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Tuesday 10 April 2012

फिल्म की कामयाबी के लिए बड़े जिगर का निर्देशक चाहिए!



फिल्म की कामयाबी के लिए बड़े जिगर का निर्देशक चाहिए!

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

फिल्म अंततः निर्देशक का माध्यम होता है, समांतर फिल्मों के जरिये जो बेहतरीन कलाकार भारतीय फिल्म उद्योग को मिले, उन्हें निर्देशक की देन बताना गलत नहीं होगा। क्या हम शबाना आजमी या स्मिता पाटिल की चर्चा श्याम बेनेगल के बिना कर सकते हैं! इधर अच्छी बात यह है कि बालीवूड में कारपोरेट घुसपैठ के बावजूद,कड़ी व्यवसायिक चुनौतियों के बावजूद नये निर्देशक कुछ कर दिखाने का दम दिखा रहे हैं। पान सिंह तोमर की तो खूब चर्चा हो चुकी है। फिल्म कहानी की भी थोड़ी चर्चा हो जाये। विद्या बालन बेहतरीन अदाकारा हैं, इसमें कोई शक ​ ​नहीं। पा, इश्किया, परिणीता और डर्टी पिक्चर के बाद  फिल्म कहानी में उन्होंने भारतीय नारी कमें संघर्ष के माद्दे को जो नये आयाम दिये हैं,​​ उसमें निर्देशक सुजॉय घोष की भी बड़ी भूमिका है। यह ठीक ऐसा है जैसे कि वहीदा रहमान के उत्थान के पीछ कैमरे के पीछे से गुरुदत्त का हाथ।

असल में विद्या के अभिनय को निर्देशक सुजय घोष ने रियल टाइम, रियल लोकेशन  शूटिंग से इतना जीवंत बनाने का काम किया है, जिसका उन्हें श्रेय मिलना चाहिए। अभी अभी किंवदंती अभिनेत्री सुचित्रा सेन का निःशब्द एकांत एक और जन्म दिन बीता है।हिंदी में लोगों ने बम्बई का बाबू, ​
​सरहद, ममता और आंधी में उनके करिश्मे को देखा है, पर बांग्ला फिल्म के दर्शक आज भी उनकी हर फिल्म के लिए तरसता है। इस अभिनय प्रतिभा को ्गर सत्यजीत राय, मृणाल सेन या ऋत्विक घटक का साथ मिला होता, तो भारतीय फिल्मों की य़ह एक और शानदार उपलब्धि होती। ऋत्विक की फिल्मों मेघे ढाका तारा और कोमल गांधार में जरा सुप्रिया चौधरी का काम देखें। या फिर राय की फिल्मों में शर्मिला, अपर्णा और खासकर चारुलता में माधवी मुखर्जी का अभिनय देखें तो हमारा आशय समझ में आ जायेगा। कलाकार बहुत बड़ा स्टार हो सकता है , पर निर्देशन की कला ही उसे अभिनेता बनाती है।​निर्देशक सुजॉय घोष का अपनी फिल्म कहानी के बारे में कहना है कि यह फिल्म इसलिए बनी क्योंकि इस फिल्म की एक्ट्रेस ने कहानी पर भरोसा किया।'कहानी' फिल्म में एक गर्भवती महिला (विद्या बालन) की कहानी है जो कोलकाता की गलियों में अपने पति की तलाश करती है।बहुत वर्षो के बाद कोलकाता को केंद्र में रख कर कोई फिल्म पूरी तरह से फिल्माई गई है।​ इस फिल्म के शुरुआत में कहानी जितनी सरल दिखती है दर्शको को , आगे बढ़ते -बढ़ते कहानी एक थ्रिलर बन जाती है।​ हर लम्हा कहानी का एक नया सिरा दर्शको के सामने खोलता है. कैसे एक साधारण सी लगने वाली एक कंप्यूटर इंजिनीयर गर्भवती स्त्री अंत में अपने पति की मौत का बदला लेनेवाली एक आर्मी ऑफिसर की विधवा निकलती है।​ फिल्म कहानी की पटकथा लिखने वाली अद्वैता कला इसी कहानी के आधार पर एक उपन्यास भी लिखेंगी। हालांकि दोनों की कहानी में कुछ अंतर रहेगा।

