मतदान के बाद और भी डरे हैं पौड़ीवासी
पौड़ी में इस बार चुनावी माहौल उदासीन रहा। कौन जीतेगा, कौन हारेगा से इस बार लोगों को ज्यादा मतलब नहीं दिखा। इसका एक कारण तो पौड़ी विधान सभा सीट का आरक्षित सीट होना रहा। लम्बे समय से यहाँ राजनीति कर रहे नेता नये ठौर की तलाश में पलायन कर गये और आरक्षित वर्ग के प्रत्याशियों से भरोसेमन्द नेतृत्व उभर नहीं सका। दूसरा कारण रहा नगर से दो-दो मुख्यमन्त्री होने के बावजूद उनका कुछ न करना। एक और कारण था, जिले का होने जा रहा विभाजन। प्रमुख दलों व उनके प्रत्याशियों ने पौड़ी नगर की पीड़ा को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया। यह साफ हो गया कि विधान सभा में कोई स्वप्नदृष्टा नेता नहीं जाने वाला है, ऐसा प्रतिनिधि अब नहीं होने वाला है, जो मूल मुद्दों के समाधान के लिये पहल करे। ऐसे में नगरवासियों का राजनीति से दिल भरना स्वाभाविक है।
अविभाजित उ.प्र. के दो मुख्यमंत्रियों, गोविन्द बल्लभ पन्त व हेमवतीनंदन बहुगुणा के बाद नये राज्य में खण्डूड़ी व निशंक इस नगर से रहे। लेकिन जब ऐसे दिग्गज यहाँ के लिये कुछ नहीं कर सके तो सामान्य प्रत्याशियों से क्या उम्मीद की जा सकती है। खण्डूडी ने केन्द्र में मन्त्री रहते नगर से गुजरने वाले मेरठ-पौड़ी राजमार्ग व टिहरी-मुरादाबाद राजमार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग का दर्जा दिया। इससे मुख्यमार्ग चौड़े हुए हैं और कुछ हो रहे हैं। उन्होंने ही नगर के लिये राज्य की सबसे महंगी 75 करेाड़ की नानघाट पेयजल योजना को बनवाने में और गढ़वाल विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विद्यालय का दर्जा दिलवाने में अहम रोल निभाया। 2007 के चुनाव में भाजपा तो जीती किन्तु पौड़ी से खण्डूड़ी के सिपहसालार तीरथसिंह रावत हार गये। निर्दलीय रूप से विधायक बने यशपाल बेनाम ने जीतने पर भाजपा को ही समर्थन दिया, मगर तीरथ ने भी अपनी हार का बदला लिया। बेनाम मन्त्री नहीं बन सके। बेनाम ने सांसद के चुनाव में जनरल टी.पी.एस रावत को हराने का प्रयास किया। संभवतः इसीलिये खण्डूड़ी ने नगर के प्रति आँखें ही मूँद ली। लेकिन इस निजी अहम की लड़ाई के कारण खण्डूरी में लोगों की आस्था कम हुई। भाजपा के किसी स्थानीय नेता ने भी पौड़ी के प्रति बरती जा रही उदासीनता का विरोध नहीं किया। बाद में खण्डूड़ी ने नगर के पर्यटन महत्व को बढ़ाने के लिये श्रीनगर से पौड़ी तक रोपवे लगाने की बात की। पौड़ी में नर्सिंग कालेज की स्थापना की पहल की। लेकिन फिर उनकी गद्दी खिसक गई। 27 जून 2009 को जब निशंक मुख्यमन्त्री बने तो पौड़ी में उनके समर्थकों ने जबरदस्त आतिशबाजी की। जब जुलाई में उनका नागरिक अभिनन्दन हुआ तो उनके गले में इतनी मालायें पड़ी कि भावतिरेक के कारण उनका स्वर भारी हो गया था। लेकिन उनके कार्यकाल में नगर में कोई भी कार्य नहीं हुआ। फिर भी जिले को दो महत्वपूर्ण संस्थान, एन.आई.टी. व भरसार औद्यानिक महाविद्यालय को पूर्ण विश्वविद्यालय का दर्जा देने का निर्णय उनके कार्यकाल में लिया गया।
