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Saturday 14 April 2012

शेयर बाजार के खेल में जीवन बीमा निगम का सत्‍यानाश, 29 करोड़ पालिसी धारकों को चूना लगा!


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सेबी के नियम तोड़कर बाजार और कारपोरेट जगत के दबाव में विनिवेश की जो पद्धति अपनायी जा रही है, उससे छोटे पालिसीधारकों के ​​भविष्य को चूना लगाने के लिए भारतीय जीवन बीमा निगम को मजबूर कर दिया गया है, जो पहले से ही विनिवेश की पटरी पर है और जिसकी नियति एअर इंडिया से अलग नहीं लगती। जीवन बीमा है तो और कहीं क्यों जाना, लोक लुभावन इस नारे से अब साख नहीं बचती लग​​ रही। इक्विटी पालिसियों को बेचते हुए जो मनभावन भविष्य का खाका एजेंट ने ग्राहकों के सामने खींचा था, अब आपातकालीन आवश्यकता के मद्देनजर उसे भुनाते वक्त सिर्फ आह भरने के बजाय कोई चारा नहीं है। सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के विनिवेश की गरज से ​​एलआईसी इक्विटी का बाजार में विनिवेश कर दिया। ओएनजीसी और पंजाब नेशनल की हिस्सेदारी खरीदने में जीवन बीमा निगम ने कुल​​ इक्विटी २२ हजार करोड़ का ५५ फीसद लगा दिये। शेयर बाजार में जिससे निगम के छोटे ग्राहकों का सत्यानाश हो गया। फायदा तो कुछ ​​नहीं हुआ, पांच छह साल की अवधि के बाद अब घाटा उठाना पड़ रहा है और एजेंट लोगों से कम से कम दस साल तक इंतजार करने की गुजारिश करते हुए गिड़गिड़ा रहे हैं। उन्होने तो अपना कमीशन पीट लिया लेकिन इससे क्या जीवन बीमा की साख बची रहेगी?

 

शेयर बाजार के खेल में जीवन बीमा निगम का सत्यानाश करने के लिए बीमा नियामक के नियमों को भी तोड़ा गया है, ऐसा बाजार में​​ हल्ला है। इसके जरिये जीवन बीमा निगम के करीब २९ करोड़ पालिसी धारकों को चूना लग रहा है। नई पॉलिसियों के निर्गम में कमी आने से इस वित्त वर्ष जीवन बीमा प्रीमियम संग्रह में 14 फीसदी की गिरावट आई है। इंश्योरेंस रेग्युलेटर इरडा ने भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) की एक कंपनी में इक्विटी होल्डिंग की लिमिट बढ़ाने की मांग खारिज कर दी है, लेकिन कुछ ऐसी ही मामलों में उसने अपनी आंखें बंद कर रखी हैं। चूंकि विनिवेश प्रक्रिया में तेजी लाने और वित्तीय बोझ कम करने के मकसद से सरकार की नजरें भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) पर टिकी है। इस लिहाज से जीवन बीमा प्रबंधन को बाजार में बिना इरडा की परवाह किये खुल्ला खेल फर्रुखाबादी की इजाजत है।

इस पर तुर्रा यह कि यह तो प्रथमिक आकलन है। असल आंकड़े अभी बने ही नहीं है। पर आम ग्राहक एलआईसी का चेक पकड़ कर थोक दरों पर रोने लगे हैं। आर्थिक सुधार और विनिवेश की गाज इसतरह सिर्फ सरकारी कर्मचारियों पर नहीं, बलिक आम जनता पर भी गिरने लगी है। अब यह सिलसिला झीवन बीमा निगम का कबाड़ा निकाले बिना थमता हुआ नहीं लगता। य़ाद करें, ओएलजीसी की हिस्सेदारी की नीलामी में हुई​ फजीहत से नाक बचाने के लिए समयसीमा बढ़ाकर सेबी की मिलीभगत से आंकड़े दुरुस्त किये गये थे। वैसे ही बीमा क्षेत्र को निजा कंपनियों के लिए खोलकर सरकार ने झीवन बीमा निगम के कारोबार के बारह बजा दिये, अब लड़खड़ाती साख के साथ कैसे बच पायेगी यह कंपनी। आर्थिक सुधार के पैरोकारों की बस यही मुराद है कि जीवन बीमा निगम की नाक इतनी टेढ़ी कर दी जाये, साख की यह दुर्गति कर दी जाये, ताकि प्रतिद्वंद्वी निजी कंपनियों के सामने बाजार में खड़े होने की उसकी हालत न रहे और एअर इंडिया जैसी हालत हो जाने पर इस कंपनी को और उसकी संपत्ति परसंपत्ति को कबाड़ की कीमत पर बेचकर फिर निजी कंपनियों को चांदी बांट दी जाये। ताजा साक्ष्य इस बात की गवाही देते हैं कि एलआईसी ने भले ही ओएनजीसी के ऑफर फॉर सेल को सरकार के दबाव में बचाया हो। पर, वह खुद भी निवेश करते वक्त किसी कायदे कानून की परवाह नहीं करती। जब भी जरूरत प़ड़ती है, एलआईसी इरडा को बताती रहती है। वैसे भी एलआईसी का निवेश पोर्टफोलियो 13 लाख करोड़ रुपए से ऊपर जा चुका है।

