Pages

Free counters!
FollowLike Share It

Saturday 18 February 2012

मुसीबतें बढ़ीं, पर कोल इंडिया कोयला आयात के खिलाफ


मुसीबतें बढ़ीं, पर कोल इंडिया कोयला आयात के खिलाफ

एयर इंडिया को बैंकों से 18,000 करोड़ मंजूर

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप से बिजली कंपनियों को कोयला आपूर्ति की बाध्यता, कोयला की कीमत में वृद्धि न होने और उत्पादन में गिरावट से कोल इंडिया की मुसीबतें बढ़ गयी हैं।तंग आकर कोल इंडिया ने साफ किया है वह कोयले के आयात कारोबार में नहीं है और फिलहाल वह कोयला आयात नहीं करना चाहती। पावर कंपनियों के साथ फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट करने की खबर के बाद कोल इंडिया के शेयरों में गिरावट है।

दूसरी ओर, नकदी के संकट से जूझ रही एयर इंडिया को कर्ज देने वाले बैंकों ने उस पर बकाया 18,000 करोड़ रुपए के अपने कर्ज को पुनर्गठित करने की एक योजना को आज मंजूरी दी। ये संस्थान इस सरकारी एयरलाइन को 2,200 करोड़ रुपए का नया कर्ज दी देने को तैयार हो गए हैं।

कोल इंडिया की एक्टिंग चेयरपरसन जोहरा चटर्जी के मुताबिक कंपनी ने पहले भी कोयला आयात किया था। लेकिन तब पावर कंपनियों ने कोयला खरीदने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी।

हालही में जोहरा चटर्जी ने कहा था कि कोयले की कमी को दूर करने के लिए आयात का रास्ता खुला है। लेकिन अब वह अपनी इस बात से मुकरती दिख रहीं हैं।

कोल इंडिया ने हालांकि साफ किया है कि कोयले का आयात करना उसका काम नहीं है। हालांकि, प्रधानमंत्री के निर्देश के बाद कोयला आयात में वृद्धि की आशंका बढ़ गई हैइससे कोल इंडिया की हालत और बिगड़ने के आसार है जबकि सरकारी नीतियों से उसे राहत नहीं मिल रही।मजदूर संगठन नौंवें वेतन आयोग लागू करने पर अड़े हैं, पर कंपनी पर बढ़ते सरकारी दबाव के खिलाफ वे खामोश है। यह प्रबंधन का सरदर्द है।शेयर गिरने से बाजार की साख का भी ख्याल करना है। जबकि उत्पादन में सुधार होने की उम्मीद भी कोई खास नहीं है।

प्रधानमंत्री द्वारा पावर सेक्टर की दिक्कतों पर बनाई गई कमेटी ने फैसला किया है कि 30 दिसंबर 2011 तक जो पावर प्लांट बन चुके हैं, उनके साथ कोल इंडिया को फ्यूल सप्लाई अग्रीमेंट करना होगा।प्रधानमंत्री के निर्देश पर फायदा पाने वाली प्रमुख बिजली उत्पादक कंपनियां लैंको, अदानी, रिलायंस पावर, एनटीपीसी हैं।इनमें से सिर्फ एनटीपीसी सरकारी क्षेत्र की कंपनी है। जाहिर है कि कोल इंडिया के हितों को तिलांजलि देकर निजी कंपनियों को ही​​ ज्यादा फायदा होना है। बिजली उपभोक्ताओं को इससे कितना लाभ होगा, कहा नहीं जा सकता। पर इसमें फिलहाल कोई शक नहीं कि शेयर बाजार में कोल इंडिया की साख को काफी नुकसान पहुंचा है।

साथ ही, जो प्लांट 31 मार्च 2015 तक तैयार होंगे और पावर परचेज अग्रीमेंट कर चुके हैं, उन प्लांट के साथ भी कोल इंडिया को फ्यूल सप्लाई अग्रीमेंट करना होगा।

अगर कोल इंडिया 80 फीसदी से कम कोयले की सप्लाई करती है, तो कंपनी पर जुर्माना लगेगा। हालांकि, कोल इंडिया को कोयला आयात करने की छूट दी गई है। आयातित कोयले की ज्यादा कीमत पावर कंपनियों को देनी होगी।

