला है। कुछ लोग इसे नियंत्रण मुक्त करने की वकालत करते हैं तो कुछ का कहना है कि इससे महंगाई बढ़ेगी।वादाखिलाफी का तो खैर दस्तूर ही ठहरा।गौरतलब है कि सरकार ने बजट पर सब्सिडी बोझ कम करने के लिए वर्ष 2010 में डीजल को नियंत्रण मुक्त करने का सैद्धांतिक तौर पर फैसला किया था। मगर राजनीतिक दबाव की वजह से इसे अमल में नहीं लाया जा सका। यह निर्णय किरीट पारिख समिति की सिफारिशों पर लिया गया था।
बहरहाल आंकड़ों के चमत्कार से चीन से भी आगे विकासगाथा से देश का कायाकल्प करने में लगी सरकार ने किश्तों पर हलाल करने का काम शुरु ही कर दिया।बढ़ते बजट घाटे का रोना रोती केंद्र सरकार ने आखिरकार विष का प्याला पी लिया, डीजल के दामों को बाजार के हवाले कर दिया। डीजल अब हर महीने 45 पैसे महंगा हो जाएगा। सरकार ने इसकी इजाजत दे दी है। गुरुवार रात से ही डीजल के दामों में 45 पैसे की बढ़ोतरी हो गई है। दूसरी तरफ लोगों को राहत देते हुए तेल कंपनियों ने पेट्रोल के दामों में 25 पैसे की कमी की है। यह दर भी आधी रात से प्रभावी हो गई। वहीं रसोई गैस और मिट्टी के तेल पर सरकार ने रहम किया। रियायत वाली रसोई गैस सिलेंडरों की संख्या 6 से बढ़ाकर 9 कर दी है। बढ़ी रियायत वाली सिलेंडर 1 अप्रैल से लागू होगी। वहीं बिना रियायत वाली सिलेंडरों की कीमतों में 46.50 पैसे की बढ़ोतरी कर दी गई है।दलील तो यह है कि तेल कंपनियों को लगातार हो रहे घाटे ने सरकार को डीजल के दाम डीकंट्रोल करने का फैसला लेने पर मजबूर कर दिया है। तेल कंपनियां बाजार से कम दाम पर कुकिंग गैस, डीजल और केरोसिन सप्लाई कर रही हैं, जिससे साल 2012 में इनका घाटा 1 लाख 67 हजार 000 करोड़ रुपए पहुंच गया।डीजल के दाम पिछली बार सितंबर 2012 में 5 रुपए प्रति लीटर बढ़ाए गए थे जिससे दिल्ली में इसके दाम 47.15 प्रति लीटर पहुंच गए थे। इस दाम पर भी तेल कंपनियों को प्रति लीटर 9.28 रुपए का घाटा हो रहा था। केरोसिन के दाम तो पिछले साल जून से नहीं बढ़ाए गए हैं जो 14.79 रुपए प्रति लीटर मिल रहा है।
गौरतलब है कि आर्थिक विकास की रफ्तार के मामले में चीन की बादशाहत अब एकतरफा नहीं रहेगी। विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले वर्षो में भारत की विकास दर चीन की वृद्धि दर के काफी करीब होगी।'वैश्विक आर्थिक परिदृश्य 2013' शीर्षक से जारी बैंक की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत, चीन और ब्राजील जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में तेजी से सुधार होगा और यह ऊंची विकास दर की ओर बढ़ेंगी। विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने कहा कि वर्ष 2015 में चीन की विकास दर 7.9 फीसद रहने की उम्मीद है। वहीं भारत की विकास दर सात फीसद रह सकती है। बसु ने उम्मीद जताई कि भारत की विकास दर चीन के और करीब होगी। इसके पीछे पिछले एक या दो साल की घटनाएं नहीं बल्कि पूरा ऐतिहासिक घटनाक्रम है।कैस विकास, जब कदम कदम पर जनता का सत्यानास? किसका विकास?
अब समझ लीजिये! कैबिनेट की बैठक में अहम फैसले लिए जाने के बाद बाजार में जोश भरा है। सेंसेक्स करीब 180 अंक उछला और निफ्टी 6050 के करीब पहुंचा। हालांकि यूरोपीय बाजारों की कमजोर शुरुआत से घरेलू बाजार ऊपरी स्तरों से थोड़ा फिसले हैं।दोपहर 1:55 बजे, सेंसेक्स 132 अंक चढ़कर 19950 और निफ्टी 36 अंक चढ़कर 6038 के स्तर पर हैं। निफ्टी मिडकैप 0.25 फीसदी मजबूत है। लेकिन, छोटे शेयरों में सुस्ती छाई है। ऑयल एंड गैस शेयर 2.5 फीसजी उछले हैं। रियल्टी, तकनीकी, आईटी और सरकारी कंपनियों के शेयरों में 2-1.25 फीसदी की तेजी है। ऑटो, बैंक, एफएमसीजी शेयर 0.6-0.25 फीसदी मजबूत हैं।बढ़ते वित्तीय घाटे का हवाला देकर सरकार ने एक बार फिर महंगाई का बोझ आम जनता पर लाद दिया। लेकिन सरकार के इस फैसले का कारोबारी जगत और शेयर बाजार ने स्वागत किया है। आर्थिक जानकारों के मुताबिक इस इंजेक्शन से आम आदमी को कुछ अर्से तक तकलीफ तो होगी। लेकिन आने वाले समय में विकास की गाड़ी कुलांचे भरेगी।डीजल की कीमतों का नियंत्रण सरकारी तेल कंपनियों के हाथ जाने की खबर आते ही उनके शेयरों में जबरदस्त तेजी आ गई। बाजार ने इस फैसले का जमकर स्वागत किया। गुरुवार को कारोबार के दौरान HPCL के शेयर 19.75 रुपये, इंडियन ऑयल के शेयर 19.55 रुपये, ONGC के शेयर में 11.10 रुपये और BPCL के शेयर 14.30 रुपये की तेजी के साथ बंद हुए।आर्थिक मामलों के जानकारों का कहना है कि डीजल के दाम तेल कंपनियों के हवाले करना सरकार की मजबूरी भी थी और जरूरी भी था। उद्योग जगत ने भी सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। कारोबारियों का कहना है कि आने वाले दिनों में इस फैसले के अच्छे नतीजे सामने आएंगे।
ऑयल एंड गैस एक्सपर्ट नरेंद्र तनेजा का कहना है कि डीजल को आंशिक विनियंत्रित करने का फैसला अर्थव्यवस्था के लिए काफी अच्छा है। इससे तेल कंपनियों की अंडररिकवरी कम होने में मदद मिलेगी। इससे देश की तेल और गैस की व्यवस्था सुधर जाएगी।
ये ऑयल एंड गैस सेक्टर और उपभोक्ता के लिए भी अच्छा कदम है क्योंकि इससे एक झटके में डीजल के दाम नहीं बढ़ेंगे बल्कि अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल के दाम के आधार पर कीमतें बढ़ाई जाएंगी।
के आर चोकसी सिक्योरिटीज के देवेन चोकसी का कहना है कि डीजल के दाम तय करने का अधिकार तेल कंपनियों को मिलना काफी बढ़िया कदम है। इससे तंल कंपनियों को अपना घाटा कम करने में मदद मिलेगी।
इससे अपस्ट्रीम कंपनियों जैसे ओएनजीसी और ऑयल इंडिया को फायदा मिलेगा। डीजल की कीमतें विनियंत्रित होने से ओएनजीसी की बड़ी री रेटिंग हो सकती है।
सरकार आगे चलकर एलपीजी और केरोसिन की कीमतें भी बढ़ाएगी इस बारे में अभी कहना मुश्किल है।
अब समझ लीजिये! रिलायंस इंडस्ट्रीज लंबी अवधि के लिहाज अच्छा शेयर है। लंबी अवधि में शेयर 1050-1060 रुपये तक जा सकता है। शेयर में मौजूदा स्तरों पर खरीदारी का अच्छा मौका है। निवेशक शेयर में 800-820 रुपये के आसपास का स्टॉपलॉस लगाकर बने रहें।
अब समझ लीजिये! केंद्र सरकार ने सीडीएमए कंपनियों को दिए जाने वाले स्पेक्ट्रम के रिजर्व प्राइस में 50 फीसदी कटौती करने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट मीटिंग में यह फैसला लिया गया। दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल के मुताबिक, नए फैसले के मुकाबले, 800 मेगाहर्ट्ज बैंड में पांच मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम का रिजर्व प्राइज 9,100 करोड़ रुपए रखा जाएगा, जो पहले 18,200 करोड़ रुपए रखा था।
अब समझ लीजिये! वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने आज कहा कि सरकार कर दरों में नरमी लाने को लेकर प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि लेनदेन की लागत कम करने के लिये प्रशासन को आधुनिक बनाने तथा करदाताओं की सुविधाएं बढ़ाने के लिये काम किया जा रहा है। चिदंबरम ने कहा कि कर प्रशासन के समक्ष नई चुनौतियां हैं। इसमें कर अधिकारों का आवंटन तथा कर राजस्व बढ़ाना तथा करदाताओं को गुणवत्तापूर्ण सेवायें मुहैया कराना शामिल हैं।ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन तथा दक्षिण अफ्रीका) देशों के राजस्व विभागों के प्रमुखों को संबोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही। भारत इस समूह की अध्यक्षता कर रहा है। उन्होंने कर प्रशासन के क्षेत्र में बिक्स देशों के बीच बेहतर सहयोग की जरूरत पर भी बल दिया।
जो सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को बचाने के लिए पहल नहीं कर सकती और विनिवेश के जरिये राजस्व अर्जित करके निजी कंपनियों को राष्ट्रीय संसाधन सौंपने में हिचकती नहीं है, जो बहुसंख्यक आबादी को जल जंगल जमीन और आजीविका से बेदखली करने पर तुली हुई है, उन्हें तेल कंपनियों के हितों की इतनी परवाह क्यों?
