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Sunday, 19 February 2012

फार्मसिस्टों को तुगलकी फर्मान लेखक : बृजेन्द्र लुण्ठी :: अंक: 12 || 01 फरवरी से 14 फरवरी 2012:: वर्ष :: 35 :February 18, 2012 पर प्रकाशित





फार्मसिस्टों को तुगलकी फर्मान

लेखक : बृजेन्द्र लुण्ठी :: अंक: 12 || 01 फरवरी से 14 फरवरी 2012:: वर्ष :: 35 : February 18, 2012  पर प्रकाशित
pharmacist-and-governmen-orderलखनऊ में बंद कमरों के भीतर से हिमालयी क्षेत्र के लिए अव्यावहारिक आदेश निकलने के कारण ही उत्तराखण्ड राज्य की माँग उठी थी। मगर राज्य बनने के बाद भी यह क्रम जारी है। उत्तराखण्ड सरकार ने फार्मासिस्टों को शिड्यूल-एच की दवाइयाँ फोन द्वारा डॉक्टर से पूछने के बाद ही लिखने का जो आदेश दिया है, वह किसी के गले नहीं उतर रहा है। पिथौरागढ़ के कई संगठनों ने सरकार के इस फैसले को बेहद अव्यावहारिक तथा उत्तराखण्ड के भूगोल के खिलाफ बताया है।
कुछ माह पूर्व स्वास्थ्य महकमे ने फार्मासिस्टों को शिड्यूल-एच की दवाइयाँ देने से रोकने सम्बन्धित एक आदेश जारी किया था। फार्मासिस्ट एसोसिएशन इस आदेश का विरोध कर रहा है। इस बीच राज्य सरकार ने फिर एक आदेश जारी किया है कि फार्मासिस्ट अब शिड्यूल-एच की दवा दे तो पाएँगे, लेकिन दवा देने से पहले उन्हें चिकित्सक से फोन पर वार्ता कर दवा तय करनी होगी। इस आदेश के बाद पूरे उत्तराखण्ड सरकार के काम-काज पर सवाल उठने लगे हैं। इस आदेश में यहाँ के भूगोल की नामसमझी सीधे तौर पर नजर आ रही है। पिथौरागढ़ में भाकपा माले के जिला प्रवक्ता गोविन्द कफलिया का कहना है कि उत्तराखण्ड में अभी भी 50 प्रतिशत हिस्सा संचार सुविधा से अलग-थलग है। सरकार न अस्पताल खोल पा रही है और न ही खुले अस्पतालों में डॉक्टर दे पा रही है। गाँवों में चिकित्सा की बागडोर उप स्वास्थ्य केन्द्रों के माध्यम से फार्मासिस्ट पर है। इससे पहले भी फार्मासिस्ट शिड्यूल-एच की दवा लिखते थे। अब उससे यह अधिकार छीन कर सरकार क्या चिकित्सा व्यवस्था को ठप करना चाहती है। यह तरीका उत्तराखण्ड के भूगोल के अनुरूप नहीं है। जिला ट्रेड यूनियन समन्वय समिति के जिलाध्यक्ष दिनेश गुरुरानी, अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन की जिला संयोजक संगीता मुनौला तथा मानवाधिकार संगठन के जिला उपाध्यक्ष एडवोकेट मोहन सिंह नाथ ने भी इस आदेश को वापस लेने की माँग की है।
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