अर्थ व्यवस्था बेहाल,९७० करोड़ रुपये गायब!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
बंगाल सरकार की आर्थिक हालत इतनी खराब है कि सरकारी कर्मचारियों के वेतन देने में कुल राजस्व आय कम पड़ती है। पर कैग ने हाल में राज्य के वित्तमंत्रालय को पत्र लिखकर विभिन्न मंत्रालयों में गायब इस रकाम के बारे में पूछताछ की है।यह कोई नया मामला नहीं है । पिछले दस बारह साल से बेहिसाब लापता रुपयों की रम लगातार बढ़ती जा रही है।राज कोषागार से गायब इस रकम के गबन की आशंका है।भारत के एकाउंट जनरल दीपक अनुराग ने राज्य के वित्त सचिव हरिकृष्म द्विवेदी को पत्र लिखकर वित्तीय प्रबंधन की कडड़ी आलोचना की है।राज्य की वित्तीय हालत यह है कि एक रुपये में से 96 पैसे वेतन-भत्ते आदि में ही खत्म हो जाते हैं। राज्य के ऊपर 2.26 लाख करोड़ रुपये का ऋण है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एक ओर खजाना खाली होने की बात कह रही हैं, तो दूसरी ओर विकास योजनाओं की झड़ी लगा रही हैं। राजकोष की हालत दयनीय है। सभी विभागों को खर्च में कटौती करने का निर्देश दिया गया है। केंद्र से भी कई परियोजनाओं की राशि नहीं मिल पा रही है। पश्चिम बंगाल सरकार ब्याज की अदायगी पर तीन साल की रोक चाहती है।
इस बीच ताजा रपट के मुताबिक देश के सबसे ज्यादा कर्ज में फंसे राज्यों में बंगाल अन्यतम है।एक तो आर्थिक खास्ताहाली, उस पर 2.26 लाख करोड़ रुपये का ऋण और राजकोष खाली। राजस्व उगाही का अधिकांश हिस्सा ऋण ब्याज चुकाने में चला जाता है।विकास का नारा देकर सत्ता में आई ममता बनर्जी के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है, जिसे पार करने के लिए उनको केंद्र की भरपूर सहायता चाहिए। यही कारण है कि वे कहती हैं, बंगाल को विशेष नजर से देखना होगा और मदद भी करनी होगी। उन्होंने इसी अपेक्षा के साथ केंद्र से कई दफा बात की, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। ममता बनर्जी का दावा है कि यदि उन्हें सिर्फ 10 साल शासन करने का मौका मिला तो वह अपने राज्य को 'सोनार बांग्ला' बना देंगी।हाल में एसोचैम कीओर से प्रकाशित राज्यों की वित्तीय हालत पर रपट के मुताबिक बंगाल सरकार की आय और ब्यय में भारी फर्क है।राजस्व में वृद्धि मामूली है , पर खर्च में कटौती है ही नहीं।पिछले पांच सालों के दरम्यान यानी वित्त वर्ष २००७-२००८ से लेकर वित्तवर्ष २०११-२०१२ तक कर बाबत आय में १३६.८ पीसद वृद्धि हुई है।२००६-२००७ के ११६९८ करोड़ रुपये के मुकाबले २०११-१२ में कर बाबत आय २७००० करोड़ रुपये है। इससे केंद्रीय मदद पाने का दावा जरूर मजबूत हआ है।लेकिन राजस्व घाटे में बंगाल देश में अव्वल नंबर पर है।२००७-२००८९ में भी बंगाल राजस्व घाटे में पहले नंबर पर था। तब घाटा ४.२ फीसदी था।२०११- १२ वित्तीय वर्ष में बी बंगाल राजस्व घाटे में पहले नंबर पर है।हांकि राजस्व घाटा कुछ कम होकर अब ३.७ प्रतिशत है।
देश व विदेश के सैकड़ों विख्यात वैज्ञानिकों के भारतीय विज्ञान कांग्रेस के शताब्दी समारोह के दौरान राज्य के लिए आर्थिक मदद मांग कर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक नजीर पेश कर दिया। बंगाल के लिए केंद्र से बार-बार विशेष पैकेज मांगने वाली ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री से कहा कि कृपया बंगाल की ओर ध्यान दीजिए। अगर बंगाल का विकास होगा तो भारत का विकास होगा। उस वक्त मंच पर राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री मौजूद थे।हालांकि, केंद्र से समर्थन वापसी के बाद पहला मौका था, जब प्रधानमंत्री व ममता बनर्जी एक मंच पर थे।
