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Monday 21 January 2013

Submission to Justice Verma committee formed on curbing women violence

जस्टिस जे0 एस0 वर्मा कमीशन के समक्ष प्रस्तुत प्रस्ताव

देश में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते हुए जघन्य अपराधों को रोकने के लिए हमारे निम्नलिखित सुझाव हैं 

महिलाओं के खिलाफ जिस तरह से पूरे देश में अपराध सामने आ रहे हंै, वह निश्चित रूप से काफी चिंताजनक हंै, जिनमें सरे आम महिलाओं को नंगा कर उसके साथ कुछ भी करने की मानसिकता सामने आ रही है। यह मानसिकता एक सभ्य समाज के लगातार गिरते हुए मूल्यों की ओर इशारा करती है, जो कि अचानक ही नहीं हो रहे हैं, बल्कि इसके पीछे राजनैतिक, अर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक कारण हैं। इस हिंसा के तार सीधे-सीधे रूप से नवउदारवादी नीतियों से जुड़े हुए हैं। जब से हमारे देश की सरकारों ने भूमंड़लीकरण व खुले बाज़ार की नीतियों के आगे घुटने टेक दिए हैं, तब से महिलाओं का भी बाज़ारीकरण किया गया है और यह बाज़ारीकरण इस लिए किया गया है, क्योंकि महिलाओं के नाम से बाज़ार में आने वाली कोई भी चीज़ के दाम अच्छे मिलते है, जिससे मुनाफा बढ़ता है। इसलिए महिलाओं के प्रति अश्लीलता का प्रदर्शन चाहे वो फिल्मों में हो, या विज्ञापनों में, या पोस्टरों में या फिर गानों में हो उन पर बाज़ारवाद व मुनाफाखोर मानसिकता की मुहर लग गई है। लेकिन महिलाओं के प्रति अश्लीलता पर मुहर लगाने वाले इस पूरे बाज़ार तंत्र के समर्थन में सरकार पूरी तरह से शामिल है, जोकि बिल्कुल खामोश बैठी हैं, जिससे खुले आम सार्वजनिक रूप से अश्लीलता को समर्थन मिल रहा है और जिससे हर आम महिला एक असुरक्षित माहौल में जी रही है और रेप हो या गैंगरेप एक आम घटना में तब्दील होकर रह गया है। खासतौर पर जब ये तथाकथित मुख्यधारा से कटे हुए वर्गों में या इलाकों में घटता है तो रोज़मर्रा की एक साधारण आम घटना में तब्दील हो जाता है। गांवक्षेत्रों में असंख्य दलित, आदिवासी व अन्य ग़रीब तबकों की महिलाऐं तो सामंतवादी, पूंजीवादी व साम्प्रदायिक सोच के चलते बड़े पैमाने पर पीडि़त हो रही हैं, लेकिन इसपर किसी प्रकार का कोई ठोस कदम उठाना तो दूर इस पर किसी प्रकार की सुनवाई भी राजसत्ता तंत्र में नहीं हो रही है। महिलाओं की यह तस्वीर इस पूरे देश को शर्मसार कर रही है, लेकिन शरीफ़ लोग खामोश हैैं इस लिए महिलाओं का सरकार पर से भरोसा कम होता जा रहा है। यह मस्अला केवल एक कमीशन को गठन करने से हल नहीं होने वाला है, यह मुद्दा पूरी सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन का मुद्दा है। परिवार से लेकर समाज तक महिलाओं के दोयम दर्जा व गैरबराबरी को जब तक दूर करने के लिए प्रभावी कार्यक्रम नहीं लिए जाएगें तब तक यह मस्अला हल नहीं होने वाला है। इस कमीशन का गठन सरकार ने प्रस्तावों को सुनने के लिए जरूर किया है, लेकिन इस कमीशन के प्रस्तावों को सरकार मान ले कोई जरूरी नहीं है। ऐसे कई कमीशन व कमेटियां महिलाओं के मुद्दों पर व बहुत सारे अन्य गंभीर मामलों में गठित की गई हैं, जैसे अनुसूचित जाति व जनजाति के ऊपर अत्याचारों पर गठित कमीशन, श्री कृष्ण कमीशन, भू-अधिग्रहण कानून के लिए स्थाई संसदीय समिति की सिफारिशें, वनाधिकार कानून की समीक्षा समिति की सिफारिशें व बांधों के लिए बनी समितियां आदि कई ऐसी संसदीय समितियां शामिल हैं, जिनकी सिफारीशों को सरकार ने नहीं माना है। इस गंभीर समस्या की जड़ पूरे तंत्र की अन्यायपूर्ण व्यवस्था में ही निहित है, पुलिस के अंदर, प्रशासन में और तो और न्यायपालिका में भी है, जिसमें महिलाओं के प्रति हीन भावनाऐं पैदा करने वाली टिप्णियां व कार्यवाही की जाती है। जैसे थाने पर कोई महिला खासतौर पर ग़रीब तबके की महिला तो प्राथमिकी दर्ज करा ही नहीं सकती। उनका कोई दर्जा नहीं दिया जाता। 
इसलिए कमीशन का सम्मान करते हुए हम अपने प्रस्तावों को ज़रूर पेश कर रहे हैं, हम लोग किसी प्रकार की गुहार करने के लिए इस कमीशन के समक्ष प्रस्तुत नहीं हो रहे हैं, बल्कि सरकार को इस संदर्भ में हम चेतावनी देना चाहते हैं-