दरअसल तेल की धार को अब सरकार ने तेल कंपनियों के हवाले कर दिया है। साफ है सरकार ने लोक कल्याणकारी राज्य का चोला उतार फेंका है। डीजल अब बार-बार महंगा होगा, क्योंकि अब डीजल के दाम सरकार तय नहीं करेगी। डीजल पर भारी भरकम सब्सिडी का रोना रोते हुए सरकार ने विष का ये प्याला पिया। सरकार की ओर से बताया गया कि पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ाने की सिफारिश केलकर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में की है, इस पर कैबिनेट ने घंटों मंथन किया। रिपोर्ट में तो डीजल की कीमत साढ़े 4 रुपये तक बढ़ाने और कुछ महीने बाद हर महीने एक एक रुपए और बढ़ाने की सलाह दी गई थी। इतना ही नहीं, जेब में आग लगाने वाली इस रिपोर्ट में तो रसोई गैस की कीमत 150 रुपये तक बढ़ाने और कुछ महीनों बाद हर महीने दस-दस रुपए बढ़ाने की वकालत तक की गई थी। केलकर कमेटी की रिपोर्ट ने मिट्टी के तेल के दाम 35 पैसे से लेकर 2 रुपये प्रति लीटर बढ़ाने की सिफारिश की गई थी।लेकिन सरकार ने बीच का रास्ता निकाला। सरकार ने तेल कंपनियों को डीजल की कीमतें हर महीने 45 पैसे प्रति लीटर बढ़ाने की इजाजत दे दी है। बताया जा रहा है कि अब ज्यादा डीजल खरीदने वालों को डीजल का बाजार भाव चुकाना पड़ेगा। हालांकि कहा जा रहा है कि ये फैसला तेल कंपनियों ने लिया है।
गौरतलब है कि सरकारी तेल कंपनियां प्रति लीटर डीजल पर करीब 10 रुपये का नुकसान भरती हैं। सब्सिडी के तौर पर इसका बोझ सरकार उठाती है। एक साल में सरकार को तेल सब्सिडी पर 1 लाख 55 हजार 313 करोड़ रुपये फूंकने पड़ रहे हैं। तेल कंपनियों की मानें तो उन्हें सालाना 94 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। इसलिए अब सरकार डीजल को घाटा फ्री करने की तैयारी में है।
सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने कहा कि हमने आम आदमी का बोझ हमेशा कम करने की कोशिश की है। लेकिन साथ ही हमने व्यापक आर्थिक अनिवार्यता को भी ध्यान में रखा। विपक्ष ने सरकार के इस कदम की आलोचना की है। इस पर नाराजगी जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस और भाजपा को इसका विरोध नहीं करना चाहिए क्योंकि सत्ता में रहते हुए उन्होंने भी कई बार ऐसे फैसले किए हैं। उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा कि तृणमूल कांग्रेस की प्रतिक्रिया जो आपने मुझे बताई, उससे मैं आश्चर्यचकित हूं। अगर मुझे ठीक से याद है तो (पश्चिम बंगाल में) तृणमूल कांग्रेस ने कोलकाता में बिजली की दरें बढ़ाई थीं। इसलिए मुझे नहीं लगता कि बिजली की दरें बढ़ाने वाली पार्टी को अध्ययन किए बिना ही विनियमन के प्रभाव के बारे में बोलना चाहिए
भाजपा ने सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडरों की संख्या छह से बढ़ाकर नौ करने के फैसले को भी दिखावा करार दिया। पार्टी प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने यहां संवाददाताओं से कहा कि हम इस फैसले की निंदा करते हैं, क्योंकि इसका महंगाई पर गंभीर असर पड़ेगा। यह जनविरोधी निर्णय है और इसलिए हम इसकी निंदा करते हैं।उन्होंने कहा कि डीजल की कीमतें बढ़ाने का सरकार का फैसला पिछले दरवाजे से दरें बढ़ाने का प्रयास है। पार्टी ने मांग की है कि सरकार को इस तरह का कदम उठाने से पहले तेल क्षेत्र में जरूरी सुधार करने चाहिए।पार्टी ने कहा कि डीजल के मूल्य बढ़ाने के लिए समय सही नहीं है क्योंकि देश में लोग पहले ही महंगाई से जूझ रहे हैं। जावड़ेकर ने कहा कि इस वक्त यह बढ़ोत्तरी पूरी तरह अनुचित है।
एलपीजी सिलेंडरों की संख्या छह से बढ़ाकर नौ करने के फैसले पर भाजपा ने मांग की है कि राशनिंग को पूरी तरह समाप्त किया जाए और लोगों को जरूरत के अनुसार सिलेंडर लेने की छूट होनी चाहिए।
माकपा महासचिव प्रकाश करात ने आज यहां कहा कि डीजल के दाम नियंत्रणमुक्त करने से आम आदमी पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
करात ने कहा कि आम आदमी पहले ही रोजमर्रा की चीजों के दाम बढ़ने से मुश्किल में है। डीजल के दाम नियंत्रणमुक्त करने से उन पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा। भाकपा के सचिव डी राजा ने कहा कि सरकार की दलील है कि यह फैसला वित्तीय घाटे को कम करने के लिए किया गया है। इस दलील को स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि घाटा अर्थव्यवस्था को लेकर सरकार के कुप्रबंधन के कारण हुआ है।
सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडरों की संख्या साल में नौ करने को अपर्याप्त बताते हुए तृणमूल कांग्रेस ने आज संप्रग सरकार पर अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया। तृणमूल के राज्यसभा सदस्य डेरेक ओब्रायन ने कहा कि एक साल में सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडरों की संख्या 6 से बढ़ाकर 9 करना काफी नहीं है। हम एक आम परिवार में 18 से 24 सिलेंडर देने की मांग कर रहे हैं।
नए बैंकिंग लाइसेंस अप्रैल से: वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार सरकार बैंकिंग सुधार को जल्द लागू करना चाहती है। इसके लिए उसने रिजर्व बैंक को नए बैंक स्थापित करने के लिए दिशा-निर्देश जनवरी के अंत जारी करने को कहा है ताकि बजट की घोषणा के पूर्व दिशा-निर्देश जारी कर दिए जाएं। नए बैंक लाइसेंस देने की प्रक्रिया अप्रैल से शुरू हो सके।
वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के अनुसार नए बैंक लाइसेंस से संबंधित जो भी सुझाव वित्त मंत्रालय के पास आये थे, उसे हमने रिजर्व बैंक को भेज दिया। अब रिजर्व बैंक को इनको ध्यान में रखते हुए दिशा-निर्देश जारी करना है। सूत्रों के अनुसार रिजर्व बैंक इस माह के अंत तक दिशा-निर्देश जारी कर सकता है। ऐसा होने पर ही इस पर सहमति बनाकर अगले वित्त वर्ष के आरंभ यानी अप्रैल से इसे लागू करने में सुविधा होगी।
डीटीसी को लागू को तैयारी: पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा की संसदीय स्थाई समिति ने डीटीसी पर अंतिम रिपोर्ट में फरवरी के पहले हफ्ते में दी थी। यही कारण है कि बजट से पूर्व इस पर कोई फैसला नहीं हो सका। मगर इस बार वित्त मंत्री चिदंबरम इसको अगले वित्त वर्ष से लागू करने की तैयारी में हैं। इसमें डिमांड के मुताबिक इसमें कुछ संशोधन किये गए। पर साथ में कुछ बातों पर विपक्षी पार्टियों को मनाया जा रह है। यह तर्क दिया जा रहा है कि अगर बात नहीं तर्कसंगत नहीं लगी तो बाद में इसमें बदलाव कर लिया जाएगा।
खाद्य तेलों में तेजी के आसार
खाद्य तेलों के आयात को महंगा करने के सरकार के ताजा फैसले से खाद्य वस्तुओं में मंहगाई को पलीता लगने की आशंका बढ़ गई है। घरेलू किसानों के हितों को संरक्षण देने के नाम पर कच्चे खाद्य तेलों के आयात पर ढाई फीसद का शुल्क लगा दिया गया है। इससे पहले से ही तेजी में चल रहे खाद्य तेल के भाव और भड़क सकते हैं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति [सीसीईए] ने कच्चा खाद्य तेल के आयात पर 2.5 फीसद शुल्क लगाने का एलान किया है। रिफाइंड पाम ऑयल पर पहले ही 7.5 फीसद का आयात शुल्क लगा हुआ है। सरकार का मानना है कि महंगाई के बढ़ने की आशंका के मद्देनजर ही रिफाइंड ऑयल पर लगने वाले शुल्क में कोई वृद्धि नहीं की गई है।
कृषि मंत्रालय ने खाद्य तेलों के आयात शुल्क में वृद्धि के साथ शुल्क मूल्य निर्धारण की व्यवस्था को बदल दिया है। टैरिफ वैल्यू प्रणाली में चुपचाप हुई तब्दीली के चलते खाद्य तेल और महंगे हो जाएंगे। खाद्य तेलों के आयात पर सीमा शुल्क अधिनियम 1962 के तहत निर्धारित टैरिफ वैल्यू व्यवस्था शुरू की गई थी। खाद्य तेलों का आयात शुल्क उसी के तहत वर्ष 2006 के भाव 447 डॉलर प्रति टन के हिसाब से वसूला जाता है। लेकिन अब इसमें तब्दीली कर दी गई है। सरकार अब मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर आयात शुल्क की गणना करेगी।
