जयपुर लिट. फेस्ट. के जनविरोधी प्रायोजकों का विरोध करें!



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जयपुर लिट. फेस्ट. के जनविरोधी प्रायोजकों का विरोध करें!

21 JANUARY 2012 
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जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल साहित्‍य का एक बड़ा और अंतरराष्‍ट्रीय आयोजन है। अंग्रेजी के लेखक इसके आयोजक-संयोजक हैं। अच्‍छी बात ये है कि फेस्टिवल भारतीय भाषाओं का भी सम्‍मान करता है और कई सारे सत्र हिंदी-राजस्‍थानी में होते हैं। साहित्‍य से जुड़े आयोजनों से ये अपेक्षा की जाती है कि वे उस पूंजी का उपयोग नहीं करेंगे, जिसका स्रोत जनविरोधी हो। यह महज संयोग है या क्‍या कि जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में इस बात खयाल नहीं किया गया है। कुछ लोगों ने इस मसले पर अपना विरोध सार्वजनिक किया है, हम उसे प्रकाशित कर रहे हैं : मॉडरेटर
कॉरपोरेट प्रायोजित जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के खिलाफ एक अपील पिछले साल की तरह इस साल भी जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के आयोजकों और प्रतिभागियों ने बरबाद हो रहे पर्यावरण, मानवाधिकारों के घिनौने उल्लंघन और इस आयोजन के कई प्रायोजकों द्वारा अंजाम दिये जा रहे भ्रष्टाचार के प्रति निंदनीय उदासीनता दिखायी है। 2011 में जब इन बातों पर चिंता व्यक्त करते हुए बयान दिये गये, तब फेस्टिवल-निदेशकों ने कहा था कि पहले किसी ने इस ओर हमारा ध्यान नहीं दिलाया था और अगर ये तथ्य सामने लाये जाएंगे तब हम जरूर उन पर ध्यान देंगे, लेकिन 2012 में भी उन्होंने ऐसा नहीं किया।
फेस्टिवल के प्रायोजकों में से एक, बैंक ऑफ अमेरिका ने दिसंबर 2010 में यह घोषणा की थी कि वह विकिलीक्स को दान देने में अपनी सुविधाओं का उपयोग नहीं करने देगा। बैंक का बयान था कि ‘बैंक मास्टरकार्ड, पेपाल, वीसा और अन्य के निर्णय को समर्थन करता है और वह विकिलीक्स की मदद के लिए किसी भी लेन-देन को रोकेगा’। क्या यह बस संयोग है कि रिलायंस उद्योग के मुकेश अंबानी इस बैंक के निदेशकों में से हैं? फेस्टिवल में शामिल हो रहे लेखक और कवि क्या ऐसी हरकतों का समर्थन करते हैं? यह दुख की बात है कि विकिलीक्स की प्रशंसा करने वाले कुछ प्रतिष्ठित प्रकाशन और समाचार-पत्र भी इस बैंक के साथ इस आयोजन के सह-प्रायोजक हैं।
अमेरिका और इजरायल जैसी वैश्विक शक्तियों के रवैये को दरकिनार करते हुए मई 2007 से लागू सांस्कृतिक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र संघ की घोषणा कहती है कि शब्दों और चित्रों के माध्यम से विचारों के खुले आदान-प्रदान के लिए आवश्यक अंतर्राष्ट्रीय कदम उठाये जाने चाहिए। विभिन्न संस्कृतियों को स्वयं को अभिव्यक्त करने और आने-जाने के लिए निर्बाध वातावरण की आवश्यकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, माध्यमों की बहुलता, बहुभाषात्मकता, कला तथा वैज्ञानिक एवं तकनीकी ज्ञान (डिजिटल स्वरूप सहित) तक समान पहुंच तथा अभिव्यक्ति और प्रसार के साधनों तक सभी संस्कृतियों की पहुंच ही सांस्कृतिक विविधता की गारंटी है।
यूनेस्को द्वारा 1980 में प्रकाशित मैकब्राइड रिपोर्ट में भी कहा गया है कि एक नयी अंतर्राष्ट्रीय सूचना और संचार व्यवस्था की आवश्यकता है, जिसमें इंटरनेट के माध्यम से सिमटती भौगोलिक-राजनीतिक सीमाओं की स्थिति में एकतरफा सूचनाओं का खंडन किया जा सके और मानस-पटल को विस्तार दिया जा सके।
