''मतदाता दिवस`` एक नया राष्ट्रीय पर्व
मतदाता दिवस 25 जनवरी पर विशेष
''मतदाता दिवस`` एक नया राष्ट्रीय पर्व
संजीव खुदशाह
न कोई बड़ा,
न कोई छोटा
न कोई उंच,
न कोई नीच।
न कोई गरीब,
न कोई धनवान,
मताधिकार में सब
एक समान।। स्लोगन
संख्या-४
मतदाता दिवस कि शुरूआत पिछले वर्ष २०११ से हुई जिसे २६ जनवरी से एक दिन पहले यानि २५ जनवरी को मनाया जाता है। अभी ''मतदाता दिवस`` शब्द का उच्चारण भले ही सतही प्रतीत हो रहा हो, लेकिन इसके पीछे की गंभीरता को लोकतंत्र के पेरोकार ही समझ सकते है। दरअसल चुनाव आयुक्त की इस पर्व को प्रारंभ के पीछे मंशा भी यही है, कि आम लोग मतदान की गंभीरता से अवगत हो सके।
आज जब समाचार पत्रो में जिक्र मिलता है कि मतदाता खरीदे गये तो बड़ा ही दुख होता है। दारू, कंबल, साड़ी, पैसों का लालच देकर राजनीतिक पार्टियों द्वारा मतदाता को अपने पक्ष में वोट देने के लिए बाध्य करना लोकतंत्र का सबसे बड़ा मजाक है। ऐसे समय में चुनाव आयुक्त द्वारा मतदाता दिवस का आगाज करना सचमुच एक सराहनीय एवं ऐतिहासिक कदम है। चुनाव आयुक्त के निर्देशानुसार प्रत्येक मतदान केन्द्रो में इस दिवस पर १८ साल के नये मतदाताओं को बैच लगाकर सम्मान किया जाता है, व्याख्यान माला आयोजित की जाती है, नुक्कड़ नाटक आयोजित किये जाते है। इस काम में पंचायत से लेकर जिला स्तर के सभी क्षेत्रीय जमीनी कर्मचारी एवं अधिकारी शामिल होते है। निष्पक्ष एवं भय मुक्त मतदान हेतु नारो एवं सुक्तियों का प्रचार प्रसार गली-गली में किया जाता है।
इस वर्ष ये पर्व ऐसे वक्त मनाया जा रहा है जब कुछ राज्यों में
चुनाव होना है। आज का दलित आदिवासी पिछड़ा गरीब मतदाता अपने मतदान के अधिकार से परिचित
नही है। उसके लिए चुनाव का मतलब एक दिन का त्यौहार है। ये दिवस उन खास मतदाताओं के
बीच काम करने की चुनौती देता है जो प्रत्याषी को किसी जाति, धर्म, रिष्तेदार, क्षेत्रियता के चष्में
से देखते है। वे अच्छे एवं बुरे प्रत्याषी में अंतर नही कर पाते। मतदाता दिवस यह बतलाता
है कि हम किस प्रकार लालच एवं पूर्वाग्रहों से बच कर, धर्म जाति क्षेत्रियता
से उपर उठकर सही प्रत्याषी का चयन करे। दरअसल मतदाता दिवस मतदान का पूर्वाभ्यास है।
लोकतंत्र को सलाम है। सभी मतदाताओं का, जंबूरियत को बचाए रखने का एक सच्चा राष्ट्रिय पर्व।
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