पहले जहां 447 डॉलर प्रति टन के टैरिफ वैल्यू पर कच्चा पाम ऑयल आयात होता था। अब इसे वर्तमान में 790 डॉलर प्रति टन पर माना जाएगा। यानी ढाई फीसद के आयात शुल्क के साथ टैरिफ वैल्यू के अंतर का भुगतान भी करना होगा। शुल्क की गणना के हिसाब से प्रति किलो खाद्य तेल में सवा रुपये प्रति किलो की तेजी आनी तय है।
देश में खाद्य तेलों की कुल खपत का 50 फीसद आयात से पूरा होता है। बीते 2011-12 तेल वर्ष [नवंबर से अक्टूबर] में सर्वाधिक 1.02 करोड़ टन खाद्य तेल का आयात किया गया था। चालू वर्ष के पहले दो महीने में ही इसका पांच फीसद खाद्य तेल आयात हो चुका है।
सूत्रों के अनुसार कृषि मंत्रालय ने कच्चे खाद्य तेल के आयात पर 7.5 और रिफाइंड ऑयल पर 15 फीसद शुल्क का प्रस्ताव किया था। इसके लिए पिछले सप्ताह कृषि, वित्त और खाद्य मंत्रियों की बैठक में खाद्य तेल आयात पर लंबी चर्चा हुई थी। लेकिन बैठक में शुल्क वृद्धि के प्रस्तावों पर वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने महंगाई बढ़ने की आशंका जताई थी।
'67 प्रतिशत आबादी को प्रति व्यक्ति मिले 5 किलो सस्ता अनाज'
संसद की स्थायी समिति ने खाद्य सुरक्षा विधेयक में 67 प्रतिशत आबादी को हर महीने प्रति व्यक्ति पांच किलो अनाज सस्ते दाम पर उपलब्ध कराने का कानूनी प्रावधान करने का सुझाव दिया है। देश की बड़ी आबादी को कानूनन खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराना केन्द्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है। लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को सौंपी गई इस रिपोर्ट में लाभार्थियों को तीन रुपए किलो चावल, दो रुपए किलो गेहूं और एक रुपए किलो मोटा अनाज दिए जाने की सिफारिश की गई है।
खाद्य, उपभोक्ता मामले और सार्वजनिक वितरण मामले पर बनी संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष विलास मुत्तेमवार ने यहां संवाददाताओं को बताया, `हमने सुझाव दिया है कि लाभार्थियों की एकमात्र श्रेणी होनी चाहिए और प्रतिमाह पांच किग्रा प्रति व्यक्ति के हिसाब से खाद्यान्न मिलना चाहिए। इस संसदीय समिति का सुझाव सरकार के खाद्य विधेयक के उस प्रावधान के खिलाफ है जिसमें लाभार्थियों को दो श्रेणी प्राथमिक परिवार और सामान्य परिवार में बांटा गया है। इस विधेयक को लोकसभा में दिसंबर 2011 में पेश किया गया था।
उन्होंने कहा कि रिपोर्ट को माकपा के एक सदस्य टीएन सीमा के एक असहमति पत्र के साथ सर्वसम्मति से अपनाया गया है। मुत्तेमवार ने कहा कि समिति, विधेयक के ग्रामीण आबादी के 75 प्रतिशत लोगों और शहरी आबादी के 50 प्रतिशत लोगों को दायरे में लेने के प्रावधान पर सहमत थी। संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी की महत्वाकांक्षी परियोजना माने जाने वाले खाद्य विधेयक के तहत सरकार ने प्रस्ताव किया था कि प्राथमिक घरानों को सात किग्रा चावल और गेहूं प्रति माह प्रति व्यक्ति क्रमश: तीन रुपए और दो रुपए की दर से मिलना चाहिए।
इसमें कहा गया था कि साधारण परिवारों को कम से कम तीन किग्रा खाद्यान्न न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के 50 प्रतिशत की दर पर मिलना चाहिए। मुत्तेमवार ने कहा, `हमने सरकार से गर्भवती महिला तथा बच्चे के जन्म के बाद दो वर्ष के लिए प्रति माह पांच किग्रा अतिरिक्त खाद्यान्न देने को कहा है।` खाद्यान्न की मात्रा को सात से घटाकर पांच किग्रा करने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, `समिति ने पाया कि मौजूदा उत्पादन और खरीद की प्रवृति को देखते हुए सात अथवा 11 किग्रा की अहर्ता व्यावहारिक नहीं होगी।`
उन्होंने कहा कि प्रति व्यक्ति प्रति माह पांच किग्रा की अर्हता के कारण सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए 4.88 करोड़ टन और बाकी कल्याणकारी योजनाओं के लिए 80 लाख टन खाद्यान्न की आवश्यकता होगी। इतनी मात्रा का प्रबंध किया जा सकता है।
दिल्ली मेट्रो में यात्रा करना हो सकता है महंगा
दिल्ली मेट्रो में पांच महीने बाद यात्रा करना महंगा हो सकता है, क्योंकि सरकार द्वारा किराया तय करने के लिए बनाई गयी समिति इस दौरान यात्री किराया बढ़ाने को लेकर अपनी सिफारिशें दे सकती है।दिल्ली मेट्रो के प्रबंध निदेशक मंगू सिंह ने गुरुवार को कहा कि यह स्वतंत्र समिति जमीनी हालात का विस्तार से अध्ययन करने के बाद अपनी सिफारिशें देगी।
केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय द्वारा गठित समिति अगर किराये में बढ़ोत्तरी की सिफारिश करती है तो दिल्ली मेट्रो को इसे लागू करना होगा। मंगू सिंह ने यहां मेट्रो संग्रहालय के एक कार्यक्रम से इतर संवाददाताओं से कहा कि किराया तय करने के लिए समिति का गठन हुआ है। वे चार से पांच महीने में अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट देंगे। वे स्वतंत्र रूप से काम करेंगे और जरूरत के अनुसार समय लेंगे।
दिल्ली मेट्रो का किराया पिछली बार 2009 में बढ़ाया गया था और तब से कोई वृद्धि नहीं की गयी है। दिल्ली मेट्रो रेलवे कानून, 2002 के अनुसार केंद्र सरकार समय समय पर समिति का गठन कर सकती है जो किरायों को लेकर सिफारिशें दे सकती है।
मंगू सिंह ने रात 12 बजे के बाद मेट्रो ट्रेनें चलाने की संभावना को खारिज करते हुए कहा कि इस समय यात्रियों की तरफ से इस तरह की कोई मांग नहीं है। उन्होंने कहा कि एक तरह से हम रात 12 बजे तक ट्रेनें चला रहे है और सुबह 5 बजे से कुछ देर पहले ही सेवाएं शुरू हो जाती हैं। इसलिए मुझे 12 बजे के बाद ट्रेनें चलाने की कोई जरूरत नहीं लगती। रात को चलने वाली आखिरी ट्रेनों में मुश्किल से ही कुछ यात्री होते हैं।
डीएमआरसी प्रमुख ने यह भी कहा कि दिल्ली मेट्रो इस बारे में पता लगाने के लिए कवायद कर रही है कि उसके स्टेशनों के बाहर प्रकाश व्यवस्था ठीक है या नहीं ताकि महिलाओं समेत यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि सीआईएसएफ ने मेट्रो स्टेशन परिसरों में महिला कांस्टेबलों की संख्या बढ़ाई है।
एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस कॉरिडोर के संबंध में पूछे गये सवाल पर सिंह ने कहा कि मेट्रो रेल सुरक्षा आयुक्त की ओर से अनिवार्य हरी क्षंडी मिलने के बाद इस लाइन पर सेवा बहाल की जाएगी।
71,000 कर्मचारियों की छंटनी
नोकिया ने गुरुवार को कहा कि वह अपना आईटी का काम भारतीय प्रौद्योगिकी कंपनियों टीसीएस और एचसीएल टेक्नॉलजीज से करवाएगी। इस पहल के बाद मद्देनजर फिनलैंड की कंपनी करीब 300 कर्मचारियों की छंटनी करेगी।नोकिया ने एक बयान में कहा कि कंपनी ने इस प्रक्रिया के तहत अपना कुछ काम और करीब 820 कर्मचारी एचसीएल टेक और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज को सौंपने की योजना बनाई है। हालांकि इस सौदे के वित्तीय ब्यौरे की जानकारी नहीं दी गई।
आर्थिक मंदी ने खतरे की एक और घंटी बजा दी है। लागत घटाने के चक्कर में एचपी और नोकिया सहित दर्जनभर से अधिक कंपनियों ने इस साल अभी तक 71,000 कर्मचारियों की छंटनी की घोषणा की है। विभिन्न क्षेत्र की कंपनियों द्वारा छटनी की ये घोषणाएं 2012 के पहले छह महीनों के दौरान की गईं। इनमें आईटी कंपनियों के कर्मचारी सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। जिन कंपनियों ने व्यापक छटनी की पुष्टि की है, उनमें एचपी, नोकिया, सोनी कॉर्प, याहू, पेप्सिको, रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड और लुफ्तांसा प्रमुख हैं।