जिसके बारे में हमारे निम्नलिखित प्रस्ताव प्रस्तुत हैं - 

1. महिलाओं के प्रति हो रहे बलात्कार को तत्काल प्रभाव से केन्द्र व राज्य सरकारें रोके। देखने में आ रहा है कि आए दिन अखबारों में बलात्कार के मामलों से अखबार पटे हुए दिखाई देते हैं, यह घटनाऐं घटने की जगह बढ़ती ही जा रही हैं। बलात्कार की कोई घटना नहीं घटनी चाहिए इस बात का वादा सरकार को हमसे करना होगा। 
2. सरकार को यह वादा सार्वजनिक रूप से देश की महिलाओं के सामने करना होगा व इसके बावजूद भी घटनाए घटती हैं, तो उस जिले के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को तत्काल निलम्बित किया जाना चाहिए। 
3. महिलाओं के प्रति हो रहे भेदभाव, अत्याचार, शोषण, बलात्कार आदि तमाम मामलों से लड़ने के लिए व अपने सम्मान के लिए महिलाओं को खुद ही सामने आना होगा केवल सरकार के भरोसे इस गंभीर गैरबराबरी के खिलाफ नहीं लड़ा जा सकता। महिलाओं को अपने सम्मान के लिए लड़ने के लिए देश में एक माहौल पैदा कर सरकार द्वारा सहयोग किया जाए। 
4. महिलाओं को अपमानित करने वाली व अश्लीलता परोसने वाले प्रोनोग्राफी, अश्लील गाने, अश्लील फिल्मी सीन, विज्ञापन, आदि पर रोक लगाई जाए व  अश्लीलता दिखाने वाली वेबसाइटों पर अपराधिक मुकदमे दर्ज किए जाऐं व दाेिषयों को जेल भेजा जाए। 
5. अश्लील गाने के गीतकार, गायकों खासतौर पर भोजपुरी फिल्मों में अश्लील गाने वाले गायकों, फिल्मी अदाकारों जो गंदे व अश्लील गानों पर थिकरते हैं उनके उपर अपराधिक मुकदमें कर जेल भेजा जाए। चूंकि इस अश्लीलता का असर मानव समाज पर एक गहरा मनोवैज्ञानिक असर छोड़ता है जिससे अपराधिक प्रवृति के लोगों के हौसले बुलंद होते हैं व इसका शिकार मासूम लड़कीयों को होना पड़ता है। 
6. महिलाओं के प्रति किसी भी हिंसा को न्यायालय द्वारा ेनव उवजव संज्ञान में लेकर जांच कराकर महिला अपराध के दोषियों पर कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए। मामला परिवार पर न छोड़ा जाए। अक्सर बदनामी के डर से  पुलिस, रिश्तेदारों, दोषियों के दबाव में आ परिवार समझौता करने को तैयार हो जाते हैं व यहां तक कि सौदेबाज़ी तक कर लेते हैं। इस तरह से दोषीयों को निपराध छोड़ देने से इस तरह के अपराध करने वालों के हौसले बढ़ जाते हैं व बलात्कार जैसी घटनाए और भी विभत्स रूप में घटित होने लगती है। 
