दम तोड़ने लगे हैं ईएसआई अस्पताल!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
चिकित्सा अब क्रयशक्ति पर निर्भर है। अस्पतालों में जगह नहीं मिलती।आम आदमी के लिए बीमारी के हाल में कहीं से कोई राहत की उम्मीद नहीं है। पर कम वेतन पाने वाले र्मचारियों में ईएसआई अस्पतालों में अबभी इलाज कराने का विकल्प है। पर बंगाल में वर्षों से उपेक्षित बदहाल चिकित्सा व्यवस्था में ईएसआई अस्पताल भी दम तोड़ने लगे हैं।राज्य के ईएसआई अस्पतालों के बारे में सरकारी रपट में ही खतरे की घंटी है। १७७ विशेषज्ञ चिकित्सकों के होने की बत हैं, पर इन अस्पतालों में १०१ विशेषज्ञ चिकित्सकों के पद खाली है। सरकार की माली हालत के मद्देनजर देर सवेर इन रिक्तियों में भर्ती की संभावना नहीं है।सामान्य चिकित्सकों के भी २४४ पद खाली हैं।ईएसआई क्षेत्रीय परिषद ने इन अस्पतालों की सेहत जांचने के लिए एक टास्क फोर्स बनायी थी।नौ सदस्यीय टास्क पोर्स ने हाल में राज्य के श्रम मंत्री को जो रपट दी है, उसी में ऐसा खुलासा हुआ है।रपट में कहा गया है कि इन अस्पतालों में पर्याप्त शय्याएं नहीं है , जो हैं उनकी बुरी गत है।चिकित्सकों के अलावा नर्स और दूसरे स्टाफ की भी भारी कमी है।इस पर तुर्रा यह कि सन २०१३ में अनेक चिकित्सक, नर्स,फार्मासिस्ट औक तकनीशिटन रिटायर होने वाले हैं। नई नियुक्तियों का अभी कोी इंतजाम नहीं हो पाया है।रपट के मुताबिक अस्पताल भवनों की लंबे ्रसे से मरम्त नहीं हुई हैं और वे जीर्ण दशा में हैं।किसी ईएसआई अस्पताल में गंभीर मरीजों के इलाज के लिए क्रिटिकलकेयर यूनिट नहीं है।सही मायने में अग्निदग्ध मरीजों के इलाज के लिए बर्न यूनिट भी नहीं है।कहीं कहीं गैरसरकारी अस्पतालों के साथ सहयोग करार हो जाने के बावजूद बकाया भुगतान न होने के कारण गैरसरकारी मदद भी नदारद है।
ईएसआई अस्पतालों का जो हाल है, इस वैकल्पिक चिकित्सा व्यवस्था के देर सवेर ढह जाने की आशंका है। बहरहाल राज्य के श्रम मंत्री पुर्णेंदु बसु ने भरोसा दिया है कि उन्हें रपट मिल गयी है और इस सिलसिले में उचित कार्रवाई की जायेगी।
गौरतलब है कि १९५० में शुरुहुे राज्य के ईएसआई अस्पातालों के संचालन का दायित्व बंगाल सरकार पर है, जबकि दूसरे राज्य में ये अस्पातल केंद्र सरकार के मातहत है।आईएनटीटीय़ूसी की नेता दोला सेन का दावा है कि मां माटी मानु, की सरकार इन अस्पतालों के दिन बहुरें, ऐसा इंतजाम जरुर करेगी।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
चिकित्सा अब क्रयशक्ति पर निर्भर है। अस्पतालों में जगह नहीं मिलती।आम आदमी के लिए बीमारी के हाल में कहीं से कोई राहत की उम्मीद नहीं है। पर कम वेतन पाने वाले र्मचारियों में ईएसआई अस्पतालों में अबभी इलाज कराने का विकल्प है। पर बंगाल में वर्षों से उपेक्षित बदहाल चिकित्सा व्यवस्था में ईएसआई अस्पताल भी दम तोड़ने लगे हैं।राज्य के ईएसआई अस्पतालों के बारे में सरकारी रपट में ही खतरे की घंटी है। १७७ विशेषज्ञ चिकित्सकों के होने की बत हैं, पर इन अस्पतालों में १०१ विशेषज्ञ चिकित्सकों के पद खाली है। सरकार की माली हालत के मद्देनजर देर सवेर इन रिक्तियों में भर्ती की संभावना नहीं है।सामान्य चिकित्सकों के भी २४४ पद खाली हैं।ईएसआई क्षेत्रीय परिषद ने इन अस्पतालों की सेहत जांचने के लिए एक टास्क फोर्स बनायी थी।नौ सदस्यीय टास्क पोर्स ने हाल में राज्य के श्रम मंत्री को जो रपट दी है, उसी में ऐसा खुलासा हुआ है।रपट में कहा गया है कि इन अस्पतालों में पर्याप्त शय्याएं नहीं है , जो हैं उनकी बुरी गत है।चिकित्सकों के अलावा नर्स और दूसरे स्टाफ की भी भारी कमी है।इस पर तुर्रा यह कि सन २०१३ में अनेक चिकित्सक, नर्स,फार्मासिस्ट औक तकनीशिटन रिटायर होने वाले हैं। नई नियुक्तियों का अभी कोी इंतजाम नहीं हो पाया है।रपट के मुताबिक अस्पताल भवनों की लंबे ्रसे से मरम्त नहीं हुई हैं और वे जीर्ण दशा में हैं।किसी ईएसआई अस्पताल में गंभीर मरीजों के इलाज के लिए क्रिटिकलकेयर यूनिट नहीं है।सही मायने में अग्निदग्ध मरीजों के इलाज के लिए बर्न यूनिट भी नहीं है।कहीं कहीं गैरसरकारी अस्पतालों के साथ सहयोग करार हो जाने के बावजूद बकाया भुगतान न होने के कारण गैरसरकारी मदद भी नदारद है।
ईएसआई अस्पतालों का जो हाल है, इस वैकल्पिक चिकित्सा व्यवस्था के देर सवेर ढह जाने की आशंका है। बहरहाल राज्य के श्रम मंत्री पुर्णेंदु बसु ने भरोसा दिया है कि उन्हें रपट मिल गयी है और इस सिलसिले में उचित कार्रवाई की जायेगी।
गौरतलब है कि १९५० में शुरुहुे राज्य के ईएसआई अस्पातालों के संचालन का दायित्व बंगाल सरकार पर है, जबकि दूसरे राज्य में ये अस्पातल केंद्र सरकार के मातहत है।आईएनटीटीय़ूसी की नेता दोला सेन का दावा है कि मां माटी मानु, की सरकार इन अस्पतालों के दिन बहुरें, ऐसा इंतजाम जरुर करेगी।
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