इनके अलावा कैमरा कंपनी ओलंपस, बॉल बियरिंग बनाने वाली एसकेएफ, दवा कंपनी नोवार्टिस, यूनिलीवर, कंप्यूटर माउस बनाने वाली लॉजिटेक इंटरनैशनल, एलएम विंड पावर और मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटर वेरिजोन वायरलेस ने भी बड़े पैमाने में कर्मचारियों की छंटनी करने की घोषणा की है। कुल मिलाकर इन कंपनियों ने दुनियाभर में 71 हजार नौकरियां खत्म करने की घोषणा की है। इसमें आधे से अधिक कर्मचारियों की छंटनी की घोषणा अकेले मई में की गई।
फ्लाईओवर बनाने, इन्फ्रास्ट्रक्चर योजनाओं पर अमल करने और लो फ्लोर बसें लाने की रफ्तार तेज
जवाहरलाल नेहरू समेत शहरी नवीकरण मिशन योजना (जेएनएनयूआरएम) के तहत आने वाले शहरों में और फ्लाईओवर बनाने, इन्फ्रास्ट्रक्चर योजनाओं पर अमल करने और लो फ्लोर बसें लाने की रफ्तार तेज हो सकती है। आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमिटी ने गुरुवार को जेएनएनयूआरएम के तहत नई योजनाओं को मार्च 2014 तक मंजूर करने की इजाजत दे दी है। इस फैसले का असर यह होगा कि अब शहर नए प्रोजेक्ट ला सकेंगे। दरअसल, 2005 में केंद्र सरकार ने जेएनएनयूआरएम की शुरुआत की थी। यह योजना सात वर्ष के लिए थी और पिछले ही साल खत्म हुई है। लेकिन पिछले साल सरकार ने इस योजना के तहत चल रहे प्रोजेक्ट्स के लिए दो साल की अवधि बढ़ा दी थी। हालांकि शहरी विकास मंत्रालय ने जेएनएनयूआरएम के सेकेंड फेज का भी प्रस्ताव तैयार कर लिया था, लेकिन अब तक कैबिनेट ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया है। यह माना जा रहा था कि अब शहरों के लिए इस योजना के तहत नए प्रोजेक्ट शुरू नहीं होंगे। लेकिन अब इस फैसले के बाद इन परियोजनाओं की संख्या बढ़ सकती है।
आधारभूत ढांचा क्षेत्र की प्रमुख कंपनी जीएमआर और जीवीके पूंजी जुटाने की असमर्थता की वजह से बड़ी सड़क परियोजनाओं से बाहर निकल रही हैं। यह बात यह बात भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने आज कही। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्रधिकरण ने इन फैसलों के पीछे पर्यावरण मंजूरी में विलम्ब या नियामकीय बाधाओं के कंपनियों के तर्क को महत्व नहीं दिया है। प्राधिकरण के प्रमुख प्रमुख आर पी सिंह ने कहा, ' मूल रूप से हमारे विचार से ये दोनों कंपनियां अर्थिक हालात में बदलाव और लागत में वृद्धि के कारण दो परियोजनाओं से निकल रही हैं।'
शहरी विकास मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि अब कैबिनेट कमिटी ने जेएनएनयूआरएम के तहत नए प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए भी डेडलाइन 31 मार्च 2014 तक बढ़ा दी है। ऐसे में अब राज्य सरकारें नए प्रोजेक्ट के लिए डीपीआर भेज सकेंगी। महत्वपूर्ण है कि इन परियोजनाओं में फ्लाईओवर से लेकर शहरी बसों और साफ-सफाई से संबंधित परियोजनाएं भी हैं। कैबिनेट कमिटी के इस फैसले का फायदा दिल्ली जैसे शहरों को भी मिल सकेगा।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
तेल की धार को अब सरकार ने तेल कंपनियों के हवाले!आंकड़ों के चमत्कार से चीन से भी आगे विकासगाथा से देश का कायाकल्प करने में लगी सरकार ने किश्तों पर हलाल करने का काम शुरु ही कर दिया! सरकार ने सुधार से जुड़े कदमों के क्रम में डीजल की कीमत को नियंत्रण मुक्त करते हुए इसकी कीमत में प्रति लीटर 51 पैसे तक बढ़ोतरी कर दी और इसी तरह की वृद्धि मासिक तौर पर आगे भी जारी रहेगी। सरकारी ऑयल मार्केटिंग कंपनियों- बीपीसीएल, एचपीसीएल और इंडियन ऑयल को सरकार ने डीजल कीमतों में मामूली बढ़ोतरी करने की छूट दी है।डीजल कीमतें कितनी और कब बढ़ेंगी इसका फैसला भी कंपनियां ही लेंगी।सरकार के इस फैसले से अब डीजल के दाम में आने वाले समय में बढ़ोतरी होती रहेगी। इससे महंगाई दर पर भी असर पड़ सकता है। सरकार ने थोक में डीजल का इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ताओं को अब बाजार मूल्य पर डीजल देने का फैसला किया है। इससे उनके लिए एक ही झटके में डीजल का दाम करीब 11 रुपये बढ़ जाएगा। अन्य उपभोक्ताओं के लिए डीजल के दाम हर महीने 40 से 50 पैसे लीटर बढ़ाए जाएंगे। केंद्रीय कैबिनेट के गुरुवार सुबह सब्सिडी वाले घरेलू गैस सिलिंडर का सालाना कोटा 6 से बढ़ाकर 9 करने से आम आदमी को मिली थोड़ी राहत को रात होते-होते 'दोनों हाथों' से छीन लिया गया।तेल कंपनियों ने डीजल के दाम में 45 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी की, वहीं बिना सब्सिडी वाले सिलिंडर का दाम 46.50 रुपये बढ़ा दिया। बड़े ग्राहकों के लिए डीजल के दाम में 9.25 रुपये की बढ़ोतरी की गई है। उधर, पेट्रोल के दाम में 25 पैसे की कमी की गई है। बढ़ी हुई कीमतें गुरुवार आधी रात से लागू होंगी। अब सब्सिडी वाले सिलिंडर का कोटा बढ़ने से इस साल मार्च तक आम आदमी कुल 5 सब्सिडी वाले सिलिंडर ले सकेगा। अगले फाइनैंशल इयर 2013-2014 में 1 अप्रैल से 31 मार्च तक लोग 9 सब्सिडी वाले सिलिंडर ले सकेंगे। एलपीजी सिलिंडर का ओपन मार्केट में 895.50 रुपये दाम है। अब इसके लिए 46 रुपये ज्यादा देने होंगे।भारतीय जनता पार्टी सहित देश के कई विपक्षी दलों ने गुरुवार को तेल विपणन कंपनियों को डीजल के दाम बढ़ाने की अनुमति देने के सरकार के फैसले की आलोचना करते हुए कहा है कि इससे महंगाई बढ़ जाएगी।
सरकार के आक्रामक तेवर साफ हैं। कारपोरेट दबाव में विपक्ष भी झख मारकर सहयोग करने को मजबूर है।गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) पर राज्यों की सहमति न बनने से वित्त मंत्री पी. चिदंबरम परेशान हैं। वह चाहते थे कि बजट से पहले इस पर सहमति बन जाए और इसकी घोषणा बजट भाषण में कर दें मगर लग रहा है कि ऐसा होना मुश्किल है। बुधवार को चिदंबरम की राज्यों के वित्त मंत्रियों के साथ बैठक में जिस तरह से मांगों का ढेर लगा और जीएसटी लागू होने पर बार-बार घाटे की बात कही गई, उस पर चिदंबरम अपनी प्रतिक्रिया जाहिर न कर पाए। चिदंबरम ने साफ तौर पर राज्यों से कह दिया है कि अब समय आ गया है कि घाटे के मामले को खत्म कर दिया जाए। इसे ज्यादा लंबा न खींचा जाए। मतभेद को अगर समय सीमा के भीतर सुलझा लिया जाए तो बेहतर होता है।जब कुछ राज्यों ने केंद्र को इस बात के लिए कोसा कि वह राज्यों की वित्तीय स्थिति को नजरअंदाज कर रही है। इस पर चिदंबरम ने राज्यों को दो टूक कहा कि राज्यों को भी केंद्र की वित्तीय हालत को समझना चाहिए। केंद्र बार-बार कह चुका है कि जीएसटी के मामले में वह राज्यों की मांग पर विचार करने को तैयार है मगर मांगों को कितना पूरा कर पाएंगे, यह केंद्र की वित्तीय हालात पर निर्भर है।सूत्रों के अनुसार बैठक खत्म होने से एकदम पहले चिदंबरम ने राज्यों के वित्तीय मंत्रियों से कहा, अगर राज्यों में जीएसटी के मुद्दे पर आम सहमति बन जाती है तो वह इस संबंध में संविधान संशोधन की रूपरेखा का जिक्र अपने बजट भाषण में ही कर देंगे वरना बजट में इसे शामिल नहीं करेंगे। संविधान (संशोधन) विधेयक, 2011 को संसद में पेश किया जा चुका है और इस समय संसद की वित्त समिति के विचाराधीन है।गौरतलब है कि मुआवजे के लिए बनी समिति और जीएसटी प्रारूप समिति अपनी रिपोर्ट 31 जनवरी तक केंद्र को सौंप देंगी। सूत्रों के अनुसार बैठक में यह बात भी उठी कि जीएसटी को वैट की तरह लागू किया जाए। राज्यों को इसे लागू करने या न लागू करने या जब चाहे लागू करने की छूट दी जाए। इस पर भी कई राज्यों ने आपत्ति जताई। उनका कहना था कि ऐसा करना तर्कसंगत नहीं होगा। डीजल के दामों में वृद्धि को लेकर आलोचना का निशाना बन रही सरकार ने गुरुवार को सफाई दी कि राजस्व उगाहने और जनता के हितों की रक्षा के लिए संतुलन बनाने की यह कोशिश बहुत ही मुश्किल थी। इसके साथ ही सरकार ने डीजल के दामों में वृद्धि के राजनीतिक दलों द्वारा किए जा रहे विरोध पर सवाल उठाते हुए कहा कि उन्होंने (विपक्ष ने) भी अतीत में ऐसे फैसले किए थे।