प्रधानमंत्री के निर्देश के बाद कोयला मंत्रालय ने कहा है कि सीआईएल लंबे समय के लिए बिजली वितरण कंपनियों के साथ पावर परचेज एग्रीमेंट (पीपीए) करने वाली बिजली उत्पादक कंपनियों के साथ 80 फीसदी फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट (एफएसए) के लिए तैयार है। इस बीच, कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) का कहना है कि विद्युत मंत्रालय से बिजली उत्पादक कंपनियों की सूची मिलने के साथ ही एफएसए पर कार्रवाई शुरू कर दी जाएगी।

इसके बाद इन कंपनियों के बीच कोयले के वितरण का रास्ता निकाला जाएगा। हालांकि, सीआईएल ने यह भी साफ-साफ शब्दों में कहा है कि कोयले का आयात करना उसका काम नहीं है। वहीं, दूसरी तरफ प्रधानमंत्री के निर्देश के बाद कोयले के आयात में बढ़ोतरी की आशंका बढ़ गई है।बिजली उत्पादक कंपनियों और अन्य ढांचागत परियोजनाओं में कोयले की जरूरत को पूरा करने के लिए सरकार कोयले के आयात को आसान बना सकती है। आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि हालांकि सीमा शुल्क को पूरी तरह समाप्त नहीं किया जाएगा। वित्त मंत्रालय बिजली क्षेत्र की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए आयात किए जाने वाले कोयले पर लगने वाली काउंटरवेलिंग ड्यूटी (सीवीडी) में आंशिक कटौती करने पर विचार कर रहा है।

उन्होंने कहा कि सीवीडी में पांच फीसदी छूट के बारे में विचार किया जा रहा है। ताप विद्युत या कोयला आधारित बिजली संयंत्रों और संबंधित परियोजनाओं के लिए कोयला आयात करने की स्थिति में ही यह छूट दी जाएगी। वर्तमान में नॉन-कोकिंग कोल पर एक फीसदी उत्पाद शुल्क के अतिरिक्त पांच फीसदी सीमा शुल्क लगता है। पिछले बजट में 130 वस्तुओं पर एक फीसदी उत्पाद शुल्क की घोषणा की गई। इसकी घोषणा तब हुई जब सरकार ने 130 उत्पादों पर सेनवेट क्रेडिट के बिना एक फीसदी उत्पाद शुल्क का प्रस्ताव रखा था।

अगर सेनवेट क्रेडिट लिया जाता है तो इन उत्पादों पर पांच फीसदी सीमा शुल्क लगता है। यह लिग्नाइट, पीट, कोक, तार आदि सभी श्रेणियों के कोयले पर लागू होता है।

उद्योग के प्रतिनिधियों के अलावा ऊर्जा मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय को कोयला आयात के शुल्क ढांचे पर पुनर्विचार करने को कहा है। ऊर्जा मंत्रालय का यह दृष्टिकोण है कि जहां कोयले की वैश्विक कीमतों में 35-40 फीसदी बढ़ोतरी हुई है वहीं अतिरिक्त आयात शुल्क लागत को और बढ़ा रहा है।

प्रमुख कोयला निर्यातक देश जैसे इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया ने हाल के महीनों में कोयले की कीमत निर्धारण के अपने तरीके में बदलाव किया है, जिससे कोयले की कीमतों में भारी बढ़ोतरी हुई है। वर्तमान बिजली खरीद समझौतों (पीपीए) के तहत ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी को ग्राहकों पर नहीं डाला जा सकता, जिसके कारण बहुत सी कोयला आधारित परियोजनाएं व्यावसायिक रूप से अव्यवहार्य बन गई हैं। वार्षिक योजना दस्तावेज 2011-12 के मुताबिक देश में कोयले की अनुमानित मांग 69.603 करोड़ टन है और घेरलू कोयले का उत्पादन 55.4  करोड़ टन रहने की संभावना है।

