मुद्रास्फीति या राजकोषीय घाटा चाहे कुछ हो, अब रिजर्व बैंक की पहली प्रथमिकता कारपोरेट इंडिया की तबीयत हरी कर देने की !
मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
डांवाडोल बाजार को चंगा करने के लिए वित्तीय अनुशासन की राह छोड़कर सरकार अब मौद्रिक नीति के तहत ब्याज में कटौती करके उद्योग जगत को संकट से उबारेगी, ऐसी उम्मीद की जारही है।सुस्त पड़ती आर्थिक वृद्धि की रफ्तार बढ़ाने के लिए रिजर्व बैंक मंगलवार को घोषित होने वाली सालाना मौद्रिक नीति में ब्याज दरों में कटौती कर सकता है। सरकार और उद्योग जगत दोनों ही इसकी उम्मीद लगाए बैठे हैं। पिछले करीब दो साल से ऊंची ब्याज दरों के कारण उपभोक्ता मांग में लगातार गिरावट का रुख रहा है। इससे उद्योगों में मांग कमजोर पड़ी है और आर्थिक वृद्धि का पहिया धीमा पड़ा है।रिजर्व बैंक को हालांकि विकास दर खराब होने की उतनी चिंता नहीं है, जितनी को कारपोरेट इंडिया को मनाने की कवावद से उसकी हालत
खराब है।उसने मान लिया है कि मंहगाई पर काबू पाना मुश्किल है। इसलिए मुद्रास्फीति या राजकोषीय घाटा चाहे कुछ हो, अब रिजर्व बैंक की पहली प्रथमिकता कारपोरेट इंडिया की तबीयत हरी कर देने की है।ऐसा कुछ नया भी नहीं हो रहा है। पिछले छह दशकों में भारत सरकार ने वित्तीय नीति की आखिर कब परवाह की? हर संकट के वक्त अर्थ व्यवस्था को थामने की जिम्मेवारी आखिर इसी शेषनाग पर होती है!
विशेषज्ञों की राय है कि रिजर्व बैंक के रेपो रेट घटाए जाने पर खुदरा संस्थागत निवेशकों की बाजार में हिस्सेदारी बढ़ सकती है,जिससे बाजार फिर बम बम हो सकता है।यूरोप में हालात काफी बिगड़े हुए हैं। यूरोपीय देशों की वित्तीय हालत सुधरने में काफी वक्त लग सकता है। जिसका असर अंतर्राष्ट्रीय शेयर बाजारों पर भी दिख सकता है।भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सोमवार को कहा कि देश की आर्थिक विकास दर मौजूदा कारोबारी साल में 2011-12 की अनुमानित 6.9 फीसदी विकास दर से थोड़ी बेहतर रहेगी, लेकिन तेल की ऊंची कीमत, कर और वेतन में वृद्धि जैसे कारणों से महंगाई बनी रहेगी!बैंक ने हालांकि कहा कि विकास को बढ़ावा देने की जरूरत है, लेकिन उसने दरों में कटौती का संकेत नहीं दिया। अधिकतर विश्लेषकों का अनुमान है कि आरबीआई मुख्य नीतिगत दरों में 25 आधार अंकों की कटौती करेगा। यदि ऐसा होता है, तो यह तीन वर्षो में दर में पहली कटौती होगी।सख्त नकदी हालात और जमा वृद्घि पर दबाव की वजह से बैंकों द्वारा वित्त वर्ष 2011-12 की चौथी तिमाही में फंडों की ऊंची लागत दर्ज किए जाने का अनुमान है। विश्लेषकों का कहना है कि बढ़ती गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) उनके शुद्घ ब्याज मार्जिन पर प्रभाव डाल सकती हैं। पब्लिक सेक्टर के ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स ने फिक्स्ड डिपॉजिट की ब्याज दरों में आधा पर्सेंट की कमी है। बैंक ने 11 अप्रैल से कर्ज की सबसे कम ब्याज दर यानी बेस रेट में भी 0.1 पर्सेंट की कमी कर दी है। इससे बैंक के होम लोन और ऑटो लोन समेत दूसरे कर्ज 0.1 पर्सेंट सस्ते हो जाएंगे। इन बातों से संकेत मिल रहे हैं कि ऊंची ब्याज दरों का दौर वाकई खत्म होने जा रहा है। रिजर्व बैंक इसके अलावा देश के बैंकिंग सिस्टम में तरलता (लिक्विडिटी) बढ़ाने का कदम भी मौद्रिक नीति में उठा सकता है। देश में घटते औद्योगिक उत्पादन और धीमे पड़ते आर्थिक विकास को ध्यान में रखकर ही बैंकर्स इस बार कुछ राहत की उम्मीद जता रहे हैं।
इस बीच रुपया तीन महीने के नीचले स्तर पर फिसल गया है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 51.67 पर बंद हुआ। जबकि, शुक्रवार को रुपया 51.3 पर बंद हुआ था।स्पेन के बॉन्ड्स पर यील्ड रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने के बाद यूरोजोन की वित्तीय हालत पर चिंता बढ़ गई है, जिसका असर रुपये पर दिखाई दिया। कारोबार के दौरान रुपया 51.7 के नीचे फिसला, जो 3 महीने के सबसे निचला स्तर है।