अब परिवहन विभाग के बाद आर्थिक संकट की वजह से करीब 80 हजार शिक्षा कर्मियों के वेतन पर आफत आ गई है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत बने शिशु व माध्यमिक शिक्षाकेंद्र के करीब 80 हजार कर्मियों को आगामी दो माह वेतन का भुगतान कर पाना सरकार के लिए शायद संभव नहीं है।राज्य के पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी ने कहा है कि पिछले वाममोर्चा सरकार ने बिना अनुमोदन के ही हड़बड़ी में इस योजना के तहत शिक्षा केंद्र तैयार कर दिया था और वहां अवैध रूप से माकपा कैडरों को नियुक्त कर दिया गया था। इन लोगों के वेतन के लिए सरकार को वर्ष में 50 करोड़ रुपये खर्च करने होते हैं। यह फंड फिलहाल राज्य सरकार के पास नहीं है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कूचबिहार में पुंडिबाड़ी में स्थित उत्तर बंग कृषि विश्व विद्यालय परिसर में पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा आयोजित ऋण मेला का उद्घाटन करते हुए पिछले दिनों दावा किया,`अगर मुझे 10 वर्ष का समय मिला तो मैं सोने का बंगाल बना दूंगी।सूबे में 19 माह में दो लाख सरकारी नौकरी की व्यवस्था की गई है। चुनाव के पहले मैंने वादा किया था कि पांच वर्ष सत्ता में रहने पर दस लाख सरकारी नौकरी की व्यवस्था की जाएगी। उस वादे को मैं पूरी तरह से निभाऊंगी।' मुख्यमंत्री ने कहा कि सूबे की जनता के दु:खदर्द से केंद्र का भले ही वास्ता न हो पर देश की सुरक्षा की खातिर राष्ट्रीय सड़क की जल्द से जल्द मरम्मत कराने की जरूरत है। उन्होंने कई बार केंद्र का इस समस्या की तरफ ध्यान भी आकर्षित कराया।
कांग्रेस नेता एवं केंद्रीय शहरी विकास राज्यमंत्री दीपा दासमुंशी ने कहा है कि तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार की भूमि नीति के कारण निवेशक भयभीत हो गए हैं। दीपा ने कहा, ''राज्य में तथाकथित भूमि नीति कई मायनों में स्पष्ट नहीं है और इसी वजह से उद्योगपतियों के बीच भ्रांतियां हैं।''
राजधानी कोलकाता से लगभग 250 किलोमीटर दूर पुरुलिया जिले में दामोदर घाटी निगम की विद्युत परियोजना की आधारशिला रखने के मौके पर केंद्रीय मंत्री ने कहा, ''पश्चिम बंगाल सरकार की भूमि नीति ने निवेशकों के बीच भ्रांतियां उत्पन्न कर दी हैं। इसलिए वे यहां निवेश करने से हिचकिचा रहे हैं।''
उन्होंने ममता बनर्जी सरकार को चेतावनी दी कि वह भूमि के मामले में राजनीति न करे। दीपा ने कहा, ''हमारी कांग्रेस पार्टी की नीति स्पष्ट है। लेकिन वे लोग जो राज्य पर शासन कर रहे हैं और भावना के बिना अपनी शक्ति और ऊर्जा लगा रहे हैं, मैं उनसे अनुरोध करती हूं कि वे भूमि के मामले में राजनीति न करें।''
दीपा ने यह आरोप भी लगाया कि राज्य सरकार उद्योगों को ऊंची दर पर बिजली देती है। उन्होंने कहा कि 5.50 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली की आपूर्ति की जाती है, जबकि अन्य राज्यों में बिजली की दर कम है।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