कोयला मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक अगले तीन साल में सीआईएल 35,000 मेगावाट क्षमता की विभिन्न परियोजनाओं के साथ एफएसए करेगी।

हालांकि, अगले तीन साल के लिए कोल लिंकेज के वास्ते लाइन में खड़ी कई नई परियोजनाओं पर विचार करना संभव नहीं होगा। दूसरी तरफ सीआईएल की कार्यवाहक सीएमडी और कोयला मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव जोहरा चटर्जी ने कोलकाता में कहा कि सीआईएल ने पूर्व में बिजली कंपनियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात की कोशिश की थी, लेकिन बिजली कंपनियों की तरफ से कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई गई। उन्होंने यह भी कहा कि कोयले का आयात करना सीआईएल का कारोबार नहीं है और आयात कोयले की मांग को पूरा करने का एक तरीका हो सकता है।

सीआईएल के पूर्व सीएमडी एन.सी. झा कहते हैं कि वर्ष 2011 तक स्थापित हो चुकी और वर्ष 2015 तक स्थापित होने वाली बिजली परियोजनाओं को मिलाकर सीआईएल को लगभग 70,000 मेगावाट की परियोजनाओं के साथ एफएसए करना होगा। 80 फीसदी ट्रिगर के हिसाब से एफएसए करने पर इन परियोजनाओं के लिए प्रति वर्ष 2800 लाख टन कोयले की जरूरत होगी। जिन परियोजनाओं के साथ एफएसए पहले ही हो चुका है उनके लिए सालाना 2700 लाख टन कोयले की जरूरत है।

वर्ष 2017 तक सीआईएल का उत्पादन 6150 लाख टन हो जाने का अनुमान है। इनमें से लगभग 610 लाख टन कोयला ई-नीलामी के लिए रखा जाएगा और लगभग 600 लाख टन कोयला गैर बिजली क्षेत्र वाली परियोजनाओं को दिया जाएगा क्योंकि उनके साथ पहले ही एफएसए हो चुका है। ऐसे में बिजली परियोजनाओं के लिए लगभग 4950 लाख टन कोयला उपलब्ध होगा और बाकी का आयात ही करना पड़ेगा। वे यह भी कहते हैं कि नए एफएसए से आगामी वित्त वर्ष 2012-13 के दौरान कोयले के आयात में और बढ़ोतरी की आशंका है।

गत 1 फरवरी को प्रधानमंत्री के निर्देश पर पीएमओ के प्रमुख सचिव पुलक चटर्जी की अध्यक्षता में गठित सचिव स्तरीय समिति ने 31 मार्च 2015 तक स्थापित होने वाली या लंबे समय तक पीपीए करने वाली बिजली उत्पादक कंपनियों के साथ एफएसए करने का निर्देश सीआईएल को दिया था। समिति ने 31 दिसंबर, 2011 तक स्थापित बिजली परियोजनाओं के साथ 31 मार्च तक एफएसए करने का निर्देश जारी किया था।

अभी हाल में कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा कि उनकी तमाम कोशिशों के बाद भी कोयले के कारोबार में 50 फीसदी भ्रष्टाचार है उन्होंने इस क्षेत्र में चल रहे भ्रष्टाचार को ऐतिहासिक बताया वह कहते हैं कि देश में बिजली की कमी की सबसे बड़ी वजह कोयले की डिमांड, सप्लाई और क्वालिटी से जुड़ी है वह यह भी मान रहे हैं कि कोल सेक्टर में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की बिजली कंपनियों के बीच टकराव है और इस टकराव में निजी कंपनियां सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों पर भारी पड़ रही हैं दूसरी ओर कैग ने कोयला मंत्रालय को रिलायंस पावर लिमिटेड को 1 लाख 20 हज़ार करोड़ रुपये के कोयले का फायदा पहुंचाने का दोषी पाया है कैग की रिपोर्ट के मुताबिक़, सरकार ने कोयला लाइसेंस के नियमों में बदलाव करके रिलायंस को यह अधिकार दे दिया कि वह अपने सरप्लस कोयले को अन्य प्रोजेक्ट्‌स के लिए इस्तेमाल कर ले. बहरहाल, मंत्री महोदय यह सब कुछ मानते और जानते हुए भी कार्रवाई के नाम पर सरकार क्या करने जा रही है या क्या करेगी के बजाय राज्यों से अपनी सोच बदलने की बात कहते हैं कोयले जैसे महत्वपूर्ण संसाधन की लूट जिस तरह इस देश में हुई है और जिसकी वजह से लाखों करोड़ों रुपये का घोटाला इस देश में हुआ है, उसके आगे 2-जी स्पेक्ट्रम जैसा घोटाला भी बौना साबित होगा, लेकिन कोयला मंत्री जांच कराने की जगह स़िर्फ बयानबाज़ी कर रहे हैं