सरकार ने क्रूड एडिबल ऑयल के आयात को महंगा कर दिया है। आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने खाने के कच्चे तेल के आयात पर 2.5 फीसदी की ड्यूटी लगाने का फैसला किया है। हालांकि रिफाइंड तेल के आयात पर लगने वाले 7.5 फीसदी की ड्यूटी में कोई बदलाव नहीं किया गया है।खाने के कच्चे तेल के आयात पर कोई ड्यूटी नहीं लगती थी। लेकिन, इंडस्ट्री और कृषि मंत्रालय की मांग पर सरकार को ये फैसला लेना पड़ा है। कृषि मंत्रालय की ओर से खाने के कच्चे तेल पर 7.5 फीसदी और रिफाइंड तेल पर 15 फीसदी ड्यूटी लगाने की मांग थी।कृषि मंत्रालय की दलील थी कि क्रूड एडिबल ऑयल का आयात बढ़ने से घरेलू इंडस्ट्री और तिलहन किसानों का नुकसान हो रहा है। वित्त मंत्रालय ने महंगाई बढ़ने का हवाला देते हुए रिफाइंड तेल के इंपोर्ट पर ड्यूटी बढ़ाने से इनकार कर दिया है। देश में पूरी खपत का करीब 50 फीसदी खाने का तेल इंपोर्ट करना पड़ता है।
जनता की आंखों में धूल झोंकने की कला भारतीय सत्तावर्ग से कोई सीखें। आम लोगों को गधा बनाकर पहले रसोई गैस के सिलिंडरों पर सब्सिडी की सीमा तय कर दी गयी। यह सीमा किस खुशी में लागू की गयी और इसका औचित्य क्या है, इसपर सवाल उठाये बगैर, सब्सिडी खत्म करके अबाध पूंजी प्रवाह के लिए एक के बाद एक कदम का विरोध के बजाय सुधारों के नाम जनविरोधी कारपोरेट नीति निर्धारण में सर्वदलीय सहमति के तहत सारे के सारे वित्तीय विधेयक और संविधान संशोधन तक अल्पमत सरकार के समर्थन में पारित करते हुए
राजनीति आम आदमी को राहत देने के नाम पर सब्सिडी सिलिंडरों की संख्या बढ़ाने की मांग करती रही। अब सब्सिडी सिलिंडरों की संख्या छह के बजाय नौ कर दी गयी। लेकिन इसके बदले एक झटके साथ पेट्रोल के साथ साथ डीजल की कीमतें भी खुले बाजार के हवाले कर दी गयीं। खुले बाजार की अर्थव्यवस्था को जारी रखने के व्याकरण के मुताबिक सरकार के इस कदम का विरोध किया नहीं जा सकता।खुले बाजार की समर्थक राजनीति क्यों विरोध कर रही है, क्या हम यह सवाल अपने राजनेताओं से पूछ सकते हैं, जिन्होंने विश्वबेंक के गुलाम कारपोरेटच एजंट अर्थशास्त्रियों के कुलीन एसंवैधालिक तबके को राजकाज और नीति निरधारण का जिम्मा सौंपा हुआ है?गौरतलब है कि इस वक्त पाकिस्तान के खिलाफ युद्धोन्माद का धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद से उद्बुद्ध है सारा देश।कारपोरेट मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक इस विभाजित लहूलुहान उपमहादेश को युद्धस्थल बनाने की कवायद में यह भूल गये हैं कि पिछले युद्धों का खामियाजा अब भी भुगत रहे हैं हम। पाकिस्तान में सेना का वर्चस्व कायम होता है तो फायदे में रहेंगे दुनियाभर में युदध और गृहयुद्ध के कारोबारी। हमें क्या मिलेगा?
जो कुछ मिलेगा , उसका अंदाजा विनियंत्रण की अर्थव्यवस्था के तहत लोक कल्याणकारी राज्य, लोकतंत्र और संविधान की हत्या से उपजा एक सर्वव्यापी बाजार, जिसका हित ही सर्वोपरि होगा , बाकी कुछ भी नहीं। वह दिन भी बहुत दूर नहीं , जब बाजार हमारे निजी जीवन के फैसले करेगा , हम नहीं। खुदरा कारोबार में विदेशी निवेश के तहत बंधुआ खेती की शुरुआत करके भारतीय किसानों, जो देश की बहुसंख्य जनता है, बाजार ने पहले ही अपना गुलाम बना लिया है। सत्तावर्ग को मालूम है कि पढ़े लिखे लोग गुलामी के माहौल के बिना जी ही नहीं सकते और गिनती में सिर्फ यही वर्ग है।इसलिए जनता का सफाया करके सिविल सोसाइटी के कंधे पर रखी बंदूकें इतने खुलेआम चांदमारी करने लगी है। विदेशी पूंजी के जिहाद में लगी राजनीति सिरे से गायब है, जो बची हुई राजनीति है , वह कारपोरेट वर्चस्व के आगे दुम हिला रही है।डीजल के महंगे होने का मतलब साफ है कि अब खेती, माल ढुलाई, ट्रांसपोर्ट और बिजली उत्पादन महंगा हो जाएगा। अनाज, फल-सब्जियां, यात्री भाड़ा और बिजली के दाम सीधे-सीधे बढ़ जाएंगे।मालूम हो कि इससे पहले चिदंबरम ने कहा था कि सरकार डीजल को डीकंट्रोल यानी नियंत्रण मुक्त करने में जल्दबाजी नहीं करेगी। डीजल मूल्य को नियंत्रण मुक्त करने के बारे में फैसला लेने से पहले सरकार सभी पहलुओं को देखेगी, विशेष तौर पर महंगाई की दर को। वित्त मंत्री ने कहा कि डीजल से जुड़ा मुद्दा व्यापक दायरे वाला है। कुछ लोग इसे नियंत्रण मुक्त करने की वकालत करते हैं तो कुछ का कहना है कि इससे महंगाई बढ़ेगी।वादाखिलाफी का तो खैर दस्तूर ही ठहरा।गौरतलब है कि सरकार ने बजट पर सब्सिडी बोझ कम करने के लिए वर्ष 2010 में डीजल को नियंत्रण मुक्त करने का सैद्धांतिक तौर पर फैसला किया था। मगर राजनीतिक दबाव की वजह से इसे अमल में नहीं लाया जा सका। यह निर्णय किरीट पारिख समिति की सिफारिशों पर लिया गया था।
बहरहाल आंकड़ों के चमत्कार से चीन से भी आगे विकासगाथा से देश का कायाकल्प करने में लगी सरकार ने किश्तों पर हलाल करने का काम शुरु ही कर दिया।बढ़ते बजट घाटे का रोना रोती केंद्र सरकार ने आखिरकार विष का प्याला पी लिया, डीजल के दामों को बाजार के हवाले कर दिया। डीजल अब हर महीने 45 पैसे महंगा हो जाएगा। सरकार ने इसकी इजाजत दे दी है। गुरुवार रात से ही डीजल के दामों में 45 पैसे की बढ़ोतरी हो गई है। दूसरी तरफ लोगों को राहत देते हुए तेल कंपनियों ने पेट्रोल के दामों में 25 पैसे की कमी की है। यह दर भी आधी रात से प्रभावी हो गई। वहीं रसोई गैस और मिट्टी के तेल पर सरकार ने रहम किया। रियायत वाली रसोई गैस सिलेंडरों की संख्या 6 से बढ़ाकर 9 कर दी है। बढ़ी रियायत वाली सिलेंडर 1 अप्रैल से लागू होगी। वहीं बिना रियायत वाली सिलेंडरों की कीमतों में 46.50 पैसे की बढ़ोतरी कर दी गई है।दलील तो यह है कि तेल कंपनियों को लगातार हो रहे घाटे ने सरकार को डीजल के दाम डीकंट्रोल करने का फैसला लेने पर मजबूर कर दिया है। तेल कंपनियां बाजार से कम दाम पर कुकिंग गैस, डीजल और केरोसिन सप्लाई कर रही हैं, जिससे साल 2012 में इनका घाटा 1 लाख 67 हजार 000 करोड़ रुपए पहुंच गया।डीजल के दाम पिछली बार सितंबर 2012 में 5 रुपए प्रति लीटर बढ़ाए गए थे जिससे दिल्ली में इसके दाम 47.15 प्रति लीटर पहुंच गए थे। इस दाम पर भी तेल कंपनियों को प्रति लीटर 9.28 रुपए का घाटा हो रहा था। केरोसिन के दाम तो पिछले साल जून से नहीं बढ़ाए गए हैं जो 14.79 रुपए प्रति लीटर मिल रहा है।
गौरतलब है कि आर्थिक विकास की रफ्तार के मामले में चीन की बादशाहत अब एकतरफा नहीं रहेगी। विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले वर्षो में भारत की विकास दर चीन की वृद्धि दर के काफी करीब होगी।'वैश्विक आर्थिक परिदृश्य 2013' शीर्षक से जारी बैंक की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत, चीन और ब्राजील जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं में तेजी से सुधार होगा और यह ऊंची विकास दर की ओर बढ़ेंगी। विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक बसु ने कहा कि वर्ष 2015 में चीन की विकास दर 7.9 फीसद रहने की उम्मीद है। वहीं भारत की विकास दर सात फीसद रह सकती है। बसु ने उम्मीद जताई कि भारत की विकास दर चीन के और करीब होगी। इसके पीछे पिछले एक या दो साल की घटनाएं नहीं बल्कि पूरा ऐतिहासिक घटनाक्रम है।कैस विकास, जब कदम कदम पर जनता का सत्यानास? किसका विकास?