बंगाल सरकार की आर्थिक हालत इतनी खराब है कि सरकारी कर्मचारियों के वेतन देने में कुल राजस्व आय कम पड़ती है। पर कैग ने हाल में राज्य के वित्तमंत्रालय को पत्र लिखकर विभिन्न मंत्रालयों में गायब इस रकाम के बारे में पूछताछ की है।यह कोई नया मामला नहीं है । पिछले दस बारह साल से बेहिसाब लापता रुपयों की रम लगातार बढ़ती जा रही है।राज कोषागार से गायब इस रकम के गबन की आशंका है।भारत के एकाउंट जनरल दीपक अनुराग ने राज्य के वित्त सचिव हरिकृष्म द्विवेदी को पत्र लिखकर वित्तीय प्रबंधन की कडड़ी आलोचना की है।राज्य की वित्तीय हालत यह है कि एक रुपये में से 96 पैसे वेतन-भत्ते आदि में ही खत्म हो जाते हैं। राज्य के ऊपर 2.26 लाख करोड़ रुपये का ऋण है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी एक ओर खजाना खाली होने की बात कह रही हैं, तो दूसरी ओर विकास योजनाओं की झड़ी लगा रही हैं। राजकोष की हालत दयनीय है। सभी विभागों को खर्च में कटौती करने का निर्देश दिया गया है। केंद्र से भी कई परियोजनाओं की राशि नहीं मिल पा रही है। पश्चिम बंगाल सरकार ब्याज की अदायगी पर तीन साल की रोक चाहती है।
इस बीच ताजा रपट के मुताबिक देश के सबसे ज्यादा कर्ज में फंसे राज्यों में बंगाल अन्यतम है।एक तो आर्थिक खास्ताहाली, उस पर 2.26 लाख करोड़ रुपये का ऋण और राजकोष खाली। राजस्व उगाही का अधिकांश हिस्सा ऋण ब्याज चुकाने में चला जाता है।विकास का नारा देकर सत्ता में आई ममता बनर्जी के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है, जिसे पार करने के लिए उनको केंद्र की भरपूर सहायता चाहिए। यही कारण है कि वे कहती हैं, बंगाल को विशेष नजर से देखना होगा और मदद भी करनी होगी। उन्होंने इसी अपेक्षा के साथ केंद्र से कई दफा बात की, लेकिन निराशा ही हाथ लगी। ममता बनर्जी का दावा है कि यदि उन्हें सिर्फ 10 साल शासन करने का मौका मिला तो वह अपने राज्य को 'सोनार बांग्ला' बना देंगी।हाल में एसोचैम कीओर से प्रकाशित राज्यों की वित्तीय हालत पर रपट के मुताबिक बंगाल सरकार की आय और ब्यय में भारी फर्क है।राजस्व में वृद्धि मामूली है , पर खर्च में कटौती है ही नहीं।पिछले पांच सालों के दरम्यान यानी वित्त वर्ष २००७-२००८ से लेकर वित्तवर्ष २०११-२०१२ तक कर बाबत आय में १३६.८ पीसद वृद्धि हुई है।२००६-२००७ के ११६९८ करोड़ रुपये के मुकाबले २०११-१२ में कर बाबत आय २७००० करोड़ रुपये है। इससे केंद्रीय मदद पाने का दावा जरूर मजबूत हआ है।लेकिन राजस्व घाटे में बंगाल देश में अव्वल नंबर पर है।२००७-२००८९ में भी बंगाल राजस्व घाटे में पहले नंबर पर था। तब घाटा ४.२ फीसदी था।२०११- १२ वित्तीय वर्ष में बी बंगाल राजस्व घाटे में पहले नंबर पर है।हांकि राजस्व घाटा कुछ कम होकर अब ३.७ प्रतिशत है।
देश व विदेश के सैकड़ों विख्यात वैज्ञानिकों के भारतीय विज्ञान कांग्रेस के शताब्दी समारोह के दौरान राज्य के लिए आर्थिक मदद मांग कर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक नजीर पेश कर दिया। बंगाल के लिए केंद्र से बार-बार विशेष पैकेज मांगने वाली ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री से कहा कि कृपया बंगाल की ओर ध्यान दीजिए। अगर बंगाल का विकास होगा तो भारत का विकास होगा। उस वक्त मंच पर राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री मौजूद थे।हालांकि, केंद्र से समर्थन वापसी के बाद पहला मौका था, जब प्रधानमंत्री व ममता बनर्जी एक मंच पर थे।