जब 2-जी मामले में फंसी सरकार को यह लगा कि कोयला महाघोटाला उसके लिए एक और परेशानी का सबब बन सकता है, तब कोयला मंत्रालय ने दिखावे के लिए कुछ कंपनियों के ख़िला़फ कार्रवाई शुरू की कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा था कि पिछले एक दशक में क़रीब 208 कोल ब्लॉक निजी और सार्वजनिक क्षेत्र को आवंटित किए गए थे, जिनमें से कई कंपनियों का परफॉर्मेंस संतोषजनक नहीं है और उनके ख़िला़फ कार्रवाई की जाएगी कार्रवाई के तहत उनकी लीज निरस्त करने की बात भी थी, लेकिन कार्रवाई महज कुछ कंपनियों के ख़िला़फ हुई एनटीपीसी को आवंटित 5 कोल ब्लॉक निरस्त कर दिए गए, लेकिन निजी क्षेत्र की डिफाल्टर कंपनियों के ख़िला़फ कार्रवाई से सरकार बचती रही दूसरी ओर आज देश में जिस मात्रा में कोयले की मांग बढ़ी है, उस मात्रा में उत्पादन नहीं हो रहा है इसकी एक बड़ी वजह वे कंपनियां हैं, जिन्हें कोल ब्लॉक आवंटित किए गए थे, लेकिन जिन्होंने वहां उत्पादन शुरू नहीं किया, सरकार ने उनके ख़िला़फ कार्रवाई भी नहीं की

1993 से लेकर 2010 तक कोयले के 208 ब्लॉक बांटे गए, यह 49.07 बिलियन टन कोयला था इनमें से 113 ब्लॉक निजी क्षेत्र और 184 ब्लॉक निजी कंपनियों को दिए गए और यह 21.69 बिलियन टन कोयला था अगर बाज़ार मूल्य पर इसका आकलन किया जाए तो 2500 रुपये प्रति टन के हिसाब से इस कोयले का मूल्य 5,382,830.50 करोड़ रुपये निकलता है अगर इसमें से 1250 रुपये प्रति टन घटा दिया जाए, यह मानकर कि 850 रुपये उत्पादन की लागत है और 400 रुपये मुनाफ़ा, तो भी देश को लगभग 26 लाख करोड़ रुपये का राजस्व घाटा हुआ देश की खनिज संपदा, जिस पर 120 करोड़ भारतीयों का समान  अधिकार है, को इस सरकार ने लगभग मुफ्त में बांट दिया. अगर इसे सार्वजनिक नीलामी प्रक्रिया अपना कर बांटा जाता तो देश को इस घोटाले से हुए 26 लाख करोड़ रुपये के राजस्व घाटे से बचाया जा सकता था और यह पैसा देशवासियों के हितों में ख़र्च किया जा सकता था