अब समझ लीजिये! कैबिनेट की बैठक में अहम फैसले लिए जाने के बाद बाजार में जोश भरा है। सेंसेक्स करीब 180 अंक उछला और निफ्टी 6050 के करीब पहुंचा। हालांकि यूरोपीय बाजारों की कमजोर शुरुआत से घरेलू बाजार ऊपरी स्तरों से थोड़ा फिसले हैं।दोपहर 1:55 बजे, सेंसेक्स 132 अंक चढ़कर 19950 और निफ्टी 36 अंक चढ़कर 6038 के स्तर पर हैं। निफ्टी मिडकैप 0.25 फीसदी मजबूत है। लेकिन, छोटे शेयरों में सुस्ती छाई है। ऑयल एंड गैस शेयर 2.5 फीसजी उछले हैं। रियल्टी, तकनीकी, आईटी और सरकारी कंपनियों के शेयरों में 2-1.25 फीसदी की तेजी है। ऑटो, बैंक, एफएमसीजी शेयर 0.6-0.25 फीसदी मजबूत हैं।बढ़ते वित्तीय घाटे का हवाला देकर सरकार ने एक बार फिर महंगाई का बोझ आम जनता पर लाद दिया। लेकिन सरकार के इस फैसले का कारोबारी जगत और शेयर बाजार ने स्वागत किया है। आर्थिक जानकारों के मुताबिक इस इंजेक्शन से आम आदमी को कुछ अर्से तक तकलीफ तो होगी। लेकिन आने वाले समय में विकास की गाड़ी कुलांचे भरेगी।डीजल की कीमतों का नियंत्रण सरकारी तेल कंपनियों के हाथ जाने की खबर आते ही उनके शेयरों में जबरदस्त तेजी आ गई। बाजार ने इस फैसले का जमकर स्वागत किया। गुरुवार को कारोबार के दौरान HPCL के शेयर 19.75 रुपये, इंडियन ऑयल के शेयर 19.55 रुपये, ONGC के शेयर में 11.10 रुपये और BPCL के शेयर 14.30 रुपये की तेजी के साथ बंद हुए।आर्थिक मामलों के जानकारों का कहना है कि डीजल के दाम तेल कंपनियों के हवाले करना सरकार की मजबूरी भी थी और जरूरी भी था। उद्योग जगत ने भी सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है। कारोबारियों का कहना है कि आने वाले दिनों में इस फैसले के अच्छे नतीजे सामने आएंगे।
ऑयल एंड गैस एक्सपर्ट नरेंद्र तनेजा का कहना है कि डीजल को आंशिक विनियंत्रित करने का फैसला अर्थव्यवस्था के लिए काफी अच्छा है। इससे तेल कंपनियों की अंडररिकवरी कम होने में मदद मिलेगी। इससे देश की तेल और गैस की व्यवस्था सुधर जाएगी।
ये ऑयल एंड गैस सेक्टर और उपभोक्ता के लिए भी अच्छा कदम है क्योंकि इससे एक झटके में डीजल के दाम नहीं बढ़ेंगे बल्कि अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल के दाम के आधार पर कीमतें बढ़ाई जाएंगी।
के आर चोकसी सिक्योरिटीज के देवेन चोकसी का कहना है कि डीजल के दाम तय करने का अधिकार तेल कंपनियों को मिलना काफी बढ़िया कदम है। इससे तंल कंपनियों को अपना घाटा कम करने में मदद मिलेगी।
इससे अपस्ट्रीम कंपनियों जैसे ओएनजीसी और ऑयल इंडिया को फायदा मिलेगा। डीजल की कीमतें विनियंत्रित होने से ओएनजीसी की बड़ी री रेटिंग हो सकती है।
सरकार आगे चलकर एलपीजी और केरोसिन की कीमतें भी बढ़ाएगी इस बारे में अभी कहना मुश्किल है।
अब समझ लीजिये! रिलायंस इंडस्ट्रीज लंबी अवधि के लिहाज अच्छा शेयर है। लंबी अवधि में शेयर 1050-1060 रुपये तक जा सकता है। शेयर में मौजूदा स्तरों पर खरीदारी का अच्छा मौका है। निवेशक शेयर में 800-820 रुपये के आसपास का स्टॉपलॉस लगाकर बने रहें।
अब समझ लीजिये! केंद्र सरकार ने सीडीएमए कंपनियों को दिए जाने वाले स्पेक्ट्रम के रिजर्व प्राइस में 50 फीसदी कटौती करने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट मीटिंग में यह फैसला लिया गया। दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल के मुताबिक, नए फैसले के मुकाबले, 800 मेगाहर्ट्ज बैंड में पांच मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम का रिजर्व प्राइज 9,100 करोड़ रुपए रखा जाएगा, जो पहले 18,200 करोड़ रुपए रखा था।
अब समझ लीजिये! वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने आज कहा कि सरकार कर दरों में नरमी लाने को लेकर प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि लेनदेन की लागत कम करने के लिये प्रशासन को आधुनिक बनाने तथा करदाताओं की सुविधाएं बढ़ाने के लिये काम किया जा रहा है। चिदंबरम ने कहा कि कर प्रशासन के समक्ष नई चुनौतियां हैं। इसमें कर अधिकारों का आवंटन तथा कर राजस्व बढ़ाना तथा करदाताओं को गुणवत्तापूर्ण सेवायें मुहैया कराना शामिल हैं।ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन तथा दक्षिण अफ्रीका) देशों के राजस्व विभागों के प्रमुखों को संबोधित करते हुए उन्होंने यह बात कही। भारत इस समूह की अध्यक्षता कर रहा है। उन्होंने कर प्रशासन के क्षेत्र में बिक्स देशों के बीच बेहतर सहयोग की जरूरत पर भी बल दिया।
जो सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को बचाने के लिए पहल नहीं कर सकती और विनिवेश के जरिये राजस्व अर्जित करके निजी कंपनियों को राष्ट्रीय संसाधन सौंपने में हिचकती नहीं है, जो बहुसंख्यक आबादी को जल जंगल जमीन और आजीविका से बेदखली करने पर तुली हुई है, उन्हें तेल कंपनियों के हितों की इतनी परवाह क्यों?
दरअसल तेल की धार को अब सरकार ने तेल कंपनियों के हवाले कर दिया है। साफ है सरकार ने लोक कल्याणकारी राज्य का चोला उतार फेंका है। डीजल अब बार-बार महंगा होगा, क्योंकि अब डीजल के दाम सरकार तय नहीं करेगी। डीजल पर भारी भरकम सब्सिडी का रोना रोते हुए सरकार ने विष का ये प्याला पिया। सरकार की ओर से बताया गया कि पेट्रोलियम पदार्थों के दाम बढ़ाने की सिफारिश केलकर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में की है, इस पर कैबिनेट ने घंटों मंथन किया। रिपोर्ट में तो डीजल की कीमत साढ़े 4 रुपये तक बढ़ाने और कुछ महीने बाद हर महीने एक एक रुपए और बढ़ाने की सलाह दी गई थी। इतना ही नहीं, जेब में आग लगाने वाली इस रिपोर्ट में तो रसोई गैस की कीमत 150 रुपये तक बढ़ाने और कुछ महीनों बाद हर महीने दस-दस रुपए बढ़ाने की वकालत तक की गई थी। केलकर कमेटी की रिपोर्ट ने मिट्टी के तेल के दाम 35 पैसे से लेकर 2 रुपये प्रति लीटर बढ़ाने की सिफारिश की गई थी।लेकिन सरकार ने बीच का रास्ता निकाला। सरकार ने तेल कंपनियों को डीजल की कीमतें हर महीने 45 पैसे प्रति लीटर बढ़ाने की इजाजत दे दी है। बताया जा रहा है कि अब ज्यादा डीजल खरीदने वालों को डीजल का बाजार भाव चुकाना पड़ेगा। हालांकि कहा जा रहा है कि ये फैसला तेल कंपनियों ने लिया है।
गौरतलब है कि सरकारी तेल कंपनियां प्रति लीटर डीजल पर करीब 10 रुपये का नुकसान भरती हैं। सब्सिडी के तौर पर इसका बोझ सरकार उठाती है। एक साल में सरकार को तेल सब्सिडी पर 1 लाख 55 हजार 313 करोड़ रुपये फूंकने पड़ रहे हैं। तेल कंपनियों की मानें तो उन्हें सालाना 94 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। इसलिए अब सरकार डीजल को घाटा फ्री करने की तैयारी में है।
सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने कहा कि हमने आम आदमी का बोझ हमेशा कम करने की कोशिश की है। लेकिन साथ ही हमने व्यापक आर्थिक अनिवार्यता को भी ध्यान में रखा। विपक्ष ने सरकार के इस कदम की आलोचना की है। इस पर नाराजगी जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस और भाजपा को इसका विरोध नहीं करना चाहिए क्योंकि सत्ता में रहते हुए उन्होंने भी कई बार ऐसे फैसले किए हैं। उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा कि तृणमूल कांग्रेस की प्रतिक्रिया जो आपने मुझे बताई, उससे मैं आश्चर्यचकित हूं। अगर मुझे ठीक से याद है तो (पश्चिम बंगाल में) तृणमूल कांग्रेस ने कोलकाता में बिजली की दरें बढ़ाई थीं। इसलिए मुझे नहीं लगता कि बिजली की दरें बढ़ाने वाली पार्टी को अध्ययन किए बिना ही विनियमन के प्रभाव के बारे में बोलना चाहिए