लेकिन इस नगर की उपेक्षा के लिये कांग्रेस भी जिम्मेवार है। सन् 2002 में बनी कांग्रेस सरकार में इस जिले से 5 मन्त्री थे, पर्यटन मंत्री जनरल टी.पी.एस. रावत, राजस्व मन्त्री हरकसिंह रावत, शिक्षा मन्त्री नरेन्द्रसिंह भण्डारी, पेयजल मन्त्री सुरेन्द्रसिंह नेगी और ऊर्जा मंत्री अमृता रावत। इनके अलावा इसी जिले के सतपाल महाराज बीस सूत्री कार्यक्रम के प्रभारी व विजय बहुगुणा राज्य योजना आयोग के अध्यक्ष थे। तब दूसरे जिलों में शिकायत की जाती थी कि सारा बजट पौड़ी जा रहा है। लेकिन अफसोस कि हुआ कुछ नहीं। पौड़ी का मण्डलीय स्वरूप जो एक बार कमजोर हुआ तो वह उससे उबर न पाया। यहाँ पर एक बार ‘पौड़ी बचाओ आन्दोलन’ भी चला। आन्दोलन के दबाव में सरकार आश्वासन देती रही, लेकिन आन्दोलन के कमजोर होते ही सरकार ने सब कुछ भुला दिया। न यहाँ पर कृषि निदेशालय ही आया और न पंचायती राज निदेशालय ही। आज एक ग्रामीण विकास निदेशालय यहाँ पर है, जो मात्र कागजों में ही चल रहा है। राजस्व बेंच कुछ समय लग कर बन्द हो गई। एक पर्यटन सर्किट योजना बनी, लेकिन टी.पी.एस. रावत उसे धरती पर नहीं ला सके। पेयजल मन्त्री सुरेन्द्र सिंह नेगी ने जरूर जल निगम व जल संस्थान के मण्डलीय कार्यालय देहरादून से पौड़ी में स्थापित करवाये। मगर दूसरे कई विभागों के मण्डलीय कार्यालय पौड़ी नहीं आ सके। जबकि मायावती के समय उनकी एक घुड़की से ही सारे अधिकारी मण्डल में बैठने लगे थे। लेकिन राज्य बनने के बाद आयुक्त तक देहरादून में बैठते हैं और आई.जी. 15 अगस्त व 26 जनवरी को झण्डारोहण के लिये ही आते हैं।
अपनी दूसरी पारी में खंडूड़ी 6 माह में 4 बार पौड़ी आये। पूर्व में उनके द्वारा जिन योजनाओं का वादा किया गया था, उनमें से कुछ का शिलान्यास कर उन्होंने अपनी प्रतिबद्धता दिखाई। मगर बहुत सख्ती दिखाने से वे बचते रहे। वे सड़कों को सुधारने के लिये पहल कर सकते थे, औद्योगिक गतिविधियों के विस्तार के लिये कुछ कर सकते थे, मण्डलीय ग्रामोद्योग प्रशिक्षण केन्द्र को जीवित कर सकते थे। एक जमाने में यहाँ उद्योग विभाग के विकास आयुक्त बैठते थे, अब जिला उद्योग केन्द्र तक नहीं है।
अप्रैल 2012 में होने वाले विभाजन के बाद 15 विकास खण्डों वाला पौड़ी गढ़वाल जिला आधा हो जायेगा। इसके 8 विकास खण्ड पौड़ी, पाबौ, कोट, कलजीखाल, खिर्सू, पोखड़ा, एकेश्वर, थैलीसैण पौड़ी जिले में ही रहेंगे जबकि नैनीडांडा, दुगड्डा, यमकेश्वर, जयहरीखाल, द्वारीखाल, बीरोंखाल, रिखणीखाल विकास खण्ड कोटद्वार जिले में चले जायेंगे। 2007 तक पौड़ी जिले में 8 विधानसभा क्षेत्र थे, जो इस बार 6 रह गये। कोटद्वार अलग हो जाने के बाद ये 3 ही रह जायेंगे। विभाजन के बाद कोटद्वार व पौड़ी दोनों राजनीतिक रूप से कमजोर हो जायेंगे, अतः पौड़ी के नागरिक अपने भविष्य कि लिये बहुत अधिक संशकित है।
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