यही नहीं,कोल इंडिया का नौंवा वेतन समझौता में कोई विसंगतियां है, जिसे दूर किया जाना चाहिए। ये समझौता मजदूरों के हित में नहीं है। इसमें कई विषयों में सुधार व कई नए विषयों का समायोजन किए जाने की आवश्यकता है। वेतन विसंगति को लेकर मजदूर उग्र हो रहे हैं।  कोयला कर्मचारियों का नौंवा वेतन समझौता एक जुलाई 2011 से लंबित है। इसके लिए कोल इंडिया द्वारा नौवें जेबीसीसीआई का गठन किया गया है।  वेतन वृद्धि का प्रतिशत 25 तक गया। श्रमिक संगठन भी इतनी वृद्धि के लिए तैयार थे, लेकिन मामला अधिकारियों के समान कर्मचारियों को भी पर्क की सुविधा पर अटक गया। कोल इंडिया की ओर से यह कहा गया कि अधिकारियों के लिए वेतन समझौता दस वर्षीय लागू है। कर्मचारियों को हर पांच साल में नया वेतन समझौता लागू करके वेतन एवं सुविधाएं दी जाती है। कोल इंडिया का उत्पादन इस समय घट गया है। कोयला उत्खनन के लिए कई उपाय किए जा रहे हैं, लेकिन उनमें किसी न किसी कारण से अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है। ज्यादा की वृद्धि संभव नहीं हो पाएगी। श्रमिक संगठन के पदाधिकारियों ने कहा कि पिछले वर्ष 24 प्रतिशत वेतन वृद्धि हुई थी। इस बार 25 प्रतिशत वृद्धि करने पर वे भी सहमति दे सकते हैं। बशर्ते अधिकारियों के समान कर्मचारियों को भी पर्क की सुविधा दी जानी चाहिए। कोयला उत्खनन सबकी भागीदारी से किया जाता है। सुविधाएं भी एक समान लागू होनी चाहिए।


कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) एक भारत का सार्वजनिक प्रतिष्ठान है। यह भारत और विश्व में भी सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी है। यह भारत सरकार के पूर्ण स्वामित्व वाली कंपनी है, जो कोयला मंत्रालय, भारत सरकार के अधीनस्थ है।

गौरतलब है कि कोल इंडिया ने वित्त वर्ष 2011-12 के लिए सरकार को 5,684.73 करोड़ रुपये का लाभांश देने का प्रस्ताव किया है। यह लाभांश पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले ज्यादा है। वहीं सरकारी कंपनी नैवेली लिग्नाइट कारपोरेशन (एनएलसी) की कोयला मंत्रालय को 439.51 करोड़ रुपये का लाभांश कोयला मंत्रालय को देने की योजना है।

आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार, कोल इंडिया लि. (सीआईएल) तथा एनएलसी ने 2011-12 के लिए सरकार को 6,124.24 करोड़ रुपये का लाभांश देने का प्रस्ताव किया है। पिछले वित्त वर्ष में कोल इंडिया ने सरकार को 2,217 करोड़ रुपये का लाभांश दिया था जबकि 2009-10 में यह 2,210 करोड़ रुपये था। वहीं एनएलसी ने वित्त वर्ष 2010-11 के लिये 448.47 तथा 209-10 के लिये 313.92 करोड़ रुपये का लाभांश दिया था।

सब्सिडी बढ़ने तथा विनिवेश न होने के कारण वित्तीय समस्याओं से जूझ रही सरकार को उच्च लाभांश से राहत मिल सकती है। इससे पहले, आर्थिक मामलों के सचिव आर गोपालन ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों और बैंक प्रमुखों के साथ कई बैठकें कर सरकार को उच्च लाभांश देने के लिए प्रेरित किया था। वित्त वर्ष 2010-11 में सरकार ने सार्वजनिक कंपनियों से 25,978 करोड़ रुपये का लाभांश प्राप्त किया था। चालू वित्त वर्ष के लिए यह लक्ष्य 23,495 करोड़ रुपये रखा गया है।

रामगढ़, गिद्दी: उरीमारी से नियमित कोयला नहीं मिलने के कारण गिद्दी वाशरी को बीते छह माह में करीब 14 करोड़ का नुकसान हो चुका है। जिससे वाशरी के भविष्य पर ही प्रश्न चिन्ह लग गया है।