भाजपा ने सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडरों की संख्या छह से बढ़ाकर नौ करने के फैसले को भी दिखावा करार दिया। पार्टी प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने यहां संवाददाताओं से कहा कि हम इस फैसले की निंदा करते हैं, क्योंकि इसका महंगाई पर गंभीर असर पड़ेगा। यह जनविरोधी निर्णय है और इसलिए हम इसकी निंदा करते हैं।उन्होंने कहा कि डीजल की कीमतें बढ़ाने का सरकार का फैसला पिछले दरवाजे से दरें बढ़ाने का प्रयास है। पार्टी ने मांग की है कि सरकार को इस तरह का कदम उठाने से पहले तेल क्षेत्र में जरूरी सुधार करने चाहिए।पार्टी ने कहा कि डीजल के मूल्य बढ़ाने के लिए समय सही नहीं है क्योंकि देश में लोग पहले ही महंगाई से जूझ रहे हैं। जावड़ेकर ने कहा कि इस वक्त यह बढ़ोत्तरी पूरी तरह अनुचित है।
एलपीजी सिलेंडरों की संख्या छह से बढ़ाकर नौ करने के फैसले पर भाजपा ने मांग की है कि राशनिंग को पूरी तरह समाप्त किया जाए और लोगों को जरूरत के अनुसार सिलेंडर लेने की छूट होनी चाहिए।
माकपा महासचिव प्रकाश करात ने आज यहां कहा कि डीजल के दाम नियंत्रणमुक्त करने से आम आदमी पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
करात ने कहा कि आम आदमी पहले ही रोजमर्रा की चीजों के दाम बढ़ने से मुश्किल में है। डीजल के दाम नियंत्रणमुक्त करने से उन पर अतिरिक्त बोझ बढ़ेगा। भाकपा के सचिव डी राजा ने कहा कि सरकार की दलील है कि यह फैसला वित्तीय घाटे को कम करने के लिए किया गया है। इस दलील को स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि घाटा अर्थव्यवस्था को लेकर सरकार के कुप्रबंधन के कारण हुआ है।
सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडरों की संख्या साल में नौ करने को अपर्याप्त बताते हुए तृणमूल कांग्रेस ने आज संप्रग सरकार पर अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया। तृणमूल के राज्यसभा सदस्य डेरेक ओब्रायन ने कहा कि एक साल में सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडरों की संख्या 6 से बढ़ाकर 9 करना काफी नहीं है। हम एक आम परिवार में 18 से 24 सिलेंडर देने की मांग कर रहे हैं।
नए बैंकिंग लाइसेंस अप्रैल से: वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार सरकार बैंकिंग सुधार को जल्द लागू करना चाहती है। इसके लिए उसने रिजर्व बैंक को नए बैंक स्थापित करने के लिए दिशा-निर्देश जनवरी के अंत जारी करने को कहा है ताकि बजट की घोषणा के पूर्व दिशा-निर्देश जारी कर दिए जाएं। नए बैंक लाइसेंस देने की प्रक्रिया अप्रैल से शुरू हो सके।
वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के अनुसार नए बैंक लाइसेंस से संबंधित जो भी सुझाव वित्त मंत्रालय के पास आये थे, उसे हमने रिजर्व बैंक को भेज दिया। अब रिजर्व बैंक को इनको ध्यान में रखते हुए दिशा-निर्देश जारी करना है। सूत्रों के अनुसार रिजर्व बैंक इस माह के अंत तक दिशा-निर्देश जारी कर सकता है। ऐसा होने पर ही इस पर सहमति बनाकर अगले वित्त वर्ष के आरंभ यानी अप्रैल से इसे लागू करने में सुविधा होगी।
डीटीसी को लागू को तैयारी: पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा की संसदीय स्थाई समिति ने डीटीसी पर अंतिम रिपोर्ट में फरवरी के पहले हफ्ते में दी थी। यही कारण है कि बजट से पूर्व इस पर कोई फैसला नहीं हो सका। मगर इस बार वित्त मंत्री चिदंबरम इसको अगले वित्त वर्ष से लागू करने की तैयारी में हैं। इसमें डिमांड के मुताबिक इसमें कुछ संशोधन किये गए। पर साथ में कुछ बातों पर विपक्षी पार्टियों को मनाया जा रह है। यह तर्क दिया जा रहा है कि अगर बात नहीं तर्कसंगत नहीं लगी तो बाद में इसमें बदलाव कर लिया जाएगा।
खाद्य तेलों में तेजी के आसार
खाद्य तेलों के आयात को महंगा करने के सरकार के ताजा फैसले से खाद्य वस्तुओं में मंहगाई को पलीता लगने की आशंका बढ़ गई है। घरेलू किसानों के हितों को संरक्षण देने के नाम पर कच्चे खाद्य तेलों के आयात पर ढाई फीसद का शुल्क लगा दिया गया है। इससे पहले से ही तेजी में चल रहे खाद्य तेल के भाव और भड़क सकते हैं।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की आर्थिक मामलों की समिति [सीसीईए] ने कच्चा खाद्य तेल के आयात पर 2.5 फीसद शुल्क लगाने का एलान किया है। रिफाइंड पाम ऑयल पर पहले ही 7.5 फीसद का आयात शुल्क लगा हुआ है। सरकार का मानना है कि महंगाई के बढ़ने की आशंका के मद्देनजर ही रिफाइंड ऑयल पर लगने वाले शुल्क में कोई वृद्धि नहीं की गई है।
कृषि मंत्रालय ने खाद्य तेलों के आयात शुल्क में वृद्धि के साथ शुल्क मूल्य निर्धारण की व्यवस्था को बदल दिया है। टैरिफ वैल्यू प्रणाली में चुपचाप हुई तब्दीली के चलते खाद्य तेल और महंगे हो जाएंगे। खाद्य तेलों के आयात पर सीमा शुल्क अधिनियम 1962 के तहत निर्धारित टैरिफ वैल्यू व्यवस्था शुरू की गई थी। खाद्य तेलों का आयात शुल्क उसी के तहत वर्ष 2006 के भाव 447 डॉलर प्रति टन के हिसाब से वसूला जाता है। लेकिन अब इसमें तब्दीली कर दी गई है। सरकार अब मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कीमतों पर आयात शुल्क की गणना करेगी।
पहले जहां 447 डॉलर प्रति टन के टैरिफ वैल्यू पर कच्चा पाम ऑयल आयात होता था। अब इसे वर्तमान में 790 डॉलर प्रति टन पर माना जाएगा। यानी ढाई फीसद के आयात शुल्क के साथ टैरिफ वैल्यू के अंतर का भुगतान भी करना होगा। शुल्क की गणना के हिसाब से प्रति किलो खाद्य तेल में सवा रुपये प्रति किलो की तेजी आनी तय है।
देश में खाद्य तेलों की कुल खपत का 50 फीसद आयात से पूरा होता है। बीते 2011-12 तेल वर्ष [नवंबर से अक्टूबर] में सर्वाधिक 1.02 करोड़ टन खाद्य तेल का आयात किया गया था। चालू वर्ष के पहले दो महीने में ही इसका पांच फीसद खाद्य तेल आयात हो चुका है।
सूत्रों के अनुसार कृषि मंत्रालय ने कच्चे खाद्य तेल के आयात पर 7.5 और रिफाइंड ऑयल पर 15 फीसद शुल्क का प्रस्ताव किया था। इसके लिए पिछले सप्ताह कृषि, वित्त और खाद्य मंत्रियों की बैठक में खाद्य तेल आयात पर लंबी चर्चा हुई थी। लेकिन बैठक में शुल्क वृद्धि के प्रस्तावों पर वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने महंगाई बढ़ने की आशंका जताई थी।
'67 प्रतिशत आबादी को प्रति व्यक्ति मिले 5 किलो सस्ता अनाज'
संसद की स्थायी समिति ने खाद्य सुरक्षा विधेयक में 67 प्रतिशत आबादी को हर महीने प्रति व्यक्ति पांच किलो अनाज सस्ते दाम पर उपलब्ध कराने का कानूनी प्रावधान करने का सुझाव दिया है। देश की बड़ी आबादी को कानूनन खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराना केन्द्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार का महत्वाकांक्षी कार्यक्रम है। लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को सौंपी गई इस रिपोर्ट में लाभार्थियों को तीन रुपए किलो चावल, दो रुपए किलो गेहूं और एक रुपए किलो मोटा अनाज दिए जाने की सिफारिश की गई है।
खाद्य, उपभोक्ता मामले और सार्वजनिक वितरण मामले पर बनी संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष विलास मुत्तेमवार ने यहां संवाददाताओं को बताया, `हमने सुझाव दिया है कि लाभार्थियों की एकमात्र श्रेणी होनी चाहिए और प्रतिमाह पांच किग्रा प्रति व्यक्ति के हिसाब से खाद्यान्न मिलना चाहिए। इस संसदीय समिति का सुझाव सरकार के खाद्य विधेयक के उस प्रावधान के खिलाफ है जिसमें लाभार्थियों को दो श्रेणी प्राथमिक परिवार और सामान्य परिवार में बांटा गया है। इस विधेयक को लोकसभा में दिसंबर 2011 में पेश किया गया था।
उन्होंने कहा कि रिपोर्ट को माकपा के एक सदस्य टीएन सीमा के एक असहमति पत्र के साथ सर्वसम्मति से अपनाया गया है। मुत्तेमवार ने कहा कि समिति, विधेयक के ग्रामीण आबादी के 75 प्रतिशत लोगों और शहरी आबादी के 50 प्रतिशत लोगों को दायरे में लेने के प्रावधान पर सहमत थी। संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी की महत्वाकांक्षी परियोजना माने जाने वाले खाद्य विधेयक के तहत सरकार ने प्रस्ताव किया था कि प्राथमिक घरानों को सात किग्रा चावल और गेहूं प्रति माह प्रति व्यक्ति क्रमश: तीन रुपए और दो रुपए की दर से मिलना चाहिए।