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​कहानी के क्लामेक्स सीन का फिल्मांकन २०१० को कोलकाता में दुर्गापूजा की दशमी की रात बालिगंज कल्चरल की पूजा के साथ हुआ। रियल लोकेशन, रियल टाइम। दृश्य में सिंदूर खेला के मौके पर विद्या के साथ तमाम पात्र भी रियल। महज फ्रेम और फोकस के लिहाज से तधा विद्या की सुरक्षा के​ ​ खातिर उस भीड़ में यूनिट के भी दो चार लोग शामिल कर लिये गये।यह प्रयोग विद्या की कामयाबी पर निर्भर थी, और उन्होंने दिखा दिया कि वे फेल होना नहीं जानती। इस शूटिंग की वजह से विसर्जन में चार घंटे से ज्यादा देरी हो गयी।​
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​पान सिंह तोमर के संदर्भ में भी चंबल के बीहड़ के रियल लाइफ के बिना क्या इरफान खान जैसे सशक्त अभिनेता के लिए अपने किरदार को इतने शानदार ढंग से जीने का मौका मिलता?इसके लिए तो तिमांग्शु को दाद देनी ही पड़ेगी।

सुजॉय घोष  के मुताबिक इस रियल लाइफ शूटिंग के लिए जो जोखिम उठाने का फैसला उन्होंने किया, उसे लेकर खुद उनको आज फिल्म की कामयाबी के बाद उन्हें ताज्जुब होता है। इस तरह के फिल्मांकन में सिंदूर खेल में विद्या की आंखों को खतरा हो सकता था। कैमरा का फोकस या फ्रेम गड़बड़ाने से सबकुछ गुड़ गोबर हो सकता था। विद्या को इसका अंदेशा था। फिर भी उन्होंने न भीड़ से सहमने की जरुरत समझी और न झोखिम से डरकर अभिनय भूलीं। निर्देशक को अपने कलाकार से और कितना सहयोग चाहिए?हालिया प्रदर्शित हुई निर्माता निर्देशक सुजॉय घोष की फिल्म "कहानी" ने बॉक्स ऑफिस पर जबरदस्त सफलता प्राप्त करने में कामयाबी पायी है। इस फिल्म की सफलता ने विद्या बालन को बॉलीवुड की सुपर तारिकाओं में शामिल करवा दिया है। फिल्म निर्माता सुजॉय घोष की कई कलाकारों वाली फिल्म 'अलादीन' में काम कर चुके बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन ने कहा है कि निर्देशक की 'कहानी' एक शानदार फिल्म है।

निर्देशक सुजॉय घोष प्रेयोग काफी किये हैं, दर्शकों ने , खासकर कोलकाता के दर्शकों ने इसे खूब महसूस किया होगा से पृष्ठभूमि में बांग्लागानों का रेडियो में बजना , शूटिंग नए कोलकाता की जगह पुराने कोलकाता में करना , दुर्गा पूजा को पृष्ठभूमि में रख कर कहानी को आगे बढ़ाना, सब कुछ एक शहर के मिजाज़ को ध्यान में रख कर किया गया है। ट्राम ,टैक्सी , रिक्शे और कोलकाता मेट्रो  इस्तेमाल करना। विद्या बालन का राणा को पैर मरना और राणा का उसे नमस्कार करना कोलकाता की सभ्यता का एक महत्वापूर्ण अंग है,जो अब ख़तम होता जा रहा है। 'कहानी' के उस दृश्य को कोलकाता मेट्रो रेलवे ने दिखाने की इजाजत दे दी, जिसमें विद्या को तेजगति से आती एक मेट्रो ट्रेन के सामने पटरी पर धकेलते हुए दिखाया गया। इस तरह से बीते कई दिनों से इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक सुजॉय घोष व मेट्रो रेल के अधिकारियों के बीच चला आ रहा विवाद खत्म हो गया। मालूम हो कि मेट्रो रेल के अधिकारियों ने घोष से फिल्म के इस दृश्य के फिल्मांकन पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि इससे लोगों में मेट्रो रेल के सामने आत्महत्या करने की प्रवृत्ति बढ़ेगी। घोष ने इस मुद्दे को छोटा-मोटा मामला बताया। उन्होंने कहा कि वह एक बंगाली हैं और महानगर को अच्छी तरह जानते हैं। इस दृश्य के जरिये लोगों को आत्महत्या के बारे में याद दिलाने का इरादा नहीं है।