7. अक्सर महिला हिंसा के दोषीयों को राजनैतिक संरक्षण प्राप्त होता है। इन मामलों में जो भी राजनेता दोषीयों को राजनैतिक संरक्षण प्रदान करता है उस पर भी अपराधिक मामले दर्ज होने चाहिए व उसको राजनैतिक दल से बर्खास्त किया जाना चाहिए। इस तरह के प्रावधान बनाने के लिए महिला हिंसा को रोकने के लिए नए कानून का गठन होना चाहिए।
8. पुलिस व अधिकारीयों की संवेदनहीनता के चलते बलात्कार की घटनाओं पर किसी भी प्रकार की रोक नहीं लगती है। जिला सहारनपुर उ0प्र0 में तमाम महिला संगठनों द्वारा अक्तूबर 2012 में महिलाओं व छात्राओं पर बढ़ती हुई बलात्कार की घटनाओं पर एक व्यापक जनसभा की थी। इन तमाम मामलों की सूची संलग्न है। इन जघन्य घटनाओं पर पूरा प्रशासन संवेदनहीन बना हुआ है व मीनू बलात्कार व हत्याकाण्ड में अभी तक किसी भी प्रकार की कार्यवाही नहीं की गई व दोषीयों तक को पकड़ा नहीं गया। इसी तरह से देवबंद में घटित घटना जिसमें छात्रा के अश्लील एमएमएस बनाए गए उसपर पुलिस अधीक्षक का बयान था कि यह लड़की ही चरित्रहीन है व खुद ही लड़कों के पास गई थी। ऐसी मानसिकता से इस तरह की घटनाए लगातार बढ़ती जा रही हैं।
9. महिला के प्रति नकरात्मक रवैये की जड़ पूरे शासन व प्रशासन में है, साथ ही समाज में भी इसकी जड़ है इसलिए जब तक समाज नहीं जागरूक होगें तब तक महिला हिंसा के इन मामलों पर रोक नहीं लगेगी। इसलिए सरकार को समाज को महिला मुददों के बारे में जागरूक करना भी काफी जरूरी है। 
10. महिला हिंसा की पीडि़ता से लोगों का कोई भी सरोकार नहंी होता है बल्कि वे ही दोषी ठहराई जाती हैं व ंसमाज से किसी भी प्रकार का समर्थन नहीं मिलता है जिसके कारण लड़कीयां आत्महत्या करने पर मजबूर हो रही है। ऐसे कई मामले सामने आ रहे हैं जहां लड़कीयों को समाज व परिवार से समर्थन न मिलने पर आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। 
11. जो भी प्रशासनिक अधिकारी इस हिंसा की अवहेलना करते हैं उनके उपर सख्त से सख्त कार्यवाही होनी चाहिए।   

जिला सहारनपुर, उत्तर प्रदेश में हो रही महिला हिंसा की शिकार महिलाओं की सूची संलग्न है।

सम्पर्क न0: रोमा 9415233583, कौशल रानी 9719621519
 


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NFFPFW / Human Rights Law Centre
c/o Sh. Vinod Kesari, Near Sarita Printing Press,
Tagore Nagar
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Uttar Pradesh
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