इसमें कहा गया था कि साधारण परिवारों को कम से कम तीन किग्रा खाद्यान्न न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के 50 प्रतिशत की दर पर मिलना चाहिए। मुत्तेमवार ने कहा, `हमने सरकार से गर्भवती महिला तथा बच्चे के जन्म के बाद दो वर्ष के लिए प्रति माह पांच किग्रा अतिरिक्त खाद्यान्न देने को कहा है।` खाद्यान्न की मात्रा को सात से घटाकर पांच किग्रा करने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, `समिति ने पाया कि मौजूदा उत्पादन और खरीद की प्रवृति को देखते हुए सात अथवा 11 किग्रा की अहर्ता व्यावहारिक नहीं होगी।`
उन्होंने कहा कि प्रति व्यक्ति प्रति माह पांच किग्रा की अर्हता के कारण सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के लिए 4.88 करोड़ टन और बाकी कल्याणकारी योजनाओं के लिए 80 लाख टन खाद्यान्न की आवश्यकता होगी। इतनी मात्रा का प्रबंध किया जा सकता है।
दिल्ली मेट्रो में यात्रा करना हो सकता है महंगा
दिल्ली मेट्रो में पांच महीने बाद यात्रा करना महंगा हो सकता है, क्योंकि सरकार द्वारा किराया तय करने के लिए बनाई गयी समिति इस दौरान यात्री किराया बढ़ाने को लेकर अपनी सिफारिशें दे सकती है।दिल्ली मेट्रो के प्रबंध निदेशक मंगू सिंह ने गुरुवार को कहा कि यह स्वतंत्र समिति जमीनी हालात का विस्तार से अध्ययन करने के बाद अपनी सिफारिशें देगी।
केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय द्वारा गठित समिति अगर किराये में बढ़ोत्तरी की सिफारिश करती है तो दिल्ली मेट्रो को इसे लागू करना होगा। मंगू सिंह ने यहां मेट्रो संग्रहालय के एक कार्यक्रम से इतर संवाददाताओं से कहा कि किराया तय करने के लिए समिति का गठन हुआ है। वे चार से पांच महीने में अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट देंगे। वे स्वतंत्र रूप से काम करेंगे और जरूरत के अनुसार समय लेंगे।
दिल्ली मेट्रो का किराया पिछली बार 2009 में बढ़ाया गया था और तब से कोई वृद्धि नहीं की गयी है। दिल्ली मेट्रो रेलवे कानून, 2002 के अनुसार केंद्र सरकार समय समय पर समिति का गठन कर सकती है जो किरायों को लेकर सिफारिशें दे सकती है।
मंगू सिंह ने रात 12 बजे के बाद मेट्रो ट्रेनें चलाने की संभावना को खारिज करते हुए कहा कि इस समय यात्रियों की तरफ से इस तरह की कोई मांग नहीं है। उन्होंने कहा कि एक तरह से हम रात 12 बजे तक ट्रेनें चला रहे है और सुबह 5 बजे से कुछ देर पहले ही सेवाएं शुरू हो जाती हैं। इसलिए मुझे 12 बजे के बाद ट्रेनें चलाने की कोई जरूरत नहीं लगती। रात को चलने वाली आखिरी ट्रेनों में मुश्किल से ही कुछ यात्री होते हैं।
डीएमआरसी प्रमुख ने यह भी कहा कि दिल्ली मेट्रो इस बारे में पता लगाने के लिए कवायद कर रही है कि उसके स्टेशनों के बाहर प्रकाश व्यवस्था ठीक है या नहीं ताकि महिलाओं समेत यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। उन्होंने यह भी कहा कि सीआईएसएफ ने मेट्रो स्टेशन परिसरों में महिला कांस्टेबलों की संख्या बढ़ाई है।
एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस कॉरिडोर के संबंध में पूछे गये सवाल पर सिंह ने कहा कि मेट्रो रेल सुरक्षा आयुक्त की ओर से अनिवार्य हरी क्षंडी मिलने के बाद इस लाइन पर सेवा बहाल की जाएगी।
71,000 कर्मचारियों की छंटनी
नोकिया ने गुरुवार को कहा कि वह अपना आईटी का काम भारतीय प्रौद्योगिकी कंपनियों टीसीएस और एचसीएल टेक्नॉलजीज से करवाएगी। इस पहल के बाद मद्देनजर फिनलैंड की कंपनी करीब 300 कर्मचारियों की छंटनी करेगी।नोकिया ने एक बयान में कहा कि कंपनी ने इस प्रक्रिया के तहत अपना कुछ काम और करीब 820 कर्मचारी एचसीएल टेक और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज को सौंपने की योजना बनाई है। हालांकि इस सौदे के वित्तीय ब्यौरे की जानकारी नहीं दी गई।
आर्थिक मंदी ने खतरे की एक और घंटी बजा दी है। लागत घटाने के चक्कर में एचपी और नोकिया सहित दर्जनभर से अधिक कंपनियों ने इस साल अभी तक 71,000 कर्मचारियों की छंटनी की घोषणा की है। विभिन्न क्षेत्र की कंपनियों द्वारा छटनी की ये घोषणाएं 2012 के पहले छह महीनों के दौरान की गईं। इनमें आईटी कंपनियों के कर्मचारी सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। जिन कंपनियों ने व्यापक छटनी की पुष्टि की है, उनमें एचपी, नोकिया, सोनी कॉर्प, याहू, पेप्सिको, रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड और लुफ्तांसा प्रमुख हैं।
इनके अलावा कैमरा कंपनी ओलंपस, बॉल बियरिंग बनाने वाली एसकेएफ, दवा कंपनी नोवार्टिस, यूनिलीवर, कंप्यूटर माउस बनाने वाली लॉजिटेक इंटरनैशनल, एलएम विंड पावर और मोबाइल नेटवर्क ऑपरेटर वेरिजोन वायरलेस ने भी बड़े पैमाने में कर्मचारियों की छंटनी करने की घोषणा की है। कुल मिलाकर इन कंपनियों ने दुनियाभर में 71 हजार नौकरियां खत्म करने की घोषणा की है। इसमें आधे से अधिक कर्मचारियों की छंटनी की घोषणा अकेले मई में की गई।
फ्लाईओवर बनाने, इन्फ्रास्ट्रक्चर योजनाओं पर अमल करने और लो फ्लोर बसें लाने की रफ्तार तेज
जवाहरलाल नेहरू समेत शहरी नवीकरण मिशन योजना (जेएनएनयूआरएम) के तहत आने वाले शहरों में और फ्लाईओवर बनाने, इन्फ्रास्ट्रक्चर योजनाओं पर अमल करने और लो फ्लोर बसें लाने की रफ्तार तेज हो सकती है। आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमिटी ने गुरुवार को जेएनएनयूआरएम के तहत नई योजनाओं को मार्च 2014 तक मंजूर करने की इजाजत दे दी है। इस फैसले का असर यह होगा कि अब शहर नए प्रोजेक्ट ला सकेंगे। दरअसल, 2005 में केंद्र सरकार ने जेएनएनयूआरएम की शुरुआत की थी। यह योजना सात वर्ष के लिए थी और पिछले ही साल खत्म हुई है। लेकिन पिछले साल सरकार ने इस योजना के तहत चल रहे प्रोजेक्ट्स के लिए दो साल की अवधि बढ़ा दी थी। हालांकि शहरी विकास मंत्रालय ने जेएनएनयूआरएम के सेकेंड फेज का भी प्रस्ताव तैयार कर लिया था, लेकिन अब तक कैबिनेट ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया है। यह माना जा रहा था कि अब शहरों के लिए इस योजना के तहत नए प्रोजेक्ट शुरू नहीं होंगे। लेकिन अब इस फैसले के बाद इन परियोजनाओं की संख्या बढ़ सकती है।
आधारभूत ढांचा क्षेत्र की प्रमुख कंपनी जीएमआर और जीवीके पूंजी जुटाने की असमर्थता की वजह से बड़ी सड़क परियोजनाओं से बाहर निकल रही हैं। यह बात यह बात भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने आज कही। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्रधिकरण ने इन फैसलों के पीछे पर्यावरण मंजूरी में विलम्ब या नियामकीय बाधाओं के कंपनियों के तर्क को महत्व नहीं दिया है। प्राधिकरण के प्रमुख प्रमुख आर पी सिंह ने कहा, ' मूल रूप से हमारे विचार से ये दोनों कंपनियां अर्थिक हालात में बदलाव और लागत में वृद्धि के कारण दो परियोजनाओं से निकल रही हैं।'
शहरी विकास मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि अब कैबिनेट कमिटी ने जेएनएनयूआरएम के तहत नए प्रोजेक्ट शुरू करने के लिए भी डेडलाइन 31 मार्च 2014 तक बढ़ा दी है। ऐसे में अब राज्य सरकारें नए प्रोजेक्ट के लिए डीपीआर भेज सकेंगी। महत्वपूर्ण है कि इन परियोजनाओं में फ्लाईओवर से लेकर शहरी बसों और साफ-सफाई से संबंधित परियोजनाएं भी हैं। कैबिनेट कमिटी के इस फैसले का फायदा दिल्ली जैसे शहरों को भी मिल सकेगा।
No comments:
Post a Comment