बिना कोई हीरो और बिना किसी गाना, कहानी भारतीय दर्शकों को इतनी पसंद आयी कि बादशाह शाहरुख खान को भी निर्देशक को फोन करके​
​ कनग्राट्स कहना पड़ा।​
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​फिल्म में कारपोरेट की घुसपैठ जबर्दस्त है तो फिल्म के जरिये ही तो उसका मुकाबला करना होगा!आखिर फिल्म उद्योग है तो उद्योग से बढ़कर कला भी तो है।जहां निवेशक की नहीं, अंततः कलाकार की चलती है। सौ सौ करोड़ की पिलमों के मुकाबले निर्देशक के बड़े जिगर के कारनामे से ही छोटे बजट की सार्थक पिल्में कामयाब हो रही हैं और फिल्मी बाक्स आफिस का व्याकरण है। चाहे कारपोरेट सौंदर्यशास्त्र कुछ भी कहे!

दो फ्लॉप फिल्मों के बाद 'कहानी' की सफलता से अभिभूत निर्देशक सुजॉय घोष का कहना है कि उन्होंने विद्या बालन को लेकर यह फिल्म बनाने का जोखिम लिया जो कागज पर बिल्कुल भी फिल्म बनाने लायक कहानी नहीं लग रही थी।
   
सुजॉय का कहना है कि वह ऐसी फिल्म बनाने को लेकर बहुत उत्साहित नहीं थे जिसकी शीर्ष कलाकार एक गर्भवती महिला हो, जिसमें कई सारे अनजान कलाकार हों और कहानी कोलकाता की पृष्ठभूमि में हो। सुजॉय ने कहा, 'यह पूरा विचार विद्या बालन के साथ काम करने का था। इसके अलावा एक फिल्मकार के तौर पर गर्भवती महिला को शीर्ष किरदार बनाकर थ्रिलर फिल्म तैयार करना भी बड़ी चुनौती थी। मैं दो फ्लॉप फिल्में कर चुका था इसलिए अनजानी दिशा में बढऩा चाहता था।'
     
सुजॉय का लिया जोखिम उनके लिए कारगर सिद्ध हुआ और फिल्म 'कहानी' रिलीज के एक कई दिन बाद भी सफलतापूर्वक पर्दे पर बनी रही। उन्हें फिल्म के इस कदर हिट होने की उम्मीद नहीं थी। उन्होंने कहा, 'फिल्म की सफलता की कोई गारंटी नहीं थी क्योंकि जब आप कागज पर देखते तो इसमें वो सबकुछ दिखाई दे रहा था जो एक फिल्म में नहीं होना चाहिए। फिल्म की रोचक बात यह थी कि इसमें और कुछ नहीं बल्कि कलाकारों का अभिनय और कहानी बयां करने का तरीका पसंद आया।'
   
उन्होंने 'कहानी' की सफलता के बाद विद्या और अमिताभ बच्चन के साथ एक बार फिर काम करने संबंधी खबरों पर केवल इतना कहा कि अब वह अपने बेटे के साथ समय बिताना चाहते हैं। सुजॉय ने कहा, 'अभी कागज पर कुछ भी नहीं है। फिलहाल मैं अपने बेटे के साथ रग्बी खेलना चाहता हूं।'



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