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Saturday 12 January 2013

बंगाल में अब गैर सरकारी संगठनों की मदद से जनवितरण प्रणाली की निगरानी!


बंगाल में अब गैर सरकारी संगठनों की मदद से जनवितरण प्रणाली की निगरानी!

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

बंगाल में भूख से मरने की घटनाओं से हमेशा सरकार ने इंकार किया है। यह पहले भी होता रहा है और अब भी हो रहा है। पिछले सितंबर महीने में​ ​ ही मजदूर संगठनों और जनसंगठनों ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेस करके आरोप लगाया था कि राज्य में पिछले छौदह महीने में कम से कम तेरह लोगों​​ की भूख से मौत हो गयी है। तब मां माटी मानुष सरकार के खाद्य मंत्री ने दावा किय़ा था कि राज्य में भूख से एक भी मौत नहीं हुई है। इस बीच​​राज्य में खाद्य सुरक्षा की मांग लेकर आंदोलन तेज हुआ है। सिंगुर और नंदीग्रम भूमि आंदोलन में पहल करने वाले जनसंगठन पश्चिम बंग खेत मजूर संगठन की ओर से राज्य के हर जिले में खाद्य सुरक्षा के लिए मुहिम चलायी जा रही है।मजदूर संगठनों और जनसंगठनों के साथ साथ राजनीतिक दल लगातार जनवितरण प्रणाली को मजबूत करने की मांग करते रहे हैं।जनवितरण प्रणाली की हालत बहुत पहले से खराब है। जिनके पास बाजार से खरीदने को पैसे हैं, वे ​​राशन दुकान की ओर देखते बी नहीं है। क्योंकि जनवितरण प्रणाली से मिलने वाली वस्तुओं की गुणवत्ता सड़े हुए कीड़ा लगे अनाज तक सीमित है।आरोप है कि बेहतर माल कालाबाजार में बेच दिया जाता है।लेकिन हकीकत यह है कि गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर करने वाले लोगों के साथ साथ कम आय ​​वाले मेहनतकश जनसमुदाय के लिए जनवितरण प्रणाली जीवनरक्षा व्यवस्था से कम नहीं है। इसे महसूस करते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विभिन्न गैर सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों को लेकर जनवितरण प्रणाली की जिला, महकमा, ब्लाक और दुकान केंद्रित निगरानी समितियां बना दी है। जो सालभर काम करेंगी। सालभर बाद नयी समितियां  बनेगी।

इन कमिटियों का कामकाज समेटेंगी राज्य करकार की निगरानी कमिटी , जिसमें खाद्य मंत्री और मुख्य खाद्य अधिकारी हैं। जिला , महकमा व ब्लाक स्तरीय निगरानी समितियां उसी स्तर के खाद्य अधिकारियों के साथ समन्वय रखकर काम करेंगी। ये समितियां हर महीने अपनी सभा में जनवितरण ​​प्रणाली में आपूर्ति, वितरण, समस्याओं और जनशिकायतों की सुनवायी करेंगी और रोकथाम के उपाय करेंगी। राज्य सरकार के अलावा ​​गैरसरकारी संगठनों की खाद्य सुरक्षा आंदोलन से जुड़ी इकाइयों के प्रतिनिधियों को लेक एक राज्य स्तरीय फोरम पश्चिम बंग खेत मजूर संगठन ​​की अनुराधा तलवार और पूर्व अधिकारी पल्लव गोस्वामी को लेकर बनाया गया है, जो इन समितियों के कामकाज की देखरेख करेगी। इस फोरम ​​के सचिव शरदिंदु विश्वास बनाये गये हैं।

खादाय सुरक्षा आंदोलन के मद्देनजर जब नकद सब्सिडी के जरिये जनवितरणप्रणाली ही खत्म हो जाने की आशंका व्यक्त की जा रही है, तब राज्य सरकार की ओर से यह कार्रवाई निश्चय ही सकारात्मक मानी जायेगी। अब तक पंचायत और स्थानीय निकाय पर काबिज राजनीतिक दलों के शिकंजे में ही ​​फंसी रही जनवितरण प्रणाली। इस राजनीतिकरण की वजह से राजनीतिक संरक्षण के तहत जनवितरण प्रणाली के साये में भ्रष्टाचार और ​​कालाबाजार का बोलबाला रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि नयी व्यवस्था से जनवितरण प्रणाली पर राजनीति का शिकंजा कुछ ढीला ​​अवश्य पड़ेगा पड़ेगा। खास बात यह है कि इन निगरानी समितियों में सघन बाल आहार प्रणाली के प्रतिनिधि भी होंगे और मिड डे मेल की वजह से स्कूलों के प्रतिनिधि भी।

आगामी १२ जनवरी को राज्यस्तरीय खाद्य सुरक्षा अभियान का राज्य सम्मेलन होना है। फिर १८ जनवरी को खाद्य मंत्रालय में जनवितरण ​​प्रणाली की निगरानी समिति की बैठक हो रही है। जाहिर है कि यह खाद्य सुरक्षा आंदोलन और जनवितरण प्रणाली को एक सूत्र में बांधने का​ ​ अभिनव प्रयोग है।​