बीमा नियामक संस्था, आईआरडीए (इरडा) का नियम है कि कोई भी बीमा कंपनी किसी भी लिस्टेड कंपनी की इक्विटी में दस फीसदी से ज्यादा निवेश नहीं कर सकती। ऐसा प्रावधान इसलिए किया गया है ताकि बीमाधारकों को अनावश्यक जोखिम से बचाया जाए। लेकिन सरकार के पूर्ण स्वामित्व वाली जीवन बीमा कंपनी एलआईसी को ही शीर्ष सरकारी नियामक के निर्देशों की कतई परवाह नहीं है। देश के सबसे बड़े आर्थिक अखबार इकनॉमिक टाइम्स ने आज अपनी एक रिपोर्ट में इस सच का खुलासा किया है। एलआईसी ने इधर हाल ही में इरडा ने इजाजत मांगी कि उसे किसी कंपनी में 10 फीसदी इक्विटी निवेश की सीमा से मुक्त किया जाए। इसके पीछे कंपनी ने सरकारी कंपनियों के विनिवेश के बोझ का तर्क दिया था। परोक्ष रूप से उसका कहना था कि वित्त मंत्रालय का हाथ उसके ऊपर है। उसने आईटीसी व टाटा स्टील जैसी कंपनियों में कई महीनों से दस फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी बना रखी है। दरअसल पिछले दो महीने में एलआईसी के सरकारी बैंकों में अपनी हिस्सेदारी 10 फीसदी की तय सीमा से बढ़ाने से आईआरडीए नाखुश है। बीमा नियामक ने देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी को विभिन्न कंपनियों में इसकी हिस्सेदारी का ब्योरा देने का निर्देश दिया है।

इस बारे आईआरडीए के चेयरमैन जे हरिनारायण ने कहा, 'हिस्सेदारी रखने की एक सीमा तय की गई है। प्रणाली में स्थिरता बरकरार रखने के लिए ऐसा किया गया है। हमने एलआईसी से इस बारे में विस्तृत जानकारी मांगी है और हम इसकी समीक्षा करेंगे।' पिछले दो महीने के दौरान सबसे बड़ी घरेलू संस्थागत निवेशक एलआईसी ने कई सरकारी बैंकों में 5 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी है और 7500 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया है। इससे सरकार को बैंकों को पूंजी देने में बहुत आसानी हुई है। इसी आधार पर एलआईसी को सरकारी बैंकों जैसे पंजाब नेशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक ऑफ इंडिया, यूनियन बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में तरजीही आधार पर शेयर आवंटित हुए हैं। शेयरों के आवंटन के बाद इन सभी बैंकों में एलआईसी की हिस्सेदारी 10 फीसदी को पार कर जाएगी।

सार्वजनिक क्षेत्र की जीवन बीमा निगम (एलआइसी) ने तरजीही शेयरों के जरिए सार्वजनिक क्षेत्र के चार बैंकों में 2,137 करोड़ रुपये डाले हैं। बंबई शेयर बाजार को दी गई सूचना में एलआइसी ने कहा कि उसने बैंक ऑफ इंडिया में 1,037 करोड़ रुपये, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में 650 करोड़ रुपये, इंडियन ओवरसीज बैंक में 302 करोड़ रुपये और यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया में 148 करोड़ रुपये डाले हैं। एसबीआइ सरकार को जारी करेगा 3.65 करोड़ शेयर मुंबई : भारतीय स्टेट बैंक की कार्यकारी समिति ने सरकार को तरजीही आधार पर 3.65 करोड़ इक्विटी शेयर जारी करने की मंजूरी दे दी है। एसबीआइ ने यह कदम पूंजी जुटाने की अपनी योजना के तहत उठाया है। समिति की बैठक में एक शेयर का मूल्य 2,191.69 रुपये तय किया गया है। सरकार बैंक की कोर पूंजी बढ़ाने को 7,900 करोड़ रुपये लगाने को तैयार हो गई है। सरकार के पास बैंक का 59.4 फीसदी स्वामित्व है। छोटी इकाइयों को हो प्रौद्योगिकी हस्तांतरण नई दिल्ली : सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्रालय ने रक्षा मंत्रालय से छोटी इकाइयों को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की प्रक्रिया सरल बनाने की मांग की है, ताकि वे रक्षा उत्पाद बनाने में सक्षम हो सकें।