देश के शेयर बाजारों में सोमवार को तेजी रही। प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 56.44 अंकों की तेजी के साथ 17150.95 पर और निफ्टी 18.75 अंकों की तेजी के साथ 5226.20 पर बंद हुआ। बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों वाला संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 46.64 अंकों की गिरावट के साथ 17047.87 पर और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) का 50 शेयरों वाला संवेदी सूचकांक निफ्टी 16.85 अंकों की गिरावट के साथ 5190.60 पर बंद हुआ। आज मार्च महीने के महंगाई के आंकड़े जारी किये गये।महंगाई की दर में मामूली गिरावट के बीच कल भारतीय रिजर्व बैंक की सालाना मौद्रिक नीति की समीक्षा से पहले निवेशकों ने बैंकिंग, रीयल्टी कंपनियों के शेयरों में लिवाली की।उम्मीद जताई जा रही है कि केंद्रीय बैंक कल मौद्रिक समीक्षा में रेपो दरों में चौथाई फीसद तक की कटौती कर सकता है। रिजर्व बैंक यह कदम उठाकर मौद्रिक रुख को नरम करने का संकेत दे सकता है. बैंकों द्वारा केंद्रीय बैंक से लघु अवधि की उधारी दर को रेपो रेट कहते हैं। ब्रोकरों का कहना है कि मार्च महीने में महंगाई की दर घटकर 6.89 प्रतिशत पर आ गई है। इससे यह उम्मीद बंधी है कि रिजर्व बैंक कल रेपो दरों में 0.25 प्रतिशत की कटौती कर सकता है। इसके अलावा विदेशी पूंजी के अंत: प्रवाह तथा यूरोपीय बाजार के मजबूत संकेतों से भी यहां धारणा मजबूत हुई।
सोमवार को मार्च महीने के महंगाई के आंकड़े जारी कर दिए गए जिसके अनुसार मार्च में महंगाई दर 6.89 फीसदी रही है। फरवरी में महंगाई दर 6.95 फीसदी रही थी जबकि मार्च में इसमें महज पॉइंट 6 की गिरावट आई।
मार्च में प्राइमरी आर्टिकल्स और खाद्य महंगाई में भी बढ़ोतरी हुई है। लेकिन, मार्च में मैन्युफैक्चरिंग प्रॉडक्ट और फ्यूल की महंगाई दरों में गिरावट दर्ज की गई। प्राइमरी आर्टिकल्स की महंगाई दर बढ़कर 9.62 फीसदी हो गई है जबकि फरवरी में प्राइमरी आर्टिकल्स की महंगाई दर 6.28 फीसदी रही थी।
रिजर्व बैंक के मुताबिक महंगाई और विकास में संतुलन बिठाने के लिए सावधानी से कदम उठाने होंगे। विकास को बढ़ावा देने के लिए पॉलिसी में बदलाव लाना जरूरी है।रिजर्व बैंक का कहना है कि वित्त वर्ष 2013 में जीडीपी में सुधार आएगा, हालांकि रिकवरी की रफ्तार सुस्त रहेगी। वित्त वर्ष 2013 के लिए अनुमानित जीडीपी दर 7.3 फीसदी से घटाकर 7.2 फीसदी की गई है।
रिजर्व बैंक ने 2012-13 के लिए मौद्रिक नीति की घोषणा करने से पहले 'आर्थिक और मौद्रिक विकास' रिपोर्ट जारी करते हुए कहा, "वर्ष 2012-13 में विकास दर में थोड़ा सुधार होगा। महंगाई में थोड़ी कमी आई है, लेकिन इसके बरकरार रहने का जोखिम बना हुआ है।"
वित्त वर्ष 2013 में कृषि सेक्टर 3 फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है। वहीं उद्योग का विकास 5.8 फीसदी के बजाय 6 फीसदी की दर से होगा। सर्विस सेक्टर की ग्रोथ 8.8 फीसदी रहने का अनुमान है।
आरबीआई का मानना है कि महंगाई दर में कमी आई है, लेकिन महंगाई में उछाल आने का जोखिम अब भी काफी ज्यादा है। कच्चे तेल के बढ़ते दाम से महंगाई पर दबाव बना हुआ है।
रुपये में कमजोरी और ईंधन के दाम बढ़ने से महंगाई दर में फिर से बढ़ोतरी आ सकती है। वित्त वर्ष 2013 में महंगाई 6.5 फीसदी के बजाय 6.9 फीसदी रहने की आशंका है।
2012 में सामान्य मॉनसून की उम्मीद है, जिससे कृषि सेक्टर का प्रदर्शन बेहतर रह सकता है। उद्योग के लिए वित्त वर्ष 2013 मिला-जुला रहेगी। जनवरी-मार्च तिमाही के बाद उद्योग के हालात सुधरेंगे।
रुपये में आई भारी गिरावट की वजह से आरबीआई को फॉरेक्स मार्केट में हस्तक्षेप करना पड़ा था। आरबीआई के ओपन मार्केट ऑपरेशंस के बावजूद लिक्विडिटी की किल्लत बनी रही थी।
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