Pages

Free counters!
FollowLike Share It

Wednesday 11 April 2012

दलित महिला लिख रही है संविधान TUESDAY, 10 APRIL 2012 16:20



दलित महिला लिख रही है संविधान

TUESDAY, 10 APRIL 2012 16:20
http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-09-22/28-world/2544-nepali-mahila-likh-rahi-samvidhan-krishna-kumari-periyar

कृष्णा कुमार पेरियार की ये राजनीतिक यात्रा दरअसल दस साल की उम्र में ही शुरू हो गई जब वो अपने पिता के साथ राजनीतिक आंदोलनों में हिस्सा लेने जाया करती थीं लेकिन राजनीति ने उनकी निजी ज़िंदगी पर ख़ासा असर डाला...
संजय ढकाल
नेपाल के सबसे ज़्यादा पिछड़े और दलित वर्ग में पैदा हुई कृष्णा कुमारी परियार आज नेपाल में सांसद हैं और संविधान निर्माण में अहम भूमिका निभा रही हैं.
कृष्णा ने बताया, "मैने बचपन से भेदभाव झेला है. स्कूल में मेरे कुछ साथी कहते थे कि मैं अछूत हूं. पर इस व्यवहार ने मुझे प्रेरित किया राजनीति में आने औऱ इस तरह की परंपराओं को उखाड़ फेंकने के लिए. मैं उन्हे कहती थी मेरे औऱ तुम्हारे ख़ून में कोई फर्क नहीं है. मैं कभी हतोत्साहित नहीं हुई."इस जगह पहुंचने के लिए कृष्णा ने बहुत मुश्किल सफ़र तय किया है.krishna-kumar-periyar
कृष्णा कुमार पेरियार की ये राजनीतिक यात्रा दरअसल दस साल की उम्र में ही शुरू हो गई जब वो अपने पिता के साथ राजनीतिक आंदोलनों में हिस्सा लेने जाया करती थीं लेकिन राजनीति ने उनकी निजी ज़िंदगी पर ख़ासा असर डाला.
कृष्णा के पति ने उनका साथ छोड़ दिया क्योंकि पति की इच्छा थी कि कृष्णा राजनीति छोड़ दें.
नेपाली कांग्रेस की सांसद कृष्णा को चार साल पहले पार्टी द्वारा संविधान लिखने के काम के लिए मनोनीत किया गया. वे उस दिन हर जगह अखबार की सुर्खियों में थी. सिलाई मशीन के साथ उनकी तस्वीर हर जगह छपी पर अब उनकी पहचान बदल गई है.एक दलित परिवार में पैदा होने के सच ने ज़िदगी में जो अनुभव कराए, कृष्णा को अपने राजनैतिक जीवन में उससे फ़ायदा हुआ क्योंकि वो अब बेहतर जानती थीं कि उन्हें क्या करना है.
कृष्णा दलितों को मुख्य धारा में जोड़ने के बारे में बहुत साफ़ तौर पर कहती हैं, "मेरी समझ से सिर्फ़ कोटा निश्चित करने से कुछ नहीं होगा. पिछड़ों औऱ दलितों को मुख्यधारा में शामिल करने और कोटा देने के लिए एक ठोस नीति और आनुपातिक प्रतिनिधित्व की ज़रूरत है. ये दरअसल आर्थिक रूप से क़मज़ोर लोगों को ही मिलना चाहिए. जिस दिन संविधान सभा नया संविधान बना लेगी वो मेरे लिए बहुत ख़ुशी का दिन होगा. मैं समझूंगी मैने वो ज़िम्मेदारी पूरी की जो लोगों ने मुझे सौंपी थी."
ख़ासकर तब जब उनके पति ने फिर एक होने की इच्छा भी ज़ाहिर की है तो क्या कृष्णा इस बारे में सोचने के लिए तैयार हैं?राजनैतिक ख्वाबों को पूरा करने की दिशा में तो कृष्णा कुमारी परियार आगे बढ़ रही हैं लेकिन निजी ज़िंदगी में जो ख़ालीपन है उसके बारे में क्या सोचती हैं कृष्णा.
कृष्णा कुछ शिकायत भरे लहजे में कहती हैं, "मैं सचमुच चाहती थी कि कोई उस वक्त मेरे साथ होता जब मेरे पति ने मुझे छोड़ना का फ़ैसला किया. वो भी तब जब मुझे देर रात लौटने के बाद अपने बच्चों को खाना खिलाना पड़ता था. उसने मुझे उस वक्त अकेले छोड़ दिया. अब मुझे उससे कुछ लेना देना नहीं है."
कृष्णा अब भी सिंदूर लगाती जरूर है लेकिन उनके लिए अब निजी जीवन के कथित सुख के आगे बड़ा उद्देश्य है- दलितों को नेपाल के संविधान के ज़रिए समान अधिकार दिलाने की लंबी लड़ाई.
स्रोत- बीबीसी 


No comments:

Post a Comment