अगर किसी सरकारी कंपनी में एलआईसी का इक्विटी निवेश दस फीसदी से ज्यादा होता तो बात समझ में आ सकती थी। लेकिन निजी क्षेत्र की तमाम कंपनियों में उसका निवेश दस फीसदी की लक्ष्मण रेखा कब का पार कर चुका है। जैसे, दिसंबर 2011 तक के आंकड़ों के अनुसार सिंगरेट से लेकर आटा तक बनानेवाली कंपनी आईटीसी में एलआईसी की हिस्सेदारी 12.50 फीसदी है। इसी तरह टाटा स्टील में एलआईसी का निवेश 14.96 फीसदी, महिंद्रा एंड महिंद्रा में 13.14 फीसदी और आईसीआईसीआई बैंक में 10.12 फीसदी है। वहीं ओएनजीसी के अतिरिक्त शेयर खरीदने के बाद भी उसकी इक्विटी हिस्सेदारी 9 मार्च 2012 तक 7.77 फीसदी तक ही पहुंची है। दिसंबर 2011 तक यह 3.23 फीसदी थी।हालांकि कई सरकारी कंपनियों, जैसे – एमटीएनएल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम, एसबीआई, पंजाब नेशनल बैंक, देना बैंक, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया व सिंडीकेट बैंक में एलआईसी की इक्विटी हिस्सेदारी दस फीसदी से ज्यादा हो चुकी है। इस बात को कुछ हद तक जज्ब भी किया जा सकता है। लेकिन टाटा स्टील जैसी कंपनी के लिए एलआईसी अगर इरडा के नियम को मजे से तोड़ देती है तो यही लगता है कि वह अपने को औरों से बहुत ऊपर समझती है।

आम बजट 2012-13 में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने जीवन बीमा पॉलिसियों के संबंध में धारा 80 सी के तहत कटौती एवं धारा 10 (10डी) के तहत मैच्योरिटी पर टैक्स छूट की पात्रता शर्तों में बदलाव करते हुए जीवन बीमा प्रीमियम की राशि का न्यूनतम 10 गुना "वास्तविक बीमा पूँजी राशि" अनिवार्य कर दी है। यह प्रावधान जीवन बीमा के पेंशन प्लान को छोड़कर अन्य सभी प्लानों पर लागू होगा। साथ ही "वास्तविक बीमा पूँजी राशि" को परिभाषित किया गया है। "वास्तविक बीमा पूँजी राशि" से आशय किसी भी समय बीमाकृत घटना के घटित होने पर पॉलिसी के अधीन न्यूनतम बीमा राशि से है। "वास्तविक बीमा पूँजी राशि" की गणना में निम्न को शामिल नहीं किया जाएगा।

1. किसी करार के तहत जीवन बीमा पॉलिसी की प्रीमियम वापसी राशि (रिटर्न ऑफ प्रीमियम)।

2. बोनस के रूप में प्राप्त होने वाली राशि।

वर्तमान में कई जीवन बीमा उत्पाद में आरंभिक वर्षों में तो न्यूनतम बीमा राशि का पालन कर लिया जाता है, परंतु बाद के वर्षों में बीमा राशि कम कर दी जाती है, जिससे बीमाधारक को संपूर्ण पॉलिसी अवधि में न्यूनतम बीमा राशि का लाभ नहीं मिल पाता है। अतः अब वास्तविक बीमा पूँजी राशि का प्रावधान जुड़ जाने से बीमा धारक को न्यूनतम बीमा राशि का लाभ संपूर्ण पॉलिसी अवधि में मिल सकेगा। यह प्रावधान जीवन बीमा पॉलिसी के संबंध में धारा ८० सी के तहत कटौती एवं धारा 10 (10डी) के तहत मैच्योरिटी पर टैक्स छूट दोनों पर 1 अप्रैल 2012 या उसके बाद जारी सभी जीवन बीमा पॉलिसियों (पेंशन प्लान को छोड़कर) पर लागू होना प्रस्तावित है।

भारतीय जीवन बीमा निगम, भारत की सबसे बड़ी जीवन बीमा कंपनी है, और देश की सबसे बड़ी निवेशक कंपनी भी है। यह पूरी तरह से भारत सरकार के स्वामित्व में है। इसकी स्थापना सन् १९५६ में हुई। इसका मुख्यालय भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई में है। भारतीय जीवन बीमा निगम के ८ आंचलिक कार्यालय और १०१ संभागीय कार्यालय भारत के विभिन्न भागों में स्थित हैं। इसके लगभग २०४८ कार्यालय देश के कई शहरों में स्थित हैं और इसके १० लाख से ज्यादा एजेंट भारत भर में फैले हैं। भारतीय जीवन बीमा निगम, भारत की सबसे बड़ी जीवन बीमा कंपनी है, और देश की सबसे बड़ी निवेशक कंपनी भी है। यह पूरी तरह से भारत सरकार के स्वामित्व में है। इसकी स्थापना सन १९५६ में हुई। इसका मुख्यालय भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई में है। भारतीय जीवन बीमा निगम के ८ आंचलिक कार्यालय और १०१ संभागीय कार्यालय भारत के विभिन्न भागों में स्थित हैं। इसके लगभग २०४८ कार्यालय देश के कई शहरों में स्थित हैं और इसके १० लाख से ज्यादा एजेंट भारत भर में फैले हैं।

[B]मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास की रिपोर्ट. [/B]



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