वहीं कोयला के अभाव में कई कई दिनों तक प्लांट बंद रहने से कर्मियों में प्रबंधन के प्रति नाराजगी है। कर्मियों से मिली जानकारी के अनुसार वित्तीय वर्ष 2011-12 के शुरूआती छह माह में वाशरी को उरीमारी से पर्याप्त कोयला नहीं मिल सका। इस वित्तीय वर्ष के अप्रैल माह में 38 हजार 400 टन कोयला, मई माह में 29 हजार 800 टन, जून माह में 33 हजार 400 टन, जुलाई माह में 19 हजार 700 टन, अगस्त में 13 हजार 300, सितंबर में 25 तरीख तक 10 हजार आठ सौ टन कोयला कुल एक लाख 42 हजार 400 टन कोयला उरीमारी से वाशरी को आपूर्ति की गई। जबकि वाशरी को छह माह में करीब पौने तीन लाख टन कोयले की आपूर्ति होनी चाहिए। उक्त कोयला से 90 हजार टन वाश कोल का उत्पादन होता। लेकिन अभी तक कोयला की आपूर्ति नहीं होने से पर्याप्त वाश कोल का उत्पादन नहीं हो पा रहा है। इससे वाशरी को छह माह में करीब 14 करोड़ का नुकसान हो चुका है। इधर कोयला नहीं रहने से 23 सितंबर से वाशरी का उत्पादन ठप पड़ा हुआ है। कर्मियों का कहना है कि वाशरी में कोयला की आपूर्ति नहीं के बराबर हो रही है। इसकी जानकारी सीसीएल के उच्च पदाधिकारियों को भी है। परंतु सीसीएल प्रबंधन केवल आश्वासन ही देता रहा है। प्रबंधन वाशरी को एक साजिश के तहत कोयला की आपूर्ति नहीं करा रहा है। अगर समय रहते वाशरी को पर्याप्त कोयले की आपूर्ति नहीं की गई तो वाशरी को बंद होने से रोका नहीं जा सकता है। कर्मियों ने वाशरी को बचाने के लिए क्षेत्र के जन प्रतिनिधियों, ट्रेड यूनियन नेता व राजनीतिक दलों से आगे आने की अपील की है।


एयर इंडिया बैंकों को 7,400 करोड़ रुपए के गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर जारी करेगी।

बैंकिंग सूत्रों ने यहां बताया कि इस योजना के तहत एयर इंडिया इन बैंकों को 7,400 करोड़ रुपए के गैर-परिवर्तनीय डिबेंचर जारी करेगी। समय पूरा होने पर एयरलाइन की ओर से इन डिबेंचरों का धन वापस किए जाने की जिम्मेदारी सरकार लेगी। सूत्रों के अनुसार भारतीय स्टेट बैंक :एसबीआई: के नेतृत्व वाले 13 बैंकों के कंसोर्टियम ने बीमार कंपनी को रोजमर्रा का काम चलाने के लिए 2,200 करोड़ रुपए का रिण देने पर भी सहमति जताई है।

बैंकों ने यह मंजूरी, वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रिसमूह द्वारा एयर इंडिया को 7,400 करोड़ रुपए जुटाने की अनुमति के 10 दिन बाद दी है। मंत्रिसमूह ने सरकारी गारंटी वाले गैर परिवर्तनीय डिबेंचर के जरिए ये 7,400 करोड़ रुपए जुटाने की मंजूरी दी है।

आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि डिबेचर की कूपन दर 8.5 – नौ फीसद होगी और वित्तीय संस्थान ये बांड खरीद सकते हैं। यह राष्ट्रीय विमानन कंपनी की वित्तीय पुनर्गठन योजना का अंग होगा जिसकी मंजूरी मंत्रिसमूह ने सात फरवरी को दी ।

उन्होंने बताया कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ऐसे बांड जारी करने की अनुमति देगा। आधिकारिक आंकड़ों स्पष्ट है कि एयरइंडिया पर 67,520 करोड़ रुपए का बकाया है जिसमें से 21,200 करोड़ रुपए रोजमर्रा के कामकाज के लिए लिया गया कर्ज, 2200 करोड़ रुपए का विमान अधिग्रहण के लिए दीर्धकालिक रिण है और 4,600 करोड़ रुपए आपूर्तिकर्ताओं का बकाया है। कंपनी का संचयी नुकसान 20,320 करोड़ रुपए का है।


--
Palash Biswas
Pl Read:
http://nandigramunited-banga.blogspot.com/


No comments:

Post a Comment