अब परिवहन विभाग के बाद आर्थिक संकट की वजह से करीब 80 हजार शिक्षा कर्मियों के वेतन पर आफत आ गई है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत बने शिशु व माध्यमिक शिक्षाकेंद्र के करीब 80 हजार कर्मियों को आगामी दो माह वेतन का भुगतान कर पाना सरकार के लिए शायद संभव नहीं है।राज्य के पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी ने कहा है कि पिछले वाममोर्चा सरकार ने बिना अनुमोदन के ही हड़बड़ी में इस योजना के तहत शिक्षा केंद्र तैयार कर दिया था और वहां अवैध रूप से माकपा कैडरों को नियुक्त कर दिया गया था। इन लोगों के वेतन के लिए सरकार को वर्ष में 50 करोड़ रुपये खर्च करने होते हैं। यह फंड फिलहाल राज्य सरकार के पास नहीं है।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कूचबिहार में पुंडिबाड़ी में स्थित उत्तर बंग कृषि विश्व विद्यालय परिसर में पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा आयोजित ऋण मेला का उद्घाटन करते हुए पिछले दिनों दावा किया,`अगर मुझे 10 वर्ष का समय मिला तो मैं सोने का बंगाल बना दूंगी।सूबे में 19 माह में दो लाख सरकारी नौकरी की व्यवस्था की गई है। चुनाव के पहले मैंने वादा किया था कि पांच वर्ष सत्ता में रहने पर दस लाख सरकारी नौकरी की व्यवस्था की जाएगी। उस वादे को मैं पूरी तरह से निभाऊंगी।' मुख्यमंत्री ने कहा कि सूबे की जनता के दु:खदर्द से केंद्र का भले ही वास्ता न हो पर देश की सुरक्षा की खातिर राष्ट्रीय सड़क की जल्द से जल्द मरम्मत कराने की जरूरत है। उन्होंने कई बार केंद्र का इस समस्या की तरफ ध्यान भी आकर्षित कराया।
कांग्रेस नेता एवं केंद्रीय शहरी विकास राज्यमंत्री दीपा दासमुंशी ने कहा है कि तृणमूल कांग्रेस के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार की भूमि नीति के कारण निवेशक भयभीत हो गए हैं। दीपा ने कहा, ''राज्य में तथाकथित भूमि नीति कई मायनों में स्पष्ट नहीं है और इसी वजह से उद्योगपतियों के बीच भ्रांतियां हैं।''
राजधानी कोलकाता से लगभग 250 किलोमीटर दूर पुरुलिया जिले में दामोदर घाटी निगम की विद्युत परियोजना की आधारशिला रखने के मौके पर केंद्रीय मंत्री ने कहा, ''पश्चिम बंगाल सरकार की भूमि नीति ने निवेशकों के बीच भ्रांतियां उत्पन्न कर दी हैं। इसलिए वे यहां निवेश करने से हिचकिचा रहे हैं।''
उन्होंने ममता बनर्जी सरकार को चेतावनी दी कि वह भूमि के मामले में राजनीति न करे। दीपा ने कहा, ''हमारी कांग्रेस पार्टी की नीति स्पष्ट है। लेकिन वे लोग जो राज्य पर शासन कर रहे हैं और भावना के बिना अपनी शक्ति और ऊर्जा लगा रहे हैं, मैं उनसे अनुरोध करती हूं कि वे भूमि के मामले में राजनीति न करें।''
दीपा ने यह आरोप भी लगाया कि राज्य सरकार उद्योगों को ऊंची दर पर बिजली देती है। उन्होंने कहा कि 5.50 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली की आपूर्ति की जाती है, जबकि अन्य राज्यों में बिजली की दर कम है।
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