याद करें कि 27 जनवरी 1948 को पारित अमेरिकी सूचना और शैक्षणिक आदान-प्रदान कानून में कहा गया है कि ‘सत्य एक शक्तिशाली हथियार हो सकता है’। जुलाई 2010 में अमेरिकी विदेशी संबंध सत्यापन कानून 1972 में किये गये संशोधन में अमेरिका, उसके लोगों और उसकी नीतियों से संबंधित वैसी किसी भी सूचना के अमेरिका की सीमा के अंदर वितरित किये जाने पर पाबंदी लगा दी गयी है, जिसे अमेरिका ने अपने राजनीतिक और रणनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विदेश में बांटने के लिए तैयार किया हो। इस संशोधन से हमें सीखने की जरूरत है और इससे यह भी पता चलता है कि अमेरिकी सरकार के गैर-अमेरिकी नागरिकों से स्वस्थ संबंध नहीं हैं।
इस आयोजन को अमेरिकी सरकार की संस्था अमेरिकन सेंटर का सहयोग प्राप्त है। यह सवाल तो पूछा जाना चाहिए कि दुनिया के 132 देशों में 8000 से अधिक परमाणु हथियारों से लैस 702 अमेरिकी सैनिक ठिकाने क्यों बने हुए हैं?
हम कोका कोला द्वारा इस आयोजन के प्रायोजित होने के विरुद्ध इसलिए हैं, क्योंकि इस कंपनी ने केरल के प्लाचीमाड़ा और राजस्थान के कला डेरा सहित 52 सयंत्रों द्वारा भूजल का भयानक दोहन किया है, जिस कारण इन संयंत्रों के आसपास रहने वाले लोगों को पानी के लिए अपने क्षेत्र से बाहर के साधनों पर आश्रित होना पड़ा है।
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल की एक प्रायोजक रिओ टिंटो दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी खनन कंपनी है, जिसका इतिहास फासीवादी और नस्लभेदी सरकारों से गठजोड़ का रहा है और इसके विरुद्ध मानवीय, श्रमिक और पर्यावरण से संबंधित अधिकारों के हनन के असंख्य मामले हैं।
केंद्रीय सतर्कता आयोग की जांच के अनुसार इस आयोजन की मुख्य प्रायोजक डीएससी लिमिटेड को घोटालों से भरे कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन के दौरान 23 प्रतिशत अधिक दर पर ठेके दिये गये।
हमें ऐसा लगता है कि ऐसी ताकतें साहित्यकारों को अपने साथ जोड़कर एक आभासी सच गढ़ना चाहती हैं ताकि उनकी ताकत बनी रहे। ऐसे प्रायोजकों की मिलीभगत से वह वर्तमान स्थिति बरकरार रहती है, जिसमें लेखकों, कवियों और कलाकारो की रचनात्मक स्वतंत्रता पर अंकुश होता है।
हमारा मानना है कि ऐसे अनैतिक और बेईमान धंधेबाजों द्वारा प्रायोजित साहित्यिक आयोजन एक फील गुड तमाशे के द्वारा ‘सम्मोहन की कोशिश’ है।
हम संवेदनात्मक और बौद्धिक तौर पर वर्तमान और भावी पीढ़ी पर पूर्ण रूप से हावी होने के षड्यंत्र को लेकर चिंतित हैं।
हम जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में शामिल होने का विचार रखने वाले लेखकों, कवियों और कलाकारों से आग्रह करते हैं कि वे कॉरपोरेट अपराध, जनमत बनाने के षड्यंत्रों और मानवता के खिलाफ राज्य की हरकतों का विरोध करें तथा ऐसे दागी प्रायोजकों वाले आयोजन में हिस्सा न लें।
हस्‍ताक्षर
♦ गोपाल कृष्ण सिटिजन फोरम फॉर सिविल लिबर्टीज
contact on 9818089660 & krishna1715@gmail.com
♦ प्रकाश के रे जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय शोध-छात्र संगठन
contact on 9873313315 & pkray11@gmail.com
♦ अभिषेक श्रीवास्‍तव स्‍वतंत्र पत्रकार
contact on 8800114126 & guru.abhishek@gmail.com
♦ शाह आलम अवाम का सिनेमा
contact on 9873672153 & shahalampost@gmail.com