विश्व बैंक की एक ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का पूरा लाभ ग़रीबों को नहीं मिल रहा है।​ जनवितरण प्रणाली के बारे में विश्व बैंक की रिपोर्ट कहती है कि 2004-2005 नैशनल सैम्पल सर्वे के अनुसार केवल 41 प्रतिशत ग़रीबों को इस प्रणाली से मदद मिली है।​

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समस्या यह है कि जनवितरण प्रणाली को आपूर्ति तो भारतीय खाद्य निगम से होता है और जनवितरण प्रणाली में तमाम गड़बड़ियों की जड़ें​ ​ वहीं हैं। लेकिन भारतीय खाद्य निगम केंद्र सरकार के मातहत है। इसलिए राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच इस दिशा में सुधार के लिए साझा प्रयास किये बिना समस्याएं सुलझने के आसार कम ही हैं।

गौरतलब है कि ओडिशा और त्रिपुरा के बाद पश्चिम बंगाल ने केन्द्र सरकार की लाभार्थियों के बैंक खाते में सीधे नकदी अंतरण योजना का विरोध करते हुए दावा किया है कि इससे वर्तमान जनवितरण प्रणाली में समस्याएं पैदा होंगी और भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) बंद हो जाएगा।बरसों से गरीबों को राशन और केरोसिन उपलब्ध करा रही जन वितरण प्रणाली की छवि नकारात्मक हो गयी है और इस प्रणाली की ऐसी छवि के कारण सरकार ने इन्हें बंद करवा कर लोगों के खाते में उनकी सब्सिडी एकमुश्त डलवा देने का फैसला कर लिया है।मुक्त बाजार के कई पैरोकार अर्थशास्त्री मानते हैं कि सरकार को भ्रष्ट जनवितरण प्रणाली से निजात पा लेना जरूरी है और इसका सबसे बेहतर उपाय नकदी हस्तांतरण की पद्धति को लागू करना है।


राज्य के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री ज्योतिप्रिय मलिक ने कहा, 'अगर लाभार्थियों को सस्ते अनाज की जगह नकदी उपलब्ध कराई जाती है तो गरीबों की भूख खत्म करने वाली जन वितरण प्रणाली का मौलिक उद्देश्य खत्म हो जाएगा और भारतीय खाद्य निगम बंद हो जाएगा।'उन्होंने कहा कि एफसीआई का उद्देश्य जनता को सब्सिडी वाली दर पर अनाज और दालें उपलब्ध कराना है और इसका उद्देश्य खत्म हो जाएगा क्योंकि लाभार्थी द्वारा नकदी का उपयोग भोजन के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है।

उन्होंने कहा, 'यह फैसला गलत है। अगर नकदी अंतरण लागू हुआ तो एफसीआई बंद हो जाएगा।' उन्होंने कहा कि राज्य की केवल 24 प्रतिशत जनता के पास आधार कार्ड है और इस योजना का क्रियान्वन कैसे संभव है जबकि पश्चिम बंगाल की ज्यादातर जनता के पास आधार कार्ड नहीं हैं।

सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक को संसद में पास कराने की तैयारी में है। हालांकि इस विधेयक को प्रस्तुत करने के लिए वह स्वतंत्र अर्थशास्त्रियों के एक समूह की अनुशंसा को आवरण के तौर पर इस्तेमाल कर रही है, लेकिन इस प्रस्तावित विधेयक में जनवितरण प्रमाली की घनघोर उपेक्षा की गयी है।जन-वितरण प्रणाली के तहत राज्य सरकारों को इस समय जितना अनाज आवंटित किया जाता है, उससे संबंधित प्रावधानों को इस विधेयक में इतना कमजोर कर दिया गया है कि उससे संपन्न राज्यों को ही फायदा होगा। उदाहरण के लिए, बाल-पोषण के मद में पहले से ही सरकारी अनुदान बेहद कम है और प्रस्तावित विधेयक में भी इस मामले में कोई बेहतरी नहीं दिख रही है।खाद्य मंत्रलय ने जो ताजा योजना प्रस्तावित की है, इसके मुताबिक, यह विधेयक देश की लगभग 67 प्रतिशत आबादी को ही जन-वितरण प्रणाली के संरक्षण की बात करता है। शेष 33 प्रतिशत लोगों को राज्य सरकारों के विवेक पर छोड़ दिया गया है।समान रूप से 33 फीसदी लोगों को बाहर रखे जाने की नीति का शानदार फायदा धनाढ्य राज्यों को होगा। फिलहाल केद्र द्वारा राज्यों को गरीबी रेखा के आधार पर खाद्यान्न आवंटित किया जाता है, इसलिए गरीब राज्यों को प्रति व्यक्ति के आधार के मुकाबले अधिक अनाज मिलता है। लेकिन प्रस्तावित नई नीति से उन्हें भी अमीर राज्यों के जितना ही खाद्यान्न मिल सकेगा। ऐसे में, इस नीति का सबसे अधिक लाभ हरियाणा और पंजाब को होगा।








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